श्वेता को आजकल हर छोटीबड़ी बात मन पर लग जाती है. कोरोनाकाल में पूरा दिन घर में कैद रह कर उस का मन हर समय बु झाबु झा रहता था. अब कोरोनाकाल तो समाप्ति की तरफ है परंतु श्वेता के अंदर एक ऐसी मायूसी बैठ गई है कि अब  बातबात पर पति और बच्चों को  झिड़कना श्वेता की जिंदगी में आम हो गया है. परिणामस्वरूप पति और बच्चे श्वेता से कटेकटे रहते हैं.

मनीषा का किस्सा कुछ अलग है. नित नए पकवान, ब्यूटी ट्रीटमैंट और घर के कोनेकोने को चमकना सबकुछ मनीषा की दिनचर्या का हिस्सा था. परंतु जब शादी के 4 वर्ष बाद भी उसे कोई संतान नहीं हुई तो वह बेहद निराश हो गई. पासपड़ोस और रिश्तेदारों के बारबार तहकीकात करने पर मनीषा चिड़चिड़ी हो गई थी.

अब वह अपने पति और सासससुर की हर छोटी बात पर रिएक्ट कर देती है. उसे लगने लगा जैसे उस की जिंदगी से रौनक चली गई है. अब वह जिंदगी को बस ढो रही है.

गौरव की कंपनी में छंटनी शुरू हो गई है. वह पिछले 3 माह से एक अज्ञात भय में जी रहा है. हर समय घर के खर्चों पर टोकाटाकी करता रहता है. उस की पत्नी पूनम को अब सम झ ही नहीं आता कि वह गौरव के साथ कैसे डील करे. दोनों के बीच एक घुटन व्याप्त है जो कभी भी बम की तरह फूट सकती है.

नीति की समस्या कुछ अलग है. बेटी को जन्म देने के पश्चात पिछले 5 माह से नीति ने पार्लर का मुंह नहीं देखा है. अपने रूखेसूखे  झाड़ जैसे बाल, बढ़ी हुई आई ब्रोज और अपर लिप्स सबकुछ उसे चिड़चिड़ा रहा है.

नीति के अनुसार, ‘‘मैं खुद अपनी शक्ल आईने में देखने से डरती हूं, एक अजीब सी हीनभावना मन में घर कर गई है.’’

नीति को अपनी बेटी दुश्मन सी लगने  लगी थी.

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आजकल के समय में यह चिड़चिड़ापन, अकेलापन, अवसाद दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. जिंदगी में कब क्या हादसा हो जाए, कोई नहीं जानता है. पर जिंदगी की खुशियों पर चिड़चिड़ाहट का ब्रेक न लगाएं. कुछ छोटेछोटे बदलाव कर के आप अपनेआप को स्थिर और शांत कर सकती हैं.

आदतों को स्वीकार करें:

चिड़चड़ाहट का मुख्य कारण होता है कि सामने वाला मेरे हिसाब से क्यों व्यवहार नहीं कर रहा है. परिवार के हर सदस्य को जैसा है वैसा ही स्वीकार करें. न खुद बदलें, न उन्हें बदलने को कहें.

आप उन्हें सलाह जरूर दे सकती हैं क्योंकि आप उन की शुभचिंतक हैं. उन्हें अगर ठीक लगेगा तो वे अवश्य उसे अपनाएंगे. अपनी मनोस्थिति को उन के व्यवहार के ऊपर निर्भर न होने दे.

खुद को समय दें:

जब तक आप खुद खुश नहीं रहेंगी तो दूसरों को कैसेखुश रखेंगी. इस के लिए खुद के साथ समय बिताएं. इस का मतलब यह नही है कि कमरा बंद कर के बैठ जाएं.

कोई भी ऐसा कार्य करें जो आप को स्फूर्ति और खुशी दे. आप अंदर से जितनी ऊर्जावान महसूस करेंगी उतना ही दूसरों के साथ आप के रिश्ते अच्छे बनेंगे.

प्लानिंग करें:

अधिकांश परिवारों में आर्थिक मंदी चिड़चिड़ापन बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. आर्थिक मंदी का अस्थायी दौर  होता है जो गुजर जाता है. यही वह समय है जब आप अपने पति या परिवार के सदस्यों को मानसिक एवं आत्मिक संबल दे सकती हैं.

हर माह के आरंभ में ही प्लानिंग करें और गैरजरूरी खर्चे जैसे बेवजह की औनलाइन शौपिंग, कपड़े, कौस्मैटिक्स आदि पर कटौती बड़े आराम से कर सकती हैं. जब यह प्लानिंग करें अपने परिवार के हर सदस्य को शामिल करें.

हर सदस्य को जब आर्थिक स्थिति का पता रहेगा तो कोई भी ताना या उलहाना नहीं देगा. यह परिवार में बेवजह का तनाव पनपने नहीं देगा.

सकारात्मक सोच रखें:

कैसी भी परिस्थिति हो, अगर आप नकारात्मक सोच रखेंगी तो चिड़चिड़ापन और अधिक बढ़ जाएगा. सकारात्मक सोच के साथ यदि परिस्थिति का सामना करेंगी तो बुरी से बुरी परिस्थिति का भी सामना बेहतर ढंग से कर पाएंगी. सकारात्मक सोच आप की सेहत के लिए भी एक रामबाण की तरह है.

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दिनचर्या को व्यवस्थित करें:

आजकल यह आम हो गया है कि लोग किसी भी समय सो रहे हैं और उठ रहे हैं. पहले बच्चों के स्कूल जाने के कारण बहुत हद तक सोनेउठने का समय व्यवस्थित था. अब समयसारिणी बिखर सी गई है.

याद रखें एक अव्यवस्थित दिनचर्या तनाव को बढ़ाने में सहायक होती है. घर पर रहने का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी समय उठें या सोएं. ऐसा कर के अनजाने में आप बहुत सारी बीमारियों को भी न्योता दे रही हैं.

तुलना करना है व्यर्थ:

आप जहां भी हैं और जैसी भी हैं इस समय एकदम परफैक्ट हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में आप को अपने से बेहतर भी और कमतर भी मिलेंगे. आप से कमतर लोग हो सकता है.

आप से बेहतर कर  रहे हों परंतु तुलना कर के चिड़चिड़ापन मत बढ़ाएं क्योंकि यह जीवन है और  इस का कोई फिक्स्ड फौर्मूला नहीं होता है. चिड़चिड़ापन आप के साथसाथ आप के रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव डालेगा. ‘ये वक्त तो अपनों के सहारे कट जाएगा, संयम से आने वाला कल बेहतर हो पाएगा.’ –

रितु वर्मा

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