अपुन का देश वाकई महान है. इतिहास गवाह है कि पुराने जमाने में विदेशियों के लिए यह सोने की चिडि़या और देशियों के लिए 33 करोड़ देवीदेवताओं का निवास स्थान था. समय बदला, बहुत कुछ बदला मगर अपुन के देश की महानता में कोई कमी नहीं आई. आज भी 33 करोड़ से ज्यादा देवीदेवता अपने कर्मों से इस पावन भूमि को पवित्र कर रहे हैं. जी नहीं, आप गलत समझे. मेरा उद्देश्य अंधविश्वास फैलाना कदापि नहीं है. मैं सच्चीमुच्ची के देवीदेवताओं की बात कर रहा हूं. क्या कहा? इस कलयुग में देवीदेवता कहां से आ गए? अरे भाई, मेरे हिसाब से देवीदेवता वे होते हैं जो जादू से या किसी और तरकीब से असंभव को संभव बना दें. किसी नई सृष्टि की रचना कर दें. छोटे को बड़ा और बड़े को छोटा कर दें. ऐसे महान पुरुषार्थी हमारे देश के कणकण में या कहें हर गलीकूचे में विद्यमान हैं. बस, जरूरत उन्हें पहचानने की है. मेरा उन से अकसर सामना होता रहता है. आप का भी होता होगा, लेकिन आप उन में छिपे देवत्व को पहचान नहीं पाए. अगर पहचान जाते तो मेरी तरह आप भी लेखक न बन जाते.

खैर...बहस से क्या फायदा. मैं न तो कृपण हूं और न ही स्वार्थी. इसलिए जिन देवताओं के मैं ने दर्शन किए हैं उन के निस्वार्थ भाव से आप को भी दर्शन करा रहा हूं. चाहें तो थोड़ी सी दुआ दे दीजिएगा या नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. मेरे हिसाब से देवता नंबर वन है मेरा दूध वाला, जिसे मैं ‘दूधिया देवता’ कहता हूं. किसी जमाने में अपुन के देश में दूधघी की नदियां बहती होंगी मगर हम जब से जानने वाले हुए, गरमियां आते ही दूध गायब हो जाता था. शहरों में खोए और छेने की मिठाइयां प्रतिबंधित हो जाती थीं. लौकी और नारियल की मिठाइयां खाखा कर हम जवान हुए.

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