राम सिंह ने कुछ दिनों से बीमार चल रहे बाघ को उस दिन मांस खाते देखा, तो राहत की सांस ली. यह अच्छी खबर नीरज साहब को बताने के लिए वह चिडि़याघर के औफिस की तरफ चल पड़ा.
तभी उस की बगल से एक युवक तेज चाल से चलता हुआ गुजरा. उस युवक के गुस्से से लाल हो रहे चेहरे को देख रामसिंह चौंक पड़ा.
वह युवक एक लड़की और लड़के की तरफ बढ़ रहा था. रामसिंह ने इन तीनों को साथसाथ पहले कई बार चिडि़याघर में देखा था. तीनों उसे कालेज के विद्यार्थी लगते थे.
गुस्से से भरे युवक ने अपने साथी युवक को पीछे से उस के कौलर से पकड़ा और रामसिंह के देखते ही देखते उन दोनों के बीच मारपीट शुरू
हो गई.
‘‘अरे, लड़ो मत,’’ रामसिंह जोर से चिल्लाया और फिर उन की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया.
फिर उस ने उन युवकों को एकदूसरे से अलग किया. काफी चोट खा चुके थे. उन के साथ आई लड़की भय से कांप रही थी.
उन दोनों युवकों को फिर से लड़ने के लिए तैयार देख रामसिंह ने उन्हें सख्त लहजे में चेतावनी दी, ‘‘अगर तुम दोनों ने फिर से मारपीट शुरू की, तो पुलिस के हवाले कर देंगे. शांति से बताओ कि किस बात पर लड़ रहे थे?’’
उन दोनों ने एकदूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. रामसिंह की समझ में बस उतना ही आया कि लड़ाई लड़की को ले कर हुई थी.
जिस युवक ने लड़ाई शुरू की थी उस का नाम विवेक था. दूसरा युवक संजय था और लड़की का नाम कविता था.
दरअसल, संजय करीब आधा घंटा पहले कविता को साथ ले कर कहीं गायब हो गया था. इस बात को ले कर विवेक बहुत खफा था.
रामसिंह को थरथर कांप रही कविता पर दया आई. उस ने उन दोनों को डपट कर पहले चुप कराया और फिर कहा, ‘‘तुम दोनों मेरे साथ औफिस तक चलो. सारी बातें वहीं होंगी और अगर रास्ते में झगड़े, तो खैर नहीं तुम दोनों की. तब पुलिस वालों के डंडे ही तुम्हें सीधा करेंगे.’’
रामसिंह की इस धमकी ने असर दिखाया और औफिस की इमारत तक पहुंचने के दौरान वे दोनों एक शब्द भी नहीं बोले.
नीरज चिडि़याघर में रिसर्च असिस्टैंट था. उस ने उन चारों को इमारत की तरफ आते खिड़की में से देखा तो उत्सुकतावश कमरे से बाहर आ कर बरामदे में खड़ा हो गया.
रामसिंह ने पास आ कर उसे रिपोर्ट दी, ‘‘साहब, ये दोनों लड़के बाघ के बाड़े के पास जानवरों की तरह लड़ रहे थे. लड़की साथ में है, इस बात का भी कोई शर्मलिहाज इन दोनों ने नहीं किया. ये तीनों यहां अकसर आते रहते हैं. अगर आप के समझने से न समझें, तो दोनों को पुलिस के हवाले कर देना सही होगा.’’
‘‘नहीं, पुलिस को मत बुलाना प्लीज,’’ कहते हुए कविता की आंखों में आंसू आ गए.
‘‘पहले इन दोनों का हुलिया ठीक कराओ, रामसिंह. फिर इन्हें औफिस में ले कर आना,’’ नीरज ने रामसिंह से कहा. फिर कविता से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ आओ,’’ और अंदर औफिस में चला गया.
उस के व्यक्तित्व ने संजय और विवेक को ऐसा प्रभावित किया कि वे दोनों बिना कुछ बोले रामसिंह के साथ चले गए. कविता पल भर को ?िझकी फिर हिम्मत कर के नीरज के पीछे औफिस में चली गई.
नीरज ने उसे पहले पानी पिलाया. फिर उस के कालेज व घर वालों के बारे में
हलकीफुलकी बातचीत कर उसे सहज बनाने की कोशिश की. फिर, ‘‘अब बताओ कि क्या मामला है? क्यों लड़े तुम्हारे ये सहपाठी आपस में?’’ कह कर नीरज ने हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए कविता से जानकारी मांगी.
‘‘सर, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है,’’ कविता ने धीमी आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘हम तीनों अच्छे दोस्त हैं, पर आज विवेक ने झगड़ा शुरू कर के मेरे दिल को चोट पहुंचाई है. वे दोनों ही आज अजीब सी बातें कर रहे थे.’’
‘‘कैसी अजीब सी बातें?’’
‘‘मैं कैसे बताऊं, सर… हमारे बीच हमेशा ही हंसीमजाक चलता रहता था. हलकेफुलके अंदाज में. दोनों फ्लर्ट भी कर लेते थे मेरे साथ… मुझ से प्रेम करने का दावा भी दोनों करते रहे हैं, पर मजाकमजाक में… लेकिन आज…आज…’’
‘‘आज क्या नया हुआ है?’’
‘‘सर, आज मुझे एहसास हुआ कि वे मजाक नहीं करते थे. दोनों मुझे अपनी प्रेमिका समझ रहे थे, जबकि मेरे दिल में किसी के भी लिए वैसी भावनाएं नहीं हैं. मैं तो उन्हें बस अच्छा दोस्त समझती रही हूं.’’
‘‘तुम्हें उन दोनों में कौन ज्यादा पसंद है?’’
‘‘ज्यादाकम पसंद वाली बात नहीं है. मेरे मन में, सर. वे दोनों ही मेरी नजरों में बराबर हैं.’’
‘‘अच्छा, यह बताओ कि किस का व्यक्तित्व बेहतर है? क्या कमियां या अच्छाइयां हैं दोनों की?’’
कुछ पल खामोश रहने के बाद कविता ने कहा, ‘‘सर, विवेक अमीर घर का बेटा है. वह पढ़ने में तेज है और तहजीब से व्यवहार करता है.
‘‘संजय उस के जितना स्मार्ट तो नहीं है,
पर दिल का ज्यादा अच्छा है. क्रिकेट और फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी है. उसे गुस्सा कम आता है, लेकिन आज उसे गुस्से में देख कर मैं डर गई थी.’’
‘‘झगड़ा तुम्हारे कारण हुआ है, यह तो तुम समझ रही हो न?’’
‘‘जी, लेकिन मैं ने उन दोनों को कभी गलत ढंग से बढ़ावा नहीं दिया है, सर. मैं करैक्टरलैस लड़की नहीं हूं.’’
‘‘अब क्या करोगी? मेरी समझ से कि ये दोनों आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे. तुम दोनों में से किसी से भी प्रेम नहीं करती हो, तुम्हारा ऐसा कहना इन दोनों को तुम से दूर नहीं कर पाएगा.’’
‘‘अगर ये नहीं समझेंगे, तो मैं इन से
दोस्ती खत्म कर लूंगी,’’ कविता ने गुस्से से
जवाब दिया.
‘‘मेरी बातों का बुरा मत मानना, कविता. मैं जो कुछ तुम्हें समझ रहा हूं, वह तुम्हारे भले के लिए ही है. देखो, कोई लड़का प्रेम को ले कर गलतफहमी का शिकार न बने, इस की जिम्मेदारी लड़की को अपनी ही माननी चाहिए. आज के समय में हर इंसान तनाव से भरा जीवन जी रहा है. ऊपर से उस के मन में पुलिस, कानून आदि का खास भय भी नहीं है.
‘‘किसी गुमराह प्रेमी ने लड़की के मुंह पर तेजाब फेंका या उसे जान से मार डाला जैसी खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि तुम भविष्य में ज्यादा समझदारी दिखाओगी. लेकिन अभी तुम चुप रहना, मैं तुम्हारे दोस्तों को प्यार से समझने की और कुछ डर दिखा कर सही व्यवहार करने की समझ देने की कोशिश करता हूं.’’
नीरज की इन बातों को सुन कर कुछ शर्मिंदा सी नजर आ रही कविता ने अपनी नजरें फर्श की तरफ झका लीं.
रामसिंह के साथ जब विवेक और संजय ने औफिस में कदम रखा, तो दोनों ही कुछ तनावग्रस्त और सहमे से नजर आ रहे थे. उन के कुरसी पर बैठ जाने के बाद नीरज ने उन के साथ बात शुरू की.
‘‘क्या तुम दोनों अपनेअपने घटिया व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो?’’ नीरज ने दोनों को घूरते हुए सख्त स्वर में सवाल पूछा.
‘‘जी हां, हमें लड़ना नहीं चाहिए था,’’ विवेक ने धीमे, दबे स्वर में जवाब दिया.
‘‘और तुम्हारा क्या जवाब है?’’ उस ने संजय से पूछा.
‘‘यह मुझ पर हाथ न छोड़ता, तो लड़ाई क्यों होती?’’ संजय की आंखों में गुस्सा भड़क उठा.
‘‘क्यों छोड़ा इस ने तुम पर हाथ?’’
‘‘यह गलतफहमी का शिकार था, सर. कविता और मैं जानबूझ कर इस से अलग नहीं हुए थे.’’
‘‘मुझे लगता है कि तुम दोनों ही कविता को ले कर जबरदस्त गलतफहमी के शिकार बने हुए हो. क्या इस ने तुम में से किसी को कभी अपना प्रेमी माना है?’’
वे दोनों जवाब में खामोश रहे तो नीरज ने कुछ शांत लहजे में उन्हें समझना शुरू किया,
‘‘हम इंसानों को प्यारमुहब्बत के मामले में जानवरों से ज्यादा समझदारी दिखानी चाहिए. पर तुम दोनों ने बड़ा घटिया व्यवहार दिखाया है. दोस्तों के बीच जो आपसी भरोसा होता है, उसे तोड़ा है तुम दोनों ने.
‘‘मैं यहां जानवरों के व्यवहार और आदतों पर रिसर्च कर रहा हूं. ये जानवर प्रेम में जोरजबरदस्ती नहीं करते. बहुत कुछ सीख
सकता है आज का मनुष्य इन जानवरों से.
‘‘भारीभरकम गैंडा बहुत सहनशक्ति
दिखाता है मादा का दिल जीतने के लिए.
15-20 दिनों तक इंतजार करता है मादा की रजामंदी का. मादा नर को खदेड़ती रहती है.
पर वह गुस्सा नहीं होता… हिंसा का रास्ता
नहीं अपनाता.
‘‘बाघों में मादा की रुचि सर्वोपरि होती है. वही पहल कर अपनी दिलचस्पी नर में दर्शाती है. हम इंसानों को भी लड़की की इच्छा व पसंद को महत्त्व देना चाहिए या नहीं?
‘‘भेडि़यों के बारे में जानना चाहोगे? सरदार भेडि़या आजीवन 1 मादा के साथ जुड़ा रहता है. वफादारी सीख सकते हैं हम इन भेडि़यों से. हंसीमजाक में फ्लर्ट करना प्रेम नहीं है, मित्रो. यों एकदूसरे को लहूलुहान कर प्रेम का प्रदर्शन न करो. ऐसा करना तो उस पवित्र भावना का मजाक उड़ाना होगा.
‘‘कविता तुम्हारे साथ पढ़ती है… तुम दोनों की दोस्त है. उसे अपने गलत व्यवहार से मानसिक कष्ट पहुंचा कर उस का दिल तो तुम दोनों क्या जीतोगे, उलटे उस की दोस्ती से भी हाथ धो बैठोगे. मेरी बात समझ रहे हो न तुम दोनों?’’
‘‘जी,’’ विवेक और संजय दोनों के मुंह से एकसाथ यह शब्द निकला.
‘‘गुड. चलो अब तुम दोनों हाथ मिलाओ.’’
संजय और विवेक ने उठ कर हाथ मिलाया और फिर गले भी लग गए. कविता ने मुसकरा कर
नीरज को आंखों से धन्यवाद दिया और फिर जाने को उठ खड़ी हुई.
नीरज के आदेश पर रामसिंह उन तीनों को छोड़ने के लिए बाहर तक गया. कुछ दूर जा कर उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि उस के साहब बरामदे में खड़े उन की तरफ ही देख रहे थे.
तभी कविता ने भी पीछे मुड़ कर देखा और नीरज को अपनी तरफ देखता पा कर उस ने हाथ हवा में उठा कर हिलाया. नीरज ने उस के अभिवादन में दूर से अपना हाथ बड़े जोशीले अंदाज में हिलाया.
इस घटना के लगभग 3 महीने बाद विवेक और संजय की चिडि़याघर में औफिस के
सामने रामसिंह से अगली मुलाकात हुई.
उन दोनों ने रामसिंह को अभिवादन कर हाथ मिलाए. फिर संजय बोला, ‘‘रामसिंह, कविता ने हम से 12 बजे यहां मिलने का प्रोग्राम फोन पर तय किया था. वह आई नहीं है क्या अभी तक?’’
‘‘वह आई तो थी लेकिन अब यहां नहीं है. पर मिठाई का डब्बा तो है. मैं अभी मुंह मीठा कराता हूं तुम दोनों का,’’ रामसिंह बहुत खुश नजर आ रहा था.
‘‘किस बात के लिए मुंह मीठा कराओगे, रामसिंह?’’ संजय उलझन का शिकार बन गया.
‘‘कविता कहां चली गई है?’’ विवेक ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.
‘‘अरे, तुम दोनों को खबर नहीं है क्या?’’ रामसिंह चौंक पड़ा.
‘‘कैसी खबर?’’ विवेक और ज्यादा परेशान हो उठा.
‘‘भाई तुम लोग कब से कविता मैडम से नहीं मिले हो?’’
‘‘पिछले दिनों परीक्षाएं चल रही थीं, इसलिए परीक्षा के दिन ही मिल पाते थे. जो खबर है, उसे तो बताओ.’’
‘‘तुम दोनों को सचमुच कोई अंदाजा नहीं है कि मैं क्या खबर सुनाऊंगा… क्यों मुंह मीठा कराने की बात कर रहा हूं?’’
‘‘रामसिंह, अगर आप पहेलियां नहीं बुझओगे, तो मेहरबानी होगी,’’ विवेक
अचानक चिढ़ गया और उस की आवाज तीखी हो गई.
रामसिंह रहस्यमय अंदाज में कुछ देर
तक मुसकराने के बाद उन से बोला, ‘‘लगता
है कि मुझे सारी बातें शुरू से ही तुम्हें बतानी पड़ेंगी, नहीं तो तुम दोनों की समझ में कुछ
नहीं आएगा.’’
‘‘अब बताना शुरू भी कीजिए प्लीज.’’
‘‘तो सुनो. जब तुम दोनों यहां आपस में झगड़े थे, तो उस दिन मैं तुम सब को बाहर तक छोड़ने गया था. तुम दोनों बस से गए थे जबकि कविता मैडम को मैं ने औटो से भेजा था. उन के पास पैसे नहीं थे इसलिए मैं ने उन्हें क्व100 का नोट किराए के लिए दिया था. ये सब याद है न तुम दोनों को?’’
वे दोनों खामोश रहे, तो रामसिंह ने
आगे बोलना शुरू किया, ‘‘वही 100 रुपए
लौटाने के लिए कविता मैडम 3 दिन बाद
अकेली यहां आई थीं. तुम दोनों की आंखों में हैरानी के भाव देख कर मैं इस वक्त यह अंदाजा लगा रहा हूं कि उन्होंने यहां आने की बात तुम दोनों को कभी नहीं बताई. क्या मैं गलत कह
रहा हूं?’’
‘‘नहीं, पर उसे… खैर, आगे बोलो, रामसिंह,’’ विवेक अपने दोस्त संजय की तरह ही तनाव का शिकार बना हुआ था.
‘‘मेरी बातें सुन कर अपना दिल न
दुखाना तुम दोनों. देखो, जो भी होना होता है,
वह होता है. उस दिन कविता मैडम ने लंच
यहीं हमारे नीरज साहब के साथ किया था.
वह 4-5 दिन बाद फिर आई तो हमारे साहब
के लिए गोभी के परांठे अपने घर से बना कर लाई थी.
‘‘साहब ने जीवविज्ञान में पीएच.डी. कर रखी है और तुम सब इसी विषय में बी.एससी. कर रहे हो. आगे यह हुआ कि कविता मैडम सप्ताह में 2 बार साहब से पढ़ने के लिए आने लगीं.
‘‘उन दोनों के बीच इन बढ़ती मुलाकातों का नतीजा क्या निकला, वह बात वैसे तो खुशी की है, पर मुझे लग रहा है कि तुम दोनों का उसे सुन कर दिल बैठ जाएगा.
‘‘लेकिन सच तो मालूम पड़ना ही चाहिए. कल हमारे साहब और कविता मैडम की सगाई हो गई है. उसी खुशी में यहां सब मिठाई खा रहे हैं. कविता मैडम कुछ देर पहले साहब के साथ घूमने निकल गई है. शायद दिमाग से उतर गया होगा कि तुम दोनों पुराने दोस्तों को मिलने के लिए उन्होंने यहां बुलाया हुआ है. खैर मुंह मीठा कराने को मैं मिठाई…’’
‘‘वह लड़की तो…,’’ विवेक ने अचानक कविता को कुछ कहना चाहा तो रामसिंह को भी गुस्सा आ गया.
‘‘अब आगे जबान संभाल कर बोलना. कविता मैडम के लिए कोई गलत बात मैं नहीं सुनूंगा,’’ रामसिंह ने कठोर लहजे में विवेक को चेतावनी दी.
‘‘कविता ने हम दोनों को अंधकार में रख कर अच्छा नहीं किया है, रामसिंह. वह प्यार का अभिनय हमारे साथ भी करती थी. उस दिन हम आपस में यों ही नहीं लड़े थे. वह उतनी सीधी है नहीं जितनी दिखती है,’’ संजय ने मायूस से लहजे में पहले अपने दिल की पीड़ा जाहिर की और फिर विवेक के कंधे दबा कर उसे शांत रहने को समझने लगा.
‘‘मुझे तुम दोनों से गहरी सहानुभूति है,’’ रामसिंह का गुस्सा ठंडा पड़ने लगा, ‘‘उस दिन तुम आपस में न लड़ते, तो कविता मैडम तुम दोनों के ही साथ होतीं क्योंकि हमारे साहब से उन की मुलाकात ही न हुई होती.
‘‘हमारे साहब तुम दोनों से ज्यादा समझदार व होशियार निकले. न खून बहाया, न रुपए लुटाए लेकिन कविता मैडम को पा लिया.
‘‘तुम दोनों तो आपसी झगड़ों में ताकत खर्च करते रहे और कमजोर पड़ गए. साहब ने उन का दिल जीता और उन्हें पा लिया. आदमी की असली ताकत अब उस की बुद्धि है, न कि मजबूत मांसपेशियां. तुम दोनों खाली हाथ
मलते रह गए. इस का मुझे अफसोस है… पर आगे तुम जरा समझदारी से काम लेना. हमारे साहब की तरह कोई अच्छी लड़की कल को तुम्हारे साथ भी जरूर होगी. अब मैं मिठाई का डब्बा लाता हूं.’’
रामसिंह औफिस में से डब्बा ले कर बाहर आया तो विवेक और संजय वापस जा चुके थे.
‘‘बेचारे,’’ उस ने इस शब्द से उन दोनों के प्रति सहानुभूति दर्शायी और फिर उन्हें भुला कर काजू की 2 बरफियां इकट्ठी मुंह में रख कर बड़े स्वाद से खाने लगा.