नवजात शिशु को, अर्पिता  की सासू माँ के हाथों में ,जब डॉक्टर ने सोंपा तो अर्पिता  ने तुरंत पूछा. इसे होम मेड कपड़े की लंगोट पहना सकते हैं या बाज़ार के डायपर्स ? डॉक्टर ने मुस्कुरा के जवाब दिया “अभी आप कपड़े की लंगोट पहनाइए और मुझे शाम को रिपोर्ट करें कि आपने कितनी लँगोट बदली. हमें बच्चे के यूरीन पास के समय अंतराल को चेक करना हैं ” डॉक्टर के जाते ही सास ने तुरंत बच्चे को लगोट पहना दी और गर्व से बहु की तरफ देखा.बहु भी मुस्कुरा उठी.बच्चे की डिलीवरी से पहले दोनों इस विषय पर चर्चा कर चुके थे कि कपड़े की लंगोट बेहतर हैं या बाज़ार के डायपर.हम भी आज इसी विषय में चर्चा करेगें.

कपड़े की लंगोट, डायपर के बाज़ार में छा जाने से पहले तक,सभी ख़ुशी ख़ुशी प्रयोग में लाते थे.अब डायपर ने नवप्रसूताओं को असमंजस में डाल दिया हैं जहाँ घर के बड़े लंगोट के फायदे गिनाते हैं वही उनके हमउम्र डायपर की हिमायत करते हैं.

कपड़े की लंगोट और डायपर का अंतर 

कपड़े की लंगोट यदि घर में ही ,पुरानी सूती साड़ी या मर्दानी सूती धोती से बनी हो तो लागत जीरो आती हैं.यदि बाज़ार से दो,चार मीटर सूती कपड़ा लेकर ,दर्जी से सिलवाया जाये तो भी यह रेडीमेड कपड़े की लंगोट से सस्ती होती हैं.इसके अतिरिक्त कपड़े की रेडीमेड लंगोट भी आती हैं.ये आसानी से साबुन से धोकर धूप में सुखाई जा सकती हैं.इसका अनेक बार प्रयोग किया जा सकता हैं.

इसके अतिरिक्त पॉकेट लंगोट भी आती हैं जिनके अंदर मुलायम पेड लगा कर रखते हैं और पेड के गीला होने पर ,केवल पेड बदल देते हैं यह नवजात शिशुओं के लिये प्रयोग की जाती हैं.

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