पर पता नहीं क्यों आज का माहौल कुछ बदलाबदला था. वह जवाब दे कर चुप हो जाती. लगता कहीं खो गई है. उसे देखने से ही पता चल रहा था कि हो न हो ऐसीवैसी जरूर कोई बात है, पर इस के दिल की बात जानूं कैसे, समझ में नहीं आ रहा था. तभी उस की रूमपार्टनर भारती आ गई.
‘‘मामीजी, इसे साथ ले जाइए. रात भर कमरे में टहलती रहती है. पूछने पर कहती है कि नींद नहीं आती. बेचैनी होती है. मैं ने ही इसे नींद की दवा खाने को कहा. ढंग से खाना नहीं खाती. पढ़नालिखना भी पूरी तरह से ठप कर बैठी है. लग रहा है इसे लवेरिया हो गया है,’’ कह भारती हंसी.
‘‘चुप भारती, जो मुंह में आ रहा है, बकती जा रही है,’’ माही का चेहरा तमतमा गया.
‘‘अरे, मुझ से नहीं कम से कम मामीजी से उस लवर का नाम बता दे ताकि इस लगन में ये तेरा बेड़ा पार करवा दें,’’ हंसते हुए भारती बैडमिंटन ले बाहर निकल गई. मैं मुसकरा पड़ी.
‘‘ईडियट कहीं की,’’ माही भुनभुनाई.
शायद यही बात हो. यह सोच कर मैं ने उस के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर पूछा, ‘‘कोई लड़का है तो बोलो. मैं दीदी से बात करूंगी.’’
‘‘कोई नहीं है,’’ उस ने हाथ खींच लिए.
मैं ने उस की ठुड्डी ऊपर उठाई, ‘‘सचसच बता आखिर बात क्या है? मैं तुम्हारी मामी हूं. कोई बात तेरे दिल में घर कर गई है, इसलिए तू नींद की गोलियां खाती है. बता क्या बात है? मुझ पर विश्वास कर मैं तेरी हर बात अपने दिल में दफन कर लूंगी. तू मुझे दोस्त मानती है न… बता मेरी बेटी, तू ने कोई गलती की है, जो आज तेरी यह हालत हो गई है? देख, कहने से दुख हलका होता है. शायद मैं तेरी कुछ मदद करूं. बता न प्यारव्यार का चक्कर है या कोई होस्टल की प्रौब्लम…’’ मैं 10-15 मिनट तक यही दोहराती रही ताकि वह अपने दिल की बात बता दे.
फिर भी माही कुछ नहीं बोली तो मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया, ‘‘जब तू मुझे कुछ बताएगी नहीं तो ठीक है मैं जा रही हूं. तुम्हें मुझ पर विश्वास ही नहीं, तो मैं चली,’’ कह कर मैं उठ गई.
‘‘मामी…’’ माही ने सिर उठा कर कहा. उस की आंखों में आंसू तैर रहे थे. आंसू देख मैं घबरा गई. मगर उस की जबान खुलवाने के लिए बोली, ‘‘मैं जा रही हूं…’’ कह फिर आगे बढ़ी.
वह उठ कर मुझ से लिपट गई और बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘‘मुझ से एक गलती हो गई है…’’
‘‘कैसी गलती?’’
‘‘एक आदमी से संबंध…’’
लगा कि मैं चक्कर खा कर गिर पड़ूंगी. मेरा दिमाग एक क्षण के लिए सन्न हो गया. हाथपांव कांपने लगे कि यह इस ने क्या कर दिया. मैं ने सोचा था किसी लड़के से प्यार होगा, पर यहां तो… मैं खुद अपनेआप को संभाल नहीं पा रही थी. मुझे माही पर हद से ज्यादा गुस्सा आ रहा था, पर उसे काबू में कर उस से सारी सचाई जानना मैं ने जरूरी समझा.
उसे पलंग पर बैठा मैं खुद भी बैठ गई. वह फूटफूट कर रो रही थी. मैं ने सोचा अगर मैं अभी इसे बुराभला कहूंगी तो हो सके मेरे जाने के बाद यह कहीं गले में फंदा डाल फांसी पर न लटक जाए या होस्टल की छत से ही कूछ जाए. अत: मैं ने उस से सारी बातें कोमलता से पूछीं.
माही ने बताया कि वह अकसर होस्टल की बगल में चंदन स्टेशनरी में फोटो कौपी कराने जाती थी. नोट्स या सर्टिफिकेट को हमेशा फोटोस्टेट कराने की जरूरत पड़ती ही रहती. होस्टल की सारी लड़कियां उसी दुकान पर जातीं. स्टेशनरी और फोटोस्टेट के साथसाथ मेल, कुरियर, बूथ और स्टूडियो को मिला कर 4-5 बिजनैस एक ही में थे.
मालिक चंदन के घर में ही दुकान थी. उस ने एक नौकर रखा था. चंदन की पत्नी रीता भी दुकान देखती.
रोज आतेजाते सभी लड़कियों के साथ माही की भी दोस्ती रीता और चंदन से हो गई थी. कभीकभी रीता उसे चायनाश्ता भी करा देती. उस के 4 और 6 साल के 2 बेटे थे. जिन्हें ट्यूशन पढ़ाने के लिए वह एक अच्छा टीचर ढूंढ़ रही थी.
रीता ने भारती से बात की. पढ़ाई से शाम को जो भी 1-2 घंटे फुरसत के मिलते थे उन्हें भारती बच्चों को पढ़ा कर अपनी उछलकूद बंद नहीं करना चाहती थी. अत: उस ने माही को राजी किया. उसे बच्चों को पढ़ाने का शौक था. वह पढ़ाने लगी. रीता और चंदन से हंसीमजाक होता. बच्चों को पढ़ाने के कारण उस में और इजाफा हुआ.
चंदन था तो 2 बच्चों का पिता, मगर वह बिलकुल नौजवान और हैंडसम लगता था. माही भी 20-21 साल की यौवन की दहलीज पर खड़ी छरहरे बदन की खूबसूरत लड़की थी. माही जब बच्चों को पढ़ाती या चंदन ग्राहकों के बीच रहता तो दोनों एकदूसरे को चोर निगाहों से देख लेते.
दोनों अपनी उम्र और स्थितियों से अवगत थे, मगर फिर भी विपरीत लिंगी आकर्षण की तरफ बढ़ चुके थे.
एक दिन अचानक रीता के पास फोन आया कि उस की मां की तबीयत बहुत खराब है. हौस्पिटल में ऐडमिट हैं. वह घबराई सी छोटे बेटे को ले कर अकेले ही मायके चली गई.
शहर के एक विधायक के बच्चे का किसी ने अपहरण कर लिया था. फिर क्या था? उस के चमचों ने शहर की सभी दुकानों को बंद करवा दिया और जलूस निकाल कर अपहरणकर्ताओं को पकड़ने के लिए पुलिस से उलझ पड़े.
चंदन अपनी दुकान बंद कर घर के कामों में जुट गया. रीता रसोई और कपड़ेलत्ते बिखेर गई थी. वह उन्हें समेटने लगा.
शाम को माही बच्चों को पढ़ाने आई. उस ने दुकान बंद होने का कारण पूछा. छोटे भाई के नानी गांव जाने पर बड़ा भाई पढ़ना नहीं चाहता था. माही किसी तरह उसे पढ़ा रही थी.
बनियान और लुंगी पहने चंदन चाय ले कर आया, ‘‘लो माही, चाय पीयो.’’
‘‘दीदी कब आएंगी?’’ कप लेते हुए माही की उंगलियां चंदन से छू गईं. दिल धड़क गया उस का.
‘‘कलपरसों तक आ जाएगी,’’ चंदन वहीं बैठ कर खुद भी चाय पीने लगा.
‘‘चाय बहुत अच्छी है,’’ माही मुसकराई.
‘‘शुक्र है आप जैसी मैडम को मेरी बनाई चाय अच्छी लगी, नहीं तो…’’ चंदन हंसा.