Women in OTT: फिल्म इंडस्ट्री भले ही पुरुष प्रधान हो, लेकिन आजकल इस में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. आज एक महिला निर्देशक बेझिझक फीमेल प्रधान फिल्में बना रही है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे हैं और इसे दर्शकों तक लाने में ओटीटी की बड़ी भूमिका रही है, जो आप को कोई भी फिल्म बनने के बाद सीधे ड्राइंगरूम तक पहुंचाती है. सारे थिएटर हौल बंद होने के कगार पर पहुंचने के बावजूद इन फिल्मों के डिमांड में कोई कमी नहीं आई है, क्योंकि इन के स्क्रिप्ट आज के परिवेश को ध्यान में रख कर बनाए जा रहे हैं.

बोल्ड कंटेंट

ओटीटी पर रिलीज होने वाली महिला प्रधान फिल्मों के कंटेंट बोल्ड हैं, जिस से आज की हर नारी रिलेट कर सकती है. आज के दौर में महिलाएं सिर्फ सासबहू के शो और घर के कामकाज तक सीमित नहीं हैं. हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी उपस्थिति को दर्ज कराया है. लोग भी महिलाओं को रोतेबिलखते और अबला जैसे नहीं देखना चाहते. इन सीरीज में महिलाओं को खुद इन समस्याओं से मजबूती से लड़ते हुए दिखाया जाता है, जिसे देखने में आज की हर नारी अच्छा महसूस करती है.

अधिकार चुनने का हक

ओटीटी पर महिला प्रधान फिल्मों की कहानियों को अधिक पसंद किए जाने के बारे में फिल्म ‘आप जैसा कोई’ की लेखिका राधिका आनंद कहती हैं,”मैं ने यह कहानी बहुत पहले लिखी थी, क्योंकि मैं ने लाइफ में बहुत सारे लोगों से प्यार किया है। अभी जो मेरे लाइफ में मेरा पति अमित है, उन्होंने मुझे वह प्यार दिया है, जिसे मैं चाहती थी. इस के बाद मैं ने यह कहानी लिखी थी, जिस में एक लड़की को अपना पार्टनर चुनने का पूरा अधिकार होता है, जो मेरे साथ हुआ है.”

वे आगे कहती हैं,”मैं ने देखा है कि अकसर फिल्म इंडस्ट्री में कहानियां एक पुरुष की नजरिए से दिखाया जाता है, उन की मनोकामनाओं को पूरा करना, उन के आईने में उतरना हीरोइन का काम होता है. मैं ने हिरोइन के आईने में हीरो को उतारने की कोशिश की है और यही आज की हर लड़की चाहती है, जिस में एक लड़की की आज कुछ मापदंड है, वह अपने पार्टनर में कुछ ढूंढ़ रही है, उस की भी कुछ इच्छाएं हैं. इसी प्रेरणा को ध्यान में रखते हुए मैं ने इस कहानी को लिखी है.”

बढ़ी है जागरूकता

महिला प्रधान फिल्मों को ओटीटी पर अधिक दिखाए जाने की वजह के बारे में राधिका का कहना है कि महिलाओं के जीवन से जुड़ी कहानियां पहले भी मैं ने कहने की कोशिश की थी, लेकिन अब दर्शक इसे सुनने के लिए तैयार है. इस में परिवार के अंदर एक परिवर्तन आ रहा है, क्योंकि औरते केवल पढ़ीलिखी ही नहीं, बल्कि उस में जागरूकता बढ़ी है. सभी खुद को बराबर की श्रेणी में रखना पसंद कर रहे हैं. अगर सबकुछ केवल पुरुषों की मांग के अनुसार हो सकता है तो एक नारी की डिमांड को कोई क्यों नहीं मान सकता और आज यह लड़कियों के मन में आ चुका है. इसलिए वे समझौते से मना करती हैं. देखा जाए तो औरतें ही किसी रिश्ते को चलाती हैं, उन की कहानियां कभी बंद नहीं होने चाहिए. कमर्शियली भी एक स्त्री पर बनी अच्छी फिल्म सब को पसंद आती है. इस की एक वजह यह भी है कि आज औरतों की कहानियां औरतें ही सुना रही हैं.

पहले कहानी भले किसी लड़की ने लिखी हो, लेकिन उसे बनाने वाले सारे क्रू मेंबर निर्देशक से ले कर सिनेमेटोग्राफर पुरुष हुआ करते थे, लेकिन आज जहां मैं काम करती हूं, वहां 50% महिलाएं क्रू में रहती हैं. मेरे हिसाब से अगर एक लेखिका पुरुष पौइंट अंफ व्यू से भी कहानी लिखती है, तो पुरुषों की फैमिनीन ऐस्पैक्ट और सैंसिविटी अधिक उभर कर आता है.

शुरू हो चुकी है बगावत

राधिका आगे कहती हैं कि थिएटर हौल में महिला प्रधान फिल्मों के सफल न होने की वजह यह हो सकता है कि ये छोटीछोटी बगावतें घरों से शुरू हो चुकी हैं। वार अभी बाकी है, सुनामी बनने में थोड़ा वक्त लगेगा, जब दर्शक थिएटर में जा कर भी इन फिल्मों को देखना पसंद करेंगे, क्योंकि आज दर्शकों को एक टौक्सिक लवस्टोरी देखने की आदत है, जिस में पुरुषों के अलावा कंडिशनिग पसंद करने वाली स्त्री भी शामिल हो जाती है, क्योंकि ऐसे पुरुषों के साथ सब्मिसिववे में उन्हें रहने की आदत है. इसे ब्रेक करने में थोड़ा समय जरूर लगेगा, लेकिन इस की शुरुआत केवल फिल्मों में ही नहीं, परिवारों में भी हो चुका है. मेरी बेटी हुई है, जो डेढ़ साल की है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह किसी भी चीज में कंप्रोमाइज करे और सैल्फ रिस्पेक्ट को वह कभी कम न करे.

डरते हैं फिल्ममेकर

महिला प्रधान फिल्मों को दर्शकों की अधिक पसंद होने के पीछे उन का बौक्स औफिस पर अच्छा प्रदर्शन करना है. एक अध्ययन के अनुसार, महिला प्रधान फिल्में, चाहे वे छोटे, मध्यम या बड़े बजट की हों, पुरुष प्रधान फिल्मों की तुलना में बौक्स औफिस पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं, क्योंकि ये फिल्में समाज में किसी स्त्री के सशक्तिकरण और उन की चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं को दर्शाती हैं, जो दर्शकों को प्रेरित करती हैं, लेकिन फिल्ममेकर ट्रेंड को फौलो करते रहते हैं, नए प्रोजैक्ट की जोखिम से डरते हैं.

धूमधाम फेम लेखक अर्श वोरा कहते हैं कि आजकल हर तरीके की फिल्में चल रही हैं, लेकिन एक बार जो कहानी चल जाती है, लोग वैसी ही बारबार लिखने लगते हैं. अभी वही ट्रेंड इंडस्ट्री में चल रहा है, क्योंकि पिछले कई सालों से एक ही तरह के हीरो प्रधान फिल्में बनती रहती थीं, लेकिन अब फीमेल सैंट्रिक फिल्में दर्शकों को पसंद आ रही हैं और वैसी ही कहानियां लिखी जा रही हैं, जो अच्छी बात है. मेरे हिसाब से हर तरह की कहानियां लिखी जानी चाहिए. मैं हमेशा ऐसी कहानियां लिखता हूं, जिस से दर्शकों का मनोरंजन हो सके, फिर चाहे वह ओटीटी पर आए या हौल में, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

ओटीटी का असर सिनेमाघरों पर नहीं 

अर्श आगे कहते हैं कि यह सही है कि सिनेमा काफी दर्शकों को हौल तक लाता है, जैसा पिछले कुछ महीनों मे देखने को मिला, मैट्रो इन दिनों और ‘सैयारा’ जैसी फिल्मों ने हौल में अच्छा व्यवसाय किया. सिनेमाघर अब फिर से वापस आ रहा है और वैसी फिल्में बन रही हैं, जिस से ओटीटी का असर सिनेमाघरों पर नहीं पड़ा है. कंटेंट की वजह से हौल में लोग आने लगे हैं. हां, अभी के यूथ की पसंद अलग है, यह मैं मानता हूं. मैं 70 या 80 की दशक की कहानियों को अब नहीं बता सकता, उन्हें अच्छा नहीं लगेगा. मुझे भी नईनई कहानियों को लिखने में मजा आता है. मैं किसी कहानी को लिखते वक्त क्या हिट है, उसे नहीं देखता, मैं वही कहानी लिखता हूं, जो मुझे इंस्पायर करे और मैं एक दर्शक के रूप में उसे हौल में जा कर देख सकता हूं या नहीं, सोचने के बाद लिखता हूं. मैं अगर देख चुका हूं, तो उस कहानी को नहीं लिखता.

आम जनजीवन से जुड़ी कहानी

असल में महिला प्रधान फिल्में अकसर ऐसी कहानियां प्रस्तुत करती हैं, जो पुरुष प्रधान फिल्मों से हट कर होती हैं, जिस से दर्शकों को एक नया और ताजा अनुभव मिलता है. इन फिल्मों ने न केवल महिला दर्शकों को, बल्कि सभी प्रकार के दर्शकों को आकर्षित किया है, जिस से इन फिल्मों की पहुंच और कमाई बढ़ती है. इस बारे में नेटफ्लिक्स इंडिया के रुचिका कपूर शेख कहती हैं,”जब भी हम ओटीटी पर किसी कहानी को लेते हैं, तो कोशिश यह रहती है कि वह आम जिंदगी की अनुभव से जुड़ी हुई हो, साथ ही समाज की कुछ टैबू को तोड़े, क्योंकि किसी भी परिवार या समाज में एक स्त्री की भूमिका चाहे वह मैरिड हो अनमैरिड बहुत बड़ी होती है, जिसे दबाया न जाए और यह काम फिल्मों या वैब सीरीज के जरीए दर्शकों तक पहुंचाने की जरूरत होती है.”

वे कहती हैं,”इन में कहानियां सिर्फ देखी न जाए, बल्कि महसूस की जाए, जैसा कि फिल्म ‘कटहल’ की महिमा बसोर (सानिया मल्होत्रा), ‘धूमधाम’ की कोयल चड्ढा (यामी गौतम) ‘आप जैसा कोई’ की मधु बोस (सानिया मल्होत्रा) एक प्रोग्रेसिव आज की लड़की है, जिन का नजरिया बदल चुका है और वे किसी भी मोड़ पर कोई भी निर्णय लेने में सक्षम है. ये कहानियां आज की नारी की हैं, जिन से दर्शक खुद को जोड़ पा रहे हैं. इसलिए ये पौपुलर हो रही हैं. इन फिल्मों की केवल पौपुलैरिटी ही नहीं, बल्कि इस साल फिल्म ‘कटहल’ को नैशनल अवार्ड फोर बैस्ट फिल्म का पुरस्कार भी मिला. इसी कड़ी में ‘दिल्ली क्राइम’, ‘दो पत्ती’ जैसी फिल्मों को भी सब से अधिक देखा गया.”

वे कहती हैं कि इस प्रकार यह देखा जा रहा है कि आज अभिनेत्रियां ज्यादा चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं और ऐक्शन जैसी शैलियां चुन रही हैं, जिन्हें कुछ साल पहले तक पुरुष केंद्रित माना जाता था. इस की एक वजह यह भी है कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर थिएटर और सिनेमा हौल्स की तरह ‘बंपर ओपनिंग’ या ‘फर्स्ट डे, फर्स्ट शो’ का कौंसेप्ट नहीं है. दर्शकों को इन फिल्मों को देखने के लिए अधिक पैसे खर्च नहीं करने पड़ते. ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर कंटेंट बौक्स औफिस के मुकाबले ज्यादा समय तक चलता है. दर्शक अपनी सुविधानुसार, जब चाहें, जो चाहें, देख सकते हैं. देखा जाए, तो बौक्स औफिस पर आए एक बड़े खालीपन को इन प्लेटफौर्म ने एक अवसर के रूप में पहचाना और भुना लिया है.

इतना ही नहीं, ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने औनस्क्रीन और औफस्क्रीन लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वे ऐसी सामग्री बना रहे हैं, जो लैंगिक असमानता और किसी लड़की के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है. वे कैमरे के पीछे की स्त्रियों जैसे निर्देशक, लेखक और निर्माता को अपनी कहानियां कहने और समग्र कथा में योगदान करने के अवसर भी प्रदान कर रहे हैं. आज की लड़की समाज में अधिक सशक्त हो रही हैं और लोग भी उन्हें अलगअलग भूमिकाओं में देखना पसंद करने लगे हैं. यह भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है कि महिला प्रधान फिल्में सफल हो रही हैं.

महिला प्रधान कुछ खास फिल्में जो खास पौपुलर रहीं

दहाड़ : अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा ने पावर पैक अवतार में ओटीटी पर दहाड़ के साथ डैब्यू किया. इस वैब सीरीज में सोनाक्षी एक स्ट्रौंग लेडी कौप अंजलि भाटी के रोल में नजर आईं, जो महिलाओं के साथ हो रहे अपराध के खिलाफ खड़ी है और नारी शक्ति का झंडा बुलंद कर रही है.

आर्यनायक : अभिनेत्री रवीना टंडन और परमब्रत चटर्जी पर आधारित, ‘आर्यनायक’ एक महिला पुलिस अधिकारी की कहानी है, जिसे पश्चिम बंगाल के जंगलों में हत्याओं की एक सीरीज की जांच करने का काम सौंपा गया है. जैसे ही कस्तूरी डोगरा (रवीना टंडन) मामले की गहराई से जांच करती है, वह रहस्यों और झूठ के जाल को उजागर करती है, जो पूरे क्षेत्र को खतरे में डाल देता है.

दिल्ली क्राइम : ‘दिल्ली क्राइम सीरीज’ में शेफाली शाह ने डीसीपी वर्तिका चतुर्वेदी का किरदार निभाया है. वह दिल्ली के निर्भया केस की जांच करती हुई नजर आती हैं.

महारानी : ‘महारानी’ एक साधारण हाउसवाइफ की जर्नी को दर्शाता है जो अप्रत्याशित रूप से बिहार की मुख्यमंत्री बन जाती है. राजनीति की कठिन दुनिया में कदम रखते हुए, रानी भारती (हुमा कुरैशी) को भ्रष्टाचार, लिंगवाद और हिंसा की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

कटहल : फिल्म ‘कटहल’ उत्तर प्रदेश के एक ऐसे ही काल्पनिक शहर मोबा की कहानी है, जहां के विधायक (विजय राज) के घर से 2 कटहल चोरी हो जाते हैं. राजनीतिक दबाव में पुलिस शहर से गायब हुई एक लड़की का मामले को दरकिनार कर विधायक के कटहल तलाशने में जुट जाती है. इस मामले की जांच कर रही इंस्पैक्टर महिमा (सान्या मल्होत्रा) बेहद होशियारी से कटहल मामले को लड़की की किडनैपिंग से जोड़ देती है. इस के बाद पूरा महकमा उस लड़की को तलाशने में जुट जाता है.

आप जैसा कोई : फिल्म ‘आप जैसा कोई’ की कहानी एक 42 वर्षीय संस्कृत शिक्षक श्रीरेणु त्रिपाठी (आर माधवन) और एक खुले विचारों वाली 32 वर्षीय फ्रेंच शिक्षिका मधु बोस (फातिमा सना शेख) के आसपास घूमती है. सगाई के दौरान पता चलता है कि मधु ने पहले कई और लड़कों के साथ डेटिंग की है, जिस से श्रीरेणु का मधु के प्रति नजरिया बदल जाता है और उन के रिश्ते में दरार आ जाती है. यह फिल्म बराबरी के प्यार, लैंगिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को उठाती है, जहां मधु अपनी शर्तों पर जीना चाहती है, जबकि श्रीरेणु परंपराओं और संकुचित सोच से प्रभावित है.

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