लेखक- मनोज चुग

‘‘आइए स्वामीजी, इधर आसन ग्रहण कीजिए,’’ अशोक ने गेरुए वस्त्रधारी तांत्रिक अवधूतानंद का स्वागतसत्कार करते हुए अपने जीजा की ओर देखा और बोला, ‘‘भाई साहब, यह स्वामीजी हैं और इन को प्रणाम कर आशीर्वाद लीजिए. आप की सभी समस्याओं का समाधान इन की मुट्ठी में कैद है.’’

‘‘प्रणाम, महाराज. अशोक के मुख से आप के चमत्कारों की महिमा सुन कर ही मैं आश्वस्त हो गया था कि आप ही चुनाव रूपी भवसागर में हिचकोले खाती मेरी नैया को पार लगा सकते हैं. आप की जयजयकार हो...आप...’’

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ महाराज ने नशे में डूबी सुर्ख आंखों से नेताजी की ओर देखा और बोले, ‘‘बात आगे बढ़ाओ, हमारा समय बहुत कीमती है...’’

‘‘महाराज, कृपा कीजिए, किसी तरह चुनाव जीत जाऊं...मैं आप की झोली मोतियों से भर दूंगा.’’

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‘‘देखो, चुनाव के बाद की बात बाद में, पहले अनुष्ठान की बात करो. अशोक ने तुम्हारी जन्मकुंडली हमें दिखाई थी... फिलहाल तुम्हारे सितारे गर्दिश में हैं. संभावना 50 प्रतिशत तक की है, लेकिन अगर तुम 5 लाख खर्च करने को तैयार हो तो हमारी तंत्र विद्या से 50 का आंकड़ा 100 में तबदील हो जाएगा. सारी विरोधी शक्तियां निष्क्रिय एवं शिथिल होती चली जाएंगी और हमारा डंडा और तुम्हारा झंडा आसमान की बुलंदियों को छूता चला जाएगा.’’

‘‘महाराज, मैं धन्य हो गया, लेकिन चुनाव में पहले ही बहुत खर्चा हो रहा है... अभी अगर आप ढाई लाख में कृपा करें तो...’’

‘‘असंभव,’’ महाराज ने सुर्ख नेत्रों से अशोक को घूरा, ‘‘क्यों बच्चा, तुम तो कह रहे थे कि सारी बात तय हो चुकी है, फिर...’’

‘‘आप चिंता न करें महाराज, मेरे जीजाजी थोड़े कंजूस हैं. मुट्ठी खोलते हुए इन्हें घबराहट सी होने लगती है,’’ कहते हुए अशोक ने गुस्से से जीजा की ओर देखा, ‘‘यह तो महाराज की अपार कृपा है कि यहां तक आने को राजी हो गए, वरना कितने नेता, अभिनेता दिनरात इन के डेरे के इर्दगिर्द मंडराते रहते हैं. अब निकालिए 5 लाख की तुच्छ धनराशि...महाराज के चरणों में उसे अर्पित कर चैन की बांसुरी बजाइए...परसों समाधि से उठने के बाद महाराज ने कहा था कि आप सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतेंगे, अपितु मंत्रीपद को भी सुशोभित करेेंगे लेकिन उस के लिए अलग से 5 लाख खर्च करने होंगे.’’

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