Melasma Treatment : प्रियंका जब प्रैगनैंट हुई तो बेहद खुश थी. यह उस की जिंदगी के सब से खूबसूरत लमहे थे. मगर जैसेजैसे प्रैगनैंसी का सफर आगे बढ़ रहा था वैसेवैसे प्रियंका के चेहरे पर मेलास्मा के धब्बे इधरउधर नजर आने लगे थे. उस ने तो सुना और पढ़ा था कि मां बनने के समय औरत की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं मगर वह तो कुछ और ही अनुभव कर रही.
डाक्टर ने प्रियंका से कहा, ‘‘ये प्रैगनैंसी मास्क हैं जो बच्चा होने के बाद चले जाएंगे.’’
नियत समय पर प्रियंका ने एक खूबसूरत परी को जन्म दिया मगर मेलास्मा के धब्बे ज्यों के त्यों बने रहे. हरकोई प्रियंका के गोरे रंग पर पड़े मेलास्मा के धब्बो के बारे में पूछता. इस कारण प्रियंका का आत्मविश्वास इतना कम हो गया कि वह घर से बाहर निकलने से भी कतराने लगी. मेलास्मा के धब्बे उस के लिए इतने अधिक कड़वे अनुभव हैं कि वह दोबारा मां नहीं बनना चाहती.
अंशु भी इसी दौर से गुजर रही थी मगर उस का कारण प्रैगनैंसी नहीं, पेरीमेनोपौज था. अंशु ने आलू का जूस लगाना शुरू कर दिया था मगर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा था. मेलास्मा को ले कर अंशु इतनी अधिक परेशान हो गई कि लेजर भी करवा लिया मगर चंद माह के बाद फिर धब्बे लौट आए.
लोग मजाक में अंशु से कह भी देते, ‘‘अंशु, ये तो ऐजिंग के साइन हैं. कहां तक इलाज करवाओगी?’’
चमकतादमकता चेहरा एक ऐसी मृगमरीचका है जिस के पीछे रातदिन लड़कियां भागती रहती हैं. ऐक्ने के लिए तो फिर भी आजकल काफी असरकारक इलाज है मगर मेलास्मा के साथ युद्ध करने के लिए आप को दवा, एक अच्छे डाक्टरी परामर्श के साथसाथ ढेर सारा धीरज और सैल्फ लव चाहिए.
मेलास्मा के निदान को जानने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि मेलास्मा जीवन के कौनकौन से पड़ाव पर हो सकता है?
शौधों से पता चला है कि मेलास्मा त्वचा का एक ऐसा विकार है जिस की अवधि थोड़ी लंबी चलती है. कुछकुछ केसेज में अगर ठीक से रखरखाव न किया जाए तो यह साथी उम्रभर आप का साथ निभाता है.
मेलास्मा 90त्न महिलाओं और 10त्न पुरुषों में देखने को मिलता है. महिलाओ में ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन के कारण मेलास्मा अधिक पाया जाता है.
महिलाओं में थायराइड ग्रंथि के विकार भी अधिक पाए जाते हैं. जो महिलाएं लंबे समय तक थायराइड से पीडि़त रहती हैं उन में भी मेलास्मा होने का चांस अधिक रहता है.
अगर आप के परिवार में आप की नानी, दादी, मां, बूआ, मौसी को मेलास्मा था तो आप की जिंदगी में यह आसानी से प्रवेश कर सकता है. जी हां यह वंशानुगत भी हो सकता है. बढ़ती उम्र में मेनोपौज के दौरान कोलोजन के लौस के कारण महिलाओं की त्वचा पतली हो जाती है जिस कारण सूर्य की पैराबैगनी किरणें त्वचा को आसानी से हानि पहुंचा सकती हैं और इसी कारण मेलास्मा महिलाओं के चेहरे को बेरौनक कर देता है. मेलास्मा से जीतने के लिए एक ही चाबी सब से अधिक जरूरी है. वह है सनस्क्रीन लगाएं लगातार, बारबार.
इस के अलावा मेलास्मा के लिए सब से अधिक जरूरी है आप जो भी रूटीन फौलो कर रहे हैं उस में निरंतरता बना कर रखें. मेलास्मा का ट्रीटमैंट है मगर कोई शौर्टकट नही है. अगर आप इस दुश्मन को अपने जीवन से सदा के लिए भगाना चाहती हैं तो इन चंद बातों का ध्यान अवश्य रखें. यकीन मानिए अगर आप निरंतरता बनाए रखेंगी तो 5-6 माह के भीतर ये धब्बे हलके भी हो जाएंगे और नए धब्बे भी चेहरे पर नहीं आएंगे:
घरेलू नुसखों से न होगा फायदा: आलू का जूस, ऐलोवेरा जैल, बेसन, चावल के आटे का पैक और भी न जाने कैसेकैसे पैक आप को सजैस्ट किए जाएंगे. इन्हें लगाने से आप की त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा मगर आप के जिद्दी दुश्मन मेलास्मा पर कोई असर भी नहीं होगा.
सनस्क्रीन है मेलास्मा के लिए संजीवनी बूटी: सनस्क्रीन मेलास्मा के लिए एक संजीवनी बूटी का काम करता हैं. मगर अधिकतर महिलाएं सनस्क्त्रीन को अपने रूटीन में कोई जगह नहीं देती हैं. वे फाउंडेशन, कंसीलर और भी न जाने कौनकौन से प्रोडक्ट अपने चेहरे पर लगा लेती हैं मगर सनस्क्रीन को कोई अहमियत नहीं देती हैं. याद रखिए आप कोई भी पौकेट फ्रैंडली सनस्क्रीन यूज कर सकती हैं. अगर टिंटेड सनस्क्रीन यूज करेंगी तो आप को डबल फायदा होगा. आप को फाउंडेशन लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और मेलास्मा के धब्बों को भी कवरेज मिल जाएगी. सनस्क्रीन बस दिन में एक बार नहीं हर 4 घंटे बाद लगाना आवश्यक है. अगर आप को मेलास्मा के बढ़ते कदमों को रोकना है तो सनस्क्रीन को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें.
एजियलिक ऐसिड और आर्बुटिन हैं बेहद जरूरी: एजियालिक ऐसिड और अल्फा अरबुटिन युक्त किसी भी क्रीम को आप दिन में पूरे चेहरे पर डौटडौट कर के लगा सकती हैं. ये दोनों ही माइल्ड स्किन लाइटनिंग एजेंट हैं. इस के निरंतर उपयोग से आप के मेलास्मा के धब्बे अवश्य हलके हो जाएंगे. मगर किसी भी मैडिकेटेड क्रीम का उपयोग करने से पहले आप बांहों पर पैच टैस्ट अवश्य कर लें.
नियासिनमाइड से दोस्ती भी जरूरी: किसी भी स्किन लाइटनिंग क्रीम के बाद नियासिनमाइड सीरम की 4 बूंदें आप के मेलास्मा पर डबल असरदार होंगी.
रैटिनौल है एक अचूक बाण: रात के समय रैटिनौल युक्त क्रीम अगर आप लगाती हैं तो यह मेलास्मा के साथसाथ आप की फाइनलाइंस पर भी असर करेगी. अगर आप पहली बार रैटिनौल को अपनी स्किन केयर में यूज कर रही हैं तो किसी भी ब्रैंड के माइल्ड रैटिनौल से शुरुआत करें. रोज इस्तेमाल न कर के पहले हफ्ते में 2 बार फिर 3 बार और फिर हर रोज कर सकती हैं. अगर स्किन में कोई रिएक्शन न हो तो आप इसे हर रात ताउम्र इस्तेमाल कर सकती हैं. यह एक सस्ती क्रीम है जो मेलास्मा, ऐक्ने मार्क्स, फाइनलाइंस और पिगमैंटेशन सब पर असरकारक है. याद रहे रैटिनौल बेस्ड क्रीम का इस्तेमाल दिन में भूल कर भी न करें.
लेयरिंग करें ध्यान से: स्किन केयर में लेयरिंग को ठीक से करना बेहद जरूरी है. अगर आप कोई सीरम यूज करती हैं तो सब से पहले उसे साफ चेहरे पर लगाएं. किसी भी सीरम की बस 4 बूंदें काफी हैं. सीरम को रगड़ कर नहीं थपथपा कर लगाएं. सीरम के बाद ट्रीटमैंट क्रीम वह भी डौटडौट कर के पूरे चेहरे पर लगाना अवश्य है, केवल मेलास्मा पर नहीं. इस के बाद मौइस्चर और सब से आखिर में 3 उंगलियां भर कर सनस्क्रीन, अगर टिंटेड होगा तो आप को प्रोटैक्शन के साथसाथ कलर भी देगा.
मौइस्चर के हैं अनेक फायदे: मेलास्मा के उपचार के लिए जो भी ट्रीटमैंट क्रीम है वह आप के चेहरे को थोड़ा ड्राई कर देती है. इसलिए फेस मौइस्चर लगाना बेहद जरूरी है. इस से आप के चेहरे पर नमी बनी रहेगी.
औरेंज और रैड कंसीलर से भरें जिंदगी में रंग: जब तक हमारा ट्रीटमैंट चल रहा हैं क्यों न औरेंज और रैड कंसीलर की मदद से हम मेलास्मा को गायब कर दें? किस रंग का कंसीलर चलेगा यह मेलास्मा के रंग और आप की त्वचा के रंग पर निर्भर करेगा. याद रखिए कंसीलर को थोपिए मत, थोड़ा साथ ही बहुत है. मगर आप को जो भी मेकअप करना है वह सारी ट्रीटमैंट क्रीम के बाद करना है और सनस्क्रीन को आप को अवश्य लगाना है.
सतत प्रयास ही हैं मेलास्मा की चाबी:
अपनेआप को प्यार करना न छोडि़ए. मेलास्मा हो या कोई और विकार आप की खूबसूरती बस त्वचा तक ही सीमित नहीं है. खुद की संभाल ठीक से करिए चाहे आप किसी भी आयुवर्ग की हों. मेलास्मा बुढ़ापे की निशानी नहीं, हमारी लापरवाही की निशानी है.
मेलास्मा से हार न मानें
मेलास्मा त्वचा का एक विकार है जिसे आप निरंतर प्रयास के बाद ही कंट्रोल कर सकती हैं. लेजर ट्रीटमैंट से कुछ दिनों के लिए ये गायब हो जाता है मगर लेजर के बाद एक तो हमारी स्किन पतली और सैंसिटिव हो जाती है जिस से सूर्य की किरणों का हमारी त्वचा पर पहले से भी अधिक प्रभाव पड़ता है दूसरा बहुत बार औरतें सनस्क्रीन लगाने में लापरवाही बरतती हैं जिस के कारण लेजर के बाद भी मेलास्मा वापस आ जाता है.
बताई गई ये सभी मैडिकेटेड क्रीम्स हालांकि काफी असरदायक हैं मगर अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या आप ने कभी इन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया है तो डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह एक बार अवश्य ले लें और हां सारे इनग्रीडिऐंट्स को एकसाथ रूटीन में न लाएं अगर अब तक आप ने कुछ नहीं किया है तो पहले दिन का रूटीन धीरेधीरे फौलो करें और फिर रात के रूटीन को फौलो करें. सनस्क्रीन को अगर इस्तेमाल कर रही हैं तो बहुत अच्छा है और अगर नहीं तो फटाफट कोई भी अपनी पसंद का सनस्क्रीन खरीद लीजिए.