आजकल जबकि अच्छी क्वालिटी के आरामदेह जूते हमारी फिटनेस का जरूरी हिस्सा हो गए हैं,तब यह विश्वास करना भी मुश्किल है कि एक ऐसा भी समय था,जब इंसान बिना जूतों के नंगे पांव घूमता था. उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मौसम कैसा है ? भूभाग कैसा है ? दिन है या कि रात है, जंगल है कि रेगिस्तान,नदी है या पहाड़. मगर आज अच्छी क्वालिटी के जूते जहां एक तरफ फिटनेस के लिए जरूरी हैं,वहीं दूसरी तरफ ये हमारी हैसियत, हमारा क्लास और हमारी पसंद को भी जाहिर करते हैं.

यही वजह है कि आज बड़े शहरों में जूतों के एक से बढ़कर एक मशहूर स्टोर मौजूद हैं,जहां न जाने कितनी किस्म और क्वालिटी के जूते मिलते हैं. डिजायनर जूते,ट्रेंडी जूते,अलग-अलग प्रोफेशन की पहचान जाहिर करने वाले व शरीर की संरचना के अनुकूल जूते.

हम कितने आधुनिक व स्मार्ट हैं आज की तारीख में यह भी इस बात से तय होता है कि हमारे जूते कितने स्मार्ट हैं. अगर कहें कि यह स्मार्ट शूज का दौर है तो अतिश्योक्ति न होगी. लेकिन रुकिए स्मार्ट शूज का मतलब कोई चमत्कारिक खूबियों से नहीं है. पाद चिकित्सक यानी  पोडियाट्रिस्ट माइकल रैटक्लिफ के मुताबिक़ स्मार्ट शूज वे हैं जो पूरी तरह से आपके पैरों के अनुकूल हैं.

वास्तव में जो जूते हमारे पैर में ठीक से फिट नहीं होते,उसका मतलब ही यही है कि वे हमारे पैरों के अनुकूल डिजाइन नहीं हैं. ऐसे जूते पहनने से कई छोटी और दीर्घकालिक स्वास्थ्य व फिटनेस संबंधी  समस्याएं पैदा हो सकती हैं,जिनका असर हमारे पैरों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि ये हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करते हैं. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने पैरों पर क्या डाल रहे हैं. देखा जाय तो जूतों के मुख्यतः तीन कार्य होते हैं. हमारे पैरों की सुरक्षा करना, हम जहां चाहें वहां हमें चलने में सक्षम बनाना तथा लंबे समय तक हमारे पैरों पर रहने पर आराम प्रदान करना. जिसे हम स्मार्ट शूज कहते हैं,उसकी बुनियादी कसौटी ही यही है कि वह इन तीनों शर्तों को पूरा करे.

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यह इसलिए जरूरी है क्योंकि एक अच्छी तरह से फिट शूज हमारे स्वास्थ्य पर बहुत कम या कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते. जबकि जो शूज हमारे पैरों के लिए पूरी तरह से फिट नहीं हैं,वह हमारे पैरों पर तमाम नकारात्मक असर डाल सकते हैं. मसलन ऊँची एड़ी के जूते, खराब ग्रिप वाले जूते या हमारी बॉडी के वेट के हिसाब से असंतुलित जूते हमें कई तरह से जख्मी कर सकते हैं. शरीर में स्थाई परेशानी भी पैदा कर सकते हैं. स्मार्ट शूज हमें अपनी अनुकूल कसावट से जहां उर्जा देते हैं,वहीं अनफिट जूते पैर की प्रतिकूल कसावट से पैरों में अस्थायी सुन्नता पैदा कर सकते हैं. अगर फुटवियर अनफिट हैं तो ये हमारी परफोर्मेंस को ही नहीं हमारे आत्मविश्वास को भी प्रभावित करते हैं.

अगर जूते ढीले हों तो हमें पैर घसीटकर चलने की आदत पड़ सकती है. जब कोई शूज अपनी डिजाइन की तंगी के कारण हमारे पैर के अंगूठे के नाखून के इर्दगिर्द की त्वचा को कुरेदता है तो यह बहुत दर्दनाक हो सकता है. यूरोप में बड़े पैमाने पर लोग इस समस्या से पीड़ित होते हैं विशेषकर युवतियां. ऐसे जूते जो मोजों के साथ पहनने में ठीक से फिट नहीं होते हैं और पैर की उंगलियों के किनारों पर बहुत कसे होते हैं वे त्वचा को नेल प्लेट में धकेल सकते हैं. जिससे नाखूनों में  विघटन और भंगुरता की समस्या पैदा हो सकती है. इन्हीं सब समस्याओं से बचे रहने का उपाय हैं स्मार्ट शूज.

अमरीका में स्मार्ट शूज को हाई-परफॉर्मेंस शूज भी कहा जाता है जिसका मतलब है ऐसे जूते,जिसमें सेहत और आराम के लिए स्मार्ट टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया गया हो. ऐसे जूते शारीरिक मेहनत करने वाले कामगारों,रनिंग करने वालों और स्पोर्ट्समेन के लिए खासतौर पर बहुत अच्छे होते हैं. इनमें कुछ ऐसे स्मार्ट शूज भी होते हैं जिनमें हाई-फिडेलिटी सेंसर लगाए गए होते हैं,जो रनिंग को ट्रैक करने वाले ऐप  से डिजिटली कनेक्ट होते हैं. ये ब्लूटूथ लो इनर्जी की मदद से अपने आप ऐप से कनेक्ट हो जाते हैं. ऐसे स्मार्ट शूज बेंचने वाली कम्पनियों का दावा होता है कि सेंसर पूरी तरह प्रटेक्टेड होते हैं और दौड़ने के दौरान कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. साथ ही इस तरह के शूज बनाने वाली कम्पनियों का दावा यह भी होता है कि ये सेंसर तब तक बिलकुल ठीक रहते हैं जब तक शूज रहते हैं.

इन स्मार्ट शूज की एक खासियत यह होती है कि आपकी फिटनेस से संबंधित तमाम बेसिक डेटा भी उपलब्ध कराते हैं,जो रनिंग और स्टेपिंग डेटा से अतिरिक्त होता है. यही नहीं इनके अलग-अलग यूजर्स अपनी जरूरत के हिसाब से ऐप पर मिलने वाले डेटा को भी एनालाइज कर सकते हैं. स्मार्ट शूज एथलीट्स को बताते हैं कि उनके लिए दौड़ने का कौन सा तरीका सबसे अच्छा है. इनकी कुशनिंग आमतौर पर ‘जीरो ग्रैविटी फील’ से प्रेरित होती है.

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टिप्स

रनिंग के लिए स्पोर्ट शूज क्यों जरूरी हैं ?

साधारण जूते पहनकर रोजाना की सैर या दौड़ का मतलब है दर्द को दावत देना. इनके चलते आपकी एड़ी,पंजे, तलवों, में अकड़ना या सूजन तक हो सकती है. कई बार तो कमर,नितंब और गरदन में भी दर्द की वजह खराब रनिंग शूज ही पाये गये हैं. इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि रनिंग के लिए स्मार्ट स्पोर्ट्स  शूज इस्तेमाल करने चाहिए. वास्तव में रनिंग शूज ऐसे होने चाहिए जो दौड़ने भागने में सहायक हों. आप एक कदम रखें तो इसका तला मुडकर सीधा होता हुआ दूसरे कदम के लिये आपको स्वतः तैयार कर आगे बढ़ा दे. दौड़ने से न तो आप, न ही आपके पैर, पंजे, एड़ियां थकें. ये सब सुविधाएं स्पोर्ट्स शूज में ही होती हैं.

आजकल वैज्ञानिक स्पोर्ट्स शूज के तलों, अपर तथा दूसरे अवयवों पर तमाम शोध कर रहे हैं. रनिंग शूज से पांच तरह की उम्मीदें आपको रखनी चाहिये. पहला ये पैरों को आगे बढ़ाने में और संतुलन बिठाने में बढ़िया हो, इन्हें न्यूट्रल कहते हैं. दूसरा पैरों को आगे तो बढ़ाते हैं पर इससे ज्यादा ये हर ओर से साधे रखते हैं, इन्हें सपोर्ट कहते हैं. तीसरा हमारी गति को इस तरह नियंत्रित करें कि हम तेज चलने के चक्कर में गिर न पड़ें, क्योंकि तलवों के रोल होने और खुलने की प्रक्रिया बहुत तेज भी हो सकती है, इन्हें मोशन कंट्रोल कहते हैं. चैथा अगर सड़क या पार्क पर बना जॉगिंग ट्रैक बढ़िया न हो थोड़ा ऊबड़ खाबड़ या कंकरीला हो तो भी सुगमता से दौड़ सकें. इन्हें ट्रायल कहते हैं. पांचवां, हल्का और खूब आरामदेह हो, इन्हें लाइटवेट रनिंग शूज कहते हैं.

 

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