एक्टिंग की दुनिया में कैसे जाऊं, क्या ये सही होगा?

सवाल-

क्या आप मुझे बता सकते हैं कि सीरियल में काम करने के लिए क्या करना होता है? मेरा टीवी सीरियल में काम करने का बहुत मन है. यदि मैं इस के लिए मुंबई जाती हूं तो वहां रहने की क्या व्यवस्था होगी? वहां सब कुछ अजनबी सा तो नहीं लगेगा?

जवाब-

यह क्षेत्र जितना चकाचौंध भरा और आकर्षक दिखता है इस में भाग लेना उतना ही जद्दोजेहद भरा है. इस के लिए बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है. आजकल महानगरों में ऐक्टिंग सीखने के लिए बाकायदा ऐक्टिंग स्कूल खुल गए हैं, जहां युवाओं को सीरियल और फिल्म संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण लेने के बाद भी कोई गारंटी नहीं कि अभिनय के क्षेत्र में आप को सफलता मिलेगी ही. इस के अलावा नए शहर में रहने, खानेपीने आदि की व्यवस्था करना भी आसान नहीं है. इन सब कठिनाइयों के बावजूद अगर आप इस क्षेत्र में जाना चाहती हैं, तो इंटरनैट से उस महानगर की जहां आप को जाना है, विस्तृत जानकारी ले कर अपने घर के किसी बड़े सदस्य को साथ ले कर ही वहां जाएं.

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थियेटर से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता उपेन चौहान उत्तर प्रदेश के नॉएडा के है. उन्होंने नाटकों में काम करने के साथ-साथ कई विज्ञापनों, टीवी धारावाहिकों और वेब सीरीज में काम किया है. उपेन स्पष्टभाषी और खुश मिजाज इंसान है, इसलिए उन्हें कभी तनाव नहीं होता. वे वर्तमान में जीते है और पीछे की बात कभी नहीं सोचते. उनकी सफलता के पीछे उनके माता-पिता का सहयोग है, जिन्होंने हमेशा उनके काम की सराहना की. उनकी वेब सीरीज ‘भौकाल’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनके काम की बहुत प्रसंशा मिल रही है. इस कामयाबी से वे खुश है और  अपनी जर्नी के बारें में बात की, आइये जाने उनकी कहानी.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- एक्टिंग दुनिया का सबसे अधिक असुरक्षित और मेहनत का काम है – उपेन चौहान

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दूध के दांत- भाग 1: क्या सही साबित हुई रोहित की तरकीब

पापा और रीता आंटी अकसर अंगरेजी में बातें करते रहते हैं. रोहित जब भी उन की बातें ध्यान से सुनता है, तो उसे बहुत कुछ समझ में आ जाता है…

‘‘मां तुम कहां चली गई थीं मुझे बिना बताए,’’ रोहित अपनी मां से बोला.

आज बहुत दिनों बाद रोहित अपनी मां के पास है. वह सोच रहा है कि उसे कितनी सारी बातें कहनी हैं, पूछनी हैं और बतानी हैं…

अमित कुछ बोले नहीं. बस चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गए और सोचने लगे कि इतने दिनों तक वे पत्नी को कितना अपमानित करते रहे हैं…

रोजकी तरह स्कूल से घर लौट कर रोहित औटो पर बैठेबैठे ही जोर से चिल्लाया, ‘‘मां, मां, शेखूभाई को पैसे दो,’’ फिर पलट कर औटो वाले से बोला, ‘‘तुम रुकना भैया, मैं अभी पैसे ले कर आता हूं.’’

‘‘कल ले लूंगा भैयाजी, आज देर हो रही है, अभी चलता हूं,’’ कह कर औटो वाला चल दिया.

‘मम्मी सुन क्यों नहीं रहीं?’ रोहित ने अपनेआप से ही प्रश्न किया. फिर एक जूता इधर उछाला, दूसरा उधर और हाथ का बैग मेज पर रख कर वह मां के कमरे की ओर भाग लिया.

घर में मां को हर जगह ढूंढ़ लेने के बाद रोहित एक जगह खड़ा हो कर सोचने लगा कि आखिर मम्मी कहां गईं? तभी पास खड़े रामू ने धीरे से बताया, ‘‘रोहित बाबा, आप की मम्मी तो अचानक बनारस चली गईं.’’

‘‘तो तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? मैं कब से उन्हें ढूंढ़ रहा हूं,’’ रोहित गुस्से से बोला.

‘‘बाबा, आप के पापा ने कहा है कि जरूरत पड़े तो रोहित से कहना वह फोन पर मुझ से बात कर लेगा.’’

पापा का नाम आते ही वह चुप हो गया. उस का सारा गुस्सा शांत हो गया और मन ही मन वह सहम गया. घर में उस का मन नहीं लगा तो वह उदास हो कर बाहर बरामदे में आ कर बैठ गया और सोचने लगा, उस की किसी बात से मां कभी नाराज नहीं होतीं, तो आज यों कैसे जा सकती हैं? किस से क्या कहे, क्या पूछे. पापा से तो वैसे ही उसे डर लगता है.

सामने के घर से डाक्टर आंटी ने झांका और उसे देख कर बाहर निकल आईं. उस के सिर पर हाथ रख कर पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘रोहित, मम्मी तुम को बिना बताए चली गईं. बड़ी गंदी हैं न. यहां मेरे पास आओ. हम दोनों खेलेंगे. फिर मैं तुम्हारा होमवर्क पूरा करवा दूंगी, उस के बाद तुम सो जाना. चले आओ बेटे, चिंता न करो.’’

रोहित को तो मम्मी पर गुस्सा आ रहा था, अत: नाराज हो कर बोला, ‘‘नहीं आज मैं अपना सब काम अपनेआप कर लूंगा. रामू, अंदर चलो. खाना लगाओ. मुझे खाना खा कर अपना होमवर्क पूरा करना है.’’ अंदर जाने पर रोहित को मां की याद फिर आ गई तो वह अपने आप को रोक नहीं पाया. उसे जोरों से रोना आ गया.

मां उस को कितना प्यार करती हैं. उस की सारी बातें बिना कहे ही समझ जाती हैं. वह भी अपना सारा होमवर्क बिना कहे कर लेता है. बस, वे पास में बैठी भर रहें. उस को तो पूछने तक की भी जरूरत नहीं पड़ती है. स्कूल के सभी अध्यापक उस की कितनी तारीफ करते हैं पर पापा जब भी पढ़ाने बैठेंगे, तो बिना मतलब डांटेंगे.

पापा ने सुबह गोद में ले कर रोहित को नींद से जगाया. उस की लाल आंखों को देख कर वे समझ गए कि जरूर मां की याद में देर तक सोया नहीं होगा. स्कूल जाने के लिए तैयारी करवाते समय उस का बैग देखा. उन का मूड अच्छा देख कर रोहित ने धीरे से पूछा, ‘‘पापा, मुझे बिना बताए मां क्यों चली गईं? ऐसा तो मां ने पहले कभी नहीं किया. उन्होंने मेरी जरा भी चिंता नहीं की.’’

‘‘तुम्हारे नानाजी को अचानक दिल का दौरा पड़ा था,’’ अमित बोले, ‘‘तुम्हारे मामाजी का फोन आ गया तो तुम्हारी मम्मी को अचानक बनारस जाना पड़ा.’’

‘‘तो मम्मी मुझे स्कूल में बता कर चली जातीं.’’

‘‘बेटा, तुम्हें बताने मम्मी स्कूल जातीं तो उन की गाड़ी छूट जाती, इसलिए वे बिना तुम्हें बताए चली गईं. और फिर मैं हूं न, तुम को चिंता करने की जरूरत नहीं है. चलो, तैयार हो कर स्कूल जाओ. शाम को दफ्तर से आ कर तुम्हारा सारा होमवर्क पूरा करा दूंगा. अब यह बातबात पर रोना छोड़ दो. देखो, आप कितने बड़े हो गए हो.’’

बच्चे को समझातेसमझाते अमित का ध्यान पत्नी शोभा की तरफ गया तो उन का मन खराब हो गया कि उन्हें तो ऐसी बीवी मिली है, जो अपने घरपरिवार और बच्चे की दुनिया से बाहर ही नहीं निकलती. उन्हें तो अपने मातापिता पर भी गुस्सा आता कि किस गंवार को उन्होंने मेरे गले मढ़ दिया है. उन का बस चलता तो वे अपनी पसंद की अच्छी, हाई सोसाइटी में उठनेबैठने वाली, अंगरेजी में बात करने वाली बीवी लाते. अब इस गंवार को कहां ले कर जाएं, न तो उसे बोलने का सलीका आता है न ही बच्चे को कुछ सिखा पा रही है, सिवा लाड़प्यार से बिगाड़ने के. अच्छा है, कुछ दिनों तक रोहित से दूर रहेगी तो डा. रीता उन के बेटे को कुछ ढंग की बात सिखा देंगी.

डा. रीता का ध्यान आते ही अमित को कितना सुकून मिला था. वे कितनी आसानी से उन के दिल की सारी बातें समझ लेती हैं. उन के साथ बैठने के बाद आपसी गपशप व घरबाहर की समस्याओं पर चर्चा करने में इतनी जल्दी समय बीत जाता है कि पता ही नहीं चलता. अपनी पत्नी को कैसे समझाएं और फिर उस में डा. रीता जैसी बुद्धि कहां है, जो उसे कोई तरीका भी आए.

जाने क्यों मां की बात चलते ही पापा का गुस्सा हमेशा बढ़ जाता है. मन ही मन यह सोचते हुए रोहित तैयार हो कर बोला, ‘‘पापा, मैं अपनेआप अपनी पढ़ाई कर लूंगा.’’

‘‘वैरीगुड. देखो बेटा, मेरे औफिस से वापस आने तक तुम बिलकुल नहीं रोना. रामू का कहना मानना और स्कूल से लौट कर उसे जरा भी परेशान नहीं करना. मां को जब आना होगा आ ही जाएंगी. ओ.के.?’’

रोहित ने हां में सिर हिला दिया पर मन ही मन सोचने लगा कि दोनों मेरी देखभाल की बात करते हैं पर इन को यह भी पता नहीं कि मुझे गरम नहीं, बल्कि ठंडा दूध पसंद है और मैं ब्रैड बिना सिंकी खाता हूं.

युवा प्रेम आसरा- भाग 3: क्या जया को हुआ गलती का एहसास

बेटी के इस तरह गायब हो जाने से किशन का दुख और चिंता से बुरा हाल था. उधर आशा की स्थिति तो और भी दयनीय थी. उन्हें रहरह कर इस बात का पछतावा हो रहा था कि उन्होंने जया के घर से बाहर जाने वाले मामले की खोजबीन उतनी गहराई से नहीं की, जितनी उन्हें करनी चाहिए थी. इस की वजह यही थी कि उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था.

किशन और आशा बेटी को ले कर एक तो वैसे ही परेशान थे, दूसरे जया के गायब होने की बात फैलने के साथ ही रिश्तेदारों और परिचितों द्वारा प्रश्न दर प्रश्न की जाने वाली पूछताछ उन्हें मानसिक तौर पर व्यथित कर रही थी. मिलनेजुलने वाले की बातों और परामर्शों से परेशान हो कर किशन और आशा ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था.

उधर जया मातापिता पर गुजर रही कयामत से बेखबर नैनीताल की वादियों का आनंद उठा रही थी. करन के प्यार का नशा उस पर इस तरह से चढ़ा हुआ था कि उसे अपने भविष्य के बारे में सोचने का भी  होश नहीं था. उसे यह भी चिंता नहीं थी कि जब उस के घर से लाए पैसे खत्म हो जाएंगे, तब क्या होगा? और यह सब उस की उस नासमझ उम्र का तकाजा था जिस में भावनाएं, कल्पनाएं तथा आकर्षण तो होता है, लेकिन गंभीरता या परिपक्वता नहीं होती.

किशन की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने काररवाई शुरू की तो शीघ्र ही जया की गुमशुदगी का रहस्य खुल कर सामने आ गया. पुलिस द्वारा जया की फोटो दिखा कर की गई पूछताछ के दौरान पता चला कि वह लड़की नैनीताल जाने वाली बस में चढ़ते देखी गई थी. बताने वाले दुकानदार ने पुलिस को यह जानकारी भी दी कि उस के साथ एक लड़का भी था, इतना पता चलते ही पुलिस उसी दिन नैनीताल के लिए रवाना हो गई. नैनीताल पहुंचने के बाद पुलिस ने जया की खोज गेस्टहाउसों से ही शुरू की, क्योंकि दिनरात के अनुभवों के आधार पर पुलिस वालों का नजरिया था कि घर से भागे किशोरवय प्रेमीप्रेमिका पैसा कम होने की वजह से होटल के बजाय छोटेमोटे गेस्टहाउसों को ही अपना ठिकाना बनाते हैं. पुलिस का अनुमान ठीक निकला. एक गेस्टहाउस के केयरटेकर ने पुलिस वालों को बताया कि कम उम्र का एक प्रेमीयुगल 4 दिन पहले उस के यहां आ कर ठहरा था. पुलिस ने एंट्री रजिस्टर में उन का नाम और पता देखा, तो दोनों ही गलत दर्ज थे.

इस बीच पुलिस द्वारा गेस्टहाउस में की जाने वाली जांचपड़ताल का पता सब को चल चुका था. पुलिस का नाम सुनते ही करन के होश उड़ गए. उस ने बचे हुए पैसे अपनी जेब में डाले और जया से बोला, ‘‘तुम डरना नहीं जया. मैं 10-15 मिनट में लौट आऊंगा.’’

जया ने करन को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन वह एक झटके से कमरे के बाहर हो गया. पुलिस जब तक जया के कमरे पर पहुंची, तब तक करन उस की पहुंच से बाहर निकल चुका था. मजबूरी में पुलिस जया को ले कर लौट आई.

जया के बरामद होने की सूचना पुलिस ने उस के घर भेज दी थी. किशन को जब इस बात का पता चला कि जया किसी लड़के के साथ भागी थी तो अपनी बेटी की इस करतूत से उन का सिर हमेशा के लिए झुक गया था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लोगों का सामना कैसे कर पाएंगे. जया ने उन्हें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था. किशन में अब इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वह पुलिस थाने जा कर जया को ले आते. वह यह भी जानते थे कि जया के मिलने की खबर पाते ही रिश्तेदारों और परिचितों का जो तूफान उठेगा, वह उस का सामना नहीं कर पाएंगे.

जया की बरामदगी के बाद पुलिस द्वारा किशन को लगातार संदेश दिया जा रहा था कि वह अपनी बेटी को ले जाएं. जब पुलिस का दबाव बढ़ा तो किशन आपा खो बैठे और थाने जा कर पुलिस वालों से दोटूक कह दिया कि वह बेटी से अपने सारे संबंध खत्म कर चुके हैं. अब उस से उन का कोई रिश्ता नहीं है. वह अपनी रिपोर्ट भी वापस लेने को तैयार हैं.

एक झटके में बेटी से सारे नाते तोड़ कर किशन वहां से चले गए. तब मजबूरी में पुलिस ने जया को हवालात से निकाल कर नारीनिकेतन भेज दिया. जब जया ने वहां लाने की वजह जाननी चाही, तो एक पुलिसकर्मी ने व्यंग्य करते हुए उसे बताया, ‘घर से भागी थी, अपने यार के साथ, अब नतीजा भुगत. तेरे घर वाले तुझे ले जाने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने तुझ से रिश्ता खत्म कर लिया है. अब नारीनिकेतन तेरा ‘आसरा’ है.’

अतीत की लडि़यां बिखरीं तो जया यथार्थ में लौटी. अब उस की जिंदगी का सच यही था जो उस के सामने था. उस ने रोरो कर सूज चुकी आंखों से खिड़की के पार देखना चाहा तो उसे दूरदूर तक फैले अंधेरे के अलावा कुछ नजर नहीं आया. धूप का वह टुकड़ा भी न जाने कब, कहां विलीन हो गया था. जया के मन में, जीवन में और बाहर चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. इस अंधेरे में अकेले भटकतेभटकते उस का मन घबराया तो उसे मां का आंचल याद आया. वह बचपन में अकसर अंधेरे से डर कर मां के आंचल में जा छिपती थी, लेकिन अब वहां न तो मां थी और न मां का आंचल ही था.

जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर जया को अपनों की अहमियत का पता चला. उसे इस बात का एहसास भी अब हुआ कि मांबाप बच्चों की भलाई और उन के सुरक्षित भविष्य के लिए ही उन पर पाबंदियां लगाते हैं. मातापिता के सख्ती बरतने के पीछे भी उन का प्यार और बच्चों के प्रति लगाव ही होता है. उसे इस बात का बेहद पछतावा था कि उस ने समय रहते मम्मी और पापा की भावनाओं की कद्र की होती तो उस का उज्ज्वल भविष्य नारीनिकेतन के उस गंदे से कमरे में दम न तोड़ रहा होता और जिस करन के प्यार के खुमार में उस ने अपनों को ठुकराया, वही करन उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस ने एक बार भी पलट कर यह देखने की कोशिश नहीं की कि जया पर क्या बीत रही होगी. करन की याद आते ही जया का मन वितृष्णा से भर उठा. उसे अपने आप पर ग्लानि भी हुई कि एक ऐसे कृतघ्न के चक्कर में पड़ कर उस ने अपनी जिंदगी तो बर्बाद की ही, अपने परिवार वालों का सम्मान भी धूल में मिला दिया.

अपनी भूल पर पछताती जया न जाने कब तक रोती रही. जब बैठेबैठे वह थक गई तो सीलन भरे नंगे फर्श पर ही लेट गई. आंखों से आंसू बहतेबहते कब नींद ने उसे अपने आगोश में समेट लिया, जया को पता ही न चला. अपनी बदरंग जिंदगी बिताने के लिए उसे आखिर एक ‘आसरा’ मिल ही गया था. नारीनिकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना, जहां जिंदगी से थकीहारी जया नंगे फर्श पर बेसुध सो रही थी.

युवा प्रेम आसरा- भाग 2: क्या जया को हुआ गलती का एहसास

करन के मन की बात उस के होंठों पर आई तो जया के दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. उस ने नजर भर करन को देखा और फिर पलकें झुका लीं. उस की उस एक नजर में प्यार का इजहार भी था और स्वीकारोक्ति भी.

एक बार संकोच की सीमाएं टूटीं, तो जया और करन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. ज्योंज्यों दूरियां कम होती गईं, दोनों एकदूसरे के रंग में रंगते गए. फिर उन्होंने सब की नजरों से छिप कर मिलना शुरू कर दिया. जब भी मौका मिलता, दोनों प्रेमी किसी एकांत स्थल पर मिलते और अपने सपनों की दुनिया रचतेगढ़ते.

उस वक्त जया और करन को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि पागल मन की उड़ान का कोई वजूद नहीं होता. किशोरवय का प्यार एक पागलपन के सिवा और क्या है. बिलकुल उस बरसाती नदी की तरह जो वर्षाकाल में अपने पूरे आवेग पर होती है, लेकिन उस के प्रवाह में गंभीरता और गहराई नहीं रहती. इसीलिए वर्षा समाप्त होते ही उस का अस्तित्व भी मिट जाता है. अब जया की हर सोच करन से शुरू हो कर उसी पर खत्म होने लगी थी. अब उसे न कैरियर की चिंता रह गई थी और न मातापिता के सपनों को पूरा करने की उत्कंठा.

बेटी में आए इस परिवर्तन को आशा की अनुभवी आंखों ने महसूस किया तो एक मां का दायित्व निभाते हुए उन्होंने जया से पूछा, ‘क्या बात है जया, इधर कुछ दिन से मैं महसूस कर रही हूं कि तू कुछ बदलीबदली सी लग रही है? आजकल तेरी सहेलियां भी कुछ ज्यादा ही हो गई हैं. तू उन के घर जाती रहती है, लेकिन उन्हें कभी नहीं बुलाती?’

मां द्वारा अचानक की गई पूछताछ से जया एकदम घबरा गई. जल्दी में उसे कुछ सुझाई नहीं दिया, तो उस ने बात खत्म करने के लिए कह दिया, ‘ठीक है मम्मी, आप मिलना चाहती हैं तो मैं उन्हें बुला लूंगी.’

कई दिन इंतजार करने के बाद भी जब जया की कोई सहेली नहीं आई और उस ने भी जाना बंद नहीं किया तो मजबूरी में आशा ने जया को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अब तू कहीं नहीं जाएगी. जिस से मिलना हो घर बुला कर मिल.’

घर से निकलने पर पाबंदी लगी तो जया करन से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी. आशा ने भी उस की व्याकुलता को महसूस किया, लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. धीरेधीरे 4-5 दिन सरक गए तो एक दिन जया ने आशा को अच्छे मूड में देख कर उन से थोड़ी देर के लिए बाहर जाने की इजाजत चाही, जया की बात सुनते ही आशा का पारा चढ़ गया. उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में जया को जोर से डांटते हुए कहा, ‘इतनी बार मना किया, समझ में नहीं आया?’

‘‘इतनी बार मना कर चुका हूं, सुनाई नहीं देता क्या?’’ नारी निकेतन के केयरटेकर का कर्कश स्वर गूंजा तो जया की विचारधारा में व्यवधान पड़ा. उस ने चौंक कर इधरउधर देखा, लेकिन वहां पसरे सन्नाटे के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. जया को मां की याद आई तो वह फूटफूट कर रो पड़ी.

जया अपनी नादानी पर पश्चाताप करती रही और बिलखबिलख कर रोती रही. इन आंसुओं का सौदा उस ने स्वयं ही तो किया था, तो यही उस के हिस्से में आने थे. इस मारक यंत्रणा के बीच वह अपने अतीत की यादों से ही चंद कतरे सुख पाना चाहती थी, तो वहां भी उस के जख्मों पर नमक छिड़कता करन आ खड़ा होता था.

उस दिन मां के डांटने के बाद जया समझ गई कि अब उस का घर से निकल पाना किसी कीमत पर संभव नहीं है. बस, यही एक गनीमत थी कि उसे स्कूल जाने से नहीं रोका गया था और स्कूल के रास्ते में उसे करन से मुलाकात के दोचार मिनट मिल जाते थे. आशा ने बेटी के गुमराह होते पैरों को रोकने का भरसक प्रयास किया, लेकिन जया ने उन की एक नहीं मानी.

एक दिन आशा को अचानक किसी रिश्तेदारी में जाना पड़ा. जाना भी बहुत जरूरी था, क्योंकि वहां किसी की मृत्यु हो गई थी. जल्दबाजी में आशा छोटे बेटे सोमू को साथ ले कर चली गई. जया पर प्यार का नशा ऐसा चढ़ा था कि ऐसे अवसर का लाभ उठाने से भी वह नहीं चूकी. उस ने छोटी बहन अनुपमा को चाकलेट का लालच दिया और करन से मिलने चली गई.

जया ने फोन कर के करन को बुलाया और उस के सामने अपनी मजबूरी जाहिर की. जब करन कोई रास्ता नहीं निकाल पाया तो जया ने बेबाक हो कर कहा, ‘अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, करन. हमारे सामने मिलने का कोई रास्ता नहीं बचा है.’

जया की बात सुनने के बाद करन ने उस से पूछा, ‘मेरे साथ चल सकती हो जया?’

‘कहां?’ जया ने रोंआसी आवाज में कहा, तो करन बेताबी से बोला, ‘कहीं भी. इतनी बड़ी दुनिया है, कहीं तो पनाह मिलेगी.’

…और उसी पल जया ने एक ऐसा निर्णय कर डाला जिस ने उस के जीवन की दिशा ही पलट कर रख दी.

इस के ठीक 5-6 दिन बाद जया ने सब अपनों को अलविदा कह कर एक अपरिचित राह पर कदम रख दिया. उस वक्त उस ने कुछ नहीं सोचा. अपने इस विद्रोही कदम पर वह खूब खुश थी क्योंकि करन उस के साथ था. करन जया को ले कर नैनीताल चला गया और वहां गेस्टहाउस में एक कमरा ले कर ठहर गया.

करन का दिनरात का संगसाथ पा कर जया इतनी खुश थी कि उस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि उस के इस तरह बिना बताए घर से चले जाने पर उस के मातापिता पर क्या गुजर रही होगी. काश, उसे इस बात का तनिक भी आभास हो पाता.

जया दोपहर को उस वक्त घर से निकली थी जब आशा रसोई में काम कर रही थीं. काम कर के बाहर आने के बाद जब उन्हें जया दिखाई नहीं दी तो उन्होंने अनुपमा से उस के बारे में पूछा. उस ने बताया कि दीदी बाहर गई हैं. यह जान कर आशा को जया पर बहुत गुस्सा आया. वह बेताबी से उस के लौटने की प्रतीक्षा करती रहीं. जब शाम ढलने तक जया घर नहीं लौटी तो उन का गुस्सा चिंता और परेशानी में बदल गया.

8 बजतेबजते किशन भी घर आ गए थे, लेकिन जया का कुछ पता नहीं था. बात हद से गुजरती देख आशा ने किशन को जया के बारे में बताया तो वह भी घबरा गए. उन दोनों ने जया को लगभग 3-4 घंटे पागलों की तरह ढूंढ़ा और फिर थकहार कर बैठ गए. वह पूरी रात उन्होंने जागते और रोते ही गुजारी. सुबह होने तक भी जया घर नहीं लौटी तो मजबूरी में किशन ने थाने जा कर उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

युवा प्रेम आसरा- भाग 1: क्या जया को हुआ गलती का एहसास

धूप का एक उदास सा टुकड़ा खिड़की पर आ कर ठिठक गया था, मानो अपने दम तोड़ते अस्तित्व को बचाने के लिए आसरा तलाश रहा हो. खिड़की के पीछे घुटनों पर सिर टिकाए बैठी जया की निगाह धूप के उस टुकड़े पर पड़ी, तो उस के होंठों पर एक सर्द आह उभरी. बस, यही एक टुकड़ा भर धूप और सीलन भरे अंधेरे कमरे का एक कोना ही अब उस की नियति बन कर रह गया है.

अपनी इस दशा को जया ने खुद चुना था. इस के लिए वह किसे दोष दे? कसूर उस का अपना ही था, जो उस ने बिना सोचेसमझे एक झटके में जिंदगी का फैसला कर डाला. उस वक्त उस के दिलोदिमाग पर प्यार का नशा इस कदर हावी था कि वह भूल गई कि जिंदगी पानी की लहरों पर लिखी इबारत नहीं, जो हवा के एक झोंके से मिट भी सकती है और फिर मनचाही आकृति में ढाली भी जा सकती है.

जिंदगी तो पत्थर पर उकेरे उन अक्षरों की तरह होती है कि एक बार नक्श हो गए तो हो गए. उसे न तो बदला जा सकता है और न मिटाया जा सकता है. अपनी भूल का शिद्दत से एहसास हुआ तो जया की आंखें डबडबा आईं. घुटनों पर सिर टिकाए वह न जाने कब तक रोती रही और उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं में उस का अतीत भी टुकड़ेटुकड़े हो कर टूटताबिखरता रहा.

जया अपने छोटे से परिवार में  तब कितनी खुश थी. छोटी बहन अनुपमा और नटखट सोमू दीदीदीदी कहते उस के चारों ओर घूमा करते थे. बड़ी होने की वजह से जया उन दोनों का आदर्श भी थी, तो उन की छोटी से छोटी समस्या का समाधान भी. मां आशा और पिता किशन के लाड़दुलार और भाईबहन के संगसाथ में जया के दिन उन्मुक्त आकाश में उड़ते पंछी से चहकते गुजर रहे थे.

इंटर तक जया के आतेआते उस के भविष्य को ले कर मातापिता के मन में न जाने कितने अरमान जाग उठे थे. अपनी मेधावी बेटी को वह खूब पढ़ाना चाहते थे. आशा का सपना था कि चाहे जैसे भी हो वह जया को डाक्टर बनाएगी जबकि किशन की तमन्ना उसे अफसर बनाने की थी.

जया उन दोनों की चाहतों से वाकिफ थी और उन के प्रयासों से भी. वह अच्छी तरह जानती थी कि पिता की सीमित आय के बावजूद वह  दोनों उसे हर सुविधा उपलब्ध कराने से पीछे नहीं हटेंगे. जया चाहती थी कि अच्छी पढ़ाई कर वह अपने मांबाप के सपनों में हकीकत का रंग भरेगी. इस के लिए वह भरपूर प्रयास भी कर रही थी.

उस के सारे प्रयास और आशा तथा किशन के सारे अरमान तब धरे के धरे रह गए जब जया की आंखों  में करन के प्यार का नूर आ समाया. करन एक बहार के झोंके की तरह उस की जिंदगी में आया और देखतेदेखते उस के अस्तित्व पर छा गया.

वह दिन जया कैसे भूल सकती है जिस दिन उस की करन से पहली मुलाकात हुई थी, क्योंकि उसी दिन तो उस की जिंदगी एक ऐसी राह पर मुड़ चली थी जिस की मंजिल नारी निकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना थी, जहां बैठी जया अपनी भूलों पर जारजार आंसू बहा रही थी. लेकिन उन आंसुओं को समेटने के लिए न तो वहां मां का ममतामयी आंचल था और न सिर पर प्यार भरा स्पर्श दे कर सांत्वना देने वाले पिता के हाथ. वहां थी तो केवल केयरटेकर की कर्कश आवाज या फिर पछतावे की आंच में सुलगती उस की अपनी तन्हाइयां, जो उस के वजूद को जला कर राख कर देने पर आमादा थीं. इन्हीं की तपन से घबरा कर जया ने अपनी आंखें बंद कर लीं. आंखों पर पलकों का आवरण पड़ते ही अतीत की लडि़यां फिर टूट-टूट कर बिखरने लगीं.

जया के घर से उस का स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. मुश्किल से 10-12 मिनट का रास्ता रहा होगा. कभी कोई लड़की मिल जाती तो स्कूल तक का साथ हो जाता, वरना जया अकेले ही चली जाया करती थी. उस ने स्कूल जाते समय करन को कई बार अपना पीछा करते देखा था. शुरूशुरू में उसे डर भी लगा और उस ने अपने पापा को इस बारे में बताना भी चाहा, लेकिन जब करन ने उस से कभी कुछ नहीं कहा तो उस का डर दूर हो गया.

करन एक निश्चित मोड़ तक उस के पीछेपीछे आता था और फिर अपना रास्ता बदल लेता था. जब कई बार लगातार ऐसा हुआ तो जया ने इसे अपने मन का वहम समझ कर दिमाग से निकाल दिया और इस के ठीक दूसरे ही दिन करन ने जया के साथसाथ चलते हुए उस से कहा, ‘प्लीज, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’

जया ने चौंक कर उस की ओर देखा और रूखे स्वर में बोली, ‘कहिए.’

‘आप नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’ करन ने पूछा, तो जया ने उपेक्षा से कहा, ‘मेरे पास इन फालतू बातों के लिए समय नहीं है. जो कहना है, सीधे कहो.’

‘मैं करन हूं. आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.’ करन ने कुछ झिझकते और डरते हुए कहा.

अपनी बात कहने के बाद करन जया की प्रतिक्रिया जानने के लिए पल भर भी नहीं रुका और वापस मुड़ कर तेजी से विपरीत दिशा की ओर चला गया. करन के कहे शब्द देर तक जया के कानों में गूंजते और मधुर रस घोलते रहे. उस की निगाह अब भी उधर ही जमी थी, जिधर करन गया था. अचानक सामने से आती बाइक का हार्न सुन कर उसे स्थिति का एहसास हुआ तो वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई.

अगले दिन स्कूल जाते समय जया की नजरें करन को ढूंढ़ती रहीं, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. 3 दिन लगातार जब वह जया को दिखाई नहीं दिया तो उस का मन उदास हो गया. उसे लगा कि करन ने शायद ऐसे ही कह दिया होगा और वह उसे सच मान बैठी, लेकिन चौथे दिन जब करन नियत स्थान पर खड़ा मिला तो उसे देखते ही जया के मन की कली खिल उठी. उस दिन जया के पीछेपीछे चलते हुए करन ने आहिस्ता से पूछा, ‘आप मुझ से नाराज तो नहीं हैं?’

‘नहीं,’ जया ने धड़कते दिल से जवाब दिया, तब करन ने उत्साहित होते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’

‘जया,’ उस का छोटा सा उत्तर था.

‘आप बहुत अच्छी हैं, जयाजी.’

अपनी बात कहने के बाद करन थोड़ी दूर तक जया के साथ चला, फिर उसे ‘बाय’ कर के अपने रास्ते चला गया. उस दिन के बाद वह दोनों एक निश्चित जगह पर मिलते, वहां से करन थोड़ी दूर जया के साथ चलता, दो बातें करता और फिर दूसरे रास्ते पर मुड़ जाता.

इन पल दो पल की मुलाकातों और छोटीछोटी बातों का जया पर ऐसा असर हुआ कि वह हर समय करन के ही खयालों में डूबी रहने लगी. नादान उम्र की स्वप्निल भावनाओं को करन का आधार मिला तो चाहत के फूल खुद ब खुद खिल उठे. यही हाल करन का भी था. एक दिन हिम्मत कर के उस ने अपने मन की बात जया से कह ही दी, ‘आई लव यू जया,’ मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बगैर जिंदगी अधूरीअधूरी सी लगती है.

बुद्धू- भाग 3: अनिल को क्या पता चला था

‘‘शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. अचानक निवेदिता ने ही गड़बड़ी कर दी. मालूम पड़ा कि वह शादी न करने की जिद कर रही है.

‘‘भाभीजी ने मुझ से कहा था कि अब निवेदिता को भी तुम्हीं जा कर समझओ.

‘‘यह सुन कर मैं सुन्न हो गया और फिर बोला कि एकाएक निवेदिता को यह क्या हो गया है. मैं उसे क्या समझऊं.

‘‘यह सुन कर भाभी बोलीं कि अनिल तुम्हारे समझने से ही कुछ हो सकता है. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि वह असल में तुम से प्यार करती है.

‘‘मैं भाभीजी का मुंह देखता रह गया था. मेरा चेहरा लाल हो उठा था. मैं चिंता में डूब गया. ब्याह की बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि अब पीछे हटने में मेरी बदनामी होती. मैं किसी को मुंह दिखाने लायक भी न रहता.

‘‘भाभीजी के कहने से मैं उस के पास गया. वह दूसरी मंजिल के एक कमरे में खिड़की के पास खड़ी रोती मिली. मैं ने उसे पुकारा. इतने दिनों में मेरी उस से यह पहली बार आमनेसामने बात हुई.

‘‘मैं ने कहा कि निवेदिता, बात इतनी आगे बढ़ चुकी है. क्या अब तुम सब को नीचा दिखाओगी.

‘‘उस ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा. फिर तुरंत ही बोली कि और मेरा प्यार, मेरा दिल?

‘‘मैं ने पूछा कि क्या तुम्हें इस रिश्ते में कोई परेशानी है?

‘‘उस का गोल चेहरा शर्म से और ज्यादा झक गया. वह अपनी चुन्नी का छोर लपेटने लगी.

‘‘मैं ने फिर कहा कि क्या तुम फिर एक  बार गंभीरता से इस बात को नहीं सोच सकतीं?

‘‘उस ने नजरें उठा कर कुछ पल मेरी ओर देखा. फिर बोली कि यह आप कह

रहे हैं?

‘‘निवेदिता का प्रश्न सुन कर मैं दंग रह गया. फिर बोला कि तुम्हारी मां, बूआजी आदि सभी की इच्छा है… उधर रोमित भी इंतजार में बैठा था…

‘‘बात अधूरी ही रह गई. मेरा गला भर आया. सहसा अपनेआप को ही सबकुछ वाहियात लगने लगा.

‘‘वह बोली कि यह सब तो मैं जानती हूं, लेकिन क्या आप भी ऐसा ही कह रहे हैं?

‘‘मैं जबरन मुसकरा कर बोला कि मैं तो ऐसा कहूंगा ही.

‘‘मेरी सुन कर वह बोली कि क्यों नहीं कहोगे वरना दोस्त के आगे सिर नीचा नहीं हो जाएगा?

‘‘मैं ने कहा कि नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. जो कुछ हो रहा है, तुम्हारी भलाई के लिए ही हो रहा है.

‘‘मेरी बात सुन कर वह बोली कि मेरी भलाई के लिए? बस यही बात है?

‘‘इस के आगे निवेदिता ने मुझे कुछ कहने का मौका नहीं दिया और शीघ्रता से कमरे से निकल फटाफट सीढि़यां उतर कर नीचे चली गई.

‘‘देखतेदेखते शादी का दिन आ गया. सारे घर में लोग होहल्ला मचा रहे थे. मैं दिखाने के लिए व्यस्त सा इधरउधर घूमता रहा, पर मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. बरात दरवाजे पर आ चुकी थी. ऐसे ही समय में भाभीजी को ढूंढ़ता हुआ दोमंजिले के उसी कमरे में जा पहुंचा. वहां महिलाओं का दल निवेदिता को घेरे बैठा था. पर बरात के आने की खबर सुन कर मेरे सामने ही सब 1-1 कर कमरे से बाहर हो गईं.

‘‘लाल रंग की बेहद खूबसूरत साड़ी पहने, माथे पर लाल गोल बिंदी व पैरों में लाल महावर लगा, चेहरे को दोनों घुटनों के बीच झकाए निवेदिता बैठी थी. उस समय वह बड़ी सुंदर लग रही थी. मैं एकटक उसे निहारता रहा. अचानक उस की नजरे ऊपर उठीं. वह कुछ देर मेरे मुंह को ताकती रही. मैं ने देखा, उस की दोनों आंखें बहुत लाल थीं. सुना था, ब्याह की रात सभी लड़कियां रोती हैं. शायद वह भी रोई थी. मुझे उस की लाल आंखें बड़ी भली लगीं.

निवेदिता उठ कर खड़ी हो गई और भारी गले से बोली कि आप की ऐसी ही इच्छा थी न? और उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे.

‘‘फिर मैं वहां न ठहर सका. सिर झका कर अपराधी सा बाहर आ गया. उस दिन पहली बार मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. पता नहीं क्यों इस के बाद उस घर में मेरा मन न लगा.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘श्रद्धा, इस के बाद फिर कुछ नहीं हुआ.’’

‘‘निवेदिता से फिर आप की कोई मुलाकात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘बड़े आश्चर्य की बात है.’’

‘‘श्रद्धा, तुम्हें आश्चर्य हो रहा है पर यह सच है कि शादी के 8 दिन बाद ही रोमित अपनी पत्नी को ले कर मुंबई लौट गया. शायद उस को ज्यादा छुट्टी नहीं मिली थी. इधर मेरा भी तबादला लखनऊ हो गया. इस के बाद हमारीतुम्हारी शादी हो गई और मैं भी कामकाज में घिर गया. तब से तो तुम साथ ही हो. लखनऊ के बाद कानपुर, फिर घाटमपुर तबादला हुआ और अब 12 वर्ष बाद फिर दिल्ली आ गया हूं. यद्यपि इन 12 सालों में अपने पास बुलाने के लिए रोमित और भाभीजी ने कई बार आग्रह भरे पत्र लिखे, पर रोमित और भाभीजी के पास जाने की इच्छा अधूरी ही रही.’’

‘‘अब तो हमें दिल्ली आए भी 1 महीना हो चुका है. इस 1 महीने में तुम भाभीजी के घर एक बार भी नहीं गए?’’

‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि मैं भाभीजी के घर गया ही नहीं?

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम भाभीजी के घर के चक्कर लगते ही रहते हैं.’’

‘‘नहीं, रोजरोज यह कैसे संभव है?’’

‘‘ओह, तुम से तो कोईर् बात पूछना भी बेवकूफी है. तुम मर्द लोग पता नहीं किस दिमाग के होते हो?’’

‘‘तुम शायद गुस्सा हो गई हो. यहां आने के चौथे दिन ही मैं उन ममतामयी भाभी के दर्शन करने चला गया था. वहां जाने पर निवेदिता की भी याद आई, पर मैं ने भाभीजी से उस का कोई जिक्र नहीं किया.

‘‘बातोंबातों में भाभीजी ने ही बताया कि निवेदिता अपने पति के साथ बहुत सुखी है. दिल्ली आने पर मुझे याद करती है. सुन कर मुझे संतुष्टि अवश्य हुई.

‘‘उस के बाद मैं भाभीजी के घर चाह कर भी न जा सका. लेकिन संयोग से आज भाभीजी सैक्टर 3 के मोड़ पर मिल गईं और…’’

‘‘निवेदिता की मौत का दुखद समाचार

सुना गईं.’’

‘‘हां, यह मैं पहले ही तुम्हें बता चुका हूं.’’

‘‘अनिल, मुझे अफसोस है कि मैं निवेदिता को न देख सकी.’’

‘‘क्या करती देख कर?’’

‘‘यह तो देखने और मिलने के बाद ही बतला सकती थी. तुम ने एक बार भी उसे अपने

यहां नहीं बुलाया. बुरा मत मानना, तुम वाकई बड़े बुद्धू हो…’’

‘‘श्रद्धा, इस में बुरा मानने की क्या बात है? शायद तुम सही कहती हो. सोच रहा हूं, अब बेचारे रोमित का क्या होगा. उसे पत्र लिखना चाहता हूं, पर काफी सोचने पर भी शब्द नहीं मिल रहे हैं. ऐसे शब्द जिन से रोमित निवेदिता के छोड़े हुए अधखिले फूलों को खिला सके और उन की महक से अपनेआप को महका ले.’’

‘‘क्या किसी शब्दकोश में ऐसे शब्द नहीं हैं, जिन से मरा हुआ आदमी जिंदा हो जाए?’’

‘‘श्रद्धा, मुझ पर व्यंग्य कर रही हो?

पर सुनो, मेरे शब्दों में इतनी शक्ति तो नहीं कि मरे हुए इंसान को पुन: जीवित कर दें. पर मेरे शब्दों से 3 जिंदगियों के होंठों से छिनी मुसकान यदि फिर से वापस आ जाए तो मुझ जैसे बुद्धू आदमी के लिए यह एक महान कार्य ही होगा.’’

हाय मेरा बर्थडे- भाग 3: कंजूस पति की कहानी

मगर मु झे अच्छा नहीं लगा क्योंकि इस बार मैं अपना बर्थडे सब के साथ मनाना चाहती थी. पिछली बार कोरोना के कहर से मैं मरतेमरते बची थी, तो सोचा इस बार सारी कसर एकसाथ निकाल लूंगी.

औफिस जाते समय एक फिर अमित ने मु झे ‘बर्थडे विश करते हुए कहा, ‘‘आज हम दोनों रीजेंटा होटल में कैंडल लाइट डिनर करेंगे. बुक तैयार रखना. मैं औफिस से जल्दी आ जाऊंगा.’’

ठीक है न, वैसे भी हम पतिपत्नी को एकसाथ अकेले समय बिताने का मौका ही कहां मिल पाता है. तो इसी बहाने अमित के साथ गोल्डन टाइम स्पैंड करने का मौका मिल जाएगा मु झे, सोच कर मैं खुश हो गई. सच कहूं, तो हम औरतें एडजस्ट करना खूब जानती हैं. अब बचपन से यही तो सिखाया जाता है हमें.

तैयार हो कर आईने में मैं ने खुद को पता नहीं कितनी बार निहारा और मुसकराते हुए खुद में ही बोल पड़ी कि अनु, तुम्हें कोई हक नहीं बनता कि तुम इतनी सुंदर दिखो. वैसे मैं अपनी बढ़ाई नहीं करती, लेकिन कालेज में सब मु झे श्रीदेवी कह कर बुलाते थे, पता हैं क्यों? क्योंकि मैं देखने में बहुत कुछ उन के जैसा लगती थी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी तो दौड़ कर मैं ने दरवाजा खोला यह सोच कर कि अमित आ गए शायद. लेकिन सामने धोबी को देख कर मेरा मूड ही औफ हो गया. मन तो किया कहूं, यही टाइम मिला तुम्हें यहां आने का?

धोबी ने ऊपर से नीचे तक मु झे निहारते हुए कहा, ‘‘अरे मैडमजी लगता है आप कहीं जा रही हैं तो मैं कपड़े बाद में लेने आ जाऊं?’’

‘‘नहीं, अब आए हो तो लेते जाओ,’’ मैं ने कहा और कपड़े लाने अंदर चली गई.

शाम के 7 बजे चुके थे पर अभी तक अमित का कुछ अतापता नहीं था. मैं उन्हें फोन लगाने ही जा रही थी कि उन का फोन आ गया. बोलने ही जा रही थी कि मैं कब से तैयार बैठी हूं. कब आओगे? लेकिन तभी किसी और की आवाज सुन कर मैं चौंक पड़ी, ‘‘हैप्पी बर्थडे भाभीजी… पहचाना मु झे? अरे, मैं अनिल रस्तोगी.’’

‘‘अरे, हां, थैंकयू भाई साहब,’’ बोल कर मैं फोन रखने ही जा रही थी कि 1-1 कर अमित के औफिस के सारे दोस्त मु झे ‘हैप्पी बर्थडे की बधाई देने लगे. सच कहूं तो अब मु झे अपने ही बर्थ डे से चिढ़ होने लगी कि मैं पैदा ही क्यों हुई. सुबह से हैप्पी बर्थडे सुनसुन कर मेरे कान पक गए और थैंकयू बोलबोल कर मेरा मुंह दुखने लगा था.

अभी मैं अमित को कुछ बोलती कि वे कहने लगे, ‘‘अरे अनु, सुनो न… औफिस के सारे दोस्त तुम्हारे बर्थडे की पार्टी मांग रहे हैं. पता नहीं इन्हें कैसे पता चल गया कि आज तुम्हारा बर्थडे है. कह रहे हैं आज भाभीजी का बर्थडे है तो पार्टी तो बनती है. अब तुम ही बताओ क्या करें?’’

मैं क्या बोलती भला, लेकिन अब मेरा पारा चढ़ने लगा था क्योंकि मैं कब से तैयार हो कर बैठी थी.

‘‘वैसे अगर तुम कहो तो यहीं औफिस के पास ही एक बढि़या होटल है, उसी में इन्हें पार्टी दे ही देता हूं. चलो न, एक  झं झट ही खत्म. ये भी क्या याद रखेंगे कि मैं ने अपनी जान के बर्थडे पर इन्हें पार्टी दी. सही है न?’’

सवाल भी अमित ही कर रहे थे और जवाब भी वही दे रहे थे. मैं ने भी गुस्से में कह दिया कि जो तुम्हें ठीक लगे करो. सच कहती हूं अब मु झे चिढ़ होने लगी. सुबह से स्पैशल हैप्पी बर्थडे की मृगतृष्णा में खुश हुए जा रही थी और इन्हें देखो…

‘‘ठीक है, तो तुम अपना बर्थडे ऐंजौय करो, मैं आता हूं आराम से,’’ कह कर अमित फोन रख चुके थे और मैं आईने के सामने खड़ीखड़ी खुद को ठगा सा महसूस कर रही थी कि अपना बर्थडे ऐंजौय करूं पर किस के साथ?

तभी दरवाजे पर टन की आवाज से मु झे लगा कि कहीं अमित तो नहीं आए. लेकिन

सामने कामिनी को देख कर ठिठक कर खड़ी

हो गई. उसे पता चल गया कि मैं ने सिर्फ डींगें हांकी हैं. आखिर पति भी तो उसी औफिस में काम करता है जहां अमित और उस के बच्चे मेरे बच्चों के दोस्त हैं. देखा मैं ने कामिनी के हाथ में कुछ था.

‘‘क्या हुआ, होटल रीजेंटा में जगह खाली नहीं थी,’’ बोल कर वह हंसी तो मेरा कलेजा जल उठा, ‘‘अपने स्पैशल बर्थ डे पर केक न सही पेस्ट्री ही काट लो,’’ बोल कर उस ने चाकू मेरी तरफ बढ़ाया तो मन तो किया उसी चाकू से उस का कत्ल कर दूं और फांसी पर चढ़ जाऊं क्योंकि ऐसी जिंदगी से मौत भली. लेकिन फिर लगा यह कम से कम मेरा बर्थडे विश तो करने आई.

बच्चे आते ही यह कह कर सोने चले गए कि आज तो मम्मा के बर्थडे पर उन्हें

बहुत मजा आया और अमित ने आते ही यह कह कर मु झे अपनी बांहों में भर लिया, ‘‘अनु, पता है तुम्हें कितना बड़ा केक मंगवाया था मैं ने… अरे, फोटो लेना ही भूल गया वरना तुम देखती कि कितना शानदार बर्थडे मना तुम्हारा. खैर, छोड़ो पर खुश तो हो न कि हम ने तुम्हारा बर्थडे इतने शानदार तरीके से सैलिब्रेट किया.’’

अमित जोशीले अंदाज में बोले, तो लगा कहूं कि कहां सैलिब्रेट किया मेरा बर्थडे? न तो

मैं ने केक काटा न कोई पार्टी हुई फिर कौन सा बर्थडे? बरदाश्त की इंतहा हो रही थी पर मैं

चुप थी. कहने लगे कि रात बहुत हो गई,

इसलिए सारे ज्वैलर्स के दुकानें बंद हो चुकी थीं. इसलिए मेरे बर्थडे का गिफ्ट वे मु झे कल देंगे. नहीं चाहिए मु झे कोई गिफ्ट. मु झे अकेला छोड़

दो बस.

मन कर रहा था बहुत रोने का, पर मैं न

रोने की कोशिश कर रही थी. कहीं सुना था कि जब आप को रोना आए और किसी के सामने रोना न चाहें तो अपनी आंखें बड़ी कर लें तो

रोना नहीं आएगा. लेकिन नहीं आज तो मैं

रोऊंगी और इस बात के लिए मु झे कोई रोक नहीं सकता. अत: अपने कमरे में जा कर उलटे लेट कर मैं सिसक पड़ी और मेरे मुंह से निकला, ‘‘हाय मेरा बर्थ डे.’’

हाय मेरा बर्थडे- भाग 2: कंजूस पति की कहानी

‘‘ओह, नहींनहीं, ये खाना क्या बनाएंगे, उलटे मेरा काम और बढ़ा देंगे’ अपने मन में यह सोच  झट से मैं बोल पड़ी, ‘‘अरे नहीं, वक्त ही कितना लगता है खाना बनाने में. मैं बना लूंगी न. तुम लोग कोई दूसरा काम कर लो. जैसेकि घर ठीकठाक कर दो, मशीन में कपड़े धुलने के लिए डाल दो.’’

मगर इन निक्कमों से यह भी नहीं होगा पता था मु झे. ये लोग बस बड़ीबड़ी बातें करना जानते हैं और कुछ नहीं. लेकिन आज अपने बर्थडे पर मैं अपना मूड नहीं खराब करना चाहती थी, इसलिए चुपचाप किचन में जाने ही लगी कि नियति कहने लगी कि आज मेरा बर्थडे है तो वह मेरे लिए यूट्यूब से देख कर कुछ स्पैशल बनाएगी. बनाएगी क्या, मेरा दिमाग खाएगी. पूरी किचन तहसनहस कर देगी सो अलग.

‘‘अच्छाअच्छा ठीक है, बना लेना बाद में,’’ बोल कर मैं किचन में जा कर सब को चाय देने के बाद नाश्ते की तैयारी में जुट गई. सुनाई दे रहा था दोनों बच्चे अपने कमरे में बातें कर रहे थे कि आज मेरे ‘बर्थडे’ पर क्या स्पैशल करना है और अमित तो सुबह से बस अपने फोन से ही चिपके हुए थे. पता नहीं क्या देखते रहते हैं पूरा दिन. इन मर्दों की बस बातें ही बड़ीबड़ी होती हैं. लेकिन जब करने की बारी आती है तो बहाने हजार बना लेते हैं कि अरे, अरजेंट मीटिंग आ गई थी… फलानाफलाना…

गुस्सा भी आ रहा था कि इन तीनों को कोई कामधाम नहीं है, सुबह से सिर्फ बकवास ही किए जा रहे हैं. लेकिन किचन में आ कर जब बच्चे ‘हैप्पी बर्थडे मौम’ बोल कर ‘मौम मैं यह कर दूं? लाओ मैं वह कर देती हूं’ कहते तो मैं खुशी से  झूम उठती कि आज मेरे बर्थडे, पर बच्चे मु झे कितना भाव दे रहे हैं. लेकिन अमित जब कहते कि आज मेरी जान का ‘हैप्पी बर्थडे’ है तो इसी खुशी में एक कप चाय और हो जाए’ तो अंदर से मैं खीज उठती कि यह क्या है. बर्थडे, बर्थडे बोल कर ये तो बस अपनी ही चला रहे हैं. अरे, मैं तो भूल ही गई कि मु झे कामिनी को अपने स्पैशल बर्थडे के बारे में भी बताना था. लेकिन क्या कहूंगी उस से? हां, कहूंगी, गलती से उसे फोन लग गया.

‘‘हैलो,’’ उधर से कामिनी बोली.

‘‘अरे, कामिनी, तु झे फोन लग गया? सौरी यार, मैं तो… वह होटल रीजेंटा में फोन लगा रही थी… वो आज मेरा बर्थडे है तो अमित उसी होटल में पार्टी दे रहे हैं. मैं ने कितना मना भी किया, लेकिन कहते हैं कि आज अपनी जान का बर्थडे, होटल रीजेंटा में ही मनाएंगे,’’ बोल कर मैं हंसी.

उस के सीने में आग लग गई, ‘‘अच्छाअच्छा, तू आराम कर,’’ लेकिन पता है अब उसे आराम कहां? क्योंकि मैं ने उस की नींद हराम जो कर दी. सोचती होगी बेचारी, हाय, यह कैसे हो गया. अनु अपनी बर्थडे पार्टी इतने बड़े होटल में मनाने जा रही है और मु झे नहीं बुलाया. हां, नहीं बुलाऊंगी, तुम ने बुलाया था मु झे अपनी बर्थडे पार्टी पर? जब देखो अपने महंगेमहंगे कपड़े गहने दिखा कर मु झे जलाती रहती है. लेकिन आज मैं उसे जलाऊंगी देखना. अपने बर्थडे के सभी फोटो फेसबुक पर अपलोड कर उसे जलाजला कर खाक कर दूंगी. सोचसोच कर मैं मुसकरा ही रही थी कि पीछे से आ कर अमित ने मु झे अपनी बांहों में भर लिया और कान में फुसफुसाते हुए बोले, ‘‘मेरो जान, बोलो. आज तुम्हें गिफ्ट में क्या चाहिए?’’

गुस्सा भी आया कि गिफ्ट क्या पूछ कर दिया जाता है? लेकिन मैं ने भी उसी

रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘‘प्यार से तुम जो भी दोगे मु झे अच्छा लगेगा,’’ वैसे मैं तो चाहती थी अमित मु झे डायमंड रिंग दें ताकि मैं उस कामिनी को दिखा सकूं पर गिफ्ट मांगना भी ठीक नहीं लगता न. हम प्रेमालाप में डूबने ही जा रहे थे कि नियति फोन ले कर पहुंच गई कि उस की दोस्त मुझे ‘बर्थडे’ विश करना चाहती है.

‘‘थैंक यू बेटा,’’ बोल कर मैं हंसी और फिर फोन नियति को पकड़ा दिया. सुबह से नियति का बस यही काम है कि वह अपने सारे दोस्तों से मु झे ‘बर्थडे’ विश करवाए जा रही है और ‘थैंकयू बेटा’ कहकह कर अब मेरा मुंह दुखने लगा है.

अंकुर भी हर 2 मिनट पर, ‘‘मम्मा, देखो तो आप को इस डिजाइन का केक पसंद है या फिर इस डिजाइन का.’’

‘‘अरे भई केक काट कर खाना ही तो है. फिर क्या फर्क पड़ता है कि उस का डिजाइन कैसा है,’’ अमित बोले.

मगर मु झे कामिनी को दिखाना था इसलिए मैं ने सब से बढि़या डिजाइनर केक पर अपनी उंगली रख दी और कहा कि इसे और्डर कर लो.

सच कहूं तो अब इन की बातों से मु झे सिरदर्द होने लगा था. सुबह से बस बातें ही हो रही थीं, कोई काम नहीं हो रहा था. घर वैसे ही अस्तव्यस्त पड़ा था. बच्चे अभी भी मोबाइल से चपके हुए थे. अमित भी जाने किस से बातों में लगे थे. बहुत गुस्सा आ रहा था मु झे. लेकिन मैं ने अपने मन को सम झाया कि शांत रहो. आज तुम्हारा बर्थडे है न.

‘‘मम्मा,’’ नियति फिर चिल्लाते हुए आई

तो मेरा कान  झन झना उठा कि यह लड़की भी न बहुत चिल्लाती है. कितनी बार कहा धीरे बोलो, लेकिन नहीं.

‘‘यह लो अदिति आप को बर्थडे विश करना चाहती है,’’ बोल कर उस ने फोन मेरे कान से सटा दिया तो मु झे ‘थैंकयू बेटा’ बोलना पड़ा. अपने दोस्तों से लंबी बातचीत के बाद नियति बोली कि उस के सारे दोस्त मेरे बर्थडे की पार्टी मांग रहे हैं. क्या करूं दे दूं पार्टी? नियति पूछ नहीं रही थी जैसे बता रही थी कि वह अपने दोस्तों को पार्टी देना चाहती है.

‘‘अरे, बिलकुल…’’ जोशीले अंदाज में अमित बोले, ‘‘आज तुम्हारी मम्मा का बर्थडे है भई, तो पार्टी तो बनती है. दे दो, दे दो.’’

‘‘सच में पापा, दे दूं पार्टी?’’ नियति की तो आंखें चमक उठीं. तुरंत उस ने अपने सारे दोस्तों को फोन कर के बता दिया कि आज ‘शिकागो पिज्जा हाउस’ में ‘अनलिमिटेड पिज्जा पार्टी है.’

अब अंकुर कहां पीछे रहने वाला था. कहने लगा, ‘‘फिर मैं भी अपने सभी दोस्तों

को ‘पिज्जा हट में पार्टी दूंगा.’’

‘‘हांहां, तो तुम्हें किस ने मना किया. तुम भी अपने दोस्तों को पिज्जा पार्टी दे दो’’ बोल कर अमित ठहाके मार कर हंस पड़े.

हाय मेरा बर्थडे- भाग 1: कंजूस पति की कहानी

‘‘हैप्पी बर्थडे माई जान,’’ मेरे माथे को चूमते हुए मेरे पतिदेव अमित ने बड़े प्यार से मुझे जगाया, तो मैं अंगड़ाई लेते हुए उसे ‘थैंकयू’ बोल कर उठ बैठी.

तभी मेरे दोनों बच्चे ‘हैप्पी बर्थडे मौम… हैप्पी बर्थडे मौम…’ कहते हुए मेरे गले से  झूल गए तो मैं धन्यधान्य हो गई कि हाय, मैं कितनी भाग्यवान हूं जो मेरे पति और बच्चों को मेरा बर्थडे याद रहा.

‘‘मम्मा… इस बर्थडे, आप 40 की हो जाएंगी न?’’ मेरी 18 साल की बेटी नियति बोली, तो अमित हंस पड़े और बोले, ‘‘हां, बर्थडे के बाद हमारी उम्र 1 साल आगे भाग जाती है पर तुम्हारी मौम की पीछे भाग रही है.’’

अमित की बातों पर बच्चों ने जोर का ठहाका लगाया. मैं ने अमित को घूर कर देखा, तो वे सकपकाते हुए बोले कि उन के कहने का मतलब है कि मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता.

‘‘इस बार मम्मा के ‘बर्थडे’ पर हम ग्रेट सैलिब्रेशन करेंगे, हैं न पापा?’’ मेरे 16 साल के बेटे अंकुर ने पूछा, ‘‘बर्थडे पर हम किसकिस को बुलाएंगे?’’

‘उस कामिनी को तो बिलकुल भी नहीं’ मैं मन ही मन बड़बड़ाई. ‘लेकिन बताना तो पड़ेगा उसे कि मैं अपना बर्थडे, होटल रीजेंटा में मनाने वाली हूं. देखना कैसे वह जलभुन कर खाक हो जाएगी. बहुत दिखाती रहती है न कि अपना बर्थडे वह हमेशा बड़ेबड़े होटलों में मानती है. तो इस बार मैं भी उसे दिखा ही दूंगी कि देख, मैं भी तु झ से कोई कम नहीं हूं,’’ मुंह ऐंठते हुए बोली.

सोचा पहले फोन कर के उसे अपने बर्थडे के बारे में बता ही देती हूं, तभी मेरे दिल को चैन पड़ेगा. लेकिन तभी मेरी सोच पर डंक मारते हुए अमित बोल पड़े, ‘‘क्यों न पार्टी अपने घर पर ही रखी जाए?’’

‘‘नहीं पापा, घर पर नहीं, पार्टी होटल में रखो,’’ अंकुर बोला.

मेरा भी यही मन था. अब घर में किस को क्या पता चलेगा. होटल में पार्टी करेंगे तो 10 लोग जानेंगे और फिर फेसबुक पर मु झे अपने बर्थडे के फोटो भी तो अपलोड करने हैं. अत: तय हुआ कि अमित औफिस जाते समय पहले होटल जा कर बात कर लेंगे और नियति केक और्डर कर लेगी. लेकिन आज 31 दिसंबर को होटल रीजेंटा में शायद ही ऐंट्री मिले.

सोच लिया था कि आज अपने बर्थडे, पर मैं क्या पहनूंगी. वही, रैड कलर की वनपीस ड्रैस, जो मैं ने औनलाइन और्डर कर के मंगवाई थी अपने लिए. अरे, अमित की पसंद कहां इतनी अच्छी है, तभी तो अपनी शौपिंग मैं खुद ही करती हूं. मेरे पिछले बर्थडे, पर वे इतने फीके रंग की ड्रैस उठा लाए थे कि क्या कहें. इसलिए तो इस बार मैं ने खुद ही अपने लिए औनलाइन ड्रैस मंगवा रखी थी. साथ में मैचिंग इयररिंग्स और ब्रेसलेट भी था. चप्पलें भी मैं मार्केट जा कर खुद ले आई थी.

‘‘आज मम्मा के बर्थडे पर चौकलेट ट्रफल केक आएगा. आप को पसंद है न मम्मा?’’ मुंह से लार टपकाते हुए अंकुर बोला.

‘‘नहीं, चौकलेट नहीं, ब्लू बैरी चीज केक आएगा क्योंकि मम्मा को वही पसंद है.’’

नियति की बात पर अंकुर भड़कते हुए बोला, ‘‘नहीं, मम्मा को यानी मु झे चौकलेट ट्रफल केक ही पसंद है, तो आज वही केक आएगा बस.’’

इसी बात पर दोनों  झगड़ने लगे. एकदूसरे पर तकिया फेंकाफेंकी शुरू हो गई. एक चौकलेट ट्रफल केक की जिद पर अड़ा था तो दूसरी ब्लू बैरी चीज केक पर. लेकिन सच कहें तो मु झे इन दोनों केक में से कोई भी पसंद नहीं था. मु झे तो हमेशा से वैनिला केक ही पसंद आता है. लेकिन इन दोनों को पागलों की तरह  झगड़ते देख मेरा मन खीज उठा. मन तो किया कहूं कि बेशर्मो… बर्थ डे मेरा है या तुम लोगों का, जो अपनी ही चला रहे हो तुम सब.

‘‘अच्छाअच्छा, अब  झगड़ना बंद करो,’’ दोनों को शांत कराते हुए अमित बोले, ‘‘एक काम करते हैं, दोनों केक मंगवा लेते हैं. आखिर आज मेरी प्यारी बीवी का बर्थडे जो है,’’ मेरी ठुड्डी को हिलाते हुए अमित ने आंख मारी तो मैं शरमा कर लाल हो गई और अपना दुपट्टा संभालते हुए उठ कर चाय बनाने जाने ही लगी कि अमित ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बड़े ही रोमांटिक अंदाज में गुनगुनाने लगे कि हुजूर इस कदर भी न इतरा के चलिए… खुलेआम आंचल न लहरा के चलिए…’’

‘‘अरे, पापा को तो देखो कितने रोमांटिक हो रहे हैं,’’ अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुए अंकुर बोला, तो नियति भी खीखी कर कहने लगी कि हां, देखो न मम्मी भी कैसे पुरानी हीरोइन की तरह शरमा रही हैं.

बच्चों की बातें सुन  झट से मैं ने अपना हाथ छुड़ा लिया और डपटते हुए बोली,

‘‘जा कर पढ़ाई करो दोनों. सुबह से बस बर्थडे, बर्थडे किए जा रहे हो. कोई कामधाम नहीं है क्या तुम लोगों को?’’

मगर जिद्दी अंकुर तो अपने पापा के पीछे ही पड़ गया, ‘‘बोलो न पापा, आज मम्मा को आप क्या गिफ्ट दोगे?’’

अंकुर की बात पर अमित आंख मारते हुए बोले, ‘‘आज रात मम्मा को एक स्पैशल गिफ्ट दे कर खुश कर देंगे.’’

पापा की बात पर दोनों बच्चे ‘हाईफाई कर जोर से हंस पड़े. गुस्से से मैं ने अमित की तरफ देखा कि क्या जरूरत थी बच्चों के सामने इतने रोमांटिक बनने की. आदत है अमित की, बच्चों के सामने ही शुरू हो जाते हैं. लेकिन सम झते नहीं कि आज के बच्चे, बच्चे नहीं रहे, बड़ों के कान काट रहे हैं. उन्हें क्या नहीं पता यह तो पूछो? और गूगल बाबा तो हैं ही ज्ञान बांटने के लिए, फिर किसी से कुछ पूछनेजानने की क्या जरूरत. लेकिन अमित हैं कि अपने इमोशन पर कंट्रोल ही नहीं रख पाते. सच कहती हूं, बच्चों के सामने मैं शर्मिंदा हो जाती हूं और अमित बच निकलते हैं.

खैर, मैं चाय बनाने जाने ही लगी कि नियति ने फिर यह कह कर मु झे रोक दिया कि आज मैं ‘बर्थडे गर्ल’ हूं तो मु झे कोई काम नहीं करना है.

‘‘बिलकुल, आज मेरी बीवी ‘बर्थडे गर्ल है इसलिए आज तुम स्पैशल फील करो. खाना, हम बापबेटी मिल कर बना लेंगे, ओके…,’’ बड़ा सा मुंह खोल कर जमहाई लेते हुए अमित बोले.

क्या आमिर खान और विजय देवराकोंडा ने की निर्माता के नुकसान की भरपाई?

बौलीवुड काफी बुरे वक्त से गुजर रहा है. हिंदी फिल्में बाक्स आफिस पर लगातार असफल होती जा रही है. फिल्म के प्रदर्शन वाले दिन ही फिल्म के शो रद्द हो रहे हैं. आमिर खान व करना कपूर खान अभिनीति फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ की इतनी बुरी हालत हुई कि इस फिल्म की कमायी से तीन दिन का सिनेमाघरों का किराया तक चुकाना मुश्किल हो गया. यही हालत दक्षिण के सफल अभिनेता विजय देवराकोंडा की पैन इंडिया सिनेमा वाली फिल्म ‘‘लाइगर’’ की भी हुई.

आमिर खान और विजय देवराकोंडा के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री का एक तबका मानकर चल रहा है कि उनकी फिल्म को ‘‘बौयकाट बौलीवुड’’ की वजह से नुकसान उठाना पड़ा. जबकि यह सच नही है. इन फिल्मों को डुबाने में कहानी,  पटकथा, लेखक व निर्देशक के साथ ही  इनकी पीआर टीम व मार्केटिंग टीम का भी बहुत बड़ा हाथ रहा.  जी हॉ! यदि आमिर खान व विजय देवराकोंडा ठंडे दिमाग से अपनी फिल्म ‘लाल सिह चड्ढा’’ की प्रमोशनल गतिविधियों पर नजर दौड़ाएंगे, तो उन्हे इसका अहसास अपने आप हो जाएगा.

बहरहाल,  कुछ वर्ष पहले जब सलमान खान की फिल्में असफल हुई थीं और उन पर बहुत बड़ा दबाव बना था, तब सलमान खान ने अपने मेहनताना में से कुछ धनराशि अपनी फिल्म के निर्माताओं को वापस किया था. अब इसी ढर्रे पर चलते हुए आमिर खान व विजय देवराकोंडा ने भी उसी तरह का कदम उठाया है. मगर सलमान खान व इन कलाकारों के कदम में एक बहुत बड़ा फर्क है. सलमान खान की असफल फिल्मों के निर्माता स्वयं सलमान खान नही थे.

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं कि आमिर खान फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ के निर्माता के लिए फरिश्ता बनकर सामने आए हैं. सूत्रों का दावा है कि आमिर खान ने फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ की असफलता की सारी जिम्मेदारी अपने उपर लेते हुए  अपनी अभिनय की फीस को छोड़ने का फैसला किया है. पर हर कोई जानता है कि फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ का निर्माण खुद आमिर खान व किरण राव ने ‘‘वायकौम 18’’ के साथ मिलकर किया था. इस फिल्म का निर्माण ‘आमिर खान फिल्मस’’ के तहत ही हुआ था. तो आमिर खान किसे पैसा लौटा रहे हैं??

उधर फिल्म ‘‘लाइगर’’ की असफलता के लिए पूर्णरूपेण विजय देवराकोंडा ही जिम्मेदार हैं. विजय देवराकोंडा ने अपनी फिल्म की पीआर  टीम के कहने पर पूरे देश का भ्रमण करते हुए कई तरह के अजीबोगरीब बयान दिए. यहां तक कि उन्होनेे अपने बयानों से मंुबई के ‘मराठा मंदिर’ और गेटी ग्लैक्सी सहित सात मल्टी प्लैक्स के मालिक व मशहूर फिल्म वितरक मनोज देसाई को भी नाराज कर दिया. उन्होने यह सारी हरकतें तब की, जबकि उनकी फिल्म ‘‘लाइगर’’ में कोई दम नहीं था. अगर उन्होने बेवजह की बयान बाजी न की होती, तो शायद कुछ दर्शक इस फिल्म को देखने पहुंच जाते. मगर उन्होने अपने बयानों से दर्शकों को नाराज कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. फिल्म ‘लाइगर’ के प्रदर्शन के पहले दिन बाक्स आफिस पर फिल्म की दुर्गति देखकर विजय देवराकोंडा उसी दिन शाम को मनोज देसाई से मिलकर उनसे माफी मांगते हुए कहा था कि उनके कहने का अर्थ कुछ और था. मगर इससे भी फर्क नहीं पड़ा. फिल्म की कहानी,  पटकथा व निर्देशन के साथ ही विजय देवराकोंडा के अभिनय में कोई दम नहीं था. उपर से उनके बयानो ने भी दर्शकों को इस फिल्म से दूर रखा. खैर, अब विजय देवराकोंडा को अपनी गलती का अहसास हो गया है. उन्होने भी फिल्म की असफलता का सारा दोष अपने उपर लेते हुए फिल्म के निर्माता को अपनी पारिश्रमिक राशि में से छह करोड़ रूपए वापस करने का ऐलान कर दिया है. पर यहां सवाल है कि इससे क्या होगा? क्या निर्माता केे नुकसान की भरपायी हो जाएगी? जी नही. . . यह महज शोशे बाजी है.

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