रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः अजय देवगन, लव रंजन, अंकुर गर्ग, भूषण कुमार
निर्देशकः हंसल मेहता
कलाकारः राज कुमार राव, नुसरत भरूचा, सतीश कौशिक, सौरभ शुक्ला, मो. जीशान अयूब.
अवधिः दो घंटे 16 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मःअमेजान प्राइम वीडियो
‘शाहिद’, ‘अलीगढ़’जैसी फिल्मों के सर्जक हंसल मेहता इस बार सामाजिक ब्लैक कॉमेडी वाली फिल्म ‘छलांग’ (जिसका अर्थ होता है ‘कूद’ ) लेकर आए हैं. जिस 13 नवंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमेजन’पर देखा जा सकता है. दो घंटे 16 मिनट की अवधि वाली इस फिल्म का नाम पहले ‘तुर्ररम खां’था.
कहानीः
फिल्म की कहानी झाझर, हरियाणा जैसे छोटे शहर के एक अर्ध सरकारी स्कूल से शुरू होती है, जहंा की प्रिंसिपल उषा गहलोत(इला अरूण)हैं. इस स्कूल में ही पढ़े हुए महिंदर सिंह हुडा उर्फ मंटो(राज कुमार राव)पीटी शिक्षक हैं. प्रिंसिपल ने उन्हे यह नौकरी मंटो के पिता वकील हुडा(सतीश कौशिक )के कहने पर दी है. हुडा के घर के उपर ही रहने वाले शुक्ला जी(सौरभ शुक्ला) इस स्कूल में हिंदी के शिक्षक हैं. अविवाहित हैं. मंटो के परिवार में मां(बलविंदर कौर)और एक छोटा भाई बबलू(नमन जैन) है. बबलू भी इसी स्कूल में पढ़ता है. मंटो कहने को पीटी शिक्षक हैं, मगर वह कुछ करते नहीं हैं. किसी तरह नौकरी चल रही है. मगर रवीवार या ‘वेलेनटाइन डे’पर‘‘संस्कृति दल’’के लोगों के साथ पार्क में जाकर प्रेमी जोड़ो की पिटायी और उन्हें अपमानित जरुर करते हैं. वेलेनटाइन डे पर पार्क में टहल रहे नीलिमा (नुसरत भरूचा) के माता (सुपर्णा मारवाह) व पिता (राजीव गुप्ता) का भी अपमान करते हैं और उनकी तस्वीर अखबार में छपवा देते हैं, जबकि फोन पर नीलिमा ने कहा था कि वह दोनों उसके माता पिता हैं. स्कूल में जब सभी मंटो की तारीफ कर रहे होते हैं, तभी प्रिंसिपल उषा के साथ नीलिमा पहुंचती हैं और प्रिंसिपल उषा परिचय कराती हैं कि नीलिमा स्कूल की कम्प्यूटर शिक्षक हैं. अखबार हाथ में लेकर नीलिमा मंटो को खूब खरी खोटी सुनाती हैं.
उसके बाद शुक्ला के कहने पर मंटो, नीलिमा से माफी मांगते हुए सफाई देते हैं कि यह सब गलतफहमी के चलते हुआ. इस पर नीलिमा का तर्क है कि प्यार करना गुनाह नही है. पार्क में लड़के व लड़की का एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैठना भी गुनाह नही है. उसके बाद से दोनों के बीच स्कूल में नोक झोक चलती रहती है. इसी बीच मंटो, नीलिमा को अपना दिल दे बैठते हैं. खैर, नीलिमा भी उन्हे चाहने लगती हैं.
पर तभी स्कूल में वरिष्ठ पीटी शिक्षक के रूप में इंद्र मोहन सिंह(मोहम्मद जीशान अयूब)की भर्ती होती हैं और अब मंटो को उनका सहायक बनकर काम करना है. प्रिंसिपल उषा के समझाने पर मंटो, इंद्र मोहन सिंह के सहायक के रूप में काम करने लगते हैं. मगर इंद्र मोहन सिंह बड़े सलीके से बच्चों के सामने मंटो को जलील करने के साथ ही अपनी बाइक पर नीलिमा को उसके घर भी छोड़ने लगते है. मंटो को अहसास होता है कि सिंह तो उनकी पे्रमिका को भी उनसे छीन रहा है. अचानक एक दिन दोनो झगड़ पड़ते है. मंटो को अपना अपमान नजर आता है और फिर मंटो नौकरी छोड़ देते हैं. शुक्ला जी, उषा के अलावा मंटो से बात कर एक राह निकालते हैं. अब प्रेमिका और नौकरी दोनो को बचाने तथा सिंह को सबक सिखाने के लिए मंटो वह सब करने पर उतारू हो जाते हैं, जिसे वह कभी गंभीरता से नहीं लेते थे. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. इस बीच कुछ सबक भी सिखाए जाते हैं.
लेखनः
कहानी में नयापन नही है, मगर मानवीय ड्रामा है. मानवीय रिश्तों और मानवीय भावनाओं को बड़ी बारीकी से उकेरा गया है. वैसे भी लव रंजन की गिनती मानवीय भावनाओं की समझ रखने वाले लेखक व निर्देशक के तौैर पर होती है, पर इस फिल्म के वह कहानीकार हैं और उन्होने असीम अरोड़ा तथा जीशान कादरी के साथ मिलकर पटकथा लिखी है. पटकथा काफी कमजोर हैं. कई दृश्य काफी कमजोर हैं. इसमें विलेन की सबसे बड़ी कमी है. कुछ दृश्य हंसाते हैं. पटकथा लेखन की कमजोरी के चलते यह न सही ढंग से ‘स्पोर्टस फिल्म’बन पाती है और न ही ‘त्रिकोणीय प्रेम कहानी वाली फिल्म बन पाती है.
फिल्म के संवाद काफी अच्छे हैं.
निर्देशनः
हंसल मेहता की बतौर निर्देशक वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’की काफी तारीफ हो रही है. पर इस फिल्म में उनका निर्देशन बड़ा सतही है. यह खेल की फिल्म है यानी कि एक प्रतियोगिता है, मगर प्रतिस्पर्धा का जो रोमांच होता है, उसे स्थापित करने में निर्देशक असफल रहे हैं. इंटरवल के बाद फिल्म में सब कुछ वही है, जिसे तमाम खेल वाली फिल्मों में दर्शक देख चुके हैं.
बतौर निर्देशक हंसल मेहता को गंभीर, संजीदा व संवेदनशील विषयों वाली फिल्मों के निर्देशन में महारत हासिल है, मगर पता नहीं क्यों हल्के फुल्के विषय के निर्देशन में वह सुस्त हो जाते है.
लेखक व निर्देशक ने कुछ अच्छी बातें भी की हैं. मसलन-हर इंसान को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना जरुरी है. अथवा बच्चे खिलाड़ी बने, इसकी आशा रखने वाले माता पिता को पहले खिलाड़ी बच्चे का माता पिता बनना सीखना होगा. मगर यह सब बातें क्लायमेक्स में इस तरह से कही गयी हैं कि इनका प्रभाव पड़ने की बजाय किसी नेता की भाषणबाजी ज्यादा नजर आता है.
अभिनयः
राज कुमार राव बेहतरीन अभिनेता हैं, पूरे कंविक्शन के साथ उन्होने महिंदर सिंह उर्फ मंटो के किरदार को निभाया है. सौरभ शुक्ला ने शानदार अभिनय किया है. राज कुमार राव और सौरभ‘शुक्ला के बीच की केमिस्ट्री काफी अच्छी बन पड़ी है. नुसरत भरूचा ठीक ठाक हैं. वैसे उनके हिस्से करने के लिए कुछ खास आया ही नहीं. मो. जीशान अयूब ने भी अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है, पर बहुत ज्यादा प्रभावत नही कर पाते. जतिन सरमा की प्रतिभा को जाया किया गया है. सतीश कौशिक, राजीव गुप्ता व अन्य कलाकारो ने अपना काम सही ढंग से किया है. इला अरूण का किरदार काफी छोटा है, पर वह अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.
अंतिम बातः
यदि लेखकों और निर्देशक ने मेहनत की होती, तो यह एक यादगार फिल्म बन सकती थी, पर वह भूल गए कि जब फिल्म की कहानी खेल के इर्द गिर्द हो, तो प्रतिस्पर्धा का रोमांच उभरना चाहिए. इसके अलावा इंद्रमोहन सिंह के किरदार को बुरा बताया ही नही गया, ऐसे में मंटो के किरदार के साथ सहानुभूति पैदा नही होती. यह भी लेखक व निर्देशक की ही कमजोर कड़ी का हिस्सा है.