कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगर तुम्हें मेरा प्रस्ताव इतना ही बुरा लग रहा था तो कल ही साफ इनकार कर देती न. मैं ने तुम से जबरदस्ती तो नहीं की थी. कमल के मन की नाराजगी जबान से जाहिर होने लगी. अब कमल का मूड़ उखड़ने लगा था, ‘‘इस तरह से नौकरी से रिजाइन करने के बारे में तुम सोच भी कैसे सकती हो? अपने घर की आर्थिक स्थिति तुम अच्छी तरह से सम  झती हो.’’

‘‘हां. अब तक तो नहीं सम  झी थी. लेकिन अब बहुत अच्छी तरह से सम  झने लगी हूं और वैसे भी कमल जिस रास्ते मु  झे जाना ही नहीं, तो उस का पता पूछने से हासिल भी क्या होगा. अब यह पक्का तय है कि हम दोनों के रास्ते अलगअलग हैं. हम लोग अब आगे साथ काम नहीं कर सकते?’’

सलोनी का बदला रुख देख कर कमल पैंतरा बदलते हुए बोला, ‘‘यार, सलोनी तुम जानती हो न कि मैं तुम्हारी पदोन्नति कर के तुम्हें मैनेजिंग डाइरैक्टर की सीट पर बैठा सकता हूं.

सलोनी थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालो और सम  झो कि मैं तुम्हें साथ में क्या औफर कर रहा हूं. यार जिंदगी में इस तरह कोरी भावुकता से तरक्की नहीं मिला करती. यहां हम सभी को कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है. इसलिए मेरी जां सलोनी यदि सुखद भविष्य के लिए तरक्की करनी है, तो कुछ सम  झौते भी करने पड़ेंगे न.’’

‘‘कमल, आताजाता मौसम एक उचित तापमान तक सुहाना लगता है. अति हर चीज की बुरी होती है. जैसे मीठी चाशनी में डूबी जलेबी भी एक समय के बाद जबान का स्वाद खोने लगती है. इसलिए अपने वैवाहिक संबंधों की सीमा से बाहर निकल जाने वाली तरक्की मु  झे नहीं चाहिए जिस की आड़ में, मैं खुद की नजरों में गिर जाऊं. ऐसे लिजलिजे सम  झौते मु  झे कदापि स्वीकार नहीं होंगे,’’कहते हुए सलोनी दृढ़ निश्चय के साथ कमल के कैबिन से बाहर निकल आई और मेज से अपना बैग उठा कर सुरक्षित अपने सुखद नीड़ की ओर चल पड़ी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...