भीतरी वायु प्रदूषण चेतावनी के स्तर तक पहुंच गए हैं जिससे अस्थमा की समस्या में इजाफा हो रहा है. संगम नगरी में लगभग तीन लाख ऐसे लोग हैं जो अस्थमा से पीड़ित हैं. हालिया अध्ययन के अनुसार, "हवा की गुणवत्ता को बहुत खराब पाया गया, जिसमें धूल व धूल के घुन बहुत ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं, 91% प्रतिवादी इसे भीतरी वायु प्रदूषण का मुख्य कारण मानते हैं."

भीतरी हवा में रहने वाले परागों व नुकसानदायक पदार्थों में अस्थमा को बढ़ावा देने की क्षमता होती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘‘वायु प्रदूषण के मामले में भारत दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित नगरों में 13 तो अकेले भारत में ही हैं. इस देश में लगातार बढ़ते प्रदूषण के स्तर के कारण, पल्मनरी और श्वसन संबंधित बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में महत्वपूर्ण रूप से इजाफा हो रहा है.’’

खुद को बीमार होने से बचाने के लिए, ज्यादातर लोग बाहरी हवा के संपर्क में आने से बचने के लिए भीतर ही रहना पसंद करते हैं और अपने घर की चारदीवारी के अंदर खुद को सुरक्षित मानते हैं. हालांकि, हमें यह पता नहीं होता है कि हमारे घरों के अंदर की हवा बाहरी हवा से 10 गुना ज्यादा तक प्रदूषित हो सकती है.

यूएस पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (ईपीए) के अनुसार, चूंकि एक व्यक्ति औसत रूप से अपना 90 प्रतिशत समय दरवाजे के भीतर बिताता है, भले ही वह कार्यालय में हो या घर पर, इसलिए भीतर की हवा की गुणवत्ता सेहत की सामान्य स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. यह बच्चों, बुजुर्गों और अन्य कमजोर समूहों के लिए खासतौर पर सही है. भले ही हम अपने आहार की चिंता करते हुए अपनी सेहत की ओर ध्यान देते हों, लेकिन हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी गुणवत्ता को लेकर हम में से ज्यादातर लोग असावधान होते हैं.

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