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‘‘मैडम, मैं सुनील... आप का एक पैकेट आया है कूरियर से,’’ सिक्युरिटी गार्ड ने इंटरकौम पर बताया.

मृदंगम ने मोबाइल उठा पति कामेश को फोन कर दिया, जो कुछ देर पहले ही औफिस जाने के लिए घर से निकला था, ‘‘आप

आसपास ही हों तो मेरा एक पैकेट गेट से ले कर घर दे जाओ, अभीअभी डिलिवरीमैन वहां दे कर गया है.’’

‘‘मैं तो काफी आगे निकल चुका.... आजकल ट्रैफिक कम होने से जाम नहीं मिला कहीं भी,’’ कामेश बोला.

मृदंगम ने बेटे इशू के कमरे का दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर झांका. औनलाइन क्लास चल रही थी.

‘मैं ही चली जाती हूं पैकेट लेने, वेट ज्यादा हुआ तो घर तक लाने में किसी गार्ड की मदद ले लूंगी,’ सोचते हुए मृदंगम ने मास्क लगाया और तेजी से लिफ्ट से नीचे आ गई.

दिल्ली में वैशाली सोसायटी के एक फ्लैट में रहने वाली मृदंगम छोटे कद की आकर्षक महिला थी. देखने में जितनी प्यारी थी, बोली भी उतनी ही मधुर थी उस की. पति कामेश, 14 वर्षीय बेटा इशू और वह, 3 प्राणी थे परिवार में. पहले अनलौक के बाद कामेश औफिस जाने लगा था, लेकिन बेटे के स्कूल नहीं खुले थे. कोरोनाकाल के कारण घर पर लगभग सारा सामान औनलाइन मंगवाया जा रहा था. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बाहरी व्यक्तियों को सोसायटी के भीतर आने की परमिशन नहीं थी. गेट पर ही

सामान दे जाते और बाद में सिक्युरिटी गार्ड्स पता देख इंटरकौम कर देते थे.

मृदंगम गार्डरूम के पास पहुंची तो 4-5 लोग लाइन बना कर खड़े थे. सभी अपनाअपना फ्लैट नंबर बताते और गार्ड उन का पैकेट छांट कर निकाल देता. मृदंगम की बारी आई तो उस के फ्लैट नंबर बताने से पहले ही गार्ड ने अलग रखा हुआ एक पैकेट थमा दिया.

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