लेखक-धीरज कुमार

आभा के पति मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. उस के पति का कार ऐक्सीडैंट हो गया. आननफानन में उन्हें हौस्पिटल पहुंचाया गया. हौस्पिटल में सब से पहले पैसे की जरूरत पड़ी. वह अपने पास कभी पैसे रखने की जहमत नहीं उठा पाई थी. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी थी. सभी जरूरतों का सामना पति ही जुटाते थे. पैसा पति के अकाउंट में ही था. पति ही लेनदेन करते थे. पति के औपरेशन के लिए मोटी रकम की आवश्यकता पड़ी, तो अपने पास पैसा होते हुए भी कई संबंधियों के आगे हाथ फैलाने पड़ गए.

आभा पति पर इतना ज्यादा निर्भर रहती थी कि पति के एटीएम कार्ड के पिन नंबर तक की जानकारी नहीं रख पाई थी. उन दिनों जब पैसे की सख्त आवश्यकता थी तो फोन कर के अपने संबंधियों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा. जैसेतैसे पैसे की व्यवस्था हुई और इस के बाद पति का औपरेशन हुआ.

मेहुल सरकारी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर (आउटसोर्सिंग) के पद पर कार्यरत था. लगभग

8 साल से नौकरी कर रहा था. अचानक जांच कराने पर पता चला कि पत्नी को कैंसर हुआ है. आननफानन में पत्नी को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. नौकरी के दौरान कभी बचत के बारे में नहीं सोच पाया था. जब भी तनख्वाह मिलती पत्नी, बच्चों, भाई, भतीजे और अपने मातापिता पर पैसे दोनों हाथों से दिल खोल कर लुटाता रहा. हालांकि जिंदगी काफी खुशहाल बीत रही थी. जब पत्नी को कैंसर की बीमारी का पता चला, तो पैसे जुटाने में हाथपांव फूलने लगे. कई यारदोस्तों से उधार लेने पड़े. कुछ मित्रों ने उधार देने से मना कर दिया. अपने निकट संबंधियों से उधार ले कर इलाज करवाया. लेकिन पैसे वक्त पर नहीं जुटा पाया, इसलिए पत्नी को अच्छे अस्पताल में इलाज नहीं करा पाया. अत: वह अपनी पत्नी को बचा नहीं पाया.

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