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ध्यान रखना है कि 13 दिन तक कुछ भी छौंकना नहीं है. दूधदही और पूरीपरांठे खाना भी पूरी तरह वर्जित है. इन 13 दिनों तक इन चीजों का सेवन करना ‘दोष’ माना जाता है. आज घर के अंदर चूल्हा नहीं जलाया जा सकता है अत: तुम लोगों को अपना भोजन बनाने के लिए घर के बाहर कहीं चूल्हा जलाना पड़ेगा और वहां जो खाना बनेगा वह केवल बेटेबहू ही खाएंगे और कोई नहीं खा सकता.’’

अभी तक बुजुर्गों की बात धैर्य से सुन रही सुनीता बोल पड़ी, ‘‘ताईजी चूल्हा घर में नहीं जलेगा तो कहां जलेगा? यह गांव नहीं, गुरुग्राम है हम बहुमंजिला इमारतों में रहते हैं. यहां घरों के आगेपीछे अहाता नहीं है, जहां हम चूल्हा जला सकें. यहां अपने फ्लैट के बाहर जूतेचप्पल रखने की भी इजाजत नहीं होती. ऐसा कुछ भी करने की कोशिश भी की तो सोसायटी वाले नोटिस थमा देंगे.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे नोटिस थमा देंगे? मरनाजीना किसी एक के यहां की बात थोड़े ही होती है. आज हमारे यहां है कल किसी और के यहां तो क्या सोसाइटी के डर से कर्मकांड छोड़ देंगे हम? ताईजी काफी रुष्ट होते हुए बोलीं तो सुनीता ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘ताईजी सोसाइटी के कुछ नियम होते हैं. उन्हें हमें मानना ही पड़ता है. जो होना है घर के अंदर ही कर सकते हैं बाहर नहीं और अगर आप चाहती हैं कि चूल्हा न जले तो हम नहीं जलाएंगे बाजार से फल मंगा लेते हैं वही खा लेंगे हम सब.

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