नाकें भी किस्मकिस्म की होती हैं. कोई छोटी, कोई मोटी, कोई लंबी, कोई नोकदार तो कोई चपटी यानी जितनी तरह के लोग उन की उतनी तरह की नाकें. साहित्य में तोते जैसी नाक का वर्णन कवियों ने खूब किया है. मु झे अभी तक नहीं पता कि सुग्गे जैसी नाक कैसी होती है. बहुत सी रूपसियों की नाक को गौर से देखा, पर मु झे कोई खास बात नजर नहीं आई. संभव है यह मेरी आंखों का दोष रहा हो.

वैसे देखा और सम झा जाए तो चेहरे पर नाक का महत्त्व कुछ ज्यादा ही है. नाक की खातिर लोग कुछ भी कर बैठते हैं. चेहरे या नाक को खूबसूरत बनाने के लिए विशेष कर युवतियां प्लास्टिक सर्जरी का सहारा लेती हैं. नाक छिदवाती हैं. शादी अथवा तीजत्योहारों पर नाक में नथ पहनने की परंपरा है. कुछ प्रांतों की महिलाएं हमेशा नथ पहने रहती हैं. कुछ जगह नथ उतराई किसी उत्सव की भांति संपन्न होने वाला रिवाज है.

विवाह और नथ यानी दुलहन और नथ का भी ऐसा ही संबंध है. नोज पिनें तो बच्ची, युवा, प्रौढ तथा वृद्धाएं सभी पहनती हैं, जो छोटेबड़े हर साइज में उपलब्ध होती हैं. कोई दाईं तरफ नाक छिदवाती हैं, कोई बाईं तरफ, तो कोई दोनों नथुनों के बीच की जगह. खैर, सौंदर्य के अलगअलग प्रतिमान अपनी पसंद के अनुसार गढ़े गए हैं.

नाक बनी रहे, इस के लिए लोग नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते, चाहे इस के लिए नाकों चने चबाने पड़ें. अब बच्चों को क्या मालूम कि उन का प्यार मातापिता की नाक का बाल बन गया है. प्यार कोई करे, नाक किसी की कटे. हां, रामायणकालीन रावण की बहन शूर्पणखा की नाक अवश्य जगप्रसिद्ध रही. शूर्पणखा की नाक क्या कटी, रावण की ही नाक कट गई. 2 महायोद्धा युद्ध में कूद पड़े और एक ऐतिहासिक, पौराणिक युद्ध नाक की खातिर हो गया.

हर साल इस की याद में पुन: शूर्पणखा की नाक काटी जाती है, लंका दहन होता है और रावण के 10 शीशों की आहुति दी जाती है. यह नाक की कथा न जाने कब तक चलती रहेगी. हम रहें न रहें, नाक अवश्य बनी रहेगी.

मैं अभी तक नहीं सम झ पाई हूं कि लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक ही क्यों काटी? खैर, व्याख्या करना व्याख्याकारों का काम है. मु झे तो बस नाक से मतलब है. जुकाम होने पर लोग नाक पोंछ कर रूमाल जेब में रख लेते हैं, जिस से वक्त पड़ने पर मुंह भी पोंछा जा सकता है.

कुछ लोग पूरा साल नाक सुड़कते रहते हैं, पर हासिल कुछ नहीं कर पाते. नाक के मारे नाक में दम. किसी दवा का कोई असर नहीं. नाक है कि नाकों चने चबवा रही है. नाक को चने चबाते मैं ने नहीं देखा, पर विशिष्टजन ऐसा कहते हैं. लोगों को मुंह से चने चबाते जरूर देखा है. हो सकता है कुछ लोगों की नाक में ही दांत निकल आते हों, क्योंकि दुनिया अजूबों से जो भरी पड़ी है.

हां, नाक पर मक्खी न बैठने देने की बात खासी प्रचलित है. नाक पर बैठी मक्खी अच्छी नहीं लगती. नाक पर बैठ कर अपने नाजुक पंखों और पैरों से गंदगी जो छोड़ती है. नाक में सुरसुराहट जैसा भी कुछ होने लगता है. लेकिन मक्खी की भी एक आदत है कि जहां से उड़ाओ पुन: वहीं आ कर बैठती है. जिद्दी जो ठहरी. इस की भिनभिनाहट भी नहीं भाती.

एक बार मैं अपने 4 वर्षीय बेटे के साथ बस से सफर कर रही थी. बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन बड़ी देर से ऊंघ रहे थे. एक मक्खी काफी देर से उन के मुंह पर मंडरा रही थी. कभी मूंछों पर, कभी दाढ़ी पर तो कभी टोपी पर बैठती. वे सज्जन गरदन  झटक कर हटा देते.

मेरा बेटा काफी देर से मक्खी का खेल देख रहा था. तभी मक्खी उड़ कर सज्जन की नाक पर बैठ गई. मैं कुछ सम झ पाती, उस से पहले ही मेरे लाड़ले ने अपनी चप्पल उतार कर उन सज्जन की नाक पर दे मारी.

वे एकदम घबराए से उठ गए और फिर  झट से मेरे बेटे का हाथ पकड़ लिया और कड़क कर बोले, ‘‘तेरी यह मजाल कि मेरी नाक पर चप्पल मारे? तु झे अभी मजा चखाता हूं.’’

फिर जैसे ही मेरे बेटे को मारने के लिए अपना हाथ ऊपर उठाया, तभी बेटे ने सहमेसहमे कहा, ‘‘अंकल, मैं ने आप को नहीं, मक्खी को मारा था. वह आप को तंग कर रही थी. मम्मी कहती हैं कि नाक पर मक्खी नहीं बैठने देनी चाहिए.’’

यह सुन कर उन सज्जन का गुस्सा दूध के उफान सा शांत हो गया और उन्होंने मेरे बेटे का हाथ छोड़ दिया.

अब मैं ने बेटे को धमकाया, ‘‘तु झे क्या मतलब, मक्खी किसी के भी ऊपर और कहीं भी बैठे? तुम केवल अपनी नाक पर मक्खी मत बैठने दो. दूसरे की नाक की चिंता न करो.’’

बस में बैठे लोग ठठा कर हंस पड़े. वे सज्जन इतना  झेंपे कि अगले स्टौप पर ही उतर गए. पता नहीं उस समय लाड़ले को यह बात सम झ में आई कि नहीं, पर डांट खा कर चुप हो कर जरूर बैठ गया.

कभी नाक बाप जैसी होती है, तो कभी मां जैसी. बाप जैसी नाक को खूब वाहवाही मिलती है यानी नाक खानदानी है. होनी भी चाहिए. बेटा भी पिता की तरह नाकदार न हुआ तो बात ही क्या. भले बारबार कटवानी पड़े.

आजकल जिस के पास पैसा है वही ऊंची नाक वाला है. पैसा और नाक का चोलीदामन का साथ है. पैसा नहीं तो नाक भी नहीं. पैसा हो तो कैसी भी नाक मार्केट में चल जाएगी. ऊंची नाक वालों की ओर लोग हसरत भरी निगाहों से देखते हैं. पर नकचढ़ों को कोई नहीं पूछता. उन्हें देख कर अकसर लोग नाकभौं चढ़ा लेते हैं.

घोड़े, भैंसे, खच्चर, टट्टू, बैल, ऊंट की नाक में नकेल डाली जाती है, पर आजकल सासबहू में छत्तीस का आंकड़ा है. जिस के हाथ में नकेल है वही दूसरी को पहना देती है. कहीं बहू की नकेल सास के हाथ तो कहीं सास की नकेल बहू के हाथ. हो सकता है और लोग भी नकेल पहनाते हों. हां, दबंगों के हाथ में किसी न किसी की नकेल अवश्यरहती है.

मैं एक बात अकसर सुना व पढ़ा करती हूं कि बदमाशों को पकड़ने के लिए पुलिस को नाकेबंदी करनी पड़ी. बदमाशों को पकड़ने में नाक ए बंदी का क्या मतलब? पता नहीं ऐसेऐसे मुहावरे किस बात की जरूरत थे और क्यों बन गए. नाक है तो सब कुछ है वरना नाक में दम है.

अकसर नाक में दम होता रहता है. कभी बच्चों के कारण, कभी बुजुर्गों के कारण, कभी काम के कारण तो कभी शोरगुल के कारण. यह आज की बात नहीं है. हमारे बड़ों की नाक में भी दम हुआ था. हमारी नाक में भी होता है और आगे आने वालों की नाक में भी होगा. नकसीर भी फूटेगी. नाक है तो नाक के मसले भी होंगे. यानी नाक की समस्या आसानी से नहीं सुल झेगी. पूरा देश नाक बचाने में लगा है. बढ़ती महंगाई और मंदी के दौर के कारण विश्व की नाक में दम है.

पूरा देश नाक बचाने में लगा है. सब अपनीअपनी नाक देख रहे हैं. क्या पता कब किस की नाक कट जाए. माननीय अन्ना हजारेजी की नाक इतनी ऊंची हो गई है कि सरकार को अपनी नाक बचानी भारी पड़ रही है. पूरा देश अन्नाजी की नाक के नीचे आ गया है. जन लोकपाल बिल नाक का बाल बन गया है. नाक के ढेरों करतब सामने हैं. मैं अब कलम रखती हूं. कहीं औरों की नाक देखतेदेखते मेरी नाक भी चक्कर में न आ जाए.

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