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तभी एक लड़का मोटरसाइकिल को स्लो कर मेरे पास आ कर बोला, ‘‘उठा परदा, दिखा जलवा.’’

मैं ने जल्दी से साड़ी नीचे कर ली, पर मेरा पैर फिसल पड़ा और गिरने लगी. मगर इस के पहले कि मैं सड़क पर गिरती पीछे से किसी के हाथों ने मुझे संभाल लिया वरना मैं पूरी तरह कीचड़ से सन जाती. जब मैं पूरी तरह सहज हुई तो देखा वे हाथ प्रसून के थे.

इसी बीच मोटरसाइकिल वाले लड़के की बाइक कुछ दूर आगे जा कर स्लिप हुई और वह गिर पड़ा. उस के कपड़ों और चेहरे पर कीचड़ पुता था.

प्रसून ने जोर से कहा, ‘‘बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला.’’

वह लड़का उठा और गुस्से से हमें देखने लगा. प्रसून बोला, ‘‘ऐसे क्यों घूर रहा है. वह देख तेरे सामने जो ट्रक गया है उस के पीछे यही लिखा है.’’

इस बार मैं भी खुल कर हंस पड़ी थी. फिर पूछा, ‘‘आज आप पैदल चल रहे हैं? आप के दोस्त मधुर नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, आज वह मेरे साथ नहीं आया है.’’

मैं ने प्रसून को हिस्टरी पेपर में उस की मदद के लिए धन्यवाद दिया. वह मेरे साथसाथ चौराहे तक गया. वहां मुझे रिकशा मिल गया. प्रसून अपने घर की तरफ चल पड़ा. उस के घर का पता मुझे अभी तक मालूम नहीं था न ही मैं ने जानने की जरूरत समझी या कोशिश की.

कुछ दिनों बाद कालेज लाइब्रेरी में प्रसून मुझे मिला. मैं ने गुड मौर्निंग कह कर पूछा, ‘‘आप कैसे हैं?’’

‘‘बिलकुल ठीक नहीं हूं और तुम कैसी हो? ओह सौरी, मेरा मतलब आप कैसी हैं?’’

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