पुराने दौर के कलाकारों में पेंटल का नाम खास है. उन्होंने अपने कॉमिक अंदाज से कई फिल्मों को यादगार बनाया है. उनका रियल नाम कंवरजीत पेंटल वालिया है. फिल्म जगत में उन्हें पेंटल के नाम से जाना जाता है. पेंटल अब 75 साल के हो गए हैं और एक्टिंग की शिक्षा देते हैं. पेंटल ने लंबा समय हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में निकाला है और अभी भी काम में व्यस्त है, लेकिन उन्हें आज भी वह दिन याद है, जब वे पहली बार मायानगरी की तरफ रुख कर रहे थे. पेंटल अभी भी बहुत फिट है और फिटनेस का राज वे हर काम समय से करने को बताते है. उनका बेटा हितेन पेंटल है, जिसने कई फिल्मे की है और पिता के काम से बहुत प्रभावित है.

थी अभिनय की प्रतिभा

पंजाब में जन्मे पेंटल के भाई सरबजीत पेंटल थे, जिन्हें सभी गुफी पेंटल के नाम से जानते हैं, जो शकुनी मामा के किरदार निभाकर चर्चित हुये थे. पेंटल के पिताजी लाहौर में फिल्मों में बतौर सिनेमैटोग्राफर काम करते थे. भारत के विभाजन के कारण पेंटल के परिवार को विस्थापित होकर लाहौर से दिल्ली आना पड़ा. पेंटल के पिताजी को फिल्मी दुनिया का काम पता था, इसलिए वे मुंबई आये, पर उन्हें काम नहीं मिला और वे वापस दिल्ली लौट गए. दिल्ली आकर पेंटल के पिताजी ने एक फोटोग्राफी की दुकान खोली. दुकान में पासपोर्ट साइज फोटो और शादी विवाह की तस्वीरें खींचने का काम होता था. पेंटल का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था. वह अपने पिताजी की दुकान में बैठकर दिनभर फोटोग्राफी की बारीकियां सीखा करते थे. इससे पेंटल के पिताजी को लगा कि उनके बेटे में अभिनय प्रतिभा है. उन्होंने अपने बेटे से कहा कि वे अभिनय में ट्रेनिंग लेकर आगे बढे और अपनी पहचान बनाए.

नहीं था पढ़ाई में मन

पेंटल ने एक इंटरव्यू में भी कहा है कि वे पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, कई बार फेल हो जाया करते थे, लेकिन उन्हें एक्टिंग का बहुत शौक था. इसलिए उन्होंने एक्टिंग की पढ़ाई के लिए साल 1967 में फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, पुणे में दाखिला लिया. जहाँ उन्हें 75 रूपये हर माह मिलता था, जिससे वे अपना खर्चा चलाते थे. साल 1969 में वे मुंबई एक्टिंग के लिए आये. पेंटल ने अपने फिल्मी कॅरियर में ‘जवानी दीवानी’, ‘रफू चक्कर’, ‘बावर्ची’, ‘पिया का घर’, ‘जंगल में मंगल’, ‘परिचय’, ‘हीरा पन्ना’, ‘सिक्के’, ‘सत्ते पे सत्ता’ जैसी कई खास फिल्मों में काम किया है. इतना ही नहीं उन्होंने सभी बड़े कलाकारों के साथ भी काम किया है.

एक्टिंग में रहे सफल

उन्होंने पढ़ाई में नहीं, लेकिन एक्टिंग की दुनिया में खूब नाम कमाया. एक वक्त ऐसा था जब हर दूसरी फिल्म में पेंटल का किरदार हुआ करता था. पेंटल ने फिल्मों के साथ ही टीवी की दुनिया में भी काफी नाम कमाया है. ‘विक्रम बेताल’, ‘श्श्श्श कोई है’, ‘महाभारत’ जैसे कई शोज उन्होंने किये है. उन्हें इस फ़िल्मी जर्नी से कोई मलाल नहीं, जो भी चाहा उससे कही अधिक उन्होंने काम किया है. उनके जीवन में उतार – चढ़ाव काफी आये, लेकिन उन्होंने हमेशा सकारात्मक सोच बनाए रखा, यही वजह है कि वे हमेशा खुश रहते है. अभी वे सोनी टीवी की शो मेहन्दी वाला घर में दादा की भूमिका निभा रहे है.

अलग – अलग भूमिका है पसंद

पेंटल ने हास्य किरदार से लेकर हर तरह की भूमिका निभाई है, लेकिन एक दादा की भूमिका निभाना उन्हें अच्छा लग रहा है. वे कहते है कि इस शो को करने की खास वजह एक पारिवारिक शो में काम करना है, जो मुझे बहुत पसंद है. मुझे लगता है कि इस शो को देखने के बाद नई जेनरेशन परिवार के साथ अवश्य जुड़ेंगे, क्योंकि परिवार के साथ जुड़े रहने से कितना फायदा होता है, कितना सकारात्मक उनकी दुनिया बनती है, उसके बारें में सोच सकेंगे. चार लोग भी जुड़ने पर भी मुझे ख़ुशी होगी.

करना पड़ता है एडजस्ट

पेंटल आगे कहते है कि संयुक्त परिवार की प्रथा अब खत्म हो चुकी है, एकल परिवार भी अब ख़त्म हो रहे है, क्योंकि काम के लिए बच्चे बाहर चले जाते है, ऐसे में पेरेंट्स अकेले रहने पर मजबूर होते है. इस बदलाव को कोई कुछ नहीं कर सकता, इसे अपनाना पड़ेगा. सबसे ट्रेजिक बात यह है कि बुजुर्ग पति – पत्नी में जो अकेला रह जाता है, उनके लिए जिंदगी को जीना थोडा कठिन हो जाता है. उससे भी उन्हें एडजस्ट करना पड़ता है. इतना ही नहीं आज के यूथ बच्चे भी पैदा करना नहीं चाहते, इससे वे जॉइंट फॅमिली के मजे को ले नहीं पाते. खुद ही बच्चा नहीं चाहते, इसकी वजह महंगाई है, दोनों को जॉब करना पड़ता है. पति – पत्नी के काम पर चले जाने के बाद बच्चे को देखने वाला कोई नहीं होता. इसलिए जॉइंट फॅमिली का कांसेप्ट लगभग ख़त्म हो चुका है.

इससे निकलने और खुश रहने की कला इन्सान के अंदर ही होती है, उसे खुद ही खोजना पड़ता है. वे कहते है कि परिस्थितियों से एडजस्ट कर खुश रहना आसान नहीं होता. बाहर से कोई आपको ख़ुशी नहीं दे सकता. हम सभी को खुशियाँ ढूँढनी पड़ेगी. आसपास के सबके साथ मिलकर रहना पड़ेगा, खुद को व्यस्त रखना पड़ेगा, सहना पड़ेगा, अपने अहम् को खत्म करना पड़ेगा आदि सभी चीजों में खुद को सामंजस्य बिठाने पर ही सब खुश रह सकेगे.

मिली अच्छी जर्नी

मुस्कराते हुए पेंटल कहते है कि मैंने जितना चाहा उससे कही अधिक मुझे मिला है, कोई चाह अब रही नहीं. मेरी केवल एक चाह है कि काम करते – करते ही मेरे प्राण निकले. जिंदगी ने बहुत सारे चीजे सीखा दी है. कई बार किराया न रहने की वजह से घर से निकाले गए, इधर – उधर घूमते रहे, फिर कही किसी ने जगह दिया, रात बिताई. जीवन में बहुत तनाव आये, लेकिन मैंने धैर्य के साथ उन्हें लिया और आगे बढ़ा. कई बार ऐसा लगा कि अब क्या होगा, लेकिन तब कोई ऐसा काम हाथ आया कि मैं उससे निकल गया. उन कठिन दिनों में मेरा परिवार और दोस्त सभी ने साथ दिया था. मेरी पत्नी और मेरे बच्चे मेरे लिए बड़ी स्ट्रेंथ रहे है.

वक्त का बदलाव  

पहले और आज की कहानियों में अंतर के बारें में पूछने पर वे कहते है कि आज की फिल्मों में प्यार और मनोरंजन तकरीबन गायब हो गयी है, ये सब वक्त का बदलाव है और कुछ नहीं. मीडिया इतनी फैली है कि आज ये सबकी जेब में आ गई है. यूथ के पसंद की चीजे न बनाने पर वे इसे किसी दूसरी जगह अवश्य देख लेंगे. सब कमर्शियल हो चुका है, हर कोई पैसा कमाना चाहता है. ये एक दौर है, जो कुछ दिनों बाद खत्म हो जायेगा, फिर कोई नया दौर आएगा. आज के बच्चों में धैर्य की कमी अवश्य आई है, ऐसे में उनके आसपास रहने वालों को एडजस्ट भी करना पड़ रहा है. आज मैं खुद को एक शून्य की स्थिति में लाना चाहता हूँ, जिसमे न किसी चीज के बारें में अधिक ख़राब लगे, न किसी बात का तनाव लूँ, सभी से खुद को परे रखना चाहता हूँ. जो आया उसी में खुश रहना चाहता हूँ, जितनी चादर उतनी ही पैर फैलाना चाहता हूँ. अगर चादर छोटी हो तो पैरों को सिकोड़ लूँगा, बाहर निकलने नहीं दूंगा.

आती है याद

पेंटल ने सभी बड़े – बड़े निर्माता, निर्देशकों के साथ काम किया है. उनका कहना है कि मुझे राजकुमार कोहली, राज खोसला, एल बी प्रसाद, चेतन आनंद, ओमप्रकाश, प्राण, देवानंद आदि सभी याद आते है. ये सारे हीरे थे, सभी में एक अलग तरीके की चमक थी. मैं खुले दिल वाला इंसान हूँ, उनकी फिल्में देखकर मैं सबको आज मिस करता हूँ. वे अब नहीं है, लेकिन उनकी यादे मेरे दिल से नहीं गए है, क्योंकि मैं उनकी याद को अपने दिल में रखना चाहता हूँ.

 

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