‘‘शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. अचानक निवेदिता ने ही गड़बड़ी कर दी. मालूम पड़ा कि वह शादी न करने की जिद कर रही है.
‘‘भाभीजी ने मुझ से कहा था कि अब निवेदिता को भी तुम्हीं जा कर समझओ.
‘‘यह सुन कर मैं सुन्न हो गया और फिर बोला कि एकाएक निवेदिता को यह क्या हो गया है. मैं उसे क्या समझऊं.
‘‘यह सुन कर भाभी बोलीं कि अनिल तुम्हारे समझने से ही कुछ हो सकता है. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि वह असल में तुम से प्यार करती है.
‘‘मैं भाभीजी का मुंह देखता रह गया था. मेरा चेहरा लाल हो उठा था. मैं चिंता में डूब गया. ब्याह की बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि अब पीछे हटने में मेरी बदनामी होती. मैं किसी को मुंह दिखाने लायक भी न रहता.
‘‘भाभीजी के कहने से मैं उस के पास गया. वह दूसरी मंजिल के एक कमरे में खिड़की के पास खड़ी रोती मिली. मैं ने उसे पुकारा. इतने दिनों में मेरी उस से यह पहली बार आमनेसामने बात हुई.
‘‘मैं ने कहा कि निवेदिता, बात इतनी आगे बढ़ चुकी है. क्या अब तुम सब को नीचा दिखाओगी.
‘‘उस ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा. फिर तुरंत ही बोली कि और मेरा प्यार, मेरा दिल?
‘‘मैं ने पूछा कि क्या तुम्हें इस रिश्ते में कोई परेशानी है?
‘‘उस का गोल चेहरा शर्म से और ज्यादा झक गया. वह अपनी चुन्नी का छोर लपेटने लगी.
‘‘मैं ने फिर कहा कि क्या तुम फिर एक बार गंभीरता से इस बात को नहीं सोच सकतीं?
‘‘उस ने नजरें उठा कर कुछ पल मेरी ओर देखा. फिर बोली कि यह आप कह
रहे हैं?
‘‘निवेदिता का प्रश्न सुन कर मैं दंग रह गया. फिर बोला कि तुम्हारी मां, बूआजी आदि सभी की इच्छा है… उधर रोमित भी इंतजार में बैठा था…
‘‘बात अधूरी ही रह गई. मेरा गला भर आया. सहसा अपनेआप को ही सबकुछ वाहियात लगने लगा.
‘‘वह बोली कि यह सब तो मैं जानती हूं, लेकिन क्या आप भी ऐसा ही कह रहे हैं?
‘‘मैं जबरन मुसकरा कर बोला कि मैं तो ऐसा कहूंगा ही.
‘‘मेरी सुन कर वह बोली कि क्यों नहीं कहोगे वरना दोस्त के आगे सिर नीचा नहीं हो जाएगा?
‘‘मैं ने कहा कि नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. जो कुछ हो रहा है, तुम्हारी भलाई के लिए ही हो रहा है.
‘‘मेरी बात सुन कर वह बोली कि मेरी भलाई के लिए? बस यही बात है?
‘‘इस के आगे निवेदिता ने मुझे कुछ कहने का मौका नहीं दिया और शीघ्रता से कमरे से निकल फटाफट सीढि़यां उतर कर नीचे चली गई.
‘‘देखतेदेखते शादी का दिन आ गया. सारे घर में लोग होहल्ला मचा रहे थे. मैं दिखाने के लिए व्यस्त सा इधरउधर घूमता रहा, पर मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. बरात दरवाजे पर आ चुकी थी. ऐसे ही समय में भाभीजी को ढूंढ़ता हुआ दोमंजिले के उसी कमरे में जा पहुंचा. वहां महिलाओं का दल निवेदिता को घेरे बैठा था. पर बरात के आने की खबर सुन कर मेरे सामने ही सब 1-1 कर कमरे से बाहर हो गईं.
‘‘लाल रंग की बेहद खूबसूरत साड़ी पहने, माथे पर लाल गोल बिंदी व पैरों में लाल महावर लगा, चेहरे को दोनों घुटनों के बीच झकाए निवेदिता बैठी थी. उस समय वह बड़ी सुंदर लग रही थी. मैं एकटक उसे निहारता रहा. अचानक उस की नजरे ऊपर उठीं. वह कुछ देर मेरे मुंह को ताकती रही. मैं ने देखा, उस की दोनों आंखें बहुत लाल थीं. सुना था, ब्याह की रात सभी लड़कियां रोती हैं. शायद वह भी रोई थी. मुझे उस की लाल आंखें बड़ी भली लगीं.
निवेदिता उठ कर खड़ी हो गई और भारी गले से बोली कि आप की ऐसी ही इच्छा थी न? और उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे.
‘‘फिर मैं वहां न ठहर सका. सिर झका कर अपराधी सा बाहर आ गया. उस दिन पहली बार मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. पता नहीं क्यों इस के बाद उस घर में मेरा मन न लगा.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘श्रद्धा, इस के बाद फिर कुछ नहीं हुआ.’’
‘‘निवेदिता से फिर आप की कोई मुलाकात नहीं हुई?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘बड़े आश्चर्य की बात है.’’
‘‘श्रद्धा, तुम्हें आश्चर्य हो रहा है पर यह सच है कि शादी के 8 दिन बाद ही रोमित अपनी पत्नी को ले कर मुंबई लौट गया. शायद उस को ज्यादा छुट्टी नहीं मिली थी. इधर मेरा भी तबादला लखनऊ हो गया. इस के बाद हमारीतुम्हारी शादी हो गई और मैं भी कामकाज में घिर गया. तब से तो तुम साथ ही हो. लखनऊ के बाद कानपुर, फिर घाटमपुर तबादला हुआ और अब 12 वर्ष बाद फिर दिल्ली आ गया हूं. यद्यपि इन 12 सालों में अपने पास बुलाने के लिए रोमित और भाभीजी ने कई बार आग्रह भरे पत्र लिखे, पर रोमित और भाभीजी के पास जाने की इच्छा अधूरी ही रही.’’
‘‘अब तो हमें दिल्ली आए भी 1 महीना हो चुका है. इस 1 महीने में तुम भाभीजी के घर एक बार भी नहीं गए?’’
‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि मैं भाभीजी के घर गया ही नहीं?
‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम भाभीजी के घर के चक्कर लगते ही रहते हैं.’’
‘‘नहीं, रोजरोज यह कैसे संभव है?’’
‘‘ओह, तुम से तो कोईर् बात पूछना भी बेवकूफी है. तुम मर्द लोग पता नहीं किस दिमाग के होते हो?’’
‘‘तुम शायद गुस्सा हो गई हो. यहां आने के चौथे दिन ही मैं उन ममतामयी भाभी के दर्शन करने चला गया था. वहां जाने पर निवेदिता की भी याद आई, पर मैं ने भाभीजी से उस का कोई जिक्र नहीं किया.
‘‘बातोंबातों में भाभीजी ने ही बताया कि निवेदिता अपने पति के साथ बहुत सुखी है. दिल्ली आने पर मुझे याद करती है. सुन कर मुझे संतुष्टि अवश्य हुई.
‘‘उस के बाद मैं भाभीजी के घर चाह कर भी न जा सका. लेकिन संयोग से आज भाभीजी सैक्टर 3 के मोड़ पर मिल गईं और…’’
‘‘निवेदिता की मौत का दुखद समाचार
सुना गईं.’’
‘‘हां, यह मैं पहले ही तुम्हें बता चुका हूं.’’
‘‘अनिल, मुझे अफसोस है कि मैं निवेदिता को न देख सकी.’’
‘‘क्या करती देख कर?’’
‘‘यह तो देखने और मिलने के बाद ही बतला सकती थी. तुम ने एक बार भी उसे अपने
यहां नहीं बुलाया. बुरा मत मानना, तुम वाकई बड़े बुद्धू हो…’’
‘‘श्रद्धा, इस में बुरा मानने की क्या बात है? शायद तुम सही कहती हो. सोच रहा हूं, अब बेचारे रोमित का क्या होगा. उसे पत्र लिखना चाहता हूं, पर काफी सोचने पर भी शब्द नहीं मिल रहे हैं. ऐसे शब्द जिन से रोमित निवेदिता के छोड़े हुए अधखिले फूलों को खिला सके और उन की महक से अपनेआप को महका ले.’’
‘‘क्या किसी शब्दकोश में ऐसे शब्द नहीं हैं, जिन से मरा हुआ आदमी जिंदा हो जाए?’’
‘‘श्रद्धा, मुझ पर व्यंग्य कर रही हो?
पर सुनो, मेरे शब्दों में इतनी शक्ति तो नहीं कि मरे हुए इंसान को पुन: जीवित कर दें. पर मेरे शब्दों से 3 जिंदगियों के होंठों से छिनी मुसकान यदि फिर से वापस आ जाए तो मुझ जैसे बुद्धू आदमी के लिए यह एक महान कार्य ही होगा.’’