Tripti Dimri: फिल्म ‘बुलबुल’ में बंगाल के जमींदार पत्नी की भूमिका निभा कर चर्चित होने वाली अभिनेत्री तृप्ति डिमरी उत्तराखंड की हैं, लेकिन उन की पढ़ाई दिल्ली में हुई. उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक रहा है. मौडलिंग से उन्होंने कैरियर की शुरुआत की और फिल्मों में आज एक जानीमानी ऐक्ट्रैस बन चुकी हैं.
स्वभाव से नम्र, शांत और हंसमुख तृप्ति ने ओटीटी पर अपने अभिनय की वजह से काफी सुर्खियां बटोरी हैं. अभी उन की रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘धड़क 2’ रिलीज होने पर है, जो ग्रामीण भारत में होने वाले जातिगत अन्याय और उत्पीड़न को भी दर्शाती है, जिसे ले कर वे बहुत खुश हैं.
तृप्ति ने कई इंटेंस लव स्टोरी की है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है. वे कहती हैं कि मुझे ऐसी ही लव स्टोरी करना पसंद है, क्योंकि मैं ने अभिनय के द्वारा प्यार के कई रंगों को परदे पर उतारा है, जो मेरे लिए एक बड़ी चुनौती रही. शुरुआत में ऐसी फिल्में करने में काफी तैयारी करनी पड़ती थी, लेकिन समय के साथसाथ मैं ने खुद को ग्रो किया है. कई सारी चीजें जो पहले समझ में नहीं आती थीं, अब समझ में आती हैं. अभिनय में मैं ने काफी गलतियां भी की हैं और अब लगता है कि मैं इसे कुछ अलग तरीके से अच्छा कर सकती थी, लेकिन जैसी भी मेरी जर्नी रही, मैं इस से बहुत खुश हूं.
कमिटमैंट है तो है
किसी नए ऐक्टर के साथ इंटेंस लव सीन्स करते वक्त तृप्ति को कोई मुश्किल नहीं होती. वे कहती हैं कि निर्देशक शाजिया इकबाल ने इस बात का खास ध्यान रखा है और कई वर्कशौप करवाए हैं, ताकि ऐसी इंटीमेट सीन्स करने में कोई समस्या न हो. मेरे कोस्टार सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ मेरी अच्छी पहचान हो गई थी, केवल सिद्धांत ही नहीं, सारे ऐक्टर्स के साथ गेम खेलना, एकसाथ खाना खाने से ले कर, मजाकमस्ती करना, गेम खेलना सब साथ करते रहे.
इस से सभी का एकदूसरे से अच्छा परिचय हो गया था. हम एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जानने लगे थे. इस से फिल्म को करने में कोई समस्या नहीं हुई.
वे कहती हैं कि मुझे इस फिल्म को करते हुए कालेज के दिनों की याद आई, क्योंकि फिल्म में सीन्स भी कालेज के ही अधिक थे. मेरी कोशिश हर फिल्म में सौ फीसदी अपना कमिटमैंट देने की होती है.
बंक किए क्लासेज
तृप्ति हंसती हुई कहती हैं कि कालेज के जमाने में मेरे कितने दीवाने थे, यह कहना मुश्किल है, लेकिन थे अवश्य, जो मुझे हर प्रकार की हैल्प किया करते थे. इस के अलावा मैं म्यूजिक सोसाइटी में थी, इसलिए क्लासेज बहुत बंक किया करती थी. मैं ने 5 से अधिक क्लासेज नहीं किए हैं, क्योंकि मैं उन दिनों कालेज फैस्टिवल में भाग लेने के लिए प्रैक्टिस करती रहती थी. मुझे कभी कोई लव लेटर तो नहीं मिला, लेकिन मेरा फर्स्ट क्रश कालोनी का एक लड़का था.
रिलेशनशिप में कंप्रोमाइज नहीं
किसी रिलेशनशिप में कंप्रोमाइज को ले कर तृप्ति का कहना है कि इस की कोई सीमारेखा नहीं होती. अगर आप किसी रिश्ते को सही मानते हैं और उस रिश्ते में रहना चाहते हैं, तो उस के लिए व्यक्ति लड़ सकता है, जैसा मैं ऐक्टिंग के लिए परिवार वालों से लड़ गई, क्योंकि वे मुझे यहां आने से रोक रहे थे. उन के लिए मेरा उत्तराखंड से मुंबई आ कर काम करना, जहां कोई भी मेरे परिचय का नहीं है, समझ पाना मुश्किल था, लेकिन उस समय मेरी जिद थी कि मैं कोई गलत नहीं बल्कि सही काम कर रही हूं.
मैं ने उन्हें अपने साथ आने के लिए भी कहा, ताकि वे मेरे काम को देखें और समझें. उस हिम्मत की वजह से ही आज मैं यहां तक पहुंच पाई हूं.
सेंसर बोर्ड का अपना काम
तृप्ति के हिसाब से सेंसर बोर्ड अपना काम करती है और यह कई बार कुछ चीजों को कटवा भी देती है, क्योंकि उन के हिसाब से कोई भी संवाद या दृश्य जो दर्शकों के लिए सही नहीं, उसे हटा देना उचित मानती है और मैं इसे गलत भी नहीं मानती.
स्त्रियों की भावनाओं की कद्र जरूरी
स्त्रियों की भावनाओं की कद्र हमेशा से ही कम की जाती है, इस की वजह के बारे में पूछने पर तृप्ति कहती हैं कि यह परिवार से ही शुरू होता है. स्त्रियों को सम्मान देने और उन की भावनाओं को कद्र देने की सीख उन के मातापिता ही दे सकते हैं. हमारे पेरैंट्स ने बचपन से समान अवसर हम सभी को दिया है. अगर भाई बाहर जा सकता है तो मैं भी बाहर जा सकती हूं. बराबरी की यह आदत बचपन से ही बच्चे को घर में दी जानी चाहिए. लिंगभेद उन में नहीं आनी चाहिए, क्योंकि बचपन की सीख ही उन्हें एक अच्छा इंसान बनाती है.
मिली प्रेरणा
तृप्ति कहती हैं कि हर इंसान के अंदर अभिनय करने की इच्छा होती है. मेरे अंदर भी थी, पर बड़े परदे पर कर पाऊंगी सोचा नहीं था, क्योंकि पूरे परिवार से कोई भी फिल्म इंडस्ट्री में नहीं था. मन था, पर सोचा नहीं था. तैयारी भी नहीं थी. मेरे भाई के एक दोस्त ने मेरी फोटोग्राफी की. मेरी तसवीरें उस ने कई एजेंसियों में भेज दीं. मैं चुन ली गई और धीरेधीरे मौडल और अब ऐक्ट्रैस बनी.
मैं ने यह नोटिस किया है कि मैं सही समय पर सही जगह पहुंच जाती हूं और चीजें होती जाती थीं. फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ के समय मुझे ऐक्टिंग नहीं आती थी और मैं कुछ अलग करने की कोशिश कर रही थी. मैं ने फिल्म किया, लेकिन ‘लैला मंजनू’ के समय मैं ने ऐक्टिंग क्लासेस लिया और ऐक्टिंग से मुझे प्यार हो गया.
परिवार का सहयोग
तृप्ति के अनुसार, परिवार का सहयोग पहले नहीं था, क्योंकि उन्हें लगता था कि अकेली लड़की मुंबई जा कर कैसे रहेगी. वे डरे हुए थे. फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ को देखने के बाद उन्हें लगा कि लड़की सही दिशा में जा रही है. वे कभी नहीं चाहते थे कि मैं इस इंडस्ट्री में आ कर संघर्ष करूं और अपना समय बरबाद करूं, पर आज वे खुश हैं. मुझ से अधिक उत्साहित वे मेरी किसी भी फिल्म को देखने के लिए रहते हैं.
अंतरंग दृश्य करने में नहीं समस्या
फिल्मों में अंतरंग दृश्य करने में मुझे कोई समस्या नहीं. अगर कोई दृश्य फिल्म के लिए जरूरत है, तो उसे करने में कोई समस्या नहीं. दर्शकों के मनोरंजन की दृष्टि से डाले गए अंतरंग दृश्य करने में मैं आज भी सहज नहीं.
तृप्ति को अभी तक ड्रीम प्रोजेक्ट नहीं मिली है. उन्हें पुरानी फिल्में बहुत पसंद हैं और अभिनेत्री मीना कुमारी की बायोपिक में काम करने की इच्छा रखती हैं.