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अमित की इस बात से फिर से तृप्ति का दिल टूटा मगर उस ने खुद को संभाला और उस के बालों में हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘क्या बात है आजकल मेरी तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देते हो. हमारे बीच जो खूबसूरत सी नजदीकियां थीं क्या तुम्हें नहीं लगता कि वे लमहे भी कहीं खोते जा रहे हैं? लगता ही नहीं कि तुम मेरे पुराने अमित हो. आखिर ऐसा क्या हो गया अमित?’’

अमित तृप्ति को बांहों में लेता हुआ बोला, ‘‘कुछ नहीं यार होना क्या है. बस आजकल तुम भी बिजी रहती हो और मैं भी.’’

अमित की बात पर तृप्ति एतबार आने लगा था. आज महीनों बाद दोनों एकदूसरे की सांसों की गरमाहट महसूस कर रहे थे. आज उसे वही सुकून हासिल हो रहा था जो पहले हुआ करता था. तृप्ति ने मन ही मन तय किया कि वह सारे गिलेशिकवे भूल कर रिश्ते की एक नई शुरुआत करेगी.

यह सोचते हुए वह उस की बांहों में सिमट गई. अमित भी आज पूरे मूड में था. सुबह जब तृप्ति की नींद खुली तो देखा अमित तैयार हो रहा है.

‘‘क्या बात है, आज बहुत जल्दी जा रहे हो?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘हां, आज जरूरी मीटिंग है. अच्छा सुनो

मैं ने कल रात बताया था न कि आज तुम्हें एक डाइरैक्टर से मिलवाऊंगा. मैं ने घर में ही मीटिंग रखी है. एक छोटीमोटी पार्टी ही समझ लो. फ्रिज में केक रखा है लेकिन, तुम मत खाना,’’ कह कर अमित मुसकराया.

पिछले कुछ महीनों से तृप्ति जब भी मिठाई की तरफ देखती तो अमित आंखों के इशारे से मना कर देता. तृप्ति की इच्छा तो बहुत होती थी कुछ अच्छा खाने की लेकिन अमित की इच्छा का खयाल रखती थी. उस का सपना पूरा जो करना चाहती थी.

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