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अकसर वह गाड़ी ले कर कहीं दूर, बहुत दूर निकल पड़ती थी. शहरों की भीड़भाड़ से दूर जंगलों से गुजरते हुए खेतखलियान, गांव, कसबा देखना उसे बहुत पसंद था. कितनी बार उस के डैड ने समझाया उसे कि इतनी दूर, वह भी अकेले जाना ठीक नहीं. गाड़ी खराब हो जाए या कोई और समस्या आन पड़े, तो क्या करेगी वह? अगर जाना ही है तो किसी को साथ ले कर जाया करे. मगर त्रिशा का कहना था कि अकेले घूमने में जो मजा है वह औरों के साथ कहां? अपनी मरजी से चाहे जहां घूमो, बिंदास.

“डोंट वरी डैड, कुछ नहीं होगा आप की बेटी को,” बोल कर वह अपने डैडी को चुप करा दिया करती थी. लेकिन आज उसे समझ आ रहा था कि उस के डैडी कितने सही थे. कोई साथ होता, तो कम से कम एक बल तो मिलता.

‘काश, वह अपने डैडी की बात मान ली होती,’ मन ही मन वह पछता ही रही थी कि तभी एक बड़ी सी गाङी उस के पास से हो कर गुजरी. उस ने मदद के लिए हाथ हिलाया, पर गाड़ी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ गई.

लेकिन उस ने देखा वह गाड़ी उस के पास ही आ रही थी. अपने सीने पर हाथ रख त्रिशा ने राहत की सांस ली थी. गाड़ी ठीक उस के साम ने आ कर रुकी तो वह बोली,“भाई साहब, मेरी गाड़ी खराब हो गई है. मदद चाहिए, प्लीज.“

त्रिशा को डर भी लग रहा था. पर पूरी रात वह यहीं तो नहीं गुजर सकती न?

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गाड़ी में बैठे दोनों लड़कों ने पहले तो उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर आंखों ही आंखों में दोनों ने कुछ बातें की. फिर बोला,“आप की गाड़ी खराब हो गई? लेकिन यहां तो कोई मैकेनिक नहीं मिलेगा. इस के लिए तो आप को शहर जाना पड़ेगा. वैसे, जाना कहां है आप को?” उन लड़कों ने बड़ी शराफत से पूछा.

“जी…जी, आदर्श नगर, ग्रीन पार्क,” घबराहट के मारे त्रिशा के मुंह से ठीक से आवाज भी नहीं निकल रही थी.
“ओह… ग्रीन पार्क। हम भी तो उधर ही जा रहे हैं. अगर आप चाहें तो हम आप को आप के घर छोड़ सकते हैं. और कोई दिक्कत नहीं है, फोन कर देंगी तो मैकेनिक आप की गाड़ी ठीक कर के आप के घर पहुंचा देगा,” उन लड़कों ने कहा तो 1 मिनट के लिए त्रिशा ठिठक गई क्योंकि किसी पर भी इतनी जल्दी विश्वास करना सही नहीं है. लेकिन चेहरे से वे लड़के शरीफ लग रहे थे.

‘अगर मैं इन के साथ नहीं गई, तो क्या पता फिर कोई मदद करने वाला मिले न मिले? अंधेरा भी गहराने लगा है, यह जगह भी बहुत सुनसान लग रहा है, इसलिए इन के साथ चले जाना ही उचित रहेगा’ अपने मन में ही सोच त्रिशा उन की गाड़ी में बैठने ही लगी कि एक ने उस का हाथ जोर से खींचा और दूसरा अभी दरवाजा लगाता ही कि त्रिशा,” छोड़ो मुझे, नहीं जाना तुम्हारे साथ,” बोल कर चिल्लाने लगी.

मगर दोनों लड़के उसे जबरदस्ती पकड़ कर कर गाड़ी में बैठाने लगे और एक ने डपटते हुए बोला,“चुप रहो, नहीं तो यहीं मार कर फेंक देंगे किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,” उस की बात सुन त्रिशा सहम उठी.

दोनों जिस तरह से त्रिशा को घूर रहे थे इस से उन की बदनीयती साफसाफ झलक रही थी.

वह समझ गई कि आज वह नहीं बच सकती इन के हाथों, क्योंकि इस वीरान और सुनसान इलाके में कोई उसे कोई बचाने नहीं आने वाला. शहरों में तो आधी रात तक लोगों की चहलपहल बनी रहती है. मगर गांवों में तो सांझसवेरे ही लोग घरों में सिमट जाते हैं.

आज त्रिशा को अपनी मौत बड़ी निकट से दिखाई दे रही थी. उसे जीवन में आज पहली बार अपनी लड़की होने पर दुख हो रहा था. अफसोस उसे इस बात का भी हो रहा था कि कैसे वह इन हैवानों को पहचान नहीं पाई? कैसे उस ने इन पर भरोसा कर लिया? रोना आ रहा था उसे पर उस के आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. बोलना चाह रही थी वह पर डर के मारे मुंह नहीं खुल रहे थे.

सोच लिया उस ने जो होना है हो कर रहेगा, अब कुछ नहीं कर सकती वह. अभी उन की कार रफ्तार पकड़ती ही कि तभी गाड़ी के सामने एक शख्स को देख अचानक से चालक ने कस कर ब्रैक लगा दिया.

वह बाहर निकल कर कुछ पूछता ही कि मौका पा कर उस शख्स ने उस लड़के के सिर पर धड़ाधड़ 2-3 डंडे बरसा दिए जिस से वह वहीं ढेर हो गया. दूसरा यह सब देख कर अपनी जान बचा कर भागता ही कि उस का भी वही हश्र हुआ.

त्रिशा ने देखा वह तो वही लड़का है जो अभी कुछ देर पहले उसे मदद करने की बात कर रहा था, मगर त्रिशा ने उसे मना कर दिया था.

“आजकल लड़कियों के साथ क्याक्या हो रहा है पता है न आप को? फिर भी कैसे इन अनजान लड़कों के साथ उन की गाड़ी में बैठने को तैयार हो गईं आप? जरा भी दिमाग है कि नहीं आप में?” जब हर्ष ने त्रिशा की तरफ देख कर बोला, तो वह अकचका कर उसे देखने लगी.

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“वह तो मैं ज्यादा दूर नहीं गया था इसलिए आप के चीखने की आवाज सुनाई दे गई मुझे. वरना पता भी है, आज आप के साथ क्या हो गया होता?”

उस के आंखों से बहते आंसू देख हर्ष को लगा कि उस ने कुछ ज्यादा ही डांट दिया उसे, क्योंकि बेचारी पहले से ही डरी हुई है ऊपर से वह उसे और डांटे जा रहा है. इसलिए फिर कुछ न बोल कर वह गाड़ी देखने लगा कि उस में समस्या क्या हो गई. हर्ष थोड़ाबहुत गाड़ी ठीक करना जानता था.

“लीजिए आप की गाड़ी ठीक हो गई,” अपना हाथ झाड़ते हुए हर्ष बोला.

त्रिशा को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह से हर्ष का शुक्रिया अदा करे. ‘अगर आज वह नहीं होता तो जाने उस के साथ क्या हो गया होता,’ सोच कर अभी भी वह कांप रही थी.

“नहींनहीं शुक्रिया की कोई जरूरत नहीं, प्लीज,” जब हर्ष ने बोला तो त्रिशा हैरान रह गई गई कि उसे कैसे पता कि वह उस का शुक्रिया अदा करना चाहती है, “आप के चेहरे के भावों से,” बोल कर हर्ष हंसा तो त्रिशा को भी हंसी आ गई.

“खैर, गाड़ी के बहाने ही सही, पर अच्छा लगा आप से मिल कर,” त्रिशा को एक भरपूर नजरों से देखते हुए हर्ष बोला.

“मुझे भी अच्छा लगा तुम से मिल कर,” अपने लटों को कान के पीछे खोंसते हुए त्रिशा मुसकराई थी.

घर आ कर त्रिशा ने किसी को भी कुछ नहीं बताया, क्योंकि बेकार में सब परेशान हो जाते और गाड़ी चलाने पर पाबंदी लग जाती सो अलग. लेकिन अपनेआप से उस ने यह वादा किया कि अब वह संभल कर रहेगी. किसी पर भी तुरंत विश्वास नहीं कर लेगी. हम सब की ज़िंदगी में कोई न कोई एक ऐसा दिन जरूर आता है, जो हमारे लिए बहुत खास बन जाता है. त्रिशा के लिए भी वह दिन बहुत खास बन गया जब गाड़ी खराब होने की वजह से हर्ष से उस की मुलाकात हुई थी.

जब भी हर्ष का हंसतामुसकराता चेहरा उस के आंखों के सामने आता, वह उस से मिलने को बेचैन हो उठती थी. मगर कैसे मिलती? कोई पताठिकाना या फोन नंबर भी तो नहीं था उस के पास.

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उधर हर्ष भी जबतब त्रिशा के खयालों में खो जाता और फिर अपना सिर झटकते हुए मुसकरा कर खुद को ही कोसते हुए कहता, “पागल कहीं का, अरे, कम से कम एक फोन नंबर तो मांग लिया होता उस लड़की का.”

इसी तरह उन की मुलाक़ात को 2 महीने बीत गए, पर अब भी वे एकदूसरे को नहीं भूले थे. अकसर वे एकदूसरे के खयालों में खो जाते और सोचते कि काश, एक बार फिर मिल जाएं.

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