कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे मेरठ के इंडियन पौप रौक और प्लेबैक सिंगर कैलाश खेर ने ‘टूटा टूटा एक परिंदा….’ गाने से अपनी पहचान बनाई. उनका शुरूआती दौर काफी संघर्षपूर्ण था. केवल 13 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था और अपने संगीत की पहचान बनाने के लिए पहले दिल्ली, फिर मुंबई आये. उन्होंने सूफी संगीत के साथ रौक का फ्यूजन कर जो शैली विकसित की है वह काबिले तारीफ है.

वह देश में ही नहीं विदेशों में भी अपने संगीत की वजह से पहचाने जाते हैं. वे हर तरह के गीतों को गाना पसंद करते हैं. उन्होंने आजतक 18 भाषाओं में गाने गाये हैं, जिसमें बौलीवुड के 300 गाने हैं. उन्हें अपनी उत्कृष्ट गायिकी के लिए इस साल पद्मश्री से भी नवाजा गया है. साधारण कद–काठी के कैलाश खेर से उनके अंधेरी स्थित स्टूडियो ‘कैलासा’ में मिलना हुआ. अपने मंजिल तक वह कैसे पहुंचे आइये उन्हीं से जानते हैं.

अपने बारे में बताएं.

मैं दिल्ली का हूं और मेरा बचपन काफी अलग था. मेरे पिता गाते थे, उन्हें देखकर, पढाई के साथ-साथ मुझे भी गाने का शौक हुआ करता था, लेकिन गाने से अधिक मुझे रहस्यवाद कवितायें लिखने का शौक था, जो सूफी कहलाता है. बड़े ये गाते थे और मुझे सुनने में बहुत अच्छा लगता था, उस समय मेरी उम्र केवल 4 से 5 साल की थी. वहीं से मेरे अंदर इसे गाने की इच्छा पैदा हुई, लेकिन परिवार वाले कहते थे कि पढाई पूरी कर नौकरी करना है, जो मुझे पसंद नहीं था. मैं अपनी जिद पर अड़ा था कि मैं गाना ही गाऊंगा, इसलिए मैं परिवार में किसी का प्यारा नहीं था और 14 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया. घर छोड़ देने के बाद मैंने सारे रिश्ते छोड़ दिए. अब अपने दम पर जीने की चुनौती आई.

कितना और कैसा संघर्ष था?

कामयाब होने से पहले मेरे जीवन में बहुत संघर्ष था. घर छोड़कर दिल्ली जैसे शहर में अकेले रहना, पेट भरना, पढाई पूरी करना और अपने आप को प्रूव करना सब एक साथ आ गया. किराये पर बहुत दिनों तक रहा, करीब 12 साल तक दिल्ली में 10 से 15 घर बदले. जिंदगी जीने का बहुत बड़ा संघर्ष था, लेकिन इस संघर्ष से मैंने विनम्र होना, जीना और चुनौती लेना सीखा. मैंने इस संघर्ष से एक इंसान बनना सीखा.

उस समय मैं संगीत क्या है, उसे करीब भूल चुका था. कैसे अपना पेट भरु, कैसे माता-पिता को अपनी शकल दिखाऊं, इस उठा-पटक में कब मैं 27 साल का हो गया, पता ही नहीं चला. जिसके लिए घर छोड़ा उसी को नहीं कर पाया, क्योंकि आटे, तेल, लकड़ी इसी में जिंदगी उलझ गयी थी. हमारे देश में ऐसे लाखों लोग हैं, जो सपने तो देखते हैं, पर वह पूरा नहीं हो पता. इसके अलावा मेरा दिल्ली में मेरा एक छोटा सा एक्सपोर्ट का व्यवसाय भी फेल हो चुका था. मैं अवसाद में चला गया था. उससे निकलने के कई काम किये. एक बार तो आत्महत्या की भी इच्छा हुई, पर इस दौरान मैंने देखा कि जब भी कुछ गाता था, तो सुनने वाले झूम उठते थे, फिर मैंने साल 2001 में मुंबई आने का प्लान बनाया और एल्बम बनाने की सोची. दो साल यहां मेहनत की और साल 2004 में ‘टूटा-टूटा’ गाने के रिलीज के बाद तो कहानी पूरी तरह से बदल गयी. कई टीवी, रेडियो जिंगल्स और फिल्मों में गाने का औफर मिलने लगे.

परिवार के साथ फिर से कैसे मिले? उनका सहयोग आपके जीवन में कितना है?

पहले तो नहीं था, लेकिन मुंबई आने के बाद काम के साथ-साथ जब पैसे मिलने लगे, तो जिंदगी में खुशियां मिलने लगी, आत्मविश्वास बढ़ने लगा. माता-पिता के पास गया, उन्हें मुंबई ले आये. अभी वे दोनों नहीं रहे, पर मैं खुश हूं कि उन्होंने मेरी कामयाबी को देखा है. मेरी शादी एरेंज्ड है, मेरी पत्नी शीतल भान हाउसवाइफ है, मेरा एक बेटा कबीर 7 साल का है, जो मेरे और अंग्रेजी गाने सुनता है. मेरी कामयाबी में परिवार पत्नी और मेरे सहयोगी सभी का हाथ है. ये सेलिब्रिटी स्टेटस भी उनके वजह से मिला है. जीवन में कोई भी प्रसिद्धी आसानी से नहीं मिलती और जो इससे गुजरते हैं, उन्हें इसका मूल्य पता होता है. इस लिए ग्राउंडेड रहने में कोई मुश्किल नहीं होती.

आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं थोड़ा-थोड़ा खाता रहता हूं. गले के लिए गरम पानी पीता हूं. सकारात्मक सोच रखता हूं. किसी का दिल नहीं दुखाता. कोई दुखी हो तो उसे संगीत से खुशी देता हूं.

इंडस्ट्री आउटसाइडर को कितना मौका देती है?

जिनमें हुनर हो, उन्हें मौका मिलता है. इंडस्ट्री कोई नहीं होती, हुनर ही इंडस्ट्री है. आप में अगर प्रतिभा है तो हर कोई आपको पसंद करता है. जब मैंने ‘देव’ फिल्म के दौरान ‘पिया के रंग, रंग दीनी..’ गाना गाया तो अमिताभ बच्चन भी चौक कर मुझे देखने लगे थे. कैसे भी आप हो, छोटे-बड़े, कम या अधिक उम्र, लेकिन हुनर सबका बाप है. भाई-भतीजावाद पर मैं विश्वास नहीं करता. रंग-भेद और जातिवाद को कभी मैंने महसूस नहीं किया है, लेकिन शुरू में सब सोचते थे कि मैं कौन हूं, कहां से हूं और क्या गा सकता हूं. ये समस्या आई, लेकिन जब प्रतिभा दिखी, तो सब ने स्वीकार कर लिया.

अवार्ड का मिलना किसी कलाकार के लिए कितना मायने रखती है?

12 साल बाद मुझे पद्मश्री मिली. मुझे खुशी हुयी, लेकिन अवार्ड से जिम्मेदारी बढ़ती है.

क्या कभी ‘रिजेक्शन’ का सामना करना पड़ा?

मैं तो रिजेक्शन से ही आगे आया हूं. शुरू से अगर मुझे स्वीकृति मिल जाती तो मैं यहां तक पहुंच नहीं पाता. शुरू में मैंने शाहरुख खान की बड़ी फिल्म ‘चलते-चलते’ के लिए गाना गाया था, मैं खुश था कि मुझे बड़ा ब्रेक मिल रहा है, कुछ दिनों बाद जब म्यूजिक रिलीज हुई, तो उसमें मेरा नाम नहीं था. उसी गाने को किसी और सिंगर से गवाया गया था. ऐसी घटना से आपको पता नहीं चलता कि आप रिजेक्ट हो चुके हैं. बड़ा झटका लगा था, लेकिन ये सब चीजें आपको सीख देती हैं.

आजकल के अभिनेता और अभिनेत्री फिल्मों में गाने लगे हैं ऐसे में प्लेबैक सिंगर के लिए कितनी जगह रह जाती है?

इसकी उम्र छोटी होती है. जो रियल सिंगर है, सालों से मेहनत की है, उनकी चमक अलग होती है. मैं इसमें कोई खतरा महसूस नहीं करता. मैंने एल्बम से काम शुरू किया था. मेरी पहली एल्बम ‘कैलासा’ थी, मेरे बैंड का नाम ‘कैलासा’ है और मेरी स्टूडियो का नाम भी ‘कैलासा’ है. एल्बम कम चलते हैं, लेकिन अच्छे गानें हो तो लोग पसंद करते हैं.

कारगिल में जाने का अनुभव कैसा रहा?

मैं स्वच्छ भारत के अभियान में काम कर रहा हूं. मुझे ये सब करना अच्छा लगता है. मुझे जब भी मौका मिलता है, सैनिकों के बीच में जाता रहता हूं. करगिल में मैंने एक शो किया. वहां के सैनिक और आफिसर विषम परिस्थिति में किस तरह काम करते हैं. ये जानना और देखना मेरे लिए हृदय विदारक था. हमारे देश में पैसे के लिए अधिकतर लोग काम करते है, लेकिन कोई भी जिम्मेदारी से काम नहीं करता. अगर वे सही काम करते, तो देश आज और तरक्की करता. सरकारी काम लेते ही वे निकम्मे हो जाते हैं. आधा समय छुट्टियों में बिता देते हैं, लेकिन सरकारी नौकरी होने के बाद भी सैनिक अपनी जिम्मेदारी माइनस 40 डिग्री में निभाते हैं. सैनिकों के लिए मेरा संदेश है कि अगर वे देश के प्रति समर्पित हैं, तो मैं भी उनकी सेवा में हमेशा तत्पर रहूंगा. उनके लिए मैं एक गाना भी बना रहा हूं. देश की नागरिकों से कहना है कि आप देश को साफ बनाए इधर-उधर न थूकें, अपने आस-पास को साफ रखें. सैनिकों का सम्मान करें.

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