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खाना खा कर पापा जा कर लेट गए. उन्हें शाम की गाड़ी से लौटना था. उसे भी आराम करने को कह कर दीदी अपने कमरे में चली गईं.

शाम को दीदी ने पापा से कहा, ‘‘चाचाजी, मैं कुछ कपडे़ लाई थी, छोटूबंटू के लिए और चाचीजी के लिए साडि़यां. इन्हें रख लीजिए. मैं थोड़ा बाजार से आती हूं, फिर आप को स्टेशन छोड़ कर आफिस निकल जाऊंगी.’’

‘‘अभी शाम को आफिस, बिटिया,’’ पापा कहते हुए हिचके.

‘‘हां, चाचाजी, मैं एक काल सेंटर में नौकरी करती हूं. मेरे सारे क्लाइंट्स अमेरिकन हैं. अब भारत और अमेरिका में तो दिनरात का अंतर होता ही है. इसीलिए रात को नौकरी करनी पड़ती है. वैसे शिफ्ट बदलती रहती हैं. कंपनी सारी सुविधाएं देती है. आनेजाने के लिए कार पिकअप, खानापीना सब. सुबह 12 बजे मैं घर आ जाती हूं,’’ दीदी ने सहज हो कर जवाब दिया.

‘‘और दामादजी?’’

‘‘वह कंप्यूटर की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सिस्टम एनालिस्ट हैं. उन की ड्यूटी सुबह 10 से शाम 7 बजे तक होती है. वह 8 बजे शाम तक आएंगे. आप से भेंट नहीं हो पाएगी.’’

‘‘दीदी, आप अमेरिकियों से किस भाषा में बात करती हैं?’’ शेफाली ने जिज्ञासा जाहिर की.

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‘‘अमेरिकन इंग्लिश में, जिस की कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जाती है,’’ दीदी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘तुम भी सब सीख जाओगी. निर्मला, खाना जल्दी बना लेना. चाचाजी को जाना है.’’

‘‘घर की सारी व्यवस्था नौकरानी के हाथों में है. ऐसी नौकरी का क्या फायदा,’’ पापा बोले, ‘‘शेफाली, तुम ऐसी नौकरी मत करना, चाहे कितना भी पैसा मिले. हम लोग तो शहर के रहने वाले नहीं हैं. तुम्हारा ब्याहशादी सब बाकी है अभी, समझी न.’’

शेफाली ने हामी भरी, ‘‘आप बेफिक्र रहें, पापा.’’

पापा के जाने के बाद शेफाली ने निर्मला से पूछा, ‘‘मिंटी नजर नहीं आ रही है.’’

‘‘आज देर से आई है और तब आप सो रही थीं. अभी वह सो रही है.’’

निर्मला ने खाना बना कर टेबल पर रखा, फटाफट रसोई साफ की और बोली, ‘‘साहब आएंगे तो आप लोग खा लेना.’’

जीजाजी आते ही अपने कमरे में चले गए. वहां से टीवी चलने की आवाज आती रही. उस से उन्होंने बात भी नहीं की. वह अपनेआप को उपेक्षित महसूस करने लगी. रात को बिना खाए ही सो गई.

सुबह निर्मला के आने पर शेफाली की नींद टूटी. उस ने आते ही मिंटी का नाश्ता बनाया. फिर उसे उठाया, तैयार किया और 8 बजे स्कूल बस में चढ़ा आई. फिर जीजाजी के नाश्ते की तैयारी में लग गई. 10 बजे तक जीजाजी भी चले गए.

बेहद जल्दीजल्दी निर्मला काम निबटा रही थी. झाड़ ूपोंछा, बिस्तर झाड़ना, सोफे, परदे, खिड़की, दरवाजे, शोकेस सब की डस्ंिटग की. फिर फटाफट खाना बनाया. मशीन में कपड़े डाले. 12 बजे तक उस ने तमाम काम निबटा लिए, नहाधोकर शैंपू किए हुए बालों को फहराते हुए वह कपडे़ सुखाने लगी.

एकदम घड़ी की सुईयों से बंधा था निर्मला का एकएक काम. इतने काम में तो मां का सारा दिन निकल जाता है और फिर भी वह अस्तव्यस्त सी घूमती रहती हैं. मां ही क्या ज्यादातर औरतों का यही हाल है.

निर्मला का पति एक पब्लिक स्कूल में चौकीदार है. 7 साल की एक बेटी भी है, जो उसी स्कूल में पढ़ती है. घर में कूलर है, रंगीन टीवी है, टेप है. ये दीदी का घर संभालती है और इस का घर इस की सास संभालती है. आखिर निर्मला भी काम- काजी बहू है.

दरवाजे की घंटी ने मधुर स्वर छेड़ा, दीदी आ गईं. नींद से उन की आंखें लाल थीं. उन्होंने किसी तरह चाय के साथ एक टोस्ट निगला. ठंडे स्वर में उस का हाल पूछा और निर्मला को डिस्टर्ब न करने का निर्देश दे कर बेडरूम में चली गईं.

थोड़ी ही देर में मिंटी आ गई. जैसेतैसे निर्मला ने उस के कपडे़ बदले, खाना खिलाया, फिर मिंटी टीवी पर कार्टून देखने बैठ गई. निर्मला बीचबीच में उसे आवाज कम करने को कहती रहती. 4 बजे निर्मला उठी, चाय बनाई, खुद पी, शेफाली को दी, फिर मिंटी को घुमाने पार्क में ले गई. वहां से आ कर दूध पिलाया, खाना खिलाया और 6 बजे उसे सुला दिया.

शेफाली ने निर्मला से पूछा, ‘‘दीदी कब उठेंगी?’’

‘‘नींद टूटेगी तो उठ जाएंगी. इसीलिए बेबी को सुला दिया है, नहीं तो तंग करती है और मेमसाब गुस्सा हो जाती हैं.’’

वह यह देख कर हैरान रह गई कि 4 साल की बच्ची पूरी तरह आया के भरोसे परवरिश पा रही थी. मां बेखबर सो रही थी. पापा का फोन आया, बातें कीं, फिर वह बोर होने लगी. एक ही दिन में नीरसता सताने लगी. आ कर अपने कमरे में लेट गई. कैसी शांति है यहां, 4 कमरे, 4 आदमी. न कोई बातचीत, न ठहाके. उसे अपने घर की याद आ गई और रुलाई फूट पड़ी. जाने कब आंख लग गई.

घंटी बजी तो वह जागी. जीजाजी आए थे. वह बाथरूम से हाथमुंह धो कर बाहर निकली और ठिठक कर वापस अपने कमरे में चली गई. दीदीजीजाजी ड्राइंगरूम में ही टीवी के सामने एकदूसरे से लिपटे, एकदूसरे के होंठों को बेतहाशा चूम रहे थे, जैसे फिल्मों में देखती है. जीजाजी के हाथ दीदी के उभारों पर… शेफाली की कनपटी गरम हो गई.

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दीदी ने थोड़ी देर बाद निर्मला को आवाज दे कर चाय लाने को कहा. वह शर्म से पानीपानी हो गई. निर्मला सब जानतीदेखती होगी. वह थरथरा गई.

दीदी ने उस के बारे में पूछा, निर्मला बोली, ‘‘सो रही हैं.’’

शेफाली ने सुकून महसूस किया कि चलो, सामने नहीं जाना पड़ेगा. निर्मला चली गई. थोड़ी देर बाद दीदी भी. जीजाजी दरवाजे तक छोड़ने गए थे. उस ने परदे के पीछे से साफ उन का आलिंगन और चूमना देखा. अब रह गए जीजाजी और शेफाली. डर और संकोच से सराबोर वह सामने पड़ने से कतराती रही.

वह और जीजाजी रात को अकेले…आगे शेफाली सोच नहीं पाई. अब यहां रहना है तो निर्मला की तरह अनजान बन कर रहना होगा. इन के घर की निजता का खयाल रखना होगा.

कुछ ही दिनों में शेफाली यहां के माहौल में रम गई. अब स्कूल से आते ही मिंटी मौसीमौसी करने लगती. कहानियां सुनतेसुनते वह कब खा लेती पता ही नहीं चलता. दीदीजीजाजी भी निश्ंिचत हो कर मिंटी की प्यारी गप्पें सुनते. अब उसे सुलाने की जल्दी किसी को नहीं रहती.  शेफाली के पास छोड़ दोनों एकांत में वक्त बिताते. निर्मला भी निश्ंिचत हो काम निबटाती. घर के औपचारिक माहौल में एक स्वाभाविकता आ गई थी.

एक दिन दीदी ने सलाह दी, ‘‘शेफाली, तुम संदीप से कंप्यूटर सीख लो.’’ तो उस ने हिचक के साथ इस प्रस्ताव को स्वीकारा था. दीदी और निर्मला के जाने के बाद जब मिंटी सो जाती तो दोनों बैठ कर कंप्यूटर पर नया साफ्टवेयर सीखते. जीजाजी के बदन से उठती परफ्यूम की खुशबू उस को उस दृश्य की याद दिला देती थी.

कंप्यूटर के नामी इंस्टीट्यूट जो कोर्स 6 महीने में सिखाते हैं वह जीजाजी से कुछ ही दिनों में शेफाली सीख गई. कंप्यूटर टाइपिंग, ई-मेल करना, इंटरनेट पर काम करना, सर्च करना आदि.

फोन पर ये सब सुन कर मां भावुक हो उठीं, ‘‘तुम्हारे पापा कह रहे थे कि क्या हुआ जो उसे सुनंदा की तरह कानवेंट में नहीं पढ़ा पाए. समझदारी और दुनियादारी तो कोई भी शिक्षा सिखा देती है. शेफाली अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो भैया जैसा अच्छा दामाद हमें भी मिल जाएगा. दामादजी को भी तुम्हारा व्यवहार अच्छा लगा तो वह भी बढ़ कर मदद कर देंगे?’’

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जल्द ही शेफाली की मर्केंडाइजर की नौकरी लग गई. अब वह भी व्यस्त हो गई. अकसर जीजाजी उसे साथ ले आते.

फ्रेश हो कर वह अपने और जीजाजी के लिए कौफी बनाती. दिन भर के काम के बाद घर आ कर जीजाजी का साथ उसे भाने लगा था. दोनों साथ टीवी देखते. अब अटपटे दृश्यों पर चैनल नहीं बदले जाते थे. न ही कोई उस समय उठ कर जाता. सब कितना सामान्य लगने लगा था. शेफाली इसे मैच्योर होना कहती. फिर जहां ऐसा खुलापन चलता है तो क्या हर्ज है. दीदी तो उस के सामने सिगरेट भी पीने लगी थीं.

आगे पढ़ें- अपने आफिस के माहौल और वहां इस्तेमाल…

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