Personality Test : सुनो वह ब्लू सूट पहनना अपनी बहन की शादी में, कहीं अपना फैवरिट पिंक मत पहन लेना, बिलकुल बकवास लगता है वह. और हां शनिवार को जाने का और सोमवार को वापसी का रिजर्वेशन करा लिया है मैं ने तो उतना ही सामान पैक करना,’’ कहता हुआ समीर औफिस के लिए निकल गया.

अनु सोचने लगी कि मैं मायके में क्या पहनूंगी और कब जा कर वापस आऊंगी सबकुछ अकेले ही तय कर लिया समीर ने जैसे मेरी कोई मरजी ही नहीं.

उधर शैलेश अपने कमरे में खड़े पत्नी को आवाज लगा रहे कि उन के कपड़े निकाल कर नहीं रखे तो आज क्या पहन कर औफिस जाएंगे. अब पूरा वार्डरोब देख कर भी वे यह तय नहीं कर पा रहे कि क्या पहना जाए. हमेशा सविता की मरजी के अनुसार कपड़े पहनने के कारण अब वे खुद फैसला लेने के आदी ही न रहे थे.

देखा जाए तो दोनों ही केस में कितनी आसानी हो गई एक साथी के लिए. कोई जिम्मेदारी नहीं सबकुछ तय कराकराया मिल गया. समीर तो अनु के जीवन से जुड़ा हर निर्णय ऐसे ही करता आया है. फिर चाहे कैसे कपड़े पहनने की बात हो या कहीं जाने की यहां तक कि रैस्टोरैंट में खाना और्डर करने तक सब जगह वह सब से पहले फैसला ले लेता है और अनु मुसकरा कर उस की मरजी में ही अपनी खुशी जता देती है.

वहीं शैलेश को जीवन में बस शांति चाहिए जो पत्नी के इशारों पर चलने से ही संभव थी तो उस ने भी इस स्थिति को चुपचाप स्वीकार करने में ही भलाई समझ. ऐसे में व्यक्ति को अपने पार्टनर की खींची गई लकीर पर ही चलते रहना होता है. ऐसे पार्टनर को ही कहते हैं डौमिनैंट पर्सनैलिटी.

ऐसा व्यक्ति हमेशा अपने नजदीकी लोगों को अपने प्रभाव में रखता है या यों कहें कि लोगों को अपनी प्रभुसत्ता मानता है.

यों तो डौमिनैंट लोग बड़े जिम्मेदार होते हैं और उन की कोशिश अपने परिवार के लिए सबकुछ बेहतरीन करने की होती है लेकिन उन बेहतरीन फैसलों के लिए वे यह भूल जाते हैं कि उन का साथी भी अपनी राय और सोचसमझ रखता और उस साथी की समझ उन से बेहतर भी हो सकती है. डौमिनैंट व्यक्ति हमेशा अपनी बात को सही साबित करने में लगा रहता है. यहां तक कि इस कारण किसी से भी लड़ पड़ता है. उसे हर काम अपनी पसंद के अनुसार ही करना होता है जबकि किसी काम को करने के कई दूसरे तरीके भी सही हो सकते हैं.

कुछ अच्छा है

ऐसे व्यक्ति का साथी काफी बर्डनलैस हो जाता है. उसे काफी सारी घरेलू पारिवारिक जिम्मेदारियों से फुरसत मिल जाती है. वह अपने शौक के लिए समय निकाल पाता है.

मुश्किल है सफर

डौमिनेट व्यक्ति के साथी का व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है. उसे अपने हर निर्णय में किसी की मदद चाहिए होती है. फिर एक दिन वह आता है जब कोई निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती भी है तो उस के अंदर निर्णय लेने की क्षमता ही नहीं बची होती. वह उस कठपुतली की तरह हो जाता है जिसे डोरी पकड़ कर कहीं भी घुमा दो.

ऐसे साथी का आत्मविश्वास कम होतेहोते खत्म ही हो जाता है. लेकिन घर बनाए रखने के लिए वह अपने आत्मविश्वास का अंत भी सहन कर लेता है और जीवन में कभी अकेले रह जाने की स्थिति में तो बड़ी मुश्किल हो जाती है.

डौमिनैंट व्यक्ति अकसर अपने साथी से खिंचाखिंचा रहता है. खुद ही अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के यह व्यक्ति दूसरे कौन्फिडैंट लोगों की ओर आकर्षित होने लगता है. वहीं कई जगह तो ऐसी स्थिति तलाक का कारण भी बन जाती है.

दूसरी ओर ऐसे लोगों से उन के अनेक रिश्तेदार, दोस्त और साथी दूरी बनाने लगते हैं कि कोई भी अपने ऊपर किसी की हुकूमत बदाश्त नहीं करता. ऐसे व्यक्ति सबकुछ कर के भी अकेले रह जाते हैं.

कहीं आप भी डौमिनैंट पर्सनैलिटी तो नहीं

अकसर डौमिनैंट लोगों को यह एहसास ही नहीं होता कि वे किस हद तक लोगों की जिंदगी में दखलंदाजी करने के आदी हैं यानी कितने डौमिनैंट हैं.

ऐसे में आप को खुद अपना टैस्ट ले कर देख लेना चाहिए. इस के लिए कुछ प्रश्नों के उत्तर आप अपनेआप से पूछ सकते हैं जैसे-

1. किसी भी घरेलू मुद्दे पर फैसला लेने से पहले क्या आप उसे परिवार के सामने टेबल पर रखते हैं? टेबल पर रखे जाने का अर्थ है कि क्या उस पर परिवार की राय पूछी जाती है?

2. क्या आप का किया हर फैसला ही आखिरी फैसला होता है?

3. क्या परिवार में कोई किस रंग के कपड़े पहनेगा यह भी आप अकेले तय करना चाहते हैं?

4. क्या आप को अपने परिवार की पसंद कभी पसंद नहीं आती?

5. क्या आप को हमेशा यह लगता है कि आप का परिवार कहीं समाज में आप की खिल्ली न उड़वा दे इसीलिए आप ज्यादा रोकटोक करते हैं?

6. क्या आप हमेशा अपने साथी की तरफ से असुरक्षित महसूस करते हैं?

7. क्या आप मानते हैं कि आप अपने साथी से ज्यादा समझदार हैं?

यदि इन में से अधिकतर प्रश्नों के उत्तर हां हैं तो समझ लीजिए कि आप एक डौमिनैंट पर्सनैलिटी के मालिक हैं.

अब सवाल यह है कि जब आप को अपने डौमिनैंट होने से कोई दिक्कत नहीं है तो इसे क्यों बदलें. हो सकता है आज आप को अपनी इस सोच से कोई दिक्कत न हो और आप खुद को अपने परिवार का बेताज बादशाह समझते हों लेकिन समझ लें कि यह बादशाहत आगे चल कर आप के गले का कांटा बन सकती है. कैसे? इस तरह:

पहली बात तो यद्द कि जीवन की गाड़ी दोनों पहियों पर चले तभी सही से चलती है नहीं तो एक ही पहिया दूसरे को कहां तक घसीट सकता है क्योंकि जीवन में जब कभी साथी से सहायता चाहिए होती है तो वद्द नहीं मिल पाती.

दूसरे जिस व्यक्ति ने कभी कोई निर्णय न लिया ही वह एक दिन कुंठित हो जाता है. सोचिए सारी जिंदगी एक कुंठित व्यक्ति के साथ गुजारनी होगी.

अकेले सारे निर्णय लेते रहने के कारण परिवार की हरेक जिम्मेदारी आप के सिर आ जाती है और फिर एक दिन आप इस बढ़े हुए बोझ से दबने लगते हैं पर तब भी किसी के साथ जिम्मेदारी को बांट नहीं पाते.

साथ चलें मिल कर

कुदरत ने हर व्यक्ति को अपनी एक पर्सनैलिटी के साथ दुनिया में भेजा है जिस में उस की पसंदनापसंद शामिल है. मातापिता या साथी होने के नाते उसे सहीगलत, अच्छेबुरे और ठीकठाक में फर्क सिखाना आप की जिम्मेदारी है. लेकिन सिर्फ जो आप सोचते हैं या पसंद करते हैं वही एकमात्र सत्य है ऐसा सोचना ठीक नहीं.

याद रखिए कभी भी किसी का आत्मविश्वास न खत्म होने दें. अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के आप खुद को ही कमजोर करते हैं और ऐसे व्यक्ति से फिर आप परफैक्शन की उम्मीद भी नहीं कर सकते. वहीं मिलनेजुलने वाले भी उस व्यक्ति को ‘कन्फ्यूज्ड’ कह कर चिढ़ाते हैं और हम भूल जाते है कि यह ‘कन्फ्यूज स्टेट औफ माइंड’ भी हमारी ही देन है. अत: बेहतर है कि अपने साथी और परिवार को फूलनेफलने का पूरा अवसर दें व उन का मार्गदर्शन करें और उन से अपने लिए सलाह मांगें भी.

राइटर- सबा नूरी

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