अदिति गुप्ता : मासिकधर्म से जुड़ी शिक्षा से लड़कियों को प्रभावित कर रहीं

अदिति गुप्ता एक ऐसा नाम है जिस ने लीक से हट कर समाज की सोच बदलने का जज्बा दिखाया और इस के लिए हर संभव कोशिश की. अहमदाबाद के ‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ डिजाइन’ की पूर्व छात्रा अदिति गुप्ता पिछले 12 वर्षों से मैंस्ट्रुअल ऐजुकेटर की भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने मैंस्ट्रुपीडिया की सहस्थापना की. बचपन में पीरियड्स से जुड़े स्टिग्मा का सामना करने के बाद उन्होंने इसी फील्ड में कुछ करने की ठानी. उन्हें एहसास था कि इस विषय पर बातचीत करते समय लोग काफी असहज महसूस करते हैं.

पीरियड्स को ले कर लोगों के बीच काफी अंधविश्वास है और इस वजह से लड़कियों को काफी कुछ सहना पड़ता है. इसलिए अदिति ने मैंस्ट्रुपीडिया के माध्यम से मासिकधर्म से जुड़े मिथकों और वर्जनाओं के बारे में लोगों को शिक्षित करने का फैसला लिया. मैंस्ट्रुपीडिया एक ऐसी पहल है जो मासिकधर्म को कलंकमुक्त करने के लिए कौमिक पुस्तकों और संबंधित मीडिया का उपयोग करती है.

मैंस्ट्रुपीडिया की स्थापना

गढ़वा,  झारखंड में जन्मी अदिति गुप्ता अपने समाज में मासिकधर्म को ले कर व्यापक कलंक और गलत धारणाओं को देखते हुए बड़ी हुईं. एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया के प्रति संकीर्ण सोच और वर्जनाओं के खिलाफ उन्होंने जंग लड़ने और लोगों को जागरूक करने का फैसला लिया और इसी क्रम में 2012 में अदिति गुप्ता और उन के पति तुहिन पौल ने मैंस्ट्रुपीडिया की सहस्थापना की. अदिति का विजन मासिकधर्म के बारे में बातचीत को सामान्य बनाना, कलंक को कम करना और लड़कियों और महिलाओं को ज्ञान के साथ सशक्त बनाना है.

अदिति को मासिकधर्म पर खुल कर चर्चा करते समय सामाजिक प्रतिरोध और संदेह का सामना करना पड़ा खासकर रूढि़वादी समुदायों में. मैंस्ट्रुपीडिया के जरीए बच्चों, मातापिताओं और शिक्षकों को संवेदनशील तरीके से मासिकधर्म के बारे में शिक्षित करने के लिए कौमिक पुस्तकों, कार्यशालाओं और डिजिटल सामग्री का उपयोग शुरू किया. मैंस्ट्रुपीडिया कौमिक अब भारत और दुनियाभर के 20+ देशों के स्कूलों और घरों में एक विश्वसनीय साथी के रूप में पहुंच रही है.

मासिकधर्म से जुड़ी शिक्षा 13 हजार से अधिक स्कूलों तक पहुंच चुकी है और मैंस्ट्रुपीडिया कौमिक्स और कार्यशालाओं के माध्यम से 1.5 मिलियन से अधिक लड़कियों को प्रभावित कर रही है.

सफलता की कहानी

अदिति फोर्ब्स इंडिया 30 अंडर 30 अचीवर हैं. उन्हें 2015 में बीबीसी की 100 सब से प्रभावशाली महिलाओं में से एक नामित किया गया था और वे शार्क टैंक इंडिया विजेता संस्थापक हैं. उन्हें 7 देशों में मासिकधर्म स्वास्थ्य और जागरूकता के क्षेत्र में अपने काम के मौडल को सा झा करने के लिए आमंत्रित किया गया है. उन्होंने थौमसन राइटर्स फाउंडेशन ट्रस्ट महिला सम्मेलन लंदन में ब्रेकिंग टैबू पैनल पर भी बात की. बिजनैस टुडे ने समाज में बदलाव लाने के लिए काम करने के लिए उन्हें बीटी के सब से शक्तिशाली महिला प्रभाव पुरस्कारों से सम्मानित किया.

गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड

प्रेरणादायी और अचीवर महिलाओं के काम को सम्मानित करने के लिए इस 20 मार्च को दिल्ली के त्रावणकोर पैलेस में अवार्ड समारोह का आयोजन हुआ जिस में अदिति गुप्ता को होमप्रैन्योर अचीवर (गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड) से नवाजा गया. इस अवार्ड को पा कर अदिति के चेहरे पर जो मुसकान थी वह उन की सफलता की कहानी कह रही थी.

Periods के दौरान क्या खाना सही रहता है और क्या गलत, यहां जानिए…

अकसर महिलाओं को पीरियड्स (Periods) में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में खाने की कुछ ऐसी चीजें हैं जिन से आप को परेशानियों से कुछ राहत मिलेगी. आमतौर पर पीरियड्स में महिलाओं को इन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है- पेट में क्रैंप या ऐंठन, सिरदर्द, थकावट, मितली, सूजन, मूड चेंज, हलका बुखार और दस्त.

पीरियड्स में क्या खाएं

हाइड्रेटेड रखने वाले फल और सब्जियां: तरबूज, खीरा, स्ट्राबैरी, आड़ू, नारंगी, पत्तागोभी आदि हरी पत्तेदार सब्जियां, साथ में पर्याप्त पानी पीएं. इस से सिरदर्द, थकावट और बौडी पेन से बचा जा सकता है.

जिंजर टी: अदरक की चाय से मितली और मांसपेशियों के दर्द में फायदा होता है, साथ में यह ऐंटीइनफ्लैमेटरी भी होता है. ध्यान रहे ज्यादा अदरक से सीने में जलन हो सकती है.

आयरन, प्रोटीन और ओमेगा 3 वाले खाद्य: चिकन से पर्याप्त प्रौटीन और आयरन मिलेगा और मछली से साथ में ओमेगा 3 भी. पीरियड्स में आयरन कम होने की संभावना होती है जिस से बचा जा सकता है. आयरन की कमी से थकावट होती है.

हलदी और करक्यूमिन: हलदी में मौजूद करक्यूमिन से ही यह ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइनफ्लैमेटरी होता है. करक्यूमिन के कैप्सूल भी आते हैं. देखा गया है पीरियड्स के सिंप्टम्स में यह बहुत फायदा पहुंचाता है. यह डिप्रैसन में काम करता है जिस से मूड अच्छा रहता है.

डार्क चौकलेटस: डार्क चौकलेट में प्रचुर मात्रा में आयरन और मैग्नीशियम होता है. 100 ग्राम के डार्क चौकलेट से 67% आयरन और 58% मैग्नीशियम की एक दिन की जरूरत पूरी होती है. पीरियड्स में इन मिनरल्स की संभावित कमी से बचा जा सकता है.

नट्स: बादाम, काजू, अखरोट आदि नट्स से पर्याप्त प्रोटीन और ओमेगा 3 मिलते हैं. अगर आप सीधे तौर पर नहीं खाना चाहती हैं तो इन्हें स्मूदी में मिला कर पीएं या बादाम युक्त दूध पी सकती हैं.

दूध और दही: कुछ महिलाओं को पीरियड्स में यीस्ट इन्फैक्शन होता है. ऐसे में दही एक अच्छा प्रोबायोटिक है. यह पाचनक्रिया और यीस्ट इन्फैक्शन में मदद करने के साथसाथ वैजाइना में अच्छे बैक्टीरिया का पोषक है. दूध और दही से शरीर को प्रोटीन और कैल्सियम भी मिलता है.

किनोआ, दालें और बींस: इन में आयरन, प्रोटीन और मैग्नीशियम होता है. विशेषकर शाकाहारी लोगों के लिए मांस का अच्छा विकल्प है.

पिपरमिंट टी: पीरियड्स में पिपरमिंट टी बहुत अच्छी होती है. यह मितली, दस्त और क्रैंप सभी में फायदा करती है.

पीरियड्स में क्या न खाएं 

नमक: ज्यादा नमक वैसे भी नहीं खाना चाहिए. पीरियड्स में ज्यादा नमक खाने से शरीर में पानी जमा होता है जिस के चलते ब्लोटिंग (पेट में सूजन या टाइटनैस) होती है. ऐसे में फास्ट प्रोसैस्ड फूड नहीं खाना चाहिए.

चीनी: पर्याप्त मात्रा में शुगर बुरी नहीं है पर शुगर ज्यादा होने से मूड स्विंग होता है.

अल्कोहल: पीरियड्स में अल्कोहल का सेवन न करना ही बेहतर है. अल्कोहल से पीरियड्स की परेशानियां बढ़ जाती हैं जैसे डिहाइड्रेशन, मितली, दस्त और सिरदर्द. इस के हैंगओवर से थकान भी महसूस होती है.

कौफी: अगर आप कौफी पीने की आदी हैं तो इसे कम से कम लें. हो सके तो 1 या 2 कप ही लें. कौफी से पाचनक्रिया पर असर पड़ता है. कौफी से शरीर में पानी की अनावश्यक मात्रा जमा होने की संभावना रहती है जिस के चलते ब्लोटिंग की समस्या होती है.

मसालेदार खाना: नौर्मल मसाला खाया जा सकता है पर जिन्हें ज्यादा मसाला खाने की आदत होती है वे इसे कम करें. ज्यादा स्पाइसी फूड से पाचनक्रिया पर असर पड़ता है जैसे पेट में दर्द, दस्त और मितली या उलटी की संभावना रहती है.

रैड मीट: रैड मीट में आयरन तो होता है पर इस में प्रोस्टाग्लैंडीन हारमोन बहुत ज्यादा होता है जिस से क्रैंप बढ़ने की संभावना रहती है.

जो खाने आप के लिए सुपाच्य नहीं हैं: कुछ खाने की चीजों जिन के आप अभ्यस्त नहीं हैं या जिन्हें आप पचा नहीं सकती हैं उन्हें न खाएं. इस से कब्ज, दस्त, मितली, उलटी और अनपच हो सकती है और आप की परेशानियां बढ़ सकती हैं.

अनियमित Periods का समय पर जरूरी है इलाज

देश में 33% महिलाएं अनियमित पीरियड्स की समस्या की शिकार हैं. कभी देरी से पीरियड तो कभी समय से पहले पीरियड्स का आ जाना उन के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है, जिसके कारण उनके स्ट्रैस लेवल में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिलती है. आइए जानते हैं अनियमित पीरियड्स के लिए कौनकौन से कारण हैं जिम्मेदार:

स्ट्रैस बड़ा कारण: आज की भागतीदौड़ती जिंदगी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा व अपने खानपान का सही से ध्यान नहीं रखने के कारण हमारे स्ट्रैस का लेवल बढ़ने के साथसाथ शरीर में हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने लगता है. जिसमें सबसे अहम हार्मोन्स हैं प्रोजेस्टोरोन, एस्ट्रोजन जिनकी वजह से पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. क्योंकि स्टै्रस से इनका स्तर गिरता है, जबकि प्रोजेस्टोरोन का बढ़ता स्तर ही पीरियड्स को रेगुलर करने का काम करता  है. इसी हार्मोन की वजह से यूटरस की लाइनिंग थिक होकर आपका यूटरस प्रैगनैंसी के लिए तैयार होता है. और इसमें गड़बड़ी बिलकुल ठीक नहीं है.

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: पीसीओडी ये नाम तो आपने सुना ही होगा. क्योंकि ये समस्या आजकल हर दूसरी महिला को है. इसकी वजह से न सिर्फ पीरियड्स अनियमित होते हैं बल्कि पीरियड्स के दौरान पेट के निचले हिस्से में असहनीय दर्द के साथ इनफर्टिलिटी की समस्या भी हो जाती है. यहां तक कि वजन में तेजी से बढ़ोतरी होने के साथसाथ चेहरे पर अनचाहे बाल उग आते हैं, जो कोन्फिडेन्स को भी कम करने का काम करते हैं.

फाइब्रोइड: ये अकसर यूटरस की लाइनिंग के बाहर या अंदर होता है. ये जरूरी नहीं कि हर फाइब्रोइड आगे चलकर  कैंसर ही बने, लेकिन अगर आपके पीरियड्स देरी से आते हैं, पीरियड्स के दौरान काफी दर्द महसूस हो, खून की भी कमी हो, सैक्स के दौरान या पीरियड्स आने से पहले निचले हिस्से में काफी दर्द हो तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं, क्योंकि इसका कारण फाइब्रोइड हो सकता है. जिसे समय पर इलाज से कंट्रोल किया जा सकता है.

एंडोमेट्रिओसिस: यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें टिशू आमतौर पर गर्भाशय में नहीं बल्कि गर्भाशय से बाहर बढ़ते हैं. इसके कारण पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग, कमर दर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द होने के साथ पीरियड्स सर्किल सामान्य नहीं होता है. साथ ही समय पर इलाज नहीं होने पर ये बांझपन का भी कारण बन जाता है.

थाइरोइड की शिकायत: अधिकांश उन महिलाओं में पीरियड्स अनियमित होने  की शिकायत देखी गई है, जिन्हें थाइरोइड की शिकायत होती है. इस स्थिति में पीरियड्स समय पर नहीं होना, वजन में बढ़ोतरी की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है.

ज्यादा वजन होना: ज्यादा वजन होने से हार्मोन्स में गड़बड़ी होने व इन्सुलिन के लेवल पर प्रभाव पड़ता है. यह पीरियड्स सर्किल को बिगाड़ने का काम करता है.

क्या है उपचार

– अगर आपका पीरियड्स सर्किल 2-3 महीने से गड़बड़ाया हुआ है तो डाक्टर होर्मोन्स संबंधित कुछ जरूरी टेस्ट करवाते हैं.

– फाइब्रोइड, सिस्ट का पता लगाने के लिए पेल्विक अल्ट्रासाउंड करवाया जाता है.

– एंडोमेट्रिल बायोप्सी के जरीए यूटरस की लाइनिंग से टिशू को लेकर अनियमित सेल्स व एंडोमेट्रिओसिस के बारे में पता लगाया जाता है.

– डाक्टर सारी रिपोर्ट्स व नतीजों के बाद जरूरत होने पर हार्मोनल थेरैपी, सर्जरी करवाने की सलाह, पीरियड्स रेगुलर करने वाली मेडिसिन्स देते हैं.

इन्हें अपनी डाइट में करें शामिल 

– पपीते में कैरोटीन नामक तत्त्व होता है, जो एस्ट्रोजन हार्मोन के लेवल को ठीक करके आपके पीरियड सर्किल को ठीक करने का काम करता  है.

– हलदी में एंटीइंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होने के कारण ये हार्मोन्स को बैलेंस में करने के साथसाथ पीरियड्स के दर्द से भी राहत दिलवाने का काम करती है.

– चुकुंदर में फोलिक एसिड व आयरन होने के कारण ये हीमोग्लोबिन के लेवल को बढ़ाकर अनियमित पीरियड्स की प्रौब्लम को ठीक करता है.                  –

  यंग मदर्स के हैल्थ इशूज

अगर आप भी स्वस्थ शरीर का साथ पाना चाहती हैं, तो यह जानकारी आप के लिए ही है…

फ्रीज करवाएं एग आमतौर पर महिलाओं में गर्भधारण की वैज्ञानिक उम्र 20 से 30 साल के बीच मानी जाती है लेकिन कैरियर को ध्यान में रख कर आज की महिला जल्दी मां नहीं बनना चाहतीं. लेकिन एक उम्र के बाद मां बनने में कौंप्लिकेशन आ सकते हैं.

वहीं दूसरी ओर ऐसी कई महिलाएं हैं जो 30+ की उम्र में गर्भधारण करने में असमर्थ होती हैं. ऐसे में वे एग फ्रीज का रास्ता अपना सकती हैं ताकि बाद में उन्हें किसी तरह की प्रौब्लम न आए. एग फ्रीजिंग को मैडिकल भाषा में  क्रायोप्रिजर्वेशन कहते हैं. इस प्रकिया में महिला अपने अंडाणु को 10-15 साल के लिए भी फ्रीज करवा सकती है.

युवा महिलाओं के लिए अपने अंडे फ्रीज करवाना अब आम बात हो गई है. कई फेमस सैलिब्रिटीज जैसे प्रियंका चोपड़ा, तनीषा मुखर्जी, एकता कपूर और राखी सांवत ने अपने एग फ्रीजिंग का रास्ता चुना है.

काया भटनागर जब औफिस जाने के लिए अपनी कार में बैठ रही थी तो अचानक उस की कमर में तेज दर्द हुआ. यह दर्द उसे पहली बार नहीं हुआ, इस से पहले भी 2 बार उसे इस दर्द का सामना करना पड़ा था. लेकिन उस ने इसे इग्नोर किया और अब उस की यह समस्या दिनबदिन बढ़ती जा रही है. ऐसा नहीं है कि काया की उम्र 40-45 साल है. इसलिए वह यह प्रौब्लम फेस कर रही है. काया अभी महज 35 साल की है और 3 साल के बच्चे की मां है. लेकिन अभी से उसे इस तरह का दर्द होना अपनेआप में चिंता का विषय है.

इस बारे में मणिपाल हौस्पिटल द्वारका में कंसल्टैंट गाइनोकोलौजिस्ट डाक्टर योगिता पाराशर कहती हैं कि 30 के बाद महिलाओं के शरीर में औस्टियोपोरोसिस की समस्या होने लगती है. इस में हड्डियां कमजोर होने लगती हैं जिस से वे आसानी से टूट सकती हैं, इसलिए उन के फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है. यह समस्या आमतौर से मेनोपौज के बाद शुरू होती है जब शरीर में ऐस्ट्रोजन का उत्पादन कम हो जाता है.

भरपूर डाइट लें

अगर आप इस से बचना चाहती हैं तो कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर डाइट लें. पौसिबल हो तो सुबह की ताजा भी धूप भी लें. इस के अलावा वजन उठाने वाले काम करने से बचें. स्मोकिंग और शराब को अवौइड करें और साथ ही हड्डियों के स्वास्थ्य पर नजर रखने के लिए नियमित तौर से बोन डैंसिटी टैस्ट भी करवाती रहें. तभी आप एक स्वस्थ शरीर का साथ पा पाएंगी. सिर्फ औस्टियोपोरोसिस ही एक ऐसी समस्या नहीं है जिस का सामना महिलाओं को 30+ होने के बाद करना पड़ता है. ऐसे बहुत से हैल्थ इशूज हैं जो महिलाएं अपनी लाइफ में 30 की उम्र पार करने के बाद देखती हैं, ये क्या हैं आइए जानते हैं:

इनरैग्युलर पीरियड्स

ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन में बदलाव की वजह से महिलाओं की मैंस्ट्रुअल साइकिल भी प्रभावित होता है, जिसे मैडिकल भाषा में पीसीओडी भी कहा जाता है वहीं पीरियड्स के दिन आगेपीछे होने की वजह से कई बार हैवी ब्लीडिंग होने लगती है तो कई बार ब्लीडिंग कम होती है या फिर कई बार पीरियड्स महीनामहीना नहीं होते.

इंडिया में 25त्न महिलाएं इनरैग्युलर पीरियड्स या कई महीने तक पीरियड्स न होने के बाद फिर से पीरियड्स होना, जिसे अमेनोरिया कहते हैं जैसी समस्याओं से जू?ा रही हैं वहीं 30 से 40 साल की उम्र वाली महिलाओं में प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर या पीओएफ के मामले 0.1त्न है.

पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम

पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या का एक मुख्य कारण है. इस की वजह से बनने वाले सिस्ट का अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो यह आगे चल कर कैंसर का रूप ले सकता है. भारत में आज करीब 10त्न महिलाएं किशोरावस्था में ही पीसीओएस की प्रौब्लम का सामना कर रही हैं.

फाइब्रौयड्स की प्रौब्लम

फाइब्रौयड्स आजकल महिलाओं की सब से आम समस्या बन गई है. आमतौर पर यह 30 से 50 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं में होता है. इस से पीडि़त कुछ महिलाएं अपने फाइब्रौयड्स से अज्ञान होती हैं, जबकि कुछ फाइब्रौयड्स को अल्ट्रासाउंड या अन्य जांचों से पता लगाया जाता है. इसलिए समयसमय पर अपने मैडिकल टैस्ट करवाती रहें ताकि समय रहते बीमारी का इलाज किया जा सके.

मोटापे को कहें न

इस के अलावा 30+ की उम्र की महिलाओं में ऐंड्रौइड ओबेसिटी की समस्या भी देखने को मिलती है. इस समस्या में पेट के आसपास चरबी जमा होने लगती, जिसे आम भाषा में बैली फैट भी कहते हैं. होता यह है कि 30 साल की उम्र के बाद फीमेल हारमोन में कमी आने लगती है, जिस की वजह से यह प्रौब्लम होने लगती है. अगर आप अपने पेट के आसपास फैट नहीं चाहतीं तो आप खुद को मोटापे से बचाए रखें. इस के लिए जरूरी है कि आप अपनी डाइट से चावल, मैगी, जंक फूड, ब्रैड और बेकरी से बने प्रोडक्ट्स से दूरी बनाएं और प्रोटीन, विटामिन सी, ई, बी12 को डाइट में शामिल करें.

डायबिटीज का बढ़ सकता है खतरा

30+ की उम्र में अगर लाइफस्टाइल और खानपान को सही नहीं रखा जाए तो डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है. डायबिटीज की बीमारी होने पर उस के साइन बौडी में दिखने लगते हैं. ये साइन हैं- ज्यादा थकान होना, नजर का धुंधला होना, बहुत प्यास लगना, पेशाब ज्यादा आना, वजन कम होना, मसूड़ों में परेशानी होना. ये लक्षण दिखने पर तुरंत डाक्टर से मिलें.

हड्डियों की बिगड़ सकती है सेहत

30+ होते ही महिलाओं को अपनी डाइट में कैल्सियम और विटामिन डी को भरपूर मात्रा में लेना चाहिए. इस उम्र को पार करने के बाद हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है. हारमोंस में चेंज की वजह से शरीर के ढांचे पर असर पड़ता है. जोड़ों में पुराना दर्द, भंगुर हड्डियां खराब होने का ही एक लक्षण हैं. इससे बचाव के लिए आप कैल्सियम से भरपूर खाद्यपदार्थ अपनी डाइट में शामिल करें जैसे दूध, पनीर और अन्य डेयरी खाद्यपदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे ब्रोकली, गोभी और भिंडी आदि, सोया सेम, मछली.

ताकि न बनें हार्ट पेशैंट

30 साल के बाद महिलाओं में दिल की समस्याओं जैसे हार्ट अटैक एक खास समस्या बन कर उभरती है. इस की वजह में हाई ब्लड प्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल, मोटापा और स्मोकिंग शामिल हैं. डाइटिशियन का मानना है कि 30 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को अपना वजन कंट्रोल में रखना चाहिए. इस के लिए उन्हें रैग्युलर ऐक्सरसाइज करनी चाहिए और डाइट में सैचुरेटेड फैट्स व ट्रांस फैट्स कम मात्रा में लेने चाहिए.  इस के अलावा डाक्टर से समयसमय पर ब्लड प्रैशर और कोलैस्ट्रौल की जांच भी करवाते रहना चाहिए.

मैंटल हैल्थ भी है जरूरी 30 साल की उम्र के बाद हमारे लाइफस्टाइल और कुछ गलत आदतों की वजह से हम खुद को ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन से घिरा हुआ पाते हैं. आलसपन में बिस्तर पर पड़े रहना, पोषक आहार की कमी, देर रात तक पार्टीज, शराब इन सब का असर हमारी फिजिकल हैल्थ के साथसाथ मैंटल हैल्थ पर भी पड़ता है. ऐसे में खुद को इन समस्याओं से बचाने के लिए हमें हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाना चाहिए जिस में ऐक्सरसाइज से लेकर हैल्दी फूड तक शामिल है.

पीरियड्स अनियमित रहने की प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 23 वर्ष है. शुरू के 5 सालों में मेरे पीरियड्स अनियमित थे. अब यह समस्या नहीं है. 3 महीने बाद मेरा विवाह है. मेरी चिंता इस बात को ले कर है कि पहले पीरियड्स अनियमित रहने की वजह से कहीं विवाह के बाद मुझे मां बनने में अड़चन तो नहीं आएगी? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप बिलकुल परेशान न हों. किशोर उम्र के शुरू के सालों में जब शरीर सयाना होने लगता है और पीरियड्स शुरू होते हैं, उस समय मासिकधर्म के दिनों में घटतबढ़त होना आम बात है. यह घटतबढ़त शरीर के अंदर टिकटिक कर रही जैविक घड़ी की लय से जुड़ी होती है. यों देखने पर मासिकधर्म की क्रिया चाहे मामूली नजर आती हो, लेकिन उस का 28-30 दिन का लयबद्ध चक्र स्त्री के शरीर के अंदर रचीबसी खासी जटिल कैमिस्ट्री की देन होता है. इस में मस्तिष्क में स्थित हाइपोथैलैमस और पिट्यूटरी ग्लैंड, साथ ही पेल्विस में काम कर रही ओवरीज का सीधा हाथ होता है. उन में बनने वाले कई तरह के हारमोन ही स्त्री के भीतरी संसार की रिद्म तय करते हैं. इसी चक्र के तहत प्रजनन योग्य उम्र में आने के बाद नारी हर माह संतानबीज बीजने की तैयारी करती है और गर्भधारण न होने पर गर्भाशय की मोटी परत मासिक रक्तस्राव के रूप में प्रवाहित कर देती है.

किशोर उम्र में जब मासिकधर्म शुरू होता है, तो पहले 2, 3 या 5 सालों तक मासिकचक्र अपनी लय स्थापित नहीं कर पाता. जैसे किसी भी नए काम में पारंगत होने में समय लगता है, उसी प्रकार शरीर को भी अपनी जैविक धुरी खोजने में थोड़ा समय लगता है. खास बात यह है कि इस मासिकचक्र की अनियमितता को सामान्य शारीरिक प्रक्रिया के रूप में ही लिया जाना चाहिए. इस से विचलित नहीं होना चाहिए. अगर आप तन और मन से स्वस्थ और सामान्य हैं और आप के पति भी तो कोई कारण नहीं कि आप को संतानसुख पाने में दिक्कत हो.

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पीसीओएस यानी पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक सामान्य हारमोन में अस्थिरता से जुड़ी समस्या है जो महिलाओं की प्रजनन आयु में उन के गर्भधारण में समस्या उत्पन्न करती है. यह देश में करीब 10% महिलाओं को प्रभावित करती है. पीसीओएस बीमारी में ओवरी में कई तरह के सिस्ट्स और थैलीनुमा कोष उभर जाते हैं जिन में तरल पदार्थ भरा होता है. ये शरीर के हारमोनल मार्ग को बाधित कर देते हैं जो अंडों को पैदा कर गर्भाशय को गर्भाधान के लिए तैयार करते हैं. पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं के शरीर में अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता है. इस की अधिक मात्रा के चलते उन के शरीर में पुरुष हारमोन और ऐंड्रोजेंस के उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है. अत्यधिक पुरुष हारमोन इन महिलाओं में अंडे पैदा करने की प्रक्रिया को शिथिल कर देते हैं. इस का परिणाम यह होता है कि महिलाएं जिन की ओवरी में पौलीसिस्टिक सिंड्रोम होता है उन के शरीर में अंडे पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है और वे गर्भधारण नहीं कर पातीं.

यह एनोवुलेट्री बांझपन का सब से मुख्य कारण है और यदि इस का शुरू में ही इलाज न कराया जाए तो इस से महिलाओं की शारीरिक बनावट में भी खतरनाक बदलाव आ जाता है. आगे चल कर यह एक गंभीर बीमारी की शक्ल ले लेता है. इन में मधुमेह और हृदयरोग प्रमुख है.

पीसीओएस के लक्षण

मासिकधर्म संबंधी विकार. पीसीओएस ज्यादातर मासिकधर्म अवरुद्ध करता है, लेकिन मासिकधर्म संबंधी विकार भी कई प्रकार के हो सकते हैं. सब से सामान्य लक्षण मुंहासे और पुरुषों की तरह दाढ़ी उगना, वजन बढ़ना, बाल गिरना आदि हैं.

प्रेग्नेंसी के अलावा इन चीजों के कारण होती है पीरियड्स में देरी

पीरियड्स में महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अनियमित पीरियड महिलाओं के लिए सबसे बड़ी परेशानी होती हैं. अगर ये समय पर ना आए तो महिलाएं आशंकित हो उठती हैं. ऐसे में महिलाओं को डर होता है कि कहीं वो गर्भ से तो नहीं हैं ना. ये आम धारणा है कि जैसे ही पीरियड मिस होता है लोग उसे प्रेग्नेंसी से जोड़ते हैं. लोगों में ये सोच मासिकधर्म से जुड़ी आधी अधूरी जानकारी के कारण है.

असल में पीरियड्स में अनियमितता हार्मोंस में आने वाले बदलावों के कारण होता है. कई जानकारों का मानना है कि अगर कोई महिला 3 महीने में अपना एक पीरियड मिस कर देती है तो उसे गंभीर समस्या हो सकती है. इसके अलावा आपके कामकाज और आपके वातावरण के माहौल का भी पीरियड्स पर फर्क पड़ता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि प्रेग्नेंसी के अलावा और किन कारणों से महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता आती है.

तनाव:

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तनाव के कारण महिलाओं के पीरियड्स पर बुरा असर पड़ता है. अगर आप ज्यादा तनाव लेती हैं तो इसका सीधा असर आपके हार्नोंस पर पड़ता है. यही कारण है कि आपके पिरियड्स में देरी होती है.

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शरीर का कम वजन:

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अगर आपका वजन कम है तो इसका सीधा असर आपके पीरियड्स पर होगा. अगर आपका वजन बहुत कम है तो आपके पीरियड्स में अनियमितताएं आएंगी.

अधिक एक्सरसाइज:

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एक्सरसाइज शरीर के लिए बेहद जरूरी है. इससे हमारी सेहत पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है. पर अत्यधिक एक्सरसाइज आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है. इसका सीधा असर आपके हार्मोंस पर पड़ता है, और आपके पीरियड्स ठीक समय पर नहीं आते हैं.

पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम:

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आजकल की जैसी जीवनशैली हो चुकी है, महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Polycystic Ovary Syndrome) की समस्या आम हो गई है. इस बीमरी के कारण महिलाओं में अनियमित पीरियड्स की शिकायत हो रही है. ना सिर्फ पीरियड्स बल्कि इस बीमारी के कारण महिलाओं में वजन बढ़ने, बाल झड़ने, चेहरे पर दाग:धब्बे जैसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है.

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अनियमित पीरियड्स से कैसे निबटें

पीरियड्स एक नेचुरल क्रिया है जिस के बारे में जानना हर बढ़ती उम्र की लड़की और उस की मां के लिए जरूरी है. मां के लिए यह जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस प्राकृतिक क्रिया के बारे में अपनी बेटी को वह ही बेहतर तरीके से समझा सकती है. इन दिनों में लड़कियों के शरीर में अलगअलग बदलाव होते हैं और ये बदलाव होते बहुत ही सामान्य हैं. ये बदलाव हर लड़की के हार्मोंस पर निर्भर करते हैं.

कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं. पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं. हमें यह समझने की जरूरत है कि ये सब परेशानियां असामान्य नहीं हैं. हर महिला का मासिकधर्म और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है.

असामान्य पीरियड्स

पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य होना, पीरियड्स देर से आना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहना आदि असामान्य पीरियड माने जाते हैं. यह कोई बीमारी नहीं है. इसे अलगअलग हर लड़की में देखा जाता है. इस में अचानक मरोड़ उठने लगती है और बदनदर्द होने लगता है. अनियमित और असामान्य पीरियड को एनोबुलेशन से भी जोड़ा जा सकता है. आमतौर पर इस कारण हार्मोंस में असंतुलन हो सकता है.

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प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम

हर साल भारत की एक करोड़ से भी ज्यादा लड़कियों में प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम देखा जाता है. यह एक ऐसी समस्या है जो लड़कियों को हर महीने पीरियड से कुछ दिनों पहले प्रभावित करती है. इस दौरान लड़कियां शारीरिक और भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस करती हैं. मुंहासे, सूजन, थकान, चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग्स इस के कुछ सामान्य लक्षण हैं. सटीक लक्षण और उन की तीव्रता लड़की से लड़की और चक्र से चक्र पर निर्भर करती है.

हार्मोंस में परिवर्तन इस सिंड्रोम का एक महत्त्वपूर्ण कारण है. विटामिन की कमी, शरीर में उच्च सोडियम का स्तर, कैफीन और शराब का अधिक सेवन पीएमएस का कारण बन सकते हैं. पीएमएस 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में देखा जा सकता है.

इलाज है जरूरी

पीरियड्स में आने वाले अनियमित पीरियड्स या पीएमएस जैसी परेशानियों का इलाज बहुत ही सरल है. ऐक्सरसाइज हमेशा से ही पीरियड्स की परेशानी का हल रही है. एक स्त्रोत के अनुसार हफ्ते में 5 दिन 35 से 40 मिनट ऐक्सरसाइज करने से उन हार्मोंस की मात्रा कम हो जाती है जिन के कारण अनियमित पीरियड्स हो सकती है. अगर किसी लड़की को पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, 7 दिनों? से ज्यादा पीरियड के बीच उल्टियां हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत उसे डाक्टर के पास ले कर जाएं.

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