उधर कुआ इधर खाई : मां की मौत के बाद नीमा के साथ क्या हुआ

मां की मौत के बाद नीमा अकसर गुमसुम रहने लगी थी. उस की सौतेले पिता से कभी बनी नहीं. एक दिन एक अजीब घटना घट गई…

कुछ  दिनों से नीमा कालेज जाते समय अपनेआप को असहज महसूस कर रही थी क्योंकि

वह जब कौलेज जाती तो चौराहे पर खड़ा एक लड़का उसे गंदी नजरों से रोज घूरता रहता. यह रोज रोज की बात हो गई थी. नीमा परेशान रहने लगी. उस ने सौतेले पिता से इस बारे में कोई बात नहीं की.

नीमा की मां का कैंसर के कारण कुछ  समय पहले देहांत हो गया था. जीते जी नीमा

की मां ने अपनी बेटी को समाज में हो रहे अत्याचारों से लड़ने की और अपने को कैसे सुरक्षित रखें अच्छी तरह बता दिया था. वह घर की अकेली बेटी थी.  मां की मृत्यु के बाद नीमा चुपचुप रहने लगी. उस की सौतेले पिता से कभी बौंडिंग बनी ही नहीं. वह सब बातें अपने मन में ही रखती. एक दिन तो हद हो गई. कालेज जाते समय उस लड़के ने नीमा का दुपट्टा खींच कर उस का नाम जानने की कोशिश की.

नीमा उस लड़के के दुपट्टा खींचने से भड़क गई. आव देखा ना ताव और उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. उस लड़के को नीमा से ऐसी उम्मीद नहीं थी. भीड़ इकट्ठी होने के डर से यह कह तुझे तो मैं देख लूंगा, वह लड़का वहां से नौ दो ग्यारहा हो गया.

नीमा ने मजबूरीवश इन सब बातों से

बचने के लिए अपना रास्ता बदल लिया. वह रास्ता भी उस के लिए ठीक नहीं था. वहां छोटे तबके के लोग रहते थे और उस रास्ते का डिस्टैंस भी ज्यादा था लेकिन फिर भी मरती क्या न करती. संध्या का समय था. नीमा के सौतेले पिता ने नीमा को पुकारा. नीमा के आने पर  उस से पूछा, ‘‘कालेज जाते समय आज तुम ने अपना रास्ता क्यों बदला?’’  नीमा ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आप ने कैसे जाना?’’  ‘‘मैंने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं बाज की नजर रखता हूं.’’

नीमा ने कहा, ‘‘वह क्या है एक लड़का

रोज रास्ते में मु?ो छेड़ कर परेशान करता था, इसलिए.’’

‘‘तो तुम ने यह कैसे सोच लिया कि रास्ता बदल लेने से प्रौब्लम दूर हो जाएगी? ऐसा नहीं है. जिधर से तुम गुजरोगी वह लड़का वहां भी तुम्हें छेड़ने से बाज नहीं आएगा. मु?ो बताना तो चाहिए था.’’

‘‘हां, आप की बात ठीक है पर मैं ने

अपने मन में विचार किया है कि कालेज के फाइनल ऐग्जाम खत्म होने जा रहे हैं. फिर

‘मैं किसी अच्छी कंपनी में जौब के लिए

आवेदन करती हूं, कुछ समय मैं घर में ही

रहूंगी. फिर न बजेगा बांस, न बजेगी बांसुरी,’’ नीमा ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे इस फैसले से सहमत हूं,’’ सौतेले बाप ने कहा,’’ घर की चीज घर में ही

रहे वही अच्छा है,’’ इतना कह उस के पिता ने नीमा को अपनी ओर खींचा और प्यार से गालों पर हाथ फेरा.

इस छुअन से नीमा को असहजता सी महसूस हुई. वह ठीक से सम?ा भी नहीं पाई थी कि नीमा के पिता ने इधरउधर हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘जरा बताना, उस लड़के ने यहांवहां, कहांकहां छुआ?’’

नीमा को बहुत गुस्सा आया. वह सोच  भी नहीं सकती थी कि यह सौतेला पिता उसे  इस नजर से देखता है. नीमा ने आड़े हाथों लिया. और कहा, ‘‘आप एक पिता हैं, आप को ऐसा करते शर्म नहीं आती? क्यों अपना अंत बिगाड़ रहे हैं? आप तो आस्तीन के सांप निकले.’’ ‘‘पिता होना और पिता कहलाने में बहुत फर्क है समझा’’ नीमा को पिता में अचानक आया यह बदलाव अच्छा नहीं लगा. उस ने देखा उन की आंखों में वासना साफ झलक रही थी. नीमा की आंखों में कितने चित्र बनते बिगड़ते रहे. वह मन में सोचने

लगी कि उधर कुआं तो इधर खाई. इस समय नीमा को बाप कहलाने वाला यह व्यक्ति उस लड़के से ज्यादा खतरनाक लग रहा था. पिता कहलाने वाला यह बाप हैवानियत पर न उतर आए, नीमा उनका हाथ ?ाटक दूर हट कर खड़ी हो गई.

नीमा के मन में आया कि इस बाप कहलाने वाले व्यक्ति के मुंह पर थूके, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया, ‘‘अगर इस जगह आप की अपनी बेटी होती तब? क्यों अपनी इज्जत मिट्टी में मिला रहे हैं. मेरी मां बीमार थीं मां को बेटी के भविष्य की चिंता थी.

‘‘उन्होंने संरक्षण के लिए आप से शादी की थी, जबकि आप उम्र में उन से काफी बड़े थे. देखा जाए तो मेरे नाना की उम्र के हैं आप. आप को यह सब करते लज्जा नहीं आई? अब मैं यहां रुकूंगी नहीं.’’ ‘‘भाग कर जाओगी कहां? तुम्हें लगता है कि तुम यहां से भाग जाओगी. उस  लड़के के पास,’’ सौतेले पिता ने कहा. ‘‘नहीं. यह आप की गलतफहमी है भागूंगी नहीं. मैं और यह मत सोचिए कि मैं डर गई. आप ने मु?ा पर गलत नजर डाली है.  आवाज उठाना मुझे आता है. बस मेरे एक फोन करने की देर है. फिर जेल की हवा खाते देर नहीं लगेगी सम?ो.’’

‘‘अरे बेटी… अरे बेटी…’’

‘‘बेटी मत कहो मुझे. आप की जबान

से बेटी शब्द सुनना अच्छा नहीं लग रहा.

आप की नजरों में रिश्तों की अहमियत ही

नहीं रही.’’

‘‘बेटी, तुम ने तो मेरी आंखें खोल दीं. मैं

तो बस यही देख रहा था कि तुम इस परिस्थिति

से कैसे मुकाबला करोगी. तुम अपनेआप में कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘अगरमगर मत करिए. आग बिना

धुआं नहीं उठता. मैं अभी पुलिस को फोन

करती हूं.’’

‘‘क्यों मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाने

लगी हुई हो,’’ कह पिता ने नीमा के पैर पकड़

कर गिड़गिड़ाते हुए आगे कहा, ‘‘बेटी मु?ो

माफ कर दे, मेरे बुढ़ापे की लाठी तो तू ही है.

मैं स्वयं की बुराई को दूर कर अच्छाई को आत्मसात करूंगा… मैं न जाने क्यों इतना

विकृत हो गया जो तेरे पर गलत नजर डाली,’’ इतना कह पिता नीमा के पैरों पर सिर रख कर बिलख पड़ा.

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