नित्या ने घर के काम से फ्री हो कर फोन उठाया. फेसबुक खोलते ही उस का खून जल गया. जयस्वी ने एक प्रतिष्ठित पत्रिका में अपनी नई प्रकाशित कहानी की फोटो डाला था. नित्या उस की पोस्ट्स पर लाइक्स और कमैंट्स की बाढ़ देख कर मन ही मन उसे कोसने लगी कि इसे कोई काम नहीं है क्या? फिर एक कहानी लिख दी. वैसे तो कहती है कि बहुत व्यस्त रहती हूं. लिखने का समय कैसे मिल जाता है? झठी कहीं की. मैं इस से अच्छा ही लिखती हूं पर क्या करूं, टाइम ही नहीं मिलता.

नित्या मन ही मन फुंकी जा रही थी कि तभी उस के फोन पर जयस्वी का नंबर चमका. नित्या का मन हुआ कि जयस्वी से कभी बात न करे, उस का फोन ही न उठाए, पर बहुत बेमन से फोन उठा ‘हैलो’ कहा तो जयस्वी ने अपनी सदाबहार चहकती आवाज में कहा, ‘‘नित्या, यह तू साउंड इतना लो क्यों कर रही है? भैया को फिर से झगड़ा कर के औफिस भेजा है क्या?’’

नित्या ने फीकी सी नकली हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘नहीं, ठीक हूं. बस आज लेट उठी तो सब काम बहुत जल्दीजल्दी निबटाए इसलिए थक

गई हूं.’’

जयस्वी ने शरारत से कहा, ‘‘क्यों भई, लेट क्यों उठी? तुम्हारे बच्चे होस्टल चले गए तो तुम्हारा सैकंड हनीमून शुरू हो गया क्या?’’

नित्या आज चिढ़ी बैठी थी, बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, देर रात तक फेसबुक पर ‘कश्मीर फाइल्स’ पर सब ज्ञानी लोगों की पोस्ट्स पढ़ती रही, ट्विटर पर भी नामी लोगों की बहस पढ़ती रही, कब 3 बज गए, पता ही नहीं चला. तू बढि़या है, इन सब बातों में अपना टाइम खराब नहीं करती,’’ फिर उस के मन की जलन बाहर आ ही गई, ‘‘जब मरजी लिखने बैठ जाती है, तेरी ऐश है भई.’’

‘‘अरे, इस में ऐश की क्या बात हो गई? मैं समझ नहीं?’’

‘‘भई, तुझे लिखने के लिए इतना समय मिल जाता है… यहां तो घर के काम में फंस कर सारा लेखन ठप्प पड़ा रहता है,’’ आज नित्या का मूड सचमुच बहुत खराब हो गया था, अंदर की जलन रोके नहीं रुक रही थी.

जयस्वी ने शांत स्वर में कहा, ‘‘नित्या, मुझे भी घर के काम हैं, दोनों बच्चे अभी पढ़ ही रहे हैं और तू तो मुझ से भी अच्छा लिखती है. बस तू उन बातों में टाइम खराब कर देती है जिन में नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जरा बताना किस चीज में मैं अपना टाइम खराब करती हूं?’’

‘‘सोशल मीडिया पर.’’

‘‘तो क्या करंट इशूज पर नजर न रखें?’’

‘‘बिलकुल रखें, पर तुम तो लोगों की बहस पढ़ कर अपना टाइम खराब कर देती हो. उतने टाइम में तो तुम आराम से अपना शौक पूरा कर सकती हो. सोशल मीडिया पर जाओ पर कुछ टाइम मैनेजमैंट के साथ.’’

‘‘चल अच्छा, बाद में बात करते हैं,’’ आज नित्या को जयस्वी की कोई बात अच्छी नहीं लग रही थी. वह माथे पर हाथ रख कर आंखें बंद कर मन ही मन जलतीकुढ़ती रही और बीते 5 साल उस की आंखों के आगे न चाहते हुए भी तैरने लगे…

सोशल मीडिया पर ही नित्या और जयस्वी की दोस्ती हुई थी, दोनों को लेखन का शौक था और दोनों ही एकदूसरे की लिखी कहानियां पसंद करती थीं. नित्या अलवर में और जयस्वी चंडीगढ़ में रहती थी. दोनों ही फेसबुक फ्रैंड्स बनीं, फिर फोन नंबर लिएदिए गए, अब दोनों बैस्ट टाइप फ्रैंड्स थीं. दोनों को शुरू में लगा कि चलो, अपने जैसे शौकों वाले इंसान के साथ बातें करने के लिए कितना कुछ होता है, किताबों की बातें, पत्रिकाओं की बातें, लेखकों की बातें, दोनों अकसर अपनेअपने पति के औफिस जाने के बाद थोड़ी देर जरूर बातें करतीं.

पर जैसेकि समय के साथसाथ बहुत कुछ बदल जाता है, इंसान को पता ही नहीं चलता कि कब दिलों का प्यार ईर्ष्या नाम की दीमक चाटने लगती है, कब दोस्ती जैसे खूबसूरत रिश्ते में जलन, बराबरी अपनी पैठ बना जाती है, फिर जब 2 में से किसी एक के भी दिल में ये भाव आ जाएं तो उस रिश्ते को खतम होते देर नहीं लगती.

पता नहीं इन भावों को एक बार नित्या ने अपने दिल में जगह दी तो दिनबदिन उस का मन कुंठित होता गया. अब धीरेधीरे 5 सालों में नित्या जयस्वी को अपनी दोस्त नहीं, एक कंपीटिटर समझने लगी थी. उस के मन की जिस दराज में जयस्वी की निश्छल दोस्ती, स्नेह और अपनापन था, उस जगह अब सिर्फ गुस्सा, जलन और बुराई जम गई थी. कोमल भाव इस दराज से जैसे नित्या ने बाहर निकाल कर फेंक दिए थे.

जयस्वी अपने काम से काम रखने वाली इंसान थी, उसे सपने में भी

अंदाजा नहीं हुआ कि जब वह खुशीखुशी नित्या को बताती है कि कैसे उस ने अपने व्यस्त समय से कुछ पल निकाल कर एक कहानी लिखने की कोशिश की है, अब पहले की तरह नित्या उस की लगन को नहीं सराहती. अब जब नित्या कहती है कि तुम्हें तो पता नहीं कैसे इतने आइडियाज आते हैं, तुम्हें तो लिखने के अलावा कोई काम ही नहीं, तो नित्या की आवाज में आई चिढ़ पर उस का ध्यान ही नहीं जाता. वह तो पहले की तरह अपनी हर रचना को लिखने भेजने की प्रक्रिया नित्या से शेयर करती रही पर जब नित्या ने उस से पढ़नेलिखने की बातों की जगह मौसम, राजनीति की बातें बस फोन पर एक औपचारिकता निभाने के लिए शुरू कर दीं तो जयस्वी चौंकी. उस ने नित्या से प्यार से पूछा, ‘‘क्या हुआ, नित्या? आजकल तुम कुछ लिख नहीं रही?’’

‘‘बस, तुम लिख रही हो न, काफी है. तुम खुश रहो.’’

‘‘अरे, यह क्या बात हुई? हम दोनों ही लिखते आए हैं न. दोनों ही लिखेंगे, दोस्त.’’

नित्या अब पहले की तरह न लिखने के लिए समय निकाल रही थी, न कुछ सोचतीविचारती थी. आजकल उस का सारा खाली समय सोशल मीडिया पर बीत रहा था. क्रिएटिविटी कम होती जा रही थी और जयस्वी की लगन और मेहनत देख कर खुद सुधरने के बजाय बस ईर्ष्या में डूबी रहती. जयस्वी के साथ मिल कर उस ने 1 उपन्यास लिखने का विचार बनाया था, अब कहां जयस्वी के 3 उपन्यासों ने धूम मचा दी थी, वहीं नित्या ने अपने उपन्यास को हाथ भी न लगाया था. जयस्वी के एक उपन्यास ने एक बड़ा पुरस्कार क्या जीता, नित्या ने उस से कन्नी काटनी शुरू कर दी. पहले रोज होने वाली बातें 2 दिन के अंतराल पर होने लगीं, फिर 1 हफ्ते के अंतराल पर और फिर कभीकभार रस्मअदायगी.

जयस्वी और नित्या को अब एकदूसरे के बारे में फेसबुक से ही पता चलता. जहां इतने गैर आजकल सोशल मीडिया से जुड़ कर अच्छे दोस्त बन जाते हैं, वहीं सोशल मीडिया से ही दोस्त बनीं ये दोनों अब एकदूसरे से अजनबियों की तरह व्यवहार करने लगी थी. नित्या को उस की जलन उसे बहुत पीछे लिए जा रही थी.

जयस्वी की आदत थी कि उस की कोई भी रचना कहीं छपती, वह सोशल मीडिया पर जरूर डालती जिसे देख कर नित्या उसे मन ही मन कोसती. वह अब बस यही देखती कि किस ने क्या पोस्ट किया, क्या ट्वीट किया फिर किसे ट्रोल किया गया, फिर क्या बहस हुई, किस पौलिटिकल पार्टी को सपोर्ट करने वाले लेखक क्या लिख रहे हैं, किसे बुरा कह रहे हैं, अपनी फोटोज डालती, उन के लाइक्स और कमैंट्स गिनती, कभी खुश होती, कभी मायूस होती. धीरेधीरे दोनों सहेलियां एकदूसरे से दूर होती गईं.

सोशल मीडिया पर अपना ज्यादा समय बिताने की गलती नित्या समझने को तैयार नहीं थी. उस के पति भी उसे कई बार टोक चुके थे कि वह बस फोन ले कर बैठी रहती है, लिखतीपढ़ती नहीं है, पर उस के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही थी, उलटा साथी लेखिकाओं की उपलब्धियां देखदेख कर चिढ़ती रहती. खासतौर पर जयस्वी से तो उस की ईर्ष्या इतनी बढ़ चुकी थी कि वह कई बार सोचती, उसे ब्लौक ही कर दे. न उस की छपी कहानियों की उसे कोई तसवीर दिखेगी, न उस का खून जलेगा.

नित्या सचमुच बहुत अच्छा लिखती थी पर अब सोशल मीडिया का चसका उसे ले डूबा था और रहीसही कमी ईर्ष्या के भाव ने पूरी कर दी थी. अब उस के मन में लेखन के लिए नएनए विचार न उठते, पहले की तरह अब बातबात में उसे विषय न सूझते.

फिर एक दिन नित्या के जीवन में आई, सुरभि. उस के पड़ोस में आया यह नया परिवार उसे पहली नजर में खूब भाया. सुरभि का एक ही बेटा था. उस के पति नवीन अकसर टूर पर रहते. नित्या की उस से दोस्ती दिनबदिन खूब बढ़ती गई. वह अब लगभग रोज शाम को सुरभि के घर चली जाती, तो कभी उसे बुला लेती.

सुरभि की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी जितनी नित्या की थी. पर नित्या उसे सचमुच बहुत स्नेह देती, उस के हर काम आने के लिए तैयार रहती. जब सुरभि को पता चला कि नित्या एक अच्छी लेखिका भी है तो उस के लिए उस के दिल में सम्मान और बढ़ गया. सुरभि का साथ नित्या को अच्छा लगता. वह शाम होते ही सजतीसंवरती और फिर सुरभि के साथ शाम की सैर पर जाती. अब कभीकभी नित्या कुछ लिख भी लेती.

अचानक सुरभि ने नित्या से दूरी बनानी शुरू कर दी तो नित्या को जैसे एक झटका लगा. वह हैरान थी कि वह तो इतना प्यार करती है, फिर सुरभि अब उस से न मिलने के बहाने क्यों बनाने लगी है. कभी ताला लगा कर उस के आने से पहले ही सैर पर चली जाती, कभी उस का फोन भी न उठाती. नित्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का मन हुआ कि वह उस से साफसाफ पूछेगी कि क्या उस की कोई बात उसे बुरी लगी है.

नित्या ने कोई कहानी लिखी थी, वह छपी तो पत्रिका ले कर नित्या खुशीखुशी सुरभि को दिखाने गई. सुरभि ने बेमन से उसे आ कर बैठने के लिए कहा. नित्या को बुरा लगा पर वह आज सुरभि से पूछने आई थी कि उसे उस की कौन सी बात बुरी लग गई है. सुरभि ने कहानी की तसवीर देख कर कहा, ‘‘बड़ी ऐश है आप की.’’

‘‘अरे, कैसी ऐश?’’

‘‘यही कि सजधज कर घूमते रहो, मूड हुआ तो लिख लो, सारे शौक पूरे कर लेती हैं आप तो. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम सब जगह अपना टाइम पास भी कर लेती हैं, एक हम हैं कि घर के कामों से ही फुरसत नहीं.’’

नित्या के सामने जैसे किसी ने आईना रख दिया हो. उसे लगा उस के सामने सुरभि नहीं, एक नित्या बैठी है और उस की खुद की जगह जयस्वी बैठी है. उसे जयस्वी को कही अपने बातें याद आईं.

नित्या ने कहा, ‘‘कैसी बातें कर रही हो? सुरभि, मैं तो खुशीखुशी तुम्हारे साथ टाइम बिताने आती हूं. मुझे अच्छा लगता है तुम्हारा साथ.’’

‘‘हां, जानती हूं, अच्छा ही लगता होगा यह दिखाना कि देखो, मेरे पास कितने सुंदरसुंदर कपडे़ हैं, देखो मैं कहानियां भी लिख सकती हूं, आप बस मेरे सामने शोऔफ करने आती हैं. मैं आप का स्वभाव जान चुकी हूं.’’

नित्या की आंखों में इस अजीब से अपमान के कारण आंसू आ गए, वह वापस

जाने के लिए उठ गई, सुरभि ने रोका भी नहीं. घर आ कर वह अपमानित सी बैड पर लेट गई. सोचने लगी कि सुरभि ने जो भी कहा, ईर्ष्यावश कहा. सुरभि की बातों में सिर्फ ईर्ष्या थी. उस ने तो कभी उस के सामने कोई भी शोऔफ नहीं किया. अचानक उसे अपने ही दिमाग में चल रहा ईर्ष्या शब्द जैसे झकझर गया. जो ईर्ष्यावश सुरभि ने उस के साथ किया, वह भी तो वैसा ही जयस्वी के साथ कर चुकी है. जयस्वी तो उसे हर जगह अपने साथ ले कर चलना चाहती थी.

वह उस के साथ उतनी मेहनत नहीं कर पा रही थी तो जयस्वी के प्रति अपने मन में ईर्ष्या को जगह दे कर इतनी निश्छल दोस्त को अपने से दूर कर बैठी है. उसे अपने प्रिय व्यंग्यकार हरिशंकर परसाईजी की लिखी बात याद आ गई कि सच्चा मित्र वही है जो अपने दोस्त की सफलता को पचा सके. उफ, कितना सच है यह. वह अपनी इतनी अच्छी दोस्त को यों ही खो बैठी थी. उस ने जयस्वी के प्रति अपने मन की दराज में रखे जलन, गुस्से और चिढ़ के भाव अचानक बाहर निकाल कर फेंक दिए.

ऐसा करते ही जैसे उस का मन का कोनाकोना कोमल भाव से चहक उठा. अचानक उठी, अपना फोन उठाया और जयस्वी का फोन नंबर मिला दिया. दोनों सहेलियां बहुत दिनों बाद फिर किताबों, कहानियों की बातें कर रही थीं.

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