लेखिका – डॉ. अंचल गुप्ता, सीनियर नेत्र रोग विशेषज्ञ एंड फाउंडर ऑफ नेत्रम ऑय फाउंडेशन

Myopia in Kids: एक नेत्र रोग विशेषज्ञ और एक माँ के तौर पर मैं समझ सकती हूँ कि जब किसी बच्चे को मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) का पता चलता है, तो माता-पिता की चिंता कितनी बढ़ जाती है. हाल के वर्षों में, खासकर शहरों में, बच्चों में मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन अच्छी बात यह है कि मायोपिया सिर्फ इलाज योग्य ही नहीं है, बल्कि कुछ हद तक रोका भी जा सकता है.

मायोपिया क्या है

मायोपिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा पास की चीजें तो साफ़ देख सकता है, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं. यह तब होता है जब आँख का आकार सामान्य से ज़्यादा लंबा हो जाता है या कॉर्निया (नेत्र की बाहरी सतह) अधिक मुड़ी हुई होती है, जिससे प्रकाश की किरणें रेटिना के ठीक ऊपर फोकस होने के बजाय उससे पहले ही फोकस हो जाती हैं. बच्चे अक्सर ब्लैकबोर्ड साफ़ न दिखने की शिकायत करते हैं, आँखें मिचमिचाते हैं, सिरदर्द की शिकायत करते हैं या किताबें बहुत पास लेकर पढ़ते हैं.

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डॉ. अंचल गुप्ता, सीनियर नेत्र रोग विशेषज्ञ एंड फाउंडर ऑफ नेत्रम ऑय फाउंडेशन

मायोपिया के कारण क्या हैं?

मायोपिया के दो मुख्य कारण होते हैं:

अनुवांशिकता (Genetics) : अगर माता या पिता में से किसी एक को मायोपिया है, तो बच्चे को इसका ख़तरा ज़्यादा होता है.

जीवनशैली (Lifestyle Factors) : बहुत ज़्यादा पास का काम (जैसे पढ़ाई, मोबाइल या टैबलेट पर समय बिताना), बाहर खेलने का कम समय और लंबा स्क्रीन टाइम मायोपिया को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

आज की जीवनशैली, जिसमें पढ़ाई, डिजिटल लर्निंग और बाहर खेलने का समय बहुत कम रह गया है, बच्चों में मायोपिया के जल्दी शुरू होने और तेजी से बढ़ने के लिए जिम्मेदार है.

क्या इसे रोका जा सकता है?

हम अनुवांशिक कारणों को तो नहीं बदल सकते, लेकिन पर्यावरणीय कारणों में ज़रूर बदलाव ला सकते हैं. हर माता-पिता को मैं ये सलाह देना चाहूंगी:

बाहर खेलने का समय बढ़ाएँ: अपने बच्चे को रोज़ाना कम से कम 2 घंटे बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें. सूरज की रोशनी और दूर की चीजों को देखने से मायोपिया के बढ़ने की गति कम होती है.

20-20-20 नियम अपनाएँ: हर 20 मिनट पास का काम करने के बाद (जैसे पढ़ाई, होमवर्क या स्क्रीन देखना), बच्चे को कम से कम 20 फीट दूर किसी चीज़ को 20 सेकंड तक देखने के लिए कहें.

स्क्रीन टाइम सीमित करें: 6 साल से छोटे बच्चों को स्क्रीन पर बहुत कम समय देना चाहिए. बड़े बच्चों में भी स्क्रीन टाइम सीमित रखें और उपकरणों का इस्तेमाल करते समय सही पोस्चर और रोशनी का ध्यान रखें.

नियमित आँखों की जाँच कराएँ: भले ही बच्चे को कोई समस्या न लगे, हर साल एक बार आँखों की जाँच कराना ज़रूरी है.

मायोपिया का इलाज क्या है?

अगर आपके बच्चे को मायोपिया है, तो सबसे पहले चश्मा लगाया जाता है. लेकिन अब हमारे पास मायोपिया कंट्रोल के ऐसे विकल्प भी मौजूद हैं, जिनसे मायोपिया बढ़ने की रफ्तार को कम किया जा सकता है:

स्पेशल लेंस: जैसे DIMS (Defocus Incorporated Multiple Segments) या MiyoSmart लेंस, जो मायोपिया बढ़ने की गति को कम करने में मदद करते हैं.

ऑर्थोकेराटोलॉजी (Ortho-K): ये कठोर कॉन्टैक्ट लेंस होते हैं, जो रात में पहनकर सोते हैं और अस्थायी रूप से कॉर्निया को सही आकार में ढालते हैं.

एट्रोपिन आई ड्रॉप्स: कम मात्रा की एट्रोपिन ड्रॉप्स (0.01%) सुरक्षित और प्रभावी विकल्प हैं, खासकर उन बच्चों में जिनकी पावर तेजी से बढ़ रही हो.

निष्कर्ष

मायोपिया अब सिर्फ मामूली सी परेशानी नहीं रह गई है. अत्यधिक मायोपिया भविष्य में रेटिना डिटैचमेंट या ग्लॉकोमा जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है. जितनी जल्दी हम इसे पहचानें और इलाज शुरू करें, उतनी ही अच्छी तरह से हम अपने बच्चों की दृष्टि को सुरक्षित रख सकते हैं.

एक माँ के रूप में, आप अपने बच्चे की पहली सुरक्षा कवच होती हैं. लक्षणों पर ध्यान दें, बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें और नेत्र जाँच कराने में कभी देर न करें.

आइए, मिलकर अपने बच्चों की आँखों की रोशनी को सुरक्षित रखें—आज भी और भविष्य में भी. Myopia in Kids

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