कोरोना जैसी महामारी से निबटने के लिए जितना हो सके अपनी  इम्यूनिटी को बढ़ाना बहुत जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए मार्केट में ढेरों सप्लिमैंट्स उपलब्ध हैं. लेकिन अगर बात हो शिशुओं की,  तो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता. तभी तो हर न्यू मौम को यह सलाह दी जाती है कि वह शुरुआती 6 महीने अपने बच्चे को सिर्फ अपना दूध ही पिलाए क्योंकि मां का दूध विटामिंस, मिनरल्स व ढेरों न्यूट्रिएंट्स का खजाना जो  होता है.

ब्रैस्ट फीडिंग से बढ़ती है इम्यूनिटी

अकसर न्यू मौम्स अपनी फिगर को मैंटेन रखने के लिए व बच्चे की भूख को शांत करने के लिए उसे शुरुआती जरूरी महीनों में ही फौर्मूला मिल्क देना शुरू कर देती हैं. भले ही इस से उन की भूख शांत हो जाती हो, लेकिन शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी नहीं हो पाती. जबकि मां का दूध प्रोटीन, फैट्स, शुगर, ऐंटीबौडीज व प्रोबायोटिक से भरपूर होता है, जो बच्चे को मौसमी बीमारियों से बचा कर उस की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है.

अगर मां किसी इन्फैक्शन की चपेट में आ भी जाती है, तो उस इन्फैक्शन से लड़ने के लिए शरीर ऐंटीबौडीज बनाना शुरू कर देता है और फिर यही ऐंटीबौडीज मां के दूध के जरीए बच्चे में पहुंच कर उस की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है. तो हुआ न मां का दूध फायदेमंद.

कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो बच्चे शुरुआती 6 महीनों में सिर्फ ब्रैस्ट फीड करते हैं, उन में किसी भी तरह की ऐलर्जी, अस्थमा व संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इसलिए मां का दूध बच्चे के लिए दवा का काम करता है.

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 ब्रैस्ट फीडिंग वीक

महिलाओं में ब्रैस्ट फीडिंग के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 1 से  7 अगस्त के बीच विश्व स्तर पर ब्रैस्ट फीडिंग वीक मनाया जाता है. उन्हें हर साल जगहजगह पर आयोजित कार्यक्रमों के जरीए शिक्षित किया जाता है कि मां के दूध से न सिर्फ बच्चा ही बीमारियों से दूर रहता है बल्कि मां भी इस से ओवेरियन व ब्रैस्ट कैंसर के रिस्क से बच सकती है. इस से रिलीज होने वाला हारमोन औक्सीटोसिन के कारण यूटरस अपने पहले वाले आकार में तो आ ही जाता है, साथ ही ब्लीडिंग भी कम हो जाती है. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से कैलोरीज बर्न होने के कारण महिला की बौडी को शेप में आने में आसानी होती है. इसलिए जागरूक बन कर बच्चे को करवाएं ब्रैस्ट फीड.

जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग के अन्य फायदे

न्यूट्रिशन ऐंड प्रोटैक्शन:

मां के स्तनों से आने वाले पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं, जिसे बेकार सम झ कर बरबाद न करें क्योंकि यह न्यूट्रिएंट्स का खजाना होने के साथ इस में फैट की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिस से बच्चे के लिए इसे पचाना काफी आसान हो जाता है, साथ ही यह बच्चे के शरीर में ऐंटीबौडीज बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रौग बौंड बनाने में मददगार:

बचपन से ही मां और बच्चे का बौंड स्ट्रौंग बने, इस के लिए ब्रैस्ट फीडिंग का अहम रोल होता है. ब्रैस्ट फीड करवाने से मां और बच्चा एकदूसरे का स्पर्श पाते हैं. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से औक्सीटोसिन हारमोन, जिसे बौंडिंग हारमोन भी कहते हैं रिलीज होता है. यही हारमोन जब आप किसी अपने को किस या हग करते हैं, तब भी रिलीज होता है.

ब्रैस्ट फीड बेबी मोर स्मार्ट:

विभिन्न शोधकर्ताओं ने ब्रैस्ट फीडिंग व ज्ञानात्मक विकास में सीधा संबंध बताया है. अनेक शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन बच्चों को लंबे समय तक ब्रैस्ट फीड करवाया जाता है, उन का आईक्यू लैवल काफी तेज होने के साथसाथ वे हर चीज में काफी स्मार्ट भी होते हैं क्योंकि मां के दूध में दिमाग को तेज करने वाले न्यूट्रिएंट्स कोलैस्ट्रौल, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड पाए जाते हैं.

ब्रैस्ट मिल्क को बच्चा आसानी से पचा लेता है क्योंकि इस में फैट की मात्रा बहुत कम होती है, जिस से बच्चे को कब्ज जैसी शिकायतों का भी सामना नहीं करना पड़ता, जबकि बच्चे के लिए फौर्मूला मिल्क को पचाना काफी मुश्किल हो जाता है और जब यह पचता नहीं है तो बच्चे को उलटी, पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए ब्रैस्ट फीड है बैस्ट.

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एसआईडीएस का खतरा कम:

एक शोध से यह पता चला है कि कम से कम 2 महीने तक ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से एसआईडीएस मतलब सडन इन्फैंट डैथ सिंड्रोम का खतरा 50% तक कम हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे स्तनपान करते हैं, वे आसानी से अच्छी नींद सोते हैं, जो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने में भी अहम रोल निभाता है. तो फिर अपने शिशु को हैल्दी रखने के लिए करवाएं ब्रैस्ट फीड.

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