‘‘बिहार से हम मजदूरों को मुंबई तुम ले कर आए थे... अब हम अपनी समस्या तुम से न कहें तो भला किस से कहने जाएं?’’ छबीली ने कल्लू ठेकेदार से मदद मांगते हुए कहा.

कल्लू ठेकेदार ने बुरा सा मुंह बनाया और बोला, ‘‘माना कि मैं तुम सब को बिहार से यहां मजदूरी करने के लिए लाया था, पर अब अगर तुम्हारा पति मजदूरी करते समय अपना पैर तुड़ा बैठा तो इस में मेरा तो कोई कुसूर नहीं है.

‘‘हां... 2-4 सौ रुपए की जरूरत हो, तो मैं अभी दे देता हूं.’’

छबीली ने कल्लू के आगे हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘2-4 सौ से तो कुछ न होगा... बल्कि हमें तो अपनी जीविका चलाने और धंधा जमाने के लिए कम से कम 20 हजार रुपए की जरूरत होगी.’’

‘‘20 हजार... रुपए... मान ले कि मैं ने तुझे 20 हजार रुपए दे भी दिए, तो तू वापस कहां से करेगी... ऐसा क्या है तेरे पास?’’ कल्लू ने छबीली के सीने को घूरते हुए कहा, जिस पर छबीली ने उस की एकएक पाई धीरेधीरे लौटा देने का वादा किया, पर कल्लू की नजर तो छबीली की कसी हुई जवानी पर थी, इसलिए वह उसे परेशान कर रहा था.

‘‘इस दुनिया में, इस हाथ दे... उस हाथ ले का नियम चलता है छबीली,’’ कल्लू ने अपनी आंखों को सिकोड़ते  हुए कहा.

छबीली अब तक कल्लू की नीयत को अच्छी तरह भांपने लगी थी, फिर भी वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘देख छबीली, मैं तुझे 20 हजार रुपए दे तो दूंगा, पर उस के बदले तुझे अपनी जवानी को मेरे नाम करना होगा. जब तक तू पूरा पैसा मुझे लौटा नहीं देगी, तब तक तेरी हर रात पर मेरा हक होगा,’’ कल्लू ठेकेदार छबीली की हर रात का सौदा करना चाह रहा था.

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