‘’कुणाल , बेटा अपनी पढाई पर ध्यान रखना.‘’

अम्मा सरला जी ने कुणाल के सिर पर आशीर्वाद देते हुये अपना हाथ फेरा था. मां पापा की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे , वह भी अपने आंसू नहीं रोक पाया था. उसने मुंह फेर कर अपनी बांहों से आंसू पोछ कर अपने को संभालने की कोशिश की थी. वह दोनों आंसू पोछते हुये ट्रेन में बैठ  गये थे.वह कालेज की भीड़ में अकेला रह गया था. महानगर की भीड़ देख वह घबराया हुआ था. क्योंकि वह पहली बार अपने छोटे से शहर से बाहर आया था.

कुणाल छोटे शहर के सामान्य परिवार का लाडला बेटा था. वह पढने में काफी तेज था, इसीलिये दिल्ली विश्वविद्यालय में उसका एडमिशन आसानी से हो गया था. वह पहली बार यहां की भीड़भाड़, और आधुनिकता के रंग में रंगी सुंदर लड़कियों को देख कर सहम उठा था. इस वजह से वह ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता , न ही किसी से दोस्ती करता. वह अपनी पढाई में जुटा रहता , आखिर मां पापा की उम्मीदें उसके ऊपर ही तो टिकी हुई हैं.

आज इंट्रोडक्शन मीट थी ,वह बहुत घबराया हुआ था.  इतने बड़े स्टेज पर जाकर अपने बारे में बताना ...

“ मैं कुणाल यू.पी. के फैजाबाद से...’’

उसकी कंपकंपाती  आवाज सुनकर हॉल में हल्की सी हंसी की आवाज गूंज उठी थी. वह आकर अपनी सीट पर बैठ गया था. सच तो यह था कि उस समय उसे अपने खास दोस्त मधुर की बहुत याद आ रही थी, जिसका एडमिशन दिल्ली में नहीं हो पाया था. वह सोच रहा था कि वह कहां फंस गया है काश  वह अपने पुराने दोस्तों के बीच लौट जाये ....वह सिकुड़ा सिमटा अपने में खोया हुआ बैठा था। तभी एक लड़की उसके पास आई, ’’माई सेल्फ निया , खालसा कॉलेज ‘’

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