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राघव कमरे में दाखिल हुआ तो देखा मानसी अपने मायके से मिले तोहफों को अलमारी में संभाल कर रख रही थी. वह बिना कुछ कहे पलंग पर बैठ कर तिरछी नजरों से अपनी पत्नी की ओर देखने लगा. शायद मानसी का मूड अब भी खराब ही था. आज अपने भतीजे की बर्थडे पार्टी के दौरान भी उस का मूड उखड़ाउखड़ा ही था. चेहरे पर जबरदस्ती की मुसकराहट रख कर वह बाकी सब को तो मूर्ख बना सकती थी, लेकिन उसे नहीं. राघव ने इस वक्त यह सोच कर चुप रहना ठीक समझा कि शायद सुबह तक उस का मूड अपनेआप ठीक हो जाएगा. अत: चुपचाप लाइट बंद कर सोने की कोशिश करने लगा.

राघव के लाइट बंद कर सोते ही मानसी की आंखों से आंसू बह निकले. उसे महसूस हुआ जैसे राघव को उस के दुखी या नाराज होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है. वह अच्छी तरह से जानता है कि उस का मूड कितना खराब है. फिर भी उस से इतना नहीं हुआ कि एक बार मूड खराब होने की वजह पूछे. शायद अब वह पहले वाला राघव नहीं रहा, जिस के लिए मानसी ही उस की पहली प्राथमिकता हुआ करती थी. समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है. यही सोचतेसोचते मानसी भी नींद के आगोश में समा गई.

मानसी सुबह उठ कर चुपचाप घर के कामों में लग गई. राघव ने 1-2 बातें करने की कोशिश भी की, लेकिन उस ने हांहूं में उत्तर दे कर टाल दिया. फिर अपनी 4 वर्षीय बेटी मुसकान को तैयार कर के स्कूल छोड़ने के लिए चली गई. हार कर राघव भी चुपचाप औफिस चला गया. मुसकान को स्कूल छोड़ कर आने के बाद मानसी ने अपनी सब से प्रिय सहेली रुखसाना का नंबर डायल किया. कुछ ही देर बाद रुखसाना ने डोरबैल बजा दी.

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