कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

लड़की मेरे सामने वाली विंडो सीट पर बैठी थी. जबकि लड़का खिड़की की रौड पकड़कर प्लेटफार्म पर खड़ा था. दोनों मूकदृष्टि से एकदूसरे को देख रहे थे. लड़की अपने दाहिने हाथ की सब से छोटी अंगुली से लड़के के हाथ को बारबार छू रही थी, मानों उसे महसूस करना चाहती हो. दोनों में कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था. बस, अपलक एकदूसरे को ताके जा रहे थे. ट्रेन का हार्न बजा. धक्के के साथ ट्रेन खिसकी तो दोनों एक साथ बोल पड़े, ‘‘बाय...’’ और इसी के साथ लड़की की आंखों में आंसू छलक आए.

  ‘‘टेक केयर. संभल कर जाना.’’ लड़के ने कहा.

लड़की ने सिर्फ हांमें सिर हिला दिया. आंखों से ओझल होने तक दोनों की नजरें एकदूसरे पर ही टिकी रहीं. जहां तक दिखाई देता रहा, दोनों एकदूसरे को देखते रहे. न चाहते हुए भी मैं उन दोनों के व्यक्तिगत पलों को अनचाहा साझेदार बन कर देखता रहा. लड़की अभी भी खिड़की से बाहर की ओर ही ताक रही थी. मैं अनुभव कर रहा था कि वह आंखों के कोनों में उतर आए आसुंओं को रोकने का निरर्थक प्रयास कर रही है.

मुझ से रहा नहीं गया, मैं ने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उस की ओर बढ़ाई. उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए धीरे से थैंक्सकहा. इस के बाद वक्त गुजारने के लिए मैं मोबाइल में मन लगाने की कोशिश करने लगा. पता नहीं क्यों, उस समय मोबाइल की अपेक्षा सामने बैठी लड़की ज्यादा आकर्षित कर रही थी.

मोबाइल मेरे हाथ में था, पर न तो फेसबुक खोलने का मन हो रहा था. न किसी दोस्त से चैट करने में मन लगा. मेरा पूरा ध्यान उस लड़की पर था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...