घर की बची नमकीन से बनाएं स्वादिष्ट मसाला समोसा

हमारे घरों में चाय नाश्ते के साथ अक्सर नमकीन खाई जाती है इनमें विविध प्रकार के सेव, आलू भुजिया, मूंगफली  और मिक्सचर शामिल होता है. बाजार से इन्हें लाने के बाद कुछ दिनों तक तो घर के सभी सदस्य बड़े स्वाद से खाते हैं परन्तु कुछ समय बाद नए नमकीन के आ जाने या दूसरा कुछ नाश्ता बन जाने पर घर के सदस्य इन्हें खाना बंद कर देते हैं. यही नहीं अक्सर घरों में भांति भांति की जरा जरा सी नमकीन और मिक्सचर डिब्बों की तली में पड़ी रह जाती है. इतने महंगे दामों पर मिलने वाली इन नमकीनों को फेंकने का भी मन नहीं करता. आज हम घर की इन्हीं बची नमकीनों से स्वादिष्ट समोसे बनाना बताएगें. इन्हें आप किसी पर्व या अवसर पर पहले से बनाकर रख सकतीं हैं क्योंकि ये 10-12 दिन तक खराब नहीं होते. होली आने वाली है तो आप इन्हें ट्राई कर सकतीं हैं.

कितने लोंगों के लिए         12

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

मैदा                          1 कप

गेहूं का आटा              1/2 कप

नीबू का रस                1 टीस्पून

नमक                         1/2 टीस्पून

अजवाइन                    1/4 टीस्पून

मोयन के लिये तेल         1 टेबलस्पून

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

सामग्री (भरावन के लिए)

आलू भुजिया              4 टेबलस्पून

मिक्सचर                     2 टेबलस्पून

सेंव                             2 टेबलस्पून

रोस्टेड मूंगफली            2 टेबलस्पून

काजू                           2 टेबलस्पून

किशमिश                     1 टेबलस्पून

चाट मसाला                  1/4 टीस्पून

सौंफ पाउडर                 1/4 टीस्पून

शेजवान सॉस (ऐच्छिक) 1 टीस्पून

विधि

मैदा में गेंहू का आटा, मोयन, नीबू का रस, अजवाइन और नमक मिलाकर पानी की सहायता से कड़ा गूंथकर आधे घण्टे के लिए सूती कपड़े से ढककर रख दें.

अब भरावन के लिए आलू भुजिया, मिक्सचर, सेंव, मूंगफली और काजू को मिक्सी में दरदरा पीस लें. ध्यान रखें कि मिश्रण एकदम पाउडर न हो जाये. इसे एक बाउल में निकालकर चाट मसाला, सौंफ पाउडर, किशमिश और शेजवान सॉस मिलाएं. तैयार मिश्रण से रोटी की लोई से छोटे बॉल्स तैयार करें. अब थोड़ी मैदा लेकर चकले पर बड़ी सी रोटी बनाएं. चाकू की सहायता से काजू कतली जैसे टुकड़े काटकर अलग कर लें. इन कटे टुकड़ों पर चारों ओर ब्रश या चम्मच से पानी लगाएं. बीच में मिश्रण की बॉल रखकर ऊपरी

सतह को फोल्ड करके दोनों कोनों को मिलाकर चारों ओर से उंगली से दबा दें ताकि किनारे चिपक जाएं. कांटे से किनारों को हल्का सा दबा दें. इसी प्रकार सारे समोसे तैयार करें. मध्यम गर्म तेल में मंदी आंच पर इन्हें सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल कर एयरटाइट जार में भरें और इच्छानुसार प्रयोग करें.

Holi 2024: मौन निमंत्रण- क्या अलग हो गए प्रशांत और प्राची

‘‘क्या प्राची, अभी तक ऐसे ही बैठी हो अस्तव्यस्त सी? मैं ने सोचा तैयार बैठी होगी तुम, ड्राइवर तुम्हें रिंकी के यहां छोड़ देगा,’’ बहुत सारी खरीदारी कर के लौटी थीं नीलाजी पर, प्राची को देखते ही उस पर बरस पड़ीं.

‘‘मेरा मन नहीं है रिंकी के यहां जाने का,’’ प्राची रिमोट से चैनल बदलते हुए बेमन से बोली.

‘‘अरे तो समझाओ अपने मन को. अपने मन पर काबू रखना सीखो. पर यहां तो उलटा ही हो रहा है. मन ही तुम्हें अपने पंजों में जकड़ता जा रहा है,’’ नीलाजी ने प्राची को समझाया.

‘‘मेरा मन मेरी सुनता कहां है मम्मी,’’ प्राची खोखली हंसी हंस दी.

‘‘ऐसा नहीं कहते. रिंकी तुम्हारी सब से प्यारी सहेली है. कितना आग्रह कर के गई थी कि मेहंदी की रस्म से ले कर विवाह की समाप्ति तक तुम्हें उस के घर में ही रहना है. तुम ने छुट्टी ले ली है. 2 महीनों से तुम्हारी तैयारी चल रही थी. ढेरों कपडे़ खरीद डाले तुम ने. फिर अचानक ऐसी बेरुखी क्यों?’’

‘‘कोई बेरुखी नहीं है. बस जाने का मन नहीं है. मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो मम्मी.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी बच्ची को? इस तरह तो तू घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाएगी. जीवन है तो उस के सुखदुख भी होंगे. रिंकी के यहां तेरी अन्य सहेलियां भी आएंगी, मन बदल जाएगा,’’ नीलाजी ने उसे जबरदस्ती उठा दिया. नीलाजी देर तक शून्य में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखती रहीं… क्या नहीं था उन के पास धन, प्रतिष्ठा और प्राची व प्रखर जैसी मेधावी संतानें. पर प्राची का विवाह होते ही जैसे इस सुख को ग्रहण लग गया. प्राची ने जब प्रशांत से विवाह का प्रस्ताव रखा था तो उन की खुशी की सीमा नहीं थी. प्रशांत था भी लाखों में एक. 35 वर्ष का प्रशांत अपनी कंपनी का सर्वेसर्वा था. उस के शालीन व सुसंस्कृत व्यवहार ने सभी का मन जीत लिया था.

पर विवाह होते ही नवविवाहित जोड़े को न जाने क्यों ग्रहण लग गया. हर बात पर दोनों का अहं टकराता. प्राची ने हनीमून के बाद से ही प्रशांत में मीनमेख निकालना जो शुरू किया तो कभी रुकी ही नहीं. पहले तो प्राची ने इन छोटीमोटी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. वह तो यही सोचती रही कि हर विवाह में एकदूसरे को जाननेसमझने में समय लगता ही है. पर जब तक वह चेती शायद बहुत देर हो चुकी थी. एक दिन अचानक ही प्राची ने घोषणा कर दी कि अब उस का प्रशांत के साथ रहना संभव नहीं है. यह सुन कर नीलाजी कुछ क्षणों तक स्तब्ध रह गईं. उन्होंने और उन के पति ने बात संभालने का भरसक प्रयत्न किया पर प्राची तो जैसे कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थी. उन्होंने प्रशांत को अलग से समझाया, पर उस का उत्तर सुन कर नीलाजी निरुत्तर हो गईं.

‘‘प्राची पढ़ीलिखी, स्वावलंबी युवती है. यदि उसे लगता है कि वह मेरे साथ नहीं रह सकती तो उसे बांध कर तो नहीं रखा जा सकता न मम्मी?’’ प्रशांत का तर्क अकाट्य था. 2 वर्षों से प्राची और प्रशांत का तलाक का केस चल रहा है. अब तो नीलाजी की यही इच्छा है कि प्राची को शीघ्र मुक्ति मिल जाए ताकि वे भी इस झमेले से छुटकारा पा सकें. प्राची का हाल तोे उन से भी बुरा है. कई बार पूछने पर ही किसी बात का उत्तर देती है. हंसनाखेलना तो वह जैसे भूल ही चुकी है. रिंकी अपने विवाह का निमंत्रणपत्र देने आई तो नीलाजी की बांछें खिल गईं. रिंकी प्राची की सब से प्रिय सहेली है. इसी बहाने प्राची कुछ लोगों से मिलेगी. कम से कम कुछ दिनों के लिए तो अपनी घुटन से बाहर निकलेगी.

पिछले 2 महीनों से प्राची रिंकी के विवाह की तैयारी में व्यस्त थी. सप्ताहांत दोनों सखियां साथ बितातीं. जब तक प्राची रिंकी के साथ रहती घर दोनों की खिलखिलाहटों से गूंजता रहता. प्राची ने मेहंदी की रस्म से ले कर विदाई तक हर अवसर के लिए अलगअलग परिधान बनवाए थे. हर परिधान के साथ मेल खाते गहने तथा पर्स खरीदे थे. तरहतरह की चप्पलों और सैंडलों का चुनाव किया गया था. सब कुछ संजो कर करीने से सूटकेस में सजा कर पैक किया था और अचानक आज विवाह में जाने से मना कर दिया. नीलाजी की विचारशृंखला टूटी तो पुन: प्राची पर नजर गई. वह अब भी समाचारपत्र में मुंह गड़ाए बैठी थी. वे कुछ कहतीं उस से पहले ही फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, रिंकी,’’ प्राची ने फोन उठा कर कहा.

‘‘कहां हो प्राची? हम सब कब से इंतजार कर रहे हैं,’’ रिंकी का स्वर उभरा.

‘‘मैं नहीं आ सकूंगी. तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ तबीयत को? यह बहानेबाजी मुझ से नहीं चलेगी. 10 मिनट में नहीं पहुंची तो मैं स्वयं आ रही हूं लेने,’’ रिंकी ने धमकी दे डाली.

‘‘अब तो जाओ वरना रिंकी यहीं आ धमकेगी,’’ नीलाजी बोलीं.

‘‘बात वह नहीं है मम्मी. मैं तो कुछ और ही सोच रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘रिंकी वहां अकेली तो होगी नहीं, घर मित्रों और संबंधियों से भरा होगा. मुझे देख कर किसी ने कुछ कह दिया तो? मेरा मतलब किसी ने आपत्ति उठाई तो?’’

‘‘आपत्ति? कैसी आपत्ति?’’ नीलाजी अचरज भरे स्वर में बोलीं.

‘‘आप समझीं नहीं, विवाह में सभी नवविवाहितों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं. वहां मेरी मौजूदगी मेरा मतलब मैं तो असफल विवाह का प्रतीक हूं न मम्मी,’’ प्राची ने किसी तरह अपनी बात पूरी की.

‘‘क्या? ऐसी बात तुम्हारे मन में आई भी कैसे? कुदरत की कृपा से प्रशांत सहीसलामत है,’’ नीलाजी स्तब्ध रह गईं.

‘‘मन में विचार मेरी इच्छानुसार थोड़े ही आते हैं. अनायास यह बात मन में कौंधी,’’ चाह कर भी प्राची अपनी भर आई आंखों को न छिपा पाई.

‘‘चलो उठ कर तैयार हो जाओ. रिंकी को तो तुम अच्छी तरह जानती हो, वह सचमुच यहां आ धमकेगी,’’ नीलाजी आदेश भरे स्वर में बोलीं.

‘‘कितनी देर कर दी प्राची, कब से तेरी राह देख रही हूं. कहा था न आज छुट्टी ले लेना,’’ रिंकी ने प्राची को देखते ही शिकायत की.

‘‘छुट्टी ली थी रिंकी पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मन को अजीब से संशय ने घेर लिया था.’’

‘‘कैसा संशय?’’

‘‘यही कि तेरे शुभ विवाह में मेरा क्या काम…’’

‘‘तेरे दिमाग में बड़ी ऊटपटांग बातें आने लगी हैं प्राची… खबरदार जो आज के बाद ऐसी बात मुंह से निकाली,’’ कह रिंकी ने उसे चुप करा दिया. मेहंदी की रस्म हंसीखुशी संपन्न हो गई. सब खानेपीने और बातचीत में व्यस्त थे पर प्राची को लगता सब उसी की बातें कर रहे हैं. रिंकी लगातार फोन करने में व्यस्त थी. बधाई देने वालों का तांता लगा था. उन से फुरसत मिलती तो सूरज का फोन आ जाता. वह अपने यहां होने वाले उत्सव का विवरण देता. फिर रिंकी उसे विस्तार से अपने मित्रों, संबंधियों और मेहंदी की रस्म के बारे में बताती. ‘‘आज रात को नृत्य और संगीत का कार्यक्रम है. प्राची मेरी अच्छी तरह फोटो लेना, मैं पूरा अलबम सूरज को भेंट करूंगी, फोटोग्राफर तो कल से आएगा,’’ रिंकी ने आग्रह किया.

‘‘ठीक है,’’ प्राची ने अनजाने ही सिर हिला दिया. वह तो अपनी ही सोच में डूबी थी. उसे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि कितनी बदल गई है वह, बिलकुल अकेली और उदास. मन में अजीब सा शून्य पसरा हुआ है. कोई फोन पर बात करने वाला भी नहीं है. अपना मोबाइल निकाल कर देर तक उस में सुरक्षित नंबरों को आगेपीछे करती रही. प्रशांत का नंबर अभी तक सुरक्षित था. सोचा फोन मिला कर देखे नंबर वही है या बदल गया है. अनजाने नंबर डायल कर दिया. उधर से प्रशांत का स्वर उभरा तो घबरा कर फोन बंद कर दिया. स्वयं पर ही क्रोध आया, प्रशांत न जाने क्या सोचता होगा. अगले दिन ढेर सारे काम थे. रिंकी की मम्मी साधनाजी ने रिंकी को ब्यूटीपार्लर ले जाने का काम उसे सौंप दिया. प्राची भी प्रसन्न थी. कम से कम लोगों की तीखी निगाहें तो नहीं झेलनी पड़ेंगी.

‘‘तेरी बूआजी तो मुझे ऐसे घूरघूर कर देख रही थीं गोया दिव्यदृष्टि से सब उगलवा लेंगी,’’ प्राची कार में बैठते ही बोली.

‘‘कौन? रमा बूआजी?’’

‘‘हां, तू कह रही थी न बड़ी अंधविश्वासी हैं वे.’’

‘‘प्राची क्या हो गया है तुझे? मैं ने किसी को नहीं बताया कि तेरा तलाक का मुकदमा चल रहा है… और तू क्या सोचती है पूरी दुनिया को केवल तेरी ही चिंता है? अरे, प्राची होश में आ. लोग अपनी उलझनों में ऐसे उलझे हैं कि किसी और के संबंध में सोचते तक नहीं,’’ रिंकी ने अपनी बातों से प्राची को दर्पण में अपनी छवि निहारने को मजबूर कर दिया था. ‘‘तू ठीक कहती है रिंकी, किसी को क्या पड़ी है मुझ जैसी तुच्छ युवती के बारे में सोचे,’’ प्राची सुबकने लगी.

‘‘यह क्या है प्राची… हर बात को अपनी सुविधानुसार मोड़ लेती है. पता है रमा बूआजी क्या कह रही थीं?’’

‘‘क्या?’’ प्राची ने आंसू पोंछ लिए थे.

‘‘कह रही थीं, तेरी सहेली तो बड़ी सुंदर है. मेरी नजर में एक बड़ा अच्छा लड़का है. उस से शादी करवाऊंगी तेरी सहेली की.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’ प्राची आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी.

‘‘मैं ने कहा कि मेरी सहेली न केवल सुंदर है वरन बहुत गुणी भी है. 50 हजार प्रति माह वेतन है उस का.’’

‘‘रिंकी तू जब भी मेरी प्रशंसा के पुल बांधती है तो मैं ठगी सी रह जाती हूं,’’ प्राची बोली.

‘‘मैं ने कुछ गलत कहा क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने यह तो नहीं कहा. सच कहूं तो तेरे जैसी मित्र पर नाज है मुझे.’’

‘‘नाज है न मुझ पर? तो प्रशांत से समझौता कर ले.’’

‘‘क्या कह रही है… तू तो हमारे केस को सुन रहे जज की तरह बात करने लगी है. पिछली सुनवाई में वे यही कह रहे थे. विवाह एक अनुबंध नहीं बंधन है बेटी. यह कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है कि आज खेला कल भूल गए.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती. वे समझौते की बात कर रहे थे पर प्रशांत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई.’’

‘‘तो क्या हुआ. तुम भी पहल कर सकती थीं. पहले आप पहले आप में तुम दोनों की गाड़ी निकल जाएगी.’’

‘‘यदि उसे मेरी जरूरत नहीं है तो मुझे भी परवाह नहीं है,’’ प्राची क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘प्राची अक्ल से काम ले. क्या बुराई है प्रशांत में, नशे में धुत्त घर लौटता है? मारतापीटता है? किसी और के चक्कर में है?’’

‘‘नहीं… नहीं… नहीं… पर वह मेरी चिंता ही नहीं करता. उस ने तो अपने काम से विवाह किया है. मेरा तो उसे जन्मदिन तक याद नहीं रहता.’’

‘‘पर विवाह से पहले तो उस के अपने काम के प्रति समर्पण पर ही तू मरमिटी थी प्राची,’’ रिंकी ने याद दिलाया.

‘‘तब की बात और थी. तब मैं नासमझ थी.’’ ‘‘अब तो समझदार हो गई है न तू. तो इस समझ का ठीक से प्रयोग क्यों नहीं करती?’’

रिंकी की बात का उत्तर दे पाती प्राची, उस से पहले ही गाड़ी ब्यूटीपार्लर के सामने रुक चुकी थी. दोनों सहेलियां नीचे उतर गईं. रिंकी से बातचीत कर के प्राची बहुत हलका महसूस करती है. यही तो खासीयत है रिंकी की. बड़ी सुलझी हुई बातें करती है. ऐसे मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. ब्यूटीपार्लर में भी प्राची की विचारधारा अनवरत चल रही थी… विवाह का दिन गहमागहमी से भरा था. सजनेधजने से रिंकी का रूप और निखर आया था.

‘‘कितनी सुंदर लग रही है रिंकी. हैं न आंटी?’’ प्राची रिंकी को एकटक देखते हुए बोली.

‘‘तुम दोनों सहेलियां सब को मात कर रहीं…’’

रिंकी की मम्मी अपनी बात पूरी कर पातीं तभी आवाजें आने लगीं कि बरात आ गई. सब उसी ओर दौड़ गए. प्राची रिंकी के पास बैठी थी.

‘‘चल, बालकनी से बरात देखते हैं. देखें तो दूल्हे के वेश में सूरज कैसा लगता है,’’ प्राची बोली.

‘‘चल, वैसे बरात में तेरे लिए भी एक आश्चर्य है,’’ रिंकी बोली.

‘‘मेरे लिए? वह क्या?’’

‘‘स्वयं ही देख लेना.’’

बालकनी में पहुंच कर प्राची हैरान रह गई. बरातियों की भीड़ में माला पहने प्रशांत भी खड़ा था.

‘‘तुम ने प्रशांत को भी आमंत्रित किया था?’’

‘‘मैं ने नहीं, सूरज ने बुलाया है, दोनों अच्छे मित्र हैं,’’ रिंकी बोली. प्राची चुप रह गई. मन में हूक सी उठी कि सब ठीक होता तो दोनों साथ ही आते. जयमाला के समय दोनों आमनेसामने पड़ ही गए.

‘‘कैसी हो प्राची? बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ प्रशांत बोला तो प्राची उसे गहरी नजरों से देखती रह गई कि अब प्रशांत को सामान्य शिष्टाचार समझ आने लगा है.

‘‘तुम भी कम सुंदर नहीं लग रहे हो,’’ प्राची ने पलट कर उत्तर दिया.

‘‘धन्यवाद, तुम्हारे मुंह से यह सुन कर बहुत अच्छा लगा,’’ कह प्रशांत मुसकराया. विवाह की अन्य रस्मों के बीच भी दोनों में आंखमिचौली चलती रही. प्रशांत कभी प्राची के लिए आइसक्रीम ले आता तो कभी और कोई खाने की चीज. प्राची झुंझला कर रह जाती. विवाह संपन्न हुआ तो मित्रों ने रिंकी और सूरज को घेर लिया. दोनों पर प्रश्नों की बौछार होने लगी. कब, कहां, कैसे मिले थे दोनों? संपर्क कैसे बढ़ा? विवाह करने का निर्णय कब लिया? दोनों हासपरिहास समझ कर हर प्रश्न का उत्तर दे रहे थे.

तभी मित्रगण आग्रह करने लगे कि दोनों एकदूसरे का नाम लेंगे.

‘‘यह कौन सा कठिन काम है रिंकी,’’ सूरज हंसते हुए बोला.

‘‘ऐसे नहीं. प्रशांत बाबू, कुछ सिखाओ अपने मित्र को,’’ मित्रों का समवेत स्वर गूंजा.

‘‘प्राची भई प्रशांत की रिंकी हुई उदास,’’ प्रशांत मुसकराते हुए बोला.

‘‘रिंकी सूरज की हुई, प्राची हुई उदास,’’ सूरज ने तुरंत ही दोहरा दिया. अब रिंकी की बारी थी पर प्राची न कुछ बोल रही थी न सुन. अपने विवाह की 1-1 घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी.

‘‘प्राची भई प्रशांत की…’’ यही तो कहा था प्रशांत ने, फिर यह अलगाव की भावना कहां से आ गई? प्राची का चेहरा आंसुओं से भीग गया. सब ने सोचा बेचारी सहेली की विदाई का दुख नहीं सह पा रही. तभी प्रशांत ने आगे बढ़ कर रूमाल पकड़ाया कि आंसू पोंछ डालो प्राची. क्या आज इस मंडप के नीचे एक और विदाई संभव है? मैं आज पुन: वचन देता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा. प्राची ने मौन स्वीकृति में नजरें उठाईं तो प्रशांत की आंखों में उभरे मौन निमंत्रण को देख कर दंग रह गई. कौन कहता है कि मौन की भाषा नहीं होती.

Holi 2024: समानांतर- क्या सही था मीता का फैसला

रात का पहला पहर बीत रहा था. दूर तक चांदनी छिटकी हुई थी. रातरानी के फूलों की खुशबू और मद्धम हवा रात को और भी रोमानी बना रहे थे. मीता की आंखों में नींद नहीं थी. बालकनी में बैठी वह चांद को निहारे जा रही थी. हवाएं उस की बिखरी लटों से खेल रही थीं. तभी कहीं से भटके हुए आवारा बादलों ने चांद को ढक लिया तो मीता की तंद्रा भंग हुई. अब चारों और घुप्प अंधेरा था. मीता उठ कर अपने कमरे में चली गई. मोहन की बातें अभी भी उस के दिल और दिमाग दोनों को परेशान कर रही थीं. बिस्तर पर करवट बदलते हुए मीता देर तक सोने की कोशिश करती रही, लेकिन नींद नहीं आई. इतनी रात गए मीता राजन को भी फोन नहीं कर सकती थी. राजन दिन भर इतना व्यस्त रहता है कि रात में 11 बजते ही वह गहरी नींद में होता है. फिर तो सुबह 7 बजे से पहले उस की नींद कभी नहीं खुलती. दोनों के बीच बातों के लिए समय तय है. उस के अलावा कभी मीता का मन करता है बातें करने का तो इंतजार करना पड़ता है. पहले अकसर मीता चिढ़ जाया करती थी. अब मीता को भी इस की आदत हो गई है. यही सब सोचतेसोचते मीता बिस्तर से उठी और कमरे के कोने में रखी कुरसी पर बैठ गई. कुछ पढ़ने के लिए उस ने टेबल लैंप जला लिया. लेकिन आज उस का मन पढ़ने में भी नहीं लग रहा था. एक ही सवाल उस के दिमाग को परेशान कर रहा था. सिर्फ 5 महीने ही तो हुए थे मोहन से मिले हुए. क्या उम्र के इस पड़ाव पर आ कर सिर्फ 5 महीने की दोस्ती प्यार का रूप ले सकती है? उस पर तुर्रा यह कि दोनों शादीशुदा. मोहन की बातों ने उस के दिमाग को झकझोर कर रख दिया था. मीता फिर से बिस्तर पर आ कर लेट गई. मोहन के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें बंद हो गईं और वह नींद की आगोश में चली गई, उसे पता ही नहीं चला.

सुबह उस ने निश्चय किया कि आज मोहन को सीधेसीधे बोल देगी कि ऐसा बिलकुल भी संभव नहीं है. मेरी दुनिया अलग है और तुम्हारी अलग. इसलिए जो रिश्ता हमारे दरम्यान है वही सही है और उसे ही निभाना चाहिए. लेकिन मोहन के सामने उस की जबान बिलकुल बंद हो गई. ऐसा लगा जैसे किसी बाह्य शक्ति ने उस की जबान को बंद कर दिया हो. मोहन ने कौफी का घूंट भरते हुए मीता से पूछा, ‘‘फिर क्या सोचा है?’’ मीता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मोहन, ऐसा नहीं हो सकता. देखो, तुम भी शादीशुदा हो और मैं भी. यह बात और है कि हम दोनों ‘डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बंधे हुए हैं. न तुम्हारी पत्नी और बच्चा यहां रहते हैं और न ही मेरे पति, लेकिन हम दोनों ही अपनेअपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं. फिर हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता तो है ही.’’ मोहन ने मीता की ओर देखे बगैर कौफी का दूसरा घूंट लिया और बोला, ‘‘मीता, शादीशुदा होने से क्या हमारा मन, प्यार सब गुलाम हो जाते हैं? क्या हमारी व्यक्तिगत पसंदनापसंद कुछ नहीं हो सकती?’’

‘‘जो भी हो मोहन लेकिन दोस्ती तक ठीक है. उस से आगे न तो मैं सोच सकती हूं और न ही तुम्हें सोचने का हक दे सकती हूं,’’ मीता थोड़ा सख्त होते हुए बोली. मोहन ने कहा, ‘‘मीता तुम अपनी बात कह सकती हो, मेरी सोच पर तुम लगाम कैसे लगा सकती हो?’’ मोहन का स्वर अब भी बेहद संयत था.मोहन की कौफी खत्म हो चुकी थी और मीता की कौफी अब भी जस की तस पड़ी थी. मोहन ने याद दिलाया, ‘‘कौफी ठंडी हो चुकी है मीता, कहो तो दूसरी मंगवा दूं?’’

मीता ने ‘न’ में सिर हिलाया और ठंडी ही कौफी पीने लगी. पूरे वातावरण में एक सन्नाटा छा गया था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई समुद्र जोरजोर से शोर मचाने के बाद थक कर बिलकुल शांत हो गया हो या फिर जैसे कोई तूफान आने वाला हो. काफी देर तक दोनों खामोश बैठे रहे. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए मोहन ने मीता से कहा, ‘‘चलो, घर छोड़ देता हूं.’’

मीता ने मना कर दिया और फिर दोनों अलगअलग दिशा में चल पड़े. मीता रास्ते भर यही सोचती रही कि आखिर उस से कहां चूक हुई? मोहन ने ऐसा प्रस्ताव क्यों रखा? लेकिन हर बार उस के मन में उठ रहे प्रश्न अनुत्तरित रह जा रहे थे. अकसर ऐसा होता है कि अगर मनमुताबिक जवाब न मिले तो व्यक्ति आत्मसंतुष्टि के लिए अपने अनुसार जवाब खुद ही तय कर लेता है. मीता ने भी खुद को संतुष्ट करने के लिए एक जवाब तय कर लिया कि वही कुछ ज्यादा ही खुल कर बातें करने लगी थी मोहन से, इसीलिए ऐसा हुआ. घर आ कर मीता ने अपने पति राजन से फोन पर ढेर सारी बातें कीं. फिर निश्चिंत हो कर अपने मन में उठ रहे गैरजरूरी विचारों को झाड़ा. वह स्वयं से बोली जैसे खुद को समझाने और आश्वस्त करने की कोशिश कर रही हो, ‘मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूं. जो तुम ने कहा वैसा कभी नहीं हो सकता मोहन, तुम देखना, जिस आकर्षण को तुम प्यार समझ बैठे हो वह जल्द ही खत्म हो जाएगा.’

ऐसा सोचने के बाद मीता की कोशिश यही रही कि वह मोहन से कम से कम मिले. हालांकि एक ही संस्थान में दोनों शिक्षक थे, इसलिए एकदूसरे से मुलाकातें तो हो ही जाती थीं. वैसे समय में उन दोनों के बीच बातें होतीं प्रोफैशन की, साहित्य की, क्योंकि दोनों को साहित्य से गहरा लगाव था. लेकिन अब मीता थोड़ी चुपचुप सी रहती, खुल कर बातें नहीं करती. मोहन भी अपनी भावनाओं को छिपाता था. उस ने उस बारे में फिर कभी कुछ नहीं कहा. एक शाम एक पत्रिका में छपे मोहन के आलेख पर चर्चा हो रही थी. आलेख निजी संबंध पर था. कुछ चीजें मीता को खटक रही थीं जिस पर उस ने आपत्ति जताई. फिर दोनों में बहस शुरू हो गई. बाकी साथी मूकदर्शक बन गए. अपना पक्ष रखते हुए मोहन ने मीता से पूछा, ‘‘क्या आप ने प्यार किया है?’’ फिर खुद ही जवाब भी देने लगा, ‘‘अगर किया होता तो फिर इस आलेख की गहराई को समझतीं और आप को आपत्ति भी नहीं होती.’’

मीता ने तल्खी से जवाब दिया, ‘‘ये कैसा बेतुका सवाल है. मैं एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति हैं जिन से मैं बहुत प्यार करती हूं. भले ही वे काम की वजह से मुझ से दूर रहते हों, लेकिन हम दोनों एकदूसरे के बेहद करीब हैं.’’ मोहन ने कहा, ‘‘फिर तो प्रेम की समझ आप में बेहतर होनी चाहिए थी.’’

मीता ने तंज कसा, ‘‘लगता है आप अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करते.’’ मोहन ने जवाब दिया, ‘‘जी नहीं, हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं. हम एक आदर्श पतिपत्नी हैं, लेकिन मैं ने उन्हें किसी और से प्रेम करने से नहीं रोका. देखो मीता, इश्क का इतिहास तहजीब की उम्र से पुराना है. विवाह करना और प्यार करना दोनों अलग चीजें हैं. मानव मन गुलाम बनने के लिए बना ही नहीं है. प्रकृति ने मनुष्य को आजाद पैदा किया है. ये सामाजिक बंधन तो हमारे बनाए हुए हैं. प्राकृतिक रूप से हम ऐसे नहीं हैं.’’ पहले तो मीता सुनती रही फिर कहा, ‘‘अपनी गलती को न्यायोचित सिद्ध करने के लिए कुछ भी तर्क दिया जा सकता है. मैं इसे प्यार नहीं मानती. मेरी समझ से यह सिर्फ अपनी जरूरत पूरी करने के लिए दिया गया एक तर्क भर है.’’

उस शाम मोहन ने अपने जीवन में आई लड़कियों की कहानियां, अपने तर्क को सच साबित करने के क्रम में सुनाईं, लेकिन मीता उस की कोई बात मानने को तैयार नहीं थी. हां, इस घटना के बाद फिर से दोनों आपस में पहले की तरह या यों कहें पहले से ज्यादा खुल कर बातें करने लगे. जाने कब वे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि जानेअनजाने दोनों की बातों में ज्यादातर दोनों का जिक्र होता. मीता को तो कई बार उस के पति राजन ने मजाक में फोन पर टोका था, ‘‘कहीं मोहन से तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया मीता?’’ तब मीता खिलखिला देती, लेकिन राजन का यह मजाक कब गंभीर आरोप में बदल गया मीता समझ ही नहीं पाई और उस दिन तो सारी हदें पार हो गईं. मीता ने अभी क्लास खत्म ही की थी कि राजन का फोन आया. उस दिन राजन के स्वर से प्यार गायब था. ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कुछ तय कर रखा हो. मीता हमेशा की तरह चहक रही थी. बातोंबातों में यह भी बोल गई कि आज दोपहर का खाना मोहन के साथ खाएगी. फिर तो जैसे शांत माहौल में तूफान आ गया.

राजन, जिस ने आज तक कभी उस से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी, आज उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा था. तब मीता अपनी सफाई में कुछ नहीं बोल सकी थी. हालांकि उस दिन के बाद इस के लिए राजन ने जाने कितनी बार माफी मांगी, लेकिन मीता के सीने में तो नश्तर चुभा था. जख्म भरना बड़ा ही मुश्किल था. वह अपनी ओर से बहुत कोशिश करती उन बातों को भुलाने की, लेकिन वे शब्द नासूर बन चुके थे. अकसर अकेले में रिसते रहते. मोहन जब तक साथ रहता मीता हंसती रहती, खुश रहती. लेकिन मोहन के जाते ही फिर से नकारात्मक सोच हावी होने लगता. इस दौरान जानेअनजाने मोहन ज्यादा से ज्यादा वक्त मीता के साथ गुजारने लगा. शायद दोनों को अब एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. दोनों के रिश्ते की गरमाहट की आंच दोनों के परिवार वालों तक पहुंचने लगी. शुरुआत मीता के परिवार में हुई और अब मोहन के घर में भी मातम मनाया जाने लगा. मीता मोहन के करीब आती जा रही थी और राजन से दूरी बढ़ती जा रही थी. मोहन का भी हाल ऐसा ही था. एक शाम मोहन ने फिर से मीता के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा साथ ही यह भी कहा, ‘‘जवाब देने की कोई हड़बड़ी नहीं है. कल रविवार है. सुबह तुम्हारे घर आता हूं. सोचसमझ लो, रात भर का समय है तुम्हारे पास.’’

मीता घर आ कर देर तक मोहन के प्रस्ताव के बारे में सोचती रही. फिर राजन के बारे में सोचा तो मुंह कसैला हो गया. यह सब सोचतेसोचते धीरेधीरे मीता की पलकें भारी होने लगीं. फिर वह यह सोचते हुए सो गई कि आखिर कल उसे मोहन को सब कुछ सचसच बताना है. मीता सूरज की पहली किरण के साथ जागी. वह बेहद ताजगी महसूस कर रही थी, क्योंकि आज उस की जिंदगी एक नई करवट ले रही थी. वह पुरानी सभी यादों को अपनी जिंदगी से मिटा देना चाहती थी. राजन की दी हुई जिस पायल की रुनझुन से उस का मन नाच उठता था आज वही उसे बेडि़यां लगने लगी थी. जिस कुमकुम की बिंदी लगा कर वह अपना चेहरा देर तक आईने में निहारा करती थी आज वही उसे दाग सी लगने लगी थी. मीता ने अपना लैपटौप खोला और राजन को सारी बातें लिख डालीं. यह भी लिखा कि जिस दिन तुम ने पहली बार मुझे शक की नजर से देखा था राजन, तब तक जिंदगी में सिर्फ तुम थे. लेकिन मेरे प्रति तुम्हारा अविश्वास और मेरे लिए वक्त नहीं होना, मुझे मोहन के करीब लाता गया. मुझे जब भी तुम्हारी जरूरत होती थी राजन, तुम मेरे पास नहीं होते थे. लेकिन मोहन हमेशा साथ रहा और इस के लिए मैं तुम्हारी हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी, क्योंकि अगर तुम ऐसा नहीं करते तो मैं मोहन की अहमियत को कभी समझ नहीं पाती. मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर जा रही हूं.

इतना लिखने के बाद मीता ने गहरी सांस ली. आज सालों बाद वह अपने को तनावमुक्त और आजाद महसूस कर रही थी. उस ने अपने पांवों से पायल को उतार फेंका और कुमकुम की बिंदी मिटा कर उस की जगह काली छोटी सी बिंदी, जो वह कालेज के दिनों में लगाया करती थी, एक बार फिर से लगा ली. मोहन अपने अंदर चल रहे तूफान पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता हुआ बैठक में मीता का इंतजार कर रहा था. इंतजार ने कौफी के स्वाद को फीका कर दिया था. लंबे इंतजार के बाद जब मीता मोहन के सामने आई तो बिलकुल पहचान में नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे अभीअभी उस ने कालेज में एडमिशन लिया हो. अपनी उम्र से 20 साल छोटी लग रही थी वह. मोहन उत्सुकता से उस के चेहरे की ओर देख रहा था. उसे अपना जवाब चाहिए था और ऐसा लग रहा था जैसे उस का जवाब मीता के चेहरे पर लिखा है.

मीता ने मुसकरा कर मोहन से कहा, ‘‘मोहन, कभीकभी सोच साहित्यिक होने लगती है. ऐसा लगने लगता है कि हम किसी कहानी का हिस्सा भर हैं. लेकिन सच कहूं मोहन, तो ऐसा लगता है कि तुम जब पहली बार उस शिक्षिका साहिबा से इश्क कर रहे थे, मेरे पास ही थे. फिर तुम जबजब जितनी भी स्त्रियों के पास गए, हर बार मेरे और पास आते गए और अब जब सारी दूरियां खत्म हो गईं हम और तुम एक हो गए. क्या ऐसा नहीं हो सकता हम किसी ऐसी जगह चले जाएं, जहां न कोई हमें पहचाने, न हम किसी को जानें. जहां न राजन हो न तुम्हारी प्रिया. बोलो मोहन, क्या ऐसा हो सकता है?’’ मोहन ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ मीता के आंसुओं से भीगे चेहरे को सांसों की गरमी देते हुए अपने हाथों में थाम लिया. थोड़ी देर बाद दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले चल पड़े एक अनजाने सफर पर जहां थोड़ा दर्द लेकिन सुकून था. खुली हवा थी, उम्मीदों से भरापूरा जीवन था.

Holi 202: होली के दुश्मन नकली रंग

होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं. यह तो देखना ही चाहिए कि जिन रंगों से हम होली खेलते हैं, क्या वे सेहत के लिए सुरक्षित भी हैं? कहीं वे सेहत को नुकसान तो नहीं पहुंचाएंगे?

कृत्रिम रंगगुलाल का सेहत पर प्रभाव

प्राकृतिक रंग और गुलाल सेहत के लिए सुरक्षित होते हैं, जबकि कृत्रिम रंग, कृत्रिम गुलाल आदि सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं. फिर भी इन्हीं का इस्तेमाल ज्यादा होता है, क्योंकि ये सस्ते भी होते हैं और आसानी से उपलब्ध भी. ऐसे रंगगुलाल से होली खेलने के दौरान हाथमुंह रंगों में रंगे होते हैं, ऐसे में कोई भी चीज आप खाते या पीते हैं तो रंगों का कुछ अंश मुंह के जरिए शरीर के अंदर पहुंच जाता है, जो किसी विष से कम घातक नहीं होता है. अधिकांश लोगों को कृत्रिम या रासायनिक रंगों से ऐलर्जी भी होती है. कुछ को तो गंभीर किस्म की ऐलर्जी हो जाती है, जिस का उपचार बड़ी मुश्किल से होता है. इस के अलावा शरीर पर छोटेछोटे दाने या फुंसियां निकलना, त्वचा में जलन, घाव, खुजली, फफोले होना तो आम बात है. यदि शरीर पर कहीं चोट या घाव है, तो उस पर लगे रंग निश्चित तौर पर हानि पहुंचाते हैं.

होली पर लोग रंग, गुलाल ही नहीं वार्निश, पेंट, तारकोल, ग्रीस आदि भी एकदूसरे के चेहरे पर लगा देते हैं. जाहिर है, ये सब त्वचा के अनुकूल नहीं होते हैं और फिर इन्हें छुड़ाना भी मुश्किल होता है.

होली खेलने से पूर्व बरतें सावधानी

होली खेलने से पूर्व शरीर पर वैसलीन या कोल्डक्रीम अच्छी तरह से लगा लें ताकि त्वचा पर रंगों का प्रभाव कम पड़े.

होली खेलने से पूर्व अपने शरीर के खुले भागों पर सरसों का तेल मल लें. चिकनाई की वजह से रंगों का त्वचा पर असर कम होगा.

नाखूनों पर नेलपौलिश लगा लें ताकि पक्के रंग नाखूनों पर न चढ़ें. बाद में नेलपौलिश रिमूवर से वह आसानी से उतर जाएगी.

होली जूते पहन कर ही खेलें. चाहें तो मौजे भी पहन लें. इस से पैर रंगों से सुरक्षित रहेंगे.

बालों को रंगों से खराब होने से बचाने के लिए उन में तेल लगा लें तथा खुला रखने के बजाय उन की चोटी या जूड़ा बना लें ताकि रंग बालों में न समाएं.

रंगों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव आंखों पर पड़ता है, इसलिए उन्हें बचाना बहुत जरूरी है. यदि कोई चेहरे पर रंग लगाने की कोशिश करे तो तुरंत आंखें बंद कर लें.

होली खेलने के लिए नायलन, पौलिऐस्टर अथवा टैरीकौट के कपड़े पहनें, क्योंकि इन पर रंग ठहरता नहीं है, इसलिए त्वचा पर असर भी कम होता है. ऐसे कपड़े पहनें जिन से आप के शरीर का अधिकांश भाग ढक जाता हो ताकि रंग सीधे तौर पर त्वचा को प्रभावित न कर सकें.

कैसे छुड़ाएं रंग

जब भी कोई आप के बालों या शरीर पर सूखा रंग डाले, तुरंत उसे झाड़ दें ताकि वह शरीर के संपर्क में ज्यादा देर न रहे.

गीले रंग को भी यदि तत्काल सूखे कपड़े से पोंछ लिया जाए तो उस का असर कम होता है और वह जल्दी छूट जाता है.

गुलाल को कभी पानी से न धोएं अन्यथा वह आप को रंगना शुरू कर देगा. बेहतर यही होगा कि उसे सूखे कपड़े से झाड़ लें. सिर में गुलाल पड़ा हो तो कंघी कर लें और फिर शैंपू से धो लें.

रंग छुड़ाने के लिए मिट्टी के तेल, चूने के पानी आदि का इस्तेमाल न करें. उसे साबुन, पानी और उबटन से ही छुड़ाएं.

गरम पानी के बजाय ठंडे पानी का इस्तेमाल करें, क्योंकि गरम पानी से रंग पक्के हो जाते हैं.

रंग छुड़ाने के लिए घटिया डिटरजैंट का इस्तेमाल भी ठीक नहीं, क्योंकि इस से त्वचा छिल सकती है.

रंग छुड़ाने के लिए नहाने वाले किसी भी साबुन का इस्तेमाल करें. साबुन से उत्पन्न झाग को कपड़े से पोंछते जाएं. इस से रंग कपड़े पर उतर जाएगा और शरीर पर लगा रंग हलका होता जाएगा.

कभी भी खुरदरे पत्थर आदि का इस्तेमाल न करें अन्यथा त्वचा छिल जाएगी.

रंग छुड़ाने का आसान तरीका है नारियल के तेल में रुई को भिगो कर उस से धीरेधीरे रंग छुड़ाएं. ऐसा करने से जलन भी नहीं होगी.

यदि त्वचा पर गहरा रंग लगा है तो बेहतर होगा कि पहले नीबू से त्वचा को साफ कर लें, फिर उबटन लगाने से रंग छूट जाएगा.

बालों के रंग निकालते समय गरदन को इस प्रकार रखें कि रंग शरीर के अन्य हिस्सों पर न पड़े.

यदि नाखूनों के भीतर रंग चढ़ जाए तो उस जगह नीबू को रगड़ें.

रंग छुड़ाने के बाद त्वचा में जलन न हो, इस के लिए दूध व हलदी का लेप लगा लें.

रंग छुड़ाने के बाद हलकी सी जलन महसूस हो तो ग्लिसरीन में गुलाबजल मिला कर जलन वाली जगह पर कुछ देर लगाएं और फिर थोड़ी देर बाद कुनकुने पानी से धो लें.

यदि एक बार में रंग न निकले तो परेशान न हों. 1-2 दिन में निकल जाएगा. एक बार में ही सारा रंग निकालने की कोशिश त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी.

ऐसे करें हर्बल रंग तैयार

रासायनिक रंगों के बजाय घर पर हर्बल रंग तैयार कर उन से होली खेलना सुरक्षित रहता है. केसरिया रंग बनाने के लिए पानी में चंदन पाउडर तथा टेसू के फूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है. गुलाबी रंग चुकंदर को रात भर पानी में भिगो कर उस से तैयार किया जा सकता है. लाल रंग बनाने के लिए लाल चंदन पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. मेहंदी पाउडर को पानी में भिगो कर हरा रंग बना सकते हैं, जबकि पीला रंग तैयार करने के लिए आटे में हलदी पाउडर मिलाया जा सकता है. गेंदे के फूलों को उबाल कर भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं. नारंगी रंग बनाने के लिए पलाश के फूलों को रात भर पानी में भिगो दें. सुबह रंग तैयार मिलेगा. यदि आप भूरा रंग चाहते हैं तो कत्थे को पानी में घोल सकते हैं. काला रंग बनाने के लिए रात को लोहे की कड़ाही में थोड़ा आंवला चूर्ण मिला दें. सुबह काला रंग तैयार मिलेगा.होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं.

Holi 2024: पलाश- अर्पिता ने क्यों किया शलभ को अपनी जिंदगी से दूर?

रखैल…बदचलन… आवारा… अपने लिए ऐसे अलंकरण सुन कर अर्पिता कुछ देर के लिए अवाक रह गई. उस की इच्छा हुई कि बस धरती फट जाए और वह उस में समा जाए… ऐसी जगह जा कर छिपे जहां उसे कोई देख न पाए. रिश्तेदार तो कानाफूसी कर ही रहे थे, पर क्या शलभ की पत्नी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकती है? वह तो उस की अच्छी दोस्त बन गई थी. फिर वह ऐसा कैसे बोल सकती है?

अर्पिता का नाम शलभ के साथ जोड़ा जा रहा था, उस के संबंध को नाजायज बताया जा रहा था. उस ने रुंधे गले से शलभ से पूछा, ‘‘सब मुझे गलत कह रहे हैं… हमारे रिश्ते को नाजायज बता रहे हैं… सच ही तो है, तुम ठहरे शादीशुदा. तुम्हारे साथ रहने का मुझे कोई अधिकार नहीं… क्या मैं सच में तुम्हारी रखैल हूं?’’

शलभ को शीशे की तरह चुभा था यह सवाल. अर्पिता की सिसकियां थम नहीं रही थीं. रोतेरोते ही बोली, ‘‘इतनी बदनामी के बाद अब मुझ से कौन शादी करेगा?’’

शलभ ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं ढूंढ़ूगा तुम्हारे लिए लड़का… तुम्हारे विवाह की सारी जिम्मेदारी मैं निभाऊंगा.’’

‘‘तुम मेरे बिना रह सकोगे?’’

शलभ अर्पिता के सवाल का जवाब देने के बजाय उस का सिर अपनी गोद में रख कर थपकियां देने लगा. थोड़ी ही देर में अर्पिता नींद में डूब गई. शलभ उस के मासूम चेहरे को देर तक देखता रहा, जो अब भी आंसुओं से भीगा था.

1-1 कर उसे अर्पिता से जुड़ी सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. यादें समुद्र की लहरों सी होती हैं. उठती हैं, गिरती हैं और फिर छोड़ जाती हैं एक खालीपन, एक एकाकीपन जिसे भर पाना मुश्किल हो जाता है…

अर्पिता रिश्ते में शलभ की कजिन थी. दोनों के बीच उम्र का बड़ा फासला भी था. उस फासले का असर दोनों के व्यक्तित्व, पसंदनापसंद में नजर आता था. शलभ के जेहन में नन्ही सी अर्पिता की धुंधली सी तसवीर थी, जबकि अर्पिता को तो शलभ बिलकुल याद नहीं था.

हो भी कैसे? तब से अब तक उस की जिंदगी ने बहुत उतारचढ़ाव देख लिए. मां गुजर गईं, पिता ने दूसरी शादी कर ली, इसे ननिहाल भेज दिया गया. जिंदगी के थपेड़ों ने उम्र के लिहाज से अनुभव थोड़ा ज्यादा दे दिया था, जो कभीकभी उस के स्वभाव से भी झलकता था.

वर्षों बाद अर्पिता शलभ से मिली थी. फिर भी उस के व्यवहार में बिलकुल भी अजनबियत नहीं दिखी. एक अपनापन था. चंद रोज में ही शलभ उस का राजदार बन गया. अर्पिता ने शलभ को अपने बचपन के प्यार के बारे में बताया. यह भी बताया कि दोनों शादी करना चाहते हैं.

‘‘घर वालों को शादी के लिए नहीं मना सकते, तो मुझे ही दिल्ली ले चलो. आसिफ वहीं नौकरी करता है. मैं भी पीजी में रहूंगी और नौकरी करूंगी. कोर्ट मैरिज करने के बाद घर वालों को बता दूंगी,’’ एक सांस में अर्पिता ने अपनी बात शलभ से कह डाली.

शलभ ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर उस की जिद के आगे हार गया.

उन दिनों शलभ दिल्ली में कार्यरत था. अच्छी कंपनी, अच्छी कमाई, खुशहाल परिवार. अर्पिता के घर में शलभ की बड़ी इज्जत थी. अर्पिता के दिल्ली जाने की बात पर उस के घर वालों को समझाना पड़ा. आखिरकार अर्पिता को दिल्ली जाने की इजाजत मिल गई.

अर्पिता को तो पंख लग गए. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह दिन भी आ गया जब शलभ के साथ अर्पिता अपने सपनों की नगरी की ओर निकल पड़ी. अर्पिता के पिता ने उस की सारी जिम्मेदारी शलभ के कंधों पर डाल थी. शलभ ने भी इस जिम्मेदारी को खुशीखुशी स्वीकार लिया था.

दिल्ली पहुंचने के बाद शलभ ने अर्पिता के रहने का इंतजाम पीजी में करा दिया. गुजरते समय के साथ ही अर्पिता ने भी दिल्ली की रफ्तार भरी जिंदगी से तालमेल बैठा लिया. शलभ अपने काम में व्यस्त हो गया. अर्पिता इस नई और पसंद की दुनिया में बेहद खुश थी. वीकैंड पर आसिफ के साथ कभी कनाट प्लेस के चक्कर लगाती तो कभी बाइक से देर रात दोनों इंडिया गेट कुल्फी खाने निकल जाते.

मार्च का महीना था. पलाश के पेड़ों में हरे पत्तों की जगह सुर्ख फूलों ने ले ली थी. यही तो वे फूल हैं, जो बचपन से ही उसे बेहद पसंद हैं, सुर्ख रंग उस का पसंदीदा. उस के घर के सामने भी पलाश का पेड़ था. दिल्ली में कहीं भी सुर्ख फूल देख कर उसे घर जैसा महसूस होता.

होली आने में बस चंद दिन ही रह गए थे. इस बार की होली को ले कर अर्पिता बेहद उत्साहित थी. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. होली से चंद रोज पहले शलभ के पास अर्पिता के अस्वस्थ होने की खबर पहुंची. शलभ पीजी पहुंचा तो अर्पिता को तेज बुखार में तड़पता पाया.

अर्पिता की रूममेट्स से पता चला कि आसिफ ने प्यार और शादी का वादा कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. एक रोज धर्म को शादी की अड़चन बता कर उसे हमेशा के लिए छोड़ गया. जिस ख्वाब को आंखों में सजाए अर्पिता दिल्ली आई थी, वह टूट चुका था. कल्पना की उड़ान में उस के पंख लहूलुहान हो चले थे.

शलभ रात भर वहीं अर्पिता के पास बैठा रहा. उस के पिता को फोन पर सारी बातें बताने की कोशिश भी की, लेकिन उन की इस में कोई दिलचस्पी नहीं थी. सूर्योदय के साथ ही शलभ अर्पिता को अपने फ्लैट में ले आया. उस ने अर्पिता की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. अर्पिता बचपन के प्यार और फिर उस से मिले धोखे से उबर नहीं पा रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के प्रेम में जातिधर्म कैसे आड़े आ गए.

संघर्ष और दुख भरा समय गुजर गया. हफ्ते भर में अर्पिता स्वस्थ हो गई. शलभ ने उसे अपने औफिस में ही नौकरी दिला दी. अर्पिता का मन भी नौकरी में रमने लगा. खाली वक्त में वह खुद को घर के कामों में व्यस्त रखने लगी. शलभ की छोटीमोटी चीजों की जिम्मेदारी भी उठा ली. सुबह उठती, चाय बनाती, फिर शलभ को उठाती, नास्ता बनाती और फिर औफिस के लिए तैयार हो जाती. दोनों साथसाथ औफिस निकल पड़ते.

शाम को शलभ के साथ घर आ जाती. जिस रात शलभ को देर तक औफिस में रुकना होता, वह तब तक जागती रहती जब तक शलभ आ नहीं जाता. रात में कभी डर जाती तो चुपके से शलभ के पास बिस्तर पर आ कर सो जाती. शलभ भी उसे थपकियां देने लगता. लेकिन दोनों के बीच एक तकिए की दूरी बनी रहती. मगर एक रात यह एक तकिए की दूरी भी खत्म हो गई.

मुश्किल दिनों का साथ अकसर मजबूत होता है. संघर्ष रिश्ते बनाता है

तो कुछ रिश्तों को कमजोर भी करता है. 3-4 हफ्ते ही बीते थे. लेकिन ऐसा लगने लगा था जैसे सदियों से दोनों साथ रह रहे हों. वे एकदूसरे का चेहरा पढ़ सकते थे. शलभ का अपने गृह शहर जाना भी कम होने लगा था. अगर घर जाता भी तो लौटने की बुकिंग अर्पिता पहले से ही करवा देती.

एक तरफ शलभ और अर्पिता के बीच का फासला कम होता जा रहा था तो दूसरी तरफ घर और परिवार से शलभ का फासला बढ़ता जा रहा था. शलभ और उस की पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट घुलती जा रही थी. कई बार तो शलभ ने अर्पिता से विवाह के बारे में भी सोचा, लेकिन हर बार उस की आंखों के सामने बेटे का मासूम चेहरा आ जाता. एक वही तो था जो उस के आने का बेसब्री से इंतजार करता था.

दोनों के घरों में व रिश्तेदारों के बीच कानाफूसी का दौर शुरू हो गया था. कानाफूसी धीरेधीरे आरोप में बदल गई और शलभ के शांत जीवन में भूचाल आ गया. रिश्तों के अग्निपथ पर चलते हुए पांवों में छाले पड़ने तो तय था, लेकिन छाले इतने दर्द भरे हो सकते हैं, इस का एहसास दोनों को अब होने लगा.

अचानक शलभ को घुटन सी महसूस हुई तो सोच का सिलसिला थम गया. शलभ ने अपनी गोद से उतार कर अर्पिता को बिस्तर पर सुला दिया और स्वयं बालकनी में आ गया. सुबह की लालिमा क्षितिज पर छाई थी. ऐसा लग रहा था जैसे ढेर सारे पलाश के फूलों को मसल कर आसमान में बिखेर दिया गया हो. शलभ सामने लगे पलाश के पेड़ को देखने लगा. उस के सारे पत्ते गिर चुके थे और लाल फूलों से लदा वृक्ष ऐसा लग रहा था जैसे नए रिश्ते बन गए हों और पुरानों से नाता टूट रहा हो.

शलभ के ऊपर एक नई जिम्मेदारी आ चुकी थी. अर्पिता के विवाह की जिम्मेदारी और इसे ले कर वह बेहद संजीदा था. शलभ ने औफिस में ही कार्य करने वाले अपने दोस्त के छोटे भाई से अर्पिता के विवाह की बात की. लड़का और उस के परिवार वालों ने इस प्रस्ताव को मान लिया. अर्पिता के हाथ पीले किए जाने की तैयारी शुरू हो गई.

पत्नी के खिलाफ जा कर शलभ ने अर्पिता की शादी की सारी जिम्मेदारी, सारा खर्च उठा लिया. शादी की तैयारी में दिन गुजरने लगे. शलभ के पास अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं रहती थी. पिता और सौतेली मां को अर्पिता की जिंदगी में कुछ खास रुचि थी नहीं. अर्पिता के लिए तो शलभ में ही उस का पूरा परिवार समाहित था.

नए रिश्ते को आत्मसात करने की जद्दोजहद में जानेअनजाने अर्पिता शलभ की उपेक्षा भी कर जाती थी. जिस अर्पिता के लिए शलभ ने अपने सभी रिश्तेदारों, यहां तक कि अपनी अर्धांगिनी से भी रिश्ता तोड़ लिया, अब वही उस से दूर होती जा रही थी. रात में देर से लौटने पर अब अर्पिता इंतजार करती नहीं मिलती थी, न ही सुबह की चाय के साथ उस की आवाज आती.

मौसम बदल रहा था. शलभ को इस का एहसास होने लगा था. वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगा था. उस ने अपने चारों ओर अकेलेपन की दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी. जल्द ही अर्पिता के विवाह का दिन भी आ गया. शलभ की संवेदनाएं जड़ हो चुकी थीं. यंत्रवत वह सारे काम करता जा रहा था.

विदाई की बेला आ गई. हमेशा चहकने वाली अर्पिता की आंखें भर आईं.

वह बिलखने लगी. कमरे की हर दीवार उस की पसंद के रंग में रंगी थी, हर परदा उस की पसंद का था. बालकनी की छोटी सी बगिया में भी उस की पसंद के ही फूल सजे थे. वह नम आंखों से उन्हें निहार रही थी.

घर के सामने उस का पसंदीदा पलाश का पेड़ अकेला खड़ा था. शलभ जड़वत था. उसे एहसास था कि उस की जिंदगी की रंगत को भी वह अपने संग लिए जा रही है, लेकिन दिल पर पड़ा बोझ उतर गया था. उस ने अपनी जिम्मेदारी जो पूरी कर दी थी.

‘आज न छोड़ेंगे’ से लेकर ‘अंग से अंग लगाना सजन’ तक, इस होली में गानों को प्लेलिस्ट में करें शामिल

Bollywood Holi Songs 2024: ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ और ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ जैसे गाने जब तक न बजे लगता ही नहीं कि होली आ गई है. इन गानों का बजना और लोगों का थिरकना जैसे किसी परंपरा की तरह हो गया है. होली के त्यौहार का उत्साह बढ़ाने में बॉलीवुड ने हमारा खूब साथ दिया है.

1958 से लेकर आज तक फिल्मों में होली के गीत फिल्माएं जाते हैं और वे सुर्खियां भी बटोरते हैं. आज हम आपको बॉलीवुड के ऐसे ही यादगार होली सांग्स के सफर पर ले चल रहे हैं जिन्होंने हमारी होली का मजा दोगुना कर दिया.

1. होली आई रे कन्हाई

साल 1958 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ का गाना ‘होली आई रे कन्हाई..’ किसे याद नहीं होगा. हमारे बुजुर्ग तो आज भी इसी गाने से होली का आगाज करते हैं.

2. आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली

‘आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली’ फिल्म ‘कटी पतंग’ (1970) से इस सदाबहार गीत को ही ले लीजिये. भला इसकी मस्ती और अल्हड़पन से कौन बच सकता है.

3. होली के दिन दिल खिल जाते हैं…

‘शोले’ (1975) फिल्म का गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं…’ होली पर जैसे सबसे पॉपुलर गीतों में से एक है. इसे सुनकर सभी जैसे होली की मस्ती में डूब जाते हैं.

4. रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..

1981 में आई फिल्म ‘सिलसिला’ का यह गीत ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..’ का तो मिजाज ही अलग है. होली की छेड़छाड़ और मस्ती को सलीके से बयां करता है. अमिताभ-रेखा, जया-संजीव कुमार पर फिल्माया यह गीत खूब गाया-सुना जाता है.

5. अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..

साल 1993 में आई फिल्म ‘डर’ का गाना ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ किसे याद नहीं होगा. फिल्म में शाहरुख के नकारात्मक रोल को आज भी याद किया जाता है.

6. होली खेले रघुवीरा..

2003 में आई फिल्म बागबान में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी पर फिल्माए गए गीत ‘होली खेले रघुवीरा..’ ने भी लोगों के दिलों को धड़का दिया.

7. डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..

साल 2005 में आई फिल्म ‘वक्त- द रेस अगेंस्ड टाइम’ में अक्षय कुमार और प्रियंका चोपडा़ पर फिल्माया गया गीत ‘डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..’ का गीत कुछ मॉर्डन टच लिए हुए था लेकिन युवाओं ने इसे काफी पसंद किया.

8. बलम पिचकारी..

साल 2013 ये ‘जवानी है दीवानी’ का गाना ‘बलम पिचकारी..’ युवाओं में लोकप्रिय है.

9. जा रे हट नटखट..

वी शांताराम की फिल्म नवरंग का गीत ‘जा रे हट नटखट..’ आज भी झूमने पर मजबूर कर देता है.

10. सोणी सोणी..

साल 2000 में आई शाहरुख-ऐश्वर्या की ‘मोहब्बतें’ फिल्म से ‘सोणी सोणी..’ सांग कौन भूल सकता है. इस गीत ने जैसे होली को फिर से रिवाइव कर दिया.

Holi 2024: राधेश्याम नाई- बेटे का क्या था फैसला

कहानी- रमेश कुमार

‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’

राजेश तो राधेश्याम का गुण गाए जा रहा था और मुझे उस का यह राग जरा भी पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि गगन टायर कंपनी वालों ने मुझे राधेश्याम का परिचय कुछ अलग ही अंदाज से दिया था.

गगन टायर का शोरूम राधेश्याम की दुकान के ठीक सामने सड़क पार कर के था. मैं उन के यहां 5 दिनों से बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट बहीखातों का निरीक्षण अपने सहयोगियों के साथ कर रहा था. कंपनी के अधिकारियों ने इस नाई के बारे में कहा था कि यह दिमाग से जरा खिसका हुआ है. अपनी ऊलजलूल हरकतों से यह बाजार का माहौल खराब करता है. चीखचिल्ला कर ड्रामा करता है और टोकने पर पड़ोसियों से लड़ता है.

इन 5 दिनों में राधेश्याम मुझे किसी से लड़ते हुए तो दिखा नहीं, पर लंच के समय मैं अपने कमरे की खिड़की से उस की हरकतें जरूर देख रहा था. उस की दुकान से लोगों की जोरदार हंसी और ठहाकों की आवाज मेरे लंच रूम तक पहुंचती थी.

इस कंपनी में मेरे निरीक्षण कार्य का अंतिम दिन था. मैं ने अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार कर के स्टेनो को दे दी थी. फोन कर के राजेश को बुलाया था. मुझे राजेश के साथ उस के घर लंच के लिए जाना था. राजेश मेरा मित्र था और मैं उस के  यहां ही ठहरा था.

राजेश मुझे लेने आया तो रिपोर्ट टाइप हो रही थी. अत: वह मेरे पास बैठ गया. राधेश्याम के बारे में राजेश के विचार सुन कर लगा जैसे मैं आसमान से नीचे गिरा हूं. तो क्या मैं अपनी आंखों से 5 दिनों तक जो कुछ देख रहा था वह भ्रम था.

पिछले दिनों काम करते हुए मेरा ध्यान नाई की दुकान की ओर बंट जाता तो मैं लावणी की तर्ज पर चलने वाले तमाशे को देखने लगता. तब एक दिन भल्ला साहब बोले थे, ‘साहब, मसखर नाई की एक्ंिटग क्या देख रहे हो, अपना जरूरी काम निबटा लो. यहां तो मटरगश्ती करने वाले लोग दिन भर बैठे रहते हैं.’

‘ऐसे लोगों के अड्डे की शिकायत पुलिस से करो,’ मैं ने सुझाव दिया.

‘हम ने सब प्रयास कर लिए,’ भल्ला साहब बोले, ‘इस की शिकायत पुलिस और यहां तक कि स्थानीय प्रशासन और मंत्री तक से कर दी है, पर इस उस्तरे वाले का बाल भी बांका नहीं होता. मीडिया के लोगों और स्थानीय नेताओं ने इस को सिर पर बैठा रखा है.’

अब राजेश ने तो मानो पासा ही पलट दिया था. रास्ते में राजेश को मैं ने टायर कंपनी के अधिकारियों की राय राधेश्याम के बारे में बताई. राजेश हंस कर बोला, ‘‘तुम इस शहर में नए हो न, इसलिए ये लोग बात को तोड़मरोड़ कर पेश कर रहे थे. दरअसल, राधेश्याम की चलती दुकान से उस के कई पड़ोसी दुकानदारों को ईर्ष्या है. वे राधेश्याम की दुकान हथिया कर वहां शोरूम खोलना चाहते हैं. अरे भई, बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, यह कहावत तो तुम ने सुन रखी है न?’’

गाड़ी चलाते हुए राजेश ने एक पल को मुझे देखा फिर कहने लगा, ‘‘टायर कंपनी वालों ने पहले तो उसे रुपयों का भारी लालच दिया. जब वह उन की बातों में नहीं आया तो उस पर तरहतरह के आरोप लगा कर सरकारी महकमों और पुलिस में उस की शिकायत की और इस पर भी बात न बनी तो अब उस के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह नाई बहुत बड़ी तोप है?’’

‘‘नहीं…नहीं…पर नगर का बुद्धिजीवी वर्ग उस के साथ है.’’

‘‘परंतु राजेश, मुझे उस अनपढ़ नाई की हरकतें बिलकुल भी अच्छी नहीं लगीं,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘तुम तो अभी इस शहर में 2 महीने और ठहरोगे. किसी दिन उस की दुकान पर ग्राहक बन कर जाना और स्वयं उस के स्वभाव को परखना,’’ राजेश ने चुनौती भरे स्वर में कहा.

मैं चुप हो गया. राजेश को क्या जवाब देता? मैं कभी ऐसी छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने के लिए नहीं गया. दिल्ली के मशहूर सैलून में जा कर मैं अपने बाल कटवाता था.

राजेश ने मुझे अपनी कार घूमनेफिरने और काम पर जाने के लिए सौंपी हुई थी. मैं भी राजेश की कंपनी का लेखा कार्य निशुल्क करता था. एक दिन मैं कार से नेहरू मार्ग से गुजर रहा था कि अचानक ही कार झटके लेने लगी और थोड़ी दूर तक चलने के बाद आखिरी झटका ले कर बंद हो गई. मैं ने खिड़की के बाहर झांक कर देखा तो गगन टायर कंपनी का शोरूम ठीक सामने था. मैं ने इस कंपनी का काम किया था, सोचा मदद मिलेगी. उन के दफ्तर में पहुंचा तो जी.एम. साहब नहीं थे. दूसरे कर्मचारी अपने कार्य में व्यस्त थे. एक कर्मचारी से मैं ने पूछा, ‘‘यहां पर कार मैकेनिक की दुकान कहां है?’’ उस ने बताया कि मैकेनिक की दुकान आधा किलोमीटर दूर है. मैं ने उस से कहा, ‘‘2-3 लड़के कार में धक्का लगाने के लिए चाहिए.’’

‘‘लेकिन सर, अभी तो लंच का समय चल रहा है. 1 घंटे बाद लड़के मिलेंगे. मैं भी लंच पर जा रहा हूं,’’ कह कर वह रफूचक्कर हो गया.

सड़क पर जाम लगता देख कर मैं ने किसी तरह अकेले ही गाड़ी को ठेल कर किनारे लगा दिया. इस के बाद पसीना सुखाने के लिए खड़ा हुआ तो देखता हूं कि राधेश्याम नाई की दुकान के आगे खड़ा हूं.

दुकान के ऊपर बड़े से बोर्ड पर लिखा था, ‘राधेश्याम नाई.’ इस के बाद नीचे 2 पंक्तियों का शेर था :

‘जाते हो कहां को, देखते हो किधर,

राधेश्याम की दुकान, प्यारे है इधर.’

मेरी निगाहें बरबस दुकान के अंदर चली गईं. 3-4 ग्राहक बेंच पर बैठे थे और बड़े से आईने के सामने रखी कुरसी पर बैठे एक ग्राहक की दाढ़ी राधेश्याम बना रहा था. आपस में हमारी आंखें मिलीं तो राधेश्याम एकदम से बोल पड़ा, ‘‘सेवा बताइए साहब, कोई काम है हम से क्या? यदि कटिंग करवानी है तो 1 घंटा इंतजार करना पड़ेगा.’’

‘‘कटिंग तो फिर कभी करवाएंगे, राधेश्यामजी. अभी तो मेरी कार खराब हो गई है और मैकेनिक की दुकान तक इसे पहुंचाना है, क्या करें,’’ मैं परेशान सा बोला.

‘‘गाड़ी कहां है?’’ राधेश्याम बोले.

‘‘वो रही,’’ मैं ने उंगली के इशारे से बताया.

‘‘आप जरा ठहर जाओ,’’ फिर दुकान से नीचे कूद कर, आसपास के लड़कों को नाम ले कर राधेश्याम ने आवाज लगाई तो 3-4 लड़के वहां जमा हो गए.

उन की ओर मुखातिब हो कर राधेश्याम गायक किशोर कुमार वाले अंदाज में बोला, ‘‘छोरां, मेरा 6 रुपैया 12 आना मत देना पर इन साहब की गाड़ी को धक्का मारते हुए इस्माइल मिस्त्री के पास ले जाओ. उस से कहना, राधेश्याम ने गाड़ी भेजी है, ज्यादा पैसे चार्ज न करे. और हां, गाड़ी पहुंचा कर वापस आओगे तो गरमागरम समोसे खिलाऊंगा.’’

राधेश्याम का अंदाज और संवाद मुझे पसंद आया. मैं ने 50 का नोट राधेश्याम के आगे बढ़ाया, ‘‘धन्यवाद, राधेश्यामजी… लड़कों के लिए समोसे मेरी तरफ से.’’

‘‘ये लड़के मेरे हैं साहब…समोसे भी मैं ही खिलाऊंगा. इन पैसों को रख लीजिए और अभी तो इस्माइल मैकेनिक के पास पहुंचिए. फिर कभी दाढ़ी बनवाने आएंगे तब हिसाब बराबर करेंगे,’’ राधेश्याम गंवई अंदाज में मुसकराते हुए बोला.

मेरी एक न चली. मैं मैकेनिक के पास पहुंचा. बोनट खोलने पर मालूम हुआ कि बैटरी से तार का कनेक्शन टूट गया था. उस ने तार जोड़ दिया पर पैसे नहीं लिए.

राधेश्याम से यह मेरी पहली मुलाकात थी जो मेरे हृदय पर छाप छोड़ गई थी. मैं ने शाम को राजेश से यह घटना बताई तो वह भी खूब हंसा और बोला, ‘‘राधेश्याम वक्त पर काम आने वाला व्यक्ति है.’’

मेरे मन का अहम कुछ छंटने लगा था इसलिए मैं ने मन में तय किया कि राधेश्याम की दुकान पर दाढ़ी बनवाने जरूर जाऊंगा.

रविवार के दिन राधेश्याम की दुकान पर मैं सुबह ही पहुंच गया. उस समय दुकान पर संयोग से कोई ग्राहक नहीं था. उस ने मुसकरा कर मेरा स्वागत किया, ‘‘आइए साहब, लगता है कि आप दाढ़ी बनवाने आए हैं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने परीक्षा लेने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘क्योंकि हर बार तो आप की कार खराब नहीं हो सकती न,’’ वह हंसने लगा.

‘‘राधेश्यामजी, पिछले दिनों मेरी कार में धक्का लगवाने के लिए शुक्रिया, पर मैं ने भी आप के यहां दाढ़ी बनवाने का अपना वादा निभाया,’’ मैं ने बात शुरू की.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, हुजूर. खाकसार की दालरोटी आप जैसे कद्रदानों की बदौलत ही चल रही है. हुजूर, देखना, मैं आप की दाढ़ी कितनी मुलायम बनाता हूं. आप के गाल इतने चिकने हो जाएंगे कि इन गालों का बोसा आप की घरवाली बारबार लेना चाहेगी.’’

‘‘अरे, राधेश्यामजी अभी तो मेरी शादी ही नहीं हुई. घरवाली बोसा कैसे लेगी.’’

‘‘हुजूर, राधेश्याम से दाढ़ी बनवाते रहोगे तो इन गालों पर फिसलने वाली कोई दिलरुबा जल्दी ही मिल जाएगी.’’

‘‘हुजूर, खाकसार जानना चाहता है कि आप कहां रहते हैं, जिंसी, अनाज मंडी, छावनी या ग्वाल टोला…’’ राधेश्याम लगातार बोले जा रहा था.

‘‘मैं जूता फैक्टरी के मालिक राजेश वर्मा का मित्र हूं और उन्हीं के यहां ठहरा हूं.’’

‘‘तब तो आप इस खाकसार के भी मेहमान हुए हुजूर. राजेश बाबूजी ने आप को बताया नहीं कि मुझ से आप अपने सिर की चंपी जरूर करवाएं. दिलीप कुमार और देव आनंद तो जवानी में मुझ से ही चंपी करवाते थे,’’ यह बताते हुए राधेश्याम ने मेरे गालों पर झागदार क्रीम मलनी शुरू कर दी थी.

फिर राधेश्याम बोला, ‘‘किशोर दा, अहा, क्या गाते थे. आज भी उन की यादों को भुलाना मुश्किल है. मैं ने किशोर कुमार और अशोक कुमार की भी चंपी की है.’’

‘‘आप शायद मेरी बात को झूठ समझ रहे हैं. मैं ने फिल्मी दुनिया की बड़ी खाक छानी है और गुनगुनाना भी वहीं से सीखा है,’’ कहते हए वह ऊंचे स्वर में गाने लगा :

‘ओ मेरे मांझी, ले चल पार,

मैं इस पार, तू उस पार

ओ मेरे मांझी, अब की बार ले चल पार…’

मुझे लगा कि मेरे गालों पर लगाया साबुन सूख जाएगा अगर यह आदमी इसी तरह से गाता रहा. आखिर मैं ने उसे टोका, ‘‘राधेश्याम, पहले दाढ़ी बनाओ.’’

‘‘हां…हां… हुजूर साहब,’’ और इसी के साथ वह मेरे गालों पर उस्तरा चलाने लगा. पर अधिक देर तक चुप न रह सका. बोल ही पड़ा, ‘‘सर, आप को पता है कि आप की दाढ़ी में कितने बाल हैं?’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने इनकार में सिर हिला दिया.

‘‘इसी तरह इस देश में कितनी कारें होंगी. किसी भी आम आदमी को नहीं पता. सड़कों पर चाहे पैदल चलने के लिए जगह न हो पर कर्ज ले कर लोग प्रतिदिन हजारों कारें खरीद रहे हैं और वातावरण को खराब कर रहे हैं,’’ राधेश्याम ने पहेली बूझी और मैं हंस पड़ा.

इस के बाद राधेश्याम अपने हाथ का उस्तरा मुझे दिखा कर बोला, ‘‘ये उस्तरा नाई के अलावा किसकिस के हाथ में है, पता है?’’

‘‘नहीं…’’ मैं अब की बार मुसकरा कर बोला.

‘‘सब से तेज धार वाला उस्तरा हमारी सरकार के हाथ में है. नित नए टैक्स लगा कर आम आदमी की जेब काटने में लगी हुई है,’’ राधेश्याम बोला.

अब तक राधेश्याम मेरी शेव एक बार बना चुका था. दूसरी बार क्रीम वाला साबुन मेरे गालों पर लगाते हुए बोला, ‘‘यह क्रीम जो आप की दाढ़ी पर लगा रहे हैं, इस का मतलब समझे हैं आप?’’

‘‘नहीं,’’ मैं बोला.

‘‘लोग आजकल बहुत चालाक और चापलूस हो गए हैं. जब अपना मतलब होता है तो इस क्रीम की तरह चिकना मस्का लगा कर दूसरों को खुश कर देते हैं किंतु जब मतलब निकल जाता है तो पहचानते भी नहीं,’’ राधेश्याम अपनी बात पर खुद ही ठहाका लगाने लगा.

मुझे राधेश्याम की इस तरह की उपमाएं बहुत पसंद आईं. वह एक खुशदिल इनसान लगा. मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं पर राधेश्याम चालू रहा और बताने लगा कि उस के घर में उस की बूढ़ी मां, पत्नी, 2 पुत्र और 1 पुत्री हैं.

पुत्री की वह शादी कर चुका था. उस का बड़ा बेटा एम.काम. कर चुका था और छोटा बी.ए. सेकंड ईयर में था. पर राधेश्याम को दुख इस बात का था कि उस का बड़ा बेटा एम.काम. करने के बाद भी पिछले 2 वर्षों से बेरोजगार था. वह सरकारी नौकरी का इच्छुक था पर उसे सरकारी नौकरी बेहद प्रयासों के बावजूद भी नहीं मिली.

अपनी दुकान से 5-6 हजार रुपए महीना राधेश्याम कमा रहा था. उस ने बेटे को सलाह दी थी कि वह दुकान में काम करे तो अभी जो दुकान 7 घंटे के लिए खुलती है उस का समय बढ़ाया जा सकता है. परंतु बेटे का तर्क था कि जब नाईगिरी ही करनी है तो एम.काम. करने का फायदा क्या था. पर राधेश्याम का कहना था कि नाईगिरी करो या कुछ और… पर काम करने की कला आनी चाहिए.

राधेश्याम की यह बात खत्म होतेहोते मेरी दाढ़ी बन चुकी थी. अब उस को अपनी असली कला मुझे दिखानी थी. उस ने अपनी बोतल से मेरे सिर पर पानी की फुहार मारी. फिर थोड़ी देर चंपी कर के सिर में कोई तेल डाला और मस्ती में अपने दोनों हाथों से मेरे सिर पर बड़ी देर तक उंगलियों से कलाबाजी दिखाता रहा.

मुझे पता नहीं सिर की कौनकौन सी नसों की मालिश हुई पर सच में आनंद आ गया. सारी थकान दूर हो गई. शरीर बेहद हलका हो गया था.

मैं राधेश्याम नाई को दिल से धन्यवाद देने लगा. उस का मेहनताना पूछा तो बोला, ‘‘कुल 20 रुपए, सरकार… यदि कटिंग भी बनवाते तो सब मिला कर 35 रुपए ले लेता.’’

मैं ने 100 का नोट निकाल कर कहा, ‘‘राधेश्याम, 20 रुपए तुम्हारी मेहनत के और शेष बख्शीश.’’

वह कुछ जवाब में कहता इस से पहले ही मैं बोल पड़ा, ‘‘देखो राधेश्याम, पहली बार तुम्हारी दुकान पर आया हूं… अनेक यादें ले कर जा रहा हूं इसलिए इसे रखना होगा. बाद में मिलने पर तुम्हारे फिल्मी दुनिया के अनुभव सुनूंगा.’’

अगले दिन ही मुझे दिल्ली लौटना पड़ा. इस के 6 माह बाद एक दिन राजेश का फोन आया कि उसे मेरी जरूरत पड़ गई है. मैं दिल्ली से राजेश के शहर में पहुंचा. 2 दिन में सारा काम निबटाया. इस के बाद दिल्ली लौटने से पहले सोचा कि राधेश्याम की दुकान पर 10 मिनट के लिए चल कर उस से मिल लूं, वह खुश हो जाएगा.

दुकान पर राधेश्याम का बड़ा लड़का मिला. वह कटिंग कर रहा था. मैं ने बड़ी व्याकुलता से पूछा, ‘‘राधेश्यामजी कहां हैं?’’

जवाब में वह फूटफूट कर रोने लगा. बोला, ‘‘पापा का पिछले महीने हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया.’’

उस के रोते हुए बेटे को मैं ने अपने सीने से लगा कर दिलासा दी. जब वह थोड़ा शांत हुआ तो मैं ने उसे अपने पिता के व्यवसाय को अपनाते देख आश्चर्य प्रकट किया. कहा, ‘‘बेटे, तुम तो यह काम करना नहीं चाहते थे? क्या तुम्हारे लिए मैं नौकरी ढूंढूं. कामर्स पढ़े हो, मेरी किसी क्लाइंट की कंपनी में नौकरी लग जाएगी.’’

‘‘नहीं, अंकल, अब नौकरी नहीं करनी. पापा ठीक कहते थे कि पढ़ाई- लिखाई से आदमी का बौद्धिक विकास होता है पर सच्ची सफलता तो अपने काम को ही आगे बढ़ाने से मिलती है. नाई का काम करने से मैं छोटा नहीं बन जाऊंगा. छोटा बनूंगा, गलत काम करने से.’’

राधेश्याम के बेटे की आवाज में आत्मविश्वास झलक रहा था.

Holi 2024: फैमिली के लिए बनाएं भांग रबड़ी

रबड़ी हर किसी को पसंद होती है और अगर होली के मौके पर बनाया जाए तो इसका स्वाद दोगुना बढ़ जाएगा. आज हम आपको भांग रबड़ी की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली और फ्रेंड्स के लिए होली के मौके पर बना सकते हैं.

हमें चाहिए

– 2 कप साधारण दूध (नियमित दूध का उपयोग करें)

– 2 कप गाढ़ा क्रीम वाला दूध (व्होल मिल्क)

– 1 बड़ा चम्मच गुलाब जल

– 1/4 कप भांग के बीज

– 1/4 कप चीनी

– 3/4 कप पानी (आवश्यकता के अनुसार समायोजित)

– 1 बड़ा चम्मच काजू

– 1 बड़ा चम्मच खरबूजे के बीज (चार मगज)

– 1/2 छोटा चम्मच केसर स्ट्रैस

– 1/2 चम्मच दालचीनी पाउडर

– 1/2 चम्मच जायफल पाउडर

– 1-2 चम्मच गुलाब की पंखुडिय़ां (गुलकंद)

– 1.5 चम्मच सौंफ पाउडर

– 1.5 चम्मच इलायची पाउडर

– 1/2 चम्मच पोस्ता बीज

– 12 बादाम

– 15 पिस्ता

– 3 काली मिर्च

बनाने का तरीका

– किसी बर्तन में दूध उबालें और उसमें केसर के स्ट्रैंड्स और भांग के बीज डाल दें.

– इसे 15 – 20 मिनट तक रहने दें.

– गर्म दूध में भिगोने से केसर का रंग और स्वाद बाहर आ जाता है.

– इसे चम्मच से हिलाते रहें, दूध में एक सुंदर पीला-केसरी रंग उतरता रहेगा.

– तब तक इसे ऐसे ही हिलाते रहें जब तक कि दूध अपनी कुल मात्रा से 20 फीसदी तक न हो जाए.

– सभी नट्स और मसालों को ग्राइंडर में पीसकर अलग रख लें.

– एक भारी तले वाले पैन में दूध उबालें.

– जब यह पूरी तरह से उबल जाए, तो मेवों और मसालों को इसमें डाल कर तब तक फेंट लें जब तक कोई     गांठ न रह जाएं.

– चीनी डालें और हिलाते रहें.

– अच्छी तरह उबाल कर आंच से उतार लें.

– पूरी तरह से ठंडा होने दें.

– ठंडा-ठंडा परोसे क्योंकि भांग रबड़ी का सबसे अच्छा स्वाद उसे खूब ठंडी करके खाने में आता है.

Holi 2024: इस होली अपने बालों को दें स्टाइलिश लुक

माना कि मेकअप से खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं, लेकिन मेकअप के साथ बालों को स्टाइलिश बनाना भी जरूरी है. इस होली आप यहां बताए गए कुछ हेयर स्टाइल टिप्स अपना सकती हैं और इस होली अपने बालों को स्टाइलिश लुक दें सकती हैं.

पोनी पर्मिंग

पर्मिंग का क्रेज युवतियों में खासा देखने को मिलता है. लेकिन क्या कभी आप ने अपने बालों में पोनी पर्मिंग ट्राई किया है? इस से आप के बालों को 100% डिफरैंट लुक मिलेगा.

कैसे करें पोनी पर्मिंग

सब से पहले बालों को अच्छी तरह धो लें. उस के बाद उन्हें 70% सुखाने के बाद स्प्रे प्रयोग करें और फिर दोबारा 90% ड्राई करें. इस के बाद एक बाउल में पर्मिंग लोशन लें. फिर बालों पर लोशन अप्लाई करने के लिए कौटन का प्रयोग करें. उस के बाद बटर पेपर को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. फिर पोनी बना कर उस में से पतलेपतले सैक्शन लें. हर सैक्शन पर अच्छी तरह कंघी करते हुए पर्मिंग लोशन अप्लाई करें. फिर बालों के ऐंड्स में अच्छी तरह बटर पेपर लपेटें ताकि किनारे अच्छी तरह कवर होते जाएं. आप जितनी अच्छी तरह बटर पेपर को बालों में लपेटेंगी कर्ल्स उतने ही अच्छे बनेंगे. सभी भागों के साथ यह प्रक्रिया दोहराएं. इस के बाद रोलर्स प्रयोग करें. फिर 40-45 मिनट बाद एक रोलर खोल कर देखें कि कर्ल्स आए या नहीं. अगर कर्ल्स दिख रहे हैं, तो रोलर्स के साथ ही बालों को सादे पानी से धोएं ताकि लोशन बालों से अच्छी तरह निकल जाए. उस के बाद 80 या 90% बालों को ड्राई करें.

ड्राई करने के बाद बालों पर न्यूट्रलाइजर लगाएं. ध्यान रखें कि न्यूट्रलाइजर हर रोलर पर अच्छी तरह लगना चाहिए. फिर 20-25 मिनट बाद सादे पानी से बालों को धो लें (सादे पानी का मतलब इस दौरान बालों में शैंपू प्रयोग नहीं करना है). अब बालों में कंडीशनर अप्लाई करें और उसे 5 मिनट के लिए छोड़ दें. उस के बाद बालों को तौलिए से 50% ड्राई करने के बाद रोलर्स खोलें और कर्ल्स पर कर्व कर्ल कंडीशनिंग क्रीम यूज करें. इस से कर्ल्स सौफ्ट रहेंगे.

पर्मिंग करते समय

  1. कलर किए बालों पर पर्मिंग करने की भूल न करें.
  2. बालों पर लोशन अप्लाई करते समय दस्ताने जरूर पहनें.
  3. कंडीशनर का प्रयोग जरूर करें, क्योंकि इस से कर्ल्स सौफ्ट रहते हैं.

रिबौंडिंग

रिबौंडिंग का मतलब होता है बालों को स्ट्रेट लुक देना. रिबौंडिंग करने के लिए सब से पहले बालों में नौर्मल शैंपू करें. नौर्मल शैंपू का मतलब कि उस में कंडीशनर न मिला हो. फिर बालों को 70% ड्राई करें. उस के बाद उन में स्प्रे प्रयोग कर के 90 या 100% ड्राई करें. अब बालों पर स्ट्रेट हेयर रिबौंडिंग क्रीम प्रयोग कर 40-45 मिनट के लिए छोड़ दें. यह बालों के टैक्स्चर पर निर्भर करेगा कि कितनी देर रिबौंडिंग क्रीम प्रयोग करनी है. उस के बाद चैक करें कि बाल बाउंस हुए हैं या नहीं. चैक करने के लिए आप एक बाल ले कर फिंगर पर लपेटें या फिर खींचें और देखें कि उस में स्प्रिंग टाइप का कर्ल शो हो रहा है या नहीं. अगर कर्ल दिखने लगे तो बालों को धो लें. फिर उन पर मास्क लगा कर 5 मिनट बाद फिर धो लें. जब बाल 50% सूख जाएं तो उन पर हीट प्रोटैक्शन स्प्रे करें और फिर दोबारा 100% सुखाएं. इस प्रक्रिया के बाद पतलेपतले सैक्शन ले कर स्ट्रेटनिंग मशीन से प्रैसिंग शुरू करें. पहले प्रैसिंग जड़ों के पास और फिर पूरी लंबाई में करें. प्रैसिंग कंप्लीट होने के बाद बालों पर न्यूट्रालाइजर क्रीम अप्लाई करें और फिर 10-15 मिनट बाद बालों को पीछे रख कर ही धो लें. अब उन में मास्क प्रयोग करें और 5-10 मिनट बाद धो कर 50% तक सुखा लें. हलके हाथों से कंघी करने के बाद 2-3 बूंदें हेयर कोट की हाथों में ले कर बालों में अप्लाई करें. फिर बड़ेबड़े सैक्शन ले कर स्ट्रेटनिंग मशीन से रिबौंडिंग को फाइनल टच दें.

ध्यान दें

  1. बालों का टैक्स्चर देख कर ही रिबौंडिंग करें.
  2. अगर स्कैल्प पर इन्फैक्शन हो तो रिबौंडिंग न करें.
  3. रिबौंडिंग करते समय एसी के सामने न बैठें.
  4. रिबौंडिंग के बाद 3 दिनों तक बालों में पानी न लगाएं और उन्हें खुला ही रखें.
  5. बाल ज्यादा रूखे हों तो रिबौंडिंग से पहले स्प्रा जरूर दें. स्प्रा का मतलब है बालों के अंदर की ड्राईनैस को रिलैक्स करना.
  6. हेयर कोट का मतलब बालों की सनस्क्रीन से है.

हाईलाइटिंग

हाईलाइटिंग का मतलब बालों की किसी लेयर में कलर हाईलाइट करना. हाईलाइटिंग करने के लिए सब से पहले बालों को नौर्मल शैंपू से धोएं. उस के बाद बालों के वे सैक्शन लें, जिन में आप को हाईलाइटिंग करना है. इस के बाद ब्लीच पाउडर लें औरउस में 9 या 12% डैवलपर मिला कर पेस्ट तैयार करें. ऊपर के बालों को अच्छी तरह बांध लें और जिस लेयर को चूज किया है उस पर तैयार पेस्ट अप्लाई करें और 10 मिनट बाद पैक करें. यह शुरुआत में ब्लौंड कलर शो करेगा. उस के बाद लेयर पर जो कलर करना है उसे अप्लाई करें. उस के बाद बालों को 30 मिनट तक यों ही छोड़ दें और फिर धो लें. फिर कंडीशनर प्रयोग कर बालों को दोबारा अच्छी तरह धो कर सुखा लें. लेयर पर हाईलाइटिंग शो होगी.

Holi 2024: होली में कलरफुल हो फैशन

होली आने से कुछ दिनों पहले से ही होली की खरीदारी होने लगती है. सब से बड़ी परेशानी यह है कि होली पर ऐसा क्या पहना जाए जो स्टाइलिश हो पर कम कीमत का हो. एक दौर वह था जब लोग अपने पुराने, खराब हुए कपड़े इसलिए संभाल कर रखते थे कि इन का प्रयोग होली के दिन रंग खेलने में करेंगे. आज के समय में होली खेलने के लिए सभी स्टाइलिश ड्रैस की तलाश करने लगे हैं.

होली के दिन अब सिर्फ होली ही नहीं खेली जाती बल्कि प्रौपर फोटोशूट भी होता है. लड़केलड़कियों में इस बात की होड़ लगी होती है कि कौन किस तरह के और कितने फैशनेबल कपड़े पहन कर आएगा और सभी फोटोज में छा जाएगा. फिर ये तसवीरें इत्मीनान से बैठ कर देखी जाती हैं, पोस्ट की जाती हैं और होली के यादगार कैप्शंस लिखे जाते हैं. वैसे आजकल तो होली खेलने से ज्यादा होली खेलने का दिखावा कर फोटोशूट और वीडियोशूट करवाने वाले युवा ज्यादा दिखाई पड़ते हैं.

लखनऊ में नजीराबाद बाजार है. यहां चिकनकारी कपड़ों की सब से ज्यादा दुकानें हैं. हर रेंज में यहां कपड़े मिल जाते हैं. फैशन डिजाइनर नेहा सिंह भी यहां पर एक दुकान से दूसरी दुकान में सस्ते मगर स्टाइलिश कपड़े देख रही थी.

नजीराबाद बाजार कैसरबाग से अमीनाबाद जाने वाली सड़क के दोनों किनारे बना हुआ है. सड़क के दोनों तरफ दुकानों में चिकनकारी के कुरतेपाजामे से ले कर साड़ी और दूसरे परिधान टंगे दिखने लगते हैं. करीब 300 मीटर लंबी इस सड़क पर चिकनकारी के साथ ही साथ स्टाइलिश फुटवियर भी मिल जाते हैं. लखनऊ का चिकन पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां सब से अधिक चिकनकारी का काम चौक बाजार में होता है. वहां थोक का काम ज्यादा है. नजीराबाद में रिटेल की दुकानें हैं. ऐसे में यहां लोगों को सब से अधिक वैराइटियों की चीजें मिल जाती हैं. यहां ऐसी नौवल्टी शौप है जहां पर ऐसी चीजें मिल जाती हैं जिन से चिकनकारी के कपड़ों को फैशन के अलग रंग दिए जा सकते हैं.

नेहा भी इसी कारण यहां होली के लिए कपड़े देखने आई थी. नेहा अपना एक बुटीक चलाती है. उस का फोकस है कि इस होली पर वह ज्यादा से ज्यादा स्टाइलिश कपड़े तैयार करेगी जिसे लोग होली में पहन सकें. इस के लिए चिकनकारी वाले कुछ ऐसे कपड़े भी वह देख रही थी जो आउट औफ सेल हों, वे सस्ते मिल जाएंगे. अपने बुटीक में ले जा कर वह इन को और भी सुंदर और स्टाइलिश बना लेगी. वह कहती है कि इस तरह वह बजट में लोगों की होली को और भी कलरफुल बना देगी.

इलाहाबाद की रहने वाली फैशन डिजाइनर प्रतिभा यादव कहती है, ‘‘होली के फैशन में लोग अच्छे और सस्ते कपड़े चाहते हैं जिस से वे रंग पड़ने से बेकार हो जाएं तो भी कोई ज्यादा फर्क न पड़े. यूथ इस में सब से पहले अपने लिए स्टाइलिश और फैशनेबल कपड़े तलाशने लगता है. आज ज्यादातर युवावर्ग औनलाइन शौपिंग करने लगा है. ऐसे में वे होली से बहुत पहले इस तरह के कपड़े तलाश करने लगे हैं जो पुराने भी न हों और ज्यादा कीमती भी न हों. होली का क्रेज रंगों की वजह से होता है. सोशल मीडिया के दौर में रंग खेलने से पहले रंग को दिखाना जरूरी होता है. लड़के तो सफेद कुरतापाजामा या पैंटटीशर्ट के साथ खुश हो जाते हैं लेकिन लड़कियां हैं जो होली के रंगों में भी फैशन के ट्रैंड को तलाश करती रहती हैं.

सब से आगे हैं लड़कियां

अनारकली का क्रेज होली पर सब से ज्यादा है और इस की डिमांड भी खूब है. लखनवी प्रिंट और लखनवी वर्क के कुरतों की डिमांड होली में सब से ज्यादा होती है. लखनवी प्रिंट वाले अनारकली सूट को पहन कर सभी लड़कियां होली में नए लुक के साथ दिखना चाहती हैं. होली के खास मौके पर सफेद व पीले रंग का अनारकली कुरता सब से ज्यादा पसंद किया जा रहा है. अनारकली कुरते की खास बात यह भी होती है कि इस को वनपीस के रूप में भी पहना जा सकता है. अनारकली कुरते के साथ ट्रेडिशनल झुमके होली में फैशन का अलग ही रंग घोल देते हैं.

कुछ लड़कियों को लगता है कि अनारकली कुरता उन की फिगर को सूट नहीं करता. वे इस होली पर लैगिंग के साथ सामान्य सा शौर्ट लखनवी कुरता या टौप पहन सकती हैं. इस के साथ कलरफुल फुल स्लीव्स वाला जैकेट पहनें. होली पर पारंपरिक सफेद कुरते के साथ जींस पहनी जा सकती है. इस की वजह यह है कि सफेद कुरते पर होली के सारे रंग नजर आ जाते हैं. आजकल लेडीज ही नहीं, टीनएज लड़कियां भी होली पार्टी में साड़ी पहन सकती हैं.

साड़ी होली पर पहनने वाला सब से बेहतरीन परिधान है. साड़ी से ट्रेडिशनल लुक भी आता है. फिल्मी होली में साड़ी सब से ज्यादा प्रयोग की जाती है. इस को पहन कर हीरोइन वाले लुक की फीलिंग आती है. साड़ी पहनने से पहले इस को सलीके के साथ पहनना सीखना जरूरी होता है. खासकर होली में क्योंकि एक बार भीगने के बाद यह शरीर से चिपकने लगती है, होली में इनरवियर कपड़े ऐसे हों जो शरीर को पूरी तरह से ढक सकें.

कालेज में होली के लिए युवाओं में एक अलग ही उत्साह होता है क्योंकि कालेज की होली ही असल फैशन रैंप वाली होली होती है. लड़कियां शौर्ट्स, ट्राउजर्स और स्टाइलिश टीशर्ट्स पहन कालेज पहुंचती हैं. कुछ कालेजों में होली के दिन रेन डांस थीम भी रखा जाता है जिस का मजा लेने से युवा नहीं चूकते. वे फैशन का पूरापूरा ध्यान रखते हैं ताकि कुछ हो न हो, इंस्टाग्राम के लिए तसवीरें तो आ ही जाएं.

डिजाइनर नेहा सिंह कहती है कि होली में 2 तरह के कपड़े प्रयोग करने होते हैं, एक जिन को पहन कर होली खेल सकें और दूसरे जिन को पहन कर होली मिलन कर सकें. दोनों ही तरह के कपड़े स्टाइलिश और फैशनेबल होने चाहिए. रंग खेलने वाले कपड़े सस्ते होने चाहिए. ऐसे में होली के रंगों पर भी अब फैशन का रंग चढ़ गया है. होली केवल रंगों से भरा त्योहार नहीं रह गया अब यह बाजार बन गया है.

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