फिल्म ‘गुलमोहर’ अभिनेता मनोज बाजपेयी के लिए एक अलग और चुनौतीपूर्ण कहानी है, जिसे निर्देशक राहुल चित्तेला ने बहुत ही सुंदर तरीके से पर्दे पर उतारा है. ये नई जेनरेशन की फॅमिली ड्रामा फिल्म है, जिसमे मनोज बाजपेयी ने अरुण बत्रा की भूमिका निभाई है, जो काबिलेतारीफ है. मनोज कहते है कि मुझे एक ऐसी ही अलग कहानी में काम करने की इच्छा थी, जिसे निर्देशक राहुल लेकर आये और मुझे करने का मौका मिला. खास कर इस फिल्म के ज़रिये मुझे शर्मीला टैगोर और अमोल पालेकर जैसी लिजेंड के साथ काम करने का मौका मिला. मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है, जब मैं ऐसे लिजेंड कलाकार के साथ काम करता हूँ. मैंने अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता के साथ भी काम किया है. मुझे दुःख इस बात का है कि मैं अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम नहीं कर पाया. एक बार मैं लिजेंड दिलीप कुमार से भी मिला हूँ, उन्होंने सिर्फ कहा था कि मैं उम्दा काम करता हूँ. ये सारी बातें एक कलाकार को अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करती है.

फिल्म ‘बेंडिट क्वीन’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता मनोज बाजपेयी को फिल्म ‘सत्या’ से प्रसिद्धी मिली. इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. बिहार के पश्चिमी चंपारण के एक छोटे से गाँव से निकलकर कामयाबी हासिल करना मनोज बाजपेयी के लिए आसान नहीं था. उन्होंने धीरज धरा और हर तरह की फिल्में की और कई पुरस्कार भी जीते है. बचपन से कवितायें पढ़ने का शौक रखने वाले मनोज बाजपेयी एक थिएटर आर्टिस्ट भी है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में हर तरह की कवितायें पढ़ी है. साल 2019 में साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है.

रिलेटेबल है कहानी

मनोज ने हमेशा रिलेटेबल कहानियों में काम करना पसंद किया है, क्योंकि वे खुद को इससे जोड़ पाते है. इसी कड़ी में उन्होंने फिल्म ‘गुलमोहर’ किया है, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘डिजनी प्लस हॉटस्टार’ पर रिलीज होने वाली है, इस फिल्म में काम करने की खास वजह के बारें में पूछने पर वे बताते है कि ये इसकी स्क्रिप्ट और उलझन मेरे लिए आकर्षक है, एक परिवार के अंदर हर व्यक्ति कुछ पकड़ना चाह रहा है, लेकिन वह रेत की तरह उसके हाथ से छूट रहा है, ये मुझे बहुत अच्छा लगा. ये आज की कहानी है, जहाँ रिश्तों और संबंधों के बारें में लोग कम सोचते है. आज मैं काम में व्यस्त हूँ और अपने परिवार के साथ रहना मुमकिन नहीं होता, इसलिए जब भी थोडा समय मिलता है मैं परिवार के साथ रहने की कोशिश करता हूँ.

 

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रिश्तों को दे समय

रिश्ते और संबंधों में हल्कापन आने के बारें में मनोज का कहना है कि रिश्ते है, खासकर शहरों में किसी के पास समय नहीं है, जबकि गांव में ऐसा आज भी नहीं है, लेकिन रिश्ते तो है. व्यक्ति काम से अपने आप को बाहर नहीं निकाल पाता, ताकि रिश्तों को मजबूत कर पाएं. रिश्तों को उतना ही महत्व दें, जितना काम को देते है, ताकि बाद में कोई अफ़सोस न हो.

हैप्पी यादे जीवन की

मनोज आगे कहते है कि मुझे याद आता है, मैं एक्टर बनना चाहता था और मैंने 18 साल की उम्र में गांव छोड़ा था. गांव में तब फ़ोन की व्यवस्था नहीं थी, बाद में टेली फ़ोन आया और कम्युनिकेशन स्मूथ हो गया और अब सबके हाथ में मोबाइल फ़ोन है, लेकिन बात नहीं होती.

इसके अलावा जब गांव से निकला, तो परिवार से दूर हो गया, जब मैने उन्हें गांव से दिल्ली लाया, तो मैं मुंबई आ गया, इस तरह से मैं उनके साथ नहीं रह पाया. ये खाली है और कभी भर नहीं सकते. उसे याद करता हूँ और ये सारे हैप्पी यादें है. मैंने कुछ अपनी माँ से और कु अपने पिता से अडॉप्ट किया है. परिवार का साथ मिलकर रहना और बातचीत करना बहुत जरुरी होता है. इससे इमोशनल बोन्डिंग बढती है, जिसकी आज की स्ट्रेसफुल लाइफ में बहुत जरुरी होता है.

 

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ओटीटी ने दिया मौका

इंडिपेंडेंट फिल्मों के बनने से कलाकारों को काम करने का अधिक मौका मिला है और ये आगे तक चल सकेगी. मनोज आगे कहते है कि इंडिपेंडेंट सिनेमा में पैसे नहीं होते, लेकिन कहानी को अपने हिसाब से कहने और फिल्म मेकिंग को ऑर्गनाइज कर दिया है. आज सबके पास वौयस् है, पहले ऐसा नहीं था.

इस फिल्म को करते हुए मैंने बहुत एन्जॉय किया है. फिल्म किसी को कुछ सिखाती नहीं, रिलेट कराती है. इसलिए विश्वास के साथ काम करें, तो सफल अवश्य होगी. मुझे याद है, मुझे फिल्मों में एंट्री मिलना थोडा मुश्किल था, लेकिन मैंने एक्टिंग की ड्रीम को मैंने नहीं छोड़ा. बदलाव जरुरी था, लेकिन ओटीटी ने इस बदलाव को जल्दी ला दिया. फिल्म मेकिंग की तकनीक भी बहुत बदली है.

महिलाओं को आगे बढ़ने में होती है समस्या

मनोज आगे कहते है कि परिवार और पुरुष को इस बात को समझना पड़ेगा कि समय बदल गया है और महिलाओं के सामने पूरा आसमान है और वह पूरी तरह से स्वतंत्र ख्याल की हो चुकी है. उनपर किसी प्रकार की बंदिश लगाने से वह सम्बन्ध नहीं रहेगा. परिवार को मजबूत करने के लिए महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता के साथ उड़ पाए, इसके लिए पुरुष की तरफ से एक समझदारी की जरुरत है. मेरे परिवार में मेरी माँ एक स्ट्रोंग महिला रही, उनकी कई बातों को मैं अपने जीवन में उतारता हूँ. ये बातें मेरी जीवन में महत्वपूर्ण है और अंत तक मेरे साथ रहेंगी. मेरे जीवन में काम और परिवार के अलावा कुछ भी नहीं है.

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