Fire Safety: फैस्टिवल में बढ़ते हैं आग लगने के मामले, जानिए बचाव के उपाय

Fire Safety: त्योहारों का मौसम आते ही हर घर में खुशियों की लहर दौड़ जाती है. रोशनी, सजावट, स्वादिष्ठ पकवान और पटाखों के साथ जश्न का माहौल बनता है. लेकिन इन खुशी के पलों में छोटी सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है. हर साल दीवाली, क्रिसमस, नववर्ष और अन्य त्योहारों के दौरान देशभर में आग लगने की अनेक घटनाएं सामने आती हैं, जिन का सब से बड़ा कारण जागरूकता की कमी होती है.

इसलिए यह अब बेसिक नीड हो गई है कि हर घर, हर सोसायटी और हर व्यक्ति को फायर सैफ्टी की जानकारी हो. बेसिक नौलेज से  मतलब फायर ऐक्सटिंग्विशर का बस नाम ही न पता हो बल्कि उस का इस्तेमाल करना भी आना चाहिए. अगर आग काबू से बाहर चली जाए तो इवैक्यूएशन के नियम सब को पता हों.

हर उम्र के लिए जरूरी है फायर सैफ्टी की ट्रैनिंग

फायर सैफ्टी सिर्फ औफिस या फैक्टरी की बात नहीं है. अगर घर में 6 साल का बच्चा है या 80 साल के बुजुर्ग, हर किसी को फायर से जुड़ी बेसिक बातें पता होनी चाहिए. जैसे कि बच्चों को सिखाएं कि दीए या मोमबत्तियों से दूर रहें और पटाखे केवल बड़ों की निगरानी में जलाएं.

बुजुर्गों को बताएं कि अगर घर में आग लगे तो क्या करें, किस तरह जल्दी बाहर निकलें और क्या साथ ले कर जाएं. टीनऐजर्स व युवाओं को फायर ऐक्सटिंग्विशर का उपयोग करना सिखाएं.

फैस्टिव सीजन में बढ़ते हैं आग लगने के मामले

दीयों और मोमबत्तियों की अधिकता :  कागज, परदों और प्लास्टिक की सजावट के पास रखे दीए हादसे की वजह बन सकते हैं. इसलिए सजावट के वक्त यह खास ध्यान रखें कि जो वस्तु जल्दी आग पकड़ सकती है उस के पास इलैक्ट्रिक दीए लगाएं या मार्केट में उपलब्ध पानी वाले दीए लगाएं. आप चाहें तो फेयरी लाइट से भी डैकोर कर सकते हैं.

पटाखों की लापरवाही : बिना सैफ्टी पटाखे जलाना, सूखे पत्तों या कपड़ों के पास पटाखे चलाना आग लगने की बड़ी वजह बनता है. पटाखे एक निश्चित जगह पर ही जलाएं और ध्यान रखें कि पटाखे जलाते समय आप ने ज्यादा ज्वलनशील कपड़े जैसे सिल्क न पहना हो. ज्यादा लूज कपड़े जैसे साड़ी या दुप्पटा पहन कर भी आप पटाखों के संपर्क में न आएं. कौटन पहनें और सैफ्टी का ध्यान रखें.

ओवरलोडेड इलैक्ट्रिक डैकोरेशन : एक ही सौकेट में कई लाइट्स लगाना शौर्ट सर्किट का कारण बनता है.

किचन की लापरवाही :  पकवान बनाते समय तेल का अधिक गरम होना और असावधानी से आग पकड़ लेना, यह अकसर घरों में देखा जाता है. कई बार तेल बच्चों और बड़ों पर गिर भी जाता है. ऐसे में कोशिश करें कि किचन का काम ध्यान से करें और गरम तेल के काम के वक्त बच्चों को भी निगरानी में रखें.

हर घर में जरूर होने चाहिए ये फायर सैफ्टी इक्विपमैंट्स

लोग फैस्टिव सीजन में कपड़ों, मिठाइयां, डैकोर और पटाखों की शौपिंग लिस्ट में कोई कटौती नहीं करते. इस लिस्ट में फायर सैफ्टी से जुड़े कुछ उपकरण जरूर होने चाहिए, बल्कि फैस्टिवल शौपिंग से पहले इन्हें खरीदें, भले ही आप को डैकोर, पटाखों या कपड़ों में कुछ कमी क्यों न करनी पड़ जाए.

  • फायर ऐक्सटिंग्विशर (Fire Extinguisher) : आग पर शुरुआती चरण में ही काबू पाने के लिए यह जरूरी है. हालांकि यह भी कई तरह के होते हैं :
  • ड्राई पाउडर (ABC टाइप) : फायर ऐक्सटिंग्विशर, जो घरों और औफिसों के लिए सब से बेहतर माने जाते हैं, लकड़ी, कागज, कपड़ा, गैस और इलैक्ट्रिक उपकरणों से लगी आग के लिए असरदार होते हैं.
  • CO₂ (कार्बन डाइऔक्साइड) फायर ऐक्सटिंग्विशर : खासतौर पर इलैक्ट्रिक आग के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह बिना कोई अवशेष छोड़े आग को बुझा देता है और इलेक्ट्रौनिक उपकरणों को नुकसान नहीं पहुंचाता.
  • फायर ब्लैंकेट : किचन या व्यक्ति के कपड़ों में आग लगने पर तुरंत उसे कवर करने के लिए. इस से कपड़ों पर लगी आग जल्दी बुझ जाती है.
  • हैंड ग्लव्स और मास्क : काबू से बाहर अगर आग निकल जाए तो उस स्थिति में सुरक्षित बाहर निकलने के लिए यह जरूरी है. यह आग के दौरान धुएं और जहरीली गैसों से बचने और सुरक्षित बाहर निकलने में काम आता है.
  • टौर्च और इमरजैंसी लाइट : बिजली बंद हो जाने की स्थिति में बाहर निकलने के लिए के लिए जरूरी है.

हर घर में कम से कम एक फायर ऐक्सटिंग्विशर जरूर होना चाहिए, खासकर रसोई, इलैक्ट्रिक मीटर के पास. साथ ही, परिवार के सभी सदस्यों को इस का उपयोग करना भी आना चाहिए. इस का वजन अधिक नहीं होता और इसे आसानी से दीवार पर लगाया जा सकता है. साल में 1 बार इस की सर्विसिंग कराना न भूलें ताकि इमरजैंसी के वक्त यह पूरी तरह काम करे.

जरूरी है प्री फैस्टिवल फायर सैफ्टी ड्रिल

फैस्टिवल शुरू होने से पहले परिवार या सोसायटी में कम से कम एक बार फायर सैफ्टी सेशन जरूर करें. इस में सिखाएं :

  • फायर अलार्म कैसे बजाएं?
  • आग लगने पर सब से पहले क्या करें?
  • बच्चों और बुजुर्गों को कैसे सुरक्षित निकालें?
  • कौन किस दिशा से बाहर निकलना है? यदि आप की सोसायटी यह सेशन आयोजित नहीं करती, तो खुद परिवार के स्तर पर यह पहल करें.

पानी की बाल्टी नहीं है आग का इलाज

आग लगने पर सब के दिमाग में सब से पहले आता है कि पानी की बाल्टी लो आग पर उड़ेल दो. लेकिन यह तरीका बिलकुल ठीक नहीं है. जानकारी के अभाव में लोग शौर्ट सर्किट से लगी आग पर घबराहट में पानी डाल देते हैं लेकिन यह खतरनाक हो सकता है. इलैक्ट्रिक आग पर पानी डालने से करंट लगने का खतरा होता है और आग और ज्यादा फैल सकती है. ऐसे मामलों में सब से पहले बिजली का मेन स्विच बंद करें और CO₂ आधारित फायर ऐक्सटिंग्विशर का इस्तेमाल करें.

इसी तरह, किचन में जब तेल अत्यधिक गरम हो कर आग पकड़ लेता है, तो कई बार हम घबरा कर उस में पानी डाल देते हैं. यह सब से बड़ी गलती होती है, क्योंकि पानी से तेल की आग और ज्यादा भड़क जाती है और छींटों से जलने का खतरा होता है. ऐसी स्थिति में गैस बंद करें और आग को फायर ब्लैंकेट या किसी मैटल के ढक्कन से ढंक दें. मैटल के ढक्कन से ढंकने से जब औक्सीजन सप्लाई कटौफ होगी तो तेल पर लगी आग खुदबखुद बंद हो जाएगी.

आग अगर कंट्रोल से बाहर है तो तुरंत जगह को खाली करना ही सही होता है. जरूरी है कि भागते समय नाक और मुंह को गीले कपड़े से ढंकें ताकि धुएं से दम घुटने का खतरा कम हो. धुएं में कार्बन मोनोऔक्साइड और अन्य जहरीली गैसें होती हैं, जो सांस के जरीए शरीर में जा कर जानलेवा साबित हो सकती हैं.

पटाखों से जुड़े सावधानियां

  • खुले इलाके में ही जलाएं, जलाने के बाद तुरंत पीछे हटें.
  • सूती व टाइट कपड़े पहनें. लूज और नायलोन के कपड़े आग पकड़ सकते हैं.
  • पानी की बाल्टी और बाल्टी में रेत पास में रखें.
  • पटाखे जलाते समय बच्चों पर नजर रखें, माचिस या लाइटर उन के हाथ न दें.

अगर आग लग ही जाए, तो क्या करें

  • बिजली का मेन स्विच बंद करें.
  • CO₂ या ड्राई पाउडर ऐक्सटिंग्विशर का उपयोग करें.
  • अगर किचन में तेल में आग लगी है तो पानी न डालें, फायर ब्लैंकेट या धातु का ढक्कन रखें.
  • धुएं से बचने के लिए नाकमुंह को गीले कपड़े से ढंकें.
  • बिल्डिंग में लिफ्ट का प्रयोग न करें, सीढ़ियों से निकलें.
  • 112 या फायर ब्रिगेड को तुरंत कौल करें.
  • जरूरत पड़ने पर प्राथमिक उपचार (First Aid) दें, जैसे जली त्वचा पर ठंडा पानी डालें, पर बर्फ या टूथपेस्ट नहीं लगाएं.

बच्चों को फायर सैफ्टी कैसे सिखाएं

  • बच्चों को ‘स्टौप, ड्रौप ऐंड रोल’ तकनीक सिखाएं.
  • अगर कपड़ों में आग लग जाए तो दौड़ें नहीं, वहीं रुकें, जमीन पर लेट कर रोल करें.
  • उन्हें खेलखेल में सिखाएं कि जब धुआं दिखे तो जमीन के नजदीक झुक कर चलें. आग के बारे में आप को हफ्ते में कई बार बच्चों से बात करनी चाहिए और खेलखेल में कैसे रोल करना है, कैसे घर से बाहर जाना है सिखाएं.
  • स्मोक अलार्म की आवाज पहचानना सिखाएं.
  • सोसायटी स्तर पर क्या करना चाहिए
  • फैस्टिवल से 1 हफ्ते पहले ‘फायर सैफ्टी अवेयरनैस वर्कशौप’ आयोजित करना अनिवार्य कर देना चाहिए.
  • सभी टावरों में फायर ऐक्सटिंग्विशर, बाल्टी, रेत की व्यवस्था हो.
  • बिल्डिंग के हर फ्लोर पर एवेक्यूएशन प्लान डिस्प्ले करें.
  • बच्चों के लिए अलग से डैमो सेशन रखें.

त्योहार का असली आनंद तभी है जब वह सुरक्षित हो. रोशनी, सजावट और पकवानों के बीच अगर थोड़ी सी सजगता बरती जाए, तो न केवल हादसे टाले जा सकते हैं बल्कि दूसरों को भी जागरूक किया जा सकता है.

हर घर, हर व्यक्ति और हर बच्चे को अगर फायर सैफ्टी की जानकारी हो, तो न कोई जान जाएगी, न त्योहार की रौनक फीकी पड़ेगी.

अब अगर फायर सैफ्टी पर चर्चा हो तो हमारा कर्तव्य बनता है कि घरों में आग लगने से मरने वाली महिलाओं के बारे में भी जरूर बात की जाए. हम यहां महिलाओं पर फोकस इसलिए कर रहे हैं क्योंकि एनसीआरबी की रिपोर्ट की ही मानें तो हर साल घरेलू आग से मरने वालों की लिस्ट में 60-65% महिलाएं होती हैं. हर साल औसतन आग से मरने वालों में 15,000 से ज्यादा महिलाएं और करीब 7,000 पुरुष हैं.

अब इस का कारण जो भी हो, भले ही हादसा हो या साजिश लेकिन महिलाओं की मौत का यह नंबर चिंताजनक है. द लांसेट की मानें तो गुप्त घरेलू हिंसा या आत्मदाह जैसी स्थितियों में आग लगने की घटनाएं ‘दुर्घटना’ कह कर दर्ज की जाती हैं, जिस से आंकड़े और भी कम दिखते हैं.

एक और न्यूज एजेंसी के अनुसार, 15–34 वर्ष की उम्र की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले आग से मरने की लगभग 3 गुना अधिक संभावना रखती हैं. ऐसे में जरूरी है कि सभी को फायर सैफ्टी के बारे में पता हो ताकि ऐसी घटनाओं पर भी जल्द काबू पाया जा सके और जान बचाई जा सके.

लोग जल रहे व्यक्ति पर पानी डाल कर या कंबल डाल कर बचाने की कोशिश करते हैं जिस से उन की यह कोशिश कुछ हद तक तो काम करती है लेकिन इस से बहुत से मामलों में लोगों को बचाया नहीं जा सका है. सही उपकरणों के इस्तेमाल से ही आग पर जल्दी काबू पाया जा सकता है. Fire Safety

Hindi Story Online : हाई सोसायटी

Hindi Story Online : ‘‘ए कदम गंवार, जाहिल और मूर्ख. सच पूछो तो तुम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हो ही नहीं. मैं ने क्या सोचा था और क्या हो गया? रघु क्या सोचता होगा? मैं भी कैसा मूर्ख था कि तुम्हारा बाहरी रंगरूप देख कर भावना में बह गया. सोचा था कि  कच्ची मिट्टी को ढाल कर अपने मन के अनुरूप बना लूंगा. पर नहीं, तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया जा सकता. पूजा, सोशल ऐटिकेट तो घुट्टी में पिलाए जाते हैं. बाद में उन्हें ग्लूकोस के इंजैक्शन की तरह खून में नहीं मिलाया जा सकता,’’

मनीष ने क्रोध में चुनचुन कर कठोर विशेषण प्रयुक्त किए.

पूजा एक क्षण को हत्प्रभ बैठी रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मनीष ने इतनी जलीकटी सुना डाली. इतना इंटैलिजैंट जना व्यक्ति और ऐसा गुस्सा. वह पढ़ीलिखी एक  छोटे कसबे से नहीं थी, पर जो व्यक्ति इतना क्रोधी हो उस की इंटैलिजैंस का क्या लाभ? उस ने मन ही मन सोचा पर बोलने से कोई फल नहीं निकलने वाला था. अत: चुपचाप बैठी रही.

‘‘अब क्या मूर्खों की तरह शून्य में ताकती बैठी रहोगी? मेरी बात का रिप्लाई क्यों नहीं देती?’’

‘‘किस बात का रिप्लाई?’’ पूजा इतने धीमे स्वर में बोली कि मनीष उस के होंठों के हिलने से ही उस की बात समझ सका.

‘‘कल रघु आया था?’’

‘‘कौन रघु?’’

‘‘मेरा मित्र राघवेंद्र. कितना बड़ा स्कौलर है वह? तुम उसे क्या जानो? अपने विषय का सुपर मास्टर है. बड़ेबड़े व्यक्ति उस की राह में पलकें बिछाने को तैयार रहते हैं.’’

‘‘हां, कल एक व्यक्ति आया तो था पर वेशभूषा व चालढाल से वह सामान्य बुद्धि वाला भी नहीं प्रतीत हो रहा था. भड़कीले कपड़े पहने, गले में सोने की कई चेनें, सिर पर अजीब ढंग से फूले बाल और धूप का चश्मा, कुल मिला कर वह किसी होटल में नाचने वाला लगता था.’’

‘‘तुम ठहरी गंवार, फैशन के संबंध में क्या जानो. कसबे में तो कुरतापजामा पहन कर, सिर में ढेर सा तेल थोप कर बाल संवारना ही सब से बड़ा फैशन होता है.’’

‘‘जो भी होता हो पर जहां तक मैं सोचती हूं? हमारी बहस का विषय फैशन तो नहीं था.’’

‘‘पूजा, बहुत आरगू करने लगी हो तुम. पर ध्यान से सुन लो, ये सब बातें मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘तर्कवितर्क करना भी तो मुझे आप ने ही सिखाया है. नहीं तो मैं कसबे की सीधीसादी सरकारी स्कूल की लड़की. ठीक से बातें करना भी कहां आता था मुझे?’’

‘‘हां तो कल मेरा मित्र राघवेंद्र आया था?’’ मनीष ने प्राइमरी टीचर की भांति पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘उस ने मेरे संबंध में पूछा था?’’

‘‘हां.’’

‘‘और तुम ने बैठने तक को नहीं कहा?’’

‘‘आप घर पर नहीं थे. अत: उसे बैठने के लिए कहने का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘उस ने बताया था न कि वह मेरा मित्र है. उसे बैठा कर कम से कम एक कोल्ड ड्रिंक के लिए तो तुम पूछ सकती थीं पर इतने दिनों का सिखायापढ़ाया सब बेकार कर दिया तुम ने? आज सेमिनार में जब रघु ने सब के सामने तुम्हारे संबंध में बताया तो मैं शर्म से सिकुड़ कर रह गया. सब लोग मुझे देख कर हंस रहे थे?’’

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने जो सब आप को ही देख कर हंस रहे थे? आप भी तो मुझे मैसेज कर सकते थे कि वह आने वाला है?’’

‘‘मौडर्न सोसायटी में तुम्हारे जैसे फूल्स ही ऐसे काम करते हैं,’’ तीखे स्वर में बोल कर मनीष अपने पढ़ने के कमरे में घुस गया.

पूजा देर तक बैठी आंसू बहाती रही. आंसुओं के साथ ही यादों की न जाने कितनी आकृतियां बनतीबिगड़ती रहीं…

मनीष से उस का विवाह पक्का कर उस के पिता ऐसे गदगद हो उठे थे मानो कोई खजाना पा लिया हो.

‘‘एक बहुत पढ़ेलिखे जने से पूजा का विवाह हो रहा है,’’ वे प्रसन्नता से मां से बोले थे.

‘‘वह तो ठीक है पर हमारी पूजा तो केवल कसबे के कालेज से हिंदी में एमए पास है और वह इतना एमबीए, एमटैक पढ़ालिखा. मैं ने चाहा था कोई हमारे स्तर का वर मिल जाता, जहां पूजा सुखी रहती,’’ मां ने उत्तर दिया.

‘‘क्या कहना चाह रही हो तुम? क्या मनीष पूजा को सुखी नहीं रखेगा?’’

सुन कर मां चुप रह गईं.

‘‘एमए हिंदी में है तो क्या? हमारी पूजा लाखों में एक है. दूरदूर तक रिश्तेदारी में क्या ऐसी लड़की देखी है तुम ने? बड़े शहरों में क्या लड़कियों की कमी है? पर यहां कसबे में आ कर उन्होंने हमारी पूजा को पसंद किया तो कुछ तो कारण रहा होगा.’’

मगर पूजा पिछले 1 वर्ष के वैवाहिक जीवन में समझ नहीं सकी थी कि वह सुखी है अथवा दुखी. यों उसे कोई दुख नहीं था. पर मनीष के मुख से जो भी निकलता था, उसे हर हालत में उसे मानना पड़ता था. ऊपर से दिन भर गंवार, जाहिल होने के ताने मिलते थे. वह हिंदी एमए थी जिस की इस समाज में कोई बड़ी कीमत नहीं थी. उसे कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी क्योंकि हर नौकरी में अच्छी इंग्लिश आना जरूरी है चाहे काम सिर्फ रिसैप्शनिस्ट का क्यों न हो.

उस ने स्वयं को बदलने का कितना यत्न किया था? वह जिस दिन अपने लंबेलंबे बाल पार्लर कटवा कर आई थी तो देर तक रोती रही थी. कसबे भर में ऐसे सुंदर बाल किसी लड़की के नहीं थे. 3-4 दिन तक तो उसे बाहर निकलने में भी शर्म आती रही थी. इसी वेशभूषा के कारण तो मनीष ने उसे पसंद किया था जब वह एक पौलिटिकल रैली में एक कैंडीडेट के साथ उस के कसबे में आया था.

क्या यही आधुनिकता है? वह कड़वाकसैला पेय पीना, जिसे उस के परिवार  में पीना तो दूर, कोई छूता भी नहीं है. यदि उस के पिता को पता चल जाए कि मनीष ने कई

बार उसे उस कसैलीनशीली शराब पीने के लिए फोर्स किया है तो वे क्या सोचेंगे? पर मनीष तो कहते हैं कि आधुनिक होने के लिए यह सब करना जरूरी है. ऊपर से बड़ी अदा से छल्ले बनाना, सोचते हुए उस के आंसू कब के सूख गए थे.

अपनी ओर से उस ने सभी प्रयत्न किए थे क्योंकि मां ने कहा था कि घर को बनाने का दायित्व पत्नी पर अधिक होता है. पर वह कहां तक समझौते करती रहे. कल की घटना में क्या उस का दोष इतना बड़ा था कि मनीष मुंह फुला कर बैठ जाए.

‘‘इस बार माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नहीं होगा,’’ ट्रे मेज पर रख कर वह किसी प्रकार बोली थी. पर क्षोभ व अपमान से उस की आंखें भर आई थीं.

मनीष ने अपने नेत्र ऊपर उठाए थे. सदा की भांति अपनी सफलता पर वह मन ही मन मुसकराया था. आखिर पूजा कच्ची मिट्टी ही तो है, सोसायटी के लायक सांचे में ढालने में कुछ समय तो लगेगा ही.

‘‘आओ, इधर बैठो, पूजा. तुम नहीं जानती कि तुम ने कितने बड़े स्कौलर का अपमान किया है,’’ कौफी का कप उठाते हुए मनीष बोला.

‘‘क्या बहुत गुणवान है आप का मित्र?’’ अपना कम उठाते हुए पूजा ने प्रश्न किया.

‘‘स्कौलर तो वह है ही, पर लाइफ को सही ढंग से जीना भी जानता

है. खाओपीओ और मौज करो लिविंग ऐग्जैंपल. यह समझ लो कि वह मेरे जीवन का मौडल है. मालूम है उस ने अभी तक मैरिज नहीं की है.’’

‘‘अच्छा, क्या ऐज होगी आप के मित्र की?’’

‘‘30 साल होगी.’’

‘‘कब तक विवाह करने का इरादा है उस का?’’

‘‘मैरिज के नाम से ही उस का मूड खराब हो जाता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहता है कि यह भी कोई जीवन है, खूंटे से बंधी गाय जैसा. वह मानता है कि विवाह से पूर्व कितना भी लव क्यों न हो, विवाह के बाद सब छूमंतर हो जाता है. इसीलिए वह फ्री लव में विश्वास करता है.’’

‘‘आप का तो वह मौडल है. फिर आप ने विवाह क्यों किया?’’

‘‘मैरिज की है तो क्या? मैं भी उसी की तरह फ्री लव में विश्वास करता हूं.’’

‘‘यानी घर में पत्नी होते हुए भी दूसरों से प्रेम का नाटक करना?’’

‘‘नाटक नहीं, ऐक्चुअल लव करना. प्रेम तो एक जीतीजागती फीलिंग है, जिसे पत्नीरूपी पिंजरे में कैद नहीं किया जा सकता, डियर.’’

‘‘तो क्या उसे पतिरूपी पिंजरे में कैद किया जा सकता है?’’

मनीष हंस कर बोला, ‘‘अच्छा प्रश्न पूछा तुम ने. मेरी ओर से तुम भी किसी से भी लव करने के लिए फ्री हो. मैं तो सदा से फीमेल फ्रीडम में विश्वास करता हूं. जो बंधन में अपने लिए ऐक्सैप्ट नहीं कर सकता, तुम्हारे ऊपर कैसे लगा सकता हूं?’’

‘‘सचमुच बड़े ऊंचे विचार हैं आप के,’’ कौफी का आखिरी घूंट पी कर उस ने कप रखा. उस का मन अचानक बहुत अस्थिर हो गया था. बहुत सी भूलीबिसरी बातें मन के आकाश में बादलों की भांति उमड़घुमड़ रही थीं.

‘‘अरे कहां जा रही हो?’’ पूजा ट्रे उठा कर जाने लगी तो मनीष ने उसे बैठा लिया.

‘‘तुम्हें रघु के संबंध में बताऊंगा, तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह कितना इंटरैस्टिंग पर्सनैलिटी है. जहां जाता है लोगों का मन मोह लेता है. न जाने कितनी लड़कियों से उस की फ्रैंडशिप है. वह जिसे भी अपनी फ्रैंड बनाना चाहता है, बना कर ही छोड़ता है.

अपने देश की फेमस डांसर है अवंतिका देवी. कहते हैं कि  वह बेहद अच्छे कैरेक्टर वाली है. शास्त्रीय नृत्य के अतिरिक्त औरकोई नृत्य करना पसंद नहीं करती. एक बार हम दोनों एक समारोह में भाग लेने मुंबई गए थे. शाम को हम लोग उस का डांस देखने गए. पूरे कार्यक्रम के दौरान रघु मंत्रमुग्ध सा बैठा रहा. प्रोग्राम के बाद उस ने अवंतिका से मिलने का प्रयत्न किया तो पता चला कि वह तो किसी से मिलतीजुलती नहीं है.’’

‘‘अच्छा हुआ,’’ पूजा प्रसन्न हो कर ताली बजाने लगी.

‘‘चुप रहो, बीच में टोक दिया न. पूरी बात सुने बिना ही बकबक करने लगती

हो,’’ मनीष का कटु स्वर सुन कर पूजा का चेहरा पीला पड़ गया कि क्या उसे पूरा जीवन ऐसे ही सिरफिरे व्यक्ति के साथ बिताना होगा? ऐसी समझ से क्या फायदा? उस का मन हुआ कि उस का पति कोई सीधासादा व्यक्ति होता जो उस के आत्मसम्मान का भी उतना ही खयाल रखता, जितना अपने का.

‘‘हां, तो उस दिन रातभर रघु अवंतिका के डांस पर लेख लिखता रहा. दूसरे दिन वह समारोह छोड़ कर समाचारपत्रों के कार्यालयों में चक्कर लगाता रहा. अगले ही दिन अधिकांश समाचारपत्रों में अवंतिका के डांस की प्रेज में उस के लेख छप गए.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पूजा ऊबने लगी थी.

‘‘होना क्या था? अवंतिका ने इन लेखों में अपनी प्र्रेज पढ़ी तो गदगद हो उठी. कलाकार को अपनी प्रेज से अधिक अपनी कला की प्रेज की चाह होती है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या? दोनों मित्र बन गए और यह फ्रैंडशिप रिलेशन अब तक चली आ रही है.’’

‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘कब तक रघुजी अवंतिका देवी के मित्र बने रहेंगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हो सकता है कि अवंतिका मैरिज करना चाहें तो क्या उन के होने वाले पति रघु की फ्रैंडशिप को स्वीकार कर लेंगे?’’

‘‘हाईक्लास वर्ग में ऐसी फ्रैंडशिप बुरी नहीं मानी जाती.’’

‘‘जब यह अवंतिका के इतने फैन हैं तो उन से विवाह क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘मैरिज नाम की इंस्टिट्यूशन में उस का विश्वास ही नहीं है. पर तुम्हारी अक्ल तो इन सड़ेगले रीतिरिवाजों से परे जा ही नहीं सकती.’’

‘‘हां, वह तो है, मेरी एक बात मानेंगे आप?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं भी आगे पढ़ना चाहती हूं.’’

मनीष ठहाका मार कर हंसा, ‘‘यह अचानक पढ़ाईलिखाई में तुम्हारी रुचि कैसे जाग पड़ी? पहले तो तुम यही कहती थी कि और ज्यादा पढ़लिख कर तुम्हें कौन सी नौकरी करनी है. हिंदी में एमए हिंदी तो हू.’’

कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियसली बातें करते तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं?’’

‘‘बात कुछ नहीं है, पर कल को मैरिज इंस्टिट्यूशन पर से आप का विश्वास भी उठ गया तो मैं किस के कंधे पर सिर टिका कर रोऊंगी.’’

‘‘कैसी फूल्स वाली बातें कर रही हो? जाओ, मुझे काम करने दो. आज ही यह लेख पूरा कर के एक ब्लौग में अपलोड करना है.’’

तभी घंटी की आवाज सुन कर पूजा डोर पर आई.

‘‘मैं हूं राघवेंद्र, मनीष घर पर है क्या?’’

‘‘अरे, राघवेंद्र. आइए, अंदर आइए, ड्राइंगरूम खोल देती हूं.’’

‘‘मैं तो मनीष के बारे में पूछने आया था. क्या वह घर पर नहीं है? मैं ने उसे मैसेज किया था पर उस ने रिप्लाई नहीं किया.’’

‘‘नहीं. ठीक है, फिर मैं चलता हूं. वह आए तो बता दीजिएगा कि राघवेंद्र आया था.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? उस दिन आप इसी तरह बाहर के बाहर चले गए थे तो मनीष कितने नाराज हो गए थे. आज तो मैं आप को इस तरह नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘मेरे पास समय कम है, पूजा. 4-5 दिनों

में ढेरों काम करने हैं. आज परमिशन दीजिए, अगली बार जब आऊंगा तो आप के घर पर ही डेरा लगाऊंगा.’’

‘‘न बाबा न, समय हो या न हो, आप यह तो नहीं चाहेंगे कि आप के कारण मेरी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ जाए.’’

‘‘पर मैं ने ऐसा क्या किया है जो आप की शादी खतरे में पड़ जाएगी?’’ राघवेंद्र आश्चर्यचकित हो उठा.

‘‘आप नहीं समझेंगे, राघवेंद्र. ठीक भी है, समझेंगे कैसे? हां, मेरे स्थान पर आप होते तो अवश्य समझ जाते. आइए न, प्लीज अंदर

आइए न?’’

राघवेंद्र कुछ देर हत्प्रभ खड़ा सोचने लगा कि अच्छा आया वह मनीष को बुलाने, इस से तो सीधा ही चला जाता.

पर पूजा की बातों से उस का कुतूहल जाग उठा था. फिर पूजा के आग्रह को टाल कर जाना क्या आसान कार्य था? उस ने मोबाइल निकाल कर मनीष को काल करना चाहा तो पूजा ने उसे रोक दिया कि अब क्या आप उस से परमिशन लोगे.

‘चलो, कुछ देर बैठ जाते हैं. शायद तब तक मनीष आ जाए,’ उस ने सोचा.

‘‘आप बैठिए, रघुजी. मैं तब तक चाय या कौफी बना लाती हूं,’’ कहती हुई पूजा रसोईघर में व्यस्त हो गई.

रघु पत्रिका के पृष्ठ पलट रहा था कि पूजा चाय की ट्रे थामे आ गई.

‘‘हां, तो क्या अपराध हो गया मु?ा से पूजा जो आप की गृहस्थी खतरे में पड़ जाएगी?’’

‘‘आप को सचमुच कुछ नहीं मालूम? आप ही ने तो मेरे मनीष से शिकायत की थी कि आप यहां आए और मैं ने पानी तक के लिए नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा, पूजाजी. मैं ने तो सिर्फ यह कहा था कि मैं तुम्हारे घर गया था. फिर उसी ने पूछा कि आप ने चायकौफी पिलाई या नहीं?’’

‘‘हां, मैं ठहरी सीधीसादी गंवार. किसी का स्वागत करना क्या जानूं?’’ न चाहते हुए भी पूजा के नेत्र छलछला आए.

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने तो बिलकुल बुरा नहीं माना. मनीष मेरा मित्र अवश्य है, पर आप ने तो मुझे कभी देखा ही नहीं था. अत: स्वागतसत्कार का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘अच्छा छोडि़ए इन बातों को लीजिए चाय पीजिए,’’ कहते हुए पूजा ने चाय पकड़ा दी.

‘‘एक बात पूछूं पूजा?’’ उस ने अचानक पूछा.

‘‘आप मनीष के साथ खुश हैं न?’’

‘‘मुझे यहां क्या दुख है, रघु? पर क्या करूं मैं ही उन के योग्य नहीं हूं,’’ पूजा बोली.

‘‘यह आप क्या कह रही है पूजाजी. आप जैसी अनुपम सौंदर्य क्या आसानी से देखने को मिलता है? मुझे तो आप में कोई कमी नजर नहीं आती.’’

‘‘पर मनीष कहते हैं कि गुणों के बिना रूप का महत्त्व क्या है? मैं दिल्ली की मौडर्न सोसायटी समाज का रहनसहन, तौरतरीके कुछ भी तो नहीं जानती. अंगरेजी नहीं बोल सकती. आजकल मैं अंगरेजी लिखना व बोलना सीख रही हूं. इंग्लिश क्लासे ले रही हूं.’’

‘‘क्या अंगरेजी बोलना ही सब से बड़ा गुण होता है? इन सब आडंबरों में पड़ने की आप को कोई आवश्यकता है? किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, पर हमें कोई विशेष भाषा नहीं आती इस को ले कर कुंठित होना अवश्य बुरा है.’’

‘‘हाय रघु, कितनी देर हुई तुम्हें आए?’’ तभी मनीष का चहकता स्वर सुन कर

रघु ने गरदन घुमाई.

‘‘आओ मनीष, कहां रह गए थे तुम?’’ मैं तो जा रहा था पर पूजा ने इतना आग्रह किया कि बैठना ही पड़ा.’’

‘‘मैं यूनिवर्सिटी से निकला ही था कि रीतेश मिल गया. छोड़ ही नहीं रहा था. बड़ी कठिनाई से जान छुड़ा कर आया हूं. तुम्हारी मिस्डकाल देखी थी पर फिर सोचा घर जा कर आराम से

बात करूंगा.’’

‘‘बैठिए, 1 कप कौफी और बना लाती हूं,’’ पूजा उठ कर अंदर चली गई.

‘‘मान गए, भई तुम्हारे विवाह में तो मैं आ नहीं सका था, अब बधाई स्वीकार करो. लाखों में एक है तुम्हारी पत्नी.’’

‘‘यों समझ लो कि अनगढ़ हीरा उठा लाया हूं. तराश कर नया ही रंगरूप निखारना है.’’

‘‘हीरा कितना ही मूल्यवान हो मित्र, जीतेजागते मनुष्य की बराबरी में कहीं नहीं ठहरता,’’ रघु हंस कर बोला.

तब तक पूजा चाय बना लाई थी. अत: बात वहीं समाप्त हो गई.

दूसरे दिन सुबहसुबह राघवेंद्र आ धमका, ‘‘मनीष व पूजा भाभी ध्यान से सुनिए, मैं क्या कहने जा रहा हूं,’’ वह नाटकीय स्वर में बोला.

‘‘कल मैं जा रहा हूं. आज का पूरा दिन आप लोगों के साथ बिताने का इरादा है. मेरा नाश्ता यहीं होगा. फिर चाइनीज रेस्तरां में मेरी ओर से खाना. उस के बाद घूमेफिरेंगे. कोई अच्छी फिल्म मौल में लगी होगी तो वह भी देख लेंगे,’’ रघु बेहद उत्साहित स्वर में बोला.

तभी मनीष का फोन घनघना उठा. फोन कालेज से था कि स्टाफ यूनियन को शिक्षा मंत्री से कुछ विषयों पर बात करने के लिए बुलाया है. अभी आना जरूरी है. मनीष स्टाफ यूनियन का अस्सिटैंट सैक्रेटरी था तो जाना जरूरी था. अत: उस ने कहा, ‘‘रघु चलो चाइनीज फिर खाएंगे. मुझे मंत्री के यहां जाना है.’’

पूजा उठने को हुई पर रघु ने पूजा का हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोला, ‘‘तुम्हारे मंत्रीजी ने तो सारे उत्साह पर पानी फेर दिया, पर हमारा कार्यक्रम नहीं बदलने वाला. पहले यहां नाश्ता करेंगे. फिर चाइनीज खाना खाएंगे. तुम जाओ विश्वविद्यालय, पूजा मेरा साथ देगी.’’

एक क्षण को मनीशा हत्प्रभ रह गया पर एकदम से मना करने का साहस भी नहीं हुआ.

‘‘ठीक है, पूजा चली जाएगी तुम्हारे साथ,’’  मनीष किसी प्रकार बुझे स्वर में बोला.

पूजा नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई और मनीष व रघु बात करने में. पर मनीष का मन बारबार उचट जाता, ‘इस मंत्री को भी आज

आना था,’ वह मन ही मन बड़बड़ाया और उसे जाना पड़ा.

मनीष घर 3 बजे लौट आया. डोर पर अब भी बड़ा सा ताला लटक रहा था. दूसरी चाबी से ताला खोल कर वह घर में घुसा और पूजा की वेट करने लगा. वह कुरसी पर बैठेबैठे ही सो गया. जब अचानक नींद खुली तो 6 बज रहे थे. हलका अंधकार छाने लगा था. पर पूजा और रघु का कहीं पता नहीं था.

लगभग आधे घंटे बाद दोनों ने घर में प्रवेश किया.

‘‘अरे मनीष, कितनी देर हुई तुम्हें आए? माफ करना भाई, थोड़ी देर हो गई. वहीं चाइनीज रेस्तरां में एक और मित्र कपल मिल गया. घूमतेफिरते कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. अच्छा अब मुझे आज्ञा दो,’’ रघु ने विदा लेते हुए कहा.

‘‘एक अवसर क्या मिला घूमनेफिरने का कि पूरा दिन बाहर ही बिता दिया तुम ने,’’ रघु के जाते ही मनीष क्रोधित स्वर में बोला.

‘‘मैं तो आप की आज्ञा का पालन कर

रही थी. आप ही ने तो कहा था जाने को. अब क्यों लालपीले हो रहे हो?’’ पूजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘इस पैकेट में क्या है?’’

‘‘एक ड्रैस है. जारा के शोरूम से ली है. रघु ने उपहार में दी है. वे कर रहे थे कि आप के विवाह में आ नहीं सके थे, इसलिए अब उपहार दिया है.’’

‘‘और तुम ने स्वीकार कर ली? उस के मुंह पर दे मारनी चाहिए थी तुम्हें. मैं ने रघु की कितनी ही महिला मित्रों के संबंध में बताया था… अवंतिका की कहानी सुनाई थी, पर तुम्हारी आंखें नहीं खुलीं.’’

‘‘कितने उदार व आधुनिक विचार हैं आप के, पर एक बात ध्यान से सुन लीजिए, मैं अवंतिका देवी नहीं हूं. एक तो क्या सैकड़ों रघु भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते यह आप के मित्र का दिया उपहार सामने रखा है. कल जब आप उन्हें छोड़ने जाएंगे तो स्वयं ही उन के मुंह पर दे मारना,’’ जलती आंखों से मनीष को घूरती हुई पूजा दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘मुझे क्षमा कर दो पूजा,’’ कुछ देर बाद मनीष भी वहीं पहुंच कर बुझे स्वर में बोला, ‘‘आगे से कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा. हमारी दशा तो 2 नावों के सवार जैसी है.’’

‘‘एक अजनबी व्यक्ति के साथ पूरा दिन मूर्खों की तरह भटकते रहना कितना ट्रैजिक होता है, आप क्या सम?ोंगे. मैं बचपन से लड़कों को अबौइड करती रही क्योंकि हमारे कसबे में तो एक कौपी या किताब उधार लेने या फेसबुक पर फ्रैंडशिप ऐक्सैप्ट करने पर हंगामा मच जाता है. यहां तुम ही बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. खैर, जो भी तुम समझे, आज का दिन गुजरा बड़ा अच्छा. रघु की कंपनी वाकई बहुत ऐंजौएबल है,’’ पूजा ने बड़ी शोखी से कहा. मनीष चुपचाप बैठा शून्य में देखे जा रहा था.

Hindi Love Stories : यादों के आंसू

Hindi Love Stories : सांझ ढलते ही थिरकने लगते थे उस के कदम. मचने लगता था शोर, ‘डौली… डौली… डौली…’ उस के एकएक ठुमके पर बरसने लगते थे नोट. फिर गड़ जाती थीं सब की ललचाई नजरें उस के मचलते अंगों पर. लोग उसे चारों ओर घेर कर अपने अंदर का उबाल जाहिर करते थे.

…और 7 साल बाद वह फिर दिख गई. मेरी उम्मीद के बिलकुल उलट. सोचा था कि जब अगली बार मुलाकात होगी, तो वह जरूर मराठी धोती पहने होगी और बालों का जूड़ा बांध कर उन में लगा दिए होंगे चमेली के फूल या पहले की तरह जींसटीशर्ट में, मेरी राह ताकती, उतनी ही हसीन… उतनी ही कमसिन… लेकिन आज नजारा बदला हुआ था. यह क्या… मेरे बचपन की डौल यहां आ कर डौली बन गई थी.

लकड़ी की मेज, जिस पर जरमन फूलदान में रंगबिरंगे डैने सजे हुए थे, से सटे हुए गद्देदार सोफे पर हम बैठे हुए थे. अचानक मेरी नजरें उस पर ठहर गई थीं.

वह मेरी उम्र की थी. बचपन में मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे अपने साथ स्कूल ले कर जाती थी. उन दिनों मेरा परिवार एशिया की सब से बड़ी झोंपड़पट्टी में शुमार धारावी इलाके में रहता था. हम ने वहां की तंग गलियों में बचपन बिताया था. वह मराठी परिवार से थी और मैं राजस्थानी ब्राह्मण परिवार का. उस के पिता आटोरिकशा चलाते थे और उस की मां रेलवे स्टेशन पर अंकुरित अनाज बेचती थी.

हर शुक्रवार को उस के घर में मछली बनती थी, इसलिए मेरी माताजी मुझे उस दिन उस के घर नहीं जाने देती थीं.

बड़ीबड़ी गगनचुंबी इमारतों के बीच धारावी की झोंपड़पट्टी में गुजरे लमहे आज भी मुझे याद आते हैं. उगते हुए सूरज की रोशनी पहले बड़ीबड़ी इमारतों में पहुंचती थी, फिर धारावी के बाशिंदों के पास. धारावी की झोंपड़पट्टी को ‘खोली’ के नाम से जाना जाता है. उन खोलियों की छतें टिन की चादरों से ढकी रहती हैं.

जब कभी वह मेरे घर आती, तो वापस अपने घर जाने का नाम ही नहीं लेती थी. वह अकसर मेरी माताजी के साथ रसोईघर में काम करने बैठ जाती थी. काम भी क्या… छीलतेछीलते आधा किलो मटर तो वह खुद खा जाती थी. माताजी को वह मेरे लिए बहुत पसंद थी, इसलिए वे उस से बहुत स्नेह रखती थीं.

हम कल्याण के बिड़ला कालेज में थर्ड ईयर तक साथ पढे़ थे. हम ने लोकल ट्रेनों में खूब धक्के खाए थे. कभीकभार हम कालेज से बंक मार कर खंडाला तक घूम आते थे. हर शुक्रवार को सिनेमाघर जाना हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था. इसी बीच उस की मां की मौत हो गई. कुछ दिनों बाद उस के पिता उस के लिए एक नई मां ले आए थे.

ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं और पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया था. कई दिनों तक उस के बगैर मेरा मन नहीं लगा था. जैसेतैसे 7 साल निकल गए. एक दिन माताजी की चिट्ठी आई. उन्होंने बताया कि उस के घर वाले धारावी से मुंबई में कहीं और चले गए हैं.

7 साल बाद जब मैं लौट कर आया, तो अब उसे इतने बड़े महानगर में कहां ढूंढ़ता? मेरे पास उस का कोई पताठिकाना भी तो नहीं था. मेरे जाने के बाद उस ने माताजी के पास आना भी बंद कर दिया था. जब वह थी… ऐसा लगता था कि शायद वह मेरे लिए ही बनी हो. और जिंदगी इस कदर खुशगवार थी कि उसे बयां करना मुमकिन नहीं.

मेरा उस से रोज झगड़ा होता था. गुस्से के मारे मैं कई दिनों तक उस से बात ही नहीं करता था, तो वह रोरो कर अपना बुरा हाल कर लेती थी. खानापीना छोड़ देती थी. फिर बीमार पड़ जाती थी और जब डाक्टरों के इलाज से ठीक हो कर लौटती थी, तब मुझ से कहती थी, ‘तुम कितने मतलबी हो. एक बार भी आ कर पूछा नहीं कि तुम कैसी हो?’ जब वह ऐसा कहती, तब मैं एक बार हंस भी देता था और आंखों से आंसू भी टपक पड़ते थे.

मैं उसे कई बार समझाता कि ऐसी बात मत किया कर, जिस से हमारे बीच लड़ाई हो और फिर तुम बीमार पड़ जाओ. लेकिन उस की आदत तो जंगल जलेबी की तरह थी, जो मुझे भी गोलमाल कर देती थी. कुछ भी हो, पर मैं बहुत खुश था, सिवा पिताजी के जो हमेशा अपने ब्राह्मण होने का घमंड दिखाया करते थे.

एक दिन मेरे दोस्त नवीन ने मुझ से कहा, ‘‘यार पृथ्वी… अंधेरी वैस्ट में ‘रैडक्रौस’ नाम का बहुत शानदार बीयर बार है. वहां पर ‘डौली’ नाम की डांसर गजब का डांस करती है. तुम देखने चलोगे क्या? एकाध घूंट बीयर के भी मार लेना. मजा आ जाएगा.’’

बीयर बार के अंदर के हालात से मैं वाकिफ था. मेरा मन भी कच्चा हो रहा था कि अगर पुलिस ने रेड कर दी, तो पता नहीं क्या होगा… फिर भी मैं उस के साथ हो लिया. रात गहराने के साथ बीयर बार में रोशनी की चमक बढ़ने लगी थी. नकली धुआं उड़ने लगा था. धमाधम तेज म्यूजिक बजने लगा था.

अब इंतजार था डौली के डांस का. अगला नजारा मुझे चौंकाने वाला था. मैं गया तो डौली का डांस देखने था, पर साथ ले आया चिंता की रेखाएं. उसे देखते ही बार के माहौल में रूखापन दौड़ गया. इतने सालों बाद दिखी तो इस रूप में. उसे वहां देख कर मेरे अंदर आग फूट रही थी. मेरे अंदर का उबाल तो इतना ज्यादा था कि आंखें लाल हो आई थीं. आज वह मुझे अनजान सी आंखों से देख रही थी. इस से बड़ा दर्द मेरे लिए और क्या हो सकता था? उसे देखते ही, उस के साथ बिताई यादों के झरोखे खुल गए थे.

मुझे याद हो आया कि जब तक उस की मां जिंदा थीं, तब तक सब ठीक था. उन के मर जाने के बाद सब धुंधला सा गया था. उस की अल्हड़ हंसी पर आज ताले जड़े हुए थे. उस के होंठों पर दिखावे की मुसकान थी.

वह अपनेआप को इस कदर पेश कर रही थी, जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं. वह रात को यहां डांसर का काम किया करती थी और रात की आखिरी लोकल ट्रेन से अपने घर चली जाती थी. उस का गाना खत्म होने तक बीयर की पूरी 2 बोतलें मेरे अंदर समा गई थीं.

मेरा सिर घूमने लगा था. मन तो हुआ उस पर हाथ उठाने का… पर एकाएक उस का बचपन का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने तैर आया. मेरा बीयर बार में मन नहीं लग रहा था. आंखों में यादों के आंसू बह रहे थे. मैं उठ कर बाहर चला गया. नवीन तो नशे में चूर हो कर वहीं लुढ़क गया था.

मैं ने रात के 2 बजे तक रेलवे स्टेशन पर उस के आने का इंतजार किया. वह आई, तो उस का हाथ पकड़ कर मैं ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है?’’ ‘‘तुम इतने दूर चले गए. पढ़ाई छूट गई. पापी पेट के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम तो करना ही था. मैं क्या करती?

‘‘सौतेली मां के ताने सुनने से तो बेहतर था… मैं यहां आ गई. फिर क्या अच्छा, क्या बुरा…’’ उस ने कहा. ‘‘एक बार माताजी से आ कर मिल तो सकती थीं तुम?’’

‘‘हां… तुम्हारे साथ जीने की चाहत मन में लिए मैं गई थी तुम्हारी देहरी पर… लेकिन तुम्हारे दर पर मुझे ठोकर खानी पड़ी. ‘‘इस के बाद मन में ही दफना दिए अनगिनत सपने. खुशियों का सैलाब, जो मन में उमड़ रहा था, तुम्हारे पिता ने शांत कर दिया और मैं बैरंग लौट आई.’’

‘‘तुम्हें एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. कुछ और काम भी तो कर सकती थीं?’’ मैं ने कहा. ‘‘कहां जाती? जहां भी गई, सभी ने जिस्म की नुमाइश की मांग रखी. अब तुम ही बताओ, मैं क्या करती?’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारा मन मैला नहीं है. कल से तुम यहां नहीं आओगी. किसी को कुछ कहनेसमझाने की जरूरत नहीं है. हम दोनों कल ही दिल्ली चले जाएंगे.’’ ‘‘अरे बाबू, क्यों मेरे लिए अपनी जिंदगी खराब कर रहे हो?’’

‘‘खबरदार जो आगे कुछ बोली. बस, कल मेरे घर आ जाना.’’ इतना कह कर मैं घर चला आया और वह अपने घर चली गई. रात सुबह होने के इंतजार में कटी. सुबह उठा, तो अखबार ने मेरे होश उड़ा दिए. एक खबर छपी थी, ‘रैडक्रौस बार की मशहूर डांसर डौली की नींद की ज्यादा गोलियां खाने से मौत.’

मेरा रोमरोम कांप उठा. मेरी खुशी का खजाना आज लुट गया और टूट गया प्यार का धागा. ‘‘शादी करने के लिए कहा था, मरने के लिए नहीं. मुझे इतना पराया समझ लिया, जो मुझे अकेला छोड़ कर चली गई? क्या मैं तुम्हारा बोझ उठाने लायक नहीं था? तुम्हें लाल साड़ी में देखने

की मेरी इच्छा को तुम ने क्यों दफना दिया?’’ मैं चिल्लाया और अपने कानों पर हथेलियां रखते हुए मैं ने आंखें भींच लीं.

बाहर से उड़ कर कुछ टूटे हुए डैने मेरे पास आ कर गिर गए थे. हवा से अखबार के पन्ने भी इधरउधर उड़ने लगे थे. माहौल में फिर सन्नाटा था. रूखापन था. गम से भरी उगती हुई सुबह थी वह.

Story In Hindi : तोहफा

Story In Hindi : सारे काम निबटा कर नीता ने एक बार फिर घर पर नजर डाली. पूरा घर भीनीभीनी खुशबू से महक रहा था. विशेषरूप से उस का एवं उस के पति राजन का कमरा तो फूलों की अनगिनत लडि़यों से महक रहा था. उस ने घड़ी की तरफ देखा, अभी शाम के 5 भी नहीं बजे थे.

राजन की प्रतीक्षा में नीता ऊपर बरामदे में आ कर खड़ी हो गई. आज उस की शादी की दूसरी वर्षगांठ थी. इस खुशी के अवसर पर वह राजन को एक तोहफा देना चाहती थी. उस कृति के शीघ्र निर्माण का तोहफा, जिसे प्राप्त कर हर नारी पूर्ण हो जाती है.

आज सुबह ही तो उसे पता चला था. कपड़े धो कर ज्यों ही वह उठी थी, चकरा कर गिरने लगी थी. वह तो कामवाली ने उसे संभाल लिया. पूरा घर उसे घूमता हुआ सा लग रहा था.

कामवाली ने ही बताया, ‘‘मैडमजी, तुम्हें बच्चा होने वाला है. अपनी सासूमां को बुला लो अब.’’

नीता चुप रह गई. क्या कहती? उस के जीवन में तो सासससुर का प्यार ही नहीं था, अम्मां और बाबूजी भी तीर्थ पर जा चुके थे.

कुहनियों को बालकनी की रेलिंग पर टिका कर ऊपर आकाश की तरफ नीता ने बड़ीबड़ी आंखें टिका दीं. डूबते सूरज के चारों तरफ कितने ही छोटेबड़े बादल के टुकड़े तैर रहे थे. सूरज की लालिमा उसे पीछे अतीत में लौटा ले गई…

उन दिनों नीता 12वीं कक्षा में पढ़ती थी. यह संयोग ही था कि उस के पड़ोस की कोई लड़की उस स्कूल में नहीं पढ़ती थी. वह स्कूटी से अकेली ही जाती थी. उस के पिता मातादीन बाबू की पासपड़ोस में काफी प्रतिष्ठा थी. नीता गंभीर स्वभाव की कही जाती थी, मांबाप की इकलौती संतान होने के बावजूद उस के स्वभाव में जिद्दीपन नहीं था.

एक दिन स्कूल जाते समय रास्ते में 2 गुंडे किस्म के युवकों ने उसे रोक लिया. वह अपनी स्कूटी बचा कर किनारे से निकल जाना चाहा. तभी बाइक पर सवार 2 में से एक लड़के ने उस की स्कूटी का हैंडल पकड़ कर उसे रोक दिया.

‘‘कहां जाती हो, रानी, जरा ठहरो न,’’ बड़ी ही भद्दी मुसकराहट से एक ने कहा तो अचानक नीता में जाने कहां की ताकत आ गई. उस ने अपने दाहिने पांव की ठोकर युवक की कमर के नीचे खींच कर मारी. बाइक का बैलेंस बिगड़ गया और उस पर सवार ज्यों ही बिलबिला कर पीछे हटा, दूसरा उसे संभालने के लिए बढ़ गया. इतना अवसर नीता के लिए बढ़ गया. वह तेजी से स्कूटी भगा कर ले गई.

स्कूल पहुंचने पर एक और जो घटना उसे सुनाई दी वह अचंभित कर देने वाली थी. एक लड़की अपनी 2 सहेलियों के साथ एक सिंगल स्क्रीन पिक्चर देखने गई थी. इंटरवल से पूर्व उसे पेशाब आया. दूसरी सहेली पिक्चर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हुई. अंत में उसे अकेले ही जाना पड़ा. वहां पहले से 2 लड़के छिपे हुए थे, जिन्होंने उसे घुसते ही दबोच लिया. जब उस लड़की को होश आया तो सारी बातें सामने आईं, पर बयान देने के बाद ही वह लड़की दिए गए घावों के कारण मर गई. इसी शोक में उस दिन स्कूल बंद कर दिया था. लड़कियों में बड़े रोश की लहर थी. उस घटना को जान कर उस ने अपने साथ घटी घटना का वर्णन किसी से नहीं किया. नीता की मां कमजोर दिल की थीं.

नीता ने सोचा कि मां को पता चलेगा तो उस का स्कूल जाना भी छूट जाएगा. सावधानी के तौर पर वह कुछ लड़कियों का साथ पाने के लिए दूसरे रास्ते से आने लगी.

घटना के काफी दिन बाद की बात है. एक शाम नीता घर में अकेली थी. बाबूजी दुकान पर थे और मां कहीं गई थीं.

जातेजाते मां उसे दरवाजा बंद करने के लिए कई गई थीं. वह उस समय रोटी बना रही थी. तभी पड़ोस की एक लड़की दूध मांगने आ गई. उस ने उस से कहा कि वह जातेजाते दरवाजा बंद कर दे.

लड़की के जाने के थोड़ी देर बाद बाहर दस्तक हुई, ‘‘नीताजी… नीताजी…’’

नीता बाहर गई तो उस ने देखा, दरवाजे पर एक युवक खड़ा है, ‘‘कहिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उधर बाबूजी खड़े हैं, देखिए.’’

नीता ने एक पल के लिए अपना चेहरा दाहिनी तरफ घुमाया ही था कि उस लड़के ने उस की नाक पर न जाने क्या रखा दिया कि वह अचेत हो गई.

जब नीता को होश आया तो उस ने अपनेआप को एक खंडहर में पाया. नजरें घुमा कर उस ने अपने आसपास देखा, 2 युवक थोड़ी दूर पर बैठे उस के होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. युवकों के चेहरे पर नजर पड़ते ही वह चीख पड़ी. ये दोनों वही युवक थे, जिन्होंने रास्ते में उसे रोका था. तो ये अपने अपमान का बदला लेने लाए हैं उस से. उस ने उठ कर ज्यों ही भागना चाहा, उस ने महसूस किया कि उस के पांव बंधे हुए हैं. अपनी बेबसी पर वह रो पड़ी. दोनों युवक उस की तरफ बढ़ रहे थे, पर वह अपनी अस्मत बचा सकने में असमर्थ थी. उस की चीखपुकार उस खंडहर में सुनने वाला कोई न था.

जब नीता को पुन: होश आया तो सुबह का धुंधलका फैलने लगा था. एक खंडहर में वह अस्तव्यस्त अवस्था में पड़ी थी. उस ने अपने बदन को टटोला तो पाया कुछ खरोंचों के अलावा उस के साथ कुछ बुरा नहीं हुआ है. शायद दोनों ने ज्यादा पी रखी थी और इसीलिए वे उस के कपड़े उतार कर आगे नहीं बढ़ पाए. वहां पड़ी 4-5 बोतलें गवाह थीं कि उसे उठा लाने के जश्न में उन्होंने ज्यादा पी ली थी. अपनी स्थिति पर वह बिलखबिलख कर रो पड़ी. उन दोनों युवकों का कहीं पता न था. उस समय उस के मन में आया, वह आत्महत्या कर ले. अपवित्र शरीर ले कर वह क्या करेगी. मांबाप को कौन सा मुंह दिखाएगी? सहेलियों का सामना कैसे करेगी. पड़ोसियों को क्या जवाब देगी कि  वह रात भर कहां थी?

आत्महत्या… उस की मौत के बाद क्या यह बात छिपी रह सकेगी? लाश की चीरफाड़ होगी, तब खुल कर यह बात सामने आ जाएगी कि मृत्यु से पूर्व उस के साथ बलात्कार किया गया है. तब बाबूजी एवं मां क्या आत्महत्या नहीं कर लेंगे?

अंत में विवेक की जीत हुई. शाम के ?ारमुट में नीता घर लौट आई. मां और बाबूजी इज्जत बचाने के चक्कर में किसी के घर पूछने भी नहीं गए थे. सारी घटना सुन कर मां बेहोश हो गईं. मातादीन बाबू ने पुलिस में रिपोर्ट करनी चाही, पर फिर रुक गए. उन दोनों की शनाख्त कैसे होगी? फिर कौन सी अदालत उन्हें फांसी पर चढ़ा देगी? ऐसे गुंडे किस्म के युवक इसी से तो शह पाते हैं. लड़की के घर वाले इज्जत बचाने के चक्कर में पुलिस में नहीं जाते और ये उन की इज्जत से खेलते हैं.

नीता उन दोनों को पहचानने लगी थी. उस ने ध्यान से चलना शुरू कर दिया. अपना हुलिया थोड़ा बदल लिया था, उस के पर्स में अब 1 बिग, एक चुनरी, चाकू और पैपर स्प्रे हमेशा रहता था. एक दिन उसे एक कोने में उन 2 में से एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. शायद नशे में था. स्कूटी रोक कर वह उस के आसपास की भीड़ कम होने का इंतजार करने लगी. जैसे ही भीड़ कुछ कम हुई, वह उस के पास बिग लगा कर पहुंची और पता पूछने के बहाने एक कागज उसे दिखाने का नाटक करने लगी. फिर मौका पा कर उस का काम तमाम कर दिया.

मातादीन ने गुंडों द्वारा बेटी को उठा ले जाने की बात को बहुत छिपाने की कोशिश की पर धीरेधीरे यह बात फैल ही गई. नीता रातदिन सोचती रहती. मां ने बाहर निकलना बंद कर दिया. तब मातादीन ने यही सोचा कि नीता का विवाह कर दिया जाए.

नीता के लिए वर की खोज शुरू हुई तो कोई न कोई भेद खोल आता. अंत में राजन से विवाह तय हुआ. राजन स्टेट बैंक में क्लर्क था. जब तक बरात नहीं आ गई, मातादीन का दिल घबराता रहता कि कहीं किसी ने कुछ कह दिया तब? यही हाल नीता का था. कैसे छिपाएगी वह यह बात राजन से? क्या देगी उसे पहली रात को? पर कुछ भी हो इस बात को छिपाना ही होगा.

मंडप में राजन एवं नीता बैठ चुके थे. पंडितजी के श्लोक गूंज रहे थे. फेरे होने ही वाले थे कि अचानक बरातियों में भगदड़ मच गई. किसी ने राजन के पिता को नीता के साथ घटी घटना की सूचना दे दी. वे क्रोध में गरजते हुए आए, ‘‘बंद करो यह शादी, पंडितजी. उठिए, यह शादी नहीं होगी.’’

सभी आश्चर्य से एकदूसरे का मुंह देखने लगे. नीता का दिल धड़क उठा.

‘‘क्या कह रहे हैं समधीजी? आखिर हम से कौन सी भूल हो गई है?’’ मातादीन का स्वर कांपने लगा. मन में वे समझ गए कि क्या होने वाला है.

‘‘कैसा समधी? किस का समधी? हम किसी भागी हुई लड़की को बहू नहीं बना सकते.’’

सारे बराती अचंभित रह गए. जो जानते थे वे खामोश रहे, बाकी में खुसुरफुसुर शुरू हो गई.

‘‘नीता भागी नहीं थी समधीजी… यह बेचारी तो निर्दोष है.’’

‘‘तो इस निर्दोष को अपने ही घर रखे रहो. हमें नहीं ले जानी यह गंदगी अपने घर.’’

‘‘बात क्या हो गई है बाबूजी?’’ राजन हैरान था.

‘‘इस समय कुछ मत पूछ. बस खड़ा हो जा. बरात वापस जाएगी.’’

‘‘नहीं बाबूजी, पहले आप बताइए तो सही.’’

‘‘मैं बताता हूं, बेटा,’’ मातादीन रोते हुए बोले, ‘‘2 साल पूर्व इस बेचारी को कुछ गुंडे उठा ले गए थे पर वे इस का कुछ कर नहीं पाए थे,’’ फिर उन्होंने रोतेरोते सबकुछ बता दिया.

उधर नीता एवं उस की मां दोनों ही बेहोश हो गईं. नीता को औरतों ने संभाल लिया. नीता का निर्दोष चेहर आंसुओं में डूबा हुआ था.

‘‘सुन लिया? उन गुंडोें ने क्या इसे अछूती छोड़ दिया होगा? हमें धोखा दिया गया है. चल उठ,’’ रामधारी बाबू गरजते जा रहे थे.

‘‘नहीं, समधीजी नहीं,’’ अपनी पगड़ी रामधारी बाबू के पैरों पर रखते हुए मातादीन बाबू बोले, ‘‘यदि बरात लौट गई तो हम तीनों मर जाएंगे. नीता आप की बहू है. हमारी इज्जत आप के हाथ में है समधीजी.’’

रामधारी बाबू ने पैर की एक ठोकर मारी और पगड़ी लुढ़कती हुई मंडप के बीच जल रही आग में जा गिरी. पगड़ी धूधू कर जल उठी.

‘‘बस करिए बाबूजी किसी की इज्जत यों नीलाम मत करिए,’’  राजन ने अपना क्रोध जब्त करते हुए कहा.

‘‘क्या बकता है तू? चलता है या नहीं?’’

‘‘जाऊंगा, बाबूजी पर नीता को ब्याह कर,’’ राजन के दृढ़ स्वर पर लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई.

‘‘कमबख्त, क्या इसीलिए तुझे पढ़ाया था कि मेरी इज्जत यों सरेआम नीलाम कर दे? तू जाएगा और बरात भी जाएगी.’’

‘‘बाबूजी हम पढ़ते हैं इसलिए कि ज्ञान प्राप्त करें. दूसरों की जिंदगी में उजाला भर दें, न कि अंधेरा. सोचिए, यदि आज बरात लौट गई तो क्या फिर कोई इस दरवाजे पर बरात ले कर आने का साहस कर सकेगा? आप क्या चाहते हैं कि यह परिवार आत्महत्या कर ले या नीता किसी कोठे पर जा कर बैठ जाए?’’

इसी मध्य नीता को होश आ गया था. वह रोती हुई पितापुत्र का वार्त्तालाप सुन रही थी.

‘‘तो इस गंदगी के ढेर से तू शादी करेगा कमीने?’’ रामधारी बाबू गला फाड़ कर चीखे.

‘‘गंदगी का ढेर नीता नहीं है बाबूजी, वे गुंडे हैं जिन्होंने अपने इस कृत्य से कोठों को जन्म दिया है.’’

‘‘तो तू नहीं मानेगा?’’

राजन मौन रहा. उस के मौन ने आग में घी का काम किया. रामधारी का क्रोध आसमान छूने लगा, ‘‘ठीक है, आज से तू मेरा बेटा नहीं रहा. इस गंदगी के साथ ब्याह कर और जीवनभर मेरे सामने मत पड़ना.’’

पिता के साथ ही काफी लोग चले गए पर राजन के मित्र वहीं रह गए. पिता का अपमान करने का राजन का उद्देश्य न था. पर एक लड़की ही नहीं, पूरे परिवार की जान एवं इज्जत का प्रश्न था.

शादी हो गई. उस के मित्रों ने उन के लिए

2 कमरों के मकान का प्रबंध कर दिया.

पहली रात को ज्यों ही राजन ने नीता का घूंघट उठाया, वह उस के कंधे से लग कर बिलख उठी.

‘‘मत रो, नीता,’’ राजन उस के बाल सहलाते हुए बोला, ‘‘आज से तुम्हारा नया जन्म हुआ है. अतीत को भूल जाओ, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

नीता ने राजन को पूरी बात बताई. उस ने यह भी बताया कि वह गाइनोक्लौजिस्ट के पास भी चैक कराने गई थी जिस ने पुष्टि की थी कि रेप तो नहीं हुआ पर उस जगह छेड़छाड़ के निशान थे. यह बात उस ने किसी को नहीं बताईं क्योंकि कोई मानता नहीं. नीता ने एक गुंडे की हत्या करने की कहानी भी बता दी.

राजन ने भी कहा कि कोई नहीं मानेगा कि नीता जैसी लड़की किसी की हत्या कर सकती है.

छोटे से घर को नीता ने स्वर्ग बना कर रख दिया. राजन नीता के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करता. एक  ही बात नीता को खटकती कि उस के कारण राजन बेघर हो गया है. उस के पिता ने भी कई बार रामधारी बाबू को मनाने की कोशिश की पर उन्हें अपमानित होना पड़ा. नीता ने अपनी सास को भी कई पत्र भेजे पर उधर से मौन बना रहा.

स्कूटर की आवाज पर नीता की तंद्रा भंग हुई. घर के बाहर राजन अपना स्कूटर खड़ा कर रहा था. नीता को देख कर वह मुसकरा दिया.

नीता के दरवाजा खोलते ही राजन ने नीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘अरे…रे…क्या करते हो? छोड़ो भी…’’ नीता बोली.

‘‘नहीं छोडूंगा. पता है, आज मैं बहुत खुश हूं,’’ राजन ने उसे बांहों में लिए अंदर आते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात हो गई? अभी तो मैं ने वह खुशखबरी भी नहीं सुनाई है,’’ होंठों को हलके से दबा कर नीता ने कहा.

‘‘अच्छा, क्या आज दोनों के पास खुशखबरी है? चलो, पहले तुम ही बता दो. अरे, वाह,’’ कमरे में चारों तरफ देखते हुए राजन ने कहा, ‘‘बड़ी सजावट है, क्या खूब तैयारी की है?’’

‘‘चलो हटो. पहले अपनी खुशखबरी सुनाओ,’’ उस के बंधन से निकल कर पलंग पर बैठते हुए नीता ने कहा.

‘‘पहले तुम, बाद में मैं अपना तोहफा तुम्हें दूंगा खुशखबरी के रूप में.’’

‘‘तो सुनो, तुम शीघ्र ही बाप…’’ आगे की बात अधूरी छोड़ शरमा कर नीता ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

‘‘सच कह रही हो, नीता? आज हम एकदूसरे को जीवन का सब से बड़ा तोहफा दे रहे हैं,’’ नीता का हाथ प्यार से हटाते हुए राजन ने कहा, ‘‘आज का मेरा तोहफा भी खुशी से सराबोर है.’’

नीता ने अपनी प्रश्नसूचक नजर ऊपर उठाई.

‘‘आज डैडमौम आए थे. उन्होंने हमें अपना लिया है, नीता.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’ नीता का स्वर भीग गया.

‘‘हां नीता, उन्होंने हमें माफ कर दिया है,’’ राजन का स्वर खुशी में कांपने लगा, ‘‘उठो, तैयारी करो. आज अपनी दूसरी सुहागरात हम अपने वास्तविक घर में मनाएंगे. मैं ने उन्हें सारी बात बताई. तब उन्होंने कहा कि उन्हें बेटे के लिए आज सुघड़ साथी चाहिए और उस के पिछले हाल से उन्हें कोई मतलब नहीं. उस समय 2-4 रिश्तेदारों के कहने पर वे आपा खो बैठे थे.’’

नीता ने बाहर नजर डाली, दूर चांद निकल आया था. आज की रात कितना सुंदर तोहफा ले कर आई थी उन दोनों के लिए.

राइटर-   साधना सर्वप्रिय

Famous Hindi Stories : कायाकल्प – आखिर सुरेश और नैना के बीच क्या हुआ?

Famous Hindi Stories : ‘‘ नै ना, सुरेश तुम से जिस तरह से बात करता है, तुम कैसे सहन करती हो? कितना उद्दंड हो कर बात करता रहता है तुम से?’’ ऋतु ने कहा.

‘‘अरे, यह उस के बात करने का स्टाइल है, कोई उद्दंडता नहीं करता है वह,’’ नैना ने जवाब दिया.

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‘‘ऐसा भी क्या स्टाइल जो असभ्य लगे? सभ्य समाज में इसे स्टाइल नहीं गंवारपन का उदाहरण माना जाएगा,’’ नैना ने कहा.

नैना चुप रह गई. क्या कहती वह? ऋतु ही नहीं उस के घरपरिवार वालों को, मित्रोंपरिचितों को भी यह शिकायत थी कि सुरेश के बात करने का लहजा सही नहीं है, उस के व्यवहार में असभ्यता की बू आती है.

मगर नैना को ऐसा नहीं लगता था. वह सुरेश के साथ डेटिंग कर रही थी. वैसे वह बहुत नम्र नहीं था, साथ ही उस के जितना शिक्षित भी नहीं था. ज्यादा शिक्षित नहीं होने के उस के परिवार की परिस्थितियां जिम्मेदार थीं. पिता की असामयिक मौत के कारण कुछ दिनों तक उस की मां जैसेतैसे परिवार का गुजारा करती थी. बड़ा होने पर सुरेश ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी. वह नैना के साथ तूतड़ाक कर के बातें करता था और इस कारण नैना के नजदीकी लोगों को लगता था कि वह नैना के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करता है. पर उस के घर और समाज के माहौल के कारण ही उस का ऐसा व्यवहार है, ऐसा नैना का विचार था. निश्चित रूप से वह इसे उस के व्यक्तित्व में कमी मानती थी लेकिन उस के व्यक्तित्व में कई अच्छाइयां भी थीं. वह काफी सहयोगात्मक रवैए वाला व्यक्ति था. उस की सहायता करने के लिए तो वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहता था. उसी की क्यों वह सब की सहायता करने के लिए तत्पर रहता था. नैना को लगता था कि क्यों नहीं उस की अच्छाइयों पर ध्यान दिया जाए बजाए उस की कमियों के.

1 साल से नैना सुरेश के साथ थी. कभीकभी उसे भी उस का व्यवहार नहीं जंचता था पर वह सुरेश से प्यार करती थी और चाहती थी कि उस के साथ संबंध को बनाए रखे. मगर इतना तय था कि घरपरिवार वालों का बहुत विरोध होगा यदि वह उस से शादी करने का निर्णय उन्हें बताएगी. कई बार उस ने इस बारे में सोचा था परंतु अंत में उस का दिल यही कहता था कि वही उस के जीवनसाथी के रूप में उपयुक्त है. पर घरपरिवार, मित्ररिश्तेदार किसी का जरा सा भी समर्थन न होने से क्या यह निर्णय सही होगा, वह इसी उधेड़बुन में थी.

आखिर यह जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय था. इस निर्णय का जीवन पर बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ना था. निश्चित रूप से इस के लिए हर पहलू पर विचार कर के ही किसी निर्णय पर पहुंचा जाना चाहिए. इस में कोई दो मत नहीं मुझ से बेहतर मेरे घरपरिवार वाले, मेरे मित्र रिश्तेदार, सुरेश को नहीं जान सकते. लेकिन थोड़े धीरज के साथ काम करना ही ठीक रहेगा. उस ने सोचा इस बारे में क्यों न एक बार सुरेश से भी बात कर ली जाए. निश्चित रूप से अगली बार सुरेश से मिलने पर मैं इस बात को उठाऊंगी, उस ने सोचा.

और अगली बार जब सुरेश से मुलाकात हुई तो मौका देख कर सिया ने बात छेड़ दी, ‘‘सुरेश, मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं पर मेरे घरपरिवार वालों, मित्रोंरिश्तेदारों का कहना है कि तुम थोड़े उद्दंड हो और मेरा खयाल नहीं रखते हो.’’

‘‘किस की हिम्मत हुई ऐसा कहने की और किस आधार पर कोई ऐसा कह सकता है फिर तू मु?ा से शादी करेगी या तेरे घरपरिवार वाले? तेरे मित्र, रिश्तेदार?’’ सुरेश बिफर पड़ा.

‘‘यही गलती है तुम में. इसी बात को प्यार से भी तो कह सकते थे कि ऐसा कुछ नहीं है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारा खूब खयाल रखूंगा,’’ नैना नाराज हो कर बोली.

‘‘अरे, यह तो मेरा स्टाइल है. देख, बिहार और पूर्वी यूपी में कोई किसी को तुम कहता है तो बुरा मान जाता है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में तुम बोलना बिलकुल सामान्य है. मैं जिस माहौल में रहा हूं उस का असर तो रहेगा न मेरे ऊपर?’’ सुरेश ने कहा.

‘‘तुम्हारा कहना ठीक है पर शादी से सिर्फ 2 व्यक्ति ही नहीं जुड़ते 2 परिवार भी जुड़ते हैं. फिर हम समाज में रहते हैं तो अपने से जुड़े

सभी लोगों का खयाल रखना पड़ता है. अगर मैं तुम्हारी मां से बदतमीजी से बात करूं और कहूं कि यह मेरा स्टाइल है तो तुम्हें अच्छा लगेगा?’’ नैना ने कहा.

‘‘ऐसे कैसे बदतमीजी करेगी तू मेरी मां से?’’ सुरेश एकदम से गुस्सा हो गया.

‘‘यही तेवर लोगों को ठीक नहीं लगते हैं. क्या तुम इसे सुधार नहीं कर सकते? तुम शांत हो कर यह भी तो कह सकते थे कि बड़ों से बदतमीजी नहीं की जाती. उन का सम्मान किया जाता है,’’ नैना ने कहा.

‘‘मैं क्यों सुधार करूं? मैं जैसा हूं वैसा तुम्हें पसंद हूं तो ठीक वरना अपना रास्ता नाप. बहुत मिलेंगे तेरे जैसे,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘तो मैं अपना रास्ता नापती हूं. तुम्हें जो मिले उस के साथ रहना,’’ नैना ने कहा और चल दी.

‘‘अरे सुन तो…’’ सुरेश ने आवाज दी पर नैना चलती रही.

‘‘अजी सुनिए तो प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी…’’ बोलते हुए सुरेश ने उस के करीब आ कर उस का रास्ता रोक लिया.

प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी संबोधन सुन कर नैना को हंसी आ गई और वह रुक गई.

‘‘देख, थोड़ा समय तो दे सुधार करने का,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘इसी बात को थोड़ा सभ्य हो कर कहो,’’ नैना ने कहा.

‘‘मैडमजी, मुझे कुछ महीनों की मोहलत दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगा. तुम्हारे बिना मेरे जीवन का कोई महत्त्व नहीं है. तुम मेरी जिंदगी हो, तुम मेरी बंदगी हो…’’ सुरेश ने हाथ जोड़ते हुए मजाक किया.

नैना खुश हो गई. प्यार से सम?ाते हुए बोली, ‘‘इतने प्यार से बात कर सकते हो तो फिर करते क्यों नहीं? गाने के बोल भी सही चुनते हो. फिर भी हर बात में तूतड़ाक करते रहते हो?’’

इस के बाद दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ रहे. सुरेश ने वादा किया कि वह अपने व्यवहार को सुधारेगा. निश्चित रूप से इस में समय लगेगा पर वह कामयाब जरूर होगा और उस ने सुधार करना शुरू भी कर दिया. पर उस का लापरवाह व्यवहार बीचबीच में सामने आ ही जाता. जब नैना उसे उस के व्यवहार की ओर इशारा करती तो वह माफी भी मांग लेता.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस से नैना की बात को सुरेश सही तरीके से सम?ा गया. हुआ यों कि अपनी जमीन से संबंधित काम के लिए उसे अंचल कार्यालय में काफी भागदौड़ करनी पड़ी. शायद उसे ऊपरी कमाई के लिए परेशान किया जा रहा था. एक दिन वह अंचल कार्यालय गया और अधिकारी से उलझ पड़ा. उस के व्यवहार से नाराज हो कर उस ने थाने में शिकायत कर दी. थाना बिलकुल नजदीक था. थाना इंचार्ज एक महिला थी. उस के साथ भी सुरेश ने तूतड़ाक की भाषा में बात की. नाराज हो कर उस ने उसे हवालात में बंद कर दिया.

नैना को यह बात पता चली तो वह थाने पहुंची. थाना इंचार्ज से मिल कर उस ने सुरेश के बारे में पूछा.

थाना इंचार्ज ने पूछा, ‘‘कौन है वह तुम्हारा?’’

नैना बोली, ‘‘जी मेरा दोस्त है.’’

थाना इंचार्ज उसे ध्यान से देखते हुए बोली, ‘‘तुम तो पढ़ीलिखी सभ्य लग रही हो. इस गंवार से कैसे दोस्ती है तुम्हारी?’’

नैना को यह बात अपमानजनक तो लगी पर मौके की नजाकत को सम?ाते हुए बोली, ‘‘मैडम, वह गंवार नहीं है. हां बोलने का लहजा जरूर थोड़ा ठीक नहीं है. मैं उसे सम?ा दूंगी. आप उसे छोड़ दीजिए प्लीज.’’

थाना इंचार्ज बोली, ‘‘ठीक है, छोड़ देती हूं पर एक सलाह है तुम्हारे लिए. यह प्यारव्यार के चक्कर में लड़कियां बहुत धोखा खाती हैं. संभल कर रहना.’’

नैना बिलकुल बहस के मूड में नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘जी मैडम.’’

थाना इंचार्ज ने सिपाही से सुरेश को हवालात से बाहर लाने के लिए कहा. सुरेश

बाहर आया तो उस का चेहरा गुस्से से लाल था. वह थाना इंचार्ज को घूर कर देख रहा था. नैना ने उसे इशारा कर के शांत रहने के लिए बोला. दोनों बाहर आए. बाहर आ कर नैना उसे ले कर एक रैस्टोरैंट में गई. उस ने स्नैक्स और चाय का और्डर दिया.

‘‘देख लिया अपने स्टाइल का नतीजा?’’ नैना बोली, ‘‘बस मेरी ही गलती दिख रही है तु?ो. वह अंचल अधिकारी मेरे दोस्त को कितना परेशान कर रहा था.’’

‘‘मानती हूं तुम्हारी बात को पर यदि सही तरीके से बात नहीं करोगे तो इस तरह की

समस्या में पड़ते रहोगे. वे लोग तुम्हें सरकारी काम में बाधा डालने के इलजाम में जेल में डाल सकते थे. किसी भी समस्या का समाधान कानूनी तरीके से ढूंढ़ो और कुछ भी करो पर बात तो थोड़ा संभल कर किया करो,’’ नैना सम?ाती हुई बोली.

सुरेश सोच में पड़ गया. यह सही था कि उस के व्यवहार से लोग काफी आहत होते थे. बाद में पता चलता था कि उस के दिल में कोई खोट नहीं है बस बात करने का तरीका ऐसा है तो लोगों से उस की मित्रता हो जाती थी. सुधार करने की आवश्यकता है, उस ने सोचा.

कुछ ही महीनों के बाद सुरेश का व्यवहार काफी बदल चुका था बल्कि कहें कि कायाकल्प हो चुका था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. वैसे नैना के करीबी आज भी सुरेश को उस के लायक नहीं समझते थे पर अब नैना को इतना विश्वास हो गया था कि वह सुरेश के साथ शादी करेगी और शीघ्र ही सभी उसे अपना लेंगे.

Top 20 Hindi Kahaniya: टॉप 20 हिन्दी कहानियां

Top 20 Best Hindi kahaniyan: प्रेरक कहानियाँ (kahani) पढ़ना आपको जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखा सकता है. ये कहानियाँ (kahaniya) अक्सर काल्पनिक होती हैं, लेकिन फिर भी ये आपको महत्वपूर्ण सबक सिखा सकती हैं. लेकिन उन सभी का एक ही लक्ष्य है: आपको सीखने और बढ़ने में मदद करना. इसलिए, चाहे आप बच्चे हों या वयस्क, इनमें से जितनी चाहें उतनी हिन्दी कहानियाँ (Hindi Kahaniyan) पढ़ें!

इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की top 20 Hindi kahani collection.

1-श्यामा आंटी: सुगंधा की चापलूसी क्यूं काम नहीं आई?

एक दिन हमारे मालिक दुकान से आ रहे थे कि तभी उन की साइकिल में मोटर साइकिल वाले ने टक्कर मार दी और उन की सांस छूट गई. बस फिर तो सब की नजरें बदल गईं. ‘‘हम तो नौकरानी बन के भी खुश रहे, लेकिन एक रात हमारे ससुर रात को कमरे में आ गए. हम मुश्किल से अपनी इज्जत बचा पाए. अगले दिन 10 बरस की बिटिया का हाथ पकड़ कर घर से निकल आए. कुछ दिनों तक तो मायके में रही, लेकिन माताजी आप तो जानती हो कि जब अपना कोई नहीं तो सपना क्यों?’’

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2- संकल्प: शादी के बाद कैसे बदली कविता की जिंदगी

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मेरी सहेली कविता की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाने के लिए रवि का देर से घर पहुंचना मेरा मूड बहुत खराब कर गया था. घर में कदम रखते ही उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘बौस ने अचानक मीटिंग बुला ली थी और उस गुस्सैल से जल्दी जाने की रिक्वैस्ट करने का मेरा दिल नहीं किया. आईएम सौरी डार्लिंग.’’ ‘‘मैं कुछ कह रही हूं क्या जो माफी मांग रहे हो?’’ मैं नाराजगी भरे अंदाज में उठ कर रसोई की तरफ चल दी. उन्होंने सामने आ कर मु?ो रोका और मनाने वाले लहजे में बोले, ‘‘अब गुस्सा थूक कर मुसकरा भी दो, स्वीटहार्ट. मैं फटाफट तैयार होता हूं और हम 15 मिनट में निकल चलेंगे.’’

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3- अमेरिकन बहू: समाज को भाने लगी विदेशी मीरा

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अपनेगोरेचिट्टे हाथों को जोड़ कर, बिल्लोरी आंखों में मुसकान का जादू भर कर, सुनहरी पलकों को हौले से ?ाका कर जब उस ने कहा, ‘‘नैमेस्टे मम्मीजी,’’ तो सुजाता का मन बल्लियों उछलने लगा. उन के दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं कि वह क्षण भर के लिए भूल गई कि वह अनुपम सुंदरी केवल लैपटौप के स्काइप के चमत्कार से प्रगट होने वाली एक छवि भर थी जिस से वे अपने बेटे राहुल से बहुत अनुनयविनय करने और अपने पति कुमार साहब के बहुत सम?ानेबु?ाने पर बात करने को तैयार हुई थीं. पर उस की एक शरमाती हुई ‘नैमस्टे’ ने उन का सारा संताप, सारे गिलेशिकवे धो कर रख दिए.

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4- पछतावा- क्यूं परेशान थी सुधा

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फ़ोन पर सुधा ने तन्वी से बात की और बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गई. तन्वी सुधा की छोटी बहन है. उस ने फ़ोन पर सुधा से कहा कि वह कुछ दिनों के लिए उस के घर आ रही है. उस का आना सुधा को जरा भी पसंद नहीं आ रहा था. इसी फ्रस्ट्रेशन में वह सामान उठाउठा कर इधरउधर पटक रही थी. उस को जब भी गुस्सा आता है, वह डस्टिंग करते समय इतनी जोरजोर से फटका मारती है कि पड़ोस के लोगों के घरों तक आवाज जाती है. फिर मोटा डंडा लाती है और गद्दों को पीटना शुरू करती है यानी की धूल झाड़ती है.

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5- धुंध- घर में मीनाक्षी को अपना अस्तित्व क्यों खत्म होने का एहसास हुआ?

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‘अरे, अब बस भी करो रघु की मां, क्या बहू को पूरी दुकान ही भेज देने का इरादा है?’’ ‘‘मेरा बस चले तो भेज ही दूं, पर अब अपने हाथों में इतना दम तो है नहीं. अरे, कमिश्नर की बेटी है कितना तो दिया है शादी में बेटी को. थोड़ा सा शगुन भेज कर हमें अपनी जगहंसाई करानी है क्या? मीनाक्षी, जरा गुझिया में खोया ज्यादा भरना वरना रघु की ससुराल वाले कहेंगे कि हमें गुझिया बनानी ही नहीं आती.’’

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6- अकेली लड़की- कैसी थी महक की कहानी

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” बेटे आप दोनों को गिफ्ट में क्या चाहिए? ” मुंबई जा रहे लोकनाथ ने अपनी बच्चियों पलक और महक से पूछा. 12 साल की पलक बोली,” पापा आप मेरे लिए एक दुपट्टे वाला सूट लाना.” ” मुझे किताबें पढ़नी हैं पापा. आप मेरे लिए फोटो वाली किताब लाना,” 7 साल की महक ने भी अपनी फरमाइश रखी. “अच्छा ले आऊंगा. अब बताओ मेरे पीछे में मम्मी को परेशान तो नहीं करोगे ?” “नहीं पापा मैं तो काम में मम्मी की हैल्प करूंगी.”

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7- चोरी का फल- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

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शिखा पर पहली नजर पड़ते ही मेरे मन ने कहा, क्या शानदार व्यक्तित्व है. उस के सुंदर चेहरे पर आंखों का विशेष स्थान था. उस की बड़ीबड़ी आंखों में ऐसी चमक थी कि सामने वाले के दिल को छू ले. वह एक दिन रविवार की सुबह मेरे छोटे भाई की पत्नी रेखा के साथ मेरे घर आई. शनिवार को शिखा हमारी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दे कर आई थी. रेखा के पिता उस के पिता के अच्छे दोस्त थे. मेरी सिफारिश पर उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी, ऐसा आश्वासन दे कर रेखा उसे मेरे पास लाई थी.

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8- दोस्त ही भले: प्रतिभा ने शादी के लिए क्यूं मना किया

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तुम गंभीरतापूर्वक हमारे रिलेशन के बारे में नहीं सोच रहे,’’ प्रतिभा ने सोहन से बड़े नाजोअंदाज से कहा. ‘‘तुम किसी बात को गंभीरतापूर्वक लेती हो क्या?’’ सोहन ने भी हंस कर जवाब दिया. दोनों ने आज छुट्टी के दिन साथ बिताने का निर्णय लिया था और अभी कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. दोनों कई दिनों से दोस्त थे और बड़े अच्छे दोस्त थे. ‘‘लेती क्यों नहीं, जो बात गंभीरतापूर्वक लेने की हो. तुम मेरे सब से प्यारे दोस्त हो, मैं तुम से प्यार करती हूं, तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूं. यह बात बिलकुल गंभीरतापूर्वक बोल रही हूं और चाहती हूं कि तुम भी गंभीर हो जाओ,’’ प्रतिभा ने आंखें नचाते हुए जवाब दिया.

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9- इतना बहुत है

घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां  छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली  रचना के छपने पर हुआ था.

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10- पलाश- अर्पिता ने क्यों किया शलभ को अपनी जिंदगी से दूर?

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रखैल…बदचलन… आवारा… अपने लिए ऐसे अलंकरण सुन कर अर्पिता कुछ देर के लिए अवाक रह गई. उस की इच्छा हुई कि बस धरती फट जाए और वह उस में समा जाए… ऐसी जगह जा कर छिपे जहां उसे कोई देख न पाए. रिश्तेदार तो कानाफूसी कर ही रहे थे, पर क्या शलभ की पत्नी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकती है? वह तो उस की अच्छी दोस्त बन गई थी. फिर वह ऐसा कैसे बोल सकती है?

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11- आशियाना- अनामिका ने किसे चुना कहानी

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बहू कुछ दिनों के लिए रश्मि आ रही है. तुम्हें भी मायके गए कितने दिन हो गए, तुम भी शायद तब की ही गई हुई हो, जब पिछली दफा रश्मि आई थी. वैसे भी इस छोटे से घर में सब एकसाथ रहेंगे भी तो कैसे? “तुम तो जानती हो न उस के शरारती बच्चों को…क्यों न कुछ दिन तुम भी अपने मायके हो आओ,” सासूमां बोलीं. लेकिन गरीब परिवार में पलीबङी अनामिका के लिए यह स्थिति एक तरफ कुआं, तो दूसरी तरफ खाई जैसी ही होती. उसे न चाहते हुए भी अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता.

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12- एक और आकाश- क्या हुआ था ज्योति के साथ कहानी

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उस गली में बहुत से मकान थे. उन तमाम मकानों में उस एक मकान का अस्तित्व सब से अलग था, जिस में वह रहती थी. उस के छोटे से घर का अपना इतिहास था. अपने जीवन के कितने उतारचढ़ाव उस ने उसी घर में देखे थे. सुख की तरह दुख की घडि़यों को भी हंस कर गले लगाने की प्रेरणा भी उसे उसी घर ने दी थी.

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13-अधूरी तसवीरें: आखिर रमला ने क्या फैसला लिया?

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क्याकरे रमला? गैरजिम्मेदार ही सही लेकिन है तो आखिर बाप ही न, कैसे बेसहारा छोड़ दे. माना कि पिता को घर लाने का सीधासीधा अर्थ खुद अपनी खुशियों में सेंध लगाना ही है, लेकिन इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं. जब पति राघव ने पिता को अपने साथ रखने के प्रस्ताव पर चर्चा की है तब से ही रमला बेचैन है. ऐसा नहीं है कि रमला को अपने जन्मदाता से प्रेम नहीं, है. बहुत है, लेकिन वह कंठहार ही क्या जो गले का फंदा बन जाए.

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14- हनीमून- रश्मि और शेफाली के साथ क्या हुआ

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ऊंचाई पर मौसम के तेवर कुछ और थे. घाटियों में धुंध की चादरें बिछी थीं. जब भी गाड़ी बादलों के गुबार के बीच से गुजरती तो मुन्नू की रोमांचभरी किलकारी छूट जाती. ऊंची खड़ी चढ़ाई पर डब्बे खींचते इंजन का दम फूल जाता, रफ्तार बिलकुल रेंगती सी रह जाती. छुकछुक की ध्वनि भकभक में बदल जाती, तो मुन्नू बेचैन हो जाता और कहता, ‘‘मां, गाड़ी थक गई क्या?’’

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15- प्यार को प्यार से जीत लो: शालिनी ने मां को कैसे मनाया कहानी

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सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’ शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

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16- संस्कार: आखिर माँ संस्कारी बहु से क्या चाहती थी

नई मारुति दरवाजे के सामने आ कर खड़ी हो गई थी. शायद भैया के ससुराल वाले आए थे. बाबूजी चुपचाप दरवाजे की ओट में हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और मां, जो पीछे आंगन में झाडू दे रही थीं, भाभी के आवाज लगाते ही हड़बड़ी में अस्तव्यस्त साड़ी में ही बाहर दौड़ी आईं.

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17. मुझे नहीं जाना- क्या वापस ससुराल गई अलका

शादी के कुछ दिनों बाद ही अलका को ससुराल का माहौल खटकने लगा और वह राजीव से अलग घर ले कर रहने की जिद में मायके जा कर रहने लगी. उस की इसी जिद से परेशान उस के ससुर व पिता ने ऐसी क्या चाल चली कि अलका के सारे मनसूबे धरे के धरे रह गए…

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18. छुटकारा- बेटे-बहू के होते हुए भी क्यों अकेली थी सावित्री

सावित्री आंखों की जांच कराने दीपक आई सैंटर पर पहुंचीं. वहां मरीजों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी. अपनी बारी का इंतजार करतेकरते 2 घंटे से भी ज्यादा हो गए. तभी एक आदमी तेजी से आया और बोला, ‘‘शहर में दंगा हो गया है, जल्दी से अपनेअपने घर पहुंच जाओ.’’

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 19. अनोखा रिश्ता

‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं… और हां भूलना मत,दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी. तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

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20. मन की थाह- रामलाल का क्या हुआ शादी के बाद

रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था. वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’ यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे. hindi kahaniya

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Sad Story : दर्द की सिलवटें

Sad Story : अवंतिका औफिस में बैठी कुछ फाइलों के बीच अपनी आंखें जमाए हुए थी. बौस का आदेश था कि इन फाइलों का निबटारा जल्द से जल्द कर दिया जाए वरना उस की सैलरी यों ही अटकी रहेगी.

‘‘क्या हुआ अवंतिका? मुंह बना कर फाइलों को क्यों निहार रही हो?’’ अवंतिका के पास कुरसी खींच कर बैठते हुए यामिनी बोली. यामिनी उसी औफिस में काम करती थी.

‘‘क्या बोलूं?’’ अवंतिका ने गहरी सांस खींची, ‘‘इन फाइलों का निबटारा तो मैं कर ही नहीं पाई. पता नहीं कैसे दिमाग से उतर गया. बहुत जरूरी हैं. यदि 2 दिन के अंदर इन्हें सही नहीं किया तो बौस का लौस होगा तो होगा, साथ में मु?ो भी पता नहीं कब सैलरी मिले.

‘‘तुम कितनी तेजी से काम का निबटाती हो न. तुम्हारी मेहनत और काबिलीयत को देख कर ही तो बौस ने तुम्हें यह सब दिया था. अब क्या हुआ. सबकुछ ठीक तो है न.’’

‘‘अरे बाबा, सब ठीक है. वह घर में भी तो काम देखना पड़ता है न. दीप की 10वीं कक्षा की परीक्षा चल रही थी. उसी पर ध्यान देने में व्यस्त रही, इसलिए…’’

‘‘अच्छा चलो, जल्दी से अपना काम

निबटा लो,’’ यामिनी वहां से अपने कैबिन की तरफ चल दी.

शाम के समय औफिस से लौटते हुए अवंतिका सब्जियां आदि खरीदते हुए घर पहुंची. निखिल औफिस से आ चुका था. अवंतिका को देखते ही बोला, ‘‘बहुत सही समय पर आई हो. चलो, जल्दी से चाय पिला दो.’’

‘‘निखिल मैं बहुत थकी हुई हूं. बदन में भी खिंचाव महसूस हो रहा है. दीप को कहती हूं चाय बना कर ले आएगा.’’

‘‘अरे नहीं उसे चाय बनानी नहीं आती. कभी चायपत्ती अधिक डाल देता है तो कभी चीनी. चाय पीने का मजा किरकिरा कर देता है,’’  निखिल बोला.

‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है. अब उसे मात्रा आदि समझा दी है. अच्छी चाय बना लेगा,’’ कह कर अवंतिका ने अपने बेटे दीप को चाय बनाने के लिए कहा.

अवंतिका मेहनती और टेलैंटेड महिला थी. उसे कुछ वर्ष ही हुए थे एक मल्टी नैशनल कंपनी में नौकरी करते. निखिल बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत था. अवंतिका के 2 बच्चे थे श्रुति और दीप. श्रुति 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी और दीप 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे दी थी. शुरुआती दिनों में सिंगल फैमिली होने के कारण अवंतिका ने एक गृहिणी बने रहना मंजूर किया था. लेकिन बच्चे जब बड़े होने लगे और अपनी पढ़ाई और दोस्तों में उन की व्यस्तता बढ़ने लगी तो अवंतिका को घरगृहस्थी के कामों के बाद खाली समय में अकेलापन महसूस होने लगा. निखिल भी अपने बैंक से लौटने के बाद शाम का समय दोस्तों के बीच ठहाके लगाने में बिताता. बैंक से आने के बाद शाम की चाय पी कर निखिल अपनी मित्र मंडली में जा बैठता. फिर तो उन के ठहाके और मनोरंजन का दौर थमता ही नहीं था. रात के 8-9 के पहले वह घर नहीं आता.

ऐसे में अवंतिका ने एक मल्टी नैशनल कंपनी जौइन कर ली. व्यस्त दिनचर्या के साथ हाथ में सैलरी मिलने से उसे सुखद अनुभूति होने लगी. अब उसे छोटीमोटी जरूरत के लिए भी निखिल पर आश्रित नहीं रहना पड़ता. अपनी मेहनत और कार्यकौशल से उस ने औफिस में खास पहचान बना ली थी. लेकिन इधर कुछ समय से वह अपने कार्य को ले कर पहले जैसी तत्परता और सक्रियता नहीं दिखा पा रही थी. घर की जिम्मेदारी पहले की ही तरह निभा रही थी, उस पर औफिस का काम.

रात का खाना बनाने के बाद अवंतिका टेबल पर खाना लगा रही थी, ‘‘श्रुति, जरा खाना सर्व करो और दीप तुम पीने के लिए पानी ले आओ. आज मैं बहुत थकी हुई महसूस कर रही हूं. ज्यादा देर नहीं बैठ पाऊंगी. जल्दी से खा कर सोने जा रही हूं. तुम लोग खाना खा कर जूठे बरतन सिंक में डाल देना.’’

अगली सुबह फिर से पूरा परिवार अपनेअपने काम में व्यस्त हो गया. श्रुति और दीप अपनी पढ़ाई और दोस्तों के बीच तो निखिल भी दिन में ड्यूटी और शाम में दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त रहते. अवंतिका समय पर औफिस पहुंच चुकी थी. उसे अभी भी 2 फाइलों के काम निबटाने थे और कल तक बौस की टेबल पर देनी थीं.

‘‘गुड मौर्निंग अवंतिका. और कहो, तुम्हारा पैंडिंग वर्क पूरा हो गया?’’ यामिनी ने पूछा.

‘‘नहीं यार, अभी तो 2 फाइलें बाकी हैं और कल सुबह तक बौस को टेबल पर चाहिए. प्लीज, जरा मेरी हैल्प कर दो न.’’

‘‘यह भारीभरकम उलझी फाइलों में सिर खपाना मेरे वश की बात नहीं, वह भी प्रैशर में. तुम्हें ध्यान नहीं शायद लेकिन यह सब तुम्हारी प्रतिभा के कारण मिला है. और दिखाओ बौस को अपनी प्रतिभा और काबिलीयत,’’ यामिनी टोंट करते हुए हंस दी.

‘‘देखो मजाक का वक्त नहीं है. तुम्हें पता है न बौस ने मु?ो इस महीने की सैलरी नहीं दी है?  वे भी मेरी लापरवाही से नाराज हैं. यदि औफिस का नुकसान हुआ तो पूरी सैलरी खतरे में पड़ जाएगी. अब गंभीर बनो और कुछ रास्ता सुझाओ.’’

‘‘ओके, तुम अतुल की मदद ले लो.’’

‘‘कौन. वह लड़का जिस ने अभी कुछ महीने पहले ही कंपनी जौइन की है? उस नौसिखिए से क्या मदद लूं?’’

‘‘शायद तुम उसे ठीक से जानती नहीं हो. वह भी दिमाग का तेज है और युवा है तो काम के लिए उत्साह भी खूब भरा रहता है. पता है, पिछले महीने उस ने अमन की मदद की थी.’’

यह सुन अवंतिका अतुल से मदद लेने को तैयार हो गई. शाम होने लगी थी. अवंतिका ने अतुल को दोनों फाइलें दे कर काम समझा दिया और अगले दिन ले कर आने को कहा.

घर पहुंचने के बाद अवंतिका अपनी गृहस्थी वाले रूटीन वर्क  में लग गई तभी…

‘‘ऊफ… फिर से पीरियड भी न…’’

पिछले कुछ महीनों से अवंतिका के पीरियड्स थोड़ा असामान्य हो गए थे. इस दौरान वह शारीरिक कष्ट को भी ?ोलने लगी थी. उस ने सोचा कि वर्क लोड और अनियमित खानपान के कारण यह सब हो रहा होगा. वह अपने पीरियड्स को ले कर कुछ विशेष चिंता नहीं करती. वैसे भी लोग कहते हैं कि 40+ की महिलाओं में माहवारी को ले कर कुछनकुछ समस्या रहती ही है.

औफिस का काम तो निबट गया. उसे राहत मिली. लेकिन पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक कष्ट शुरू हो गए. इसलिए अवंतिका खाना खा कर जल्दी से बैड पर आराम करने चली गई. हौट फ्लैश और पेड़ू कमर के दर्द से परेशान अवंतिका बिस्तर पर आते ही निढाल हो गई. निखिल भी कुछ देर के बाद बैडरूम में आ चुका था. वह रात की बेला में रूमानियत महसूस कर रहा था. बिस्तर पर लेटी अवंतिका किसी हुस्न परी का एहसास करा रही थी. निखिल अवंतिका के समीप आया है और उसे स्पर्श करते हुए अपने पास खींचने की कोशिश करने लगा.

‘‘नहीं निखिल, तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है. हौट फ्लैश से परेशान हूं. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें? जब देखो तब तबीयत खराब या थकान का बहाना करती रहती हो. औफिस जाने के लिए तुम तो एकदम तंदुरुस्त हो जाती हो. है न?’’

‘‘तुम कैसी बातें कर रहे हो. मेरी थकान, मेरी खराब तबीयत तुम्हें नाटक लगता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. मैं देख रहा हूं कि कुछ महीनों से तुम घरपरिवार पर पहले की तरह ध्यान नहीं दे रही हो और मुझ पर तो बिलकुल भी नहीं. कभी तबीयत खराब, कभी थकान, कभी पीरियड्स… तुम मुझ से दूर होती जा रही हो.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो निखिल? मैं दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हूं. घरपरिवार देखते हुए जौब भी कर रही हूं.’’

‘‘जिम्मेदारी? हुंह,’’ कह निखिल बिस्तर पर एक तरफ मुंह घुमा कर सो गया.

मगर अवंतिका की आंखों में नींद गायब हो गई. उसे निखिल की बातें चुभ गईं. वह जौब करने के लिए तब घर से बाहर निकली जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे. निखिल भी तो अपनी दुनिया में व्यस्त रहता है. दोस्तों के साथ मस्ती भरे पल बिताता है.

‘‘क्या मेरी जरूरत सिर्फ घर के काम और बिस्तर तक ही सीमित है?’’ अचानक अवंतिका के मन में यह विचार कौंध गया और उस की आंखें डबडबा गईं.

अवंतिका थोड़ी चिड़चिड़ी होने लगी थी. निखिल को अवंतिका से शिकायत रहती. वहीं अवंतिका को निखिल से सम?ादारी की उम्मीद. उस की जिंदगी इसी तरह गुजरते जा रही थी. उस के मातापिता कुछ वर्ष पहले गुजर गए थे. एक भाई था तो वह भी विदेश में सैटल हो चुका था जो उस की कोई खोजखबर नहीं लेता. ससुराल में सासससुर भी नहीं थे. लेकिन ससुराल के नातेरिश्तेदार यदाकदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते, वह भी निखिल के लिए. अवंतिका को ससुराल पक्ष के रिश्तेदार हेय दृष्टि से देखते.

वे कहते, ‘‘इस का तो न मायका है न भाई पूछने वाला. हम न पूछें तो इसे कोई न पूछे. मरने पर कोई कफन देने वाला भी न मिले.’’

अवंतिका सब की बातों को सुनती और खून का घूंट पी कर रह जाती. मन में सोचती कि सही वक्त पर इस का जवाब देना उचित होगा. यही कारण था कि बच्चों के साथ वह अपने काम के प्रति भी पजैसिव हो गई थी. हालांकि उसे न तो प्रोत्साहन मिलता और न ही सपोर्ट. लेकिन वह खुद को काम में व्यस्त रखती.

औफिस में अवंतिका को यामिनी के रूप में एक अच्छी साथी तो मिली ही. लेकिन अब अतुल के रूप में भी उसे एक समझदार दोस्त मिल गया था. उम्र में वह अवंतिका से छोटा जरूर था मगर था बहुत समझदार और सहयोगी व्यवहार वाला. तभी तो उस ने अवंतिका के बिखरे काम को समेटने में मदद की. अवंतिका ने पैंडिंग फाइलें समय पर पूरी कर बौस को दे दीं.

काम को सही तरीके से करने के लिए बौस ने अवंतिका की तारीफ की, ‘‘वैरी गुड. रियली दैट्स नाइस. मुझे मालूम था कि तुम इसे पूरा कर लोगी. मैं तुम्हारी काबिलीयत को जानता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों तुम इधर काम के प्रति थोड़ी लापरवाह होने लगी थी.’’

‘‘थैंक यू सर. दरअसल बेटे का 10वीं कक्षा का ऐग्जाम था तो उस पर ध्यान देने के चक्कर में यह काम दिमाग से उतर गया था. मेरी कोशिश रहेगी कि आइंदा ऐसा न हो.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. मैं ने तुम्हारी सैलरी पास कर दी है और साथ में कुछ बोनस भी. अब एक बात ध्यान से सुनो, एक बड़े प्रोजैक्ट पर काम होने वाला है. उस में तुम मेरे साथ रहोगी. यदि तुम ने अपनी मेहनत से अच्छा कर दिखाया तो तुम्हारी प्रमोशन पक्की. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

‘‘थैंक यू वैरी मच सर. मैं हार्ड वर्क से पीछे नहीं हटने वाली. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं आप की उम्मीदों पर खड़ी उतरूं.’’

अवंतिका नए काम को पा कर बहुत खुश थी. उसे अब पूरी तरह से अपने नए प्रोजैक्ट पर फोकस करना था. उसे अपनी प्रमोशन के सपने खुली आंखों से दिखने लगे थे. लेकिन उस के इस उत्साह में निखिल का साथ बिलकुल नहीं मिल पा रहा था. अवंतिका निखिल से यह उम्मीद करने लगी थी कि घर की जिम्मेदारियों में निखिल थोड़ा सहयोग करे जिस से उसे अपना काम करने में सहूलियत हो. लेकिन निखिल का रवैया पहले जैसा ही था.

उस के रिश्तेदार भी निखिल से कहते, ‘‘देखा, सासससुर के न रहने पर कैसे अपने पंखों को फैला रही है. अब घरपरिवार उसे कहां से रास आएगा. मातापिता के रहते तुम से किसी ने घर में कोई काम करवाया? लेकिन देखो, अब महारानी तुम्हें गृहस्थी के कामों में उलझना चाहती है. सावधान रहना, तुम भी तो नौकरी करते हो.’’

निखिल शुरू से अवंतिका को कम और रिश्तेदारों को अधिक महत्त्व देता रहा. लेकिन अवंतिका सामंजस्य स्थापित कर के रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रहती. अभी वह चाहती थी कि निखिल शाम के वक्त घर पर बच्चों को समय दे या सब्जी आदि खरीद कर ले आए.  लेकिन वह अपने दोस्तों के बीच रहना अधिक जरूरी समझौता. कहता, ‘‘मेरी भी तो अपनी लाइफ है. ड्यूटी से आ कर दोस्तों के साथ मन बहलाना भी जरूरी है नहीं तो सारा समय कामकाम और बस काम.’’

‘‘लेकिन निखिल, मेरी स्थिति भी समझ. एक अच्छा अवसर हाथ में आने वाला है. मैं इस गोल्डन मौके को गंवाना नहीं चाहती. मुझे घर के कामों में थोड़ा सहयोग कर दो ताकि इस प्रोजैक्ट को बेहतर मन से कर पाऊं.’’

‘‘तुम ने यह सब क्यों चुना? घरपरिवार ज्यादा जरूरी है. तुम्हें तो पता है, शुरू से मैं स्वच्छंद रहा हूं. मांबाबूजी ने बड़े प्यार से पाला है. ऊपर से किसी भी रिश्तेदार के घर जाता हूं तो बैठेबैठे आवभगत होती है. ऐसे में मुझे घर में कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी. यदि तुम से नहीं हो पा रहा तो प्रोजैक्ट छोड़ दो.’’

‘‘छोड़ दो,’’ अवंतिका को निखिल की बात बुरी लगी. वह मन ही मन सोचने लगी कि क्यों हर बार हर चीज स्त्री को ही छोड़नी पड़ती है ताकि गृहस्थी सुचारु रूप से चल सके. लड़की मायके और वहां से जुड़ी हर बात छोड़ कर आती है ससुराल में. एक नए रूप और अस्तित्व के साथ ससुराल में रहती है. सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करने में न जाने कितना कुछ छोड़ती चली जाती है. इस सब के बावजूद क्या वह एक अपनी खुशी या सपने को ले कर आगे नहीं बढ़ सकती? आज जिस काम से उसे खुशी मिल रही है, उस का वजूद निखर रहा है, उसे भी वह छोड़ दे ताकि पारिवारिक जिम्मेदारियां सही से निभा पाए? माना कि निखिल प्यार में पला, कभी कोई जवाबदेही नहीं उठाई. मगर अभिभावक और घर का मुखिया बनने के बाद भी उस में जिम्मेदारी का भाव नहीं आना चाहिए? एक पति और हमसफर के तौर पर क्या उसे अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करना चाहिए? आखिर मैं भी तो बचपन से ही जिम्मेदारियां उठाने की आदी नहीं?

तरहतरह की बातें मन में सोचते हुए अवंतिका खुद से ही जाने कितने सवाल पूछ बैठी. फिर भी, मन ही मन सोचा है कि यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगी. जिस को जैसे चलना है चले. मैं भी अपनी मेहनत बढ़ा दूंगी. एक बार प्रमोशन हो जाए बस.’’

अवंतिका निखिल के व्यवहार और दूसरों की सोच को दरकिनार करते हुए अपने काम में लगी रहती. बच्चों से भी कुछ काम में हाथ बंटाने का आग्रह करती ताकि उसे थोड़ा सी सपोर्ट मिल जाए. उस ने अपनी मेहनत बढ़ा दी लेकिन जल्दीजल्दी होने वाले पीरियड्स के कारण परेशान भी होने लगी थी. महीने में एक बार होने वाला कभीकभी 2 बार भी होने लगा. इस दौरान वह शारीरिक, मानसिक कष्ट महसूस करती. उसे बातबात पर गुस्सा भी आने लगा था. लेकिन निखिल उस की परेशानी समझाने के बजाय उस पर बरस पड़ता. इन सब की वजह से अवंतिका का कार्य भी प्रभावित होने लगा.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानी को देख कर उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दी. डाक्टर ने अवंतिका को बताया कि वह मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. कभीकभी किसी को समय से पहले भी मेनोपौज हो जाता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच, थकान, कमजोरी आदि शारीरिकमानसिक दिक्कतें होनी सामान्य बात है. उसे अभी अपने सही खानपान के साथ सकारात्मक खुशहाल माहौल बनाए रखना भी जरूरी है. आवश्यक दिशानिर्देश और दवाइयां देने के साथ डाक्टर ने अवंतिका को मेनोपौज के संबंध में विस्तार से समझाया.

अवंतिका ने अपनी परेशानी निखिल से साझा की है. उसे उम्मीद थी कि यह सब जान कर निखिल को अब कोई शिकायत नहीं होगी बल्कि वह अपनी पत्नी की परेशानियों को समझाते हुए उस को मानसिक मजबूती प्रदान करेगा. लेकिन अवंतिका की सोच यहां उलटी पड़ गई. निखिल ने अवंतिका और डाक्टर की बातों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.

‘‘यह सब क्या नई बातें ले कर बैठ गई? मासिकचक्र कोई नई बात है क्या? महिलाओं के लिए तो यह आम बात है. अब जा कर तुम्हें मनोवैज्ञानिक पहलू समझ में आने लगा? यह सब ज्यादा पढ़लिख जाने के कारण है. नौटंकी तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बहुत बड़ी बीमारी हो गई है. हुंह.’’

निखिल की बात से अवंतिका एक बार फिर खीझ गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि चाहे जो हो मुझे हिम्मत से काम लेना होगा. भावनात्मक सहारा मिले न मिले लेकिन अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा को जरूर भरना होगा. समय के ऊबड़खाबड़ रास्ते पर अवंतिका के जीवन की गाड़ी यों ही बढ़ते जा रही थी. इधर औफिस के साथ घर की जिम्मेदारियां पूरा करते हुए अवंतिका मेनोपौज के दौर से भी गुजर रही थी. निखिल का रूखा व्यवहार पतिपत्नी के रिश्ते में खटास भरने का काम करने लगा था. अवंतिका को ऐसे में अपने मातापिता की बहुत याद आती कि काश वे होते तो उन से कुछ अपना दुख बांट लेती.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानियों को समझाते हुए उसे पुन: सलाह दी कि प्रोजैक्ट में अतुल को शामिल कर के उस की मदद ले ले. कुछ तो राहत मिलेगी और यह बात उन तीनों तक ही रहेगी, बौस को जानकारी नहीं होने देंगे.

अवंतिका को यामिनी की बात जंच गई. उस ने इस नए प्रोजैक्ट में अतुल को अपने साथ मिला लिया. अतुल अवंतिका की बड़ी इज्जत करता था. सहयोगी व्यवहार के कारण वह एक बार फिर अवंतिका के काम में सहयोग करने के लिए तैयार हो गया.

अब अवंतिका ने थोड़ी राहत की सांस ली. काम को ले कर अतुल और अवंतिका की बातचीत औफिस के बाद घर पर भी फोन से होने लगी. निखिल को यह बात भी खटकने लगी. अवंतिका निखिल की इस मानसिक सोच से अनभिज्ञ अपनी दिनचर्या में मसरूफ थी. घर आने के बाद भी अतुल का काम के सिलसिले में कभी कौल तो कभी मैसेज आ जाता. इस बार का प्रोजैक्ट बड़ा महत्त्वपूर्ण था और अवंतिका कोई गलती नहीं करना चाहती थी. इसलिए 1-1 बारीकी पर वह अतुल से बात करती.

अतुल के सहयोग से अवंतिका का काम आसान तो हो गया मगर निखिल के साथ रिश्ते कठिन होने लगे.

एक शाम अवंतिका रसोई में खाना बना रही थी कि तभी अतुल का फोन आया. प्रोजैक्ट फाइल में कहीं कुछ मिसिंग था. उस को ले कर वह अवंतिका से कुछ जरूरी चीज पूछने लगा. उस में से मैटर बताने के लिए अवंतिका हौल की तरफ बढ़ गई और वहीं बैठे निखिल को गैस पर चढ़ी सब्जी देखने को बोल दिया.

इधर अवंतिका फाइल समेट कर वापस रसोई में आई तो सब्जी जल चुकी थी. वह निखिल से अपनी बात बोली तो उस ने न सुनने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया. ऊपर से अवंतिका पर ही बरसने लगा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि तुम्हें अब कोई और भाने लगा है. घर की जिम्मेदारी तो छोड़ो अब खाना बनाने में भी मन नहीं लग रहा है. सीधेसीधे बोल दो कि तुम स्वतंत्र होना चाहती हो.’’

‘‘निखिल, तुम यह क्या बोल रहे हो? बच्चे क्या कहेंगे यह सब सुन कर? मैं तुम्हें सब्जी देखने के लिए बोल कर फाइल देखने चली गई थी.’’

‘‘अच्छा, तुम्हें नहीं दिखा कि मैं क्रिकेट मैच देख रहा हूं?’’

‘‘यदि तुम्हें नहीं देखना था तो बोल देते, मैं बच्चों को बोल देती. खैर, बात खत्म करो. आइंदा मैं बच्चों से ही बोल कर कुछ सहयोग ले लिया करूंगी.’’

‘‘हांहां, ले लो बच्चों का सहयोग. तुम नौकरी करो और बच्चों की पढ़ाई छुड़वा कर उन से घर के काम करवाओ.’’

‘‘अब इस में पढ़ाई छुड़वाने की बात कहां से आ गई? घर में छोटेमोटे कुछ काम देख लेने से उन की पढ़ाई छूट जाएगी? कितने बच्चे शहरों में अकेले रह कर पढ़ाई करते हैं. वे अपना काम खुद करते हैं.’’

अवंतिका समझ कर बात खत्म करना चाहती थी. लेकिन निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर था. उस दिन की तकरार से अवंतिका का मन टूट गया. उस ने एक पल को औफिस छोड़ने का मन बना लिया. अगले दिन औफिस में अवंतिका ने अतुल से प्रोजैक्ट पर काम करना बंद करने के लिए कहा. यह सुन कर अतुल चौंक गया. तब अवंतिका ने उसे अपनी पारिवारिक समस्याएं बताईं.

अतुल ने समझाया, ‘‘अवंतिकाजी, बड़ी सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ संघर्ष भी करना पड़ता है. आप संघर्ष करते हुए सफलता के करीब आने वाली हैं. ऐसे में जौब छोड़ने का फैसला गलत होगा.’’

अब तक यामिनी भी अवंतिका के पास आ चुकी थी और सारी बातें जानने के बाद उस ने भी अवंतिका को जौब न छोड़ने की सलाह दी.

एक तो अवंतिका मेनोपौज के दौर से गुजर रही थी उस पर निखिल का व्यवहार. औफिस में महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के कैरियर को एक टर्निंग पौइंट देने वाला बन चुका था इसलिए अतुल और यामिनी की बात मान कर अवंतिका अपने काम और पारिवारिक परिस्थितियों में सामंजस्य रखने की सोची. यामिनी और अतुल यह सुन कर मुसकरा दिए.

‘‘दैट्स लाइक ए गुड गर्ल. देखो अवंतिका, मेनोपौज के दौर से गुजर रही महिलाओं की मानसिकशारीरिक स्थिति कुछ अलग होती है, लेकिन बेहतर खानपान और योग के द्वारा इन स्थितियों से निबटा जा सकता है. तुम वादा करो, किसी भी सिचुएशन में खुद को कूल रखोगी.’’

यामिनी की बात सुन कर अवंतिका ने स्वयं को कूल रखने का वादा किया. प्रोजैक्ट को 3-4 दिन में पूरा कर लेना था. निखिल के व्यवहार को देखते हुए अवंतिका ने तय किया कि वह औफिस से 1 घंटा लेट निकलेगी. यहीं अतुल के साथ बैठ कर काम का निबटारा कर लेगी ताकि घर जा कर प्रोजैक्ट वर्क पर बात करने की जरूरत न पड़े. अतुल भी इस बात को सही माना.

2-3 दिन अवंतिका औफिस से घर लेट पहुंची तो निखिल अवंतिका पर शक करने लगा. उस ने औफिस से जानकारी ली तो अतुल और अवंतिका के लेट तक रुकने का पता चला. निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया लेकिन अपने क्रोध को छिपाते हुए उस ने एक शाम अतुल को बहुत जरूरी काम बोल कर बहाने से घर बुलाया.

‘‘अतुल इस आमंत्रण को सम?ा न सका. लेकिन उस ने निखिल के घर जाने का निर्णय लिया. अतुल को घर बुलाने के बाद निखिल ने उस को खूब फटकार लगाई और अवंतिका से दूर रहने की चेतावनी दी.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे लिए आप के मन में क्या चल रहा है?’’ अतुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरे मन में नहीं तुम्हारे मन में चल रहा है और वह भी अवंतिका के लिए. तुम्हें शर्म नहीं आती किसी की गृहस्थी को बरबाद करते?’’ निखिल गुस्से में बोला.

‘‘निखिलजी आप बहुत गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अवंतिकाजी की बहुत इज्जत करता हूं,’’ अतुल ने सम?ाने का प्रयास किया.

अवंतिका निखिल के इस रवैए से बहुत गुस्सा हुई. अतुल के सामने ही अवंतिका और निखिल में अच्छीखासी बहस हो गई.

गुस्से में निखिल ने अवंतिका से कहा,  ‘‘ठीक है, तुम दोनों के बीच यदि कुछ भी गलत नहीं है तो अभी मेरे सामने तुम अतुल को राखी बांधो और इसे अपना भाई बना कर दिखाओ.’’

‘‘निखिल तुम इतनी गिरी हुई सोच के हो जाओगे यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. मुझे तुम से नफरत हो गई है. क्या एक स्त्री और पुरुष मित्रवत व्यवहार के साथ नहीं रह सकते?’’

‘‘तुम बात घुमाने की कोशिश मत करो. अभी इसे राखी बांध कर इसे अपना भाई मानो.’’

अतुल भी निखिल के व्यवहार से क्रुद्ध हो गया है. लेकिन खुद को सामान्य बनाते हुए बोला, ‘‘अवंतिकाजी, आप इन की बात मान लीजिए. आप मेरी कलाई पर धागा बांध कर मुझे भाई के रूप में स्वीकार कीजिए.’’

अवंतिका अतुल की बात सुन कर कुछ बोलती उस से पहले ही अतुल ने फिर से अपनी बात दोहराई. अवंतिका को माहौल शांत करने का यही एकमात्र रास्ता नजर आया. वह मौली उठा कर ले आई और उसे अतुल की दाहिनी कलाई पर राखी के रूप में बांध दिया.

कलाई पर मौली बंधवाने के बाद अतुल अपने क्रोधावेग को बढ़ाते हुए बोला, ‘‘सुनो निखिल, मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं कि इसी पल से तुम अवंतिका के साथ न तो बुरा बरताव करोगे और न ही उसे किसी प्रकार का मानसिक कष्ट देने की कोशिश करोगे. अभी से यह मेरी बड़ी बहन है और यदि उस की आंखों में तुम्हारी वजह से आंसू आए तो मु?ा से बुरा कोई न होगा. याद रखना यह अवंतिका के भाई की चेतावनी है.’’

निखिल अतुल का यह रूप देख कर अवाक रह गया. वे इस प्रकार के जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी. आगे वह किस बात पर बहस करे?

उस को चुप देख कर अतुल बोला, ‘‘मैं अवंतिकाजी को बड़ी बहन के रूप में ही इज्जत करता था लेकिन आज तुम ने हमारे रिश्ते को इस धागे से मजबूत बना दिया है. अब यह मत सम?ाना कि अवंतिका अकेली है. मैं इस का भाई सदैव इस के लिए खड़ा रहूंगा. चलता हूं अवंतिकाजी अपना खयाल रखिएगा और हां, आप को अपने काम पर पूरा फोकस करना है. यह प्रमोशन का अवसर आप के हाथ से जाने न पाए. अब मैं चलता हूं.’’

अतुल वहां से जा चुका था मगर निखिल के पैर अब भी जस के तस ठिठके थे.

‘‘आज तुम ने विश्वास की आखिरी डोर को भी तोड़ दिया. तुम ने मुझे जो दर्द की सिलवटें दी हैं वे हृदय में जीवनभर चुभती रहेंगी. निखिल, भले ही मैं यहां इस घर में रहूंगी वह भी अपने बच्चों की खातिर मगर मेरे मन में तुम्हारे लिए

न तो पहले जैसी भावना रहेगी और न इज्जत. अपनी गंदी सोच से गृहस्थीरूपी

प्रेमालय को तुम ने मैला कर दिया है. तुम न तो अपनी जिम्मेदारियां समझ सके और न ही अपनी पत्नी को,’’ कह कर अवंतिका गुस्से से कमरे में चली गई और निखिल वहीं खड़ा अपनी सोच पर पछतावा करता रहा. Sad Story

Footwear Buying Tips : जूते की शौकीन हैं तो खरीदने से पहले जानें 7 टिप्स

फुटवियर खरीदने के सही टिप्स

Footwear Buying Tips :  रवीना अपने लिए ₹6,000 के वाकिंग शूज बड़े शौक से खरीद कर लाई पर घर आ कर जब उस ने सौक्स के साथ उन जूतों को पहना तो वे उसे टाइट लगने लगे. अब चूंकि वह एक दिन वाक कर के आ गई थी इसलिए अब उन्हें वापस भी नहीं किया जा सकता था.

रवि को औफिस में पहनने के लिए जूते खरीदने थे.बड़ी मुश्किल से उन्हें एक शोरूम पर जूते पसंद आए। चल कर भी देखा पर जब वे औफिस पहन कर गए तो उन्हें जूते बहुत अनकंफर्टेबल लगे क्योंकि जूते उन के पैर के माप से कुछ ढीले थे.

जूते प्रत्येक इंसान की आवश्यकता होते हैं। पहले जहां बाजार में बहुत कम ब्रैंड होते थे और लोगों के पास भी एकाध जोड़ी ही जूते होते थे, वहीं आजकल औनलाइन और औफलाइन जूतों के अनेक ब्रैंड हैं। वाकिंग, रनिंग, ट्रैकिंग, औफिस और पार्टी के लिए अलगअलग प्रकार के जूते उपलब्ध हैं, जिन में अवसर और उपयोगिता के अनुकूल कुशनिंग और सोल की बनावट निर्धारित की जाती है.

पैरों के लिए सही जूते का होना बहुत आवश्यक होता है अन्यथा पैरों में दर्द, छाले और चुभन जैसी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जातीं हैं. आजकल जूतों की कीमतें भी हजारों में होती हैं। ऐसे में यदि आप ने सावधानीपूर्वक जूते नहीं खरीदे तो आप के हजारों रुपए बरबाद होने की संभावना होती है.

आइए, जानते हैं कि जूते खरीदने जाते समय हमें किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

माप है सब से अहम

हालिया शोधों के अनुसार इंसान के बड़े हो जाने के बाद भी पैरों के नाप में मामूली सा अंतर आता रहता है इसलिए जूते या चप्पलें खरीदने से पहले नाप अवश्य लें. नाप के लिए आप अपने पुराने जूतों का नंबर चैक कर के जाएं ताकि दुकानदार को नंबर बता सकें. यों तो आजकल दुकानदार के पास भी मैजरमेंट के लिए स्केल होता है पर कई बार उस पर भी नापने में माप आप के असली माप से भिन्न हो जाता है.

पंजे की चौड़ाई देखें

पैर चौड़े हैं तो तंग जूते पहनने से उंगलियों में दर्द और दबाब महसूस होगा और यदि पैर पतले हैं और चौड़ा जूता पहनेंगे तो पैरों को पर्याप्त सपोर्ट नहीं मिलेगा और पैरों में छाले पड़ने की संभावना रहेगी, इसलिए यदि आप का पंजा चौड़ा है, तो आगे से नुकीले बनावट वाले जूतों की जगह चौड़ी बनावट वाले जूतों का चयन करें.

सही समय चुनें

सुबह के समय पैर का नाप सब से सही होता है क्योंकि इस समय पैर अपने कंफर्ट लेबल में होता है. शाम तक कई बार पैरों में सूजन सी आ जाती है इसलिए जूते खरीदने शाम के समय थोड़ा आराम कर के जाएं ताकि पैर का सही माप मिल सके.

समझौता न करें

कुछ लोग, ‘थोड़ा सा ही टाइट है, यूज करने के बाद लूज हो जाएगा’ या ‘कुछ लूज है सौक्स के साथ सैट हो जाएगा’ सोच कर जूता ले लेते हैं और फिर घर आ कर पछताते हैं। इसलिए जूते खरीदते समय जरा भी समझौता न करें क्योंकि आप जूतों के लिए अच्छीखासी कीमत चुका रहे हैं फिर समझौता क्यों करना.

उद्देश्य और बजट तय करें

आजकल चूंकि प्रत्येक गतिविधि के लिए अलगअलग जूते होते हैं इसलिए बाजार जाने से पहले यह सुनिश्चित अवश्य कर लें कि आप डेलीवियर, वाकिंग, रनिंग या फिर ट्रैकिंग के लिए जूते खरीद रहे हैं. इस से दुकानदार को आप को जूते दिखाने में भी आसानी रहेगी और आप को चुनने में भी सुविधा रहेगी.
बाजार में महंगे से महंगे जूते उपलब्ध हैं। आप अपना बजट तय कर के बाजार जाएं और उसी बजट में दुकानदार को जूते दिखाने को कहें.

अवसर के अनुकूल खरीदें

हर अवसर के लिए अलगअलग जूता खरीदें। मसलन, रनिंग के लिए बनाए जाने वाले जूतों में अलग से कुशनिंग की जाती है ताकि किसी भी तरह के दुष्प्रभाव को रोका जा सके और उन के जोड़ भी सुरक्षित रह सकें। इसी तरह वाकिंग शूज रनिंग शूज से काफी लचीले होते हैं ताकि उन्हें पहन कर आराम से चला जा सके. हाइकिंग के लिए टिकाऊ, अच्छी पकड़ और टखने को सपोर्ट देने वाला जूता खरीद सकते हैं.

वेटलिफ्टिंग के समय ऐसे जूते पहनें जिन का तला फ्लैट और सख्त हो ताकि आप के पैरों को सपोर्ट मिल सकें. खेलने के लिए ऐसे जूते पहनें जिन से एड़ी और टखने को सपोर्ट मिल सकें जैसे कि स्लिपऔन स्नीकर्स के बजाय एंकल शूज चुनें.

सही ब्रैंड चुनें

‘सस्ता रोए बारबार, महंगा रोए एक बार’ की कहावत को ध्यान में रखते हुए अच्छे ब्रैंड के जूते खरीदें ताकि आप बारबार जूते खरीदने से बचे रहें क्योंकि अच्छे ब्रैंड के जूते सालोंसाल तक खराब नहीं होते, वहीं लोकल क्वालिटी के जूते बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं.

रखें इन बातों का ध्यान

● किसी भी जूते को जबरदस्ती अपने पैर में फिट करने की कोशिश न करें क्योंकि एक समय पर यह भले ही आप के पैर में फिट हो जाएं पर लंबे समय तक आप इसे प्रयोग नहीं कर पाएंगे.

● जूते के साथ हमेशा मोजे पहनें क्योंकि मोजे के बिना जूते पहनने से पैर के अगूंठे का नाखून धीरेधीरे जूते के ऊपरी हिस्से में छेद कर देता है और फिर वह जूता पहनने लायक नहीं रहता.

● जूतों को वाशिंग मशीन में धोने से बचें क्योंकि मशीन के लंबे वाशिंग प्रोसेस होने के कारण इन की कुशनिंग खराब होने की संभावना होती है.

● यदि आप को बारबार जूते के लेसेज खोलने और बंद करने में परेशानी आती है, तो आप बिना लेस वाले जूतों का चयन करें.

● बारिश के दिनों में जूतों को बहुत संभाल कर पौलिथीन बैग में लपेट कर रखें ताकि उन में फंगस न लग पाएं.

● यदि आप औनलाइन जूते मंगवा रहे हैं तो मंत्रा, फ्लिपकार्ट जैसे औनलाइन प्लेटफौर्म से ही मंगवाएं ताकि वापस करने में परेशानी न आए.

● लेदर के जूतों को आप ने भले ही शादी पार्टी आदि के लिए खरीदा हो पर माह में 1-2 बार इन्हें प्रयोग अवश्य करें वरना इन में क्रेक्स आने लग जाते हैं.

● विशेष अवसर के लिए खरीदे गए जूतों को प्रयोग करने के बाद साफ व सूती कपड़े से पोंछ कर पौली बैग में बंद कर के रखें ताकि इन पर धूल मिट्टी न चढ़ें.

Menstural Bleeding: जानिए नॉर्मल और हैवी ब्लीडिंग के बीच का फर्क

Menstural Bleeding: बहुत सारी महिलाएं अपने पीरियड्स के साथ आने वाली हर परेशानी को यह मानकर चुपचाप स्वीकार करती रही हैं कि ‘यह भी औरत होने का ही एक हिस्सा है’. महिलाओं को लगता है कि  उनकी मां, बहनों या सहेलियों को भी ये सब सहना पड़ा है. लेकिन अगर आपके पीरियड्स आपको थका हुआ और बेचैन अनुभव कराएं, साथ ही आपको बहुत दर्द और अकेलेपन का सामना करना पड़े, तो यह सवाल उठना जायज है कि क्या यह सच में नॉर्मल है? इसका उत्तर हो सकता है, नहीं

पीरियड्स के साथ कई सारी समस्याएं आती हैं. इनमें से एक है हैवी मेंस्ट्रूअल ब्लीडिंग (एचएमबी). यह उतनी भी सामान्य बात नहीं है, जितना लोग सोचते हैं. यह एक मेडिकल कंडीशन है, जिसका सामना दुनियाभर में करोड़ों महिलाएं कर रही हैं. इससे उनके शारीरिक, भावनात्मक एवं सामाजिक स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. ,  एचएमबी को एबनॉर्मल यूटरिन ब्लीडिंग के नाम से भी जाना जाता है. ज्यादातर मामलों में इसकी जांच ही नहीं होती है, क्योंकि बहुत सी महिलाएं समझ ही नहीं पाती हैं कि उनके लक्षण नॉर्मल नहीं हैं.  पुरानी सोच और जागरूकता की कमी के कारण बहुत सी महिलाओं को ऐसे मामलों में जरूरी मदद ही नहीं मिल पाती है. ,

आखिर हैवी मेंस्ट्रूअल ब्लीडिंग असल में है क्या?

डॉक्टरों की बात मानें तो अलग-अलग मेंस्ट्रूअल साइकिल में ब्लड फ्लो कम या ज्यादा हो सकता है. ऐसे में कुछ विशेष लक्षणों को ध्यान में रखकर एचएमबी को समझना चाहिए: जैसे, अगर आपको सात दिन से ज्यादा समय तक ब्लीडिंग हो, हर 1 से 2 घंटे में सैनिटरी पैड बदलने की जरूरत पड़े, सिक्के के आकार के या इससे बड़े ब्लड क्लॉट यानी थक्के नजर आएं, हमेशा लीकेज का डर बना रहे, कभी-कभी दाग से बचने के लिए एक से ज्यादा पैड लगाना पड़े, बहुत ज्यादा ऐंठन हो या लगातार थका हुआ अनुभव करें.  वैश्विक स्तर पर हर 5 में से 1 महिला एचएमबी से प्रभावित है.

भारत में माहवारी वाली उम्र की करीब 30 से 50 प्रतिशत महिलाएं हर साल इससे प्रभावित होती हैं. इतने बड़े पैमाने पर यह समस्या होने के बाद भी इस बारे में जागरूकता आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम है, क्योंकि पीरियड्स अन्य दैनिक गतिविधियों की तरह इतने पर्सनल होते हैं कि महिलाएं किसी अन्य से इस बारे में तुलना नहीं कर पाती हैं और न ही उन्हें इस बारे में कोई अनुमान होता है.

सीनियर गायनी ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. साई लक्ष्मी डायना ने कहा, ‘एचएमबी के साथ एक और स्थिति अक्सर बनती है, वह है एनीमिया. ज्यादा खून गिरने और आयरन कम होने से ऐसा होता है.  एनीमिया होने से ऑक्सीजन ले जाने की खून की क्षमता कम हो जाती है, जिससे लगातार थकान, कमजोरी, त्वचा में पीलापन, ठंडे हाथ-पैर और थोड़ा सा चलते या सीढ़ियां चढ़ते ही सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं. गंभीर एनीमिया से हार्ट फेल और मौत का खतरा भी रहता है.’

डॉ. डायना ने आगे कहा, ‘बहुत सी महिलाओं को हैवी ब्लीडिंग के कारण शारीरिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक परेशानी भी होती है. इसके कारण बहुत सी लड़कियां व महिलाएं स्कूल या काम पर नहीं जा पाती हैं, उन्हें पहले से निर्धारित ट्रैवल प्लान कैंसल करने पड़ जाते हैं या सामाजिक गतिविधियों से दूर रहना पड़ता है. ,  समय के साथ एचएमबी से जीवन के हर पहलू पर दुष्प्रभाव पड़ने लगता है: जैसे, उत्पादकता कम होती है, दैनिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं और इससे पारवारिक संबंधों एवं आय पर भी असर पड़ने लगता है. ,  यह चुपचाप लड़ी जाने वाली ऐसी लड़ाई है, जिसके बारे में अक्सर कोई कुछ भी बात नहीं करता है.’

पारस हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ गायनी, ऑब्सट्रेटिक्स एवं एआरटी की प्रमुख एवं डायरेक्टर पद्मश्री डॉ. अल्का कृपलानी  ने कहा, ‘एचएमबी के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें फिब्रोइड, बिनाइन ग्रोथ पॉलिप्स, पीसीओएस या थायरॉयड डिसऑर्डर के कारण हार्मोन असंतुलन, एडेनोमायोसिस, एंडोमेट्रियोसिस या खून से जुड़ा कोई डिसऑर्डर आदि शामिल हैं.   असली कारण पता न भी चले, तब भी यह जानना महत्वपूर्ण है कि एचएमबी का इलाज किया जा सकता है और जल्दी जांच से बहुत असर पड़ता है. जल्दी जांच हो जाने से मरीज को इलाज के कई विकल्प मिल जाते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जांच की शुरुआत होती है लक्षणों को पहचानने और उस बारे में डॉक्टर से बात करने से. इसमें कुछ सामान्य स्टेप होते हैं – अपने मेंस्ट्रूअल साइकिल को ट्रैक करना, ब्लड टेस्ट से एनीमिया व हार्मोन लेवल का पता लगाना, अल्ट्रासाउंड कराना और जरूरत पड़ने पर यूटरस को ज्यादा सही से समझने के लिए हिस्टेरोस्कॉपी कराना.  एक बार कारण का पता लगने के बाद उसके हिसाब से सही इलाज को प्लान किया जा सकता है.’

डॉ. अल्का ने कहा, ‘कम जागरूकता या देरी से जांच के कारण एचएमबी से राहत के लिए महिलाओं को अक्सर हिस्टेरेक्टॉमी यानी यूटरस को पूरी तरह हटाने की सर्जरी करवानी पड़ती है. अगर महिला के बच्चे हों, तो हिस्टेरेक्टॉमी को अक्सर एचएमबी के लिए फर्स्ट लाइन ट्रीटमेंट के तौर पर बताया जाता है.  यह बड़ी परेशानी की बात है, क्योंकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि हिस्टेरेक्टॉमी से जल्दी मीनोपॉज होने, दिल की बीमारियों की आशंका बढ़ने, अवसाद में जाने, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर होने और डिमेंशिया होने का खतरा बढ़ जाता है. वैसे भी किसी महिला के पेल्विस में यूटरस, ब्लैडर और रेक्टम तीन प्रमुख अंग होते हैं.’

इनोवेटिव ट्रीटमेंट, उम्मीद की किरण

एफओजीएसआई 2025 के प्रेसिडेंट इलेक्ट, अपोलो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. भास्कर पाल ने कहा, ‘आज की तारीख में कई ऐसे इलाज उपलब्ध हैं, जो हैवी ब्लीडिंग को काफी कम कर सकते हैं. महिलाओं को सीधे सर्जरी का विकल्प अपनाने की जरूरत नहीं होती. दुर्भाग्य की बात है कि लोग ही नहीं, बल्कि कई डॉक्टर भी आज की तारीख में उपलब्ध नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट की पूरी रेंज के बारे में जागरूक नहीं हैं. हिस्टेरेक्टॉमी हमेशा आखिरी विकल्प के रूप में प्रयोग होना चाहिए, क्योंकि भविष्य में मां न बन पाने की स्थिति समेत कई मुश्किलों के साथ यह एक बड़ा फैसला होता है.’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी आवश्यक हो सकती है, लेकिन बहुत से मामलों में हार्मोनल आईयूडी, ओरल मेडिकेशन, एंडोमेट्रियल एब्लेशन और हिस्टेरोस्कोपिक प्रोसीजर से राहत मिल सकती है. इस दिशा में जागरूकता एवं जल्दी जांच महत्वपूर्ण कदम है.’

डॉ. पाल ने कहा, ‘बायर फार्मास्युटिकल्स के साथ मिलकर हमने भारत में हिस्टेरेक्टॉमी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता लाने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान ‘प्रिजर्व द यूटरस’ शुरू किया है. अप्रैल, 2022 से अब तक डॉक्टरों के लिए 100 से ज्यादा ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए गए हैं, ताकि उन्हें महिलाओं से संबंधित अन्य परेशानियों के साथ-साथ एचएमबी के इलाज के लिए उपलब्ध अनूठे एवं इनोवेटिव विकल्पों के बारे में बताया जा सके.’

गंभीर दुष्प्रभावों के बाद भी वैश्विक स्तर पर एचएमबी को लेकर बहुत कम अध्ययन हुए हैं. ज्यादातर महिलाएं अपने पीरियड्स के हिसाब से ही अपनी दिनचर्या को बदल लेती हैं, जैसे ट्रिप कैंसल करना, मीटिंग छोड़ देना या चुपचाप सहन कर लेना. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. अगर आपको लगता है कि पीरियड्स के दौरान आपकी ब्लीडिंग सामान्य से ज्यादा है, तो इंतजार मत कीजिए. तुरंत डॉक्टर से बात कीजिए. उनसे सही प्रश्न पूछिए और इलाज के सही विकल्पों के बारे में जानकारी लीजिए.

कुछ भ्रम दूर करना जरूरी

भ्रम: हैवी पीरियड होना एक महिला के रूप में सामान्य बात है.

सच: बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना एक मेडिकल कंडीशन है, जिसका इलाज कराना चाहिए.

भ्रम: सर्जरी इसका एकमात्र समाधान है.

सच: एचएमबी के ज्यादातर मामलों में एचएमबी को दवाओं से या नॉन-सर्जिकल ट्रीमटमेंट से मैनेज किया जा सकता है.

भ्रम: अगर आपकी मां को हैवी पीरियड्स आते थे, तो आपको भी आएंगे.

सच: फैमिली हिस्ट्री से असर पड़ता है, लेकिन अब कई प्रभावी इलाज उपलब्ध हैं. Menstural Bleeding

Hindi Story: पति-पत्नी और वो

Hindi Story: मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही थी. अभी मुझे 2 साल भी नहीं हुए थे. कंपनी का एक बड़ा प्रोजैक्ट पूरा होने की खुशी में शनिवार को फाइव स्टार होटल में एक पार्टी थी. मुझे भी वहां जाना था. मेरे मैनेजर ने मुझे बुला कर खासतौर पर कहा, ‘‘प्रीति, तुम इस प्रोजैक्ट में शुरू से जुड़ी थीं, तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश हूं. पार्टी में जरूर आना… वहां और सीनियर लोगों से भी तुम्हें इंट्रोड्यूज कराऊंगा जो तुम्हारे फ्यूचर के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘थैंक्यू,’’ मैं ने कहा.

सागर मेरा मैनेजर है. लंबा कद, गोरा, क्लीन शेव्ड, बहुत हैंडसम ऐंड सौफ्ट स्पोकन. उस का व्यक्तित्व हर किसी को उस की ओर देखने को मजबूर करता. सुना है वाइस प्रैसिडैंट का दाहिना हाथ है… वे कंपनी के लिए नए प्रोजैक्ट लाने के लिए कस्टमर्स के पास सागर को ही भेजते. सागर अभी तक इस में सफल रहा था, इसलिए मैनेजमैंट उस से बहुत खुश है.

मैं ने अपनी एक कुलीग से पूछा कि वह भी पार्टी में आ रही है या नहीं तो उस ने कहा, ‘‘अरे वह हैंडसम बुलाए और हम न जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. बड़ा रंगीन और मस्तमौला लड़का है सागर.’’

‘‘वह शादीशुदा नहीं है क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एचआर वाली मैम तो बोल रही थीं शादीशुदा है, पर बीवी कहीं और जौब करती है. सुना है अकसर यहां किसी न किसी फ्रैशर के साथ उस का कुछ चक्कर रहा है. यों समझ लो मियांबीवी के बीच कोई तीसरी वो. पर बंदे की पर्सनैलिटी में दम है. उस के साथ के लिए औफिस की दर्जनों लड़कियां तरसती हैं. मेरी शादी के पहले मुझ पर भी डोरे डाल रहा था. मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है, सिर्फ सगाई ही हुई है… एक शाम उस के नाम सही.’’

‘‘मतलब तेरा भी चक्कर रहा है सागर के साथ… पगली शादीशुदा हो कर ऐसी बातें करती है. खैर ये सब बातें छोड़ और बता तू आ रही है न पार्टी में?’’

‘‘हंड्रेड परसैंट आ रही हूं?’’

मैं शनिवार रात पार्टी में गई. मैं ने पार्टी के लिए अलग से मेकअप नहीं किया था. बस वही जो नौर्मल करती थी औपिस जाने के लिए. सिंपल नेवी ब्लू कलर के लौंग फ्रौक में जरा देर से पहुंची. देखा कि सागर के आसपास 4-5 लड़कियां पहले से बैठी थीं.

मुझे देख कर वह फौरन मेरे पास आ कर बोला, ‘‘वाऊ प्रीति, यू आर लुकिंग गौर्जियस. कम जौइन अस.’’

पहले सागर ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वाइस प्रैसिडैंट के पास ले जा कर उन से मिलवाया.

उन्होंने कहा, ‘‘यू आर लुकिंग ग्रेट. सागर तुम्हारी बहुत तारीफ करता है. तुम्हारे रिपोर्ट्स भी ऐक्सीलैंट हैं.’’

मैंने उन्हें थैंक्स कहा. फिर अपनी कुलिग्स की टेबल पर आ गई. सागर भी वहीं आ गया. हाल में हलकी रंगीन रोशनी थी और सौफ्ट म्यूजिक चल रहा था. कुछ स्नैक्स और ड्रिंक्स का दौर चल रहा था.

सागर ने मुझ से भी पूछा, ‘‘तुम क्या लोगी?’’

‘‘मैं… मैं… कोल्डड्रिंक लूंगी.’’

सागर के साथ कुछ अन्य लड़कियां भी हंस पड़ीं.

‘‘ओह, कम औन, कम से कम बीयर तो ले लो. देखो तुम्हारे सभी कुलीग्स कुछ न कुछ ले ही रहे हैं. कह कर उस ने मेरे गिलास में बीयर डाली और फिर मेरे और अन्य लड़कियों के साथ गिलास टकरा कर चीयर्स कहा.

पहले तो मैं ने 1-2 घूंट ही लिए. फिर धीरेधीरे आधा गिलास पी लिया. डांस के लिए फास्ट म्यूजिक शुरू हुआ. सागर मुझ से रिक्वैस्ट कर मेरा हाथ पकड़ कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया. पहले तो सिर्फ दोनों यों ही आमने-सामने खड़े शेक कर रहे थे, फिर सागर ने मेरी कमर को एक हाथ से पकड़ कर कहा, ‘‘लैट अस डांस प्रीति,’’ और फिर दूसर हाथ मेरे कंधे पर रख कर मुझ से भी मेरा हाथ पकड़ ऐसा ही करने को कहा.

म्यूजिक तो फास्ट था, फिर भी उस ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मुझे स्लो स्टैप्स ही अच्छे लगते हैं. ज्यादा देर तक सामीप्य बना रहता है, कुछ मीठी बातें करने का मौका भी मिल जाता है और थकावट भी नहीं होती है.’’ मैं सिर्फ मुसकरा कर रह गई. वह मेरे बहुत करीब था. उस की सांसें मैं महसूस कर रही थी और शायद वह भी मेरी सांसें महसूस कर रहा था. उस ने धीरे से कहा, ‘‘अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है न?’’

‘‘नहीं, शादी अभी नहीं हुई है, पर 6 महीने बाद होनी है. समरेश मेरा बौयफ्रैंड ऐंड वुड बी हब्बी फौरन असाइनमैंट पर अमेरिका में है.’’

‘‘वैरी गुड,’’ कह उस ने मेरे कंधे और गाल पर झूलते बालों को अपने हाथ से पीछे हटा दिया, ‘‘अरे यह सुंदर चेहरा छिपाने की चीज नहीं है.’’

फिर उस ने अपनी उंगली से मेरे गालों को छू कर होंठों को छूना चाहा तो मैं ‘नो’ कह कर उस से अलग हो गई. मुझे अपनी सहेली का कहा याद आ गया था. उसके बाद हम दोनों 2 महीने तक औफिस में नौर्मल अपना काम करते रहे.

एक दिन सागर ने कहा, हमें एक प्रोजैक्ट के लिए हौंगकौंग जाना होगा.’’

‘‘हमें मतलब मुझे भी?’’

‘‘औफकोर्स, तुम्हें भी.’’

‘‘नहीं सागर, किसी और को साथ ले लो इस प्रोजैक्ट में.’’

‘‘तुम यह न समझना कि यह मेरा फैसला है… बौस का और्डर है यह. तुम चाहो तो उन से बात कर सकती हो.’’

मैं ने वाइस प्रैसिडैंट से भी रिक्वैस्ट की पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रीति, बाकी सभी अपनेअपने प्रोजैक्ट में व्यस्त हैं. 2 और मेरी नजर में थीं, उन से पूछा भी था, पर दोनों अपनी प्रैगनैंसी के चलते दूर नहीं जाना चाहती हैं… मेरे पास तुम्हारे सिवा और कोई औप्शन नहीं है.’’

मैं सागर के साथ हौंगकौंग गई. वहां 1 सप्ताह का प्रोग्राम था. काफी भागदौड़ भरा सप्ताह रहा. मगर 1 सप्ताह में हमारा काम पूरा न हो सका. अपना स्टे और 3 दिन के लिए बढ़ाना पड़ा. हम दोनों थक कर चूर हो गए थे. बीच में 2 दिन वीकैंड में छुट्टी थी.

हौंगकौंग के क्लाइंट ने कहा, ‘‘इसी होटल में स्पा, मसाज की सुविधा है. मसाज करा लें तो थकावट दूर हो जाएगी और अगर ऐंजौय करना है तो कोव्लून चले जाएं.’’

‘‘मैं तो वहां जा चुका हूं. तुम कहो तो चलते हैं. थोड़ा चेंज हो जाएगा,’’ सागर ने कहा.

हम दोनों हौंगकौंग के उत्तर में कोव्लून द्वीप गए. थोड़े सैरसपाटे के बाद सागर बोला, ‘‘तुम होटल के मसाज पार्लर में जा कर फुल बौडी मसाज ले लो. पूरी थकावट दूर हो जाएगी.’’

मै स्पा गई. स्पा मैनेजर ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट में थेरैपिस्ट की चौइस नहीं बताई है. अभी पुरुष और महिला दोनों थेरैपिस्ट हैं मेरे पास. अगर डीप प्रैशर मसाज चाहिए तो मेरे खयाल से पुरुष थेरैपिस्ट बेहतर होगा. वैसे आप की मरजी?’’

मैंने महिला थेरैपिस्ट के लिए कहा और अंदर मसाजरूम में चली गई.

बहुत खुशनुमा माहौल था. पहले तो मुझे ग्रीन टी पीने को मिली. कैंडल लाइट की धीमी रोशनी थी, जिस से लैवेंडर की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. लाइट म्यूजिक बज रहा था. थेरैपिस्ट ने मुझे कपड़े खोलने को कहा. फिर मेरे बदन को एक हरे सौफ्ट लिनेन से कवर कर पैरों से मसाज शुरू की. वह बीचबीच में धीरेधीरे मधुर बातें कर रही थी. फिर थेरैपिस्ट ने पूछा, ‘‘आप को सिर्फ मसाज करानी है या कुछ ऐक्स्ट्रा सर्विस विद ऐक्स्ट्रा कौस्ट… पर इस टेबल पर नो सैक्स?’’

‘‘मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे ऐसा कहने की क्या जरूरत थी. मैं ने महसूस किया कि मेरी बगल में भी एक मसाज चैंबर था. दोनों के बीच एक अस्थायी पार्टीशन वाल थी. जैसेजैसे मसाज ऊपर की ओर होती गई मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रही थी. करीब 90 मिनट तक वह मेरी मसाज करती रही. महिला थेरैपिस्ट होने से मैं भी सहज थी और उसे भी मेरे अंगों को छूने में संकोच नहीं था. उस के हाथों खासकर उंगलियों के स्पर्श में एक जादू था और एक अजीब सा एहसास भी. पर धीरेधीरे उस के नो सैक्स कहने का अर्थ मुझे समझ में आने लगा था. मैं अराउज्ड यानी उत्तेजना फील करने लगी. मुझे लगा. मेरे अंदर कामवासना जाग्रत हो रही है.’’

तभी थेरैपिस्ट ने ‘‘मसाज हो गई,’’ कहा और बीच की अस्थायी पार्टीशन वाल हटा दी. अभी मैं ने पूरी ड्रैस भी नहीं पहनी थी कि देखा दूसरे चैंबर में सागर की भी मसाज पूरी हो चुकी थी. वह भी अभी पूरे कपड़े नहीं पहन पाया था. दूसरी थेरैपिस्ट गर्ल ने मुसकराते हुए कहा ‘‘देखने से आप दोनों का एक ही हाल लगता है, अब आप दोनों चाहें तो ऐंजौय कर सकते हैं.’’

मुझे सुन कर कुछ अजीब लगा, पर बुरा नहीं लगा. हम दोनों पार्लर से निकले. मुझे अभी तक बिना पीए मदहोशी लग रही थी. सागर मेरा हाथ पकड़ कर अपने रूम में ले गया. मैं भी मदहोश सी उस के साथ चल पड़ी. उस ने रूम में घुसते ही लाइट औफ कर दी.

सागर मुझ से सट कर खड़ा था. मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच रहा था और मैं उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वह अपनी उंगली से मेरे होंठों को सहला रहा था. मैं भी उस के सीने से लग गई थी. फिर उस ने मुझे किस किया तो ऐसा लगा सारे बदन में करंट दौड़ गया. उस ने मुझे बैड पर लिटा दिया और कहा, ‘‘जस्ट टू मिनट्स, मैं वाशरूम से अभी आया.’’

सागर ने अपनी पैंट खोल बैड के पास सोफे पर रख दी और टौवेल लपेट वह बाथरूम में गया. मैं ने देखा कि पैंट की बैक पौकेट से उस का पर्स निकल कर गिर पड़ा और खुल गया. मैं ने लाइट औन कर उस का पर्स उठाया. पर्स में एक औरत और एक बच्चे की तसवीर लगी थी.

मैं ने उस फोटो को नजदीक ला कर गौर से देखा. उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं ने मन में सोचा यह तो मेरी नीरू दी हैं. कालेज के दिनों में मैं जब फ्रैशर थी सीनियर लड़के और लड़कियां दोनों मुझे रैगिंग कर परेशान कर रहे थे. मैं रोने लगी थी. तभी नीरू दी ने आ कर उन सभी को डांट लगाई थी और उन्हें सस्पैंड करा देने की वार्निंग दी थी. नीरू दी बीएससी फाइनल में थीं. इस के बाद मेरी पढ़ाई में भी उन्होंने मेरी मदद की थी. तभी से उन के प्रति मेरे दिल में श्रद्धा है. आज एक बार फिर नीरू दी स्वयं तो यहां न थीं, पर उन के फोटो ने मुझे गलत रास्ते पर जाने से बचा लिया. मेरी मदहोशी अब फुर्र हो चली थी.

सागर बाथरूम से निकल कर बैड पर आया तो मैं उठ खड़ी हुई. उस ने मुझे बैड पर बैठने को कहा, ‘‘लाइट क्यों औन कर दी? अभी तो कुछ ऐंजौय किया ही नहीं.’’

‘‘ये आप की पत्नी और साथ में आप का बेटा है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ? वह दूसरे शहर में नौकरी कर रही है?’’

‘‘नहीं, वे मेरी नीरू दीदी भी हैं… मैं गलती करने से बच गई,’’ इतना बोल कर मैं उस के कमरे से निकल गई.

जहां एक ओर मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई तो वहीं दूसरी ओर साफ बच निकलने का सुकून भी था. वरना तो मैं जिंदगीभर नीरू दी से आंख नहीं मिला पाती. हालांकि सागर ने कभी मेरे साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की.

इस के बाद 3 दिन और हौंगकौंग में हम दोनों साथ रहे… बिलकुल प्रोफैशनल की तरह

अपनेअपने काम से मतलब. चौथे दिन मैं और सागर इंडिया लौट आए. मैं ने नीरू दी का पता लगाया और उन्हें फोन किया. मैं बोली, ‘‘मैं प्रीति बोल रही हूं नीरू दी, आप ने मुझे पहचाना? कालेज में आप ने मुझे रैगिंग…’’

‘‘ओ प्रीति तुम? कहां हो आजकल और कैसी हो? कालेज के बाद तो हमारा संपर्क ही टूट गया था.’’

‘‘मैं यहीं सागर की जूनियर हूं. आप यहीं क्यों नहीं जौब कर रही हैं?’’

‘‘मैं भी इस के लिए कोशिश कर रही हूं. उम्मीद है जल्द ही वहां ट्रांसफर हो जाएगा.’’

‘‘हां दी, जल्दी आ जाइए, मेरा भी मन लग जाएगा,’’ और मैं ने फोन बंद कर दिया. हौंगकौंग के उस कमजोर पल की याद फिर आ गई, जिस से मैं बालबाल बच गई थी और वह भी सिर्फ एक तसवीर के चलते वरना अनजाने में ही पति-पत्नी के बीच मैं ‘वो’ बन गई होती. Hindi Story

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