हास्य व्यंग्य से युक्त कोर्टरूम ड्रामा वाली फिल्म ‘‘जॉली एलएलबी 2’’ देखकर दर्शक को वास्तव में भारतीय अदालतों की कारवाही की याद आएगी. क्योंकि जिस तरह से भारतीय अदालतों में मुकदमे वर्षों तक घिसटते रहते हैं, उसी तरह यह फिल्म भी घिसटते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ती है. फिल्म में रोमांचक पलो का घोर अभाव है. कहानी में कोई नयापन नहीं है. कई फिल्मों से चीजें उठाकर पेश कर दी गयी हैं.

कहानी की शुरुआत लखनऊ में एक स्कूल के सामने से होती है, जहां लोगों और पुलिस का भी जमावड़ा है. स्कूल के अंदर कक्षाओं में बच्चे परीक्षा देने के लिए बैठे हैं, मगर सभी को प्रश्नपत्र का उत्तर लिखवाने वाले का इंतजार है. अंग्रेजी का पर्चा है. कुछ देर में स्कूल के बाहर वकील जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) आकर पांच हजार रूपए लेकर माइक पर सवालों के जवाब लिखवा देता है. फिर वह अदालत पहुंचते हैं. पता चलता है कि वह फिलहाल वकील रिजवी के यहां मुंशी हैं, जिनके साथ कभी उनके पिता भी मुशी थे. पर जॉली को अपना खुद का चेंबर चाहिए, वकील बनना है. इसके लिए वह दुबे को को दस लाख रूपए देते हैं. इसी के चलते जॉली,हीना सिद्दिकी (सयानी गुप्ता) से कह देता है कि वकील रिजवी उसका मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हैं और दो लाख रूपए चाहिए. जॉली को चेंबर मिल जाता है, पर हीना को सच पता चलता है. वह अपने घर की छत से कूदकर आत्महत्या कर लेती है. अब आत्मग्लानि व अपराध बोध से ग्रसित जॉली, हीना का केस लड़ने का फैसला कर सारे कागजात का अध्ययन करता है.

जॉली घर के अंदर पत्नी के सामने चूहा बने रहते हैं. वह अपनी पत्नी पुष्पा पांडे (हुमा कुरेशी) को खुद ही जाम बनाकर पीने के लिए देते हैं. हीना की शादी के बीस घंटे बाद ही हीना के पति इकबाल कासिम (मानव कौल) का पुलिस इंस्पेटर सूर्यवीर सिंह (इनामुल हक) ने एनकाउंटर कर दिया था और उसे इकबाल कादिर नाम दिया था. उसी दिन हेड कांस्टेबल भदोरिया की भी हत्या सूर्यवीर ने की थी. सारे कागजात पढ़कर जॉली एक पीआईएल दाखिल करता है. जिसकी सुनवाई न्यायाधीश सुंदरलाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) की अदालत में शुरू होती है. सूर्यवीर की तरफ से वकील प्रमोद माथुर (अन्नू कपूर) मुकदमा लड़ते हैं. पहले ही दिन अदालत मेंजॉली की बातों से सूर्यवीर को खतरा महसूस होता है. फिर जब पता चलता है कि जॉली झांसी जाकर भदोरिया के बेटे को गवाही के लिए लेकर आएगा, तो जॉली पर गोली चल जाती है.

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