True Happiness : सोहन भैया और भाभी के बारे में अजीब सी खबर मिली कि दोनों अलग हो रहे हैं. मन खिन्न हो गया. शादी के 28 सालों बाद ऐसा फैसला? बेचैन हो कर बेबी ने भाभी को फोन लगा दिया.

‘‘हैलो भाभी, कैसे हैं आप लोग? मिन्नी कैसी है? आज सुबह से आप दोनों की बहुत याद आ रही थी, बस फोन लगा दिया,’’ बेबी ने एक ही सांस में अनेक सवाल कर डाले.

‘‘बहुत अच्छा किया बेबी. जिंदगी चल रही है और क्या बताऊं अच्छा बताओ, तुम सब कैसे हो? मिन्नी मस्त है पति के साथ. आस्ट्रेलिया घूम रही है,’’ भाभी की आवाज में वह चहक नहीं थी. बहुत कम और नपातुला बोल रही थी.

क्षणिक सौंदर्य का परदा

भाभी से बात करने के बाद दिल खुदबखुद अतीत की गलियों में मुड़ गया. सोहन भैया पूरे परिवार की शान थे. किसी भी बच्चे की बात हो,  घूमफिर कर उसे भैया पर ही आना होता था. आखिर भैया थे ही ऐसे या कहूं आज भी वैसे ही हैं. भीड़ में सब से अलग. शुरू से पढ़नेलिखने में अव्वल, ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज में अव्वल तिस पर दिखने में भी हीरो से कम न थे. दोनों छोटे भाईबहन सोहन के सगे कहला कर खुश हो जाते थे. अपनी पहचान से कोई खास सरोकार नहीं था उन्हें. आईआईटी से इंजीनियरिंग फिर अमेरिका से एमबीए की डिगरी ले कर भैया अपनी ड्रीम जौब में व्यस्त हो गए. उन के लिए एक से एक रिश्ते आने लगे. जाने कितनी जगह बात बनी, बिगड़ी. पता नहीं कैसी लड़की की कल्पना थी भैया को.

आखिरकार ‘कल्पना’ पसंद आ गई. कल्पना उन की दूर की एक मामी की रिश्तेदारी में थी. मामी ने सुन रखा था भैया सुंदरता के पुजारी बन कर बैठे हैं और बस इसी बात का फायदा उठाते हुए मामी ने कल्पना और भैया को मिलवा दिया. गांव की भोलीभाली गोरी की मासूम सुंदरता पर भैया लट्टू हो गए और ऐलान कर दिया कि अब शादी करेंगे तो इसी लड़की से वरना नहीं.

हालांकि मां अपनी दूरदर्शिता से पहले ही सबकुछ भांप चुकी थीं कि सौंदर्य का यह परदा क्षणिक सुख देने वाला है. मानसिक और बौद्धिक स्तर पर सोहन और कल्पना नदी के 2 किनारे थे. मां ने दबी जबान ने इस रिश्ते का विरोध भी किया पर भैया की जिद के आगे उन की एक न चली. नियति को यही मंजूर था. आखिरकार उन की शादी हो गई और कल्पना बड़ी भाभी के रूप में परिवार में शामिल हो गईं.

धीरेधीरे भैयाभाभी के वैचारिक मतभेद उजागर होने लगे. हालांकि इस बात का रोना भाई साहब ही ज्यादा रोते थे. भाभी वास्तविक रूप से गृहस्थी पार लगा रही थीं. उन के पास समय कहां था इन सब बातों के लिए. बहरहाल, जिंदगी की गाड़ी धीमी गति से चलती रही. इसी बीच मिन्नी का जन्म हो गया और दोनों छोटे भाईबहन भी अपनेअपने घरपरिवार में बिजी हो गए.

जब मनचाहा परिणाम नहीं मिले

सोहन भैया नौकरी में निरंतर उच्च पायदान चढ़तेचढ़ते पिछले 2 साल से लंदन शिफ्ट हो गए. भाभी से उन की दूरी हमेशा से थी. भाभी से बस अपने काम भर का मतलब रखते. गिन्नी की शादी के बाद उन के जीवन का यह एकमात्र सेतु भी टूट गया.

मां सच ही कहा करती थीं, तुम्हारा भाई सब से अलग है. आज इस खबर ने इस बात की एक बार फिर से पुष्टि कर दी. जीवन का एकएक कार्य पूर्वनियोजित और संतुलित मानो दिमाग में हर चीज का खाका पहले से खींच रखा हो कि कब, क्या और कैसे करना है.

यह विस्फोट भी उसी प्लानिंग का नमूना प्रतीत हो रहा था. भाभी जितना ही खुद को भैया के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करतीं, भैया उतना ही चिढ़ जाते. वे कुशल नट की तरह जिंदगी की कलाबाजियां दिखाते और भाभी से भी वैसे ही खेल की उम्मीद रखते. मनचाहा परिणाम नहीं मिलने पर भाभी को तिरस्कृत और अपमानित करते. भाभी को डांटते समय वे न जगह देखते, न समय. भैया एक आदर्श बेटा, भाई, पिता, अधिकारी सब बने पर आदर्श पति नहीं बन पाए.

एक स्त्री होने के नाते बेबी भाभी की मनोस्थिति समझ पा रही थी. अस्तित्वहीन जिंदगी जीने से अच्छा है अपनी पहचान कायम कर अपने बलबूते पर जीया जाए. पति की उपेक्षा झेलतेझेलते कल्पना थक चुकी थीं. सहनशक्ति भी एक सीमा तक ही होती है. इस बीच जिंदगी ने उन्हें अनेक शैक्षणिक और व्यावहारिक सबक सिखाए. अपने इन्हीं हुनर के बलबूते उन का खोया स्वाभिमान जाग उठा. पति के दिए झटके से विचलित नहीं हुईं बल्कि इस खोखले दांपत्य से अलग होने का निर्णय ले लिया वह भी बिलकुल शांतिपूर्ण और संयमित तरीके से.

समय रहते स्वयं को पहचानें

आखिरकार वह दिन भी आ गया जब बेबी कल्पना भाभी को रिसीव करने एअरपोर्ट पर थी. सधी चाल से चली आ रही भाभी की स्मार्टनैस और मैच्योरिटी साफ झलक रही थी. उन्हें अब किसी सहारे की जरूरत नहीं थी. उन्होंने तय कर लिया था कि अब खुद की खुशी के लिए जीना है.भाभी ने पास आ कर उसे गले से लगा लिया. उन के चेहरे पर कहीं कोई शिकन या पछतावे का भाव नहीं था. अब तक उन्होंने रिश्ता निभाने की पुरजोर कोशिश की पर अब इस एकतरफा पहल पर लगाम लगाने का समय आ गया है.

सोहन लंदन में ही रह गए. रिटायरमैंट के बाद वापस आएंगे. इतने दिनों में शायद होश ठिकाने आ जाए. कल्पना ससुराल के पैतृक निवास में रह रही हैं. एक बार फिर से सूना, बंद पड़ा घर आबाद हो गया है. यहां आजकल सुबहशाम पेंटिंग और ड्राइंग की क्लासेज चलती हैं और कल्पना अपने हुनर को एक नया आयाम दे रही हैं. उन की कलात्मकता हर तरफ सराही जाती है. एक बार फिर वे पहले की तरह चहकनेफुदकने लगी हैं और यह देख कर दिल को बहुत सुकून मिलता है.

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