जब से मुग्धा का परीक्षा परिणाम आया था तब से न केवल नीलकांत परिवार में, बल्कि पूरे गांव में आनंद की लहर थी. नीलकांतजी की तो ऐसी दशा थी मानों कोई मुंह में लड्डू भर दे और फिर उन का स्वाद पूछे.

नीलकांतजी के तीनों बेटों और दोनों बेटियों में मुग्धा सब से अधिक प्रतिभाशाली थी. तीनों बेटे गिरतेपड़ते स्नातक बन पाए थे. उन की बड़ी हवेली में सब ने अपनी अलगअलग गृहस्थी जमा ली थी. खेतीबाड़ी और छोटेमोटे व्यवसाय के साथ ही गांव की राजनीति में भी उन की खासी रुचि थी.

मुग्धा की बड़ी बहन समिधा की भी पढ़ाईलिखाई में खास रुचि नहीं थी. गांव में केवल इंटर तक ही विद्यालय था. पर इंटर की परीक्षा में असफल होते ही उस ने घोषणा कर दी थी कि पढ़ाईलिखाई उस के बस की बात नहीं है.

वह तो पहले मौडल बने, फिर फिल्मी तारिका.नीलकांतजी यह सुनते ही चकरा गए थे. नयानगर जैसे छोटे से कसबे में रहने वाली समिधा के मुख से यह बात सुन कर वे हक्केबक्के रह गए थे. आननफानन घर के बड़े सदस्यों ने निर्णय लिया था कि शीघ्र ही समिधा के हाथ पीले कर के अपने कर्तव्य से मुक्ति पा ली जाए. विवाह के बाद वह मौडल बने या तारिका उन की बला से.

नीलकांतजी का दृढ़विश्वास था कि विवाह समिधा की आशाओंआकांक्षाओं को नियंत्रित करने में सशक्त अस्त्र साबित होगा.ऐसे में परिवार की सब से छोटी कन्या मुग्धा के राज्य भर में प्रथम आने का समाचार आया तो पहले तो किसी को विश्वास हीनहीं हुआ.

धमाकेदार समाचारों की खोज में भटकते एक खोजी पत्रकार को इस घटना में उभरते भारत की नई छवि दिखाई दी और उन्होंने मुग्धा का पताठिकाना और फोन नंबर खोज निकाला.फोन नीलकांतजी ने ही उठाया था. ‘‘मैं संतोष कुमार बोल रहा हूं.

आरोहण नामक समाचार चैनल से. क्या मुग्धा चौधरी का घर यही है?’’‘‘हां यही है मुग्धा का घर, पर तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरी बेटी को फोन करने का?

तुम जानते नहीं तुम किस से बात कर रहे हो?’’ नीलकांतजी क्रोधित स्वर में बोले.‘‘मैं सचमुच नहीं जानता. आप जब तक परिचय नहीं देंगे जानूंगा कैसे?’’‘‘मैं नीलकांत मुग्धा का बाप. मेरी बेटी का नाम फिर से तेरी जबान पर आया तो जबानखींच लूंगा.’’‘

‘आप पहले मेरी बात तो सुनिए… व्यर्थ ही आगबबूला हुए जा रहे हैं… आप की बेटी पूरे प्रांत में 10वीं कक्षा में प्रथम आई है. मैं उस का साक्षात्कार लेना चाहता हूं. बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘यह इतनी सी बात नहीं है महोदय. हमारे परिवार की कन्या टीवी चैनल पर साक्षात्कार देती नहीं घूमती और जहां तक प्रांत में प्रथम आने का प्रश्न है तो आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है. हमारे परिवार के बच्चों के तो पास होने के लाले पड़े रहते हैं…

हमारे परिवार के किसी बच्चे की आज तक प्रथम श्रेणी नहीं आई, तो प्रांत में प्रथम आने की तो बहुत दूर की बात है. ठीक से पता लगाइए प्रांत में प्रथम आने वाली मुग्धा कोई और होगी,’’ नीलकांतजी ने फोन का रिसीवर रखते हुए कहा.‘‘न जाने कहां से चले आते हैं ऐसे मूर्ख,’’ वे बुदबुदाए थे.

फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने मुग्धा को पुकारा, ‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’‘‘क्या है पापा?’’‘‘तुम्हारे पेपर कैसे हुए थे बेटी?’’‘‘अच्छे हुए थे. पर आप 2 माह बाद यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं?’’‘‘पास तो हो जाओगी न तुम?’’‘‘आप को मेरे पास होने में भी संशय है? पापा मेरी प्रथम श्रेणी आएगी,’’ मुग्धा आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली थी.

‘कहीं सच में प्रांत में प्रथम तो नहीं आ गई यह लड़की? उन्होंने मन ही मन सोचा पर मुग्धा को बताने से पहले वे स्वयं इस समाचार की परख कर लेना चाहते थे.’ तैयार हो कर वे बाहर निकलते उस से पहले ही मुख्यद्वार पर शोर उभरा.

खिड़की से झांक कर देखा तो मुग्धा के विद्यालय के प्रधानाचार्य व अन्य अध्यापक मुग्धा के सहपाठियों के हुजूम के साथ खड़े थे.‘‘नीलकांत बाबू, कमाल हो गया… मुग्धा मेधावी छात्रा है. अच्छे नंबरों से पास होगी, इस की आशा तो हम सब को थी, पर प्रांत में प्रथम आएगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था,’’

प्रधानाचार्य कमलकांतजी नीलकांतजी को देखते ही उन के गले लगते हुए बोले.‘‘मुग्धा जैसी छात्रा का 11वीं कक्षा में हमारे ही विद्यालय में आना गौरव की बात होगी. पर हम इतने स्वार्थी नहीं हैं. इस छोटे से कसबे में उस की प्रतिभा दब कर रह जाएगी.

उस का दाखिला किसी बड़े शहर में किसी जानेमाने कालेज में करवाने से उस की प्रतिभा में और निखार आएगा. मेरी बात मानिए, मुग्धा असाधारण प्रतिभा की धनी है. सही वातावरण में ही उस की प्रतिभा फूलफल सकेगी.’’जातेजाते कमलकांतजी कुछ ऐसा कहगए, जिस ने नीलकांतजी को सोचने पर विवश कर दिया.

बधाई देने वालों का सिलसिला कुछ थमा तो मुग्धा के भविष्य पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाने लगा. किसी भी निर्णय से पहले भलीभांति विचार कर बहुमत से किसी उल  झन को सुल  झाना नीलकांत परिवार की परंपरा थी. पर घर की कन्या का घर छोड़ कर छात्रावास में रहना अनहोनी सी बात थी.

परिवार के कुछ सदस्य इस के समर्थन में थे तो कुछ विरोध में.‘‘प्रदेश में प्रथम आ कर कौन सा तीर मार लिया? आखिर तो चूल्हाचौका ही संभालना है… यह आवश्यक तो नहीं कि प्रधानाचार्य जैसाकहें हम वैसा ही करें,’’ मुग्धा के बडे़ भाई रमाकांत विशेष अंदाज में बोले तो उन से छोटे दोनों भाइयों ने भी उन के समर्थन में अपने हाथ उठा दिए.‘‘लो सुन लो इन की बात… इन मूर्खों को तो यह भी नहीं पता कि आजकल महिलाएं चूल्हेचौके के संग और भी बहुत कुछ संभाल रही हैं… वैसे यह चूल्हाचौका न संभाले तो भूखे मर जाएं तुम सब,’’ सोमा दादी ने अपने तीनों पोतों को फटकार लगाई.‘‘दादीजी, आप ने मुग्धा को सिर चढ़ा रखा है. तभी तो किसी की नहीं सुनती,’’ रमाकांत ने दादी को उकसाया.‘‘आज तो मुग्धा के 7 खून भी माफ हैं.

उस ने जो कर दिखाया है, वह आज तक गांव में भी कोई नहीं कर सका… मेरा सपना तो मेरी मुग्धा ही पूरा करेगी,’’ सोमा दादी एकाएक भावुक हो उठीं.‘‘आप का सपना?’’ समवेत स्वर में पूछा गया प्रश्न देर तक हवा के पंखों पर तैरता रहा.‘‘हां मेरा सपना. 8वीं कक्षा में अपने स्कूल में प्रथम आई थी मैं. पर सब ने घेरघार कर शादी कर दी मेरी…

पूरा जीवन गृहस्थी के कोल्हू को खींचने में बीत गया. मैं मुग्धा के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी,’’ सोमा दादी ने अपना दुखड़ा सुनाया तो सब एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सोमा दादी कभी 8वीं में पूरे स्कूल में प्रथम आई थीं, यह तो उन सब को पता ही न था.

‘‘मां, हम न तो मुग्धा की पढ़ाई छुड़वा रहे हैं, न ही उस की शादी कर रहे हैं. प्रश्न यह है कि आगे की पढ़ाई वह कहां करेगी. स्थानीय कालेज में या किसी बड़े शहर में? नीलकांतजी सोमा दादी को भूतकाल से वर्तमान में खींच ले आए.’’‘‘इस बात पर बहस करने से पहले मुग्धासे तो पूछ लो कि वह क्या चाहती है… हैकहां मुग्धा?’’‘‘अपने सहपाठियों के साथ चली गई है.

थोड़ी देर में आएगी,’’ मुग्धा की मां निर्मला बोलीं.दादी की बात सुन कर निर्मला देवी के घाव भी ताजा हो गए थे. अंतर केवल इतना था कि उन का इंटर करते ही विवाह कर दिया गया था. उन की भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा मन की मन में ही रह गई थी.

‘‘मुग्धा कुछ भी चाहे पर मैं तो अपने मन की बात कह देता हूं. मुग्धा का यहीं दाखिला करवा दो. लड़कियों को अधिक आजादी देना ठीक नहीं है,’’ रमाकांत ने साफ कहा.‘‘अभी तो मैं बैठा हूं… मुग्धा के लिए क्या भला है और क्या बुरा, इस का निर्णय मैं करूंगा,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की.

‘‘हम तो पहले ही जानते थे… इस घर में हमारी सुनता ही कौन है,’’ रमाकांत ने बुरा सा मुंह बनाया.मगर मुग्धा की गैरमौजूदगी में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका.मुग्धा के राज्य में प्रथम आने का समाचार सुनते ही समिधा अपने परिवार सहित आ धमकी थी.

अब वह भी परिवार में चल रही बहस का हिस्सा बन गई थी.‘‘मेरा सपना तो अधूरा रह गया पर, मैं मुग्धा का सपना टूटने नहीं दूंगी,’’ समिधा ने घोषणा की.‘‘तेरा कौन सा सपना टूट गया?’’ सोमा दादी ने व्यंग्य किया.‘‘हांहां, आप को तो केवल मुग्धा की चिंता है. मेरे बारे में तो किसी ने कभी सोचा ही नहीं. मैं फिल्म तारिका बनना चाहती थी. मेरे जैसा सुंदर तो कोई पूरे कसबे में नहीं था.

‘‘मु  झे आप से यही आशा थी पापा. इस पुरुषप्रधान समाज में मेरे जैसी अबला अपनी आकांक्षाओं का गला घोटने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकती है,’’ समिधा बोली.‘‘हम यहां मुग्धा के भविष्य का निर्णय करने के लिए बैठे हैं इसलिए नहीं कि सब अपना रोना ले कर बैठ जाएं,’’

सेमा दादी ने समिधा को डपटा.‘‘तो करिए न मुग्धा के भविष्य का निर्णय. मैं ने कब मना किया है. अपने कसबे से बाहर भेजना है तो छात्रावास में ही रखना पड़ेगा. पर पापा कहते हैं कि हमारा परिवार अपनी बेटियों को छात्रावास में नहीं भेजता. तो अब एक ही मार्ग शेष रह जाता है कि मुग्धा को मेरे पास भेज दीजिए. वहीं रह कर आगे की पढ़ाई कर लेगी मुग्धा…

आजकल जमाना बड़ा खराब है. छात्रावास में रह कर तो युवतियां हाथ से निकल जाती हैं. हमारे साथ रहेगी मुग्धा तो हम उस पर नजर रख सकेंगे. मुग्धा के जीजाजी की भी यही राय है.’’‘‘समिधा ठीक कहती है. मुग्धा बड़ी बहन के पास रह कर उस के नियंत्रण में रहेगी,’’ सोमा दादी ने भी समिधा के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लगा दी.‘‘मुग्धा की पढ़ाई और खानेपीने, रहनेआदि का जो भी खर्च आएगा हम देंगे,’’ नीलकांतजी ने कहा.‘‘पापा, यह कह कर तो आप ने मु  झे बिलकुल ही पराया कर दिया.

मुग्धा क्या मेरी कुछ नहीं लगती? बस एक विनती है… मुग्धा को ठीक से सम  झाबु  झा दीजिएगा. उस का स्वभाव इतना कड़वा हो गया है कि मु  झ से तो वह सीधे मुंह बात ही नहीं करती. मेरे पास रहेगी तो मेरे नियंत्रण में रहना पड़ेगा.

मैं नहीं चाहती कि बाद में सब मु  झे दोषी ठहराएं,’’ समिधा ने बड़ी बहन होने का रोब गांठा.शायद यह वादविवाद और कुछ देर चलता, पर तभी मुग्धा को घर में घुसते देख सब का ध्यान उस पर ही केंद्रित हो गया.‘‘आओ मुग्धा, कहां चली गई थीं तुम? यहां हम तुम्हारे भविष्य के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे,’’ सोमा दादी बोलीं.‘‘मेरे भविष्य की चिंता आप लोग न ही करें तो अच्छा है.’’‘‘लो और सुनो, हम नहीं तो कौन तुम्हारी चिंता करेगा?’’ रमाकांत ने प्रश्न किया.‘‘आप सब को मेरे भविष्य की इतनी चिंता है, तो बताओ क्या निर्णय लिया आप सब ने?’’ मुग्धा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.‘‘हम सब ने एकमत से निर्णय लिया है कि आगे की पढ़ाई तुम अपनी बड़ी बहन समिधा के साथ रह कर करोगी.’’‘‘अच्छा, क्या मैं जान सकती हूं कि यह प्रस्ताव किस का था?’’ मुग्धा ने पूछा.‘‘तेरी बहन समिधा का.

पर हम सब ने विचारविमर्श कर के तुम्हें वहां भेजने का निर्णय किया है.’’‘‘क्यों दीदी, जब आप ने मु  झे अपने पास आ कर रहने का आमंत्रण दे ही दिया है तो वह बात भी कह ही डालो, जिसे किसी से न कहने का आप ने वादा लिया था,’’ मुग्धा के स्वर की कड़वाहट ने सभी को चौंका दिया.‘‘कौन सी बात? मैं भला तुम्हें किसी भी बात को गुप्त रखने के लिए तुम से वादा क्योंलेने लगी?’’‘‘तुम न सही, पूज्य जीजाजी तो बता ही सकते हैं… मां और पापा को भी तो पता लगे कि उन की बेटी ने क्या कुछ सहा है… वह तड़प, वह संताप, बिना किसी कारण अपनों द्वारा ही छले जाने का कलंक ढोते कितनी रातें मैं ने सिसकियां लेले कर गुजारी हैं,’’ हर शब्द के साथ मुग्धा के स्वर का तीखापन बढ़ता ही जा रहा था.

किसी के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा. अंतत: समिधा के पति राजीव ने ही मौन तोड़ा, ‘‘सुन लिया? हो गई तसल्ली? तुम्हारी बहन तुम्हारे पति पर   झूठे आरोप लगाए जा रही है और सब तमाशा देख रहे हैं. अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता. तुम्हें रुकना है तो रुको…’’‘‘रुको, मैं भी चलती हूं… जिस घर में मेरे पति का अपमान हुआ हो, उस घर का तो मैं एक घूंट पानी भी नहीं पी सकती,’’ समिधा भी पीछेपीछे चली गई.मुग्धा अब भी सिसक रही थी.

उस की मां निर्मला देवी उसे अंदर कमरे में ले गईं.3 वर्ष पहले छुट्टियों में मुग्धा समिधा के पास रहने गई थी. पर वहां से लौटी तो उस का हाल देख कर निर्मला चकित रह गई थीं. संशय के सर्प ने उन के मन में सिर उठाया था. पर लाख पूछने पर भी मुग्धा ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. उन के हर प्रश्न के उत्तर में वह आंखों में हिंसक चमक लिए मूर्ति बनी बैठी रहती थी. पर आज मुग्धा का व्यवहार देख कर वे सिहर उठीं.‘‘मेरे लाख पूछने पर भी तुम ने कुछ नहीं बताया था. फिर आज सब के सामने ऐसा व्यवहार करते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ एकांत पाते ही फुफकार उठीं थीं निर्मला.

‘‘आई थी मां, बहुत शर्म आई थी, स्वयं से घृणा हो गई थी मु  झे. आत्महत्या करने का मन होता था. रात भर रोती रही थी मैं.’’‘‘तुम मु  झे तो बता सकती थीं न?’’‘‘समिधा दीदी ने मु  झ से वचन ले रखा था. फिर भी मैं आप को सब बता देती यदि मु  झे आप से जरा सी भी सहानुभूति की आशा होती… आप को सब पता भी लगता तो क्या करतीं आप? अब भी आप को दुख इस बात का है कि मैं ने सब के सामने राजीव जीजाजी पर आक्षेप लगाया. मेरे घाव पर मरहम लगाने की नहीं सोची आप ने.’’‘‘अरी मूर्ख, तू तो इतना भी नहीं सम  झती कि अंतत: बदनामी तेरी ही होगी. राजीव तो साफ बच निकलेगा.

बेचारी समिधा तो अपना घर और तेरा मानसम्मान दोनों ही बचाना चाहती थी.’’‘‘मैं ने भी यही सोचा था. पर आज जब आप सब ने मेरे वहां जा कर रहने का निर्णय सुनाया तो मैं स्वयं को रोक नहीं सकी. स्वयं को किताबकापियों के हवाले करना ही एकमात्र रास्ता बचा था मेरे सामने.

उस का फल भी मिला मु  झे. मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि मेरी व्यथा गौण हो गई. तभी तो सब के सामने राजीव जीजाजी की करतूत का परदाफाश कर सकी मैं… दोष उन का है तो मैं सजा क्यों भुगतूं?’’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘‘मु झे तु झ पर गर्व है बेटी. केवल इसलिए नहीं कि तुम राज्य में प्रथम आई हो, बल्कि इसलिए कि तुम ने अन्याय के विरुद्ध लड़ने का साहस दिखाया है.’’तभी मांबेटी का वार्त्तालाप सुन रहे, पीछे खड़े नीलकांतजी ने मुग्धा के सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ रखते हुए उसे गले से लगा लिया.

‘‘हमारे परिवार में जो अब तक नहीं हुआ वह अब होगा… मुग्धा छात्रावास में रह कर अपनी आगे की पढ़ाई करेगी,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की तो सोमा दादी और निर्मला देवी भाववभोर हो उठीं. उन्हें लगा कि वर्षों पहले का उन का सपना मुग्धा के रूप में साकार होने लगा है.

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