मुंबई के अंधेरी क्षेत्र के पौश इलाके लोखंडवाला में रहती हैं 26 वर्षीय स्टैंडअप कौमेडियन जैमी लीवर, जो मशहूर कौमेडियन जौनी लीवर की बेटी हैं. इन के फ्लैट की दीवारों पर चार्ली चैपलिन की विभिन्न मुद्राओं की कई आकृतियां बनी हैं जो पहचान हैं कौमेडियन के घर की. जैमी लीवर से बातचीत के दौरान पता चला कि ऐसी आकृतियों के शौकीन उन के पिता जौनी लीवर हैं. जब उन्होंने घर खरीदा था तो अपनी पत्नी से साफ कह दिया था कि घर के अंदर के इंटीरियर की जिम्मेदारी उस की है और बाहर के इंटीरियर की उन की खुद की. जैमी से बात करते समय इस बात का साफ एहसास हो रहा था कि वे कौमेडियन की बेटी हैं. उन का कौमेडी करने का ढंग बहुत हद तक अपने पिता से मिलता है. वे कहती हैं कि उन्होंने कौमेडी के क्षेत्र में आ कर ठीक ही किया. अगर किसी और क्षेत्र में जातीं तो शायद सफल न होतीं.

ऐसे हुई शुरुआत

वे अपने अतीत को याद करते हुए कहती हैं कि बचपन में जब भी कोई कार्यक्रम होता तो लोग उन्हें आगे कर देते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास होता कि ये जौनी लीवर की बेटी हैं, कुछ अवश्य कर लेंगी. इसी विश्वास से वे कौमेडी करती गईं. और जहां भी कौमेडी की, वहां हमेशा जीत भी जाती थीं. लेकिन तब सोचा नहीं था कि कौमेडी में ही कैरियर बनाना है. जैमी के मातापिता की चाहत थी कि वे पढ़ाई पूरी करें क्योंकि उन के पिता के पास शिक्षा नहीं थी. अत: जैमी ने मार्केटिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद लंदन में जौब भी की. पर उस में उन्हें खुशी और शांति नहीं मिल रही थी.उसी दौरान लंदन में थिएटर में काम करने का मौका मिला. वहां पर जैमी अंगरेजी में कौमेडी करती थीं. जैमी बताती हैं कि एक बार उन के पिता शो के लिए यूके आए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि वे स्टैंडअप कौमेडियन बनना चाहती हैं.

बेटी जैमी की बात सुन कर उन्होंने कहा कि मैं यहां शो कर रहा हूं. उस में मैं तुम्हें 10 मिनट देता हूं. अगर तुम ने प्रूव कर दिया तो तुम जो चाहती हो वही होगा. 10 मिनट जैमी के लिए काफी थे. सब को उन की कौमडी पसंद आई. इस तरह वे कौमेडियन बन गईं. जैमी ने 18 वर्ष की उम्र में पहला कौमेडी शो भारत में किया, फिर लंदन चली गईं. 23 वर्ष की उम्र में लंदन में पहली परफौर्मैंस दी. जैमी के चाचा जिमी मोजेस भी कौमेडियन हैं और जैमी और उन के भाई की इस क्षेत्र में आने में इन्होंने काफी मदद की है. जैमी को हमेशा मनोरंजक परफौर्मैंस करना अच्छा लगता है. अपने पिता के साथ बिताए हर पल को याद करती हुई वे कहती हैं कि अपने पिता की मेहनत को उन्होंने करीब से देखा है. वे रातदिन शूटिंग करते थे. आज भी वे वैसी ही मेहनत करते हैं. वे उसी लगन से कंप्यूटर, फेसबुक पर भी काम करते हैं और हमेशा किताबें पढ़ते हैं. यानी अपनेआप को अपडेट करते हैं. उन के इस परफैक्शन को जैमी अपने जीवन में उतारना चाहती हैं.

मुंबई में काम की तलाश

लंदन से मुंबई आ कर काम करना जैमी के लिए आसान नहीं था. जौनी लीवर ने अपना रास्ता खुद ही तय किया है और वैसी ही उम्मीद वे अपनी बेटी से भी रखते हैं. पहले जैमी ने इंग्लिश में कौमेडी की, जिस में ज्यादातर मिमिक्री हुआ करती थी. इस के बाद कई प्रोडक्शन हाउस में औडिशन दे कर उन्हें ‘कौमेडी सर्कस के महाबली’ में काम करने का मौका मिला. इस के अलावा कई अवार्ड शो में भी ऐंकरिंग की. इसी तरह काम आगे बढ़ा और निर्देशक अब्बास मस्तान ने उन्हें अपनी फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ में लिया. रोल छोटा था, पर सब को पसंद आया. इस फिल्म में जैमी ने हाई सोसाइटी की मुंहफट बाई की भूमिका निभाई है. जैमी अपनी कौमेडी में फूहड़ शब्दों का प्रयोग नहीं करतीं. मिमिक्री अधिकतर करीना कपूर, आशा भोसले, हेमा मालिनी, मलाइका अरोड़ा खान, मिथुन चक्रवर्ती, करण जौहर आदि की करती हैं.

व्यंग्य करते समय कोई आहत न हो, इस बात का आप कितना ध्यान रखती हैं? इस प्रश्न के उत्तर में जैमी हंसती हुई कहती हैं, ‘‘इस बात का मैं पूरा ध्यान रखती हूं, आशाजी मेरी पसंदीदा गायिका हैं. वे जिस तरह अपने होंठों को निकाल कर बातें करती हैं, गाना गाती हैं, बस उसी की नकल करती हूं. वे खुद भी मेरी कौमेडी देख कर हंसती हैं. मैं ने 8 साल की उम्र से शास्त्रीय संगीत भी सीखा है. उसे कौमेडी में भी प्रयोग करती हूं. स्टैंडअप कौमेडियन का कोई गैटअप नहीं होता. चेहरा और बातें करने का ढंग ही व्यक्ति को किसी और दुनिया में ले जाता है.‘‘मैं ने दीपिका पादुकोण के डायलौग की भी मिमिक्री की है. अपनेआप को अपडेट करने के लिए मैं पूरे विश्व की स्टडी करती हूं, किताबें पढ़ती हूं, वीडियो देखती हूं. फिर अपने लिए जोक्स बनाती हूं.’’

पिता के कौमेडियन होने की वजह से जैमी पर काफी प्रैशर रहता है, हर कोई उन से उस दर्जे की कौमेडी की अपेक्षा रखता है. वे कहती हैं, ‘‘माना कि लोगों की अपेक्षा का मुझ पर प्रैशर रहता है, पर मैं अपनी अलग पहचान कौमेडियन के रूप में बनाना चाहती हूं. बाहर वालों से अधिक घर वालों का प्रैशर रहता है. द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग न हो, ऐसी कौमेडी हो कि पूरा परिवार साथ बैठ कर आनंद उठा सके, इन सब का ध्यान रखना पड़ता है. मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक अच्छा परफौर्मर बनने के लिए एक अच्छा इनसान बनना आवश्यक है.’’ थोड़ी देर रुकने के बाद जैमी कहती हैं, ‘‘पहले मेरा नाम जैमी जानुमाला था. मैं उसी नाम को रखना चाहती थी. मैं लीवर जोड़ना नहीं चाहती थी. लेकिन मुंबई आने के बाद लोगों ने लीवर को जोड़ दिया. अब तो मुझ पर उन की कौमेडी की भी छाप दिखने लगी है.’’

भूली नहीं पिता का संघर्ष

जैमी को अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. पिता के नाम का जुड़ना भी अच्छा रहा. लेकिन उन्हें हमेशा अच्छी परफौर्मैंस के लिए तैयार रहना पड़ता है. यह अच्छी बात है कि वे दर्शकों की उम्मीद के अनुरूप काम कर पा रही हैं, क्योंकि उन के पिता ने काफी संघर्ष के बाद कामयाबी हासिल की है. पिता के गुजरे दिनों के संघर्ष के बारे में जैमी बताती हैं, ‘‘मेरे पिता 6 भाईबहनों में सब से बड़े हैं. मेरे दादाजी हिंदुस्तान लीवर में ‘लेबरर’ थे. ऐसे में मेरे पिता ने 14 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था. पूरे परिवार को उन्होंने संभाला है. उन्होंने पेन और खाना तक बेचा है. पेन बेचते समय वे अभिनेताओं की आवाजें निकालते थे. खासतौर से उस समय के हीरो अशोक कुमार की आवाज की मिमिक्री करते थे. इस तरह उन का टैलैंट बाहर आता था. मैं अपने पिता के नाम को आगे ले जाना चाहती हूं.’’ जैमी आगे स्टैंडअप कौमेडी के साथसाथ अभिनय करने की भी इच्छा रखती हैं. उन की सीरियस अभिनय करने की ख्वाहिश है, जो उन के लिए चुनौती होगी. रोहित शेट्टी, अनीस बजमी, शाहरुख खान, इम्त्याज अली आदि सभी के साथ वे काम करना चाहती हैं. अभी वे अपने पिता के साथ भी शो करती हैं.

कौमेडी करने के अलावा जैमी डांस भी सीखती हैं. गिटार बजाती हैं. उन्हें अच्छा खाना पसंद है, जिस की वजह से कई बार वजन बढ़ जाता है. वे अपने मोटापे से नहीं, बल्कि अपने जोक्स से लोगों को हंसाना चाहती हैं. वे कहती हैं कि हंसना जरूरी है. लोग पार्क में जा कर, लाफ्टर क्लब में जा कर हंसते हैं, जो सेहत के लिए अच्छा होता है. हंसना तनाव कम करता है. दरअसल, ट्रैजेडी से ही कौमेडी निकलती है

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