उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नवाबी दौर में बनी कोठियां आज भी शहर के सबसे बड़े आकर्षण का केन्द्र हैं. लखनऊ में 3 से 7 फरवरी 2017 तक लगने वाले महिन्द्रा सनतकदा फेस्टिवल 2017 में शहर की 28 कोठियों पर एक पुस्तक रिलीज की जाएगी. इसके साथ ही फोटो प्रर्दशनी भी लगाई जाएगी. जिसमें वास्तुकला की अदभुत धरोहर रही इन कोठियों को देखा जा सकेगा.

प्रदर्शनी की आयोजक माधवी कुकरेजा ने कहा ‘जो लोग इन कोठियों को देखना चाहते है उनको वहां ले जाने की व्यवस्था भी होगी. हमारा प्रयास यह है कि इन कोठियों के जरीये पर्यटको को यहां तक लाया जा सके. अवध की मिलीजुली वास्तुकला को दुनिया के सामने लाया जा सके.’

‘महिन्द्रा सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’ की थीम ‘लखनऊ के रिहायश’ (रहन सहन और घर) है. इसमें लखनऊ के रहन सहन के अन्दाज और रिहायश के सजीव इतिहास को कुछ पुराने ऐतिहासिक घरों के माध्यम से दर्शाया जायेगा. 3 से 7 फरवरी 2017 तक चलने वाले इस फेस्टिवल में न सिर्फ पूरे देश से हस्तकला और शिल्पकला को लखनऊ में लाएगा, बल्कि इसके साथ प्रख्यात प्रवक्ताओं की साहित्यिक चर्चाओं, कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ गुजरे दौर की परंपराओं किस्सागोई और बैंतबाजी को भी पुनर्जीवित करेगा. यह हमें अपने ऐतिहासिक धरोहरों के हैरिटेज वॉक पर भी ले जाएगा, साथ ही हर घराने के खास खाने को एक मंच पर लाने के लिए घर पर बने अवध के परंपरागत खाने से महकी एक दोपहर का आयोजन भी किया जाएगा.

यही नहीं, बच्चों के लिए भी तरह तरह की गतिविधियां हैं जिससे वे भी इसमें मनोरंजक तरीके से जुड़ सकेंगे. लखनऊ में हर तरह की गतिविधियां गहराई से पिरोई गई हैं चाहे सांस्कृतिक कार्यक्रम हो, हैरिटेज वॉक हो, साहित्यिक चर्चायें, प्रदर्शनी, फिल्म और तरह- तरह के उत्पाद जो कि फेस्टिवल के लिए बनाए गए हैं. हर साल हम फेस्टिवल की ऐसी थीम चुनते आए हैं जिससे इस विविध रंगो वाले शहर के गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक ढांचे को दर्शाया जा सके और उसका एक तरह से दस्तावेजीकरण भी किया जा सके.

इसी कड़ी में लखनऊ के कुछ घरों को प्रदर्शित किया जाएगा और लखनऊ के इतिहास की झलक दिखाई जाएगी. ये कोठियां उस इतिहास के प्रति अपने योगदान की कहानी बयां करती हैं. फेस्टिवल का मुख्य आकर्षण हर बार हस्तकला और शिल्पकला बाजार होता है, जिसमें हर बार की तरह इस बार भी भारत के विभिन्न राज्यों से अलग- अलग कलाओं को दर्शाया. इनमें से कुछ कलायें हैं सूती साड़ी जिसमें चेट्टीनाद की बुनाई है, राजस्थान का दाबू प्रिन्ट, अजरख-कच्छ के प्राकृतिक रंगों के छापे, मलखा – आन्ध्र प्रदेश का कलमकारी प्रिन्ट, मधुबनी – बिहार से हाथ से बनी शिल्पकृतियां, चंद्रकांता – हाथ से पेन्ट की गई स्टेशनरी, बाघ प्रिन्ट से सजे कपड़े व साड़ियां जिनमें अन्य सामग्री के साथ सब्जियों के रंगों का इस्तेमाल किया गया है. बाजार के मुख्य हॉल में प्रतिदिन कारीगरी का सजीव प्रदर्शन भी किया जाएगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...