निशा यादव 32 साल की है. उस की फैमिली उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहती है. उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद दिल्ली के एक मीडिया हाउस में जौब लग गई. यहीं उस की मुलाकात आशुतोष से हुई. कुछ सालों की कैजुअल डेटिंग के बाद वह आशुतोष के साथ रिलेशनशिप में आ गई.

कुछ सालों तक तो सबकुछ सही रहा. फिर एक दिन निशा के पीरियड्स मिस हो गए. उस ने प्रेगा न्यूज प्रैंगनैंसी किट से अपना प्रैंगनैंसी टैस्ट किया. रिजल्ट पौजिटिव आया. इस बारे में उस ने आशुतोष को बताया. उस ने कहा कि उसे बच्चा नहीं चाहिए. इसलिए वह आईपील खा ले. निशा सोच में पड़ गई. कुछ दिन सोचने के बाद उस ने यह फैसला किया कि वह बच्चे को जन्म देगी.

उस ने इस बारे में अपने घर वालों को बताया. उस के घर वालों ने उसे बच्चा गिराने की सलाह दी. अब उस की फैमिली भी उस के साथ नहीं है. अब उस के दिमाग में उथलपुथल चलने लगी कि वह कैसे इस सोसाइटी से लड़ेगी. कैसे वह इस का पालनपोषण करेगी. उस के साथ तो कोई है ही नहीं. लेकिन वह जानती थी कि उसे क्या करना है.

निशा फाइनैंशली इंडिपैंडैंट थी. उस का अच्छाखासा पैकेज था. एक फुल टाइम मेड तो उस के पास पहले से ही थी. रही बात सोसाइटी की, तो सोसाइटी से उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. निशा का फैसला अडिग था. इसलिए वह अपने बच्चे को इस दुनिया में ले कर आ सकी.

पर्सनल चौइस

अब निशा की बेटी इला 4 साल की हो गई है. निशा कहती है कि जबजब मैं अपनी बेटी को देखती हूं तो सोचती हूं कि मैं ने इसे जन्म दे कर बिलकुल सही किया. लेकिन अगर मैं फाइनैंशली इंडिपैंडैंट नहीं होती तो मैं अबौर्शन करवा लेती क्योंकि तब मैं इसे अच्छी परवरिश नहीं दे पाती. हमारी इंडियन सोसाइटी में आज भी एक लड़की का सिंगल पेरैंट होना बहुत मुश्किल है. समयसमय पर उस से और उस के बच्चे से उस के पिता का नाम पूछा जाता है.

उस के कैरेक्टर पर सवाल उठाया जाता है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि हमारी सोसाइटी में चेंज आए. अगर कोई महिला सिंगल पेरैंट बनना चाहती है तो यह उस की पर्सनल चौइस होनी चाहिए. इस के बारे में कोई सवालजवाब न किया जाए.

हमारी इस रुढि़वादी दकियानुसी इंडियन सोसाइटी में एक लड़की का दुनिया में सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के पीछे कारण यह है कि इंडियन सोसाइटी ने सिंगल पेरैंट को कभी अपनाया ही नहीं है. खासकर सिंगल पेरैंट वूमन को. वह भी तब जबकि वह बिन ब्याही मां बनी हो.

मगर कुछ ऐसे भी अपवाद रहे हैं जिन्होंने इस सो कोल्ड इंडियन सोसाइटी की रूढि़वादी सोच पर चोट की है. ऐसा ही एक नाम बौलीवुड की फेमस सैलिब्रिटी नीना गुप्ता है जिन्होंने 1980 के दशक में बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म दिया. असल में यह बच्चा उन का और उन के बौयफ्रैंड विवियन रिचर्डसन का था. नीना चाहती तो अर्बोशन करवा सकती थीं. लेकिन उन्होंने अपने बच्चे को इस दुनिया में लाना चुना. वे इस रूढि़वादी सोसाइटी से बिलकुल नहीं डरीं और अपने फैसले पर अटल रहीं. ऐसा कर के उन्होंने इस सोसाइटी की हजारों लड़कियों को प्रेरित किया.

सोच में बदलाव

नीना गुप्ता के ही नक्शे कदम पर चल कर हाल ही में बौलीवुड की सफल ऐक्ट्रैस इलियाना डिकू्रज ने भी 1 अगस्त को बच्चे को जन्म दिया है. समय बदल रहा है. अब इंडियन सोसाइटी की दकियानूसी सोच को टक्कर देने के लिए बहुत सी महिलाएं सामने आ रही हैं. समय के साथसाथ हमारी सोसाइटी को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए.

हालांकि यह भी सच है कि अनमैरिड सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के लिए अपनेआप को मैंटली और फिजिकली तैयार करना होगा. इस के अलावा आप का फाइनैंशली इंडिपैंडैंट होना भी बहुत जरूरी है. अगर आप ने यह फैसला कर लिया है कि आप को अपने बच्चे को जन्म देना है तो आप को इन सभी मानदंडों पर खरा उतरना होगा.

अनमैरिड वूमन को अपने बच्चे को जन्म देना चाहिए या अबौर्शन करवा लेना चाहिए इस विषय पर अलगअलग लोगों की अलगअलग राय रही.

नई दिल्ली के साकेत इलाके में 30 साल की सीमा लकवाल अपने हसबैंड के साथ रहती हैं. वे एक हाउस मेकर हैं. इस के साथ ही वह अपने पति के इलैक्ट्रौनिक्स बिजनैस में उन का हाथ भी बंटाती हैं.

उन से हुई बातचीत में वह अपनी राय देते हुए कहती हैं, ‘‘मैं खुद 6 महीने की प्रैंगनैट महिला हूं. ऐसे में मैं सम?ाती हूं कि एक महिला के लिए मां बनना एक सुखद एहसास है. अगर कोई महिला अनमैरिड है और वह अपना बच्चा रखना चाहती है तो मैं ऐसी महिला की सपोर्ट में हूं. बस मैं उस से यही कहना चाहूंगी कि उसे इस दुनिया में अपने बच्चे को लाने से पहले मैंटली, फिजिकली और फाइनैंशियल स्ट्रौंग होना होगा. अगर उस में ये तीनों क्षमताएं हैं तो ही बच्चे को जन्म दे. इस में उस की उम्र भी मैटर करती है. अगर वह 20-22 साल की है. तब अबौर्शन को ही चुनें. क्योंकि यह उम्र कैरियर बनाने की है न कि बच्चे की जिम्मेदारी उठाने की.’’

वहीं बीएड की पढ़ाई करने वाली कामनी शर्मा कहती है, ‘‘अगर किसी महिला की उम्र अगर 30 से ऊपर है और वह वैल सैटल और इंडिपैंडैंट है, सोसाइटी का प्रैशर ?ोल सकती है, मैंटली व फिजीकली स्ट्रौंग भी है तब वह बच्चे को जन्म दे सकती है. वहीं अगर वह कम उम्र की है, इंडिपैंडैंट नहीं है, उस के पास इनकम का कोई सोर्स नहीं है, सपोर्ट इमोशनली वीक है. उस की फैमिली और फ्रैंडस उस की सपोर्ट में नहीं है तो उसे अर्बाशन करवा लेना चाहिए. यह उस के कैरियर और फ्यूचर दोनों के लिए सही होगा.’’

एक बिन ब्याही लड़की को सिंगल पेरैंट बनने में बहुत सी परेशानियां आती हैं. ये परेशानियां क्या हैं, आइए जानते हैं:

मनी है जरूरी

एक वूमन को सिंगल पेरैंट बनने में कई प्रौब्लम्स आती हैं. इस में सब से बड़ी प्रौब्लम पैसों की है. प्रैगनैंसी पीरियड में दवाइयां, डाक्टर विजिड और मैडिकल टैस्ट में हजारों के खर्चे होते हैं. वहीं अगर डिलिवरी की बात करें तो प्राइवेट हौस्पिटल में नौर्मल डिलिवरी में क्व30 से क्व50 हजार लग जाते हैं वहीं सिजेरियन में क्व90 हजार से क्व1 लाख तक का खर्चा आता है. इस के आलावा बच्चे की परवरिश का खर्चा. औसतन एक बच्चे पर सालाना क्व2 लाख से क्व3 लाख तक का खर्चा आता है.

इस के अलावा वूमन के पास इतना पैसा होना चाहिए कि वह अपने लिए मेड और बेबी सिटर रख सके ताकि अपनी जौब पर जा सके.

बनें मैंटली स्ट्रौंग

जो लड़कियां बिना शादी के मां बनती हैं  सोसाइटी उन से मुंह मोड़ लेती है. ऐसी लड़कियों का मैंटली स्ट्रौंग होना बहुत जरूरी है. ऐसे बहुत से मौके आएंगे जब सोसाइटी के लोग अनमैरिड सिंगल वूमन से उस के पति का नाम पूछेंगे. इतना ही नहीं उस बच्चे से उस के पिता का नाम जानना चाहेंगे. ऐसे में उसे सोसाइटी के इन लोगों से डील करना आना चाहिए.

फिजिकली स्ट्रौंग भी हो

वे लड़कियां जो बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म देना चाहती हैं, लेकिन उन की सपोर्ट में कोई नहीं है तो उन के लिए जितना जरूरी मैंटली स्ट्रौंग होना है उतना ही जरूरी फिजिकली स्ट्रौंग होना भी. प्रैंगनैंसी के समय चक्कर आएंगे, उलटियां आएंगी, जी मचलाएगा, मूड स्विंग्स होंगे. ऐसे में उसे अपनी हैल्थ पर ध्यान देना होगा. उसे अपने खानपान का खास खयाल रखना होगा. इस के लिए हरी सब्जियां और प्रौटीन से युक्त खाना खाए. डाक्टर की सलाह से मल्टीविटामिन भी ले.

बच्चे को किसी के पास छोड़ने का खतरा

ऐसी लड़कियां जिन के घर में बच्चे का खयाल रखने वाला कोई नहीं है उन्हें खुद को और अपने बच्चे दोनों को संभालना होगा. इतना याद रखें कि सिंगल पेरैंट बनने के बाद जिम्मेदारी काफी बढ़ जाएगी. अपना बेबी और नौकरी दोनों संभालने होंगे. अगर अच्छा कमाती हैं तो बेबी सिटर रख सकती है. इस से उसे हैल्प मिलेगी.

मगर अपना बच्चा किसी तीसरे के हाथ सौंप रही है तो इस वजह से वह हमेशा अपने बच्चे को ले कर चिंता में रहेगी. इस चिंता से उसे थोड़ी मुक्ति सीसीटीवी कैमरे दिलवा सकते हैं. इस के लिए मार्केट में बहुत सी कंपनियां अवेलेबल हैं. वह घर में सीसीटीवी लगवा कर उसे अपने फोन से कनैक्ट कराए ताकि औफिस में बैठ कर भी अपने बच्चे की हर ऐक्टिविटी को देख सके. इस बात का भी खास ध्यान रखे कि बेबी सिटर और मेड की फुल वैरिफिकेशन जरूर करे.

यह सोसाइटी बिना शादी के मां बनी महिला के चरित्र पर सवाल उठाती है. आम बोलचाल की भाषा में ऐसी महिलाओं को कैरेक्टरलैस कहा जाता है जोकि गलत है.

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