Hindi Kahaniyan : अनुगामिनी

Hindi Kahaniyan :  जिलाधीश राहुल की कार झांसी शहर की गलियों को पार करते हुए शहर के बाहर एक पुराने मंदिर के पास जा कर रुक गई. जिलाधीश की मां कार से उतर कर मंदिर की सीढि़यां चढ़ने लगीं.

‘‘मां, तेरा सुहाग बना रहे,’’ पहली सीढ़ी पर बैठे हुए भिखारी ने कहा.

सरिता की आंखों में आंसू आ गए. उस ने 1 रुपए का सिक्का उस के कटोरे में डाला और सोचने लगी, कहां होगा सदाशिव?

सरिता को 15 साल पहले की अपनी जिंदगी का वह सब से कलुषित दिन याद आ गया जब दोनों बच्चे राशि व राहुल 8वीं9वीं में पढ़ते थे और वह खुद एक निजी स्कूल में पढ़ाती थी. पति सदाशिव एक फैक्टरी में भंडार प्रभारी थे. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. एक दिन वह स्कूल से घर आई तो बच्चे उदास बैठे थे.

‘क्या हुआ बेटा?’

‘मां, पिताजी अभी तक नहीं आए.’

सरिता ने बच्चों को ढाढ़स बंधाया कि पिताजी किसी जरूरी काम की वजह से रुक गए होंगे. जब एकडेढ़ घंटा गुजर गया और सदाशिव नहीं आए तो उस ने राशि को घनश्याम अंकल के घर पता करने भेजा. घनश्याम सदाशिव की फैक्टरी में ही काम करते थे.

कुछ समय बाद राशि वापस आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने आते ही कहा, ‘मां, पिताजी को आज चोरी के अपराध में फैक्टरी से निकाल दिया गया है.’

‘यह सच नहीं हो सकता. तुम्हारे पिता को फंसाया गया है.’

‘घनश्याम चाचा भी यही कह रहे थे. परंतु पिताजी घर क्यों नहीं आए?’ राशि ने कहा.

रात भर पूरा परिवार जागता रहा. दूसरे दिन बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सरिता सदाशिव की फैक्टरी पहुंची तो उसे हर जगह अपमान का घूंट ही पीना पड़ा. वहां जा कर सिर्फ इतना पता चल सका कि भंडार से काफी सामान गायब पाया गया है. भंडार प्रभारी होने के नाते सदाशिव को दोषी करार दिया गया और उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

सरिता घर आ कर सदाशिव का इंतजार करने लगी. दिन भर इंतजार के बाद उस ने शाम को पुलिस में रिपोर्र्ट लिखवा दी.

अगले दिन पुलिस तफतीश के लिए घर आई तो पूरे महल्ले में खबर फैल गई कि सदाशिव फैक्टरी से चोरी कर के भाग गया है और पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. इस खबर के बाद तो पूरा परिवार आतेजाते लोगों के हास्य का पात्र बन कर रह गया.

सरिता ने सारे रिश्तेदारों को पत्र भेजा कि सदाशिव के बारे में कोई जानकारी हो तो तुरंत सूचित करें. अखबार में फोटो के साथ विज्ञापन भी निकलवा दिया.

इस मुसीबत ने राहुल और राशि को समय से पहले ही वयस्क बना दिया था. वह अब आपस में बिलकुल नहीं लड़ते थे. दोनों ने स्कूल के प्राचार्य से अपनी परिस्थितियों के बारे में बात की तो उन्होंने उन की फीस माफ कर दी.

राशि ने शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. राहुल ने स्कूल जाने से पहले अखबार बांटने शुरू कर दिए. सरिता की तनख्वाह और बच्चों की इस छोटी सी कमाई से घर का खर्च किसी तरह से चलने लगा.

इनसान के मन में जब किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष को पाने की आकांक्षा बहुत बढ़ जाती है तब उस का मन कमजोर हो जाता है और इसी कमजोरी का लाभ दूसरे लोग उठा लेते हैं.

सरिता इसी कमजोरी में तांत्रिकों के चक्कर में पड़ गई थी. उन की बताई हुई पूजा के लिए कुछ गहने भी बेच डाले. अंत में एक दिन राशि ने मां को समझाया तब सरिता ने तांत्रिकों से मिलना बंद किया.

कुछ माह के बाद ही सरिता अचानक बीमार पड़ गई. अस्पताल जाने पर पता चला कि उसे टायफाइड हुआ है. बताया डाक्टरों ने कि इलाज लंबा चलेगा. यह राशि और राहुल की परीक्षा की घड़ी थी.

ट्यूशन पढ़ाने के साथसाथ राशि लिफाफा बनाने का काम भी करने लगी. उधर राहुल ने अखबार बांटने के अलावा बरात में सिर पर ट्यूबलाइट ले कर चलने वाले लड़कों के साथ भी मजदूरी की. सिनेमा की टिकटें भी ब्लैक में बेचीं. दोनों के कमाए ये सारे पैसे मां की दवाई के काम आए.

‘तुम्हें यह सब करते हुए गलत नहीं लगा?’ सरिता ने ठीक होने पर दोनों बच्चों से पूछा.

‘नहीं मां, बल्कि मुझे जिंदगी का एक नया नजरिया मिला,’ राहुल बोला, ‘मैं ने देखा कि मेरे जैसे कई लोग आंखों में भविष्य का सपना लिए परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे हैं.’

दोनों बच्चों को वार्षिक परीक्षा में स्कूल में प्रथम आने पर अगले साल से छात्रवृत्ति मिलने लगी थी. घर थोड़ा सुचारु रूप से चलने लगा था.

सरिता को विश्वास था कि एक दिन सदाशिव जरूर आएगा. हर शाम वह अपने पति के इंतजार में खिड़की के पास बैठ कर आनेजाने वालों को देखा करती और अंधेरा होने पर एक ठंडी सांस छोड़ कर खाना बनाना शुरू करती.

इस तरह साल दर साल गुजरते चले गए. राशि और राहुल अपनी मेहनत से अच्छी नौकरी पर लग गए. राशि मुंबई में नौकरी करने लगी है. उस की शादी को 3 साल गुजर गए. राहुल भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर झांसी में जिलाधीश बन गया. 1 साल पहले उस ने भी अपने दफ्तर की एक अधिकारी सीमा से शादी कर ली.

सरिता की तंद्रा भंग हुई. वह वर्तमान में वापस आ गई. उस ने देखा कि बाहर काफी अंधेरा हो गया है. हमेशा की तरह उस ने सदाशिव के लिए प्रार्थना की और घर के लिए रवाना हो गई.

‘‘मां, बहुत देर कर दी,’’ राहुल ने कहा.

सरिता ने राहुल और सीमा को देखा और उन का आशय समझ कर चुपचाप खाना खाने लगी.

‘‘बेटा, यहां से कुछ लोग जयपुर जा रहे हैं. एक पूरी बस कर ली है. सोचती हूं कि मैं भी उन के साथ हो आऊं.’’

‘‘मां, अब आप एक जिलाधीश की भी मां हो. क्या आप का उन के साथ इस तरह जाना ठीक रहेगा?’’ सीमा ने कहा.

सरिता ने सीमा से बहस करने के बजाय, प्रश्न भरी नजरों से राहुल की ओर देखा.

‘‘मां, सीमा ठीक कहती है. अगले माह हम सब कार से अजमेर और फिर जयपुर जाएंगे. रास्ते में मथुरा पड़ता है, वहां भी घूम लेंगे.’’

अगले महीने वे लोग भ्रमण के लिए निकल पड़े. राहुल की कार ने मथुरा में प्रवेश किया. मथुरा के जिलाधीश ने उन के ठहरने का पूरा इंतजाम कर के रखा था. खाना खाने के बाद सब लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए. थोड़ी दूर चलने पर कार को रोकना पड़ा क्योंकि सामने से एक जुलूस आ रहा था.

‘‘इस देश में लोगों के पास बहुत समय है. किसी भी छोटी सी बात पर आंदोलन शुरू हो जाता है या फिर जुलूस निकल जाता है,’’ सीमा ने कहा.

राहुल हंस दिया.

सरिता खिड़की के बाहर आतेजाते लोगों को देखने लगी. उस की नजर सड़क के किनारे चाय पीते हुए एक आदमी पर पड़ गई. उसे लगा जैसे उस की सांस रुक गई हो.

वही तो है. सरिता ने अपने मन से खुद ही सवाल किया. वही टेढ़ी गरदन कर के चाय पीना…वही जोर से चुस्की लेना…सरिता ने कई बार सदाशिव को इस बात पर डांटा भी था कि सभ्य इनसानों की तरह चाय पिया करो.

चाय पीतेपीते उस व्यक्ति की निगाह भी कार की खिड़की पर पड़ी. शायद उसे एहसास हुआ कि कार में बैठी महिला उसे घूर रही है. सरिता को देख कर उस के हाथ से प्याली छूट गई. वह उठा और भीड़ में गायब हो गया.

उसी समय जुलूस आगे बढ़ गया और कार पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर दौड़ पड़ी. सरिता अचानक सदाशिव की इस हरकत से हतप्रभ सी रह गई और कुछ बोल भी नहीं पाई.

दिल्ली में वे लोग राहुल के एक मित्र के घर पर रुके.

रात को सरिता ने राहुल से कहा, ‘‘बेटा, मैं जयपुर नहीं जाना चाहती.’’

‘‘क्यों, मां?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या मेरा जयपुर जाना बहुत जरूरी है?’’

‘‘हम आप के लिए ही आए हैं. आप की इच्छा जयपुर जाने की थी. अब क्या हुआ? आप क्या झांसी वापस जाना चाहती हैं.’’

‘‘झांसी नहीं, मैं मथुरा जाना चाहती हूं.’’

‘‘मथुरा क्यों?’’

‘‘मुझे लगता है कि जुलूस वाले स्थान पर मैं ने तेरे पिताजी को देखा है.’’

‘‘क्या कर रहे थे वह वहां पर?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं ने उन्हें सड़क के किनारे बैठे देखा था. मुझे देख कर वह भीड़ में गायब हो गए,’’ सरिता ने कहा.

‘‘मां, यह आप की आंखों का धोखा है. यदि यह सच भी है तो भी मुझे उन से नफरत है. उन के कारण ही मेरा बचपन बरबाद हो गया.’’

‘‘मैं जयपुर नहीं मथुरा जाना चाहती हूं. मैं तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, मैं आप के मन को दुखाना नहीं चाहता पर आप उस आदमी को मेरा पिता मत कहो. रही मथुरा जाने की बात तो हम जयपुर का मन बना कर निकले हैं. लौटते समय आप मथुरा रुक जाना.’’

सरिता कुछ नहीं बोली.

सदाशिव अपनी कोठरी में लेटे हुए पुराने दिनों को याद कर रहा था.

3 दिन पहले कार में सरिता थी या कोई और? यह प्रश्न उस के मन में बारबार आता था. और दूसरे लोग कौन थे?

आखिर उस की क्या गलती थी जो उसे अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ कर एक गुमनाम जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ा. बस, इतना ही न कि वह इस सच को साबित नहीं कर सका कि चोरी उस ने नहीं की थी. वह मन से एक कमजोर इनसान है, तभी तो बीवी व बच्चों को उन के हाल पर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ था. अब क्या रखा है इस जिंदगी में?

खट् खट् खट्, किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

सदाशिव ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने सरिता खड़ी थी. कुछ देर दोनों एक दूसरे को चुपचाप देखते रहे.

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगे? बड़ी मुश्किलों से ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच सकी हूं,’’ सरिता ने कहा.

‘‘आओ,’’ सरिता को अंदर कर के सदाशिव ने दरवाजा बंद कर दिया.

सरिता ने देखा कि कोठरी में एक चारपाई पर बिस्तर बिछा है. चादर फट चुकी है और गंदी है. एक रस्सी पर तौलिया, पाजामा और कमीज टंगी है. एक कोने में पानी का घड़ा और बालटी है. दूसरे कोने में एक स्टोव और कुछ खाने के बरतन रखे हैं.

सरिता चारपाई पर बैठ गई.

‘‘कैसे हो?’’ धीरे से पूछा.

‘‘कैसा लगता हूं तुम्हें?’’ उदास स्वर में सदाशिव ने कहा.

सरिता कुछ न बोली.

‘‘क्या करते हो?’’ थोड़ी देर के बाद सरिता ने पूछा.

‘‘इस शरीर को जिंदा रखने के लिए दो रोटियां चाहिए. वह कुछ भी करने से मिल जाती हैं. वैसे नुक्कड़ पर एक चाय की दुकान है. मुझे तो कुछ नहीं चाहिए. हां, 4 बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकल आता है.’’

‘‘बच्चे?’’ सरिता के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘हां, अनाथ बच्चे हैं,’’ उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी मैं ने ले रखी है. सोचता हूं कि अपने बच्चों की पढ़ाई में कोई योगदान नहीं कर पाया तो इन अनाथ बच्चों की मदद कर दूं.’’

‘‘घर से निकल कर सीधे…’’ सरिता पूछतेपूछते रुक गई.

‘‘नहीं, मैं कई जगह घूमा. कई बार घर आने का फैसला भी किया पर जो दाग मैं दे कर आया था उस की याद ने हर बार कदम रोक लिए. रोज तुम्हें और बच्चों को याद करता रहा. शायद इस से ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था. पिछले 5 सालों से मथुरा में हूं.’’

‘‘अब तो घर चल सकते हो. राशि अब मुंबई में है. नौकरी करती है. वहीं शादी कर ली है. राहुल झांसी में जिलाधीश है. मुझे सिर्फ तुम्हारी कमी है. क्या तुम मेरे साथ चल कर मेरी जिंदगी की कमी पूरी करोगे?’’ कहतेकहते सरिता की आंखों में आंसू आ गए.

सदाशिव ने सरिता को उठा कर गले से लगा लिया और बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया है. यदि तुम्हारे साथ जा कर मेरे रहने से तुम खुश रह सकती हो तो मैं तैयार हूं. पर क्या इतने दिनों बाद राहुल मुझे पिता के रूप में स्वीकार करेगा? मेरे जाने से उस के सुखी जीवन में कलह तो पैदा नहीं होगी? क्या मैं अपना स्वाभिमान बचा सकूंगा?’’

‘‘तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम से दूर रहूं,’’ सरिता ने रो कर कहा और सदाशिव के सीने में सिर छिपा लिया.

‘‘नहीं, मैं चाहता हूं कि तुम झांसी जाओ और वहां ठंडे दिल से सोच कर फैसला करो. तुम्हारा निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा. मैं तुम्हारा यहीं इंतजार करूंगा.’’

सरिता उसी दिन झांसी वापस आ गई. शाम को जब राहुल और सीमा साथ बैठे थे तो उन्हें सारी बात बताते हुए बोली, ‘‘मैं अब अपने पति के साथ रहना चाहती हूं. तुम लोग क्या चाहते हो?’’

‘‘एक चाय वाला और जिलाधीश साहब का पिता? लोग क्या कहेंगे?’’ सीमा के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘बहू, किसी आदमी को उस की दौलत या ओहदे से मत नापो. यह सब आनीजानी है.’’

‘‘मां, वह कमजोर आदमी मेरा…’’

‘‘बस, बहुत हो गया, राहुल,’’ सरिता बेटे की बात बीच में ही काटते हुए उत्तेजित स्वर में बोली.

राहुल चुप हो गया.

‘‘मैं अपने पति के बारे में कुछ भी गलत सुनना नहीं चाहती. क्या तुम लोगों से अलग हो कर वह सुख से रहे? उन के प्यार और त्याग को तुम कभी नहीं समझ सकोगे.’’

‘‘मां, हम आप की खुशी के लिए उन्हें स्वीकार सकते हैं. आप जा कर उन्हें ले आइए,’’ राहुल ने कहा.

‘‘नहीं, बेटा, मैं अपने पति की अनुगामिनी हूं. मैं ऐसी जगह न तो खुद रहूंगी और न अपने पति को रहने दूंगी जहां उन को अपना स्वाभिमान खोना पड़े.’’

सरिता रात को सोतेसोते उठ गई. पैर के पास गीलागीला क्या है? देखा तो सीमा उस का पैर पकड़ कर रो रही थी.

‘‘मां, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप का कई बार दिल दुखाया है. आज आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं भी आप के समान अपने पति के स्वाभिमान की रक्षा कर सकूं.’’

सरिता ने भीगी आंखों से सीमा का माथा चूमा और उस के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा.’’

भोर की पहली किरण फूट पड़ी. जिलाधीश के बंगले में सन्नाटा था. सरिता एक झोले में दो जोड़े कपड़े ले कर रिकशे पर बैठ कर स्टेशन की ओर चल दी. उसे मथुरा के लिए पहली ट्रेन पकड़नी थी.

Hindi Stories Online : मैं पुरुष हूं – क्यों माधवी को छोड़ना चाहता था तरुण

Hindi Stories Online :  मिसेज मेहता 20 साल की बेटी आलिया के साथ व्यस्त थीं. वे आज अपनी साड़ियों को अलमारी से बाहर निकाल रही थीं. साड़ियों को एक बार धूप में सुखाने का इरादा था उन का.

““क्या मम्मी, आप ने तो सारा घर ही कबाड़ कर रखा है,”” मिसेज मेहता का 24-वर्षीय बेटा तरुण बोला.

““अरे बेटे, मैं अपनी अलमारी सही कर रही हूं. मेरी इतनी महंगीमहंगी साड़ियां हैं, इन्हें भी तो देखरेख चाहिए.””

““ये इतनी भारी साड़ियां आप लोग कैसे संभाल लेती हो भला?”” तरुण ने कहा.

““यह सब हमारी संस्कृति की निशानी है,” मिसेज मेहता ने इठलाते हुए कहा.

““अब भला साड़ियों से हमारी संस्कृति का क्या लेनादेना मां? एक बदन ढकने के लिए 5 मीटर लंबी साड़ी लपेटने में भला कौन सी संस्कृति साबित होती है?”” तरुण ने चिढ़ते हु

““अब तुम्हारे मुंह कौन लगे. जब तेरी घरवाली आएगी तब बात करूंगी तुझ से,” ”मां ने हंसते हुए कहा.

तरुण बैंक में कैशियर के पद पर काम कर रहा था और अपनी सहकर्मी माधवी से प्यार करता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं. पर माधवी से शादी को ले कर तरूण हमेशा ही शंकालु रहता था क्योंकि माधवी नए जमाने की लड़की थी जो बिंदास अंदाज में जीती थी. उसे मोटरसाइकिल चलाना पसंद था और अपनी आवाज को बुलंद करना भी उसे अच्छी तरह आता था. उस की यही बात तरुण को संशय में डालती थी कि हो सकता है कि माधवी मां की पसंद पर खरी न उतरे.

“आजकल की लड़कियों को देखो, टौप के अंदर से ब्रा की पट्टी दिखाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. हमारे समय में तो मजाल है कि कोई जान भी पाता कि हम ने अंदर क्या पहन रखा है.”

मां की इस तरह की बातें सुन कर तो तरुण का मन और भी फीका हो जाता था.

माधवी के पापा को लास्ट स्टेज का कैंसर था, इसलिए वे माधवी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. माधवी भी तरुण पर दबाव बना रही थी कि वह भी घर में अपनी शादी की बात चलाए.

माधवी के बारबार कहने पर एक दिन तरुण ने मां को माधवी के बारे में बताया और माधवी का फोटो भी दिखा दिया.

फोटो देख कर तो मां ने कुछ नहीं कहा पर ऐसा लगा कि माधवी जैसी मौडर्न लड़की को वे अपनी बहू नहीं बनाना चाहती हैं.

““मां, वैसे माधवी घरेलू लड़की ही है. हां, उस के नैननक्श जरूर ऐसे हैं जिन से वह मौडर्न और अकड़ू टाइप की लगती है,”” माधवी की तारीफ का समा बांध दिया था तरुण ने.

तरुण के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. तब से ले कर आज तक मिसेज मेहता अपना जीवन आलिया और तरुण के लिए ही तो गुजार रही हैं.

तरुण की मां उस की हर पसंद व नापसंद का ध्यान रखती थीं. जवान होते बच्चों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते.

मां ने आलिया से सवालिया नजरों में ही पूछ लिया कि “यह लड़की तेरी भाभी के रूप में कैसी लगेगी?” आलिया ने भी इशारों में ही बता दिया. आलिया के इस खामोश जवाब का मतलब मां अच्छी तरह समझ गई थीं.

आलिया वैसे भी अकसर खामोश ही रहती थी. उस की इस खामोशी को लोग घमंडी की उपमा देते थे.

आलिया की सहज और मूक स्वीकृति पा कर मां ने भी माधवी से तरुण की शादी करने की इच्छा जाहिर की.

तरुण खुशीखुशी 2 दिनों बाद ही माधवी को घर ले आया. माधवी आज पीले रंग के सलवार सूट में थी. उस ने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था जो बारबार उस के माथे पर गिर जाते थे और जिन्हें बड़ी अदा से सही करती थी वह.

माधवी से मां ने दोचार सवालजवाब किए और उस के घरेलू हालात के बारे में जानकारी हासिल की. माधवी ने उन्हें बताया कि घर में उस के मांबाप और माधवी ही रहते हैं और पापा कैंसर से पीड़ित हैं, इसलिए घर चलाने का जिम्मा भी उसी पर आ पड़ा है.

इसी प्रकार की औपचारिक बातों के बाद माधवी ने मां और आलिया से विदा ली.

माधवी के जाने के बाद तरुण अपनी मां का निर्णय जानने के लिए मचला जा रहा था. मां ने इस सस्पैंस को थोड़ी देर बनाए रखना उचित समझा. लेकिन तरुण की हालत देख कर उन्होंने हंसते हुए इस रिश्ते के लिए हामी भर दी थी.

तरुण ने तुरंत ही माधवी के मोबाइल पर व्हाट्सऐप मैसेज कर दिया कि मां शादी के लिए तैयार हो गई हैं. अब, बस, जल्दी से तारीख तय कर लेते हैं. मैसेज देख कर माधवी भी खुशी से फूले नहीं समा रही थी. उस की शादी से उस के मांबाप के मन से एक बोझ भी हट जाने वाला था.

अगले दिन बैंक से निकलने के बाद तरुण और माधवी कैफे में गए और अपने भविष्य की तमाम योजनाओं पर विचार करने लगे. दोनों की आंखों में रोमांस और रोमांच का सागर लहरा रहा था.

वापसी में शाम ज्यादा हो गई थी और अंधेरा घिर आया था. तरुण ने माधवी को खुद ही उस के घर तक छोड़ने का मन बनाया और अपनी बाइक पर उस को बैठा कर चल दिया.

बैंक से माधवी के घर की ओर जाते हुए एक पुलिया पड़ती थी जहां पर आवागमन कुछ कम हो जाता था. वहां पर पहुंचते ही तरुण की बाइक पंक्चर हो गई.

“शिट मैन…..पंक्चर हो गई. मेकैनिक देखना पड़ेगा.” इधरउधर नजर दौड़ाने लगा था तरुण. ठीक उसी समय वहां पर 3-4 मुस्टंडे कहीं से प्रकट हो गए. वे सब शराब के नशे में थे. तरुण चौकन्ना हो गया था कि तभी उस के सिर के पीछे किसी ने डंडे से वार किया. बेहोश होने लगा था तरुण. इसी बीच, बाकी के 2 मुस्टंडों ने माधवी को पकड़ लिया और सड़क के किनारे खड़ी एक कार में ले जा कर जबरन उस के साथ बारीबारी मुंह काला करने लगे.

तरुण बेहोश था. माधवी उन गुंडों की हवस का शिकार बनती रही और उस के बाद वे गुंडे उन दोनों को उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर चले गए. जब उसे होश आया, तब तक माधवी का सबकुछ लुट चुका था. आतेजाते लोगों ने उन दोनों पर नजर डाली. कुछ ने उन के वीडियो भी बनाए. पर मदद किसी ने भी नहीं की. उन्हें मदद तब ही मिल पाई जब पुलिस की पैट्रोलिंग जीप वहां से गुजरी.

तमाम सवालात के बाद पुलिस ने माधवी को अस्पताल में भरती कराया और तरुण को प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने दिया गया.

तरुण के दिलोदिमाग पर जोरदार झटका लगा था पर 10 दिनों तक घर में रुकने के बाद उस ने पहले की तरह ही अपने काम पर जाना शुरू कर दिया. पर उस ने माधवी की खोजखबर लेना उचित नहीं समझा.

माधवी सदमे में थी. पर घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए वह बैंक भी आने लगी और पहले की तरह ही काम भी संभाल लिया. माधवी ने जिंदगी की पुरानी लय पाने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. पर इस सफर में उसे अब तरुण का साथ नहीं मिल पा रहा था. वह माधवी की तरफ देखता भी नहीं था, बात करना तो बहुत दूर की बात थी.

माधवी के स्त्रीमन ने बहुत जल्दी ताड़ लिया कि तरुण उस के साथ ऐसा रूखा व्यवहार क्यों कर रहा है, पर बेचारी कर क्या सकती थी. वह अब एक बलात्कार पीड़िता थी. चुपचाप अपने को काम में बिजी कर लिया था माधवी ने.

कुछ समय बीता, तो मां ने तरुण से माधवी के बारे में पूछा, ““आजकल तू माधवी की बात नहीं करता. तुम लोगों ने शादी की तारीख फाइनल की या नहीं?””

““कैसी बातें करती हो मां. अब क्या मैं उस के साथ शादी करूंगा? मेरा मतलब है कि उस का बलात्कार हो चुका है. बलात्कार पीड़िता से कहीं कोई शादी भी करता है भला? म….मैं समाज से कुछ अलग तो नहीं? ”

मां के चेहरे पर कई रंग आनेजाने लगे. उन की आंखों में कई सवाल उमड़ आए थे.

“लगता है मेरी परवरिश में ही कुछ कमी रह गई. ”मन ही मन बुदबुदा उठी थी मां. उन की आंखों की कोर नम हो चली थी जिसे उन्होंने तरुण से बड़ी सफाई से छिपा लिया और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गईं.

“बलात्कार किसी के भी साथ हो सकता है मेरे साथ, आलिया के साथ… तो क्या तब भी तरुण उसे ऐसे ही त्याग देगा जैसे उस ने माधवी को छोड़ दिया है? हां, एक पुरुष ही तो है वह, जो हमेशा ही दूध का धुला होता है.”

कई तरह के सवाल मां के जेहन में उमड़ आए और कुछ कसैली यादें उन के मन को खट्टा करने लगीं.

5 साल पहले की ही तो बात है. उन दिनों तरुण ट्रेनिंग करने के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. आलिया को अचानक बुखार आ गया था. डाक्टर को दिखा कर दवा तो ले आई थीं मिसेज मेहता पर आज सुबह से फिर बुखार तेज हो गया था. डाक्टर से फोन पर उन्होंने संपर्क किया तो उस ने एक दूसरी टेबलेट का नाम बताते हुए कहा कि यह टेबलेट आसपास के मैडिकल स्टोर से ले कर खिला दीजिए, आराम मिल जाएगा.

वे नुक्कड़ वाले मैडिकल स्टोर पर दवाई लेने ही तो गई थीं कि पीछे से किसी ने आलिया के कमरे का दरवाजा खटकाया था. आलिया ने अनमने मन से दरवाजा खोला, तो सामने बगल में रहने वाले 55 साल के अंकल थे. अंकल को यह पता था कि आलिया घर में अकेली है और इसी का लाभ उस ने उठाया, बुखार में तप रही आलिया का बलात्कार कर दिया. जब वे घर पहुंचीं तो आलिया फर्श पर पड़ी हुई थी. बड़ी मुश्किल से ही अपने ऊपर हुए अत्याचार को कह पाई थी आलिया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया और वे दोनों सुबकते रहे थे. पूरे 3 दिन तक फ्लैट का दरवाजा तक नहीं खुला. बदनामी के डर से पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं लिखवाई. तरुण से भी नहीं बताया और आननफानन दूसरा फ्लैट तलाश कर लिया था और बगैर तरुण के आने का इंतजार किए ही फ्लैट बदल भी लिया था.

इस राज को अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था मिसेज मेहता ने. पर आज, तरुण की बातें सुन कर उन के घाव हरे हो गए थे और दर्द भी उभर आया था. पर वे चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने आंसू पोछे और तरूण के सामने जा कर खड़ी हो गईं.

““अगर माधवी का रेप हो गया तो क्या वह जूठी हो गई? क्या वह अब माधवी नहीं रही?” मां तेज सांसें ले रही थीं.

““हां मां, भला मैं अपनेआप को ही किसी की जूठन क्यों खिलाऊं?” लापरवाही दिखा रहा था तरुण.

““पर भला इस में माधवी का क्या दोष है?”

““हो सकता है मां. पर ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं. मैं जानबूझ कर तो मक्खी नहीं निगल सकता न.””

““पर दोष तो उन लोगों का है जो इस घृणित कृत्य के लिए जिम्मेदार हैं, न कि माधवी का.””

मां और तरुण में बहस जारी थी. मां लगातार तरूण को समझाने की कोशिश कर रही थीं. पर तरुण की अपनी ही दलीलें थीं. काफी देर बाद भी जब तरुण टस से मस न हुआ तब मां ने उसे वह राज बताना जरूरी समझ लिया था जो अभी तक छिपाए रखा था.

““और अगर किसी ने तेरी बहन आलिया का बलात्कार किया हो तो क्या तब भी तेरी बातों में ऐसी ही कड़वाहट रहेगी? ”

““क्या मतलब है आप का, मां?”

““मतलब साफ है. आलिया का रेप हमारे फ्लैट के पड़ोस में रहने वाले उस 55 साल के बूढ़े ने किया और तब से आलिया किसी के साथ भी सहज नहीं हो पाती और गुमसुम रहती है. तुम्हें समझ नहीं आता वह इतनी चुप क्यों रहती है? अब क्या इस में आलिया का दोष था? क्या हम आलिया को सिर्फ इस बात के लिए छोड़ दें कि वह किसी पुरुष की वहशी मानसिकता का शिकार हो चुकी है?” ”मां लगातार बोलते जा रही थीं. इस समय वे सिर्फ तरुण की मां नहीं थीं बल्कि उन तमाम औरतों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं जो बलात्कार का शिकार होती हैं.

तरुण कोने में खड़ी आलिया की तरफ बढ़ा. आलिया की आंखों से आंसू बह रहे थे. तरुण को आता देख वह झट से कमरे में घुस गई और भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

तरुण कभी रोती हुई मां की तरफ देखता, तो कभी आलिया के कमरे के बंद दरवाजे की तरफ. उस के दिमाग में माधवी का चेहरा घूमने लगा था.

अगले दिन शाम को बैंक से तरुण का फोन आया, ““मां मुझे आने में देर हो जाएगी. आज मैं और माधवी मैरिज प्लानर के पास जा रहे हैं अपनी शादी की तैयारी के लिए.

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स्टफ्ड अरवी

सामग्री

250 ग्राम अरवी, 150 ग्राम प्याज, 1 छोटा चम्मच अजवाइन, 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच धनिया व जीरा पाउडर

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, 2 साबूत लालमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि

अरवी को छील कर अच्छी तरह पानी से धो पोंछ लें. सूखे मसालों और नमक को मिलाएं. प्रत्येक अरवी में चाकू से क्रौस बनाएं और उस में यह मसाला भर दें. ध्यान रहे अरवी नीचे से जुड़ी रहनी चाहिए. प्याज को लंबाई में काट लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के अजवाइन और साबूत लालमिर्च का तड़का लगाएं. इस में प्याज डाल कर 2 मिनट भूनें. फिर अरवी डाल ढक कर गलने तक पकाएं. अरवी गल जाए तो अच्छी तरह भून लें. दम वाली स्टफ्ड अरवी तैयार है.

बनाना स्टफ्ड फ्रैंच टोस्ट

सामग्री अंडे के मिक्स्चर की

1 अंडा द्य  1/2 गिलास दूध द्य  3 बड़े चम्मच चीनी द्य  1 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस.

विधि

एक बड़ा बाउल ले कर उसमें सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाकर फेंटें.

सामग्री कैरामल सौस की

एकचौथाई कप चीनी द्य  1/2 बड़ा चम्मच पानी द्य  1/2 बड़ा चम्मच बटर द्य  एकचौथाई कप क्रीम.

विधि

एक मीडियम भारी तले वाले सौस पैन को मीडियम आंच पर रख कर उसमें चीनी और पानी को डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर बिना मिलाए उसे तब तक पकाएं जब तक मिश्रण सुनहरा न हो जाए. फिर आंच से उतार कर उसमें तुरंत बटर डाल कर अच्छी तरह फेंटें. इसके तुरंत बाद इसमें क्रीम डाल कर तब तक फेंटें जब तक सौस स्मूद न हो जाए. फिर कैरामेल सौस को ठंडा करने के लिए रखें.

अन्य सामग्री

4 ब्रैडपीस द्य  1 केला द्य  2 चीज स्लाइस द्य  2 छोटे चम्मच बटर.

विधि

सबसे पहले 4 ब्रैडस्लाइस लें. फिर 2 स्लाइस पर चीज स्लाइस रखें. अब कटे हुए केले के टुकड़ों को चीज के ऊपर सैट करें. फिर केले के टुकड़ों पर ऊपर से कैरामल सौस डालें. फिर ऊपर से ब्रैड की स्लाइस से कवर करें. 2 स्टफ्ड सैंडविच तैयार हैं. अब सैंडविच को तैयार अंडे के मिक्स्चर में

5 सैकंड डिप करें. अब बड़ा तवा ले कर मीडियम आंच पर बटर को गरम करें. फिर सैंडविच को दोनों तरफ से सुनहरा होने तक पकाएं और तुरंत कैरामल सौस और केले की स्लाइसेज के साथ सर्व करें.

Couple Goals : शादी बाद पार्टनर को क्या बताएं क्या नहीं, यहां जानिए

Couple Goals :  अफयेर होना आजकल काफी आम है. कई लोग तो शादी से पहले ही अपने प्रेम संबंधों को शारीरिक संबंध तक ले कर चले जाते हैं और बाद में कई बार किसी वजह से ऐसे लोगों की शादियां उन के प्रेमी या फिर प्रेमिका से नहीं हो पाती. ऐसे में जो भी पार्टनर उस इंसान को मिलता है, तो क्या उस से अपने पुराने संबंधों के बारे में जिक्र करना चाहिए…

हाल ही में टीसीएस के रिक्रूट मैनेजर मानव शर्मा की आत्महत्या का मामला काफी सुर्खियों में रहा. इस केस में पूरा विवाद ही पत्नी के शादी से पहले का अफयेर था जिस के बारे में निकिता ने खुद अपने पति को यह बात बताई थी. लेकिन पति को यह बरदाश्त नहीं हुआ और वह निकिता से तलाक लेना चाहता था लेकिन वह तलाक देना नहीं चाहती थी. इस के चलते विवाद इतना बढ़ गया कि मानव ने आत्महत्या कर ली.

सिक्के का दूसरा पहलू

इस कहानी का सच क्या है यह तो तफ्तीश में सामने आ ही जाएगा. लेकिन इस से एक सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है कि क्या शादी से पहले के अफयेर के बारे में पार्टनर को सबकुछ बताना चाहिए या नहीं?

इस बारे में सब की अपनी अलगअलग राय हो सकती है. जहां आकाश का इस बारे में कहना है कि यह तो पतिपत्नी के संबंधों और आपस की बौंडिंग पर निर्भर करता है कि क्या और कितना बताया जा सकता है, वहीं सुषमा का कहना है कि कुछ सच छिपाने में ही समझदारी है वरना रिश्ते में विश्वास और प्यार खत्म हो जाता है. बस, ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह की गलतियां दोबारा न हो.

प्रखर का इस बारे में कहना है कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत सचाई और ईमानदारी के साथ होनी चाहिए. जहां तक बात है इस का रिश्ते पर गलत असर पड़ेगा, तो इस बारे में मेरा मानना है कि आजकल यह कोई नई बात नहीं है. हम शादी से पहले भी कई लोगों के साथ रिलेशन में आते हैं और उन्हें परखते हैं कि क्या हम इस बंदे के साथ पूरी लाइफ बिता सकते हैं या नहीं? कई बार हमें अपना वह रिश्ता खत्म करना पड़ता है तो क्या हुआ लेकिन अब शादी के बाद तो हम लौयल हैं.

अफयेर के बारे में बताने के साइड इफैक्ट्स भी हो सकते हैं

शादी से पहले अपने साथी को इस बारे में बता रहे हैं तो सोच लें की पार्टनर जितने प्यार से आप के पहले अफयेर के बारे में पूछ रहा है उतने ही प्यार से वह रिश्ता तोड़ सकता है और शादी से इनकार कर सकता है. इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार हो कर ही अपने अफयेर की बात बताएं.

यदि आप को ऐसा लगता है कि पार्टनर आप के पास्ट लव रिलेशनशिप को ऐक्सेप्ट कर सकता है, तो भी उसे केवल इस का ओवर व्यू दें. डिटेल में कुछ भी बात करने से बचें क्योंकि यह आप के पार्टनर को अनकंफर्टेबल कर सकता है.

अफयेर के बारे में पता चलने पर हो सकता है कि पार्टनर आप से पूछे कि आप का रिश्ता कहां तक पहुंचा था? क्या हाथ भी पकड़ा था? क्या किस भी किया था? या उस से आगे भी कुछ था? अब आप खुद ही सोच लें कि इन बातों का आप क्या जवाब देंगी और वह उसे कितना सच मानेगा.

कहने के लिए तो लोग काफी मौर्डन और खुले विचारों के हो गए हैं, लेकिन जब बात दूसरों को समझने की आती है, तो लोग पहले जजमेंटल ही होते हैं। ऐसे में यदि आप एक लड़की हैं और शादी से पहले लव रिलेशनशिप में रह चुकी हैं, तो हो सकता है कि आप के पास्ट को जानने के बाद आप को कैरेक्टरलैस बोल दिया जाए. इसलिए पार्टनर को यह बात बताने से पहले 100 बार सोचें.

अगर आप लड़के हैं और अपनी पत्नी को यह सब बताने वाले हैं, तो सोच लें कि अगर पत्नी ने आप पर शक करना शुरू कर दिया तो आप अपने दोस्तों तक से मिलने को तरस जाएंगे क्योंकि उसे हमेशा यही शक होगा कि कहीं आप अपनी ऐक्स से दोबारा तो नहीं मिल रही.

जब इस बात के ताने पार्टनर आप को पूरी जिंदगी सुनाएं

कहीं ऐसा न हो कि एक बार अपनी शादी से पहले की गलती बता कर आप हमेशा इस गिल्ट में उन के सामने आएं या फिर वह आप को हर बात में आप की की हुई गलतियां याद दिलाएं. इसलिए ऐसी बात करनी ही क्यों जिस से लाइफ अनकंफर्टेबल हो जाएं.

पुराने अफयेर से शादी बरबाद न हो इस के लिए क्या करें

● अपने अफयेर की हिस्ट्री बताने की जरूरत नहीं.

● शादी से पहले के अफेयर को न बताएं लेकिन अगर वह लड़का कहीं मिल जाए तो आराम से सहज रूप में उस का परिचय करा दें. अपने अफयेर की हिस्ट्री बताने की जरूरत नहीं है. यह खतरनाक भी हो सकता है. यह भी हो सकता है कि वह आप के अफयेर की बात को ऐक्सेप्ट न कर पाएं.

रास्ते में कहीं टकरा जाए प्रेमी तो साथी से मिलवाएं

अगर किसी दिन बहार घूमते हुए प्रेमी कहीं दिख गया तो आप आंखें ना फेरें. उस को बुला लें, बात कराएं. अगर वह शादी में मिला, रैस्टोरेंट में मिला, पार्टी में मिला तो सहज रूप में जैसे कुलीग था ऐसे मिलवाएं. आप खुद को बिलकुल सामान्य बना कर रखें पति के सामने.

प्रेमी की शादी हो जाए तो घर भी बुला सकती हैं

अगर प्रेमी की शादी हो जाए, तो कोशिश करें कि कभीकभी घर पर बुला लें. ऐसा इसलिए करना जरूरी है ताकि कोई तीसरा आदमी पति को यह न कहे कि तुम्हारी बीवी का तो इस के साथ अफयेर था. अगर कहेंगे तो फिर पति कह सकता है कि मैं उसे जानता हूं. वह मेरे घर भी आ चुका है, मैं उस की बीवी को भी जानता हूं. इस से बोलने वाले का मुंह तुरंत बंद हो जाएगा. घर बुला कर इतने अच्छे से और नौर्मल मिलें जैसे कोई नया पड़ोसी आया है.

न कोई पुरानी बात करें, न दोस्तों की चर्चा करें

अगर साथी कही मिल गया है या आप ने घर बुलाया है तो उस से अपने कॉलेज की या फिर पुराने दोस्तों की कोई ज्यादा बात मत करें. आप की भाषा और व्यवहार कंट्रोल हो. उसे लगना चाहिए कि बहुत नौर्मल सा कोई दोस्त है. मिला तो बुला लिया.

सोशल मीडिया पर दिख जाए तो क्या करें

रात गई बात गई लेकिन अगर कहीं वह सोशल मीडिया पर दिख जाए तो कह दे कि यह तो मेरे साथ था. आप उसे ज्यादा छिपाएंगी तो भी अच्छा नहीं है और बैठ कर यह बताना कि मैं एक चीज बताना चाहती हूं कि मेरा अफयेर था, यह कहने पर पति घबरा भी सकता है. फिर पति उस से पूछ भी सकता है कि क्या तुम हाथ पकड़ते थे? किस करते थे? क्या तुम इस से आगे भी जाते थे? वगैरह।

ये सब बेकार की बातें हैं. इन में न पड़ें. लेकिन एक बार आप ने दिखा दिया या मिलवा दिया तो बात खत्म और दोबारा फिर कभी उस से न मिलें.

पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़ें

‘आप कुछ कर भी नही सकते,’ ‘जो गुजर गया वह अतीत है…’ वगैरह बात कर बहुतों की शादीशुदा जिंदगी खराब हो चुकी है. वर्तमान आप के हाथों मे है, उसे बरबाद न होने दें। आप के साथी ने आप को अपना हमसफर अतीत से आगे बढ़ने के बाद ही चुना होगा, इसलिए पुरानी बातों को भूलने में ही फायदा है.

अपने भावी जीवन के विषय में सोचना शुरू कर दीजिए जिस में आप की विवाहित पत्नी भी सहभागी होगी। आप का जो भूतकाल है उसे वर्तमान में न जोड़ें. दोनों को इकट्ठा कर देने में किसी का कोई फायदा नहीं है, बल्कि दोनों की जिंदगी दुखदाई हो जाएगी.

आप का साथी कभी भी यह सोचना नहीं चाहेगा कि जो उस का है उस का किसी अन्य के साथ इस तरह का संबंध हो। उस के दिमाग से कभी भी वह नहीं उतरेगा .

वह हमेशा हर बात में उस के साथ आप की कल्पना कर के दुखी होगा और आप को भी दुख देगा। इस से अच्छा कभी इस बात का सामना भी हो जाए तो मुकरने मे कोई बुराई नहीं है. जिंदगी आप की है, सुख पाने का भी आप को अधिकार है. भूलीबिसरी यादें मत दोहराएं.

अपने जीवन में केवल खुशियों की तलाश कीजिए. जीवन बहुत सुंदर है. उस की सुंदरता में खो जाइए और कड़वे अनुभवों को कभी याद मत करिए.

Uttarakhand Tourist Places : वेकेशन के लिए बैस्ट हैं उत्तराखंड के ये औफबीट डैस्टिनेशंस

Uttarakhand Tourist Places : वैसे तो उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, नैनीताल, मसूरी, हरिद्वार और ऋषिकेश आदि कुछ सब से आम आकर्षण हैं जहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन उत्तराखंड में कुछ ऐसे औफबीट पर्यटन स्थल भी हैं जिन के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. कम एक्सप्लोर होने का कारण यह नहीं कि ये खूबसूरत नहीं हैं. ये जगह भी उतने ही खूबसूरत हैं जितने यहां के दूसरे फेमस प्लेसेस हैं. ज्यादा भीड़ न होने की वजह से यहां आप को बेहद सुकून मिलेगा. चिलचिलाती गरमी और शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर ये स्थल आप के दिल को लुभावने नजारों और सुखद अहसास से भर देंगे. बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं, खूबसूरत झीलें, झरने, घाटियां और हरेभरे जंगल वाले इन अनोखे स्थलों की सैर कर आप का दिल नई ताजगी के साथ खिल उठेगा.

आइए जानते हैं उत्तराखंड के ऐसे ही कुछ औफबीट डैस्टिनेशंस के बारे में:

मुक्तेश्वर

अगर आप उत्तराखंड में कम प्रसिद्ध जगहों या सब से अनोखी जगहों की तलाश में हैं तो मुक्तेश्वर पर विचार करें. यह छोटा पहाड़ी गांव छुट्टियां बिताने के लिए आदर्श है. उत्तराखण्ड की जमीं पर बसा यह डैस्टिनेशन घास के मैदानों, झरनों और फलों के बागों का परफैक्ट कौम्बिनेशन है. जिम कॉर्बेट जो एक ब्रिटिश लेखक थे उन्होंने अपनी बुक ‘द मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ को यहीं पर रह कर लिखा था. दिल्ली से यहां पहुचने में सिर्फ 5-7 घंटे का समय लगता है.

पेओरा

अल्मोड़ा और नैनीताल के बीच स्थित पेओरा एक शानदार स्थान है और उत्तराखंड के कम औफबीट डैस्टिनेशंस में से एक है. करीब 6,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र अपने राजसी कुमाऊं हिमालय पर्वतमाला के जंगलों और विशाल सेब और बेर के बागों के लिए जाना जाता है. यह छोटा सा गांव हिमाचल में एक औफबीट पर्यटन स्थल है जो आप को सुकून और ताजगी से भर देता है.

खिर्सू

खिर्सू उन लोगों के लिए एक बेहतरीन जगह है जो सुंदरता और मन की शांति चाहते हैं. हरेभरे ओक और देवदार के जंगल और सेब के बागों से घिरा यह प्यारा सा गांव गढ़वाल हिमालय में बसे उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से अच्छी जगहों में से एक है. पौड़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खिर्सू हाइकर्स, बैकपैकर्स और स्वतंत्र यात्रियों के लिए स्वर्ग है. यह जून के महीने में उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से अच्छी जगहों में से एक है.

मुनस्यारी

मुनस्यारी एक शानदार पहाड़ी रिट्रीट और उत्तराखंड के बेहतरीन औफबीट स्थानों में से एक है जो ट्रेकर्स और एडवेंचर प्रेमियों के बीच प्रसिद्ध है. हरेभरे पहाड़ों और जंगलों से घिरा इस स्थान का स्वच्छ और शांत वातावरण उत्तराखंड के अन्य सभी स्थानों से बेहतर है.

कनाताल

चंबामसूरी मार्ग के मध्य में स्थित कनाताल उत्तराखंड के सब से बेहतरीन औफबीट स्थलों में से एक है जो लुभावने दृश्यों और एडवेंचर के लिए प्रसिद्ध है. इसलिए जो लोग प्रकृति में कुछ शांतसमय बिताना चाहते हैं या कैंपिंग, ट्रैकिंग, रैपलिंग, रौक क्लाइम्बिंग और वैली क्रौसिंग जैसे कुछ रोमांचकारी गतिविधियों का आनंद लेना चाहते हैं उन के लिए कनाताल एक बेहतरीन विकल्प है.

चकराता

उत्तराखंड की सब से शांत और अनोखी जगहों में से एक चकराता मनमोहक दृश्य और शांति का एहसास प्रदान करता है. उत्तराखंड का यह औफबीट हिल स्टेशन हाइकिंग, राफ्टिंग, स्कीइंग और गुफा यात्राओं के लिए लोकप्रिय है. यह करीब 7,000 फीट की ऊंचाई पर यमुना घाटी के ऊपर स्थित है. इस सुंदर गांव में घने पेड़ हैं.

चौकोरी

उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से बेहतरीन औफबीट जगहों में से एक चौकोरी अपने सुगंधित चाय के बागानों, हरेभरे देवदार और अल्पाइन जंगलों और फलों के बागों के लिए जाना जाता है. चौखंबा, नंदा देवी, त्रिशूल और पंचचूली चोटियों की सुरम्य पृष्ठभूमि के साथ, चौकोरी उत्तराखंड में घूमने के लिए एक अनोखी जगह है जो अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करती है.

पिथौरागढ़ जिले में स्थित चौकोरी उत्तराखंड राज्य में पश्चिमी हिमालय शृंखला को सुशोभित करता है. यहां आप को कस्तूरी उद्यान वृक्ष भी देखने को मिल जाएंगे. 160 फीट की ऊंचाई वाला चिन?ारना गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक कैम्पिंग स्पौट है.

चोपता

चोपता में आप को हरेभरे जंगल, दूरदूर तक फैले घास के मैदान, घाटियां और बर्फ से ढके पहाड़ देखने को मिलते हैं. चंद्रशिला और तुंगनाथ जैसे ट्रेकिंग स्थलों के रास्ते में यह एक लोकप्रिय पड़ाव है. चोपता उत्तराखंड में उन लोगों के लिए सब से औफबीट जगहों में से एक है जो कम प्रसिद्ध हाइकिंग ट्रैक की तलाश में हैं. चोपता से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रा गुफाभी घूमने के लिए एक खूबसूरत जगह है. आप यहां प्रमुख आकर्षण कंचुला कोरक और कस्तूरी मृग अभयारण्य को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं. मुख्य देहरादून रेलवे स्टेशन और हवाईअड्डा चोपता घाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर हैं. इसलिए आप रेलवे स्टेशन या हवाईअड्डे से टैक्सी लेकर आसानी से चोपता पहुंच सकते हैं. चोपता उत्तराखंड की सब से शांत और औफबीट जगहों में से एक है.

खाती गांव

उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र में स्थित खाती गांव सब से बेहतरीन औफबीट आकर्षणों में से एक है. पिंडारा नदी के तट पर स्थित यह प्राचीन और सुंदर शहर हरेभरे ओक और रोडोडेंड्रोन के पेड़ों से घिरा हुआ है. यह पिंडारी ग्लेशियर से पहले का अंतिम आबादी वाला क्षेत्र है इसलिए इस का व्यवसायीकरण नहीं किया गया है.

कौसानी

उत्तराखंड में कौसानी घूमने के लिए सब से शांत और औफबीट जगहों में से एक है जो शहर की हलचल से दूर है. नंदा देवी और पंचचूली जैसे बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के विस्तृत मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र में यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, फोटोग्राफरों, ट्रेकर्स, यात्रियों और हनीमून मनाने वालों के लिए परफैक्ट है. अगर आप सर्दियों में शानदार बर्फबारी देखना चाहते हैं तो कौसानी के आकर्षण से बढ़ कर कुछ नहीं है. कौसानी घूमने का सब से अच्छा समय गरमियों के महीनों के दौरान होता है जब मौसम सुहावना होता है. अगर आप बर्फबारी देखना चाहते हैं तो सर्दियों का मौसम भी एक बढि़या समय है. उत्तराखंड में कई एडवेंचर स्पोर्ट्स हैं जिन का आप लुत्फ उठा सकते हैं. रौक क्लाइम्बिंग, रैपलिंग, ट्रैकिंग, कैंपिंग और माउंटेनबाइकिंग जैसी लोकप्रिय गतिविधियों का यहां आनंद लिया जा सकता है.

एबौट माउंट

एबौट माउंट फोटोग्राफरों के लिए स्वर्ग है. यहां घने पर्णपाती जंगल हैं जो पिथौरागढ़ क्षेत्र की सुरम्य सुंदरता में योगदान देते हैं. यह स्थान उत्तराखंड में घूमने के लिए औफबीट स्थानों की सूची में सब से ऊपर है क्योंकि यह पक्षियों को देखने और आरामदेह छुट्टी के लिए आदर्श है.

धारचूला

बर्फ से ढके पहाड़ों, सुंदर घाटियों और जंगलों से घिरा धारचूला उत्तराखंड के कम प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है. कैलाश, मानस सरोवर और छोटा कैलाश मार्गों पर स्थित यह छोटा सा पहाड़ीइलाका ट्रैकिंग के लिए बेहतरीन है और कुमाऊंनी और शौना जनजाति के लोगों का घर है. काली नदी के तट पर बसा यह स्थान असाधारण सुंदरता और शांति से आप को चकित और मोहित करदेगा. धारचूला से पंचचूली चोटी का अद्भुत नजारा सभी यात्रियों को आकर्षित और प्रसन्न करता है.

रानीखेत

रानीखेत उत्तराखंड के कम प्रसिद्ध स्थलों में से एक है क्योंकि यहां बहुत कम पर्यटक आते हैं. नतीजतन आप के पास इस स्थान की सुंदरता को निर्बाध रूप से अनुभव करने का एक शानदार अवसर है. रानीखेत हिमालय के शानदार दृश्य, फूलों से लदे खुबानी के बगीचे और सुहावने मौसम के लिए जाना जाता है.

एस्कोट

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले का यह डैस्टिनेशन डेफिनेटली आप का मन जीत लेगी. पहले एस्कोट को 80 किलोग्राम का गढ़ कहा जाता था. यह उत्तराखण्ड का एक सीक्रेट हिल स्टेशन है. यहां की ‘मस्क डियर सैंक्चुरी’ बहुत फेमस है. एस्कोट के पहाड़ों पर ?ामते बादल और फ्रेश एटमौस्फियर आप को पूरी तरह तरोताजा कर देंगे.

लैंसडाउन

लैंसडाउन भारत की राजधानी दिल्ली से केवल 275 किलोमीटर दूर है. अपने इस सफर को आप मात्र 6 घंटे में पूरा कर सकते हैं. कहा जाता है कि पहले इस जगह का नाम कालू डांडा था लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी लौर्ड लैंसडाउन के नाम पर इस जगह का नाम बदल कर लैंसडाउन कर दिया गया. आज लैंसडाउन इंडियन आर्मी की गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय है. लैंसडाउन हरियाली के बीच यहां के खूबसूरत बदलों और मौसम के लिए फेमस है.

लोहाघाट

उत्तराखंड के सीक्रेट डैस्टिनेशन में से एक है लोहाघाट जहां आप को एकदम शांत माहौल ऐंजौय करने को मिलता है. अगर आप भीड़ से दूर वाली शांति ऐंजौय करना चाहते हैं तो यह आप के लिए अच्छा औप्शन हो सकता है. ‘कोलीढेक’ लेक यहां का फेमस टूरिस्ट अट्रैक्शन है.

धनौल्टी

धनौल्टी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में काफी ऊंचाई पर बसा हुआ एक हिल स्टेशन है. अगर आप ऐसी जगह ढूंढ़ रहे हैं जहां लोगों की कम भीड़भाड़ हो तो जून की छुट्टियों में धनौल्टी घूमने का प्लान बना सकते हैं. धनौल्टी घने जंगलों, पहाड़ों, नदी, ?ारनों से लेस हिल स्टेशल है. यहां आने वाले लोगों का कहना है कि यहां आ कर एक अलग ही शांति का अनुभव होता है. यहां आप को ईको पार्क से ले कर पौटेटो गार्डन तक देखने को मिलेगा. धनौल्टी घूमने के लिए बैस्ट मौसम दिसंबर से जून के बीच का माना जाता है.

नौकूचियाताल

यह एक खूबसूरत जगह है जो नैनीताल से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. नौकुचियाताल एक शांत जगह है जो उन लोगों के लिए बहुत बढि़या है जो प्रकृति के बीच कुछ समय बिताना चाहते हैं. यहां का एक प्रमुख आकर्षण खूबसूरत नौकुचियाताल ?ाल है. इस ?ाल की सब से खास बात यह है कि इस में 9 कोने हैं. एक पर्यटक के तौर पर आप ?ाल के पास स्थित ‘टूरिस्टरेस्ट हाउस’ में ठहर सकते हैं. ?ाल के पास रहना वाकई शांतिपूर्ण अनुभव है और शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर रहने वाले लोगों के लिए यह एक बेहतरीन अनुभव है. आप नौकुचैताल ?ाल के पास कई तरह के खानेपीने के साथ कई कैफे और रेस्तरां का मजा ले सकते हैं. ?ाल में बोटिंग गतिविधियां भी उपलब्ध हैं.

भीमताल

भीमताल उत्तराखंड न तो बहुत भीड़भाड़ वाला है और न ही बहुत सुनसान. यह उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से खूबसूरत जगहों में से एक है. भीमताल के प्रमुख आकर्षणों में से एक खूबसूरत भीमताल ?ाल है जो पूरे भारत से कई पर्यटकों को आकर्षित करती है. भीमताल नैनीताल और काठगोदाम के बीच स्थित है. यह अकेले यात्रा करने वालों और बैकपैकर्स के बीच एक पसंदीदाजगह है. कई जोड़े अपना हनीमून बिताने के लिए भी यहां आते हैं. इस की वजह यहां की खूबसूरती और प्राकृतिक वातावरण है.

Social Media : सोशल मीडिया पर क्या देखें क्या सुनें, कौन तय करेगा ?

Social Media : सोशल मीडिया पर इन दिनों यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को ले कर जबरदस्त बहस चल रही है. लोगों में उन के बयान को ले कर काफी आक्रोश है. उन्हें ले कर ट्रोलिंग रुकने का नाम नहीं ले रही है. रणवीर ने इस शो में एक प्रतिभागी से मातापिता के निजी संबंधों को ले कर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिस में समय रैना और अपूर्वा माखीजा ने भी उन का साथ दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए रणवीर ने इस बात के लिए माफी मांग ली और कहा कि मेरा कमैंट सही नहीं था और फनी भी नहीं था. कौमेडी मेरी विशेषज्ञता नहीं है. मैं इस का कोई स्पष्टीकरण नहीं दूंगा. मैं बस माफी मांगना चाहता हूं.

रणवीर के इस बयान पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि फ्रीडम औफ स्पीच सभी को है लेकिन हमारी आजादी वहां समाप्त हो जाती है जहां हम किसी और की आजादी का अतिक्रमण करते हैं. सब से बड़ी बात यह कि इस कंटैंट को एडल्ट भी नहीं बताया गया है, इसे बच्चे भी आसानी से देख सकते हैं जो सही नहीं है.

वहीं शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने चेतावनी देते हुए कहा कि वे ‘इंडियाज गाट लेटैंट’ शो को आईटी और कम्युनिकेशन से जुड़ी संसद की स्थाई समिति के सामने ले जाएंगी. उन्होंने लिखा कि कौमेडी के नाम पर जिस तरह के अपशब्द और अश्लील बातें की जाती हैं, इस के लिए हमें एक हद तय करनी होगी क्योंकि ऐसे शो युवाओं के दिमाग को प्रभावित करते हैं और ऐसे शो पूरी तरह से बकवास कंटैंट मुहैया कराते हैं.

कम उम्र में कामयाबी

बता दें कि रणवीर इलाहाबादिया एक यूट्यूबर हैं और वे ‘बीयरबाइसैप्स’ के नाम से यह शो करते हैं. इस शो में वे देश की कई नामचीन हस्तियों का इंटरव्यू कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2024 में नैशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. 2022 में उन्हें फोबर्स अंडर 30 एशिया सूची में शामिल किया था. रणवीर ने 22 साल की उम्र में अपना पहला यूट्यूब चैनल खोला था और आज वे 7 चैनलों का संचालन कर रहे हैं. इन के 1 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर हैं.

कौमेडियन कपिल शर्मा का भी एक पुराना वीडियो 2023 का वायरल हो रहा है, जिस में सैलिब्रिटी और क्रिकेट के कई सितारे गैस्ट के रूप में पहुंचे थे. ऐपिसोड की शुरुआत में कपिल शर्मा ने मजाकिया अंदाज में कहा था कि हमारे देश में 2 चीजों का बड़ा क्रेज है- एक फिल्में और दूसरा क्रिकेट. कई बच्चे सुबह 4 बजे पढ़ाई के लिए भले न उठ पाएं लेकिन क्रिकेट मैच देखने के लिए 2 बजे रात को उठ जाते हैं और फिर मांबाप की कबड्डी देख कर सो जाते हैं.

यह कौन तय करता है

हम जब किसी रैस्टोरैंट या होटल में खाना खाने जाते हैं तब हमें एक मेन्यू दिया जाता है और उसे देख कर हम तय करते हैं कि हमें अपने खाने में क्या और्डर करना है. किसी की कोई जबरदस्ती नहीं होती कि हमें यही खाना है. वैसे ही टैलीविजन का रिमोट कंट्रोल और स्मार्टफोन हमारे हाथ में होता है. हमें क्या देखना है, क्या नहीं देखना है, यह तय करने का अधिकार केवल हमारे पास होना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी पसंद, रुचि और सोचनेसम?ाने की क्षमता अलग होती है. एक स्वतंत्र समाज में लोगों को यह तय करने की पूरी आजादी है कि वे क्या देखे और क्या सुनें.

हालांकि कुछ सीमाएं भी होती हैं जैसेकि अगर कोई चीज हिंसा भड़काने वाली हो, नफरत फैलाने वाली हो या समाज में अराजकता उत्पन्न करने वाला हो तो वहां सरकार या समाज की जिम्मेदारी बनती है इसे रोकने की. लेकिन इस का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सरकार या समाज व्यक्ति की पसंद पर पूरी तरह से नियंत्रण कर ले. सरकार का काम केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई सामग्री कानून और नैतिकता की सीमाओं को न लांघे न कि यह तय करना है कि लोग क्या देखें और क्या सुनें.

नया नहीं है कौमेडी में अश्लीलता का तरीका

यह बात सही है कि रणवीर इलाहाबादिया ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दीं लेकिन कौमेडी शो में अश्लीलता का तरीका कोई नई बात नहीं है. यहां तक कि लोगों को यह मनोरंजक ही लगता है, साइकोलौजी में इसे खास जगह मिली हुई है. मनोविज्ञान की एक टर्म है, रिलीज या रिलीफ थ्योरी. इस में लोग वे बातें करते हैं, जिन्हें करना या सुनना आमतौर पर वर्जित है. जाहिर है टैबू सब्जैक्ट पर बात यों ही तो नहीं होगी. लिहाजा, इसे कौमेडी की परत में लपेट कर परोसा और सुना जाता है खासकर स्टैंडअप या मौडर्न कौमेडी में.

कौमेडी में अश्लील कंटैंट का घालमेल मनोविज्ञान में भी स्वीकार्य है. इस के लिए कई सारी टर्म्स हैं जो मानती हैं कि रिस्ट्रिक्टेड बातों पर मजाक के बहाने चर्चा होनी चाहिए. इसे टैबू ह्यूमर भी कहते हैं.

जरूरी है हंसना और हंसाना

रिलीज थ्योरी की बात सब से पहले मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने 1905 में की थी. अपनी किताब ‘जोक्स ऐंड देयर रिलेशन टू द अनकौंशस’ में फ्रायड ने लिखा है कि हंसने से ब्रेन में जमती साइकिक ऐनर्जी बाहर निकलती है. अकसर हमारे दिमाग में कई ऐसी चीजें जमा रहती हैं, जिन पर चर्चा को सामाजिक तौर पर गलत माना जाता है. लेकिन कौमेडी के बहाने हम उस पर मजाक करते और सुनते हैं, जिस से दोनों ही पक्षों का तनाव कम हो जाता है और दिमाग काफी हलकाफुलका महसूस करता है.

यह वर्जित विषय यौन संबंध या भावनाओं से ले कर समाज की गैरबराबरी तक कुछ भी हो सकता है. लेकिन नैतिक पाबंदियों के चलते हम इन पर बात नहीं कर पाते बल्कि सोच का ढक्कन लगा कर रखते हैं. वहीं कौमेडी में यह कैप हटा दिया जाता है. चूंकि यह सीधे अचेतन मन को आराम देता है, यही वजह है कि सैक्सुअल या डार्क ह्यूमर को बेहद असरदार पाया जाता रहा है.

क्या कहती है साइंस

साइंस कहती है कि जब हम किसी सैक्सुअल जोक पर हंसते हैं तो ब्रेन में डोपामिन, ऐंडोर्फिंस और औक्सिटोसिन जैसे हारमोन निकलते हैं. ये फील गुड हारमोंस हैं जो स्ट्रैस कम करते हैं. इन के अलावा इन से मस्तिष्क के फ्रीफ्रंटल कौंटैक्स में हलचल होती है जो सीधे रिवोर्ड सिस्टम से जुड़ा है. 2017 में मनोवैज्ञानिक ‘जर्नल इवौल्युशनरी साइकोलौजी’ में एक रिसर्च छपी थी, जिस के मुताबिक डार्क ह्यूमर लोगों को एकदूसरे के करीब भी लाता है.

कुल मिला कर इस तरह की कौमेडी एक तरह की सेफ बगावत है जिस में प्रतिबंधित चीजों पर बात भी हो जाए और हमारी छवि पर भी कोई असर न पड़े.

यही वजह है कि दशकों से इस तरह की कौमेडी होती रही है. देश के कई हिस्सों में आज भी महिलाएं शादीब्याह में ऐसे गीत गाती हैं जो आमतौर पर काफी अश्लील माने जाते हैं. लेकिन उस माहौल में और गीतसंगीत की शक्ल में बेहद मजेदार लगते हैं. इस में शौक वैल्यू भी होती है जो एकदम से सामने आ कर चौंकाती और हंसाती है.

कब मिलने लगी ऐसे कंटैंट को मान्यता

70 के दशक में कौमेडी की शुरुआत अमेरिका में हुई लेकिन तब मजाक इतने बोल्ड नहीं हुआ करते थे बल्कि पारिवारिक ह्यूमर के बीच कहींकहीं थोड़ीबहुत अश्लीलता का तरीका होता था. 90 के दशक में ऐसा ह्यूमर पूरी तरह से मेन स्ट्रीम हो गया. ओटीटी के दौर में नो फिल्टर कौमेडी आने लगी जो काफी बोल्ड होती थी और लोगों को पचा पाना मुश्किल था. यही समय था जब हमारे यहां भी स्टैंडअप कौमेडी के चलन के साथ मजाकमस्ती होने लगी. लेकिन आज पेटी के नीचे और मांबाप के संबंधों पर मजाक होने लगा है.

रणवीर इलाहाबादिया की आपत्तिजनक टिप्पणी पर जहां कई लोगों ने इसे काफी शर्मनाक बताया, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस से ज्यादा आपत्तिजनक चीजें तो ओटीटी पर दिखाई जाती हैं.

पहले भी विवादों में रहा यह शो

‘इंडियाज गौट लेटैंट’ शो पहली बार विवादों में नहीं आया है. इस से पहले भी कई आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए यह विवादों में रह चुका है. इसी शो में अरुणाचल प्रदेश के लोगों के कुत्ते का मांस खाने के बारे में टिप्पणी की गई थी. इस के अलावा दीपिका पादुकोण की प्रैगनैंसी और डिप्रैशन का मजाक बनाया गया था.

2021 में रणवीर महिलाओं के कपड़ों पर सैक्सीएस्ट कमैंट करने की वजह से सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल हुए थे. हम क्या देखें और क्या सुनें यह केवल हम तय कर सकते हैं और कोई नहीं.

Relationship Tips : घरवाले किसी ओर से मेरी शादी करना चाहते हैं, लेकिन मेरा प्यार कोई और है?

Relationship Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती एक युवक से प्यार करती हूं, लेकिन पिछले महीने मेरे घर वालों ने मेरी सगाई एक अन्य युवक से कर दी जो अच्छाखासा सैटल है. मैं ने मां से कहा भी पर वे नहीं मानीं, कारण था मेरे बौयफ्रैंड का सैटल न होना. बौयफ्रैंड से मेरे शारीरिक संबंध भी हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

जवाब

जब आप किसी से प्यार करती हैं तो उस से शादी के लिए भी पहले से घर में बता कर रखना चाहिए था, साथ ही आप के बौयफ्रैंड को भी चाहिए था कि वह जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा हो ताकि आप का हाथ मांग सके, तिस पर आप इतनी आगे बढ़ गईं कि शारीरिक संबंध भी बना लिए.

‘खैर, जब प्यार किया तो डरना क्या.’ आप के सामने लक्ष्य है उसे भेदिए. सब से पहले अपने बौयफ्रैंड से सैट होने को कहिए, हो सके तो उस की मदद कीजिए. आप भी अपनी कोशिश कर  कोई जौब इत्यादि कीजिए, इस से आप घर में बता सकती हैं कि हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी चला लेंगे. मातापिता लड़की के सुरक्षित भविष्य को ले कर आश्वस्त होंगे तो अवश्य मान जाएंगे आप के रिश्ते को.

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शादी से पहले शारीरिक संबंध में बरतें सावधानी

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं. विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Famous Hindi Stories : सत्यमेव जयते – त्रिपाठी जी कैसे वकील थे

Famous Hindi Stories : एकाएक मुझे अपने शरीर में ढेरों कांच के पैने टुकड़ों की चुभन की पीड़ा महसूस हुई. लड़कों ने क्या पड़ोसी धर्म निभाया है. मेरे मुंह से हठात निकला, ‘‘लगता है क्रिकेटर लक्ष्मण बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है.’’

तभी पड़ोसी ने सांत्वना दी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप कार में नहीं बैठे थे. अब छोडि़ए, अड़ोसपड़ोस के बच्चे हैं. उन्हें हम लोग प्रोत्साहन नहीं देंगे तो कौन देगा और बच्चे खेलें भी तो कहां खेलें.’’

प्रोत्साहन? मैं खून का घूंट पी कर रह गया और सोचा, जब तक अपने पर नहीं बीतती, स्थिति की गंभीरता का अनुभव नहीं होता, दूसरे की चुभन का एहसास नहीं होता.

‘‘गाड़ी का दुर्घटना बीमा है न?’’

‘बीमा,’ यह शब्द सुनते ही मुझे अचानक डूबते को तिनके का सहारा जैसा एहसास हुआ.

‘‘हां है. 5 साल से है. अभी एक सप्ताह पहले ही पालिसी का नवीनीकरण कराया है.’’

‘‘फिर क्या चिंता है?’’

क्या चिंता है, सुन कर मैं चौंका. पैसा किसी का भी जाए, नुकसान तो नुकसान है और कोई भी नुकसान चिंता का विषय होना ही चाहिए.

देखते ही देखते अड़ोसपड़ोस के बच्चे मेरे आसपास जमा हो गए.

‘‘क्या हुआ अंकल?’’

‘‘ओह शिट.’’

बच्चे मेरे मुंह से निकले शब्दों की अनसुनी कर बोले, ‘‘आप एक किनारे हो जाइए अंकल, हम कांच साफ कर देते हैं. आप ऐसे में बैठेंगे कैसे?’’

आननफानन में बच्चों ने कांच के टुकड़े साफ कर दिए. शायद वे प्रायश्चित्त कर रहे थे या फिर अपने अच्छा नागरिक होने का परिचय दे रहे थे.

लगभग 10 बज रहा था. सोचा, बीमा कंपनी का आफिस खुल गया होगा, वहां चल कर दुर्घटना की सूचना दे दूं. उन्हें दुर्घटना हुई कार को देखने का अवसर भी मिल जाएगा. यदि बिना दिखाए ‘विंड स्क्रीन’ बदलवा लूंगा तो वह विश्वास नहीं करेंगे. फिर कुछ कागजी काररवाई भी करनी होगी.

आफिस खुल चुका था पर संबंधित अधिकारी नहीं आया था. वहां अधिकारी के इंतजार में मैं साढ़े 12 बजे तक बैठा रहा. वह आया, आते ही कुछ फाइलों में खो गया और 15-20 मिनट तक खोया ही रहा.

फिर मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘कहिए, आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

मैंने अपनी समस्या उसे बताते हुए कहा, ‘‘मैं दुर्घटनाग्रस्त कार लाया हूं. आप देख लीजिए…’’

‘‘कार देखने का काम तो सर्वेयर करता है,’’ वह अधिकारी बोला, ‘‘वह अभीअभी कहीं सर्वे करने निकल गया है. वैसे मैं भी देख सकता हूं किंतु गाड़ी को सीधे देखने का नियम नहीं है. ऐसा कीजिए, किसी गैराज से खर्चे का एस्टीमेट (अनुमान) ले कर आइए. उस के बाद ही हम कार देखेंगे.’’

मेरी समझ में नहीं आया कि एस्टीमेट जब गैराज वाला देगा तो सर्वेयर क्या देखेगा? और एस्टीमेट से पहले कार देखने व उस का फोटो लेने में क्या हर्ज है.

‘‘देखिए, टूटे हुए विंड स्क्रीन के साथ गाड़ी चलाना खासा मुश्किल होता है ऐसे में आप कह रहे हैं कि पहले गाड़ी ले कर मैं गैराज जाऊं फिर वहां से एस्टीमेट ले कर आप के पास आऊं.’’ मैं ने उस अधिकारी को समझाने का प्रयास किया.

‘‘क्या किया जाए. नियमों से हम सब बंधे हैं. ‘क्लेम’ लेना है तो कष्ट तो उठाना ही होगा. घर बैठेबैठे तो क्लेम मिलने से रहा.’’

‘‘यह तो मैं भी देख रहा हूं कि आप के नियम दौड़ाने के नियम हैं. अगले को इतना दौड़ाया जाए, इतना दौड़ाया जाए कि वह ‘क्लेम’ के विचार से ही तौबा कर ले. जो हो आप रिपोर्ट तो लिख लीजिए.’’

‘‘जी हां. आप फार्म भर दीजिए.’’

फार्म भर कर मैं गैराज गया. फिर अगले दिन एस्टीमेट बना. चूंकि उस दिन शनिवार था इसलिए बीमा कंपनी का आफिस बंद था. बात सोमवार तक टल गई.

सोमवार का दिन आया. वह महाशय भी ड्यूटी पर आए थे किंतु कैमरा खराब हो गया. मंगल को कैमरा ठीक हुआ. कार का फोटोग्राफ खींचा गया किंतु आपत्ति के साथ.

‘‘आप ने टूटा हुआ कांच तो साफ कर दिया. फोटो में अब टूटा हुआ कांच कैसे आएगा?’’ अधिकारी ने कहा.

‘‘टूटे कांच के साथ कोई कार कैसे चला सकता है?’’ मैं ने उन्हें समझाने का प्रयास किया.

‘‘आप अपनी परेशानी बता रहे हैं पर मेरी परेशानी नहीं समझ रहे?’’ अधिकारी बोला, ‘‘फोटो में टूटा हुआ विंड स्क्रीन दिखना जरूरी है अन्यथा विंड स्क्रीन निकलवा कर कोई भी डैमेज क्लेम कर सकता है.’’

‘‘देखिए, अब आप हद से बाहर जा रहे हैं. पहले दिन जब मैं कार में आया था तो विंड स्क्रीन टूटा हुआ था किंतु तब आप ने विंड स्क्रीन देखा नहीं और अब…’’

मेरी बात को बीच में काट कर अधिकारी बोला, ‘‘मेरे देखने से कुछ नहीं होगा. टूटा हुआ विंड स्क्रीन कैमरे को दिखना चाहिए. इस के बिना आप का केस थोड़ा कमजोर पड़ जाएगा. खैर चलिए, आवश्यक फार्म भर दीजिए. कार को रिपेयर करा कर बिल आफिस में जमा कर दीजिए.’’

मैं आफिस से बाहर आया और गैराज में जा कर विंड स्क्रीन लगवाया. लगभग एक सप्ताह बाद कार चलाने लायक हुई थी अन्यथा बिना विंड स्क्रीन की कार लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. लोग समझ रहे थे कि मैं बिना ‘विंड स्क्रीन’ के कार चलाने का रेकार्ड बनाने की कोेशिश कर रहा हूं.

मैं किसकिस के आगे रोना रोता और किसकिस को समझाता कि जब तक बीमा कंपनी वाले फोटो नहीं खींच लेते तब तक नया विंड स्क्रीन लगवाना संभव नहीं है. यदि कोई रेकार्ड स्थापित कर रहा है तो वह है बीमा कंपनी. ‘क्लेम’ के भुगतान में अधिकतम रुकावट एवं देरी का रेकार्ड.

मैं ने समझा कि अब क्लेम मिल जाएगा. बीमा कंपनी की सभी शर्तें पूरी हो गई हैं किंतु मुझे यह पता नहीं था कि ये शर्तें तो द्रौपदी का न खत्म होने वाला चीर हैं.

‘‘एक समस्या है,’’ अधिकारी ने धीमे स्वर में कहा.

मैं चौंक गया कि अब क्या हुआ.

‘‘पालिसी के नवीनीकरण के एक सप्ताह के भीतर दुर्घटना हो गई है. पुरानी पालिसी के समाप्त होने एवं नई पालिसी जारी होने के बीच एक दिन का अंतर है.’’

‘‘किंतु आप का एजेंट तो मुझ से एक सप्ताह पहले ही चैक ले गया था. आप चैक की तारीख देख सकते हैं. फिर यह पालिसी 5 सालों से लगातार चल रही है.’’

‘‘मैं आप की बात समझ रहा हूं. यह इनसानी शरीर का मामला है. वह एजेंट बीमार पड़ गया. खैर, जो भी हो, यह भुगतान का सीधा सपाट मामला नहीं है. इस पर जांच होगी. आप को जो कुछ कहना है जांच अधिकारी से कहिएगा,’’ उस ने अपना रुख साफ किया.

झुंझलाहट का करेंट मेरे शरीर में ऊपर से नीचे तक दौड़ गया. बीमा कंपनी का यह चेहरा पालिसी देते समय के आत्मीय चेहरे से एकदम अलग था. इच्छा हो रही थी कि यह 3 हजार की धन राशि मैं इस करोड़पति बीमा कंपनी को दान में दे दूं.

मुझे लगा कि इस चेहरे को और झेल पाना मेरे लिए संभव नहीं. दोनों की भलाई इसी में है कि एकदूसरे की नजरों से दूर हो जाएं, अभी, इसी वक्त.

मैं तेजी से आफिस से बाहर आया.

सर्विस इंडस्ट्री, हुंह, नहीं चाहिए ऐसी सर्विस. सर्विस ‘फील गुड.’ एक दिन बीता, एक सप्ताह गुजरा, एक महीना बीता, 2 महीने बीते.

फोन की घंटी बजती है.

‘‘आप के क्लेम के मामले में मुझे बीमा कंपनी ने जांच अधिकारी नियुक्त किया है. मैं एडवोकेट त्रिपाठी हूं. सचाई की तह में जाना अपने जीवन का लक्ष्य है. ‘सत्यमेव जयते’ अपना धर्म है. आप मुझ से मिलें.’’

अगले दिन काले कोट में त्रिपाठीजी सामने थे.

‘‘आप जो घटना है सचसच बताएं और निसंकोच बताएं.’’

मैं ने फिर टेप रेकार्ड की तरह घटनाक्रम को दोहरा दिया.

‘‘इस में नया क्या है? यह तो आप ने रिपोर्ट में लिखा है. मुझे सचाई का पता लगाने के लिए तैनात किया गया है.’’

‘‘रिपोर्ट का एकएक शब्द सच है. आप अड़ोसपड़ोस से पूछ सकते हैं,’’ मैं ने उन्हें समझाने का प्रयास किया.

‘‘मैं ने सचाई का पता लगा लिया है. आप शायद सचाई मेरे मुंह से सुनना चाहते हैं. हजरत, मेरी निगाहों में कोने वाले मकान के हैं, मुझ से बच के जाएंगे कहां ,’’ त्रिपाठीजी के स्वर में तीखा व्यंग्य था.

मैं ने त्रिपाठीजी का चेहरा ध्यान से देखा. वह एक वकील की भूमिका बखूबी निभा रहे थे. वह सच के सिवा और कुछ कहने वाले नहीं थे.

‘‘आप सच सुनना चाहते हैं न?’’ त्रिपाठीजी तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘सच तो यह है कि आप कार चला ही नहीं रहे थे. कार आप का लड़का चला रहा था जिस का ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं है. ऊपर से वह शराब पीए था. उसे आगे जाता ट्रक नहीं दिखा जो लोहे की छड़ों को ले कर जा रहा था. छड़ें बाहर झूल रही थीं. गनीमत समझिए कि दुर्घटना विंड स्क्रीन तक सीमित रह गई अन्यथा लोहे की छड़ें सीने के पार हो जातीं. कार की किसे चिंता है, चिंता करने के लिए, माथा पकड़ने के लिए बीमा कंपनी तो है ही. लेकिन आखिरी सांस तक मैं बीमा कंपनी के साथ हूं.’’

मैं ठगा सा त्रिपाठीजी का सच सुन रहा था. उन की गंभीर छानबीन का नतीजा सुन रहा था. कहने को कुछ था भी नहीं. हां, जांच अधिकारी की यह भूमिका नए तर्ज की जरूर थी.

‘‘बोलती बंद हो गई न. अच्छाई इसी में है कि आप यह मामला वापस ले लें. नहीं तो मैं सचाई को अदालत में उजागर करूंगा और ट्रक के खलासी को गवाह के रूप में पेश करूंगा.’’

मैं ने अपने गुस्से को काबू में रखने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘त्रिपाठीजी यह मामला वापस नहीं होगा. अब परिणाम चाहे जो हो.’’

‘‘देखिए, मैं आप को फिर समझा रहा हूं. आप शायद कोर्ट में जाने का अर्थ नहीं समझ रहे. ढाई हजार तो आप को नहीं मिलेंगे ऊपर से 4-5 हजार खर्च हो जाएंगे. आगे आप समझदार हैं. समझदार को इशारा काफी होता है,’’ त्रिपाठीजी ने उठते हुए कहा.

पत्नी भी उन की बातें सुन कर घबरा गईं.

‘‘जाने भी दीजिए, झूठ ही सही. अदालत में लड़के का नाम आएगा, उस पर शराब पी कर गाड़ी चलाने का आरोप लगेगा. छी, जाने दीजिए. ऐसे ढाई हजार मुझे नहीं चाहिए.’’

किंतु यह सब मेरे लिए एक चुनौती थी. इस से पहले कि कंपनी अदालत में जाती मैं उपभोक्ता अदालत में चला गया और कंपनी के नाम नोटिस जारी हो गया. मैं ने संघर्ष करने का मन बना लिया था. खर्च जो हो, परिणाम जो हो.

नियत तारीख पर कंपनी अदालत में उपस्थित नहीं हुई. उस ने समय मांगा.

एक सप्ताह के भीतर कंपनी से फोन आया, ‘‘आप का चैक बन कर तैयार है, इसे ले लें. कुछ देर अवश्य हो गई है, कृपया अन्यथा न लें. आप नहीं आ सकते तो हम चैक आप के घर पर पहुंचा देंगे. जांच का परिणाम कुछ भी हो, कंपनी अपने ग्राहक को सही मानती है.’’

लेखक- सत्य स्वरूप दत्त

Moral Stories in Hindi : शेष चिह्न

Moral Stories in Hindi :  मायके और ससुराल वालों की सेवा में समर्पित निधि के सपने तो जैसे बिखर कर रह गए थे. जीवन के रेगिस्तान में भटकती निधि क्या ‘अपनों के प्यार’ की मरीचिका को पा सकी?

निधि की शादी तय हो गई थी पर उस को ऐसा लग रहा था मानो मरघट पर जाना है…लाश के साथ नहीं, खुद लाश बन कर. उस का और मेरा परिचय एक प्राइवेट स्कूल में हुआ था जिस में मैं अंगरेजी की अध्यापिका थी और वह साइंस की अध्यापिका हो कर आई थी.

उस का अप्रतिम रूप, कमल पंखड़ी सा गुलाबी रंग, पतला छरहरा बदन, सौम्य नाकनक्श थे पर घर की गरीबी के कारण विवाह न हो पा रहा था.

निधि का छोटा सा कच्चा पुश्तैनी मकान था. परिवार में 4 बहनों पर एकमात्र छोटा भाई अविनाश था. बस, सस्ते कपड़ों को ओढ़तेपहनते, गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी.

बड़ी बहन आरती के ग्रेजुएट होते ही एक क्लर्क से बात पक्की कर दी गई तो पिता ने कुछ जी.पी.एफ. से रुपए निकाल कर विवाह की रस्में पूरी कीं. किसी प्रकार आरती घर से विदा हो गई. सब ने चैन की सांस ली. कुछ महीने आराम से निकल गए.

आरती को दान- दहेज के नाम पर साधारण सामान ही दे पाए थे. न टेलीविजन न अन्य सामान, न सोना न चांदी. ससुराल में उस पर जुल्मों के पहाड़ टूटने लगे पर वह सब सहती रही.

फिर एक दिन उस ने अपनी कोख से बेटे के बजाय बेटी जनी तो उस पर जुल्म और बढ़ते ही गए. और एक रात अत्याचारों से घबरा कर वह पड़ोसियों की मदद से रोतीकलपती अपने साथ एक नन्ही सी जान को ले कर पिता की देहरी पर लौट आई. उस का यह हाल देख कर पूरे परिवार की चीत्कार पड़ोस तक जा पहुंची. फिर क्याकुछ नहीं भुगता पूरे घर ने. आरती ने तो कसम खा ली थी कि वह जीवन भर वहां नहीं जाएगी जहां ऐसे नराधम रहते हैं.

इस तरह मय ब्याज के बेटी वापस आ गई. अत्याचारों की गाथा, चोटों के निशान देख कर फिर उसी घर में बहन को भेजने का सब से ज्यादा विरोध निधि ने ही किया. 3-4 वर्ष के भीतर  ही तलाक हो गया तो मातापिता की छाती पर फिर से 4 बेटियों का भार बढ़ गया.

मुसीबत जैसे चारों ओर से काले बादलों की तरह घिर आई थी. उस पर महंगाई की मार ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया. जो सब की कमाई के पैसे मिलते वह गरम तवे पर पानी की बूंद से छन्न हो जाते. तीजत्योहार सूखेसूखे बीतते. अच्छा खाना उन्हें तब ही नसीब होता जब पासपड़ोस में शादी- विवाह होते. अच्छे सूटसाड़ी पहनने को उन का मन ललक उठता, पर सब लड़कियां मन मार कर रह जातीं.

निधि तो बेहद क्षुब्ध हो उठती. जहां उस के विवाह की बात होती, उस का रूप देख कर लड़के मुग्ध हो जाते  पर दानदहेज के लोभी उस के गुणशील को अनदेखा कर मुंह मोड़ लेते.

निधि मुझ से कहती, ‘‘सच कहती हूं मीनू, लगता है कहीं से इतना पैसा पा जाऊं कि अपने घर की दशा सुधार दूं. इस के लिए यदि कोई रईस बूढ़ा भी मिलेगा तो मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊंगी. बहुत दुख, अभाव झेले हैं मेरे पूरे परिवार ने.’’

‘‘तू पागल हो गई है क्या? अपना पद्मिनी सा रूप देखा है आईने में? मेरे सामने ऐसी बात मत करना वरना दोस्ती छोड़ दूंगी. परिवार के लिए बूढ़े से ब्याह करेगी? क्या तू ने ही पूरे घर का ठेका लिया है? और भी कोई सोचता है ऐसा क्या?’’

मेरी आंखें नम हो गईं तो देखा वह भी अपनी पलकें पोंछ रही थी.

‘‘सच मीनू, तू ने गरीबी की परछाईं नहीं देखी पर हम बचपन से ही इसे भोग रहे हैं. अरे, अपनों के लिए इनसान बड़े से बड़ा त्याग करता है. मैं मर जाऊं तो मेरी आत्मा धन्य हो जाएगी. बीमार अम्मां व बाबूजी कैसे जी पाएंगे अपनी प्यारी बेटियों को दुखी देख कर. पता है, मैं पूरे 28 वर्ष की हो गई हूं, नीतिप्रीति भी विवाह की आयु तक पहुंच गई हैं. मुझे कई लड़के देख चुके हैं. लड़की पसंद, शिक्षा पसंद, नहीं पसंद है तो कम दहेज. यही तो हम सब के साथ होगा. धन के आगे हमारे रूपगुण सब फीके पड़ गए हैं.’’

उस की बातों पर मैं हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘अरे, तू तो किसी घर की राजरानी बनेगी. देख लेना तेरा दूल्हा सिरआंखों पर बैठाएगा तुझे. धनदौलत पर लोटेगी तू्.’’

‘‘रहने दे, ऐसे ऊंचे सपने मत दिखा, जो आगे चल कर मेरी छाती में टीस दें. हां, तुझे अवश्य ऐसा ही वरघर मिलेगा. अकेली बेटी, 2 बड़े भाई, सब ऊंचे पदों पर.’’

‘‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली? बड़े परिवार की समस्या पर ही तो सोचती हूं ऐसा, अपनी कुरबानी देने की.’’

फिर आएदिन मैं यही सुनती थी कि निधि को देखने वाले आए और गए. धन के अभाव में सब मुंह चुरा गए. इतनी तगड़ी मांगें कि घर भर के सिर फिर जाते. यहां तो शादी का खर्च उठाना मुश्किल था. उस पर लाखों की मांग.

एक दिन गरमी की दोपहर में आ कर निधि ने विस्फोट किया, ‘‘मीनू, तुझे याद है एक बार मैं ने तुझ से कहा था कि अगर कोई मालदार धनी बूढ़ा वर ही मिल जाएगा तो मैं उस से शादी करने को तैयार हो जाऊंगी. लगता है वही हो रहा है.’’

मैं ने घबरा कर अपनी छाती थाम ली फिर गुस्से से भर कर बोली, ‘‘तो क्या किसी बूढ़े खूसट का संदेशा आया है और तू तैयार हो गई है?’’ इतना कह कर तब मैं ने उस के दोनों कंधे झकझोर दिए थे.

वह बच्चों सी हंसी हंस दी. फिर पसीना पोंछती हुई बोली, ‘‘तू तो ऐसी घबरा रही है जैसे मेरे बजाय तेरी शादी होने जा रही है. देख, मैं बूढ़े खूसट की फोटो लाई हूं. उस की उम्र 40 के आसपास है और वह दुहेजा है. 4 साल पहले पत्नी मर गई थी.’’

उस ने फोटो मेरे हाथ पर रख दिया. ‘‘अरे वाह, यह तो बूढ़ा नहीं जवान, सुंदर है. तू मजाक कर रही है मुझ से?’’

‘‘नहीं रे, मजाक नहीं कर रही… दुहेजा है.’’

‘‘कहीं दहेज के चक्कर में पहली को मार तो नहीं डाला. क्या चक्कर है?’’ मैं बोली.

‘‘यह मेरी मौसी की ननद का देवर है,’’ निधि ने बताया.

‘‘सेल्स टेक्स कमिश्नर है. तीसरी बार बेटे को जन्म देते समय पत्नी की मौत हो गई थी.’’

‘‘तो क्या 2 संतान और हैं?’’

‘‘हां, 1 बेटी 10 साल की, दूसरी 8 साल की.’’

‘‘तो तुझे सौतेली मां का दर्जा देने आया है?’’

‘‘यह तो है पर पत्नी की मृत्यु के 4 साल बाद बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी को तैयार हुआ है. घर पर बूढ़ी मां हैं. एक बड़ी बहन है जो कहीं दूर ब्याही गई है, बढ़ती बच्चियों को कौन संभाले. वह ठहरे नौकरीपेशा वाले. समय खराब है. इस से उन्हें तैयार होना पड़ा.’’

‘‘तो तू जाते ही मां बनने को तैयार हो गई, मदर इंडिया.’’

‘‘हां रे. अम्मांबाबूजी तो तैयार नहीं थे. मौसी प्रस्ताव ले कर आई थीं. मुझ से पूछा तो मैं क्या करती. जन्म भर अम्मांबाबूजी की छाती पर मूंग तो न दलती. दीदी व उन की बेटी बोझ बन कर ही तो रह रही हैं. फिर 2 बहनें और भी शूल सी गड़ती होंगी उन की आंखों में. कब तक बैठाए रहेंगे बेटियों को छाती पर?

‘‘मैं अगर इस रिश्ते को हां कर दूंगी तो सब संभल जाएगा. धन की उन के यहां कमी नहीं है, लखनऊ में अपनी कोठी है. ढेरों आम व कटहल के बगीचे हैं. नौकरचाकर सब हैं.

‘‘मैं सब को ऊपर उठा दूंगी, मीनू,’’ निधि ने जैसे अपने दर्द को पीते हुए कहा, ‘‘मेरे मातापिता की कुछ उम्र बच जाएगी नहीं तो उन के बाद हम सब कहां जाएंगे. बाबूजी 2 वर्ष बाद ही तो रिटायर हो रहे हैं, फिर पेंशन से क्या होगा इतने बड़े परिवार का? बता तो तू?’’

मैं ने निधि को खींच कर छाती से लगा लिया. लगा, एक इतनी खूबसूरत हस्ती जानबूझ कर अपने को परिवार के लिए कुरबान कर रही है. मेरे साथ वह भी फूटफूट कर रो पड़ी.

निधि शाम को आने का मुझ से वचन ले कर वापस लौट गई. फिर शाम को भारी मन लिए मैं उस के घर पहुंची. उस की मौसी आ चुकी थीं और वर के रूप में भूपेंद्र बैठक में आराम कर रहे थे. निधि को अभी देखा नहीं था. मैं मौसी के पास बैठ कर वर के घर की धनदौलत का गुणगान सुनती रही.

‘‘बेटी, तुम निधि की सहेली हो न,’’ मौसी ने पूछा, ‘‘वह खुश तो है इस शादी से, तुम से कुछ बात हुई?’’

‘‘मौसी? यह आप स्वयं निधि से पूछ लो. पास ही तो बैठी है वह.’’

‘‘वह तो कुछ बोलती ही नहीं है, चुप बैठी है.’’

‘‘इसी में उस की भलाई है,’’ मैं जैसे बगावत पर उतर आई थी.

‘‘मीनू, तुम नहीं जानती घर की परिस्थिति, पर मुझ से कुछ छिपा नहीं है. निधि की मां मुझ से छोटी है. उसी के आग्रह पर मैं अब तक कई लड़के वालों के पतेठिकाने भेजती रही पर बेटा, पैसों के लालची आज के लोग रूपगुण के पारखी नहीं हैं…फिर आरती में क्या कमी है, लेकिन क्या हुआ उस के साथ…मय ब्याज के वापस आ गई…ये निधि है 28 पार कर चुकी है. आगे 2 और हैं.’’

मैं उन के पास से उठ आई, ‘‘चल निधि, कमरे में बैठते हैं.’’

वह उठ कर अंदर आ गई.

मैं ने जबरन निधि को उठाया. उस का हाथमुंह धुलाया और हलका सा मेकअप कर के उसे मौसी की लाई साडि़यों में से एक साड़ी पहना दी, क्योंकि निधि को शाम का चायनाश्ता ले कर अपने को दिखाने जाना था. सहसा वर बैठक से निकल कर बाथरूम की ओर गया तो मैं अचकचा गई. कौन कह सकता है देख कर कि वह 40 का है. क्षण भर में जैसे अवसाद के क्षण उड़ गए. लगा, भले ही वर दुहेजा है पर निधि को मनचाहा वरदान मिल गया.

शाम के समय लड़की दिखाई के वक्त नाश्ते की प्लेटें लिए निधि के साथ मैं भी थी. तैयार हो कर तरोताजा बैठा प्रौढ़ जवान वर सम्मान में उठ कर खड़ा हो गया और उस के मुंह से ‘बैठिए’ शब्द सुन कर मन आश्वस्त हो उठा.

हम दोनों बैठ गए. निधि ने चाय- नाश्ता सर्व किया तो उस ने प्लेट हम लोगों की ओर बढ़ा दी. फिर हम दोनों से औपचारिक वार्त्ता हुई तो मैं ने वहां से उठना ही उचित समझा. खाली प्लेट ले कर मैं बाहर आ गई. दोनों आपस में एकदूसरे को ठीक से देखपरख लें यह अवसर तो देना ही था. फिर पूरे आधे घंटे बाद ही निधि बाहर आई.

‘‘क्या रहा, निधि?’’ मैं निकट चली आई.

‘‘बस, थोड़ी देर इंतजार कर,’’ यह कह कर निधि मुझे ले कर एक कमरे में आ गई. फिर 1 घंटे बाद जो दृश्य था वह ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात थी.

रात 8 बजतेबजते आंगन में ढोलक बज उठी और सगाई की रस्म में जो सोने की चेन व हीरे की अंगूठी उंगलियों में पहनाई गई उन की कीमत 60 हजार से कम न थी.

15 दिन बाद ही छोटी सी बरात ले कर भूपेंद्र आए और निधि के साथ भांवरें पड़ गईं. इतना सोना चढ़ा कि देखने वालों की आंखें चौंधिया गईं. सब यह भूल गए कि वर अधिक आयु का है और विधुर भी है. बस, एक बात से सब जरूर चकरा गए थे कि दूल्हे की दोनों बेटियां भी बरात में आई थीं. पर वे कहीं से भी 12 और 8 की नहीं दिखती थीं. बड़ी मधु 16 वर्ष और छोटी विधु 12 की दिखती थीं. जवानी की डगर पर दोनों चल पड़ी थीं. सब को अंदाज लगाते देर नहीं लगी कि वर 50 की लाइन में आ चुका है.

निधि से कोई कुछ न कह सका. सब तकदीर के भरोसे उसे छोड़ कर चुप्पी लगा गए. 1 माह तक ससुराल में रह कर निधि जब 10 दिन के लिए मायके आई थी तो मैं ही उस से मिलने पहुंची थी. सोने से जैसे वह मढ़ गई थी. एक से बढ़ कर एक महंगे कपड़े, साथ ही सारे नए जेवर.

एक बात निधि को बहुत परेशान किए थी कि वे दोनों लड़कियां किसी प्रकार से विमाता को अपना नहीं पा रही थीं. बड़ी तो जैसे उस से सख्त नफरत करती, न साथ बैठती न कभी अपने से बोलती. पति से इस बात पर चर्चा की तो उन्होंने निधि को समझा दिया कि लोगों ने या इस की सहेलियों ने इस के मन में  उलटेसीधे विचार भर दिए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. अपनी बूढ़ी दादीमां का कहना भी वे दोनों टाल जातीं.

निधि हर समय इसी कोशिश में रहती कि वे दोनों उसे मां के बजाय अपना मित्र समझें. इस को निधि ने बताने की भी कोशिश की पर वे दोनों अवहेलना कर अपने कमरों में चली गईं. खाने के समय पिता के कई बार बुलाने पर वे डाइनिंग रूम में आतीं और थोड़ाबहुत खा कर चल देतीं. पिता भी जैसे पराए हो गए थे. पिता का कहना इस कान से सुनतीं उस कान निकाल देतीं.

निधि यदि कहती कि किसी सब्जेक्ट में कमजोर हो तो वह पढ़ा सकती है तो मधु फटाक से कह देती कि यहां टीचरों की कमी नहीं है. आप टीचर जरूर रही हैं पर छोटे से शहर के प्राइवेट स्कूल में. हम क्या बेवकूफ हैं जो आप से पढ़ेंगे और यह सुन कर निधि रो पड़ती.

एक से एक बढि़या डिश बनाने की ललक निधि में थी पर मायके में सुविधा नहीं थी इसलिए वह अपने शौक को पूरा न कर सकी. यहां पुस्तकों को पढ़ कर या टेलीविजन में देख कर तरहतरह की डिश बनाती, पूरे घर को खिलाती, पति और सास तो खुश होते पर उन दोनों बहनों की प्लेटें जैसी भरी जातीं वैसी ही कमरों से आ कर सिंक में पड़ी दिखतीं.

कई बार पिता ने प्यार से समझाया कि वह अब तुम्हारी मां हैं, उन का आदर करो, उन्हें अपना समझो तो बड़ी मधु फटाक से उत्तर दे देती, ‘पापा, आप की वह सबकुछ हो सकती हैं पर हमारी तो सौतेली मां हैं.’

इस पर पिता का कई बार हाथ उठ गया. निधि पक्ष ले कर आगे आई तो अपमानित ही हुई. इस से चुपचाप रो कर रह जाती. लड़कियां कहां जाती हैं, रात में देर से क्यों आती हैं. कुछ नहीं पूछ सकती थी वह.

लड़कियों के पिता सदैव गंभीर रहे. हमेशा कम बोलना, जैसे उन के चेहरे पर उच्च पद का मुखौटा चढ़ा रहता. बेटियों को भी कभी पिता से हंसतेबोलते नहीं देखा. कई बार निधि के मन में आया कि वह मधु से कुछ पूछे, बात करे पर वह तो हमेशा नाक चढ़ाए रहती.

बूढ़ी सास प्यार से बोलतीं, समझातीं, खानेपीने का खयाल रखने को कहतीं. जब बेटियों के बारे में वह पूछती तो कह देतीं, ‘‘सखीसहेलियों ने उलटासीधा भरा होगा. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. तू भूपेंद्र से बता दिया कर जो समस्या हो.’’

‘‘मांजी, एक तो रात में वह देर से आते हैं फिर वह इस स्थिति में नहीं होते कि उन से कुछ कहा जाए. दिन में बेटियों की बात बेटियों के सामने तो नहीं कह सकती, वह भी तब जब दोनों जैसे लड़ने को तैयार बैठी रहती हैं. मैं तो बोलते हुए भी डरती हूं कि पता नहीं कब क्या कह कर अपमान कर दें.’’

‘‘इसी से तो शादी करनी पड़ी कि पत्नी आ जाएगी तो कम से कम रात में घर आएगा तो उसे संभाल तो लेगी. अब तो तुझे ही सबकुछ संभालना है.’’

अधरों की हंसी, मन की उमंग, रसातल में समाती चली जा रही थी. सब सुखसाधन थे. जेवर, कपड़े, रुपएपैसे, नौकरचाकर परंतु लगता था वह जंगल में भयभीत हिरनी सी भटक रही है. मायके की याद आती, जहां प्रेम था, उल्लास था, अभावों में भी दिन भर किल्लोल के स्वर गूंजते थे. तभी एक दिन देखा कि दोनों बहनें मां का वार्डरोव खोल कर कपड़े धूप में डाल रही हैं और लाकर से उन के जेवर निकाल कर बैग में ठूंस रही हैं. निधि का माथा ठनका. उस दिन छुट्टी थी. सब घर पर ही थे. वह चुपके से घर के आफिस में गई. उस समय वह अकेले ही थे. बोली, ‘‘क्या मैं आ सकती हूं?’’

‘‘अरे, निधि, आओ, आओ, बैठो,’’ यह कहते हुए उन्होंने फाइल से सिर उठाया.

‘‘ये मधुविधु कहीं जा रही हैं क्या?’’

‘‘क्यों, तुम्हें क्यों लगा ऐसा? पूछा नहीं उन से?’’

‘‘पूछ कैसे सकती हूं…कभी वे बोलती भी हैं क्या? असल में उन्होंने अपनी मां के कपड़े धूप में डाले हैं और जेवर बैग में रख रही हैं.’’

‘‘दरअसल, वह अपनी मां के जेवर बैंक लाकर में रखने को कह रही थीं तो मैं ने ही कहा कि निकाल लो, कल रख देंगे, घर पर रखना ठीक नहीं है. दोनों की शादी में दे देंगे.’’

‘‘क्षमा करें, अकसर दोनों कभी अकेले जा कर रात में देर से घर आती हैं. इस से आप से कहना पड़ा,’’ निधि जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘ठहरो, निधि, तुम कभी शौपिंग को नहीं जाती हो? भई, रुपएपैसे मेरी अलमारी में पड़े रहते हैं. जेवर, कपड़े जो चाहिए खरीद लाया करो. कोई रोक नहीं है. आजकल तो महिलाएं नएनए डिजाइन के गहनेकपड़े पहन कर घूमती हैं. मैं चाहता हूं कि तुम भी वैसी ही घूमो, क्लब ज्वाइन कर लो, इस से परिचय बढ़ेगा. पढ़ीलिखी हो, सुंदर हो, थोड़ा स्मार्ट बनो.’’

दूसरे दिन दोनों बहनें बैंक जा कर सारे जेवर बैंक लाकर में रख आईं और चाबी अपने पास रख ली.

निधि कई बार मायके हो आई थी. कभी सोचा था कि दोनों छोटी बहनों को वह अपने पास रख कर पढ़ाएगी पर वह सब जैसे स्वप्न हो गया. हां, रुपए ले जा कर वह सब को कपड़े आदि अवश्य खरीद देती. हर बार जरूरत की कुछ न कुछ महंगी चीज खरीद कर रख जाती. रंगीन टेलीविजन, पंखे, छोटा सा फ्रिज आदि. इस से ज्यादा रुपए लेने की उस की हिम्मत नहीं थी. जब तक निधि मायके रहती कुछ दिन को अच्छा भोजन पूरे घर को मिल जाता, बाद में फिर वही पुराना क्रम चल पड़ता.

अभी मायके से आए निधि को केवल 15 दिन ही हुए थे कि अचानक जैसे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. वह बीमार थी. कई दिनों से खांसी से पीडि़त थी. दोनों बहनें खापी कर अपने कमरे में बैठी टेलीविजन देख रही थीं.

तभी जोर से दरवाजे की घंटी बजी. उस ने आ कर दरवाजा खोला तो कुछ अनजाने चेहरों को देख कर चौंक गई.

‘‘आप लोग कौन हैं. साहब घर पर नहीं हैं,’’ उन्हें भीतर घुसते देख कर निधि घबरा गई, ‘‘अरे, अंदर कैसे घुस रहे हैं आप लोग?’’ वह चिल्ला कर बोली ताकि दोनों बहनें सुन लें लेकिन  टेलीविजन के तेज स्वर के कारण उस की आवाज वहां तक नहीं पहुंची. खिड़की से झांक कर दोबारा निधि चिल्ला कर बोली, ‘‘मधु, देखो ये लोग कौन हैं और घर में घुसे जा रहे हैं.’’

‘‘मैडम, हम विजिलेंस आफीसर हैं और आप के यहां छापा मारने आए हैं. यह देखिए मेरा आई कार्ड.’’

दोनों बहनें बाहर दौड़ कर आईं और चिल्ला कर बोलीं, ‘‘पापा घर पर नहीं हैं. जब वह आएं तब आप लोग आइए.’’

‘‘पापा आप के अभी नहीं आ पाएंगे, क्योंकि वह पुलिस हिरासत में हैं.’’

‘‘क्यों, क्या किया है उन्होंने?’’

‘‘शायद आप को पता नहीं कि आप के पापा रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए हैं. अब तो बेल होने पर ही घर आ पाएंगे,’’ यह सुन कर निधि को चक्कर आ गया और वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘पापा से फोन कर के हम बात कर लें तब आप को अंदर घुसने देंगे,’’ यह कहते हुए मधु ने फोन लगाया तो पापा का भर्राया स्वर गूंजा, ‘‘कानून में बाधा मत डालो, मधु. लेने दो तलाशी.’’

शाम को जब वह हारेथके घर आए तो लग रहा था महीनों से बीमार हों. पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्होंने पहले निधि को फिर मधु व विधु की ओर देखा. बरामदे में पूरी शक्ति लगा कर वह अपने भारी- भरकम शरीर को चढ़ा पाए पर संभल नहीं पाए और धड़ाम से गिर पड़े. होंठों से झाग बह चला. तीनों के मुंह से चीखें निकल गईं. डाक्टर आया तो उन्होंने तुरंत अस्पताल में भरती करने की सलाह दी. तीनों उन्हें एंबुलेंस में लाद कर अस्पताल ले गईं. डाक्टरों ने हृदयाघात बताया.

निधि सारी रात पति के सिरहाने बैठी रही. दोनों बहनें कुछ देर को घर लौटीं, क्योंकि चपरासी ने बताया था कि मांजी की हालत बहुत खराब हो गई है.

उन्हें होश आया तो वह बोले, ‘‘निधि, मुझे बहुत दुख है कि अभी अपने विवाह को केवल 10 माह ही हुए हैं और मैं इस प्रकार झूठे मामले में फंसा दिया गया. तुम यह मकान बेच कर मां को ले कर मायके चली जाना. मधु के मामा संपन्न हैं. वे उन्हें जरूर इलाहाबाद ले जाएंगे. यदि मां को ले जाना चाहें तो ले जाने देना. मैं ने कुछ रुपए कबाड़खाने के टूटे बाक्स में पुराने कागजों के नीचे दबा रखे हैं. वहां कोई न ढूंढ़ पाएगा. तुम अपने कब्जे में कर लेना. बचे रहे तो मुकदमा लड़ने के काम आएंगे.’’

निधि फूटफूट कर रो पड़ी फिर बोली, ‘‘पर वहां तो सील लग गई है. पुलिस का पहरा है,’’ निधि के मुंह से यह सुन कर उन की आंखों से ढेरों आंसू लुढ़क पड़े. फिर पता नहीं कब दवा के नशे में सोतेसोते ही उन्हें दूसरा दौरा पड़ा, 3 हिचकियां आईं और उन के प्राण निकल गए.

निधि की तो अब दुनिया ही उजड़ गई. जिस धन की इच्छा में उस ने अधेड़ विधुर को अपनाया था वह उसे मंझधार में ही छोड़ कर चला गया.

मातापिता सब आए. मधु के नाना, मामा आदि पूरा परिवार जुड़ आया. सब उस के अशुभ चरणों को कोस रहे थे. चारों ओर के व्यंग्य व लांछनों से वह घबरा गई. पुलिस ने उस के मायके तक को खंगाल डाला था.

मांजी तो जीवित लाश सी हो गई थीं. निधि की हालत देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूजागृह से अपनी संदूक खींच कर उसे यह कहते हुए सौंप दी, ‘‘बेटी, इस में जो कुछ है तेरा है. मैं तो अपनी बेटी के पास शेष जीवन काट लूंगी. यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे. मकान बिकेगा तो तुझे भी हिस्सा मिलेगा. मेरे दामाद व बेटी तुझे अवश्य हिस्सा दिलवाएंगे. तू अपने नंगे गले में मेरा यह लाकेट डाल ले और ये चूडि़यां, शेष तो सब सरकारी हो गया. बेटी, 1 साल बाद जहां चाहे दूसरा विवाह कर लेना… अभी तेरी उम्र ही क्या है.’’

वह चुपचाप रोती रही. फिर उसे ध्यान आया और जहां पति ने बताया था वहां ढूंढ़ा तो 10 लाख की गड्डियां प्राप्त हुईं. तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी इस से वह सब ले कर मांबाप के साथ मायके आ गई. बस, वह पेंशन की हकदार रह गई थी. वह भी तब तक जब तक कि वह पति की विधवा बन कर रहे.

निधि ने रुपए किसी बैंक में नहीं डाले बल्कि उन से कंप्यूटर खरीद कर बहनों के साथ अपनी कंप्यूटर क्लास खोल ली. उस ने बैंक से लोन भी लिया था, जिस से कभी पकड़ी न जाए. अच्छी पेंशन मिली वह भी केस निबटने के कई वर्ष बाद.

मैं निधि के घर तुरंत गई थी. उस का वैधव्य रूप, शिथिल काया, कांतिहीन चेहरा देख कर खूब रोई.

‘‘मीनू, देख, कैसा राजसुख भोग कर लौटी हूं. रही बात अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने की तो वह 2 राज्यों के चलते कभी न मिल पाएगी. मैं उत्तर प्रदेश में रह नहीं सकती और मध्य प्रदेश में नौकरी मिल नहीं सकती. हर माह पेंशन के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ेगा. गनीमत है कि मैं बाप पर भार नहीं हूं. पति सुख नहीं केवल धन सुख भोग पाऊंगी. इसी रूप की तू सराहना करती थी पर वहां तो सब मनहूस की पदवी दे गए.

‘‘वे क्या जानें कि मैं ने आधी रात को नशे में चूर डगमगाए पति की भारीभरकम देह को कैसे संभाला है. मद में चूर, कामातुर असफल पुरुष की मर्दानगी को गरम रेत पर पड़ी मछली सी तड़प कर लोटलोट कर काटी हैं ये पूरे 10 माह की रातें. मेरा कुआंरा अनजाना तनमन जैसे लाज भरी उत्तेजना से उद्भासित हो उठता.’’

‘‘निधि, संभाल अपनेआप को. तू जानती है न कि मैं अभी इस अनुभव से सर्वथा अनजान हूं.’’

‘‘ओह, सच में मीना. मैं अपनी रौ में सब भूल गई कि तू यह सब क्या जाने. मुझे क्षमा करेगी न?’’

‘‘कोई बात नहीं निधि, तेरी सखी हूं न, जो समझ पाई वह ठीक, नहीं समझी वह भी ठीक. तेरा मन हलका हुआ. शायद विवाह के बाद मैं तेरी ये बातें समझ पाऊंगी, तब तेरी यह व्यथा बांटूंगी.’’

‘‘तब तक ये ज्वाला भी शीतल पड़ जाएगी. मैं अपने पर अवश्य विजय पा लूंगी. अभी तो नया घाव है न जैसे आवां से तप कर बरतन निकलता है तो वह बहुत देर तक गरम रहता है.’’

‘‘अच्छा, अब चलूंगी. बहुत देर हो गई.

Best Hindi Stories : अहसास – डांसर भाग्यवती को क्या मिला रामनाथ का साथ

Best Hindi Stories :  31 दिसंबर की रात को प्रेम पैलेस लौज का बीयर बार लोगों से खचाखच भरा हुआ था. गीत ‘कांटा लगा….’ के रीमिक्स पर बारबाला डांसर भाग्यवती ने जैसे ही लहरा कर डांस शुरू किया, तो वहां बैठे लोगों की वाहवाही व तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूंज उठा. लोग अपनीअपनी कुरसी पर बैठे अलगअलग ब्रांड की महंगी से महंगी शराब पीने का लुत्फ उठा रहे थे और लहरातीबलखाती हसीनाओं का आंखों से मजा ले रहे थे. पूरा बीयरबार रंगबिरंगी हलकी रोशनी में डूबा हुआ था. रामनाथ पुलिसिया अंदाज में उस बार में दबंगता से दाखिल हुए. उन्होंने एक निगाह खुफिया तौर पर पूरे बार व वहां बैठे लोगों पर दौड़ाई. उन्हें सूचना मिली थी कि वहां आतंकवादियों को आना है, लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया.

रामनाथ सीआईडी इंस्पैक्टर थे. किसी ने उन्हें पहचाना नहीं था, क्योंकि वे सादा कपड़ों में थे. जब कोई संदिग्ध नजर नहीं आया, तो रामनाथ बेफिक्र हो कर एक ओर कोने में रखी खाली कुरसी पर बैठ गए और बैरे को एक ठंडी बीयर लाने का और्डर दिया. वे भी औरों की तरह बार डांसर भाग्यवती को घूर कर देखने लगे. बार डांसर भाग्यवती खूबसूरत तो यकीनन थी, तभी तो सभी उस की देह पर लट्टू थे. एक मंत्री, जो बार में आला जगह पर बैठे थे, टकटकी लगाए भाग्यवती के बदन के साथ ऐश करना चाहते थे. वह भी चंद नोटों के बदले आसानी से मुहैया थी. मंत्री महोदय भाग्यवती की जवानी और लचकती कमर पर पागल हुए जा रहे थे, मगर वहां एक सच्चा मर्द ऐसा भी था, जिसे भाग्यवती की यह बेहूदगी पसंद नहीं थी.

रामनाथ का न जाने क्यों जी चाह रहा था कि वह उसे 2 तमाचे जड़ कर कह दे कि बंद करो यह गंदा नाच. पर वे ऐसा नहीं कर सकते थे. आखिर किस हक से उसे डांटते? वे तो अपने केस के सिलसिले में यहां आए थे. शायद यह सवाल उन के दिमाग में दौड़ गया और वे गंभीरता से सोचने लगे कि जिस लड़की के सैक्सी डांस व अदाओं पर पूरा बार झूम रहा है, उस की अदाएं उन्हें क्यों इतनी बुरी लग रही थीं? तभी बैरा रामनाथ के और्डर के मुताबिक चीजें ले आया. उन्होंने बीयर का एक घूंट लिया और फिर भाग्यवती को ताकने लगे.

भाग्यवती का मासूम चेहरा रामनाथ के दिलोदिमाग में उतरता जा रहा था. उन्होंने कयास लगाया कि हो न हो, यह लड़की मुसीबत की मारी है. बार डांसर रेखा रामनाथ को बहुत देर से देख रही थी. कूल्हे मटका कर उस ने रामनाथ की ओर इशारा करते हुए भाग्यवती से कहा, ‘‘देख, तेरा नया मजनू आ गया. वह जाम पी रहा है. तुझ पर उस की निगाहें काफी देर से टिकी हैं. कहीं ले न उड़े… दाम अच्छे लेना, नया बकरा है.’’

‘‘पता है…’’ मुसकरा कर भाग्यवती ने कहा.

भाग्यवती थिरकथिरक कर रामनाथ की ओर कनखियों से देखे जा रही थी कि तभी रामनाथ के सामने वाले आदमी ने कुछ नोटों को हाथ में निकाल कर भाग्यवती की ओर इशारा किया. भाग्यवती इठलातेइतराते हुए उस कालेकलूटे मोटे आदमी के करीब जा कर खड़ी हो गई और मुसकरा कर नोट लेने लगी.

इस दौरान रामनाथ ने कई बार भाग्यवती को देखा. दोनों की निगाहें टकराईं, फिर रामनाथ ने भाग्यवती की बेशर्मी को देख कर सिर झुका लिया. वह मोटा भद्दी शक्लसूरत वाला आदमी सफेदपोश नेता था. वह नई जवां लड़कियों का शौकीन था. उस के आसपास ही उस का पीए, 2-4 चमचे जीहुजूरी में वहां हाजिर थे. मंत्री धीरेधीरे भाग्यवती को नोट थमाता रहा. जब वह अपने हाथ का आखिरी नोट उसे पकड़ाने लगा, तो शराब के नशे में उस का हाथ भी पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. उस की छातियों पर हाथ फेरा, गालों को चूमा और बोला, ‘‘तुझे मेरे प्राइवेट बंगले पर आना है. बाहर सरकारी गाड़ी खड़ी है. उस में बैठ कर आ जाना. मेरे आदमी सारा इंतजाम कर देंगे. मगर हां, एक बात का ध्यान रखना कि इस बात का पता किसी को न लगे.’’

भाग्यवती मंत्री को हां बोल कर वहां से हट गई. यह देख कर रामनाथ के तनबदन में आग लग गई और वे अपने घर आ गए. उन की आंखों में भाग्यवती का मासूम चेहरा छा गया और वे तरहतरह के खयालों में डूब गए. दूसरे दिन डांस शुरू होने के पहले कमरे में बैठी रेखा भाग्यवती से बोली, ‘‘तेरा मजनू तो एकदम भिखारी निकला. उस की जेब से एक रुपया भी नहीं निकला.’’ भाग्यवती ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तो बस उसी का चेहरा देख रही थी. जब वह मंत्री मुझे नोट दे रहा था, तब वह एकदम सिटपिटा सा गया था.’’

बार डांसर रेखा बोली, ‘‘शायद तू ने एक चीज नहीं देखी. जब तू उस मंत्री की गोद में बैठी थी और वह तेरी छातियों की नापतोल कर रहा था, तब उस के चेहरे का रंग ही बदल गया था. देखना, आज फिर वह आएगा. हमें तो सिर्फ पैसा चाहिए, अपने खूबसूरत बदन को नुचवाने का.’’ तभी डांस का समय हो गया. वे दोनों बीयर बार में आ कर गीत ‘अंगूर का दाना हूं….’ पर थिरकने लगी थीं.

रामनाथ अभी तक बार में नहीं आए थे. भाग्यवती की निगाहें बेताबी से उन्हें ढूंढ़ रही थीं. नए ग्राहक जो थे, उन से मोटी रकम लेनी थी. कुछ देर बाद जब रामनाथ आए, तो उन्हें देख कर भाग्यवती को अजीब सी खुशी का अहसास हुआ, पर जब वे खापी कर चलते बने, तो वह सोच में पड़ गई कि यह तो बड़ा अजीब आदमी है… आज भी एक रुपया नहीं लुटाया उस पर. भाग्यवती का दिमाग रामनाथ के बारे में सोचतेसोचते दुखने लगा. वह उन्हें जाननेसमझने के लिए बेचैन हो उठी. जब वे तीसरेचौथे दिन नहीं आए, तो परेशान हो गई.

एक दिन अचानक ही एक पैट्रोल पंप के पास वाली गली के कोने पर खड़ी भाग्यवती पर रामनाथ की नजर पड़ी. कार में बैठा एक आदमी भाग्यवती से कह रहा था, ‘‘चल. जल्दी चल. मंत्रीजी के पास भोपाल. ये ले 10 हजार रुपए. कार में जल्दी से बैठ जा.’’ भाग्यवती ने पूछा, ‘‘मुझे वहां कितने दिन तक रहना पड़ेगा?’’

‘‘कम से कम 4-5 दिन.’’

‘‘मुझे उस के पास मत भेज. वह मेरे साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है,’’ गिड़गिड़ाते हुए भाग्यवती बोली. इस पर वह आदमी एकदम भड़क कर कहने लगा, ‘‘तो क्या हुआ, पैसा भी तो अच्छा देता है,’’ और वह डांट कर वहां से चलता बना. इस भरोसे पर कि मंत्री को खुश करने वह भोपाल जरूर जाएगी. यह सारा तमाशा रामनाथ चुपचाप खड़े देख रहे थे. वे जल्दी से भाग्यवती के पीछे लपक कर गए और बोले ‘‘सुनो, रुकना तो…’’ भाग्यवती ने पीछे मुड़ कर देखा और रामनाथ को पहचानते हुए बोली, ‘‘अरे आप… आप तो बार में आए ही नहीं…’’

‘‘वह आदमी कौन था?’’ रामनाथ ने भाग्यवती के सवाल को अनसुना करते हुए सवाल किया.

‘‘क्या बताऊं साहब, मंत्री का खास आदमी था. बार मालिक का हुक्म था कि मैं भोपाल में मंत्रीजी के प्राइवेट बंगले पर जाऊं,’’ भाग्यवती ने रामनाथ से कहा.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती हो ऐसे धंधे को?’’ रामनाथ ने सवाल किया.

‘‘छोड़ने को मैं छोड़ देती साहब… उन को मेरे जैसी और लड़कियां मिल जाएंगी, पर मुझे सहारा कौन देगा? मुझ जैसी बदनाम औरत के बदन से खेलने वाले तो बहुत हैं साहब, पर अपनाने वाला कोई नहीं,’’ कह कर वह रामनाथ के चेहरे की तरफ देखने लगी. रामनाथ पलभर को न जाने क्या सोचते रहे. समाज में उन के काम से कैसा संदेश जाएगा. एक कालगर्ल ही मिली उन को? लेकिन पुलिस महकमा तो तारीफ करेगा. समाज के लोग एक मिसाल मानेंगे. भाग्यवती थी तो एक मजबूर गरीब लड़की. उस को सामाजिक इज्जत देना एक महान काम है. रामनाथ ने भाग्यवती से गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हें सहारा चाहिए? चलो, मेरे साथ. मैं तुम्हें सहारा दूंगा.’’ भाग्यवती हां में सिर हिला कर रामनाथ के साथ ऐसे चल पड़ी, जैसे वह इस बात के लिए पहले से ही तैयार थी. वह रामनाथ के साथ उन की मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर चुपचाप जा कर बैठ गई.

रामनाथ के घर वालों ने भाग्यवती का स्वागत किया. खुशीखुशी गृह प्रवेश कराया. उस का अलग कमरा दिखाया. इसी बीच भाग्यवती पर मानो वज्रपात हुआ. टेबल पर रखी रामनाथ की एक तसवीर देख कर वह घबरा गई, ‘‘साहब, आप पुलिस वाले हैं? मैं ने तो सोचा भी नहीं था.’’ ‘‘हां, मैं सीबीआई इंस्पैक्टर रामनाथ हूं,’’ उन्होंने गंभीरता से जवाब दिया, ‘‘क्यों, क्या हुआ? पुलिस वाले इनसान नहीं होते हैं क्या?’’ ‘‘जी, कुछ नहीं, ऐसा तो नहीं है,’’ वह बोल कर चुप हो गई और सोचने लगी कि पता नहीं अब क्या होगा?

‘‘भाग्यवती, तुम कुछ सोचो मत. आज से यह घर तुम्हारा है और तुम मेरी पत्नी हो.’’

‘‘क्या,’’ हैरान हो कर अपने खयालों से जागते हुए भाग्यवती हैरत से बोली.

‘‘हां भाग्यवती, क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं हूं?’’ उसे हैरान देख कर रामनाथ ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. आप मुझे बहुत पसंद हैं. मैं सोच रही थी कि हमारी शादी… न कोई रस्मोरिवाज…’’ भाग्यवती बोली. ‘‘देखो भाग्यवती, मैं नहीं मानता ऐसे ढकोसलों को. जब लोग शादी के बाद अपनी बीवी को छोड़ सकते हैं, जला सकते हैं, मार सकते हैं, उस से गिरा हुआ काम करा सकते हैं, तो फिर ऐसे रिवाजों का क्या फायदा? ‘‘मैं ने तुम्हें तुम्हारी सारी बुराइयों को दरकिनार करते हुए सच्चे मन से अपनी पत्नी माना है. तुम चाहो तो मुझे अपना पति मान कर मेरे साथ इज्जत की जिंदगी गुजार सकती हो,’’ रामनाथ ने जज्बाती होते हुए कहा. यह सुन कर भाग्यवती खुशी से हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस जिंदगी में उसे सामाजिक इज्जत मिलेगी. अगले दिन जब रामनाथ के आला पुलिस अफसरों ने आ कर भाग्यवती को शादी की बधाइयां दीं व भेंट दीं, तो उस की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. भाग्यवती को उस नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाल कर रामनाथ ने उसे दूसरी जिंदगी दी थी. प्यार के इस खूबसूरत अहसास से वे दोनों बहुत खुश थे.

लेखक- डा. राम सिंह यादव

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