फिल्म गुलमोहर’, जो आज की पारिवारिक परिवेश पर आधारित एक ऐसी ड्रामा फिल्म है, जिसमे एक परिवार के सभी सदस्य साथ रहते हुए भी अलग विचारधारा रखते है, लेकिन उनमे प्यार और आदर की कोई कमी नहीं है. परिवार की बड़ी बुजुर्ग जब एक निर्णय लेती है, तो पूरा परिवार उस निर्णय से हिल जाते है और 35 साल से रह रहे इस घर को छोड़ने के बारें में सोचने लगते है, जहाँ उनकी यादें और भावनाएं है, लेकिन उन्हें इस निर्णय को मानना है.

परिवार की बड़ी बुजुर्ग का ये निर्णय 4 दिन बाद होली की त्यौहार को साथ मनाने के बाद ख़त्म होने वाला है, लेकिन कैसे पूरा परिवार इस निर्णय के साथ उन चार दिनों को जी रहा है, कैसे सबकी सोच एक दूसरे से अलग है, कुछ इसी ताने-बाने के साथ फिल्म अंजाम तक पहुँचती है. ये फिल्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर 3 मार्च को रिलीज होने वाली है.

पद्मभूषण और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता लीजेंड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण और मुख्य भूमिका निभाई है. 12 साल की गैप के बाद उन्होंने इस फिल्म में बहुत ही उम्दा अभिनय किया है, जिसमे उन्होंने अपने अनुभव और निर्देशक राहुल चित्तेला के विजन को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है.

चाहत रही अच्छी कहानी की

बातचीत के दौरान शर्मिला कहती है कि मुझे एक अच्छी फिल्म में काम करने की इच्छा थी और वह निर्देशक राहुल लेकर आये और मैंने किया. इसमें रिश्ते और संबंधों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किया गया है. साथ ही एक बड़ी अच्छी स्टारकास्ट और टीम है. सभी की भूमिका एक सामान है. परिवार की कहानी है और दिल को छू लेने वाली कहानी है. बहुत ही मिठास है, ऐसी फिल्म में काम करना मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है.

ये आज की कहानी है, आज लोगों के पास समय नहीं है, ऐसा सभी गलत कहते है और एक मकान में रहते हुए भी फ़ोन पर बात करते है. मेरे हिसाब से जब आप किसी से मिलते है और गले लगते है, तो अलग ही एहसास होता है. किसी से गले मिलना बात करना, इसमें प्लानिंग करनी पड़ती है और समय भी मिलता है, बस रिश्ते को फ्लरिश करने के लिए एक चाहत की जरुरत होती है.

रिलेटेबल है कहानी

रियल लाइफ में भी शर्मिला इस भूमिका से खुद को काफी रिलेट कर पाती है, उनका कहना है कि मेरे परिवार में भी कुछ लोग मेरी बात से असहमत होते है, ‘गिव एंड टेक’ का सिलसिला चलता रहता है. मैं उस पर अधिक ध्यान नहीं देती और किसी को हर्ट भी नहीं करती, लेकिन कभी-कभी एक दृढ़ निश्चय लेना पड़ता है और मैं उसे लेती हूँ. मैं सभी से बातचीत करना और दोस्ती रखना पसंद करती हूँ.

है अच्छा दौर

इस दौर को शर्मिला क्रिएटिविटी का सबसे अच्छा दौर मानती है, जहाँ सबको काम करने का मौका मिलता है. वह कहती है कि फिल्म और क्रिकेट का दौर हमेशा चलता रहता है. ये कभी बंद नहीं हो सकता, लेकिन फिल्मों में कोर को टच करना जरुरी होता है, तभी दर्शक उससे खुद को जोड़ पाते है. इसके अलावा अभी फिल्मों में तकनीक काफी आ चुकी है, जो पहले नहीं थी. अगर कहानी से दर्शक खुद को नहीं जोड़ पाते है, तो आज के दर्शक रियेक्ट करते है. टेस्ट और आशाएं बदली है, इमोशनल चीजों को हटाया नहीं जा सकता. दर्शकों ने ही इसे महत्व दिया है, उन्हें वे हटा नहीं सकते. इस फिल्म की लोकेशन रियल है और पूरी विजन निर्देशक की है. जिसमे प्यार, आदर, भावनाएं आदि पूरी तरह से है, जो कहानी को सपोर्ट करती है.

जरुरी है परिवार का सहयोग

शर्मिला ने हमेशा उन टैबू को तोडा, जिसे समाज नहीं मानती थी. वह कहती है कि मैंने हमेशा उन टैबू को तोड़ा जिसे समाज मानता नहीं था, लेकिन लगता है आज ये गलत नहीं. प्रेशर बहुत होता है, इसमें मेरे पति और प्रसिद्ध क्रिकेटर टाइगर पटौदी का हमेशा साथ रहा है. मैंने शादी की, बच्चों की माँ बनी, लेकिन इस दौरान मेरे परिवार ने काम करने से मना भी किया, पर मैंने काम किया, क्योंकि मेरे साथ मेरे पति थे, उन्होंने कभी काम करने से मना नहीं किया. मैंने भी बच्चों को कभी नेगलेक्ट नहीं किया, उन्हें सिखाया है कि काम से मैं हैप्पी फील करती हूँ. अभी मेरी कुछ सोशल एक्सपेक्टेशन है, जिसे पूरा करना है. कई बार इसे सोचकर रिग्रेट होता है, लेकिन कम हो, इसकी कोशिश करनी है.

महिलाओं को आज भी है समस्या

पुरुषसत्तात्मक समाज में महिलाओं को आगे बढ़ने में समस्याएं आज भी होती है, लेकिन शहरों में महिलाएं लकी है, उन्हें हर तरह की आज़ादी होती है, जबकि छोटे शहरों और गांव में महिलाएं अभी भी काफी समस्या का सामना करती है.

शर्मिला कहती है कि हम सभी लकी है और शहरों में रहते है. मेरे ग्रैंडमदर की शादी 5 साल की उम्र में हुई थी, पहला बच्चा 13 साल की उम्र में हुआ था. मेरी माँ को को-एड यूनिवर्सिटी में जाने की अनुमति नहीं थी. मुझे हमेशा ये पूछा गया कि शादी के बाद फिल्म में काम करने की अनुमति कैसे दी गई और मेरे बच्चे भी उसी फील्ड में है. हर साल हमारी आजादी बढ़ रही है, हमें धैर्य रखने की जरुरत है. महिलाओं के पक्ष में समाज पूरी तरह से बदल नहीं सकती, लेकिन ये भी समझना है कि महिलाएं आगे बढ़ रही है और एक महिला को दूसरी महिला को कभी क्षति न पहुंचाएं.

साथ में आयें, साथ रहे और एक दूसरे की सहायता करें. पुरुषों के बिना समाज नहीं चल सकता. समाज में महिला और पुरुष दोनों को साथ में काम करना है. महिलाये एक दूसरे को बहन की तरह देखें और किसी को जज न करें. महिलाएं कई बार दूसरी महिला या जेनरेशनके लिए बहुत अधिक जजिंग हो जाती है, ये ठीक नहीं. सभी को साथ में लेकर चलना ही हमारे लिए एक अच्छी बात है.

स्ट्रोंग महिला को होती है मुश्किलें

शर्मिला आगे कहती है कि स्ट्रोंग महिला की भूमिका फिल्म में हो या रियल लाइफ में निभाना बहुत मुश्किल होता है. परिवार का सहयोग इसमें सहायक होता है. मुझे मेरी पिता और पति का सहयोग मिला. हम तीन बहने है, मेरे पिता ने कभी लड़के की चाहत नहीं रखी. वे कहते रहे कि मेरी सभी लड़कियां बराबर है और मैं लड़के को कभी मिस नहीं करता. हम सभी वैसे ही बड़े हुए है. मेरे पति ने भी मुझे वैसे ही सहरा दिया है. मुझे उनके लिए कुछ पैक्ड नहीं था. डिनर के लिए उनका इंतजार करने जैसी स्टीरियोटाइप महिला मुझे नहीं बनना पड़ा. उन्होंने मुझे हमेशा उतनी आज़ादी दी, जितनी मुझे चाहिए थी.

कम होती है रिश्तों की अहमियत

शर्मिला आगे कहती है कि पहले बच्चा माँ के बिना नहीं रह सकता, बाद में माँ ग्रांटेड हो जाती है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, जब मैंने शादी की तो मेरी पूरी नजर टाइगर पर था, बच्चे होने पर उनपर शिफ्ट हो गयी, अब ग्रैंड चिल्ड्रेन पर हो चुकी है. इस बीच माँ भी छूट जाती है. मैं अपनी दादी से बहुत प्रभावित रही. मेरे तीनों बच्चे हम दोनों से किसी न किसी रूप में मेल खाते है.

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