‘‘ बेटा, खाना ठीक से खाना. बेटा, वक्त पर सो जाना. बेटा, घर का खयाल रखना. बेटा, फोन करते रहना. अच्छा मम्मीजी. मम्मीजी के बेटेजी, अब हम चलें क्या?’’आस्था ने अपनी सास के अंदाज में ही महेश से मजाक किया, तो महेश का चेहरा उतर गया. महेश का सिर्फ चेहरा ही नहीं उतरा, वह मन से भी उखड़ गया. हर वक्त अपनी पत्नी आस्था का खयाल रखने वाला महेश बातबात पर खीजने लगा. एक छोटा सा मजाक प्यार भरे रिश्ते की दीवार बन गया. आस्था चाह कर भी वह दीवार लांघ नहीं पा रही थी. आस्था ने तो सीधा सा मजाक ही किया था, पर महेश को चुभ गया. कई बार हम अपने ही शब्दों के तीखेपन को नहीं पहचान पाते. पर जिसे तीर लगता है वह उसे भूल नहीं पाता और रिश्तों में खटास आने लगती है. बेहतर है कि ऐसी बातें जबान पर लाई ही न जाएं.

‘‘तुम्हारी मम्मी को पैसों की बड़ी चिंता रहती है,’’ मीना ने राजेश से मजाक किया. बात तो मजाक की ही थी. पर उस का अर्थ राजेश को चुभ गया. कुछ विषयों पर पतियों की आलोचना करते हुए मजाक न ही करें तो बेहतर है. दरअसल, आप नहीं जानतीं कि कौन सी बात या वस्तु उन के दिल के कितने नजदीक है और वे उसे कितना चाहते हैं. बहुत बार आप ने पुरुषों को देखा होगा कि वे अपने सिर के 2-4 बालों पर कितने प्यार से कंघी करते हैं, बारबार आईना देखते हैं. सोचिए, अगर उन्हीं 2-4 बालों को आप ने मजाक का विषय बनाया, तो क्या होगा? ‘‘इन की तो सड़क ही साफ है. इन्हें यह भी नहीं पता चलता कि कहां तक साबुन लगाना है और कहां तक मुंह धोना है.’’ रजनी ने मोहन के बारे में कहा और वह भी अपने मायके में, तो मोहन को बात चुभ गई. अब मोहन रजनी के मायके के नाम से भी चिढ़ने लगा है. बालों की तरह अपने चेहरे के मोटे, पतले या खराब होने पर किसी तरह की टीकाटिप्पणी उन्हें नहीं भाती, भले ही आप शब्दों को चाशनी में लपेटलपेट कर परोसें. पति फौरन चाशनी और मजाक के भाव को अलग कर देते हैं और भावार्थ दिल तक ले जाते हैं. यही पतिपत्नी के रिश्तों की दूरियां बढ़ा देता है.

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