REVIEW: त्रिकोणीय प्रेम कहानी में मध्यम वर्गीय जीवन मूल्यों का तड़का ‘मिडल क्लास लव’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताःअनुभव सिन्हा, शिल्पान व्यास, दुगे्रश दधीच, भक्ति सकपाल

निर्देशकः रत्ना सिंहा

कलाकारः काव्या थापर, ईशा सिंह, प्रीत कमानी, संजय विश्नोई, मनोज पाहवा,  सपना सैंड, ओमकार कुलकर्णी व अन्य.

अवधिः दो घंटे सोलह मिनट

‘शादी में जरुर आना’’ जैसी सफलतम फिल्म की निर्देशक रत्ना सिन्हा इस बार कालेज और मिडल क्लास की पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी के साथ ही मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन मूल्यों की बात करने वाली फिल्म ‘‘मिडिल क्लास लव’’ लेकर आयी हैं.

कहानीः

फिल्म ‘‘मिडिल क्लास लव’’ के केंद्र में मसूरी का मध्यवर्गीय लड़का यूडी (प्रीत कमानी) है, जो कि ख्ुाद को अपने बड़े भाई व पिता से अलग ढर्रे पर चलकर धन व शोहरत पाना चाहता है. वह फैंसी स्कूल में पढ़ना चाहता है. स्मार्ट दिखना चाहता है. और वर्तमान धन्नासेठों के लड़के व लड़कियों की तरह वह कूल रहना चाहता है. यूडी के परिवार में एक एक रूपया गिनने के लिए उसकी मां (सपना सैंड) टिफिन बनाकर सप्लाई करती हैं. बड़ा भाई (संजय बिश्नोई) ट्यूशन देता है और उसके पिता शर्मा (मनोज पाहवा) हमेशा पैसा बचाने की बात करते हैं. दो सौ रूपए बचाने के लिए वह टूटा हुआ चश्मा पहनते हैं. पर बेटे यूधिष्ठिर उर्फ यूडी को अच्छी शिक्षा देने के लिए डेढ़ लाख रूपए कालेज की फीस भर देते हैं.

मगर यूडी का मानना है कि छोटे मोटे पेसे बचाकर कभी भी ‘कूल’ नही बना जा सकता. किशनचंद कालेज में पढ़ने की बजाय यूडी हाई फाई कालेज ‘ओकवुड’ में पढ़ने जाता है. इस कालेज में प्रवेश के लिए वह जो तरकीब अपनाता है, उसे किसी लड़के को नही अपनाना चाहिए. खैर, कालेज में पहले दिन वह अमि अमीर लड़की सायशा (काव्या थापर) से नाटकीय तरीके से मिलता है. सायशा उसे भाव नही देती. तो वह कक्षा में आएशा  (ईशा सिंह) के साथ बैठता है. आएशा भी उसके साथ खड़ूस सा व्यवहर करती है, पर यूडी अपने तरीके से साएशा व आएशा दोनों को पिघलाने का प्रयास करता है. वह कालेज में साएशा के प्रेमी के रूप में मशहूर होना चाहता है. आयशा की मां सिंगल मदर और डाक्टर है.

अचानक एक दिन साएशा उसके साथ शर्त लगाती है कि वह उसे अपना ब्वौय फ्र्रेंड उस दिन घोषित करेगी, जब यूडी, आएशा को अपने प्रेम जाल मे फंासने के बाद उसे धोखा देगा. अब यूडी इंटरनेट से यह जाने का प्रयास करता है कि किसी लड़की को कैसे प्रेम जाल में फंसाया जाए और उसी ट्कि पर काम करते हुए वह आएशा का दिल लगभग जीत चुका होता है कि तभी आएशा को पता चल जाता है कि यूडी ने इंटरनेट की मदद से उसे अपने प्रेम जाल में फंासने की चालें चली और आएशा,  सायशा व कालेज के कई अन्य लड़के लड़कियों के सामने उसे थप्पड़ मार देती है. यहां पर साएशा,  यूडी को बताती है कि उसने आएशा से बदला लेने के लिए ही यूडी से यह शर्त लगायी थी. इस बीच वह अपनी हरकतों से अपने माता पिता व भाई को भी नाराज कर चुका है. पर एक थप्पड़ यूडी को बहुत कुछ सिखा देता है. उसके बाद यूडी एक नई राह पकड़ता है. . फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः साएशा, आएशा व यूडी अच्छे दोस्त बन जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अमूमून पाया गया है कि स्कूल या कालेज की पृष्ठभूमि में बनने वाली फिल्मों के लिए लेखक या फिल्म सर्जक किसी तरह का अध्ययन या शोधकार्य नहीं करता. वह तो सिर्फ कालेज गोइंग लड़के व लड़कियों को अपनी फिल्म की तरफ खींचने के लिए कालेज या स्कूल की पृष्ठभूमि रख देते हैं. ऐसा ही फिल्म ‘‘मिडल क्लास लव’ की निर्देशक रत्ना सिन्हा ने किया है. कहानी के स्तर पर कुछ भी नया नही है. फिल्म में पढ़ाई या शिक्षा के महत्व से इतर सब कुछ है. हाथ में किताबें लेकर हर लड़का व लडकी पढ़ाई के अलावा सब कुछ करता हुआ नजर आताष्  है. कहानी जिस अंदाज में चलती है, उससे हर दर्शक भांप जाता है कि अगले दृश्य में क्या होने वाला है. यह लेखक व निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. इस तरह के विषय पर पहले भी फिल्में आयी हैं, फर्क इतना है कि निर्देशक महोदया मॉडर्न बनने की बजाय देसी ही बनी रही. मगर कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी लोचा है. साएशा अमीर कैसे है, कुछ पता नहीं. सिंगल मदर को अपने बच्चे की सबसे ज्यादा फिक्र रहती है, मगर यहां आएशा की मां को फिक्र नही, बेटी पूरी रात घर से बाहर रहती है. छोेटे भाई व आएशा के बीच रिश्ते को रेखांकित करने वाला कोई दृश्य ही नही है. यूडी को पता है कि उसकी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है, फिर भी वह महज एक लड़की का ब्वौयफें्रड बनने के लिए हर तरह की बर्बादी करता है.

पटकथा की कमजोरी के ही चलते यूडी के दोस्त व हलवाई के बेटे, जिसे रैपर बनना है, वह परदे पर तभी आता है, जब यूडी को चमकाना हो या यूडी कहीं बुरी तरह से अटक गया हो. अन्यथा यूडी के दोस्त के किरदार को कोई तवज्जो ही नहीं दी गयी है. कितनी अजीब सी कहानी है. कभी आएशा व साएशा एक दूसरे की न सिर्फ अच्छी दोस्त रही हैं, बल्कि एक दूसरे को सबसे ज्यादा जानती हैं, उन्हें भी खराब संबंधों को सुधारने के लिए यूडी की जरुरत पड़ गयी.

माना कि फिल्मकार ने इस फिल्म में मध्यमवर्ग की मानसिकता को किसी त्रासदी या दुख के साथ परोसने की बजाय हल्के फुल्के हास्य के क्षणों के साथ पेश किया  है. लेकिन क्लायमेक्स में जमकर रोना धोना आदि मेलोड्रामा परोसने से वह भी बाज नही आयी. इतना ही नही क्लायमेक्स में जिस तरह से मध्यमवर्गीय परिवार के मूल्यों को लेकर यूडी का भाषण है, वह भी कमाल का ही है. क्लायमेक्स इससे कई गुणा ज्यादा बेहतर बन सकता था. निर्देशक यह भूल गयी कि वर्तमान पीढ़ी को उपदेश सुनना पसंद नही है.

अभिनयः

प्रीत कमानी, ईशा सिंह और  काव्या थापर तीनों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से अपने किरदारों को जीवंतता प्रदान की है. यूडी का किरदार निभाने वाले अभिनेता प्रीत कमानी ने पहली बार अभिनय किया है, मगर परदे पर उन्हे देखकर यह नही कहा जा सकता कि यह उनकी पहली फिल्म है. वह एक मंजे हुए कलााकर नजर आते हैं. अपने चुटीले संवादों का उन्होने बहुत बेहतरीन उपयोग किया है. यूडी के माता पिता के किरदार में सपना सैंड और मनोज पाहवा का अभिनय शानदार है. बड़े भाई के किरदार में संजय विश्नोई ने बहुत सधा हुआ अभिनय किया है.

गीत व संगीत काफी अच्छा है.

अंत में फिल्म में वल्गैरिटी नही है. कालेज के लड़के व लड़कियों को अवश्य पसंद आएगी.

बा के बाद Anupamaa पर बरसी पाखी, मिला करारा जवाब

सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी को इन दिनों दिलचस्प बनाने के लिए मेकर्स कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. हालांकि अपने लेटेस्ट ट्रैक के चलते सीरियल के कई सितारे सोशलमीडिया पर ट्रोलिंग का सामना भी कर रहे हैं. दरअसल, बा के तोषू का घर तोड़ने पर अनुपमा को दोषी ठहराना दर्शकों को पसंद नहीं आ रहा है. वहीं अब अपकमिंग एपिसोड में पाखी भी अनुपमा पर ताना कसते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे (Anupamaa Written Update in Hindi)…

बा के कारण टूटी अनुपमा

अब तक आपने देखा कि अनुज, अनुपमा का साथ देता है और उसके फैसले को सही बताता है. वहीं वनराज भी अनुपमा को सही कहता हुआ दिखता है. हालांकि बा का अनुपमा पर गुस्सा बढ़ता जाता है. लेकिन बापूजी अनुपमा का सपोर्ट करते हुए लीला को उसकी गलती याद दिलाते हैं पर वह अनुपमा के फैसले को गलत मानती है.

काव्या को होगा पछतावा

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल, तोषू के दिल धोखे से टूट जाएगी. वहीं अनुपमा से उसकी ये हालत नहीं देखी जाएगी और वह उसे कपाडिया हाउस ले जाने की बात कहेगी. दूसरी तरफ, काव्या खुद को दोषी महसूस करेगी और कहेगी कि वह कल्पना कर सकती है कि अनुपमा को वनराज और उसके अफेयर के कारण उस पर क्या गुजरी थी और अनुपमा का सपोर्ट करने की बात कहती है.

अनुपमा को दोषी ठहराएगी पाखी

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि बा के बाद पाखी भी तोषू का घर तोड़ने के लिए अनुपमा को दोषी ठहराएगी. हालांकि इस बार अनुपमा चुप नहीं बैठेगी और उसे चेतावनी देगी उसने उसके साथ गलत नहीं होने दिया तो वह किंजल के साथ गलत नहीं होने देगी. वहीं पाखी को सबक सिखाते हुए कहेगी कि अगर इससे उसके जीवन और उसके नियमों से प्रौब्लम हो रही है, तो वह कुछ नहीं कर सकती. दूसरी तरफ, अनुज, अनुपमा को साहसी बनने और भगवान पर भरोसा रखने की बात कहता दिखेगा.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 2: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘जी नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं.’ उस ने सकुचाते हुए कहा पर उसे लगा मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

उस के बाद उन की दोस्ती बढ़ती ही गई. कनिका को रोनित का साथ बड़ा अच्छा लगता. दोनों का साथ में कौफी पीना, घूमनाफिरना आम बात हो गई थी. ऐसे ही एक दिन जब वे ‘मोहनजोदाड़ो’ फिल्म देखने गए तो शो के छूटतेछूटते रात के 11 बज गए. हौल के बाहर निकल कर घड़ी देखते ही रोनित बोला, ‘कनु, अब इतनी रात में तुम कहां जाओगी, होस्टल तो बंद हो गया होगा.’

‘मैं अपनी मौसी के घर चली जाती हूं, वे होस्टल के पास ही रहती हैं,’ कनिका ने कहा.

‘अब तो वे सो गई होंगी, इतनी रात में कहां उन्हें जगाओगी. ऐसा करो, आज तुम मेरे फ्लैट पर ही रुक जाओ. होस्टल सुबह चली जाना.’

‘नहीं रोनित, तुम्हारे फ्लैट पर कैसे, तुम तो अकेले रहते हो न,’ उस ने अचकचाते हुए कहा.

‘अरे, तो क्या हुआ, मैं तुम्हें खा थोड़े ही जाऊंगा, चलो,’ और रोनित ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पीछे बैठा लिया.

वह रोनित से सट कर बैठ गई. रोनित के साथ अकेले रहने की बात सोच कर उसे अंदर ही अंदर थोड़ी घबराहट तो हो रही थी पर रोमांच भी कुछ कम नहीं था. फ्लैट पर पहुंच कर रोनित ने कहा, ‘तुम बैठो, मैं चेंज कर के आता हूं.’

कुछ ही देर में रोनित अपनी नाइट ड्रैस में था. उसे देख कर अचकचाते हुए बोला, ‘अरे, तुम कैसे चेंज करोगी?’ फिर कुछ सोच कर बोला, ‘मेरी टीशर्ट और लोअर पहन लो, एक रात की ही तो बात है, सुबह चेंज कर लेना.’

कुछ ही देर में कनिका लोअर व टीशर्ट में थी. उसे देख कर रोनित खुश होते हुए बोला, ‘क्या बात है, बड़ी सैक्सी और खूबसूरत लग रही हो.’

कनिका थोड़ा शरमा गई. तभी रोनित ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. न जाने क्यों वह चाह कर भी प्रतिरोध न कर सकी, बल्कि उस की बांहों में समाती ही चली गई. रोनित उसे बांहों में उठा कर अपने बैड पर ले आया और दोनों ने उस दिन सारी सीमाओं को पार करते हुए अपने मध्य स्थित लाजशर्म के उस  झीने परदे को भी तारतार कर दिया जो अब तक उन के मध्य मौजूद था.

दोनों की बढ़ती दोस्ती औफिस में भी चर्चा का विषय बन चुकी थी. अब अकसर ही रोनित उसे अपने फ्लैट पर ले जाने लगा था. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि वे एकदूसरे के बिना रहने में असमर्थ हो गए. तभी एक दिन रोनित ने उस से कहा, ‘यार, ऐसा करो, अगले माह से तुम मेरे ही फ्लैट पर आ जाओ. एकसाथ चैन से रहेंगे. क्योंकि मु झे लगता है अब हम अलग नहीं रह सकते.’

‘हां, बात तो तुम ठीक कह रहे हो, मु झे भी ऐसा ही लगता है, पर कैसे, शादी तो मैं करना नहीं चाहती,’ कनिका ने धीरे से कहा.

‘न बाबा, आम लड़कियों की तरह तुम भी ये शादीवादी की बातें मत करो. तुम सब से अलग हो, इसीलिए तो मु झे पसंद हो,’ रोनित ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘रियली रोनित, मु झे स्वयं यह शादी और बच्चों के  झं झट पसंद नहीं हैं. मैं तो बिंदास, मस्त और आजाद पंछी की तरह उड़ना चाहती हूं. न शादी, न बच्चा, न कोई टैंशन. कमाओ, खाओपिओ और मौज करो, यह विश्वास है मेरा,’ कनिका ने अपनी जुल्फें लहराते हुए कहा.

‘तो बस, फिर देर किस बात की है. अगले महीने से मैं, तुम साथसाथ एक छत के नीचे, हर पल एकदूसरे के साथ,’ कहते हुए रोनित ने उस के गाल पर एक पप्पी जड़ दी.

‘पर रोनित, तुम्हारे अड़ोसपड़ोस वाले क्या सोचेंगे?’

‘अरे नहीं, यह तुम्हारा छोटा सा इंदौर नहीं है. यह पुणे है पुणे, मेरी जान. यहां किसी से किसी को कोई मतलब नहीं होता. इस तरह बिना शादी किए रहने को महानगरीय भाषा में लिवइन रिलेशनशिप कहा जाता है और यहां अधिकांश लोग इसी रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं और अपनी जिंदगी को बिना किसी बंधन के आजाद तरीके से जीते हैं.’ रोनित ने उसे सम झाते हुए अपने बाहुपाश में बांध लिया.

‘सच रोनित, मैं ने भी कुछ समय पहले इस के बारे में सुना था और तभी मैं ने सोचा था कि यह रिलेशनशिप मेरे जैसे लोगों के लिए बनी है. तो ठीक है, मु झे तुम्हारा यह लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव पसंद है,’ कनिका ने संकोच से कहा और अगले माह से वे दोनों एकसाथ रहने लगे. उस के बाद तो दोनों का एकसाथ घूमनाफिरना, लेटनाइट क्लब और पार्टियां करना, देररात सोना, सुबह देर से जागना, जैसे अनेक ऐसे कार्य प्रारंभ हो गए थे जो आज तक नहीं किए थे. औफिस में जब उस की सहकर्मी आयशा को इस बात की भनक लगी तो उस ने एक दिन लंच में कनिका से पूछा, ‘क्या यह सच है, कनु, कि तुम और रोनित एकसाथ फ्लैट में रहते हो?’

‘हां, तो इस में बुरा क्या है?’ कनिका ने कंधे उचका कर खुश होते हुए कहा तो आयशा बोली, ‘कनु, तू पागल तो नहीं हो गई, तू पढ़ीलिखी और सम झदार है. क्या तू नहीं जानती कि इस सब के परिणाम अच्छे नहीं होते. एक मर्द के साथ बिना शादी किए रह रही है, यह ठीक नहीं है. और क्या लाइफस्टाइल बना रखा है तुम लोगों ने, सुना है आजकल बड़ीबड़ी लेटनाइट पार्टियां अटैंड कर रहे हो तुम दोनों?’

‘तू रहेगी वही छोटे शहर की छोटी मानसिकता वाली. तेरी सोच दकियानूसी ही रहेगी. इसे लिवइन रिलेशनशिप कहते हैं, मैडम, और यहां अधिकांश कपल ऐसे ही रहते हैं. जिस में न कोई बंधन, न जिम्मेदारी, और न कोई  झं झट. बस मस्ती, मौज और मौज. तू नहीं सम झेगी, तू तो एक पतिव्रता और आदर्श नारी है न. तू इस जिंदगी के लिए नहीं बनी, सो नहीं सम झेगी,’ कह कर अपने बालों को  झटकाते हुए कनिका रोनित के केबिन में चली गई थी.

जब पिछली बार रक्षाबंधन पर इंदौर गई थी तो मां को उस के रंगढंग कुछ ठीक नहीं लगे थे. एक दिन वे उस के सिरहाने आ कर बैठ गईं और बड़े प्यार से उस के सिर पर हाथ फिराते हुए बोलीं, ‘बेटा, अब तू 28 साल की होने जा रही है.

शादी कर ले. तेरे पापा इसी बात को ले कर बड़े तनाव में रहते हैं. पिछले 4 वर्षों से तु झे कहती आ रही हूं पर तू है कि अभी नहीं, अभी नहीं की रट लगा रखी है. शादीब्याह समय पर हो जाए तो ही अच्छा रहता है.’

Festive Special: फैमिली को परोसें करारे कबाब

फेस्टिव सीजन में नई-नई डिश बनाने और फैमिली को खिलाने का मन करता है. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं हैल्दी औऱ टेस्टी करारे कबाब की ये रेसिपी, जिसे आप आसानी से बनाकर फैमिली को खिला सकते हैं.

समाग्री

–  1/4 कप सोया चूरा

–  1/4 कप चने की दाल उबली

–  1 छोटा चम्मच हरीमिर्च कटी

–  1 चुटकी दालचीनी पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

–  1 चुटकी हरी इलायची पाउडर

–  2-3 आलू

–  थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

–  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला कर मैश कर लें. फिर अच्छी तरह गूंध लें. छोटीछोटी लोइयां बना कर कबाब की शेप बना लें. नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल गरम कर कबाब डाल धीमी आंच पर दोनों ओर से कुरकुरा होने तक उलटपलट कर सेंक गरमगरम परोसें.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां भाग-3

अपने ही छोटे भाई की पत्नी के प्रति मन में पनपते अनुराग ने उन्हें एक अपराधभाव से भर दिया. वह चाह कर भी इस समय कविता से दूर नहीं जा सकते थे. लेकिन मन ही मन राघव ने निर्णय कर लिया था कि रंजन के आते ही वह उन दोनों के जीवन से कहीं दूर चले जाएंगे.

अचानक एक शाम काम करतेकरते कविता आंगन में फिसल कर गिर गई. राघव तुरंत उसे ले कर अस्पताल भागे पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कविता अपने बच्चे को खो चुकी थी. राघव ने जब रंजन को इस बारे में बता कर उसे लौट आने को कहा तो रंजन बोला, ‘‘भैया, जो होना था सो हो गया. इस वक्त तो मेरा आ पाना संभव नहीं, पर जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’

इस घटना के बाद तो कविता एकदम ही गुमसुम रहने लगी थी. इस दौरान राघव ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले कर एक छोटे बच्चे की तरह कविता की देखभाल की.

कविता को यों मन ही मन घुटते देख, एक दिन मां ने उस से कहा, ‘‘कविता, मैं तुम्हारा दर्द समझती हूं, बेटा, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि जीना छोड़ दिया जाए.’’

मां की बात सुन कर कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तो और क्या करूं, अब किस के लिए जीने की इच्छा रखूं मैं, रंजन के लिए, जिस ने यह खबर सुन कर भी आने से मना कर दिया…सोचा था बच्चे के आने पर सब ठीक हो जाएगा, पर…मां, रंजन अपने बड़े भाई जैसे क्यों नहीं हैं…’’ कहते हुए कविता मां के गले से लग गई.

कविता के स्वास्थ्य में कुछ सुधार आने के बाद राघव एक दिन एक व्यक्ति को ले कर घर आए और बोले, ‘‘कविता, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छा डांस करती हो और मैं चाहता हूं कि तुम नृत्य की विधिवत शिक्षा लो.’’

अब कविता को एक नया लक्ष्य मिल गया था. वह लगन से डांस सीखने लगी. उसे खुश देख कर राघव को बहुत संतुष्टि मिलती थी.

एक दिन मां ने राघव से कहा, ‘‘बेटा, तेरी मौसी का फोन आया था, वह तीर्थयात्रा पर जा रही हैं, मैं भी साथ जाना चाहती हूं, तुम मेरे जाने का इंतजाम कर दो.’’

राघव कुछ चिंतित हो कर बोले, ‘‘मां, कविता से तो पूछ लो, वह यहां मेरे साथ अकेली रह लेगी.’’

मां ने इस बारे में जब कविता से पूछा तो वह मान गई.

मां के जाने के बाद राघव कविता से कुछ दूरी बना कर रहने की कोशिश करते और कविता भी अपने डांस में व्यस्त रहती थी. एक दिन कविता ने राघव से कहा, ‘‘मुझे आप को एक अच्छी खबर सुनानी है. गुरुजी एक स्टेज शो ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ कर रहे हैं और मैं उस में शकुंतला बन रही हूं.’’

राघव खुश हो कर बोले, ‘‘अरे, वाह, कब है वह?’’

‘‘अगले शुक्रवार…’’

राघव ताली बजा कर बोले, ‘‘वाह, इसे कहते हैं संयोग, उसी दिन तो रंजन और मां वापस  आ रहे हैं. बड़ा मजा आएगा, जब रंजन तुम्हें स्टेज पर शकुंतला बना देखेगा.’’

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शाम को राघव घर लौटे तो तेज बारिश हो रही थी. आते ही उन्होंने आवाज दी, ‘‘कविता, एक कप चाय दे दो.’’

बहुत देर तक जब कविता नहीं आई तो वह बाहर आ कर कविता को देखने लगे, कविता वहां भी न थी, तभी उन्हें छत पर पैरों के थाप की आवाज सुनाई दी. वह छत पर गए तो देखा कि कविता बारिश में भीगते हुए नृत्य का अभ्यास कर रही थी और उस की गुलाबी साड़ी उस के शरीर से चिपक कर शरीर का एक हिस्सा लग रही थी. उस पल कविता बहुत खूबसूरत लग रही थी. राघव ने अपनी नजरें झुका लीं और बोले, ‘‘कविता… नीचे चलो, बीमार पड़ जाओगी.’’

राघव की आवाज सुन कर कविता चौंक पड़ी और उन के पीछेपीछे चल पड़ी. थोड़ी देर बाद जब वह चाय ले कर राघव के कमरे में आई तब भी उस के गीले केशों से पानी टपक रहा था.

चाय पीते हुए राघव बोले, ‘‘कविता, बैठो, तुम्हारा एक पोट्रेट बनाता हूं,’’ कविता बैठ गई. पोटे्रट बनाते हुए राघव ने देखा कि कविता की आंखों से आंसू बह रहे हैं. वह ब्रश रख कर कविता के पास आ गए और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘कविता, अब तो रंजन आने वाला है, अब इन आंसुओं का कारण?’’

कविता तड़प उठी और राघव के सीने से जा लगी. राघव चौंक पडे़. कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे अपने लिए क्यों नहीं चुना…चुना होता तो आज मैं इतनी अतृप्त और अधूरी न होती.’’

कविता भी उन से प्यार करने लगी है, यह जान कर राघव अचंभित हो उठे. अनायास ही उन के हाथ कविता के बालों को सहलाने लगे. कविता ने राघव की ओर देखा, तो उन्होंने कविता की भीगी हुई आंखों को चूम लिया.

राघव के स्पर्श से बेचैन हो कर कविता ने अपने प्यासे अधर उन की ओर उठा दिए. कविता की आंखों में उतर आए मौन आमंत्रण को राघव ठुकरा न सके और दोनों कब प्यार के सुखद एहसास में खो गए उन्हें पता ही न चला.

सुबह जब राघव की नींद खुली तो कविता को अपने पास न पा कर वह हड़बड़ा कर उस के कमरे की ओर भागे, देखा, वह चाय बना रही थी. तब उन की जान में जान आई. कविता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप उठ गए, लो, चाय पी लो.’’

राघव नजरें झुका कर बोेले, ‘‘कविता, कल रात जो हुआ…’’

‘‘मुझे उस का कोई अफसोस नहीं…’’ कविता राघव की बात बीच में ही काटती हुई बोली, ‘‘और आप भी अफसोस जता कर मुझे मेरे उस सुखद एहसास से वंचित मत करना.’’

कविता ने राघव के पास जा कर कहा, ‘‘सच राघव, मैं ने पहली बार जाना है कि प्यार क्या होता है. रंजन के प्यार में सदा दाता होने का दंभ पाया है मैं ने, पर आप के साथ मैं ने अपनेआप को जिया है, उस कोमल एहसास को आप मुझ से मत छीनो.’’

‘‘पर कवि… आज रंजन वापस आने वाला है, फिर…’’ कहते हुए राघव ने कविता को जोर से अपने सीने से लगा लिया, मानो अब वह कविता को अपने से दूर जाने नहीं देना चाहते हैं.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. कविता ने दरवाजा खोला तो मां को सामने पा कर वह खुशी  से उछल पड़ी. मां ने कविता के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, कविता, बहुत खुश लग रही हो, रंजन आ गया क्या?’’

मां की बात सुन कर कविता ने राघव की ओर देखा तो बात को संभालते हुए वह बोले, ‘‘रंजन आज शाम को आएगा, और आज कविता का स्टेज शो है न इसीलिए यह बहुत खुश है.’’

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शाम को कविता को मानस भवन छोड़ कर राघव, रंजन को लेने एअरपोर्ट चले गए. एअरपोर्ट से लौटते समय घर न जा कर कहीं और जाते देख रंजन बोला, ‘‘हम कहां जा रहे हैं, भैया?’’

‘‘चलो, तुम्हें कुछ दिखाना है.’’

स्टेज पर अपनी पत्नी कविता को शकुंतला के रूप में देख कर रंजन निहाल हो गया. वह बहुत ही आकर्षक लग रही थी, उस का डांस भी बहुत अच्छा था. नाटक खत्म होने पर जब राघव और रंजन, कविता से मिलने गए तो वहां लोगों की भीड़ देख कर हैरान रह गए. लौटते हुए रंजन ने कविता से कहा, ‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी अच्छी डांसर हो.’’

कविता ने धन्यवाद कहा.

घर लौटते ही कविता बोली, ‘‘मां, मैं अपने घर जा रही हूं.’’

कविता की बात सुन कर सभी सकते में आ गए. मां ने चौंक कर कहा, ‘‘आज ही तो रंजन आया है और तुम अपने घर जाने की बात कर रही हो.’’

‘‘इसीलिए तो जा रही हूं मां, अब मैं रंजन के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती.’’

कविता की यह बात सुन कर रंजन ने गुस्से से कहा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो, कविता. मैं तुम्हारा पति हूं, कोई गैर नहीं.’’

कविता बिफर कर बोली, ‘‘पति… तुम जानते भी हो कि पति शब्द का मतलब क्या होता है? नहीं…तुम्हारे लिए बस, काम, पैसा, तरक्की, स्टेटस यही सबकुछ है. भावनाएं, प्यार क्या होता है इस से तुम अनजान हो.’’

रंजन भड़क कर बोला, ‘‘तुम इस तरह मुझे छोड़ कर नहीं जा सकतीं…’’

‘‘क्यों…क्यों नहीं जा सकती? ऐसा क्या किया है तुम ने आज तक मेरे लिए, जो तुम मुझे रोकना चाहते हो? जबजब मुझे तुम्हारी जरूरत थी, तुम नहीं थे, यहां तक कि जब मैं ने अपना बच्चा खोया तब भी तुम मेरे साथ नहीं थे और तुम्हें तो इस से खुशी ही हुई होगी, तुम उस झंझट के लिए तैयार जो नहीं थे. मन का रिश्ता तो तुम मुझ से कभी जोड़ ही नहीं सके और इस तन का रिश्ता भी मैं आज तोड़ कर जा रही हूं.’’

कविता के तानों से तिलमिला कर रंजन ने तल्खी से कहा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम यों ही चली जाओगी और मैं तुम्हें जाने दूंगा,’’ इतना कह कर रंजन कविता की बांह पकड़ कमरे की ओर ले जाते हुए बोला, ‘‘चुपचाप अंदर चलो, मैं तुम्हें अपने को इस तरह अपमानित नहीं करने दूंगा. आखिर मेरी भी समाज में कोई इज्जत है.’’

‘‘रंजन…कविता का हाथ छोड़ दो…’’ मां ने तेज स्वर में कहा.

‘‘मां, तुम भी इस का साथ दे रही हो?’’ रंजन चौंक कर बोला.

कविता की बांह रंजन से छुड़ाते हुए मां बोलीं, ‘‘हां, रंजन, क्योंकि मैं जानती हूं कि यह जो कर रही है, सही है. आज भी तुम उसे अपने प्यार की खातिर नहीं, समाज में बनी अपनी झूठी प्रतिष्ठा के कारण रोकना चाहते हो. कविता को यह कदम तो बहुत पहले उठा लेना चाहिए था. जाने दो उसे…’’

कविता ने नम आंखों के साथ मां के पैर छुए और राघव की ओर पलट कर बोली, ‘‘आप ने मुझे जीने की जो नई राह दिखाई है उस के लिए आप की आभारी हूं, अब नृत्य साधना को ही मैं ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है. आप से जो भी मैं ने पाया है वह मेरे लिए अनमोल है. वह सदा मेरी अच्छी यादों में अंकित रहेगा…’’

इतना कह कर कविता चल पड़ी, अपने लिए, अपने हिस्से की थोड़ी सी जमीं और थोड़ा सा आसमां

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कहीं सेहत तो नहीं बिगाड़ रही लाइटिंग

क्याआप अपने घर में सुस्ती और थकान के बजाय खुशी और सकारात्मकता महसूस करना चाहते हैं? क्या हमारी रोजमर्रा की लाइफ  में लाइट महत्त्वपूर्ण है? क्या हमें अपने घर में उचित लाइट अरेंजमैंट करना चाहिए? अगर हां तो क्यों?

आइए, जानते हैं इस संबंध में सीईओ ऐंड फाउंडिंग पार्टनर, लाइट डाक्टर प्राची लाड से:

घर के किसी कोने में जब आप भरपूर सकारात्मकता ऊर्जा महसूस करते हैं तो आप का मूड अच्छा और आप खुद को रिफ्रैश भी महसूस करते हैं. तब मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों होता है? जब आप समझ नहीं पाते तब आप इस अनुभव को ‘सकारात्मक ऊर्जा’ से जोड़ देते हैं. लेकिन अब जब अगली बार आप ऐसा अनुभव करें तो कमरों की रोशनी के प्रकार का निरीक्षण जरूर करें.

अच्छे और बुरे प्रकाश का प्रभाव

हम सभी जानते हैं कि अपर्याप्त लाइट में देखने की कोशिश करने का मतलब है आंखों पर तनाव डालना और वहीं लाइट की अधिकता आंखों को नुकसान पहुंचा कर दृष्टिहीन कर सकती है. दोनों ही स्थितियां हमारी नजर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं और यदि इस तरह का दोषपूर्ण लाइट अरेंजमैंट डिजाइन घरों में लंबे समय तक बना रहता है, तो यह हमारी हैल्थ के लिए कभी न भरपाई करने वाला कारण बन सकता है. यही कारण है कि हमारे घर व वर्क एरिया में प्रौपर लाइट की आवश्यकता होती है.

एक घर में लाइट की कितनी आवश्यकता

लाइट की मात्रा को लैक्स में मापा जाता है और एक घर में प्रत्येक कमरे में खास लैक्स स्तरों की आवश्यकता होती है. दिन या रात में विभिन्न समय सीमा में हम अपने घर पर जो कार्य करते हैं, उस के आधार पर खास कोने या क्षेत्र में सही मात्रा में लाइट अरेंजमैंट करने की आवश्यकता होती है.

क्या है लाइट अरेंजमैंट

जब हम लाइट अरेंजमैंट के बारे में बात करते हैं तो लाइट अरेंजमैंट के विभिन्न पहलू हमारे सामने होते हैं जैसे लोग ज्यादा चकाचौंध करने को ही लाइट अरेंजमैंट मान बैठते हैं, जबकि हर समय इस से सही रिजल्ट मिले ऐसा जरूरी नहीं बल्कि हम अकसर महसूस ही नहीं करते हैं या अपने आसपास किए गए लाइट अरेंजमैंट को पर्याप्त महत्त्व भी नहीं देते हैं, लेकिन यकीन मानिए कि यह हमारी मनोदशा, स्वास्थ्य, नजर और हमारे सामान्य जीवन पर जबरदस्त प्रभाव डालता है.

सही लाइट अरेंजमैंट डिजाइन यह सुनिश्चित करता है कि आप जिस कार्य को करना चाहते हैं, उसे करने के लिए आप हर समय पर्याप्त लाइट अरेंजमैंट पा सकें.

लाइट अरेंजमैंट डिजाइन करना

घर के लिए लाइट अरेंजमैंट डिजाइन करना एक कला है. लाइट अरेंजमैंट डिजाइन सिर्फ घर के हर कोने में लाइट जोड़ने से संबंधित नहीं है, बल्कि यह शैडो और लाइट का एक खेल है. घर की लाइटिंग की लेयरिंग सब से कारगर होती है.

पहली परत ऐंबिएंट लाइट कहलाती है, जिसे सामान्य या आसपास बिखेरने वाली लाइट भी कहा जाता है. इसे डाउनलाइट्स, लीनियर लाइट्स और कोव लाइट्स लगा कर हासिल किया जा सकता है. खाना पकाने, सफाई जैसे हमारे प्रतिदिन के कार्यों में सामान्य विसारित प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता होती है. यह हमें टेबल टौप, दीवारों, छत और फर्श जैसी सतहों पर भी बिखेर कर रोशनी देने में मदद करता है.

दूसरी परत ऐक्सैंट लाइट की होती है. इस का उपयोग कलाकृति, दीवार की विशेष बनावट जैसी खास विशेषता को उजागर करने के लिए किया जाता है.

टास्क लाइटिंग अधिक फोकस्ड अरेंजमैंट है, जो पढ़ना, लिखना और अन्य तरीकों को आसान बनाता है. हम में से बहुत से लोगों की पसंदीदा जगहों पर पढ़ने या लिखने की आदत होती है. व्यसकों के लिए यह एक स्टडी कौर्नर या बिस्तर हो सकता है क्योंकि कुछ लोग सोने से पहले पढ़ना पसंद करते हैं. बच्चों के लिए यह उन की स्टडी डैस्क हो सकती है. हमारी स्वस्थ दृष्टि के लिए सही प्रकार की और सही मात्रा में लाइट अरेंजमैंट की आवश्यकता होती है. पढ़ने या लिखने के दौरान अपनी आंखों को तनाव से बचाने के लिए व्यक्ति को ग्लेर फ्री लाइटिंग अरेंजमैंट का उपयोग करना चाहिए.

वार्म और कूल कलर्स का संयोजन

हमारे घर में वार्म और कूल कलर्स की लाइटिंग का संयोजन होना चाहिए. हम अपने लिविंगरूम और बैडरूम में वार्मर कलर टोन डैकोरेटिव लाइटिंग फीचर्स लगा कर एक शांत वातावरण बना सकते हैं. रसोई जैसी जगहों के लिए कूलर रंगीन प्रकाश व्यवस्था पसंद की जाती है. बाथरूम में हमें मिक्स कलर टोन रखना चाहिए, बिस्तर पर लेटने से पहले कूलर कलर की लाइटिंग स्विचऔन करने से बचना चाहिए. विभिन्न अध्ययनों के अनुसार कूलर कलर लाइटिंग हमारे मस्तिष्क में मैलाटोनिन हारमोन के स्तर को दबाने में मदद करती है, जो हमें अधिक सक्रिय बनाती है. लेकिन बिस्तर पर जाते समय अच्छी नहीं हो सकती.

इस तरह परिपेक्ष्य में देखा जाए तो अच्छी लाइटिंग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने में हमारी मदद करती है.

‘पुष्पा’ गर्ल रश्मिका मंदाना अपनी फिल्म ‘गुडबाय’ के प्रचार के लिए पहुंचीं दिल्ली

फिल्म पुष्पा में श्रीवल्ली की भूमिका के लिए खूब वाहवाही बटोरने वाली दक्षिण भारतीय सुपरस्टार अभिनेत्री रश्मिका मंदाना अपनी फिल्म ‘गुडबाय’ के प्रचार के लिए दिल्ली के आईनॉक्स थियेटर पहुंची. रश्मिका इन दिनों अपनी फिल्म को लेकर काफी सुर्खियों में छाई हुई हैं. उनकी इस फिल्म का फैंस को भी बेसब्री से इंतजार है.

आपको बता दे मुख्य तौर पर तेलुगु और कन्नड़ की फिल्मों में नजर आने वाली रश्मिका हिंदी फिल्म गुडबाय से बॉलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं. जब से  फिल्म ‘गुडबाय’ का ट्रेलर लॉन्च किया गया, तभी से इसने न केवल लाखों व्यूज पार कर लिए हैं, बल्कि इसी के साथ लाखों दिलों में भी जगह बना ली है. इसके साथ ही रश्मिका मंदाना ने कम समय में ही अपनी खूबसूरती और शानदार अदाकारी से लोगों का दिल जीत लिया है.

रश्मिका को इंडियन मीडिया और कई सारे लोग ‘कर्नाटक क्रश’ के तौर पर जानते हैं. सर्च इंजन गूगल ने भी साल 2020 के नवंबर महीने में रश्मिका को नेशनल क्रश के रूप में मान्यता दे दी थी.

‘गुडबाय’ फिल्म भल्ला परिवार के सदस्यों के इर्द-गिर्द घूमती है और परिवार के महत्व को बहुत ही दिलकश तरीके से दिखाती है. इसका ट्रेलर जहां आपको कुछ पल मुस्कुराने पर मौका देता है, तो अगले ही पल में आपकी आंखों में आंसू भी ला देता है.

मीडिया से बातचीत में रश्मिका ने बताया कि वह दूसरी बार दिल्ली आई हैं और इस शहर में बार-बार आने और इसके बारे में और अधिक जानने की इच्छा रखती हैं. उन्होंने अपनी फिल्म की कामयाबी के लिए  गुरुद्वारा बंगला साहिब भी पहुंचीं और वहां मत्था टेका. रश्मिका मंदाना अपनी फिल्म ‘गुडबाय’ का प्रचार के लिए पूरा जोर लगा रही हैं.

गुड कंपनी के सहयोग से एकता आर कपूर की बालाजी मोशन पिक्चर्स द्वारा निर्मित ‘गुडबाय’ 7 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म में रश्मिका के साथ मेगास्टार अमिताभ बच्चन, नीना गुप्ता, पावेल गुलाटी, एली अवराम, सुनील ग्रोवर, साहिल मेहता प्रमुख भूमिकाओं में है.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 1: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

डा. बत्रा की टेबल पर पड़ी उस की रिपोर्ट्स मानो उस से अब तक की लाइफस्टाइल का हिसाब मांग रही हों. डा. बत्रा की एकएक बात उस के कानों में गूंज रही थी. ‘‘इट्स टू लेट मिस कनिका, नाउ यू हैव टू गिव बर्थ टू दिस चाइल्ड. वी कांट टेक रिस्क.’’ डाक्टर बत्रा ने सीधे शब्दों में जब उस से कहा तो वह गिरतेगिरते बची. रोनित ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला. कुछ चैतन्य होने पर उस ने फिर डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर, कोई उपाय तो होगा. मैं इन सब  झं झटों में नहीं पड़ना चाहती. ऐंड आई कांट अफोर्ड दिस चाइल्ड, प्लीज एनी हाउ अबौर्ट इट.’’

‘‘नहीं मिस कनिका, आप का अबौर्शन नहीं हो सकता. इट्स टू लेट नाउ. दूसरे, आप को फिजिकली इतनी प्रौब्लम्स हैं कि अबौर्शन से आप की जान को खतरा हो सकता है. आप की बौडी अबौर्शन नहीं सह सकती. मैं ने दवाएं लिख दी हैं, आप इन्हें लेती रहेंगी तो समस्या कम होगी,’’ कह कर डाक्टर अपने केबिन से बाहर राउंड पर चली गईं.

उस ने रोनित की ओर देखा, पर उस की आंखों में भी कुछ न कर पाने की बेबसी  झलक रही थी. उस ने सहारा दे कर कनिका को उठाया और बाहर आ कर एक टैक्सी को आवाज लगाई. टैक्सी में दोनों ने आपस में कोई बात नहीं की. घर पहुंच कर रोनित ने उस से कहा, ‘‘तुम आराम करो, मैं औफिस जा रहा हूं. दवाइयां टेबल पर रखी हैं.’’ और उस के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह घर से चला गया. जरूरी दवाइयां ले कर कनिका बिस्तर पर लेट गई.

आंखें बंद करते ही वह आज से 8 वर्ष पूर्व की यादों में जा पहुंची जब उस का बीए कर के टीसीएस कंपनी में प्लेसमैंट हुआ था. अपौइंटमैंट लैटर हाथ में आते ही उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे लग रहा था आज ही जा कर नौकरी जौइन कर ले. पर जौइनिंग 3 माह बाद की थी. घर में घुसते ही मां के गले लिपट गई थी वह.

‘मां, मां, कहां हो? जल्दी से मिठाई बांटो.’

‘क्या हुआ? क्यों इतना खुश हो रही है?’ मां ने कमरे से बाहर आते हुए पूछा.

‘मां, आप की बेटी की नौकरी लग गई, यह देखो अपौइंटमैंट लैटर.’ कनिका ने अपना नियुक्तिपत्र मां के हाथों में रख दिया. मां की खुशी का पारावार नहीं था. पिताजी के आने पर मां ने उन का मुंह मीठा कराते हुए उस की सफलता की सूचना दी. पिताजी ने बिना कोई उत्साह दिखाए मिठाई खा ली और अपने कमरे में चले गए. पिता की ऐसी प्रतिक्रिया देख कर कनिका हैरान हो कर उन के पीछेपीछे चल दी और उन के गले में बांहें डाल कर बड़े लाड़ से बोली, ‘पापा, आप मेरी सफलता से खुश नहीं हैं क्या?’

‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं है कि मैं खुश नहीं हूं, पर मैं चाहता हूं कि तू पीजी कर ले ताकि और अधिक अच्छे पैकेज वाली नौकरी मिले क्योंकि यह नौकरी ऐसी है कि घर छोड़ कर इतनी दूर रहना पड़ेगा. यहां इंदौर में ही मिल जाती तो ठीक था. इतनी सैलरी से तो पुणे में तेरा ही खर्च नहीं निकलेगा,’ पापा ने प्यार से उसे सम झाते हुए कहा.

‘नहीं पापा, पीजीवीजी करना तो अब मेरे बस का है ही नहीं. क्योंकि अब और पढ़ाई मु झ से नहीं होगी. अब तो बस मैं नौकरी कर के महानगर में रह कर लाइफ एंजौय करना चाहती हूं,’ कह कर मानो उस ने अपना निर्णय सुना दिया था.

‘जैसी तुम्हारी मरजी,’ कह कर पापा कमरे से बाहर चले गए थे. यों भी पापा कभी किसी से अपनी बात जबरदस्ती नहीं मनवाते थे. सो, उस ने इतना ध्यान नहीं दिया. फिर मां तो पूरी तरह उस के साथ थीं. 3 माह बाद पापा की इच्छा के विरुद्ध वह पुणे जैसे महानगर में नौकरी करने आ गई. यहां आ कर शहर की चकाचौंध ने तो उसे अभिभूत ही कर दिया था. आते समय मां के कहे शब्द आज उसे बारबार याद आ रहे थे.

‘बेटी, अभी तक तू छोटे शहर में रही है. इतने बड़े शहर में जा कर वहां की चकाचौंध में भटक मत जाना. बड़े नाजों से पाला है तु झे. कहीं भी रहना, पर अपने परिवार के मानसम्मान और संस्कार कभी मत भूलना.’

उफ, वह कैसे यहां आ कर सब भूल गई और आज इस स्थिति में आ गईर् कि उस का अपना जीवन ही दांव पर लग गया है. उसे याद है वह दिन जब उस की अपने औफिस के सहकर्मी रोनित से दोस्ती हुई थी. शाम के साढ़े 5 बजे वह औफिस से होस्टल जाने के लिए बसस्टौप पर खड़ी हुई थी कि तभी रोनित की बाइक उस के सामने आ कर रुकी. ‘आइए, मैं आप को होस्टल छोड़ देता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी, आप निकल जाएं.’ कनिका ने सकुचाते हुए कहा तो रोनित बोला, ‘‘पानी बरस रहा है. भीग जाएंगी. संकोच मत करिए. आइए, बैठ जाइए. औफिस का ही बंदा हूं, विश्वास तो कर ही सकती हैं आप.’ जब रोनित ने इतना आग्रह किया तो वह टाल न सकी और उस के पीछे सट कर बैठ गई.

किसी पुरुष के पीछे इस प्रकार बैठने का उस का यह पहला अनुभव था. उस का रोमरोम उस समय खिल उठा था, मन कर रहा था यह सुहाना सफर कभी समाप्त ही न हो. पर कुछ ही देर बाद रोनित ने बाइक रोक दी तो मानो वह नींद से जागी थी. हड़बड़ा कर नीचे उतर कर खड़ी हो गई. होस्टल के बाहर उसे छोड़ते समय रोनित मुसकराते हुए बोला, ‘जब भी जरूरत पड़े, याद करिएगा. बंदा हाजिर हो जाएगा.’

कनिका ने खुशी से हुलसते हुए ‘जी’ कहा और पर्स को हवा में  झुलाते हुए अपने कमरे में पहुंची. आज न जाने क्यों उसे मन ही मन बहुत अच्छा और अलग सा महसूस हो रहा था. पूरी रात वह रोनित के बारे में ही सोचती रही. अगले दिन जब वह औफिस पहुंची तो रोनित गेट पर ही मिल गया.

‘हैलो, गुडमौर्निंग मैडम, रात में नींद आई कि नहीं या मेरे बारे में ही सोचती रहीं.’ उस ने खिलखिलाते हुए कहा तो वह भी हंस पड़ी.

कहीं आप भी तो नहीं इमोशनल ईटर

38 साल की नताशा अपना बुटीक चलाती थी. कोरोना से पहले बुटीक से अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन कोरोना के कारण धंधा ऐसा चौपट हुआ कि दुकान बेचनी पड़ी. दुकान बिक जाने के कारण नताशा अब स्ट्रैस में रहने लगी है. उस की सहनशक्ति घटने लगी है जिस के कारण पति से हर छोटी-छोटी बात पर उस का झगड़ा हो जाता है. घर बैठे रहने के कारण नताशा का ईटिंग पैटर्न भी बदल गया. जो नताशा पहले 55 किलोग्राम की हुआ करती थी, आज उस का वजन 86 किलोग्राम हो गया है.

स्ट्रैस होने पर वह बाहर से कुछ न कुछ चटपटा और्डर कर के मंगवा लेती है और खाने लगती है. उसे लगता है इस से उस का स्ट्रैस थोड़ा कम होगा. लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है. आईने में खुद को देख कर नफरत होने लगती है उसे. कोरोना के कारण बिजनैस ठप्प हो जाने के चलते ऐंग्जाइटी डिसौर्डर का शिकार हुई और उस के बाद ईटिंग डिसऔर्डर का. वह अपनी सैल्फ इमेज को ले कर परेशान रहती है.

इमोशनल ईटिंग क्या है?

इमोशनल ईटिंग (Emotional eating) एक ऐसी आदत है जब आप कई बार नकारात्मक भावनाओं से उबरने के चक्कर में ज्यादा खाने लगते हैं. कभीकभी तो आधी रात को भी भूख लगने पर आप फ्रिज में खाना ढूंढ़ने लगते हैं. न मिलने पर पिज्जा, बर्गर, पासता और न जाने क्या-क्या और्डर कर देते हैं.

कई बार आप गुस्से, उदासी, पार्टनर से ब्रेकअप या मन में चल रही ऊटपटांग बातों से डर कर खाने लगते हैं. जो भी मिला बिना फायदानुकसान जाने उसे खाने लगते हैं और फिर पछतावे की आग में जलने लगते हैं कि हाय, इतना सब क्यों खा लिया.

26 साल का देवांग ग्रैजुएशन कर 4 साल से नौकरी की तलाश में है. लेकिन अभी तक वह सफल नहीं हो पाया है जिस के कारण वह स्ट्रैस में रहने लगा है. उस के अंदर नैगेटिविटी भर गई है कि अब उस की नौकरी नहीं लगने वाली और इसी स्ट्रैस में वह बाहर से पिज्जा, पास्ता, मोमोस वगैरह ऊटपटांग चीजें मंगवा कर खाने लगता है. पेट भरा होने के बावजूद उस का कुछ न कुछ खाने का मन होता रहता है और फिर बाद में गिल्टी महसूस करता है कि क्यों खाया.

दरअसल, घरपरिवार और दोस्तों की तरफ से भी नौकरी का ऐसा दबाव पड़ रहा है कि वह परेशान रहने लगा है और जज्बाती हो कर कुछ न कुछ खाता ही रहता है.

डाक्टर्स का कहना है कि खाने और भूख का हमारे इमोशन और स्ट्रैस से बहुत नजदीकी संबंध है. कभीकभी ऐसा होता है कि जब हम अच्छा महसूस कर रहे होते, तो हमारा कुछ खाने का मन नहीं होता. लेकिन जब हम स्ट्रैस में होते हैं तब इमोशनल ईटिंग करते हैं, जिसे स्ट्रैस ईटिंग भी कहते हैं. इस में इंसान ज्यादा खाता है. हाई कैलोरी खाना खाता है. जैसे फास्ट फूड, फ्राई फूड, चौकलेट, आइसक्रीम, मिठाई, केक. मन नहीं होता फिर भी खाते जाते हैं क्योंकि स्ट्रैस में हैं.

इमोशनल ईटिंग (Emotional eating) के नुकसान

इमोशनल  ईटिंग (Emotional eating)  से हैल्थ पर बुरा असर पड़ सकता है जैसेकि मोटापा, सांस फूलना, जोड़ों की समस्या, दिल की बीमारी, टाइप 2 डायबिटीज, सही पोशाक तत्त्वों की कमी. इमोशनल ईटिंग (Emotional eating)  परेशानियों से डील करने का गलत तरीका है. वहीं बिंज ईटिंग एक बीमारी है.

बिंज ईटिंग क्या है?

आमतौर पर हम खाने के बीच में गैप रखते हैं. लेकिन बिंज ईटिंग की समस्या जिन्हें होती है वो लगातार खाते रहता है. ज्यादा खाने से असहज महसूस हो रहा है पर फिर भी खाने पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं. बिंज ईटिंग के दौरान आप किसी के सामने नहीं, अकेले खाते हैं क्योंकि बुरा लगता है. इसे बिंज ईटिंग कहते हैं.

‘कौफी विद करण’ शो में ऐक्टर अर्जुन कपूर और ऐक्ट्रैस सोनम कपूर भी अपने वेट लौस के बारे में बता चुके हैं कि दोनों ही इमोशनल ईटर रह चुके हैं.

बिहार के कटिहार जिले का रहने वाला 30 साल का रफीक अदनान ईटिंग डिसऔर्डर ‘बुलिमिया नर्वोसा’ से पीडि़त है. उस का वजन 200 किलोग्राम है.

ईमोशनल ईटिंग बन सकता है जान का दुश्मन

दिल्ली में ईटिंग डिसऔर्डर्स ऐक्सपर्ट और सीनियर कंसल्टैंट साइकिएट्रिस्ट डा. संजय चुघ का कहना है कि कई बार इमोशनल ईटिंग काबू से बाहर हो कर ईटिंग डिसऔर्डर में तबदील हो जाती है और कई बार ईटिंग डिसऔर्डर का खतरा बढ़ा देती है. बौलीवुड सिंगर अदनान सामी का ईमोशनल ईटिंग की वजह से वजन 230 किलोग्राम हो गया था.

खाने का मजा न बन जाए सजा

हम खाना अपना पेट भरने के लिए खाते हैं जिसे पौजिटिव ईटिंग कहते हैं क्योंकि खाना हमारे शरीर के लिए उतना ही जरूरी है जितना सोना. पौजिटिव ईटिंग में ब्रेन में डोपामाइन नाम का कैमिकल तुरंत बढ़ जाता है और हमें स्ट्रैस से मुक्ति दिलाता है. भूख लगने पर हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है और जब हमारा पेट भरा होता है, तो दिमाग भी सही तरीके से चलता है. इस के विपरीत नैगेटिव ईटिंग में इंसान स्ट्रैस में डूब कर बारबार किसी खास तरह की फूड आइटम खाता चला जाता है. कभी चिप्स तो कभी बर्गरपिज्जा खाते रहने से नैगेटिविटी जाती नहीं है, बल्कि ज्यों की त्यों बनी रहती है.

इमोशनल ईटिंग (Emotional eating) के लक्षण

अचानक भूख महसूस करना, हर वक्त कुछ न कुछ खाते रहने की इच्छा होना, खाने के बाद भी पेट खाली होने का एहसास और फिर खाने लगना, ओवर ईटिंग करने के बाद पछतावा होना, ये सारे लक्षण इमोशनल ईटिंग के हैं.

नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इनफौरमेशन’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों के मुकाबले महिलाएं इमोशलन ईटिंग की ज्यादा शिकार होती हैं. पारिवारिक जिम्मेदारियां, लोगों के तानों, औफिस की टैंशन, हैल्थ इशूज होने पर भी फास्ट फूड और आइसक्रीम खाने से गुरेज नहीं करतीं. खाना बरबाद न हो, इस के लिए बचा खाना भी वे खा लेती हैं. कई बार हम अपने फूड क्रेविंग को मजाक में टाल देते हैं कि थोड़ा ज्यादा खाने से कुछ नहीं होता. लेकिन इमोशनल ईटिंग मजाक का नहीं चिंता का विषय है.

एक सर्वे के अनुसार, 2015-16 की तुलना में 2019-21 में 23% पुरुष और 24% महिलाओं का मोटापा बढ़ गया. वहीं 2015-16 में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में 2.1 से 3.4% ओवरवेट हो गए.

न्यूट्रीशनिस्ट्स का कहना है कि आमतौर पर देखा गया है कि नैगेटिव इमोशन में बह कर लोग ज्यादा इमोशन ईटिंग करने लगते हैं. जैसे ही इमोशन की उथलपुथल होती है हारमोंस का बैलेंस भी बिगड़ने लगता है. तनाव की स्थिति में कार्टिसोल हारमोन उस से लड़ने के लिए सामने आता है. इस लड़ाई के लिए शरीर को ज्यादा ऐनर्जी की जरूरत पड़ती है. ऐसे में बौडी कार्बोहाइड्रेड वाली चीजों को खाने की डिमांड करती है. यही इमोशनल ईटिंग जैसी मुसीबतों की असली जड़ है. अगर इमोशनल ईटिंग से बचना चाहते है तो भूख लगने पर बस एक गिलास पानी आप को इस समस्या से छुटकारा दिला सकता है.

इमोशनल ईटिंग से बचने के विकल्प ढूंढ़ें

इमोशनल ईटिंग(Emotional eating)  की आदत है तो हाई शुगर या फैट वाले फूड की जगह हैल्दी डाइट लें. खाने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन सब शामिल हों. ऐक्सरसाइज करें. तनाव दूर करने के लिए अपनी मनपसंद किताबें पढ़ें, संगीत सुनें, दोस्तों से फोन पर बातें करें, या कोई गेम खेलें. इस से स खाने पर से ध्यान हटेगा और आप इमोशनल ईटिंग से बचेंगे.

प्यार के बारे में ये भी जानना आपके लिए है जरूरी

प्यार खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. लेकिन अकसर देखा जाता है कि युवाओं पर चढ़े प्यार का खुमार शादी होने के बाद तेजी से उतरने लगता है. हाथों में हाथ ले कर प्यार में जीनेमरने के वादे करने वाले जल्द ही मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. दरअसल, शादी के बाद रिश्ते को कानूनी अधिकार व सामाजिक मान्यता मिलने से नवयुगल की एकदूसरे से चाहत और उम्मीदें भी अधिक बढ़ जाती हैं. अब वे एकदूसरे में अपने मनमुताबिक बदलाव देखना चाहते हैं.

ब्रिटिश रिसर्च एजेंसी जिंजर द्वारा नए शादीशुदा कपल्स पर एक सर्वे किया गया. इस सर्वे में कई रोचक परंतु चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट और साइकोलौजिस्ट डोना डावसन कहती हैं, ‘‘इस सर्वे में कई चौंका देने वाली बातें सामने आई हैं, जिन से पता चलता है कि नए कपल्स को एकदूसरे के प्यार की किस कदर जरूरत महसूस होती है. स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों में अपने पार्टनर से स्नेह की अधिक चाह होती है. शादी के बाद एक पत्नी की चाहत होती है कि पति शादी से पहले की अपनी तमाम बुरी आदतों को छोड़ दे. बातबात में उस से नाराज न हो और उस की बातों को ध्यान से सुने, उस की तारीफ करे.’’

जबकि पति चाहता है कि पत्नी से वह अधिक प्यार करे. वह यह भी चाहता है कि उस की पत्नी दूसरे की पत्नी से ज्यादा ग्लैमरस दिखे. वह अपनी पत्नी को दूसरी औरतों से ज्यादा स्मार्ट रखना चाहता है. वह चाहता है कि उस की पत्नी थकी न दिखे. शादी होते ही एकदूसरे में बहुत कुछ बदलाव देखना चाहते हैं न्यू कपल. इन बदलावों के न होने पर उन्हें मायूसी हाथ लगती है, जो धीरेधीरे खीज में बदल जाती है.

बदलने की शिकायत

जहां एक तरफ नईनई हुई शादी के बाद पतिपत्नी एकदूसरे में बदलाव देखना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर शादी के बाद कई पतिपत्नी यह भी कहते सुने जाते हैं, ‘तुम पहले तो ऐसे न थे या शादी के बाद तुम बहुत बदल गए हो.’

इस की जड़ में मूलतया यही बात होती है कि शादी के बाद हर वक्त साथ रहने से पतिपत्नी को एकदूसरे के बारे में कई नई बातें पता चलती हैं, जिन्हें वे शादी से पहले नहीं जान पाते. मसलन, पार्टनर का देर तक सोना, देर से नहाना, काम टालना, किसी दूसरे रिश्ते को ज्यादा महत्त्व देना, अपने कमरे व सामान को बेतरतीब रखना इत्यादि, कई लोग शादी के पहले अपने पार्टनर को इंप्रैस करने के चक्कर में वे काम भी करने लगते हैं, जो उन की आदत में शामिल नहीं होते. फलतया शादी के बाद वे जब अपने असली रूप में आते हैं तो पार्टनर को लगता है कि वह बदल गया.

पहले तो ऐसे नहीं थे

सुयश की दीवानी विभा को शादी होते ही सुयश की कई नई आदतों का पता चला जो उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगीं. शादी के पहले उस ने सुयश को हमेशा टिपटौप देखा था. उसे लगा था कि खुद को इतने अच्छे तरीके से प्रेजैंट करने वाला सुयश घर में भी ऐसे ही साफसफाई और सलीके से रहता होगा. पर वास्तव में सुयश ऐसा नहीं था. सिर्फ विभा को इंप्रैस करने के लिए वह स्मार्ट बन कर रहता था.

सच तो यह था कि सुयश कईकई दिनों तक नहाता भी नहीं था. बाथरूम यूज करने के बाद फ्लश नहीं चलाता था. यहां तक कि अपना वार्डरोब और कमरा भी बेहद गंदा रखता था. उस की आदतें देख विभा के मुंह से अब अकसर यही निकलता कि कितने बदल गए हो तुम. पहले तो ऐसे न थे और इन्हीं बातों पर अकसर उन की हलकी सी कहासुनी एक बड़ी झड़प में बदल जाती.

बदलाव के मूल में परिस्थितियां

हकीकत में शादी के बाद बदलता कुछ भी नहीं है. न ही पतिपत्नी की सोच, न ही उन का व्यवहार या रवैया. हां, यदि इस बीच उन में कोई बदलाव दिखाई देता है तो उस बदलाव के मूल में होती हैं परिस्थितियां. ये बदलाव अनायास हमारी जिंदगी के साथ होते हैं, जो बदलती परिस्थितियों के साथ स्वाभाविक तौर पर हमारे स्वभाव में शामिल होते चले जाते हैं.

पहले जिन्हें सिर्फ अपनी व्यक्तिगत लाइफ से सरोकार था, स्वछंद जिंदगी जीना जिन की आदत में शुमार था, पर चूंकि शादी के बाद दोनों मिल कर एक परिवार बनाते हैं, इस नाते वे कई नई पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी जुड़ जाते हैं. कभीकभी समय व उचित प्रबंधन की कमी भी उन्हें अपने पार्टनर की कसौटी पर खरा नहीं उतरने देती, जिस से पार्टनर अपनेआप को उपेक्षित मानने लगता है और शिकायत करने लगता है.

इस वक्त थोड़ी सी समझदारी

जरा सा आपसी तालमेल रिश्तों की इस नई पौध को नवजीवन दे सकता है. आइए, जानें कि कौनकौन सी बातें नवदंपती को जीवनपर्यंत एकदूसरे से जोड़े रख सकती हैं:

कोई भी व्यक्ति सर्वगुणसंपन्न नहीं होता, इसलिए पार्टनर को उस की कमियों के साथ स्वीकार करें. धीरेधीरे उन कमियों को दूर करने की कोशिश की जा सकती है.

अगर अपने पार्टनर में कोई सकारात्मक बदलाव देखना चाहते हैं तो उस के लिए प्यारमनुहार का सहारा लीजिए, क्योंकि क्रोध और जबरदस्ती रिश्तों की जड़ को सुखाने का काम करते हैं.

लाइफ पार्टनर पर भरोसा जताएं, उसे बताएं कि आप उस की फिक्र करते हैं. इस के लिए छोटेछोटे मौकों पर छोटेछोटे गिफ्ट दे कर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जा सकता है, क्योंकि पार्टनर के लिए आप का प्रयास और भावनाएं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं बजाय वस्तु की कीमत के.

याद रखें किसी भी बात को छिपाना या झूठ बोलना किसी भी रिश्ते पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देता है. अत: अपने से हुई किसी भी गलती को छिपाने के बजाय ईमानदारी से अपने हमराही को बता दें.

रूठनामनाना हर रिश्ते के लिए संजीवनी का काम करता है. इस रिश्ते में भी इस संजीवनी बूटी को उपयोग में लाएं. हमसफर से रूठें परंतु जल्द ही मान भी जाएं और उसे प्यार से मनाएं भी.

शादी होने के बाद यह न सोचें कि आप के प्यार को मंजिल मिल गई. अब आप को उस के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं,

बल्कि शादी तो सिर्फ एक पड़ाव है पूरी जीवनयात्रा जीवनसाथी के साथ तय करनी बाकी है. अत: अपने साथी को खुश करने हेतु प्रयास जारी रखें.

एकदूसरे के रिश्तेदारों को ले कर टकराहट का माहौल न बनने दें. अपनेअपने घर वालों को सही साबित करने की फिराक में न लगें.

खुद को दूसरे से बेहतर साबित करने करने वाली किसी होड़ का हिस्सा न बनें, बल्कि जीवनसाथी के मन व भावनाओं का सम्मान करें. सौरी, प्लीज, थैंक्यू जैसे छोटेछोटे शब्द जीवनसाथी के जीवन में आप की गरिमा निश्चित रूप से बढ़ा देते हैं.

छोटीछोटी बातों को नजरअंदाज करना सीखें. पार्टनर पर बेवजह शक कर के उसे शर्मिंदा न करें. याद रखें 2 दिलों के इस पवित्र बंधन में अहं व वहम का कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

शादी के बाद हुए बदलावों को हौआ समझ कर बवाल खड़ा न करें, बल्कि हर बदलाव या परिवर्तन को समझें और उसे स्वीकार करें. वक्त व हालात के अनुसार स्वयं को ढालने की कोशिश आप दोनों की जिंदगी को बेहतर मोड़ दे सकती है. एकदूसरे से हुई छोटीमोटी गलतियों को माफ करते चलें, मुसकरा कर.

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