Family Story: ‘‘उफ, कितनी गरमी है. पता नहीं कब मेरा नंबर आएगा,’’ भावना सामान्य से अधिक गरमी महसूस कर रही थी. आज उसे हौस्पिटल में भीड़ भी अधिक नजर आ रही थी. वह रूमाल से पंखा झलने की कोशिश करने लगी ताकि चेहरे पर ताजा हवा फैले और वह राहत की सांस ले. लेकिन यह हवा उसे कहां आराम दिलाने वाली थी. वह अंदर से बेचैनी महसूस कर रही थी.
‘‘पानी पियोगी? कौन सा महीना है? तुम्हारे साथ कोई और नहीं दिख रहा?’’ अचानक कई सवाल उस के पास आए तो भावना ने गरदन घुमा कर देखा. एक करीब 55-60 वर्ष की महिला पास की सीट पर बैठी उस की तरफ पानी की बोतल बढ़ाए थी. भावना ने उसे आश्चर्य से देखा.
‘‘मैं ने पूछा पानी पियोगी?’’
उस महिला द्वारा पुन: पूछने पर भावना ने उस के हाथों से बोतल ले कर पानी की कुछ घूंट गले के नीचे उतारे और राहत की सांस लेते हुए पानी की बोतल वापस उस महिला की तरफ बढ़ा दी और कहा, ‘‘थैंक्स आंटी.’’
‘‘किस के साथ आई हो? पहला बच्चा है न?’’
‘फिर से सवाल,’ भावना मन ही मन झंझला उठी लेकिन जाहिर नहीं होने दिया. बस एक छोटा सा जवाब दिया, ‘‘हां.’’
‘‘मैं तुम्हारी उम्र से समझ गई थी कि यह तुम्हारा पहला बच्चा है. अभी तो कुछ महीने बाकी होंगे डिलिवरी में? हैं न?’’ बुजुर्ग महिला भावना के पेट के उभार को देखते हुए बोली.
‘‘क्या आंटी, थोड़ा पानी क्या पिला दिया आप तो मेरा प्रेजैंट, फ्यूचर सब जानने के लिए परेशान हो गईं,’’ भावना ने जवाब दिया पर अपना यह व्यवहार उसे स्वयं अच्छा नहीं लगा. अत: बोली, ‘‘सौरी आंटी, मुझे यों जवाब नहीं देना चाहिए था. लेकिन आप मुझे इरिटेट मत कीजिए प्लीज.’’
‘‘कोई बात नहीं बेटा, मैं तो हूं ही बड़बोली. सब से बात करने लगती हूं बिना किसी जानपहचान के.’’
‘‘कृष्णा आइए,’’ अपना नाम सुन कर वह महिला डाक्टर के कैबिन में चली गई. अपना चैकअप कराने के बाद कृष्णा कैबिन से बाहर आई.
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