रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी, अश्विन वर्दे, भूषण कुमार, किशन कुमार

लेखक व निर्देशकः संदीप रेड्डी वांगा

कलाकारः शाहिद कपूर, किआरा अडवाणी,अर्जन बाजवा और सुरेश ओबेराय

अवधिः दो घंटे 55 मिनट

बौलीवुड में प्यार को लेकर हजारों फिल्में बन चुकी हैं. बेइंतहा प्यार में डूबे प्रेमी अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं. प्यार में कुर्बान हो जाने वाले प्रेमियों की भी कमी नही है. मगर फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ में एक अलग तरह की प्रेम कहानी है. यह कहानी एक बेहतरीन सर्जन डौक्टर की है, जो कि अति गुस्सैल है. उसके गुस्से आगे कोई नहीं ठहर सकता. वह अपने मेडिकल कौलेज की नई छात्रा प्रीति से बिना पूछे ही प्यार कर बैठता है और उसे अपने प्यार में दिवाना भी बना देता है. मगर कबीर सिंह भी दिशा भ्रम का शिकार है. अपने अंदर के गुस्से पर काबू न कर पाने और हालात का सही आकलन न कर पाने वाले युवक की कहानी है कबीर सिंह. माना कि वर्तमान युवा पीढ़़ी में चंद युवक कबीर सिंह की तरह गुस्सैल, दिशा भ्रमित, परिवार व समाज की परवाह न करने वाले, दिन रात ड्रग्स, शराब, सिगरेट आदि में डूबे रहने वाले,परि7स्थितियों का सही आकलन करने की बजाय सब कुछ गंवा देने वाला एक प्रतिशत युवक मौजूद होगा, मगर फिल्म में उसका महिमा मंडनकर पूरी युवा पीढ़ी को एक ही पायदान पर खड़ा कर देने की फिल्मकार की  कोशिश को जायज तो नहीं ठहराया जा सकता.फिल्म में कामुकता को प्यार से जिस तरह फिल्मकार ने जोड़ा है,वह भी कई सवाल खडा करता है. सिनेमा को महज मनोरंजन का साधन मानकर मनोरंजन के नाम पर इस तरह के चरित्रों का महिमा मंडन करना उचित है?मगर फिल्मकार की नजर में यह सारे सवाल बेमानी है क्योंकि हिंदी फिल्म ‘कबीर सिंह’ 2017 की सफल तेलगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ का रीमेक है.

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