बारिश का मौसम पूरे शबाब पर था. पार्थ और पूर्वा स्कूल के लिए निकलने वाले थे. मां ने चेतावनी दी, ‘‘बारिश का मौसम है, स्कूल संभल कर जाना. पूरी रात जम कर बारिश हुई है. अगर बारिश ज्यादा हुई तो स्कूल में ही रुक जाना. हमेशा की तरह अकेले मत आना. मैं तुम्हें लेने आऊंगी.’’

‘‘अच्छा, मां, हम सावधानी बरतेंगे,’’ पार्थ और पूर्वा बोले. दोनों ने मां को अलविदा कहा. वे स्कूल जाने लगे.

शाम के 6 बजने वाले थे. स्कूल की छुट्टी का समय हो चुका था. पार्थ और पूर्वा ग्राउंड फ्लोर पर मिले. तेज हवा चलने लगी. अचानक तूफान आया और तेज बारिश होने लगी.

पार्थ और पूर्वा ने अपनेअपने रेनकोट पहने और छतरियां खोलीं, जो हवा में कभी दाएं तो कभी बाएं करने लगीं.

पूर्वा दीदी, बहुत तेज बारिश हो रही है. तूफान भी बहुत तेजी से आया है. पेड़ हिल रहे हैं. स्कूल परिसर में पहले ही इतना पानी भर गया है. हम अब घर कैसे जाएंगे?’’ चिंतित पार्थ ने पूछा.

‘‘हमें मां ने कहा था कि बारिश आई तो वे हमें स्कूल लेने आएंगी, लेकिन यहां भी हम सुरक्षित नहीं हैं. यहां बहुत पानी जमा हो रहा है, हमारी क्लास जल्दी भर जाएगी. बिजली भी चमक रही है. मुझे इस से डर लगता है. पेड़ भी गिर सकते हैं,’’ पूर्वा रोने लगी.

अचानक पार्थ को याद आया, ‘‘मेरी कक्षा का आर्य स्कूल के सामने वाली बिल्डिंग में ही रहता है, लेकिन हम उस के घर में नहीं ठहर सकते?’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ पूर्वा ने पूछा.

‘‘पिछले महीने जब स्कूल ग्राउंड में हम फुटबौल मैच खेल रहे थे, तब उस ने मुझे मैच के दौरान धक्का दिया था, जब मैं गोल करने वाला था और चीटिंग कर के मैच जीता था. तब मैच के बाद हम बहुत झगड़े. अब हम एकदूसरे से बात नहीं करते हैं,’’ उस खराब समय को याद करते हुए पार्थ ने कहा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...